कहते हैं, गेंद कभी कभी लौटकर
अपने ही खेमे में गोल कर देता है. इस बार ऐसा ही कुछ हुआ..अरविन्द केजरीवाल के
मुख्य सचिव राजेन्द्र कुमार के दफ्तर पर छापामारी करते हुए CBI मुख्य मंत्री के ऑफिस
में भी फाइलें तलाशा करने लगी. बस फिर क्या था. केजरीवाल ने इसे मुद्दा बना लिया
और गेंद को अरुण जेटली की तरफ उछाल दिया. DDCA में कथित घोटाले की
फाइल अभी मुख्य मंत्री के दफ्तर में थी. केजरीवाल के अनुसार जेटली फंसते हुए नजर आ
रहे थे कि उन्होंने CBI को मुख्या
मंत्री दफ्तर में भेज दिया. केजरीवाल को जैसे ही मालूम हुआ ट्वीट पर ट्वीट करते
हुए उन्होंने प्रधान मंत्री को कायर और मनोरोगी तक कह दिया. हालाँकि उनके इन
शब्दों की चारो तरफ निंदा हुई है पर उन्हें अफ़सोस कम हुआ है, कहने लगे 'मेरे तो शब्द ख़राब हैं
तुम्हारे तो कर्म ही ख़राब है. तुम अपने कर्मों की माफी मांग लो मई अपने शब्दों के
लिए माफी मांग लूँगा'. प्रधान मंत्री
पर निशाना साधने का बस मौका चाहिए था. वह मिल गया.
वे DDCA की वित्तीय अनियमितता
को लेकर अरुण जेटली को घेरते रहे और अरुण जेटली पहले तो हलके में लिया और इसे
बकवास बताया बाद में कई भाजपा नेता /नेत्रियों ने उनका बचाव किया. खुद ब्लॉग लिखकर
सफाई दी. तब भी मन नहीं माना तो प्रेस कांफ्रेंस के जरिये अपने को पाक-साफ़ साबित
करने की कोशिश की. पर काफी सालों से पीछे पड़े कीर्ति आजाद को स्वर्णिम मौका मिल गया. कीर्ति आजाद ने तब
भी जेटली पर हमला किया था, जब सुषमा स्वराज ललितगेट मामले में फंसी थी.
अब तो वे कह रहे हैं की अरविन्द केजरीवाल को तो १५% मालूम है बाकी का ८५%
का खुलासा वे करेंगे. यहाँ तक कि अमित शाह के हिदायत को भी नहीं माना और रविवार को
प्रेस कांफ्रेंस करने की ठान ली है. पहले से ही बागी तेवर वाले शत्रुघ्न सिन्हा ने
भी कीर्ति आजाद का समर्थन कर दिया.
इधर आप ने
शुक्रवार को प्रेस कांफ्रेंस के माध्यम से जेटली से पांच सवालों का जवाब पुछा है. 'आप' के 5 सवाल ये रहे -
१.
अरुण जेटली ने कहा, मेरे ऊपर कोई
व्यक्तिगत आरोप नहीं है जबकि कीर्ति आजाद ने आपको ही 13 सितंबर को पत्र लिखकर
आरोप लगाए।
२.
क्या ये सही नहीं कि आपने ओएनजीसी पर दबाव देकर 5 करोड़ रुपये हॉकी
इंडिया को दिलवाए, क्या ये
कनफ्लिक्ट ऑफ़ इंटरेस्ट नहीं है?
३.
'आप' ने कहा, 114 करोड़ स्टेडियम बनाने वाली कंपनी को दिए, लेकिन उस कंपनी को
केवल 57 करोड़ ही मिले, किसको दिए बाकी 57 करोड़, उन कंपनियों से आपका
क्या रिश्ता है?
४.
9 कंपनियां ऐसी हैं
जिनका पता भी एक है, क्या ये फर्ज़ी
नहीं? क्या आपने इन पर कोई
कार्रवाई की अध्यक्ष होने के नाते?
५.
आपने माना कि डीडीसीए में अनियमितता थी, लेकिन वह कानून के
हिसाब से दंडनीय है। आपने ये क्यों नहीं लिखा, क्यों आपने पूरा सच
नहीं बताया?
गौरतलब है कि
गुरुवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस करके आम आदमी पार्टी ने इस घोटाले पर पूरा ब्यौरा
दिया और जेटली पर कई गंभीर आरोप लगाए। हालांकि जेटली और बीजेपी दोनों ने इन आरोपों
को सिरे से नकार दिया।
उधर नेशनल
हेराल्ड केस में फंसे कांग्रेस अध्यक्ष और उपाध्यक्ष सोनिया और राहुल कोर्ट का
सामना कर बेल पर छूट भी गए, वह भी केवल पचास हजार के निजी मुचलके पर... स्वामी की मांग के अनुसार इनका पासपोर्ट भी जब्त
नहीं हुआ. पर स्वामी खुश है, दोनों को कोर्ट के अपराधी
वाले कटघरे में खड़ा करा दिया. इतनी बेइज्जती ही काफी है. सुब्रमण्यम स्वामी ने ऐसे
समय में ललकारा कि संसद सत्र कई दिनों तक बाधित रहा. अब जेटली वाला मामला आ गया.
विपक्ष को मौका चाहिए और संसद में अँटके हुए बिल न पास होने से प्रधान मंत्री की
क्षमता पर सवाल उठना लाजिमी है. विकास के कदम थमे हैं, उन्हें कौन आगे
बढ़ाएगा.
वरिष्ठ
पत्रकार हरिशंकर ब्यास केजरीवाल के द्वारा प्रयुक्त अपशब्द के बारे में लिखते
हैं-
“बहुत खराब हो
रहा है, कुछ भी हो जा रहा है! बानगी दिल्ली मुख्यमंत्री के दफ्तर में सीबीआई का
छापा है और उस पर केजरीवाल का नरेंद्र मोदी को ‘मनोरोगी’ बताना है। इंदिरा
गांधी से ले कर आज तक कभी यह नहीं सुना कि सीबीआई मुख्यमंत्री दफ्तर में छापा
मारने गई। न यह सुना कि किसी नेता ने, मुख्यमंत्री ने भारत के प्रधानमंत्री को ‘मनोरोगी’ कहा! इन दोनों बातों
का गहरा,
दीर्घकालीन
असर होना है। पता नहीं मोदी सरकार में किस रणनीतिकार ने केजरीवाल के सचिवालय में
सीबीआई भेजने का आईडिया दिया पर जिसने भी दिया उसने मोदी सरकार के तमाम विरोधियों
को एकजुट बनवाया। जब संसद चल रही है। जब सरकार को जीएसटी बिल पास कराने के संसद
में लाले पड़े हुए हैं, ऐसे वक्त केजरीवाल को बकझक करने, विपक्ष को गोलबंद
बनवाने का मौका देने की भला क्या तुक थी? इस पर जितना
सोचेंगे, दिमाग चकरा जाएगा। यही निष्कर्ष बनेगा कि नरेंद्र मोदी का समय खराब है। एक
के बाद एक गलतियों का, विनाशकाले
विपरीत बुद्धि का फेर बना है।
वही नरेंद्र
मोदी को ‘मनोरोगी’ बताने वाली केजरीवाल
की पंगेबाजी का जहां सवाल है वह केजरीवाल की धूर्तता, महत्वकांक्षा की हकीकत
लिए हुए है। मतलब अरविंद केजरीवाल ने नरेंद्र मोदी को कायर, मनोरोगी बता कर अपने
को मनोरोगी बताया है।
अपने को याद
नहीं पड़ता कि इमरजेंसी में भी किसी ने इंदिरा गांधी को मनोरोगी बताया हो। भारत के
इतिहास में प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री को सायकोपैथ, मनोरोगी या पागल करार
देने का काम सेकुलर जमात का ही नरेंद्र मोदी के खिलाफ रहा है। 2002 के दंगों के बाद
सेकुलर मीडिया व आशीष नंदी, एमजे अकबर आदि टीकाकारों ने जरूर नरेंद्र मोदी को ले कर
ऐसे तल्ख शब्द लिखे थे। बाद के गुजरात चुनाव में सोनिया गांधी की जुबां से मौत का
सौदागर शब्द निकला था। मगर आज प्रधानमंत्री के पद पर नरेंद्र मोदी हैं। ऐसे में
नरेंद्र मोदी के लिए अरविंद केजरीवाल का मनोरोगी शब्द का उपयोग धूर्त राजनीति है।
धूर्तता के साथ उनकी मोदी के आगे पोजिशनिंग है। अरविंद केजरीवाल ने भावावेश में
नहीं बल्कि सोच समझ कर ट्वीट करके नरेंद्र मोदी पर हमला बोला। केजरीवाल पहले दिन
से मोदी के आगे अपनी पोजिशनिंग चाहते रहे हैं। वे मानते हैं कि 2012 के अन्ना आंदोलन से
उन्होंने ही कांग्रेस विरोधी माहौल बनवाया। वे जनता के आगे विकल्प थे लेकिन
नरेंद्र मोदी कूद पड़े। उस नाते 2012 के आंदोलन के वक्त से केजरीवाल मनोरोगी हैं। मनोरोगी का
मतलब पागलपन की हद तक का महत्वकांक्षी भी होता है। अरविंद केजरीवाल 2012 में अन्ना हजारे से
अलग होने,
आप पार्टी
बनाने के वक्त से सत्ता की महत्वकांक्षा के मनोरोगी हैं और शायद 2019 तक रहेंगे। उन्होंने
अपनी महत्वकांक्षा में दस तरह के झूठ बोले। झूठे वादे किए। साथियों को धोखा दिया।
प्रशांत भूषण, योगेंद्र यादव
आदि को पार्टी से बाहर निकाला। तमाम तरह के नाटक किए। मैं सच्चा, मैं ईमानदार, मैं काबिल, मैं गरीब पैरोकार, मैं जनप्रिय की
अहमन्यता में केजरीवाल ने देश भर में अपनी पार्टी को लोकसभा चुनाव लड़वा डाला तो
खुद भी नरेंद्र मोदी के आगे चुनाव लड़ने के लिए वाराणसी पहुंचे। जुम्मे-जुम्मे चार
दिन में केजरीवाल ने अपने को प्रधानमंत्री की दौड़ में तब उतारा था।
सो नरेंद्र
मोदी को अब केजरीवाल को जवाब देना है। केजरीवाल ने हल्ला बोल अपने को मैदान में
जैसे उतारा है उसकी कल्पना मोदी सरकार के रणनीतिकारों को शायद नहीं रही होगी। पर
बात अब रणनीतिकारों की नहीं रही। सीधे नरेंद्र मोदी बनाम अरविंद केजरीवाल के मध्य
का आगे मुकाबला है। इसमें आगे बहुत कुछ होगा।“ - हरिशंकर व्यास
सोनिया और
मनमोहन सिंह को चाय पिलाने से भी कोई फायदा नजर नहीं आया और GST बिल के लटक जाने की
पूरी पूरी संभावना दीख रही है. सबका साथ सबका विकास, से अलग अपने ही दगा देते नजर
आये. बड़ी मुश्किल है! मोदी चाहे अपना जितना गुणगान कर लें, पर उनके ही समर्थकों या
अंध भक्तों की करनी का फल है कि उनकी लोकप्रियता में लगातार गिरावट जारी है. बिहार
चुनाव के बाद, गुजरात के निकाय चुनाव में ग्रामीण इलाकों में भाजपा पिछड़ती नजर आयी
और अब झारखण्ड के लोहरदगा में विधान सभा के उपचुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी की जीत.
खलबली तो मची है. अभी भाजपा बचाव की मुद्रा में है और कांग्रेस तथा अन्य विपक्षी दल
आक्रामक... - जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर
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