Saturday, 30 July 2016

महानगरों में जाम और मानसून!

दो बरस सूखे में गुजरे इस बरस में जान है, मेघ बरसेंगे समय से पूर्व से अनुमान है.
प्रधान मंत्री श्री मोदी ने विदेश की सभाओं में संबोधित करते हुए कहा था कि प्रकृति भी उनका इम्तहान लेती है. दो वर्ष सूखाग्रस्त होने के बावजूद भी जी डी पी ग्रोथ ७.९ % है. इस बार तो अच्छे मानसून की उम्मीद है, तब हमारा GDP ग्रोथ कहाँ जा सकता है! यह भी अनुमान का विषय हो सकता है. काश कि अच्छे मानसून से निपटने की तैयारी भी कर ली जाती. तब शायद जो जाम महानगरों में देखने को मिल रहा है वह न होता ! इस बार भी प्रकृति शायद इम्तहान ही लेने वाली है!
पिछले कई वर्षों में महानगरों के विकास में तेजी आयी है. मकान, दुकान, दफ्तर, मॉल, सड़कें, फ्लाईओवर, चकाचौंध में अभूतपूर्व बृद्धि हुई है. यही तो विकास का पैमाना भी है. गुड़गांव, दिल्ली, नॉएडा, मुबई, कोलकता, बंगलोर, हैदराबाद और चेन्नई जैसे शहरों में खूब विकास हुआ है और बढ़ी है वहां की जनसँख्या, बढ़ी हैं कारें, एवम अन्य वाहनों की संख्या भी. दफ्तर और शिक्षण संस्थानों में आने-जाने के समय, बाजारों में आने जाने के समय में ट्रैफिक जाम होना एक आम समस्या है. ट्रैफिक जाम से ज्वलनशील फ्यूल भी ज्यादा खपत होता है और बढ़ता है प्रदूषण ! यह सब चर्चा का विषय बनता रहा है, पर इस बार जाम के कारण बने हैं मानसून, अधिक वर्षा से सड़कों पर पानी भर जाना. सबसे ज्यादा चर्चा में आया गुड़गांव का जाम. २८-२९ जुलाई को गुड़गांव में १२ से १८ घंटे का जाम लगा. कितने लोगों की रातें सड़कों पर ही कट गई, कितनी गाड़ियों के इंजन फेल हो गए, कितने बच्चे, बुजुर्ग और महिलाएं परेशान हुए, अनुमान लगाया जा सकता है. टीवी पर खूब रिपोर्टिंग हुई, राजनीतिक बयानबाजी, आरोप प्रत्यारोप के भी दौर भी चले. हरियाणा के मुख्य मंत्री मनोहर लाल खट्टर ने कहा – “इस जाम के लिए केजरीवाल जिम्मेदार हैं”. तो जवाब में मनीष सिसोदिया ने कहा – “गुड़गांव का नाम गुरुग्राम में बदलने से विकास नहीं होता. विकास के लिए योजनाएं बनानी होती है. उसपर अमल करना होता है. जुमलों से जाम नहीं खुलेगा.” इसके बाद ट्वीट की भी बाढ़ आ गयी किसी ने लिखा- नाम बदलकर क्या हम द्रोणाचार्य के युग में जा रहे हैं? फिर बैलगाड़ी भी ले आओ! किसी ने इस मिलेनियम सिटी को गुरगोबर भी कह दिया. किसी ने ओला को पुकारा! ओला बोट, ओला सबमरीन चलने की मांग करने लगे. गुरुग्राम से पहले लोगों ने गुड़गांव को प्यार दुलार से भारत का सिंगापुर कहा, आईटी सिटी कहा, मिलेनियम सिटी कहा. अब वहां के निवासी इन्हीं नामों का माखौल भी उड़ा रहे हैं. यहां तक गुरु द्रोण के नाम पर रखे गए गुरुग्राम को लेकर मज़ाक उड़ाया गया, मौके की नज़ाकत को देखते हुए ऐसी बातों पर आहत होने वालों की टोली भी इग्नोर करने लगी. अच्छा ही है. वैसे भी लोग आधुनिक शहर की हालत से नाराज़ है. दूसरे दिन स्थिति कुछ सुधरी पर दिल्ली और दिल्ली से सटे दूसरे इलाके में भी कमोबेस इसी तरह की स्थिति का सामना करना पड़ रहा है. वर्षा में ऐसे ही और संकट की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है.    
दिल्ली से दूर बंगलोर में अत्यधिक वर्षा से जाम की स्थिति का सामना करना पड़ रहा है. तमिलनाडु के वेल्लोर में भी पानी ज़मने की खबर हैं. तेलंगाना भी बाढ़ से प्रभावित है. स्मार्ट सिटी का सपना क्या सपना ही रह जाएगा? जब तक मूलभूत सुविधा में बेहतरी नहीं होगी स्मार्ट सिटी, बुलेट ट्रेन का सपना बेकार है. वैसे प्राकृतिक आपदा के सामने हम सब बौने हो जाते हैं, बाढ़ के कारण चीन की हालत भी बहुत खराब है. हम लगातार भूलते जा रहे हैं. 26 जुलाई 2005 यानी आज से 11 साल पहले मुंबई में करीब 1000 मिमि की बारिश हुई थी जिसमें डूब कर सैंकड़ों लोग मर गए थे. कई लोगों की मौत उसी कार में हो गई थी जिसमें बैठे बैठे घर जा रहे थे. महाराष्ट्र सरकार ने हाईकोर्ट में बताया था कि बारिश और उसके बाद की बीमारी से 1498 लोगों की मौत हो गई थी. पिछले साल चेन्नई में भी हम सबने भयंकर तबाही देखी थी. अकेले चेन्नई में 269 लोग मरे थे. कई कारणों में कुछ कारण यह भी थे कि नदी की ज़मीन पर कब्जा हो गया. मकान बन गए. हम अक्सर समझते हैं कि नदी सूख गई है मगर यह नहीं देखते कि पानी ऊपर से भी आ सकता है. ऐसे वक्त में नदी के विस्तार की ज़मीन पर पानी फैलने से बाढ़ जानलेवा नहीं हो पाती है. मिट्टी के ऊपर सिमेंट की परतें बिछाई जा रही हैं और तालाब या पानी के विस्तार की ज़मीन को कब्जे में लेकर सपनों की सोसायटी बन रही है. सीवेज और ड्रेनेज सिस्टम पर ध्यान कम दिया जा रहा है.
आम लोगों की जिंदगी ऐसे ही चलती है. बड़े-बड़े लोग, हवाई जहाज और हेलिकोप्टर से  नजारा देखेंगे और संभावित कदम उठाने का प्रयास करेंगे. वैसे गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने आसाम का हवाई सर्वेक्षण किया है और स्थिति से निपटने के लिए अधिकारियों को निर्देश  दिए. रिपोर्ट के अनुसार असम में 17 लाख लोग बाढ़ से विस्थापित हुए हैं। अपर असम के सैंकड़ों गांव पानी में डूबे हुए हैं। 2000 राहत शिविरों में लोग रह रहे हैं. नितीश कुमार भी बिहार राज्य के बाढ़ प्रभावित इलाके का सर्वेक्षण कर चुके हैं और अधिकारियों को आवश्यक हिदायत भी दे चुके हैं.
विकास के मानदंड पर हमने निर्माण तो किये हैं, पर उस रफ़्तार से नाले नालियों, यानी जल निकास के प्रबंधन पर चूक रह गयी है. जिस पर फिर से काम करने की जरूरत है. हर साल अगर थोड़ी देर तक वर्षा हो गयी तो महानगर तैरने लगता है सडकों पर! बाढ़ के हालात से निपटने के लिए आपदा प्रबंधन के टीम काम करते हैं, जरूरत पड़ने पर सेना की भी मदद ली जाती है. नेपाल, उत्तराखंड, आसाम, उत्तरी बिहारउत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, तेलंगाना,   गुजरात, राजस्थान भी बाढ़ की चपेट में आ गए. इन राज्यों में भयंकर स्थिति बनी हुई है और करोड़ों का नुकसान तो हुआ ही है. सैंकड़ों लोग काल कवलित भी हुए हैं. बाढ़ से फसलें भी बर्बाद हुई है. वहीं झाड़खंड, बंगाल, उड़ीसा के कुछ इलाकों में उतना पानी नहीं हुआ है कि धान की खेती की जा सके, क्योंकि धान के लिए अधिक पानी की आवश्यकता होती है. पता नहीं इस मानसून से विकास दर में कितनी बढ़ोत्तरी होगी यह तो अगले साल के आंकड़े बताएँगे!

उधर अविरल गंगा, नमामि  गंगे, नदियों को जोड़ने के जुमले पर बयान आते रहेंगे. स्वच्छ भारत अभियान पर भी खूब बातें होंगी पर नाले जाम होते रहेंगे. पटना का भी बहुत विकास हुआ है. खूब फ्लाईओवर बने हैं. सड़कें चौड़ी हुई हैं और नाले संकड़े. नालों की सफाई कौन करे? गन्दा तो सभी करते हैं. कूड़ा उठाव और कूड़ा प्रबंधन होना अभी बाकी है. पटना की स्थिति और भी बदतर है. यहाँ गंगा जब उफनती है तो शहरों का ही रुख करती है. पटना जलमग्न हो जाता है और लालू जी जैसे नेता वर्षा में भींग कर वर्षा जल पीते हुए फोटो खिंचवाएंगे. अभी तो पटना में वैसी बारिश हुई ही नहीं है कि जल-जमाव का सामना करना पड़े, पर परिस्थितियां कब बदल जाएँ यह कोई नहीं जनता. आपदा आती है तो आपदा प्रबंधन के लिए सरकार के कोष खुल जाएंगे और बन्दरबाँट चालू हो जायेगा. इसमें नयी बात क्या है? कुछ सरकारी अधिकारी/कर्मचारी तो इन्तजार करते रहते हैं, प्राकृतिक आपदा का ताकि उनकी संपत्ति में कुछ इजाफा हो सके. मुखिया, सरपंच भी खूब सारा राहत के सामान और अनाज का संचय कर लेंगे. किसी का नुकसान तो किसी को फायदा होना ही चाहिए. हो सकता है, फिर से नयी योजनायें बनेगी, बड़े बड़े ब्लूप्रिंट तैयार किये जायेंगे और उन पर निर्माण कार्य का ठेका किनको मिलनेवाला है? इससे बेचैन होने की जरूरत नहीं है. लोगों को रोजगार मिलेगा. उत्पादन बढ़ेगा और बढ़ेगा जीडीपी ग्रोथ रेट. समझ गए न! जय भारत! जय हिन्द! जय जवान और जय किसान भी कहना पड़ेगा क्योंकि इनके बिना तो हम अधूरे और असहाय भी हैं.    - जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.  


Sunday, 24 July 2016

ढोल गंवार शूद्र पशु नारी

ढोल गंवार शूद्र पशु नारी, सकल ताड़ना के अधिकारी. गोस्वामी तुलसीदास ने बहुत पहले ही कह दिया था. रामायण में भी जगज्जननी सीता की अग्नि परीक्षा के बाद भी धोबी के द्वारा  लांछना देने पर राजमहल से निर्वासित कर जंगल में भेज दिया गया, वह भी गर्भावस्था में. अहिल्या प्रकरण से भी हम सभी परिचित हैं. द्रौपदी के साथ क्या हुआ, हम सभी वाकिफ हैं. पुराणों के समय से महिलाओं और शूद्रों की अवहेलना होती रही है. इतिहास में भी महिलाओं की स्थिति बहुत अच्छी नहीं रही है. इतिहास में भी महिलाओं के साथ बहुत भद्रता से पेश नहीं आया गया. सती प्रथा उन्मूलन, विधवा विवाह प्रारंभ  और बाल विवाह उन्मूलन आदि कार्यक्रम महिलाओं की ख़राब स्थिति को देखते हुए ही चलाये किये गए. काफी वेश्याएं मजबूरीवश ही यह पेशा अपनाती हैं. कोठे पर जानेवाले तो शरीफ और खानदानी होते हैं. पर वेश्याओं को कभी भी अच्छी नजर से नहीं देखा गया. कमोबेश आज भी स्थिति वही है.
हालांकि पहले भी और आज भी महिलाएं सम्मान और सम्मानजनक पद भी पा चुकी है. पहले भी देवियाँ थी और आज भी वे पूज्य हैं. आज भी अनेकों महिलाएं कई सम्मानजनक पद को सुशोभित कर चुकी हैं. प्रधान मंत्री, राष्ट्रपति, लोकसभा अध्यक्ष, मुख्य मंत्री से लेकर कई पार्टियों की अध्यक्ष भी रह चुकी हैं. इसके अलावा कई जिम्मेदार पदों पर रहकर अपनी भूमिका का सफलतापूर्वक निर्वहन का रही हैं. प्रधान मंत्री रह चुकी इंदिरा गाँधी को विश्व की ताकतवर हस्तियों में गणना की जाती रही है. पर लांछन लगानेवाले उनके भी चरित्रहनन से बाज नहीं आये. सोनिया गाँधी पर भी खूब प्रहार किये गए. एक दिवंगत भाजपा नेता ने उनकी तुलना मोनिका लेवेस्की से कर दी थी. वर्तमान सरकार के मुखर मंत्री भी सोनिया गाँधी पर अमर्यादित टिप्पणी कर चुके हैं. महिला हैं, यह सब सुनना/सहना पड़ेगा. महिलाओं, वृद्धाओं, बच्चियों के साथ हो रहे घृणित कर्मों से समाचार पत्र भरे रहते हैं. निर्भया योजना, महिला सशक्तिकरण, बेटी बचाओ, बेटी पढाओ आदि योजनाओं के होते हुए भी महिलाओं पर ज्यादती हो रही है और कब तक होती रहेगी कहना मुश्किल है. भाजपा की वर्तमान सरकार की पूर्व मानव संशाधन विकास मंत्री (वर्तमान कपड़ा मंत्री) पर भी बीच-बीच में फब्तियां कसी जाती रही हैं. हालाँकि वे स्वयम मुखर हैं और वे अपना बचाव करती रही हैं.   
वर्तमान सन्दर्भ है, मायावाती को भाजपा के उत्तर प्रदेश के पार्टी उपाध्यक्ष श्री दया शंकर सिंह ने उन्हें सार्वजनिक सभा में वेश्या कहा. मायावती ने इसका पुरजोर विरोध किया. संसद में खूब दहाड़ी और अपने कार्यकर्ताओं को भी एक तरह से ललकार दिया कि वे सड़कों पर उतर आयें और विरोध प्रदर्शन करें. हालाँकि दयाशंकर सिंह ने माफी मांग ली पर उनपर कई धाराएं लगाकर प्राथमिकी दर्ज कर दी गयी है. उन्हें गिरफ्तार करने के लिए यु पी पुलिस ढूंढ रही है, पर वे तो अंडरग्राउंड हो गए. हालाँकि एक प्रेस को उन्होंने साक्षात्कार भी इसी बीच दे दिया है और फिर से माफी मांग ली है और यह भी कहा है कि उनकी गलती की सजा उनकी पत्नी और बेटी को क्यों दी जा रही है?  उल्लेखनीय है कि मायावती की शह पाकर बसपा कार्यकर्ताओं की भीड़ ने दयाशंकर की पत्नी और उनकी १२ वर्षीय बेटी को भी अपमान जनक शब्दों से नवाजा. दयाशंकर की बेटी सदमे में हैं और उनकी पत्नी स्वाति सिंह उत्तेजित. उन्होंने मायावती और उनके कार्यकर्ताओं के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करा चुकी हैं. धरने पर बैठने की तैयारी में थी, पर शायद बेटी की तबीयत ज्यादा ख़राब हो गयी इसलिए फिलहाल धरने का कार्यक्रम टाल दिया है. पर मीडिया में वह भी मायावती पर खूब हमला कर रही है. स्वाति जी सुशिक्षित, LLB और पूर्व लेक्चरर भी हैं  भाजपा प्रदेश के उपाद्ध्यक्ष की पत्नी हैं. इसलिए मायावती पर वह भी जमकर प्रहार कर रही हैं. उनका आक्रोश भी खूब झलक रहा है. वह मायावती और उनके कार्यकर्ताओं पर हमलावर हैं, पर अपने पति के द्वारा प्रयुक्त शब्द पर उनका जवाब रक्षात्मक ही है. कुछ लोग उनमें राजनीतिक नेत्री की छवि भीं देख रहे हैं. क्योंकि दयाशंकर के पार्टी से ६ साल के निष्कासन पर उनकी जगह वही भर सकती हैं और एक खास वर्ग के वोटों की हकदार हो सकती हैं.    
रविवार, २४ जुलाई को मायावती का प्रेस कांफ्रेंस हुआ उसमें मायावती ने भाजपा पर जमकर प्रहार किया साथ ही दयाशंकर की माँ, बहन और पत्नी को भी दोहरी मानसिकता की शिकार बताया. जबकि बसपा नेता नसीमुद्दीन सिद्दकी का बचाव करती नजर आयीं. मायावती के अनुसार नसीमुदीन ने कोई गलत शब्द का इस्तेमाल नहीं किया था. वे तो दयाशंकर को पेश करने की मांग कर रहे थे. गुजरात के ऊना में दलितों के साथ हुए प्रताड़ना का मुद्दा भी उठाया. रोहित वेमुला केस को भी उन्होंने कुरेदा और यह अहसास करवाया कि भाजपा दलित विरोधी पार्टी है. बसपा एक राजनीतिक पार्टी के साथ एक सामाजिक परिवर्तन की भी पैरोकार है. मायावती ने सपा और भाजपा की मिलीभगत की तरफ भी इशारा किया. क्योंकि अब तक दयाशंकर की गिरफ्तारी क्यों नहीं हुई है? इस मामले में प्रधान मंत्री की चुप्पी भी विपक्ष को प्रश्न उठाने का मौका दे देता है.
जाहिर है मामला राजनीतिक है और इसे दोनों पार्टियाँ अपने-अपने पक्ष में करने की कोशिश कर रहे हैं. भाजपा प्रवक्ता प्रेम शुक्ला ने कहा कि मायावती खुद दलित विरोधी हैं और उन्हें चुनाव के समय ही दलितों की याद आती है. भाजपा भी दलितों के घर खाना खाकर, बाबा साहेब अम्बेडकर की १२५ जयंती के उपलक्ष्य में विभिन्न कार्यक्रम करके बसपा के वोट बैंक दलित समाज में सेंध लगाने की कोशिश कर रही हैं. अब तो चुनाव परिणाम ही बताएगा कि दलित वोट किधर जाता है?    
उधर आम आदमी पार्टी के विधायक अमानुतल्ला खान को एक महिला की साथ बदसलूकी के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया है. ख़बरों के अनुसार अबतक आम आदमी पार्टी के नौवें विधायक गिरफ्तार हो चुके हैं. शाम तक आम आदमी पार्टी के एक और विधायक नरेश यादव को भी पंजाब में विद्वेष फ़ैलाने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया. आम आदमी पार्टी पर कानून का शिकंजा शख्ती से लागू होता है. पर भाजपा के पदाधिकारी को पुलिस ढूढ़ ही नहीं पाती है. एक और बिहार भाजपा के  पार्षद(एमएलसी) टुन्ना पाण्डेय पर किसी १२ वर्षीय लड़की के साथ ट्रेन में छेड़छाड़ का आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया. उसे भी भाजपा ने तत्काल पार्टी से निलंबित कर दिया. इससे यह जाहिर होता है कि भाजपा फिलहाल अपनी छवि को बेदाग रखना चाहती है.
अब थोड़ी चर्चा मानसून की कर ली जाय. इस साल पहले से ही अच्छे मानसून की भविष्यवाणी की जा रही थी. मानसून अच्छी हो भी रही है. कहीं-कहीं खासकर उत्तर भारत में अतिबृष्टि हो रही है. अतिबृष्टि से जान-माल का भी काफी नुकसान हो रहा है. बिहार झाड़खंड में देर से ही सही पर अभी अच्छी वर्षा हो रही है. खरीफ की अच्छी पैदावार की उम्मीद की जा सकती है. पर वर्तमान में दाल और सब्जियों के दाम आसमान छू रहे हैं, इस पर सरकार का कोई खास नियंत्रण नहीं है. सब्जियों और खाद्य पदार्थों के प्रसंस्करण और रख-रखाव के मामले में भी अभी बहुत कुछ करना बाकी है. किसानों को उनकी लागत के अनुसार दाम नहीं मिलते, इसलिए वे खेती-बारी की पेशा से दूर होते जा रहे हैं. उपजाऊ जमीन या तो बेकार हैं या वहाँ अब ऊंचे ऊंचे महल बन गए हैं. गाँव में भी शहर बसाये जा रहे हैं. विकास के दौर में कृषि का अपेक्षित विकास नहीं हो रहा है. भारत गांवों का देश है, अभी भी लगभग ७० प्रतिशत आबादी गांवों में रहती है. कृषि और कृषि आधारित उनका पेशा है पर वे गरीब हैं. ऋण ग्रस्त हैं. इसलिए वे असंतोष की आग में आत्महत्या करने को भी मजबूर हैं. सच कहा जाय तो दलित और पिछड़ा वही हैं. कब मिलेगी उन्हें इस दलितपने और निर्धनपने से आजादी! पूरे देश को खाना खिलानेवाला वर्ग आज स्वयम भूखा नंगा है. खोखले वादों से तो कुछ भला नहीं होनेवाला. जमीनी स्तर पर काम होने चाहिए. सामाजिक समरसता और समान वितरण प्रणाली से ही सबका भला होगा. तभी होगा जय भारत और भारत माता की जय! 

-          जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.

Thursday, 21 July 2016

नमामि गंगे परियोजना

वाराणसी और हरिद्वार से एक साथ नमामि गंगे मिशन की 231 परियोजनाओं की शुरुआत हुई। हरिद्वार में जहां उमा भारती और नितिन गडकरी ने इस योजना की शुरुआत की तो वहीं वाराणसी में रेल राज्य मंत्री मनोज सिन्हा ने इस योजना की शुरुआत की।  इस योजना में गंगोत्री से शुरू कर बंगाल तक गंगा के किनारे घाटों, नालों का गंदा पानी, स्वच्छता आदि पर ध्यान दिया जाएगा।  नवम्बर 2014 में उमा भारती ने वाराणसी में एक बड़ा जलसा कर के कहा था कि "गंगा का काम 3 साल में दिखने लगेगा और 48 दिनों में योजनाएं ‘टेक आफ’ ले लेंगी। लेकिन दो साल गुजर गए जमीन पर गंगा सफाई को लेकर कुछ नजर नहीं आया। हां इस बीच कई मीटिंगों और योजनाओं पर काम करने की बात जरूर सामने आई थी।  पर कोई ठोस योजना गंगा किनारे नहीं दिख रही थी।  अब 2 साल बाद नमामि गंगे प्रोजेक्ट के तहत 231 योजनाओं का शुभारम्भ हुआ है।  जिसमे एक बार फिर उमा भारती 2018 तक जमीन पर दिखाई देने की बात कह रही हैं।
नमामि गंगे प्रोजेक्ट की 231 योजनाओं में गंगोत्री से शुरू होकर हरिद्वार, कानपुरइलाहाबद, बनारस, गाजीपुर, बलिया, बिहार में 4 और बंगाल में 6 जगहों पर पुराने घाटों का जीर्णोद्धार, नए घाट, चेंजिंग रूम, शौचालय, बैठने की जगह, सीवेज ट्रीटमेंट प्लान्ट, आक्सीडेशन प्लान्ट बायोरेमेडेशन प्रक्रिया से पानी के शोधन का काम किया जाएगा।  इसमें गांव के नालों को भी शामिल किया गया है।  साथ ही तालाबों का गंगा से जुड़ाव पर क्या असर होता है उसे भी देखा जाएगा।  इसके प्रोजेक्ट डायरेक्टर कहते हैं कि "गंगा एक्शन प्लान का सारा फोकस सफाई पर था, इसमें कोई बुराई नहीं थी। उसमे अविरलता की बात नहीं थी, बायोडायवर्सिटी की बात नहीं थी, उसके अंदर सैनिटेशन की बात नहीं थी, हमने इसमें कई चीजें जोड़ी हैं। 
प्रोजेक्ट डायरेक्टर नमामि गंगे योजना में अविरलता की बात तो कह रहे हैं, पर पूछने पर उसकी कोई योजना नहीं बता पाए। सिर्फ गंगा के किनारे उसके सौंदर्य की ही बात कह पाए।  जबकि आज गंगा की निर्मलता की कौन कहे उसके बचाने की बात सामने आ रही है।  गौरतलब है कि गंगा में  हर साल 3000 MLD सीवेज डालते हैं, जिसमें बनारस में 300 MLD सीवेज डाला जाता है। जो आज भी वैसे ही डाला जा रहा है।  गंगा में डाले जाने वाले सीवेज में हम सिर्फ 1000 MLD का ही ट्रीटमेंट कर पाते हैं, बाकी 2000 MLD सीवेज ऐसे ही बह रहा है जिससे गंगा में गंगा का पानी ही नहीं है। यही वजह है कि जानकार कहते हैं कि पहले गंगा को बचाइए फिर उसकी सुंदरता को देखिए। प्रो बी. डी. त्रिपाठी जो विशेषज्ञ सदस्य नेशनल मिशन क्लीन गंगा के हैं, साफ़ कहते हैं कि  गंगा की जो लांगीट्यूडिनल कनेक्टिविटी खत्म होती जा रही है। गंगा नदी न होकर तालाब का रूप लेती जा रही है। थोड़ा सा प्रदूषण डालने में उसकी पाचन क्षमता समाप्त होती जा रही है। तो उसके लिए गंगा में पानी छोड़ने की कौन योजना है, उसे प्रायरिटी पर लेना चाहिए तभी हमारी समस्या का समाधान हो पाएगा।
गौरतलब है कि गंगा की कुल लम्बाई 2525 किलोमीटर की है। गंगा का बेसिन 1. 6 मिलियन वर्ग किलोमीटर का है, 468. 7 बिलियन मीट्रिक पानी साल भर में प्रवाहित होता है जो देश के कुल जल श्रोत का 25. 2 प्रतिशत भाग है। इसके बेसिन में 45 करोड़ की आबादी बसती है। साथ ही गंगा पांच राज्यों से होकर गुजरती है। इसे राष्ट्रीय नदी भले ही घोषित किया गया हो पर यह राज्यों की मर्जी से ही बहती है। इसलिये इसके रास्ते में कई अड़चनें ज़रूर हैं। पर जिस गंगा एक्शन प्लान की शुरुआत 1986 में हुई। जिस पर अब तक करोड़ों रुपये खर्च हो चुके हैं। बाद में  वर्ष 2009 में राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण की स्थापना भी  गई जिसके चेयरमैन खुद प्रधानमंत्री हैं।  इस परियोजना के लिए 2600 करोड़ रुपये वर्ल्ड बैंक से कर्ज ले कर कई योजनाओं की शुरुआत की गई। लेकिन गंगा का मामला जस का तस है। इसी प्राधिकरण ने भविष्य के लिए 7000 करोड़ के नए प्रोजेक्ट की रूपरेखा भी बना रखी है। बावजूद इसके गंगा की हालात वही है। अब एक बार फिर उसे 231 योजनाओं की सौगात मिली है, लेकिन इसमें भी गंगा में पानी छोड़ने की कोई बात नहीं है। ऐसे में गंगा क्या बिना पानी के ठीक हो पाएगी यह देखने वाली बात होगी।
उपर्युक्त जितनी बातें की गयी है यह सब सरकारी घोषणाओं और आंकड़ों के अनुसार है। सरकारी घोषणाओं का अर्थ और क्रियान्वयन का हस्र हम सभी अच्छी तरह जानते हैं। गंगा एक धार्मिक आस्था से भी जुड़ी है। पुराणों के अनुसार भगवान के बिष्णु के अंगूठे से निकली गंगा ब्रह्मा जी के कमंडल में सुरक्षित थी. राजा सगर के वंशज भगीरथ के अथक प्रयास और शिव जी की कृपा से गंगा कैलाश पर्वत से होते हुए पृथ्वी पर आई और बंगाल की खाड़ी में जा मिली, जिससे कपिल मुनि की क्रोधाग्नि से जले राजा सगर के ६०,००० पुत्रों को मोक्ष की प्राप्ति हुई आज भी गंगा मोक्षदायिनी ही बनी हुई है हिन्दू धर्म अनुयायी के सभी मृत शरीर की अस्थियाँ गंगा में ही विसर्जित की जाती है, मुक्ति के लिए आस्था की इस नदी के वाराणसी, प्रयाग, पटना, मोकामा, सुल्तानगंज और गंगा सागर में अलग अलग महत्व है हम अपने पूर्वजों की अस्थियाँ गंगा में प्रवाह कर ही संतुष्ट होते हैं हम सभी अपनी पूजन सामग्री, मूर्तियाँ आदि भी गंगा में ही प्रवाहित कर अपने आप को पुण्य के भागीदार मान लेते हैं इसे रोकने में प्रशासन या सरकार शायद ही सफल हो पाए पर बाकी प्रदूषण के माध्यमों को जरूर नियंत्रित किया जा सकता है
पतित पावनी गंगा आज स्वयं प्रदूषण की शिकार होकर मैली हो गयी है अब इसे साफ़ कर या पुनर्जीवित कर निर्मल गंगा बनाने का अथक प्रयास जारी है गंगा के प्रदूषित होने का मुख्य कारण, इसके प्रवाह में अवरोध, कल-कारखानों का प्रदूषित ठोस और अवशिष्ट तरल पदार्थ हैं, इसके अलावा इनके किनारे बसे शहरों, गांवों के नालों का प्रवाह भी, जो बिना संशोधित किये गंगा में छोड़ दिया जाता है इसके अलावा विभिन्न पशुओं, मनुष्यों का शव भी है, जिसे सीधे गंगा में छोड़ दिया जाता है
गंगा को साफ़ करने के अनेक प्रयास हुए, बहुतों ने तपस्या की, अनशन किये, आरती की और गंगा के किनारे का भ्रमण किया, सौगंध खाए, गंगा एक्सन प्लान बनाई, इसे राष्ट्रीय नदी भी घोषित किया. करोड़ों के वारे न्यारे हुए, नतीजा वही ढाक के तीन पात अब एक बार पुन: जोर शोर से अभियान चला है श्री मोदी जी को गंगा माँ ने ही बनारस में बुलाया था उन्होंने अपनी ऐतिहासिक विजय के बाद गंगा माँ की आरती की और इसे निर्मल बनाने क बीरा उठा लिया है जल संशाधन मंत्री उमा भारती ने भी पूर्व में काफी प्रयास किया है अब उन्हें यह महत्पूर्ण जिम्मेदारी भी दे दी गयी है कि वे अपने प्लान में सफल हों
बहुत सारे मीडिया घराने भी इस प्रयास में आगे निकले हैं, जन जागरूकता बढ़ाने के लिए सबको साथ लेने के लिए, आखिर जन-जागरूकता ही तो परिवर्तन लाती है। बिना जन-जागरूकता, और जन-भागीदारी के यह संभव नहीं है। आइये हम सब यह प्रण लें कि गंगा को प्रदूषित नहीं करेंगे और दूसरे जो प्रदूषित कर रहे हैं उन्हें रोकने का हर संभव प्रयास करेंगे। विदेशों में और भारत के अन्य राज्यों में भी नदियों को साफ़ करने के प्रयास सफल हुए हैं। तो सबसे पवित्र नदी गंगा को क्यों नहीं स्वच्छ और निर्मल बनाया जा सकता है? मोदी जी भी कहते हैं, अगर देश के सवा सौ करोड़ लोग चाह लें तो कुछ भी संभव हो सकता है। आस्था और धर्म तो सबसे पहले हमारे मनोमस्तिष्क में जगह बनाते हैं। गंगा आस्था और धर्म दोनों में मौजूद है, है न? बहुत सारे कवियों और गीतकारों ने भी माँ गंगा पर रचनाएँ रची हैं और हम सभी उनका गुण गाते हैं। इसलिए गंगा तेरा पानी अमृत, झर झर बहता जाए! जय माँ गंगे! नमामि गंगे!

- जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.  

Saturday, 9 July 2016

ज़ाकिर नाईक वहाबी का बहाव अवरुद्ध

ज़ाकिर नाईक वहाबी का बहाव अवरुद्ध
भारत में अनेकों न्यूज़ चैनलों के साथ धर्म दर्शन के नाम पर कई चैनल लांच हुए हैं, जो कई बार धर्म के नाम पर अंधविश्वास का प्रसार करते रहते हैं। इसके लिए कई प्रकार के बाबा, फकीर और मैसेंजर चैनलों के स्टूडियो में अवतरित हुए हैं। इनमें से कोई न कोई डॉक्टर होता है, इंजीनियर होता है, या अन्य पेशे से जुड़े लोग होते हैं। ये लोग आराम से विज्ञान की बातों को धर्म की किताबों से साबित करते रहते हैं कि कैसे धर्म, विज्ञान से महान है।
कहीं फिजिक्स का फार्मूला आसमानी किताबों की देन बता देते हैं तो कहीं रसायन शास्त्र को वैदिक मंत्रों की देन। हम सब सभी विषयों में पारंगत तो होते नहीं, लिहाज़ा यही सोचते हैं कि सामने वाला बाबा फकीर बढ़िया बोल रहा है। ऐसे बाबाओं की एक और खूबी होती है। वो अंग्रेज़ी भी बोलते हैं। वैसे अंग्रेज़ी बोलने वाले भी ऐसे बाबाओं की चपेट में आ जाते हैं। यह प्रवृत्ति इस्लाम, हिन्दू ईसाई और अन्य धर्मों के नाम पर फ़ैली हुई है। ज़ाकिर नाईक भी पेशे से डॉक्टर रहे हैं। अंग्रेज़ी बोलते हैं। खुद को कई विषयों और कई धर्मों के ज्ञाता बताते रहते हैं। एक जीवन में अच्छे-अच्छे संत एक धर्म को नहीं समझ सके फिर भी ज़ाकिर नाईक कई धर्मों के चलते फिरते गाइड बुक जैसे अवतरित होते रहते हैं। अपना पीस चैनल भी है। ये मुंबई के रहने वाले हैं।
ज़ाकिर नाईक वहाबी इस्लाम प्रचारक हैं। वहाबी का मतलब यूं समझिये कि जो जैसा था वैसा ही आज हो की बात करने वाले। ज़ाकिर नाईक कहते हैं कि मन्नत मांगना, मज़ार पर जाना ग़ैर इस्लामी है। ज़ाकिर नाईक ओसाम बिना लादेन को आतंकवादी नहीं मानते। नाईक अमरीका को आतंकी मानते हैं और अमरीका से लड़ने वाले हर आतंकी को अपना साथी बताते हैं। मुसलमानों को आतंकी हो जाने के लिए कहते हैं। ज़ाकिर नाईक से ही कहा जाना चाहिए वो क्यों नहीं अमरीका से लड़ने चले जाते हैं। धार्मिक शुद्धिकरण की विचारधारा कई बार आकर्षक लगने लगती है। एक सनक की तरह हावी होती है और कोई बंदूक लेकर जाता है और अमजद साबरी को गोली मार देता है। गनीमत है कि उसी पाकिस्तान में अमजद साबरी के जनाज़े में लाखों लोग उमड़ आते हैं। भारत में भी केरल में बड़ा सम्मेलन हुआ जिसमें आतंक को ग़ैर इस्लामी बताया गया। जमीयत से लेकर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड तक सबने आतंकवाद को ग़ैर इस्लामी कहा है। बांग्लादेश हमले पर उर्दू अखबार इंकलाब के संपादक ने लिखा कि यह कुरान पर हमला है। ज़ाकिर नाईक ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा है कि वे आईएसआईएस को ग़ैर इस्लामी मानते हैं। भारत में कई मुस्लिम धर्मगुरु और मुस्लिम सेलिब्रिटी भी जाकिर नाईक के बयान से असहमति जाता चुके हैं। कई जगहों पर विरोध रूपी प्रदर्शन हो रहे हैं। बयानबाजी हो रही है, मीडिया में खूब बहस हो रही है। ज्यादातर विरोध में हैं तो कोई कोई और खुद नाईक भी यह कह चुके हैं कि उनके बयान को गलत ढंग से पेश किया गया है।
हमें इस सत्य का सामना करना ही होगा कि दुनिया भर में धर्म के नाम पर ख़ूनी खेल चल रहा है। इसलिए मज़हब के बारे में भावुकता से सोचने का वक्त चला गया। कहीं कोई इसके नाम पर हमें सांप्रदायिक बना रहा है तो कहीं कोई आतंकवादी। कोई तो है जो हमसे खेल रहा है। ब्रिटेन, कनाडा और मलेशिया में इन पर बैन है और भारत के कई शहरों में इनके कार्यक्रमों पर रोक लगाई जा चुकी है। भारत के गृह राज्य मंत्री ने कहा है कि अगर बांग्लादेश आग्रह करेगा, तो हम नाईक को बैन कर सकते हैं। अब तो बैन लग भी चुका है।
यह भी एक तथ्य है कि नाईक की बात से कई मुस्लिम धर्मगुरु भी नाराज़ हैं। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य मौलाना कल्बे जव्वाद ने कहा है कि जो व्यक्ति यज़ीद की हिमायत कर रहा हो उससे ज़्यादा दहशतगर्द का हामी कौन हो सकता है। यज़ीद ने इमाम हुसैन को शहीद किया, उसकी हिमायत कर रहे हैं। इसका मतलब है कि आप दहशतगर्दी की हिमायत कर रहे हैं। प्रमोट कर रहे हैं। ज़ाकिर नाईक ने कहा है कि जो भी इस्लाम के दुश्मन के खिलाफ लड़ रहा है, मैं उसके साथ हूं। अगर वो अमरीका को आतंकित कर रहे हैं, जो खुद आतंकवादी है, तो मैं उनके साथ हूं। हर मुसलमान को आतंकवादी होना चाहिए।
हम सभी को आतंक के हर ठिकानों और विचारों की पहचान करनी ही चाहिए, जहां से इस जुनून को खुराक मिलती है। नौजवानों को बार-बार बताना ज़रूरी है कि हर धर्म के पास नाइंसाफी के तमाम किस्से हैं। पूरी दुनिया नाइंसाफी से भरी है। आतंकवाद उसका समाधान नहीं है। कई वर्षों से नाईक के विचार सार्वजनिक हैं, पर ऐसी बात अब उठ रही है। नाईक की समीक्षा यू ट्यूब पर खूब हुई है। उनके डार्विन थ्योरी को चैलेंज करने वाली तकरीर का किसी ने बिंदुवार चुनौती दी है।
गूगल में एक प्रसंग मिला कि श्री श्री रविशंकर और ज़ाकिर नाईक के बीच सार्वजनिक बहस हुई थी। बाद में एक वीडियो में श्री श्री रविंशकर ज़ाकिर नाईक की कई बातों को कुतर्क बताते हैं। श्री श्री ने तो उन्हें मूर्ख तक कहा है । पता नहीं उनके मूर्ख कहने का क्या मतलब है? यह बातें शायद उनसे बहस के बाद समझ में आई होगी। हो सकता है नाईक ने भी उन्हें ऐसा ही कहा होगा। वैसे धर्मगुरु मौलाना इरफान मियां फिरंगी महली ने कहा है कि नाईक के ऊपर पाबंदी लगा कर उसको जेल में ठूंस दिया जाए तो उसके लिए बहुत अच्छा होगा। ये दूसरा विकल्प है।
एक तीसरा विकल्प है। टीवी की चर्चा जिसने ज़ाकिर नाईक को प्रसिद्ध किया। अब वही टीवी उन्हें आतंकवादी बता रहा है। टीवी को एक नया चेहरा मिल गया है जिसके नाम पर वो एक तबके को ऐसे चित्रित करेगा जैसे सारे नाईक की बात सुनकर ही खाना खाते हैं। चूंकि हम सब आतंकवाद के किसी भी सोर्स को नज़रअंदाज़ करने का जोखिम नहीं उठा सकते हैं, इसलिए आंख, कान खोलकर जाकिर नाईक की बातों की समीक्षा करनी ही चाहिए।
अब तो भारत का गृह मंत्रालय सक्रिय हुआ है और उसने पीस टी वी पर बैन लगा दिया है। पर इन्टरनेट और यु ट्यूब पर उनके अनेकों प्रवचन/भाषण मौजूद हैं जिन्हें आतंकवादी के ‘अंकुर’ सुनते होंगे और अपना ब्रेनवाश कर लेते होंगे उन्हें कैसे रोकेंगे? निश्चित ही हम सबको धर्मगुरुओं के प्रवचन को तर्क की कसौटी और विज्ञान की कसौटी पर परखने की जरूरत है। धर्म का अनुपालन कितना जरूरी है, धर्मगुरु की बातों में कितनी सत्यता है, यह सिद्ध होनी चाहिए. वैसे अनेक धर्मों/सम्प्रदायों के गुरु अपनी बात को ही श्रेष्ठ बताते हैं। वे लगातार अपने अनुयायी बढ़ाते जाते हैं। उनके अनुयायी/समर्थक कभी कभी इतने उग्र हो उठते हैं कि उन्हें सम्हालना मुश्किल हो जाता है। धर्म एक ऐसा साधन है जिसके माध्यम से अंध-समर्थक पैदा किये जा सकते हैं। दुनिया के बुद्धिजीवियों, समाज सेवियों, नेताओं को इन सबमे अंतर पैदा कर एक लोककल्याण या जनकल्याण में अंतर को समझना होगा। या फिर हमारे पाठ्यक्रम में बदलाव की जरूरत हो तो की जानी चाहिए। आक्रोश फैलाना, आतंकवादी पैदा करना कभी भी सही नहीं हो सकता। हर राज्य/राष्ट्र के अपने नियम होते हैं उन्हें विश्वकल्याण की तरफ मोड़ना होगा। आज जलवायु परिवर्तन और आतंकवाद दोनों गंभीर समस्या है, क्यों नहीं इस पर सर्व सम्मत विचार किया जाना चाहिए! रहन-सहन, पहनावा, खाना अलग अलग हो सकता है पर किसी की जिन्दगी से खिलवाड़! यह तो सही नहीं हो सकता। संयुक्त-राष्ट्र-संघ को जरूर ही इस पर कार्रवाई करनी चाहिए ताकि इसके फैलाव को रोका जा सके। आज दुनिया आतंकवाद से कराह रही है। हमारा भारत और पड़ोसी देश भी इससे अछूता नहीं है। ऐसे में इन्हें किसी भी तरह से बढ़ावा देना उचित नहीं होगा। एक सर्व्सम्मत राय बननी चाहिए और उसे अमल में लाया जाना चाहिए। साथ ही हर किसी को किसी काम या ब्यवसाय में बाँध कर रखा जाना चाहिए ताकि वे अपने कर्म को ही धर्म समझे। ज्यादा इधर-उधर सोचने की जरूरत ही न पड़े। अगर बदलाव की जरूरत महसूस करे तो उसे किसी पर्यटन स्थल या धार्मिक स्थल घूमकर आ जाना चाहिए। मेरा तो यही मानना है। धर्म को पागलपन की हद तक मानना बेवकूफी ही कही जाएगी। वैसे कोई भी धर्म गलत काम को बढ़ावा नहीं देता । ये धर्मगुरु ही गलत व्याख्या कर लोगों को भड़काते रहते हैं।
सर्वे सुखिन: भवन्तु! ओम शांति शांति शांति!
-जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर

Saturday, 2 July 2016

तेजस का तेज, ख़बरों का वेग!

जुलाई का महीना खबरों का सैलाब लेकर आया है. सर्वप्रथम खुशखबरी है भारतीय वायु सेना के लिए- वह है तेजस का गृह प्रवेश.
०१ जुलाई २०१६ भारतीय वायुसेना के बेड़े में उस लड़ाकू विमान तेजस का गृह प्रवेश हो गया जिसका इंतजार 30 साल से किया जा रहा था. इसकी रफ्तार, हल्का वजन और दुश्मन को हर हाल में मात देने की क्षमता इस लड़ाकू विमान की खासियत है. सबसे बड़ी बात ये कि देश में तैयार किए गए तेजस की गिनती दुनिया के चंद सबसे खतरनाक लड़ाकू विमानों में हो रही है. भारत में बना अब तक का ये सबसे खौफनाक लड़ाकू विमान तेजस पूरे विधि विधान के साथ भारतीय वायुसेना के बेड़े में शामिल हो गया है. बेंगलुरू के एयरबेस में भारतीय वायुसेना के आला अफसरों की मौजूदगी में नारियल फोड़कर तेजस का गृहप्रवेश कराया गया. इस औपचारिक कार्यक्रम के साथ ही तेजस को बनाने वाली हिंदुस्तान एयरोनॉटिकल्स लिमिटेड ने पहले दो तेजस विमान सौंप दिए हैं. साल 2016 के आखिर तक 4 और तेजस विमान इन विमानों के लिए बनाई गई फ्लाइंग डैगर्स 45 स्क्वार्डन का हिस्सा बन जाएंगे. फ्लाइंग डैगर्स 45 वही स्क्वार्डन है जो मिग 21 विमानों के लिए बनाई गई थी, लेकिन इसकी ताकत की वजह से अब तेजस मिग-21 विमानों की जगह लेने जा रहा है. तेजस विमान की सबसे बड़ी खासियत है इसका हल्का वजन और इसकी तेज रफ्तार. तेजस फाइटर जेट 2200 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से आसमान का सीना चीरता है. इसकी वजह ये है कि इसका कुल वजन 6540 किलोग्राम है और हथियारों से पूरी तरह लैस होने पर ये करीब 10 हजार किलोग्राम का हो जाता है जो भारत के दूसरे लड़ाकू विमानों से कम है. तेजस 50 हजार फीट की ऊंचाई पर उड़ने में भी सक्षम है.
तेजस में सिर्फ एक इंजन है और इसमें सिर्फ एक पायलट बैठ सकता है. निचले हिस्से में एक साथ 9 तरह के हथियार लोड और फायर किए जा सकते हैं. इन हथियारों में हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइल, हवा से धरती पर मार करने वाली मिसाइल, हवा से पानी पर हमला करने वाली मिसाइल, हवा से हवा में दूसरे लड़ाकू विमानों को मारने वाली लेजर गाइडेट मिसाइल, रॉकेट और बम से लैस है. तेजस आवाज की दोगुनी रफ्तार से उड़ान भरने वाले तेजस की खूबी ये है कि ये एक बार में 3000 किलोमीटर की दूरी तय करता है. इसमें हवा में ही ईंधन भरा जा सकता है. इसमें अमेरिकी कंपनी जी का ताकतवर इंजन लगाया गया है. इजराइल से खरीदे गई अत्याधुनिक एल्टा रडार तकनीक इस पर दुश्मन के रडारों की नजर नहीं पड़ने देती. यानी ये चुपचाप दुश्मन पर हमला कर देता है. सबसे बड़ी बात ये है कि अगर पायलट विमान पर काबू ना रख पाए तो इसमें लगे कम्प्यूटर खुद विमान को संभाल लेते हैं. भारतीय वायुसेना तेजस को अपने बेड़े का हिस्सा बनने के लिए 30 साल के ज्यादा वक्त से इंतजार कर रही थी. वो सपना अब पूरा हुआ है लेकिन देरी ने तेजस को बेहद महंगा बना दिया है. साल 1983 में 6 तेजस विमानों का अनुमानित खर्च 560 करोड़ आंका गया था. लेकिन अब एक तेजस विमान की कीमत ही 250 करोड़ जा पहुंची है. कुल मिलाकर योजना 120 तेजस विमानों को बेड़े में शामिल करने की है. इसके अलावा नौसेना के लिए 40 तेजस-एन विमान तैयार किए जा रहे हैं. इन 160 तेजस विमानों की कुल कीमत 37 हजार करोड़ से ज्यादा है. भारतीय सेना साल 2018 तक 20 तेजस विमानों को बेड़े में शामिल करेगी. इसके बाद तेजस विमानों की सैन्य टुकड़ी का बेस बैंगलूरू से तमिलनाडु के सलूर में शिफ्ट कर दिया जाएगा.
वायुसेना के बेड़े में तेजस के शामिल होने पर प्रधानमंत्री ने खुशी जताई है. पीएम मोदी ने ट्वीट किया, ‘’देसी लड़ाकू विमान तेजस के वायुसेना के बेड़े में शामिल होना खुशी और गर्व की बात है. मैं एचएएल और एडीए को तेजस को तैयार करने के लिए बधाई देता हूं, ये हमारी प्रतिभा, कौशल और रक्षा क्षेत्र में हमारे बढ़ते कदम को दर्शाता है.’’ शत्रु देश सावधान! पर ये विमान बड़े युद्ध में कारगर सिद्ध होंगे जब एक देश दूसरे देश से लड़ेंगे. फिलहाल तो डर कर रहें हमारे दुश्मन! पर आतंकवादियों के संगठन पर अंकुश लगाने की दूसरी ही रणनीति बननी होगी. ये आतंकवादी पूरे विश्व की मानवता के लिए खतरे की घंटी हैअभी हाल ही में बंगला देश में इनके हमले और हैदराबाद में पकड़े गए इनके दल से यह साफ़ पता लगता है कि इन पर अंकुश लगने के लिए इनके आकाओं पर लगाम कसनी होगी और उसके लिए पूरे विश्व को एकजुट होना होगा, अन्यथा परिणाम तो हम सब देख ही रहे हैं.  
इस बीच यह भी खबर आयी कि प्रधान मंत्री ने अपने मंत्रियों की क्लास ली है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी काम में अनुशासन को लेकर तो हमेशा नसीहत देते हैं. लेकिन इस बार अपने ही मंत्रियों की लापरवाही देखकर मोदी को सख्त होना पड़ा. सरकार के दो साल के कामकाज के रिपोर्टकार्ड पर मोदी ने करीब 5 घंटे की मैराथन बैठक की. इसमें मंत्रियों के अलावा सरकार के बड़े नौकरशाह भी शामिल हुए. देश के प्रधानमंत्री बनने के बाद भी नरेंद्र मोदी लगातार सरकार और उसके कामकाज में अनुशासन बनाए रखने और उसे बढ़ावा देने की पैरवी करते रहे हैं. वैसे तो अभी संसद का मॉनसून सत्र शुरू होने में दो हफ्ते से ज्यादा वक्त है, लेकिन गुरुवार(३० जून) को यहां कुछ ज्यादा ही हलचल दिखी. सरकार के तमाम मंत्री प्रधानमंत्री के साथ लाइब्रेरी हॉल में मौजूद थे जहां मंत्रिपरिषद की बैठक हुई. करीब 5 घंटे तक चली इस बैठक में सभी मंत्रालयों के कामकाज की समीक्षा की गई . लेकिन इस समीक्षा बैठक में कुछ ऐसा हुआ जो अब तक सुना नहीं गया था. बैठक में एक के बाद एक सभी मंत्रालयों के कामकाज का प्रेजेंटशन आर्थिक मामलों के सचिव शक्तिकांता दास दे रहे थे. इसी दौरान पिछली कतार में बैठे कुछ मंत्रियों का ध्यान वहां से हट गया और ये माननीय मंत्री अपने मोबाइल देखने में लग गए. सूत्रों के मुताबिक प्रेजेंटेशन के बीच मोदी की नजर जैसे ही मोबाइल देख रहे मंत्रियों पर पड़ी वो नाराज हो गए. पीएम मोदी ने मंत्रियों को डांटते हुए कहा कि अगर मोबाइल ही देखना है तो फिर इस बैठक में आने की जरूरत ही क्या है ?
प्रधानमंत्री यहीं नहीं रुके. उन्होंने गुस्से में कहा कि अगर बैठक में की जा रही चर्चा में मंत्रियों की रूचि नहीं है तो बैठक बेमानी है. अगर ऐसा ही रहा तो अगली बैठक में मंत्रियों को अपना मोबाइल बाहर रखकर आने को कहना पड़ेगा. मोदी के डांटते ही प्रेजेंटेशन दो मिनट के लिए रुक गया. जिन मंत्रियों के हाथों में मोबाइल थे उन्होंने या तो टेबल पर रख दिया या तुरत अपनी जेब में डाल लिया. मोदी सरकार में कैबिनेट की बैठक हर हफ्ते होती है जबकि मंत्रिपरिषद की बैठक जिसमें कैबिनेट मंत्री के साथ-साथ राज्य मंत्री और स्वतंत्र प्रभार वाले मंत्री भी मौजूद रहते हैं, इस महीने के आखिरी हफ्ते में होगी. तब शायद इस डांट का असर दिखे. बैठक से पहले एक और दिलचस्प चीज हुई. सभी मंत्रियों के हाथ में एक सफेद लिफाफा पकड़ाया जा रहा था. मंत्रिमंडल में फेरबदल की सुगबुहाट के बीच इस तरह लिफाफे में आखिर क्या था . हर मंत्री इसको लेकर हैरान थे . लेकिन जब उन्होंने लिफाफा खोला तो देखा कि उसमें सोशल मीडिया का रिपोर्ट कार्ड है. रिपोर्ट कार्ड में फेसबुक और ट्विटर जैसे सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर मंत्रियों की गतिविधियों का पूरा ब्योरा दिया गया है . तीन महीने पहले ऐसी ही एक बैठक में नेताओं को सोशल मीडिया के टारगेट के लिए बताया गया था. गुरूवार की बैठक इस मायने में तो अहम थी ही कि पहली बार सरकार के दो साल के काम काज की समग्र समीक्षा एक ही साथ सभी मंत्रियों की मौजूदगी में की गई, लेकिन इसलिए भी थी कि जल्दी ही मोदी कैबिनेट में फेरबदल की अटकलें हैं. ऐसा माना जा रहा है कि इस बैठक में हुई समीक्षा से जो नतीजे सामने आएंगे उसका असर इस फेरबदल में होनेवाले हैं.
जैसा कि इस साल पूर्वानुमान था कि अच्छी बारिश होगी और पूरे भारत में हो भी रही है. मुंबई, महराष्ट्र, मध्यप्रदेश, पानी-पानी हो रहा है, तो उत्तराखंड में फिर से तांडव हो रहा है. बादल फटने के कारण लकगतार भूस्खलन जारी है जिससे जान माल की क्षति हो रही है. राहत और बचाव कार्य तो चल रहे हैं पर इन प्राकृतिक हादसों से सीख लेने की जरूरत है.
फिलहाल सुब्रमण्यम स्वामी थोड़े ठंढे पड़ गए तो अमित शाह जोर-शोर से उत्तर प्रदेश में गरज रहे हैं. प्रधान मंत्री लगातार तीसरे साल भी राष्ट्रपति द्वारा आयोजित इफ्तार पार्टी से दूर रहे तो अन्य विपक्षी दल इस सियासत को भुनाने आगे आगे चल रहे हैं. धर्म और सियासत साथ साथ ही चलते हैं. दोनों में सामंजस्य जरूरी है ताकि नफरत के बजाय प्रेम पनपे, फल फूले. तभी होगा जय भारत! और भारत माता की जय!

 - जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर