रैमन मैग्सेसे पुरस्कार विजेता
अंशु गुप्ता और संजीव चतुर्वेदी
वैसे
पिछला सप्ताह अपने भारत के लिए बहुत अच्छा नहीं रहा. इस देश ने पूर्व राष्ट्रपति
भारतरत्न ए. पी. जे. अब्दुल कलाम को खोया, तो गुरुदासपुर
आतंकी हमले में एक जांबाज पुलिस अधीक्षक बलजीत सिंह शहीद हुए. एक आतंकी याकूब मेनन
की फांसी पर बहस अब तक जारी है. पूरा उत्तर भारत अत्यधिक बारिश की वजह से तबाही
झेल रहा है,
वहीं कुछ अच्छी खबर भी पिछले सप्ताह ही आयी.
रेमन
मैग्सेसे अवॉर्ड फाउंडेशन (आरएमएएफ) ने बुधवार(२९ जुलाई) को पिछले साल के पांच
विजेताओं ने नाम घोषित कर दिए हैं, जिसमें
भारत के संजीव चतुर्वेदी और अंशु गुप्ता शामिल हैं. संजीव चतुर्वेदी एम्स के
मुख़्य सतर्कता अधिकारी (सीवीओ) रह चुके हैं. वहीं अंशु गुप्ता दिल्ली स्थित एनजीओ
गूंज के संस्थापक हैं.
एम्स
के सीवीओ बनने के बाद संजीव चतुर्वेदी ने उन डॉक्टरों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की जो
अनाधिकृत रूप से विदेश यात्रा करते थे. आरएमएएफ की प्रेस रिलीज़ के अनुसार संजीव
चतुर्वेदी को उनकी अप्रत्याशित नेतृत्व क्षमता के लिए चुना गया है. विज्ञप्ति के
अनुसार, ''उन्होंने ईमानदारी, साहस और तमाम मुश्किलों का सामना करते
हुए भ्रष्टाचार की जांच की. साथ ही उन्होंने ऐसा तरीका भी विकसित किया जिससे सरकार
भारतीय जनता के लिए बेहतर तरीके से काम कर सके.''
संजीव चतुर्वेदी देश के दूसरे सर्विंग
ब्यूरोक्रेट हैं जिन्हें ये पुरस्कार दिया गया है। इससे पहले किरण बेदी को भी सेवा
में रहते ये प्रतिष्ठित पुरस्कार मिला था। 2002 बैच के वन सेवा के अधिकारी संजीव चतुर्वेदी
एम्स में कई भ्रष्टाचार के मामलों को उजागर करने के लिए जाने जाते हैं और पिछले
साल जब उन्हें एम्स के सीवीओ पद से हटाया गया तो बड़ा विवाद हुआ था। चतुर्वेदी
मूलत: हरियाणा कैडर के अफसर हैं। वहां भी उन्होंने भ्रष्टाचार के कई मामलों को
उजागर किया था।
कई घपलों का भंडाफोड़ करने वाले अधिकारी संजीव चतुर्वेदी ने प्रधानमंत्री
कार्यालय के कामकाज पर निराशा जताई है। उन्होंने कहा कि वे केवल स्वतंत्र
न्यायपालिका की वजह से ‘बच’ सके। चतुर्वेदी ने कहा कि भ्रष्टाचार
के खिलाफ कतई बर्दाश्त नहीं करने की नीति होनी चाहिए न कि ईमानदार अफसरों के
खिलाफ। क्योंकि प्रधानमंत्री के कहे मुताबिक भ्रष्टाचार को बिलकुल बर्दाश्त नहीं
करने की नीति के अनुरूप काम किया। मैंने इस संदेश को दिल से लिया और एम्स में
भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए निजी तौर पर खतरा उठाया।’
भारतीय वन सेवा के अधिकारी और फिलहाल एम्स में उप सचिव के पद पर काम कर रहे
चतुर्वेदी (40) को ‘उभरते नेतृत्व’ श्रेणी के तहत उनकी बेमिसाल सत्यनिष्ठा, साहस और सरकारी विभाग में भ्रष्टाचार
का खुलासा करने में किसी तरह का समझौता नहीं करने की दृढ़ता व पूरी लगन व मेहनत के
साथ भ्रष्टाचार का भंडाफोड़ करने को लेकर इस पुरस्कार के लिए चुना गया है।
पिछले पांच साल में चतुर्वेदी का 12 बार तबादला हुआ है। उन्होंने हरियाणा
सरकार में रहने के दौरान भू माफिया के खिलाफ कार्रवाई की थी। हालांकि उन्होंने
एम्स में कथित अनियमितता के बारे में दस्तावेजी साक्ष्य पीएमओ को भेज कर दोषियों
को दंडित करने के लिए एक निष्पक्ष जांच की मांग की थी, लेकिन कुछ नहीं किया गया और उन्हें
प्रताड़ित करने पर जोर दिया गया।
उन्हें पिछले साल अगस्त में एम्स के मुख्य सतर्कता आयुक्त के पद से हटा
दिया गया था।
इस पुरस्कार से पहले ही नवाजे जा चुके दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद
केजरीवाल ने फरवरी में केंद्र को पत्र लिख कर चतुर्वेदी को दिल्ली सरकार में
स्थानांतरित करने की मांग की थी। केंद्र ने अभी तक इस अनुरोध पर कोई फैसला नहीं
किया है। यहीं पर यह बात गौर करने लायक है कि क्या श्री मोदी भ्रष्टाचार के खिलाफ
लड़ने के लिए वास्तव में गंभीर हैं?
वहीं
अंशु गुप्ता ने कॉरपोरेट की नौकरी छोड़कर 1999
में एनजीओ ‘गूंज’ की स्थापना की थी.
अंशु
गुप्ता ने कहा, "मैं अवॉर्ड मिलने से ख़ुश हूँ, ख़ासकर इसलिए कि कपड़ों का मुद्दा
विकास के मुद्दे से जुड़ सका. इस अवॉर्ड से ये भी साबित होता है कि बिना पोस्टर
बैनर लगाए भी सामाजिक काम किया जा सकता है."
अंशु
गुप्ता के लिए लिखा गया है,
''उनकी जो
दूरदर्शी सोच है वो भारत में एक-दूसरे को आगे बढ़कर मदद करने की सोच को बदल रही
है. उनके नेतृत्व में कपड़ों को इस तरह से इस्तेमाल किया जा रहा है जिससे कि वो
ग़रीब वर्ग के लिए विकास का साधन साबित हो रहा है. साथ ही उन्होंने दुनिया को यह
भी याद दिलाया है कि अगर असल मायने में कोई किसी को कुछ देता है तो इसमें मानवीय
ग़रिमा की इज़्जत करना शामिल है.''
भारत
से कई लोगों को यह अवॉर्ड मिल चुका है, उनमे
से चंद चर्चित नाम: मदर टेरेसा, 1962. वर्गीस कूरियन, 1963. जयप्रकाश नारायण, 1965. सत्यजीत रे, 1967. किरण बेदी,
1994. महाश्वेता देवी, 1997. जेम्स माइकल लिंगदोह, 2003. वी. शांता,
2005. अरविंद केजरीवाल, 2006
रेमन
मैग्सेसे अवॉर्ड की स्थापना 1957
में फिलीपींस के तीसरे राष्ट्रपति रैमन मैग्सेसे की याद में की गई है. इसे एशिया
का नोबल पुरस्कार भी कहा जाता है.
'गूंज' की गूंज इंडिया के साथ साथ दूसरे देशों में कैसे सुनाई देने लगी...
एशिया का नोबेल पुरस्कार माने जाने वाले रैमन मैग्सेसे अवार्ड के लिए चुने गए और 'गूंज' नामक एनजीओ के जरिए गरीबों की सहायता करने वाले अंशु गुप्ता से जुड़ी
कुछ खास बातें जो हम सबको जरुर जाननी चाहिए...
1- देहरादून के मिडिल क्लास परिवार में
जन्में अंशु गुप्ता चार भाई बहनों में सबसे बड़े हैं. जब अंशु 14 साल के थें तो उनके पिता को हॉर्ट अटैक
आने के चलते घर का जिम्मा उन्हीं के कंधों पर आ गया. 2- 12वीं की पढ़ाई के दौरान अंशु का एक
एक्सीडेंट हो गया जो उनकी जिंदगी को बदल गया. 3- देहरादून
से ग्रेजुएशन करने के बाद अंशु ने दिल्ली का रुख किया. अंशु ने इकोनॉमिक्स से
मास्टर की डिग्री हासिल की और फिर पत्रकारिता और जनसंचार का कोर्स किया. 4- एक ग्रेजुएट स्टूडेंट के तौर पर अंशु
ने 1991 में नॉर्थ इंडिया में उत्तरकाशी की
यात्रा की और भूकंप प्रभावित क्षेत्र में पीड़ितों की सहायता भी की और यही ग्रामीण
क्षेत्र की समस्याओं को लेकर अंशु की पहली पहल थी. 5- अंशु ने पढ़ाई खत्म करके बतौर कॉपी राइटर एक विज्ञापन एजेंसी में काम
करना शुरू किया. कुछ समय बाद पावर गेट नाम की एक कंपनी में दो साल तक काम किया. 7- आपको बता दें कि कभी 67 कपड़ों से शुरु हुआ यह संगठन आज हर
महीने करीब अस्सी से सौ टन कपड़े गरीबों को बांटता है. 8- 2012 में गूंज को नासा और यूएस स्टेट
डिपार्टमेंट के द्वारा 'गेम चेंजिंग इनोवेशन' के रुप में चुना गया और इसी साल अंशु
गुप्ता को इंडिया के मोस्ट पॉवरफुल ग्रामीण उद्यमी के तौर पर फोर्ब्स की लिस्ट में
जगह मिला. 9- अपने इन्ही कार्यों की वजह से 'गूंज' को हाल ही में 'मोस्ट
इनोवेटिव डेवलेपमेंट' प्रोजेक्ट के लिए जापानी अवॉर्ड से
सम्मानित किया गया. 10-
1999 में चमोली में
आए भूकंप में उन्होंने रेड क्रॉस की सहायता से जरूरतमंदों के लिए काफी सामान भेजा.
तात्पर्य यह है कि अभी भी हमारे देश में ऐसे अनेक
हीरे हैं, जिन्हें केवल पुरस्कार भर से नवाजे जाने के अलावा उन्हें महत्वपूर्ण
जिम्मेदारी भी दी जानी चाहिए, ताकि वे अपनी प्रतिभा का खुल कर इस्तेमाल कर, भारत
भूमि की सेवा तन-मन-धन से कर सकें. दोनों महान विभूतियों को नमन और शुभकामनाएं – जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.
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