दो बरस सूखे में गुजरे इस बरस में जान है, मेघ बरसेंगे समय
से पूर्व से अनुमान है.
प्रधान मंत्री श्री मोदी ने विदेश की सभाओं में संबोधित
करते हुए कहा था कि प्रकृति भी उनका इम्तहान लेती है. दो वर्ष सूखाग्रस्त होने के
बावजूद भी जी डी पी ग्रोथ ७.९ % है. इस बार तो अच्छे मानसून की उम्मीद है, तब हमारा GDP ग्रोथ कहाँ जा
सकता है! यह भी अनुमान का विषय हो सकता है. काश कि अच्छे मानसून से निपटने की
तैयारी भी कर ली जाती. तब शायद जो जाम महानगरों में देखने को मिल रहा है वह न होता ! इस बार भी प्रकृति शायद इम्तहान ही लेने वाली
है!
पिछले कई वर्षों में महानगरों के विकास में तेजी आयी है.
मकान, दुकान, दफ्तर, मॉल, सड़कें, फ्लाईओवर, चकाचौंध में
अभूतपूर्व बृद्धि हुई है. यही तो विकास का पैमाना भी है. गुड़गांव, दिल्ली, नॉएडा, मुबई, कोलकता, बंगलोर, हैदराबाद
और चेन्नई जैसे शहरों में खूब विकास हुआ है और बढ़ी है वहां की जनसँख्या, बढ़ी हैं कारें, एवम अन्य वाहनों
की संख्या भी. दफ्तर और शिक्षण संस्थानों में आने-जाने के समय, बाजारों में आने
जाने के समय में ट्रैफिक जाम होना एक आम समस्या है. ट्रैफिक जाम से ज्वलनशील फ्यूल
भी ज्यादा खपत होता है और बढ़ता है प्रदूषण ! यह सब चर्चा का विषय बनता रहा है, पर इस बार जाम के
कारण बने हैं मानसून, अधिक वर्षा से सड़कों पर पानी भर जाना. सबसे ज्यादा चर्चा में
आया गुड़गांव का जाम. २८-२९ जुलाई को गुड़गांव में १२ से १८ घंटे का जाम लगा. कितने
लोगों की रातें सड़कों पर ही कट गई, कितनी गाड़ियों के इंजन फेल हो गए, कितने बच्चे, बुजुर्ग और
महिलाएं परेशान हुए, अनुमान लगाया जा सकता है. टीवी पर खूब रिपोर्टिंग हुई, राजनीतिक
बयानबाजी, आरोप प्रत्यारोप
के भी दौर भी चले. हरियाणा के मुख्य मंत्री मनोहर लाल खट्टर ने कहा – “इस जाम के
लिए केजरीवाल जिम्मेदार हैं”. तो जवाब में मनीष सिसोदिया ने कहा – “गुड़गांव का नाम
गुरुग्राम में बदलने से विकास नहीं होता. विकास के लिए योजनाएं बनानी होती है.
उसपर अमल करना होता है. जुमलों से जाम नहीं खुलेगा.” इसके बाद ट्वीट की भी बाढ़ आ
गयी किसी ने लिखा- नाम बदलकर क्या हम द्रोणाचार्य के युग में जा रहे हैं? फिर
बैलगाड़ी भी ले आओ! किसी ने इस मिलेनियम सिटी को गुरगोबर भी कह दिया. किसी ने ओला
को पुकारा! ओला बोट, ओला सबमरीन चलने की मांग करने लगे. गुरुग्राम से पहले लोगों ने गुड़गांव को
प्यार दुलार से भारत का सिंगापुर कहा, आईटी सिटी कहा, मिलेनियम सिटी कहा. अब वहां के निवासी इन्हीं नामों का माखौल भी उड़ा रहे हैं.
यहां तक गुरु द्रोण के नाम पर रखे गए गुरुग्राम को लेकर मज़ाक उड़ाया गया, मौके की नज़ाकत को देखते हुए ऐसी बातों पर आहत होने वालों की टोली भी इग्नोर
करने लगी. अच्छा ही है. वैसे भी लोग आधुनिक शहर की हालत से नाराज़ है. दूसरे दिन स्थिति
कुछ सुधरी पर दिल्ली और दिल्ली से सटे दूसरे इलाके में भी कमोबेस इसी तरह की
स्थिति का सामना करना पड़ रहा है. वर्षा में ऐसे ही और संकट की संभावना से इनकार
नहीं किया जा सकता है.
दिल्ली से दूर बंगलोर में अत्यधिक वर्षा से जाम की स्थिति
का सामना करना पड़ रहा है. तमिलनाडु के वेल्लोर में भी पानी ज़मने की खबर हैं.
तेलंगाना भी बाढ़ से प्रभावित है. स्मार्ट सिटी का सपना क्या सपना ही रह जाएगा? जब
तक मूलभूत सुविधा में बेहतरी नहीं होगी स्मार्ट सिटी, बुलेट ट्रेन का सपना बेकार
है. वैसे प्राकृतिक आपदा के सामने हम सब बौने हो जाते हैं, बाढ़ के कारण चीन की हालत
भी बहुत खराब है. हम लगातार भूलते जा
रहे हैं. 26 जुलाई 2005 यानी आज से 11 साल पहले मुंबई में करीब 1000 मिमि की बारिश हुई थी जिसमें डूब कर सैंकड़ों लोग मर गए थे. कई लोगों की मौत
उसी कार में हो गई थी जिसमें बैठे बैठे घर जा रहे थे. महाराष्ट्र सरकार ने
हाईकोर्ट में बताया था कि बारिश और उसके बाद की बीमारी से 1498 लोगों की मौत हो गई थी. पिछले साल चेन्नई में भी हम सबने भयंकर तबाही देखी थी.
अकेले चेन्नई में 269 लोग मरे थे. कई कारणों में कुछ कारण यह भी
थे कि नदी की ज़मीन पर कब्जा हो गया. मकान बन गए. हम अक्सर समझते हैं कि नदी सूख गई
है मगर यह नहीं देखते कि पानी ऊपर से भी आ सकता है. ऐसे वक्त में नदी के विस्तार
की ज़मीन पर पानी फैलने से बाढ़ जानलेवा नहीं हो पाती है. मिट्टी के ऊपर सिमेंट की परतें बिछाई जा रही हैं और तालाब या पानी के
विस्तार की ज़मीन को कब्जे में लेकर सपनों की सोसायटी बन रही है. सीवेज और ड्रेनेज
सिस्टम पर ध्यान कम दिया जा रहा है.
आम लोगों की जिंदगी ऐसे ही चलती है. बड़े-बड़े लोग, हवाई जहाज और
हेलिकोप्टर से नजारा देखेंगे और संभावित
कदम उठाने का प्रयास करेंगे. वैसे गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने आसाम का हवाई
सर्वेक्षण किया है और स्थिति से निपटने के लिए अधिकारियों को निर्देश दिए. रिपोर्ट के अनुसार असम में 17 लाख लोग बाढ़ से
विस्थापित हुए हैं। अपर असम के सैंकड़ों गांव पानी में डूबे हुए हैं। 2000 राहत शिविरों में लोग रह रहे हैं. नितीश कुमार भी
बिहार राज्य के बाढ़ प्रभावित इलाके का सर्वेक्षण कर चुके हैं और अधिकारियों को
आवश्यक हिदायत भी दे चुके हैं.
विकास के मानदंड पर हमने निर्माण तो किये हैं, पर उस रफ़्तार
से नाले नालियों, यानी जल निकास के प्रबंधन पर चूक रह गयी है. जिस पर फिर से
काम करने की जरूरत है. हर साल अगर थोड़ी देर तक वर्षा हो गयी तो महानगर तैरने लगता
है सडकों पर! बाढ़ के हालात से निपटने के लिए आपदा प्रबंधन के टीम काम करते हैं, जरूरत पड़ने पर
सेना की भी मदद ली जाती है. नेपाल, उत्तराखंड, आसाम, उत्तरी बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश,
तेलंगाना, गुजरात, राजस्थान भी बाढ़
की चपेट में आ गए. इन राज्यों में भयंकर स्थिति बनी हुई है और करोड़ों का नुकसान तो
हुआ ही है. सैंकड़ों लोग काल कवलित भी हुए हैं. बाढ़ से फसलें भी बर्बाद हुई है.
वहीं झाड़खंड, बंगाल, उड़ीसा के कुछ
इलाकों में उतना पानी नहीं हुआ है कि धान की खेती की जा सके, क्योंकि धान के
लिए अधिक पानी की आवश्यकता होती है. पता नहीं इस मानसून से विकास दर में कितनी
बढ़ोत्तरी होगी यह तो अगले साल के आंकड़े बताएँगे!
उधर अविरल गंगा, नमामि
गंगे, नदियों को जोड़ने
के जुमले पर बयान आते रहेंगे. स्वच्छ भारत अभियान पर भी खूब बातें होंगी पर नाले
जाम होते रहेंगे. पटना का भी बहुत विकास हुआ है. खूब फ्लाईओवर बने हैं. सड़कें चौड़ी
हुई हैं और नाले संकड़े. नालों की सफाई कौन करे? गन्दा तो सभी
करते हैं. कूड़ा उठाव और कूड़ा प्रबंधन होना अभी बाकी है. पटना की स्थिति और भी बदतर
है. यहाँ गंगा जब उफनती है तो शहरों का ही रुख करती है. पटना जलमग्न हो जाता है और
लालू जी जैसे नेता वर्षा में भींग कर वर्षा जल पीते हुए फोटो खिंचवाएंगे. अभी तो
पटना में वैसी बारिश हुई ही नहीं है कि जल-जमाव का सामना करना पड़े, पर
परिस्थितियां कब बदल जाएँ यह कोई नहीं जनता. आपदा आती है तो आपदा प्रबंधन के लिए सरकार
के कोष खुल जाएंगे और बन्दरबाँट चालू हो जायेगा. इसमें नयी बात क्या है? कुछ सरकारी
अधिकारी/कर्मचारी तो इन्तजार करते रहते हैं, प्राकृतिक आपदा का ताकि उनकी संपत्ति
में कुछ इजाफा हो सके. मुखिया, सरपंच भी खूब सारा राहत के सामान और अनाज का संचय
कर लेंगे. किसी का नुकसान तो किसी को फायदा होना ही चाहिए. हो सकता है, फिर से नयी
योजनायें बनेगी, बड़े बड़े ब्लूप्रिंट तैयार किये जायेंगे और उन पर निर्माण कार्य का
ठेका किनको मिलनेवाला है? इससे बेचैन होने की जरूरत नहीं है. लोगों को रोजगार
मिलेगा. उत्पादन बढ़ेगा और बढ़ेगा जीडीपी ग्रोथ रेट. समझ गए न! जय भारत! जय हिन्द! जय
जवान और जय किसान भी कहना पड़ेगा क्योंकि इनके बिना तो हम अधूरे और असहाय भी हैं. - जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.