Monday, 7 December 2015

जी एस टी बिल यानी वस्तु और सेवा कर अधिनियम

जी एस टी का पूरा नाम गुड्स (वस्तु) एंड सर्विस (सेवा) टैक्स है, जो केंद्र और राज्यों द्वारा लगाए गए 20 से अधिक अप्रत्यक्ष करों के एवज में लगाया जा रहा है। जीएसटी लागू होने के बाद सेंट्रल एक्साइज ड्यूटी, सर्विस टैक्स, एडिशनल कस्टम ड्यूटी (सीवीडी), स्पेशल एडिशनल ड्यूटी ऑफ कस्टम (एसएडी), वैट/सेल्स टैक्स, सेंट्रल सेल्स टैक्स, मनोरंजन टैक्स, ऑक्ट्रॉय एंड एंट्री टैक्स, परचेज टैक्स, लक्ज़री टैक्स खत्म हो जाएंगे। जीएसटी लागू होने के बाद वस्तुओं एवं सेवाओं पर केवल तीन तरह के टैक्स वसूले जाएंगे। पहला सीजीएसटी, यानी सेंट्रल जीएसटी, जो केंद्र सरकार वसूलेगी। दूसरा एसजीएसटी, यानी स्टेट जीएसटी, जो राज्य सरकार अपने यहां होने वाले कारोबार पर वसूलेगी। कोई कारोबार अगर दो राज्यों के बीच होगा तो उस पर आईजीएसटी, यानी इंटीग्रेटेड जीएसटी वसूला जाएगा। इसे केंद्र सरकार वसूल करेगी और उसे दोनों राज्यों में समान अनुपात में बांट दिया जाएगा।
जीएसटी पर संसद में कानून – विश्व के लगभग 160 देशों में जीएसटी की कराधान व्यवस्था लागू है। भारत में इसका विचार अटल बिहारी वाजपेयी सरकार द्वारा सन् 2000 में लाया गया। यूपीए सरकार के तत्कालीन वित्तमंत्री पी चिदम्बरम द्वारा फरवरी, 2007 में ठोस शुरुआत करते हुए मई, 2007 में जीएसटी के लिए राज्यों के वित्तमंत्रियों की संयुक्त समिति का गठन कर वर्ष 2010 से इसके लागू करने की घोषणा की गई, क्योंकि जीएसटी से राज्यों के अर्थतंत्र पर व्यापक प्रभाव पड़ेगा, इसलिए इस बिंदु पर 13वें वित्त आयोग द्वारा गठित कार्यदल ने दिसंबर, 2009 तथा 14वें वित्त आयोग ने फरवरी, 2015 में जीएसटी पर अपनी विस्तृत रिपोर्ट सौंप दी है।
राज्यों के बीच विरोधाभास होने पर अप्रैल, 2010 से कांग्रेस सरकार इसे लागू कराने में विफल रही। तत्कालीन कांग्रेस सरकार द्वारा मार्च, 2011 में 115वां संविधान संशोधन विधेयक पेश किया गया, जो गठबंधन सरकार के युग में विपक्ष के विरोध की वजह से पारित नहीं हो सका। बीजेपी द्वारा जीएसटी को अपने आर्थिक सुधारों का केंद्रबिंदु बताया जा रहा है तथा मोदी सरकार ने 122वां संविधान संशोधन विधेयक (अनुछेद 246, 248 एवं 268 इत्यादि में संशोधन) दिसंबर, 2014 में संसद में पेश किया, जिसे लोकसभा द्वारा मई, 2015 में पारित कर दिया गया।
जीएसटी विधेयक राज्यसभा में लंबित है, सेलेक्ट कमेटी की रिपोर्ट 9 दिसंबर को मिलने की संभावना है, तथा 10 को सरकार इस बिल को राज्यसभा में पारित करने के लिए पेश कर सकती है। वैसे, इसे पारित कराने के लिए मोदी सरकार के पास राज्यसभा में दो-तिहाई बहुमत नहीं है। कांग्रेस द्वारा प्रेरित टैक्स सुधार का पूरा क्रेडिट मोदी सरकार द्वारा लेने से जीएसटी के प्रति विपक्षी दलों में असहिष्णुता पनपी है, जो वर्तमान संसदीय गतिरोध एवं असहयोग का प्रमुख कारण है।
जीएसटी से प्रस्तावित लाभ – आइए जानते हैं, जीएसटी में ऐसा क्या है, जिससे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, 18 महीने में पहली बार कांग्रेस के नेताओं को ‘चाय पे चर्चा’ पर बुलाने के लिए मजबूर हो गए।
• सरकार के अनुसार जीएसटी आज़ादी के बाद टैक्स सुधार का सबसे बड़ा कदम है, जिससे जीडीपी में वृद्धि और रोज़गारों का सृजन होगा।
• केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली ने अमेरिकी कॉरपोरेट क्षेत्र की चिंताओं को दूर करने के अपने प्रयासों के तहत पीटरसन इंस्टीट्यूट फॉर इंटरनेशनल इकोनॉमिक्स को दिए गए संबोधन में कहा कि जीएसटी व्यवस्था आने से भारत एक बड़े और एकीकृत बाज़ार के रूप में तब्दील होगा और जटिल करारोपण खत्म होने से विदेशी निवेशकों को आसानी होगी।
• एसोचैम के अनुसार छोटे या मध्यम उद्योग समूह (SMEs), जो असंगठित क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं, को इस टैक्स सुधार कानून से काफी फायदा होगा।
• 13वें केंद्रीय वित्त आयोग के अनुसार जीएसटी से कर संकलन में हो रहे कई तरह के व्यर्थ के खर्चों को रोकने में सहायता मिलेगी, जिससे राज्यों की आर्थिक हालात में सुधार होगा।
• 14वें वित्त आयोग के अनुसार जीएसटी से उन राज्यों को फायदा होगा, जहां कर रिसाव (टैक्स लीकेज) की वजह से कर संकलन प्रणाली में भ्रष्टाचार चरम पर है।
• जीएसटी लागू होने से हर सौदा इस कर व्यवस्था के तहत आ जाएगा, जिससे लोगों के लिए करों की चोरी कर पाना आसान नहीं होगा, इसीलिये जीएसटी को काले धन से निबटने के विरुद्ध मज़बूत हथियार के तौर पर देखा जा रहा है।
कांग्रेस की मांग – जब कांग्रेस इस बिल का सूत्रधार थी, तब बीजेपी-शासित गुजरात जैसे राज्य इसका विरोध करते थे। अब पासा पलट गया है। कांग्रेस अब जीएसटी बिल पर असहयोग कर रही है और बीजेपी जीएसटी की सबसे बड़ी लम्बरदार बनकर सामने आई है। जीएसटी पर बनी राज्यसभा सेलेक्ट कमेटी में कांग्रेस के तीन सदस्यों – मधुसूदन मिस्त्री, मणिशंकर अय्यर तथा भालचंद्र मुंगेकर – ने असहमति जताते हुए एक नोट दाखिल किया है। उनका दावा है कि संविधान संशोधन बिल में हालात से समझौता करते हुए इतने अपवाद छोड़ दिए गए हैं कि इसका समर्थन करना नामुमकिन हो गया है।
सरकार के अनुसार 32 में से 30 राजनीतिक दलों द्वारा इस बिल पर राज्यसभा में सहयोग का आश्वासन मिल गया है, परन्तु कांग्रेस के समर्थन के बगैर संसद में दो-तिहाई बहुमत और आधे राज्यों की सहमति मुश्किल है और इस पर कोई फैसला सोनिया गांधी की विदेश यात्रा के बाद ही संभव हो सकेगा। कांग्रेस इस कानून को पारित होने में विलंब कर राजनीतिक मोल-भाव के अलावा मोदी सरकार को झटका भी देना चाहती है।
विलंब होने से जीएसटी की कर व्यवस्था 2019 के आम चुनावों के पहले अप्रैल, 2017 से ही लागू हो पाएगी। मलेशिया और अन्य देशों की तर्ज़ पर जीएसटी लागू होने के शुरुआती तीन साल में भारत में भी महंगाई बढ़ने की आशंका है, जिससे वर्ष 2019 के आम चुनावों में बीजेपी की अलोकप्रियता बढ़ेगी, जिससे कांग्रेस को राजनीतिक फायदा हो सकता है। राज्यों के हित के नाम पर कांग्रेस द्वारा जीएसटी बिल में निम्न संशोधनों की मांग रखी गई है…
• कांग्रेस की पहली मांग है कि तमिलनाडु, महाराष्ट्र और गुजरात जैसे उत्पादक राज्यों को मिलने वाले एक फीसदी अतिरिक्त टैक्स के लाभ को खत्म किया जाए, जबकि बीजेपी-शासित राज्य इस मांग को माने जाने के खिलाफ हैं।
• कांग्रेस की दूसरी मांग है कि बिल में टैक्स की ऊपरी सीमा 18 प्रतिशत तय कर इसका प्रावधान संविधान संशोधन में किया जाए, ताकि भविष्य में सरकार मनमाने तरीके से टैक्स में बढ़ोतरी न कर सके। सरकार ने कांग्रेस पार्टी की इस मांग पर विचार करने के लिए मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रह्मण्यम की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया है, जिसकी रिपोर्ट बहुत जल्द आने की उम्मीद है।
• कांग्रेस की तीसरी मांग है कि केंद्र और राज्यों के बीच टैक्स विवाद निपटाने के लिए पूर्व न्यायाधीश की अध्यक्षता में ट्रिब्यूनल पंचाट के गठन का प्रावधान हो, जिसमें जीएसटी काउंसिल का दखल न हो।
• कांग्रेस की चौथी मांग के अनुसार जीएसटी से राज्यों के स्थानीय निकायों यथा नगर पालिकाओं और पंचायतों की वित्तीय स्वायत्तता पर कुठाराघात होगा, जिसके मुआवजे की व्यवस्था हेतु इस बिल में प्रावधान होना चाहिए।
उपर्युक्त आलेख (श्री विराग गुप्ता जो सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता और टैक्स मामलों के विशेषज्ञ हैं…) के ब्लॉग से लिया गया है. पाठकों की जानकारी के लिए इसे यहाँ उद्धृत किया गया है.
मेरी अपनी राय यही है कि इधर प्रधान मंत्री श्री मोदी काफी विनम्र हुए हैं, उसका कारण शायद बिहार के चुनावों में मिली जबर्दश्त पराजय और देश में हो रही असहिष्णुता के प्रति विरोध प्रदर्शन हो. जब अधिकांश पार्टियाँ चाहती है कि यह बिल पास हो जाय तो जनता के हित में कांग्रेस को इसका समर्थन करना चाहिए. सूत्रों के अनुसार सरकार भी कांग्रेस अधिकांश सुझावों पर विचार करने का मन बना लिया है. उम्मीद की जानी चाहिए कि यह बिल राज्य सभा में पारित हो जाय और आर्थिक सुधारों पर सरकार आगे बढ़े ताकि देश आगे बढ़े. प्रधान मंत्री ने भी कहा है कि यह देश राज्यों के मजबूत खम्भों पर ही टिका है. अगर बहुमत की सरकार भी वांछित नियम न बना पाए तो प्रश्न तो उठेंगे. वैसे भी संसद के वर्तमान सत्र का पहला सप्ताह संविधान और असहिष्णुता पर चर्चा में ही बीत गया. इस चर्चा में सभी ने अपने अपने राजनीतिक नफा नुक्सान के अनुसार ही भड़ास निकले. कुछ सार्थक परिणाम निकल कर सामने आए हो, ऐसा दीखता नहीं. इसलिए प्रधान मंत्री के अनुसार ही सहमति से कुछ सुधार करें, जिसकी उम्मीद में आम जनता टकटकी लगाये हुए है. कुछ तो सकारात्मक होना चाहिए. नकारात्मकता अंततोगत्वा विनाशकारी ही होती है. इसलिए कहीं तो सकारात्मकता दिखलाइये. – जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.

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