रक्षा बंधन का पवित्र त्यौहार नजदीक है. सभी बहनें अपने भाइयों को राखी भेज रही हैं या अपने-अपने भाइयों से मिलने के इन्तजार में हैं. बहनें भाइयों की कलाइयों पर राखी बाँधेंगी और भाई अपनी बहन की रक्षा का संकल्प लेगा. काफी बहनें सीमा पर तैनात सुरक्षाकर्मी के लिए भी राखी भेज रही हैं ताकि वे देश की रक्षा कर सकें. कुछ बच्चियां मोदी जी के लिए राखियाँ तैयार कर रही हैं और उन्हें भेजने की तैयारी में हैं. मोदी जी भी हर साल बच्चियों से राखियाँ बंधवाते भी हैं. वाकई रक्षा-बंधन एक पवित्र त्यौहार है और हम सबको इसका बेसब्री से इंतज़ार भी रहता है. बचपन में हम सब अपने हाथों की राखियां गिना करते थे. आज भी हमारे बच्चे अपने हाथ की राखियां गिनते हैं. मिठाई खाना और बहन को उपहार देना इस त्यौहार को और भी मधुर बना देता है. इस पावन अवसर पर सभी पुरुषों का क्या कर्तव्य नहीं बनता है कि वे प्रण करें कि वे अपने सामने किसी भी महिला का अपमान, छेड़छाड़, यौन-उत्पीड़न बर्दाश्त नहीं करेंगे और उस महिला की हर सम्भव मदद करेंगे. मोदी जी रक्षा-बंधन के अवसर पर बहनों को शौचालय व सुरक्षा बीमा आदि भेंट करने की बात कह रहे हैं. वाकई यह बहुत अच्छा सन्देश है साथ ही मोदी जी से यह उम्मीद करते हैं कि इस बार की ‘मन की बात’ में बहनों/महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों की चर्चा करेंगे और उस विषय पर सकारात्मक सन्देश के साथ-साथ उनके द्वारा किए गए समुचित उपायों की चर्चा करेंगे.
इधर हो रहे दुष्कर्म के आंकड़े कुछ और ही बयान करते हैं.
मध्य प्रदेश देश का ऐसा राज्य है जहां महिलाओं के साथ सबसे अधिक दुष्कर्म की घटना को अंजाम दिया गया है. यहां की महिलाएं शिवराज सिंह चौहान के राज में सबसे ज्यादा असुरक्षित हैं. मध्य प्रदेश के बाद अगर बात करें केंद्र शासित प्रदेशों की तो दिल्ली में सबसे ज्यादा रेप की घटनाओं को अंजाम दिया गया है. यहाँ पर केंद्र के अधीन पुलिस प्रशासन है. केजरीवाल सरकार भी इन घटनाओं को रोकने में असफल रही है. बसों में मार्शल की नियुक्ति से हो सकता है बसों में छेड़छाड़ की घटनाओं में कमी हुई हो. पर अकेली महिलाओं के अपहरण और उनके साथ सामूहिक दुष्कर्म की घटनाओं में कमी के कोई खास संकेत नहीं दीख रहे.
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के मुताबिक मध्य प्रदेश में सबसे ज्यादा रेप के मामले दर्ज कराए गए हैं. यह आंकड़े साल 2014 में दर्ज हुए कुल रेप के मामलों को दर्शाते हैं. आंकड़ों के मुताबिक देश के टॉप 10 राज्यों में सबसे पहले मध्य प्रदेश (5076) का नंबर आता है इसके बाद राजस्थान (3759), उत्तर प्रदेश (3467), महाराष्ट्र (3438), आसाम (1980), उड़ीसा (1978), पश्चिम बंगाल (1466), छत्तीसगढ़ (1436), केरला (1347) और कर्नाटक (1324) का नंबर आता है.
इसके अलावा पश्चिम बंगाल ऐसा पहला राज्य है जहां सबसे ज्यादा महिलाओं के साथ रेप करने की कोशिश की गई है. पश्चिम बंगाल में ऐसे कुल 1,656 मामले दर्ज हुए हैं. बिहार इसी मामले में 484 के साथ दूसरे और राजस्थान 373 मामलों के साथ तीसरे नंबर पर है.
अगर बात करें केंद्र शासित प्रदेशों की तो दिल्ली से सबसे ज्यादा चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं। दिल्ली में 2,096 रेप के मामले दर्ज किए गए हैं जो दूसरे नंबर के राज्य चंडीगढ़ (59) से करीब पैंतीस गुना ज्यादा है. इसके अलावा दिल्ली में महिलाओं की अस्मत लूटने के सबसे ज्यादा प्रयास किए जाते हैं. समाचारों में भी शायद ही कोई दिन ऐसा हो जिस दिन दुष्कर्म या दुष्कर्म के प्रयास की ख़बरें न हो.
दिल्ली में निर्भया कांड भी हुआ था जहां एक लड़की के साथ हैवानियत की सारी हदें पार करते हुए रेप किया गया और उसे चलती बस से सड़क पर फेंक दिया गया था. इतना ही नहीं उसके एक पुरुष दोस्त के साथ भी मारपीट की गई थी. इस मामले के बाद एक जबर्दश्त आंदोलन हुआ और सरकार को मजबूरन ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए कानून में ठोस बदलाव करने पड़े. पर कानून से क्या होता है!
अब जब पिछले साल हुए सेक्स अपराधों के आंकड़े सामने आए हैं तो इससे एक बार फिर दिल्ली का असली चेहरा सामने आया है. दिल्ली के लिए ये आंकड़े काफी चौंकाने वाले हैं. शायद इसलिए ही दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने पिछले चुनावों में महिलाओं की सुरक्षा को अपना अहम मुद्दा बनाया था. अब रोना यह है कि दिल्ली में पुलिस तो केंद्र सरकार के अधीन है जो केंद्र सरकार के इशारे पर आम आदमी के विधायकों/ मंत्रियों/कार्यकर्ताओं पर ज्यादा पैनी नजर रक्खे हुए है. आम आदमी पार्टी से सम्बंधित लोग अगर कुछ भी गलती करें तो उन्हें तुरंत गिरफ्तार कर जेल भेज दिया जाता है वहीं, अपराधियों, दुष्कर्मियों पर लगाम लगाने में उतनी तत्परता नहीं दिखाती है. तत्परता दिखा कर भी क्या होगा? न्यायपालिका से न्याय मिलने में काफी देर हो जाती है एक अपराध का फैसला नहीं होता तबतक सैंकड़ो, अपराध हो जाते हैं. निर्भयाकांड के अपराधियों का अपराध साबित होने पर भी आज तक फांसी नहीं हुई बल्कि उनमे से एक अपराधी जिसका अपराध जघन्यतम था, किशोर(नाबालिग) होने की वजह से केवल तीन साल की सजा हुई है. मुख्य आरोपी राम सिंह ने जेल में ही आत्म-हत्या कर ली तो एक अपराधी मुकेश सिंह का इंटरव्यू लेकर उसपर डॉक्यूमेंट्री फिल्म बनाना यह भी चर्चा का विषय रहा. सवाल यह है कि जब इनको मौत की सजा सुना दी गयी है तो फांसी में देर क्यों? तबतक अपराध बढ़ते रहेंगे और थानों में केस दर्ज होते रहेंगे. अधिकांश मामलों में तो केस दर्ज ही नहीं कराये जाते या पुलिस दर्ज करने मे आनाकानी करती है. फिर अपराध पर लगाम लगे तो कैसे?
सामाजिक या राजनीतिक रूप से ऐसी कोई भी कोशिश कारगर नहीं हो रही है जिससे दुष्कर्म के वारदातों में कमी आये. ऊपर से बड़े नेताओं के बिगड़े बोल माहौल को और बिगाड़ने का काम करते हैं. मुलायम सिंह, विजय वर्गीय, मोहन भागवत, आदि कई ऐसे लोग है जो अशालीन बयान देकर किसी न किसी प्रकार से अपराधियों का हौसला-आफजाई ही करते दीखते हैं. हमारी फ़िल्में, टी वी, पोर्न साइट्स आदि भी इन तरह के अपराधों को बढ़ावा देने का ही काम करते हैं. कहीं से भी इसके प्रति दुर्भावना या सामाजिक बहिष्कार की ख़बरें नहीं आती. बल्कि अगर बड़े/सम्मानित घरों के युवकों से यह काम हो गया तो उसे बचने का हर सम्भव प्रयास किया जाएगा. खाप पंचायतों, ग्राम पंचायतों, दबंग लोगों का दबे-कुचले लोगों के प्रति और भी क्रूर और विद्रूप चेहरा नजर आता है. ऐसे में न्यायपालिका, कार्यपालिका, सामाजिक संस्थाएं, स्कूल- कॉलेजों, आदि का भी भरपूर दायित्व बनता है कि इस प्रकार की होनेवाले घटनाओं पर रोक लगाने का हर सम्भव प्रयास करे.
महिलाओं को भी अपनी रक्षा आप करने के गुर सीखने ही होंगे और मर्दों के प्रति अपनी तरफ से कोई भी छूट या लापरवाही से बचना होगा. कपड़े शालीन ही अच्छे लगते हैं. साथ ही भाव-भंगिमा भी ऐसी हो जिससे किसी भी पुरुष को, किसी भी प्रकार की अशालीन हरकत करने का बहाना न मिले. इसके अलावा समाज के सजग-वर्ग को भी सचेत रहने की जरूरत है कि इस तरह की कोई भी घटना देखें तो आवाज बुलंद करें और पीड़ित को मदद करने की हर सम्भव कोशिश करें.
उत्तेजक फिल्में, उत्तेजक विज्ञापन, अश्लील तस्वीरें, फैशन के नाम पर अश्लील प्रदर्शन, अश्लील डांस आदि सब पर रोक लगाने की जरूरत है, क्योंकि ये सारे दृश्य ऐसे हैं, जो कामुकता को बढ़ावा देते हैं और मौका पाकर पुरुष भेड़िया बन जाता है.
अभी हाल ही में दिल्ली में सबके सामने एक लड़की को चाकुओं से गोद कर मार डाला गया. सभी देखते रहे. जमशेदपुर में एक बस में स्कूली-छात्रा के साथ छेड़खानी होती रही और लोग देखते रहे, यहाँ तक कि बस के ड्राइवर ने भी बस को नहीं रोका और बस में बज रहे म्यूजिक सिस्टम के वॉल्यूम को और बढ़ा दिया. लड़की को चलती बस से कूदकर अपनी इज्जत बचानी पडी, फलस्वरूप वह घायल हो गयी और कई दिनों तक उसे अस्पताल में भर्ती रहना पड़ा. बाद में प्रशासन हरकत में आया…बसों और ऑटो से म्यूजिक सिस्टम को हटवाया. आजकल अश्लील और द्विअर्थी गानों की भी बाढ़-सी आ गयी है, जिसका सीधा असर किशोरों पर तो होता ही है. इन पर रोक लगाने के लिए सामूहिक प्रयास की गंभीर आवश्यकता है… – जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.
इधर हो रहे दुष्कर्म के आंकड़े कुछ और ही बयान करते हैं.
मध्य प्रदेश देश का ऐसा राज्य है जहां महिलाओं के साथ सबसे अधिक दुष्कर्म की घटना को अंजाम दिया गया है. यहां की महिलाएं शिवराज सिंह चौहान के राज में सबसे ज्यादा असुरक्षित हैं. मध्य प्रदेश के बाद अगर बात करें केंद्र शासित प्रदेशों की तो दिल्ली में सबसे ज्यादा रेप की घटनाओं को अंजाम दिया गया है. यहाँ पर केंद्र के अधीन पुलिस प्रशासन है. केजरीवाल सरकार भी इन घटनाओं को रोकने में असफल रही है. बसों में मार्शल की नियुक्ति से हो सकता है बसों में छेड़छाड़ की घटनाओं में कमी हुई हो. पर अकेली महिलाओं के अपहरण और उनके साथ सामूहिक दुष्कर्म की घटनाओं में कमी के कोई खास संकेत नहीं दीख रहे.
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के मुताबिक मध्य प्रदेश में सबसे ज्यादा रेप के मामले दर्ज कराए गए हैं. यह आंकड़े साल 2014 में दर्ज हुए कुल रेप के मामलों को दर्शाते हैं. आंकड़ों के मुताबिक देश के टॉप 10 राज्यों में सबसे पहले मध्य प्रदेश (5076) का नंबर आता है इसके बाद राजस्थान (3759), उत्तर प्रदेश (3467), महाराष्ट्र (3438), आसाम (1980), उड़ीसा (1978), पश्चिम बंगाल (1466), छत्तीसगढ़ (1436), केरला (1347) और कर्नाटक (1324) का नंबर आता है.
इसके अलावा पश्चिम बंगाल ऐसा पहला राज्य है जहां सबसे ज्यादा महिलाओं के साथ रेप करने की कोशिश की गई है. पश्चिम बंगाल में ऐसे कुल 1,656 मामले दर्ज हुए हैं. बिहार इसी मामले में 484 के साथ दूसरे और राजस्थान 373 मामलों के साथ तीसरे नंबर पर है.
अगर बात करें केंद्र शासित प्रदेशों की तो दिल्ली से सबसे ज्यादा चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं। दिल्ली में 2,096 रेप के मामले दर्ज किए गए हैं जो दूसरे नंबर के राज्य चंडीगढ़ (59) से करीब पैंतीस गुना ज्यादा है. इसके अलावा दिल्ली में महिलाओं की अस्मत लूटने के सबसे ज्यादा प्रयास किए जाते हैं. समाचारों में भी शायद ही कोई दिन ऐसा हो जिस दिन दुष्कर्म या दुष्कर्म के प्रयास की ख़बरें न हो.
दिल्ली में निर्भया कांड भी हुआ था जहां एक लड़की के साथ हैवानियत की सारी हदें पार करते हुए रेप किया गया और उसे चलती बस से सड़क पर फेंक दिया गया था. इतना ही नहीं उसके एक पुरुष दोस्त के साथ भी मारपीट की गई थी. इस मामले के बाद एक जबर्दश्त आंदोलन हुआ और सरकार को मजबूरन ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए कानून में ठोस बदलाव करने पड़े. पर कानून से क्या होता है!
अब जब पिछले साल हुए सेक्स अपराधों के आंकड़े सामने आए हैं तो इससे एक बार फिर दिल्ली का असली चेहरा सामने आया है. दिल्ली के लिए ये आंकड़े काफी चौंकाने वाले हैं. शायद इसलिए ही दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने पिछले चुनावों में महिलाओं की सुरक्षा को अपना अहम मुद्दा बनाया था. अब रोना यह है कि दिल्ली में पुलिस तो केंद्र सरकार के अधीन है जो केंद्र सरकार के इशारे पर आम आदमी के विधायकों/ मंत्रियों/कार्यकर्ताओं पर ज्यादा पैनी नजर रक्खे हुए है. आम आदमी पार्टी से सम्बंधित लोग अगर कुछ भी गलती करें तो उन्हें तुरंत गिरफ्तार कर जेल भेज दिया जाता है वहीं, अपराधियों, दुष्कर्मियों पर लगाम लगाने में उतनी तत्परता नहीं दिखाती है. तत्परता दिखा कर भी क्या होगा? न्यायपालिका से न्याय मिलने में काफी देर हो जाती है एक अपराध का फैसला नहीं होता तबतक सैंकड़ो, अपराध हो जाते हैं. निर्भयाकांड के अपराधियों का अपराध साबित होने पर भी आज तक फांसी नहीं हुई बल्कि उनमे से एक अपराधी जिसका अपराध जघन्यतम था, किशोर(नाबालिग) होने की वजह से केवल तीन साल की सजा हुई है. मुख्य आरोपी राम सिंह ने जेल में ही आत्म-हत्या कर ली तो एक अपराधी मुकेश सिंह का इंटरव्यू लेकर उसपर डॉक्यूमेंट्री फिल्म बनाना यह भी चर्चा का विषय रहा. सवाल यह है कि जब इनको मौत की सजा सुना दी गयी है तो फांसी में देर क्यों? तबतक अपराध बढ़ते रहेंगे और थानों में केस दर्ज होते रहेंगे. अधिकांश मामलों में तो केस दर्ज ही नहीं कराये जाते या पुलिस दर्ज करने मे आनाकानी करती है. फिर अपराध पर लगाम लगे तो कैसे?
सामाजिक या राजनीतिक रूप से ऐसी कोई भी कोशिश कारगर नहीं हो रही है जिससे दुष्कर्म के वारदातों में कमी आये. ऊपर से बड़े नेताओं के बिगड़े बोल माहौल को और बिगाड़ने का काम करते हैं. मुलायम सिंह, विजय वर्गीय, मोहन भागवत, आदि कई ऐसे लोग है जो अशालीन बयान देकर किसी न किसी प्रकार से अपराधियों का हौसला-आफजाई ही करते दीखते हैं. हमारी फ़िल्में, टी वी, पोर्न साइट्स आदि भी इन तरह के अपराधों को बढ़ावा देने का ही काम करते हैं. कहीं से भी इसके प्रति दुर्भावना या सामाजिक बहिष्कार की ख़बरें नहीं आती. बल्कि अगर बड़े/सम्मानित घरों के युवकों से यह काम हो गया तो उसे बचने का हर सम्भव प्रयास किया जाएगा. खाप पंचायतों, ग्राम पंचायतों, दबंग लोगों का दबे-कुचले लोगों के प्रति और भी क्रूर और विद्रूप चेहरा नजर आता है. ऐसे में न्यायपालिका, कार्यपालिका, सामाजिक संस्थाएं, स्कूल- कॉलेजों, आदि का भी भरपूर दायित्व बनता है कि इस प्रकार की होनेवाले घटनाओं पर रोक लगाने का हर सम्भव प्रयास करे.
महिलाओं को भी अपनी रक्षा आप करने के गुर सीखने ही होंगे और मर्दों के प्रति अपनी तरफ से कोई भी छूट या लापरवाही से बचना होगा. कपड़े शालीन ही अच्छे लगते हैं. साथ ही भाव-भंगिमा भी ऐसी हो जिससे किसी भी पुरुष को, किसी भी प्रकार की अशालीन हरकत करने का बहाना न मिले. इसके अलावा समाज के सजग-वर्ग को भी सचेत रहने की जरूरत है कि इस तरह की कोई भी घटना देखें तो आवाज बुलंद करें और पीड़ित को मदद करने की हर सम्भव कोशिश करें.
उत्तेजक फिल्में, उत्तेजक विज्ञापन, अश्लील तस्वीरें, फैशन के नाम पर अश्लील प्रदर्शन, अश्लील डांस आदि सब पर रोक लगाने की जरूरत है, क्योंकि ये सारे दृश्य ऐसे हैं, जो कामुकता को बढ़ावा देते हैं और मौका पाकर पुरुष भेड़िया बन जाता है.
अभी हाल ही में दिल्ली में सबके सामने एक लड़की को चाकुओं से गोद कर मार डाला गया. सभी देखते रहे. जमशेदपुर में एक बस में स्कूली-छात्रा के साथ छेड़खानी होती रही और लोग देखते रहे, यहाँ तक कि बस के ड्राइवर ने भी बस को नहीं रोका और बस में बज रहे म्यूजिक सिस्टम के वॉल्यूम को और बढ़ा दिया. लड़की को चलती बस से कूदकर अपनी इज्जत बचानी पडी, फलस्वरूप वह घायल हो गयी और कई दिनों तक उसे अस्पताल में भर्ती रहना पड़ा. बाद में प्रशासन हरकत में आया…बसों और ऑटो से म्यूजिक सिस्टम को हटवाया. आजकल अश्लील और द्विअर्थी गानों की भी बाढ़-सी आ गयी है, जिसका सीधा असर किशोरों पर तो होता ही है. इन पर रोक लगाने के लिए सामूहिक प्रयास की गंभीर आवश्यकता है… – जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.
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