Sunday, 19 April 2015

हाई टेक होते क्षेत्रीय दल – झामुमो का राष्ट्रीय अधिवेशन

जमशेदपुर में झाड़खंड मुक्ति मोर्चा का राष्ट्रीय अधिवेशन १६, १७ और १८ अप्रैल तीन दिन चला. वह भी जमशेदपुर के ह्रदय स्थल बिष्टुपुर के रीगल(गोपाल) मैदान में. पूरा जमशेदपुर शहर झामुमो के झंडे, बैनर, पोस्टरों से सज गया. रीगल मैदान के अंदर वातानुकूलित पंडाल बनाया गया, जहाँ पर बैठनेवाले लोग इस गर्मी में भी ठंढ से कंपकंपा गए. खाने, पीने, ठहरने की समुचित और उच्चस्तरीय ब्यवस्था की गयी. पंडाल के अंदर ही खाने पीने, आराम करने और चलंत शौचालय, बाथरूम आदि की सुविधा, वी. आई. पी. के लिए भी खास ब्यवस्था की गयी, जो कि जमशेदपुर के लिए अनूठा था. कार्यकर्ताओं को पंडाल में जाने के लिए लम्बी-लम्बी कतारें शुबह से ही लगनी शुरू हो जाती थी. सभी कार्यकर्ताओं के कंधे से लटकता हुआ हरे रंग का थैला सुशोभित था, जिस पर तीर कमान प्रिंट किये हुए थे. ढोल नगारा, मांदर की थाप पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ कार्यक्रम शुरू हुआ. अनुशासन बद्ध उपस्थिति देखने लायक थी. मुख्य मंच पर शिबू सोरेन, हेमंत सोरेन, सालखन मुर्मू, चम्पाई सोरेन और पूर्व मंत्री हाजी हुसैन अंसारी आदि प्रमुख नेता बैठे और सबों ने उपस्थित कार्यकर्ताओं को संबोधित किया. सबों ने मिलकर भाजपा पर हमला भी किया गया. स्थानीय और बाहरी की भी खूब राजनीति की गयी. ज्वलंत मुद्दा- केंद्र सरकार की भूमि अधिग्रहण बिल के विरोध में “जान दे देंगे, पर जमीन नहीं देंगे” की घोषणा हुई. भाजपा की रघुबरदास नीत भाजपा सरकार की भी बखिया उघेड़ी गयी. दिशोम गुरु शिबू सोरेन ने अपने राजनीतिक वारिशपुत्र हेमंत सोरेन को भी पूरा पूरा आशीर्वाद दिया. “हम हारे नहीं हैं!” की घोषणा की गयी. भले ही हम सत्ता में नहीं हैं, पर हमारा जनाधार खिसका नहीं है. हम मजबूत विपक्ष की भूमिका में हैं. पहले इस तरह का आयोजन शहर से दूर डिमना या दुमका आदि जगहों में होता था. पर इस बार भाजपा के गढ़ कहे जानेवाले क्षेत्र में यह अधिवेशन संपन्न हुआ. बड़ी शांतिपूर्ण ढंग से या कहें कि सब कुछ ब्यवस्थित ढंग से संपन्न हुआ.
भाजपा के तर्ज पर यहाँ भी मिस्ड काल से सदस्य बनाने और सोसल मीडिया पर अपनी उपस्थिति दर्ज करने की भी कवायद की गयी. महाराष्ट्र की तर्ज पर यहाँ भी जंगल जमीन के साथ यहाँ की भाषा, संस्कृति और फिल्मों की भी बातें हुई. उड़ीसा और बंगाल के कुछ और जिलों को मिलाकर वृहद झाड़खंड राज्य बनाने की मांग की गयी. इस पूरे कार्यक्रम में शिबू सोरेन और हेमंत सोरेन के गुण भी खूब गाये गए. यहाँ भी बाप-बेटे के वंशवाद को ही आगे बढ़ाने की कोशिश की जा रही है. कई राजनीतिक प्रस्ताव पास हुए जिसमे स्थानीयता का मुद्दा हावी रहा. राजनीतिक प्रस्तावों में प्रत्येक जिला में एक तकनीकी महाविद्यालय की स्थापना, प्रत्येक प्रमंडल में एक महिला महाविद्यालय की स्थापना, महिलाओं के लिए ३३ से ५० प्रतिशत तक का आरक्षण की ब्यवस्था करना, मजदूरों का डाटाबेस तैयार करना, क्षेत्रीय भाषाओँ के प्रचार प्रसार पर जोर, सरकारी काम काज में पारदर्शिता, त्रितीय और चतुर्थ वर्ग की नौकरियों में स्थानीय लोगों की शत प्रतिशत भागीदारी, दूसरे पदों पर भी स्थानीय लोगों को प्राथमिकता देना, स्थानीयता का आधार १९३२ का सर्वे को ही बनाने का संकल्प को दोहराया गया. किसानों और ग्रामीणों के विकास के लिए जरूरी संशाधन की खोज करना और सिंचाई, भूमि प्रबंधन आदि की उचित ब्यवस्था की बात की गयी. संगठन के विस्तार हेतू हर स्तर पर कार्यकर्ताओं की फ़ौज तैयार करने की भी बात की गयी.
ये कार्यकर्ता गांवों में जाकर प्रचार करेंगे.- हम स्वर्ग का दर्शन करके आए हैं. हमारे आका पूरे झाड़खंड को स्वर्ग बना देंगे, इसलिए अगली बार इन्हे ही वोट देकर जीताना है. वे हमारे दर्द को, कष्ट को, जानते/पहचानते हैं. दरअसल शिबू सोरेन और डॉ. रामदयाल मुंडा आदि ने झाड़खंड आन्दोलन को खड़ा किया था और जन, जंगल और जमीन के नाम पर झाड़खंड अलग राज्य की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी. ये लोग ही झारखंड नाम धारी पार्टियों के जनक थे. पार्टी को जमीन से वर्तमान स्तर तक लाने में शिबू सोरेन का बहुत बड़ा हाथ था. शिबू सोरेन ने हर तकलीफें झेलीं, नरसिम्हा राव से रिश्वत लेने के ,मामले में बदनाम भी हुए, अपने ही सचिव को मरवाने के जुर्म में गिरफ्तार हुए, सजा पायी और बरी भी हुए. कांग्रेस नीत संप्रग की सरकार में कई बार कोयला मंत्रालय इनके पास रहा. गिरफ्तारी के समय कोयला मंत्रालय छोड़ना पड़ा था. तभी कालिख का दाग मनमोहन सिंह पर लग गया. यह ‘दिशोम गुरु’ का उपाधि पा आज गर्व से राजा बना बैठा है और अपने प्रिय और लायक बेटे हेमंत को गद्दी सौंप दी है. इस अधिवेशन में हेमंत सोरेन को कार्यकारी अध्यक्ष भी मनोनीत कर दिया गया है. यानी की पार्टी की पूरी जिम्मेदारी अब से हेमंत के कन्धों पर. शिबू सोरेन बीच-बीच में मार्गदर्शन करते रहेंगे. राहुल गांधी जिसके लिए नाराज होकर अज्ञातवास में चले गए, पर हेमंत सोरेन अपने पिता की चरण धूलि को माथे पर लगा आशीर्वाद पा रहा है. नौजवानों में लोकप्रिय भी है. हाल ही में जब प्रधान मंत्री मोदी के साथ मुख्यमंत्री के रूप में एक ही मंच से भाषण देने की नौबत आयी तो अपने को मोदी जी से तुलना करने से रोक नहीं पाया. हालाँकि ‘मोदी’ ‘मोदी’ के नारों ने इसे भाषण पढ़ते समय भाजपा समर्थक लोगों के द्वारा ‘हूट’ करने की कोशिश भी किया था, पर यह नौजवान बिना विचलित हुए अपने पूरे भाषण को पढ़ सका था. चिल्लानेवाले लोगों को आखिर मोदी जी ने उठकर शांत करने की कोशिश की थी. अर्जुन मुंडा सरकार में उप मुख्य मंत्री रहते हुए हेमंत सोरेन ने अर्जुन मुंडा की ही सरकार गिरा दी और १३ जुलाई २०१३ को कांग्रेस और राजद के सहयोग से झाड़खंड के मुख्यमंत्री बने.
इस अधिवेशन की ब्यवस्था में करोड़ों के वारे न्यारे हुए होंगे. सवाल है कि धन कहाँ से आया. तो श्रीमान जी पिछले सरकार में ये सत्तासीन तो थे ही. इनकी दशहत को हर कोई जानता है. पूंजीपति उद्योगपति घराना भी जानता है. आज नहीं तो कल ये फिर सत्ता में लौटेंगे. ग्रामीण और सुदूर क्षेत्रों में भाजपा से ज्यादा इनके जड़ें मजबूत है. ग्रामीण इलाके के अनपढ़ लोग हरिया, दारू पर बिक जाते हैं और जहाँ कहों वहां बटन दबाकर चले आते हैं. जमशेदपुर के वर्तमान सांसद विद्युत वरण महतो झामुमो में ही थे. काफी बड़ी रकम भेंट में देकर भाजपा में आये थे और मोदी लहर में झारखण्ड विकास मोर्चा के ईमानदार और कर्मठ प्रत्याशी डॉ. अजय कुमार को हराने में कामयाब हुए थे. विद्युत वरण महतो अभी भी कोई अपनी छाप नहीं छोड़ पाये हैं. उससे ज्यादा रघुबर दास और सरयू राय जमशेदपुर में सक्रिय हैं, पहले भी सक्रिय थे.
मोदी के निरंकुशता में कुछ क्षेत्रीय दल तेजी से पनपने लगे हैं या कहें कि अपनी शक्ति का विस्तार करने में लग गए हैं. दिल्ली में केजरीवाल की अभूतपूर्व, अप्रत्याशित सफलता ने बिहार के चुनाव से पहले छ: पार्टियों को मिलने पर मजबूर कर दिया. तो इधर झारखण्ड नाम धारी पार्टियां भी हिलोरें लेने लगी है. इन्होने बिहार में भी अपनी किस्मत आजमाने का फैसला कर अपना विस्तार करने का सपना देख लिया है. इनका कहना है कि अति पिछड़ों, दबे कुचले लोगों का कल्याण यही लोग कर सकते हैं, जब इनके हाथ में सत्ता होगी. भविष्य के गर्भ क्या छिपा है यह अभी से अनुमान लगाना कठिन है, पर मोदी जी और भाजपा की सरकारें अगर जनता की अपेक्षाओं पर खड़ी नहीं उतरती हैं तो जनता को विकल्प तो तलाशने ही होंगे. झाड़खंड में रघुबर दास अभी पूरे मनोयोग से काम में लगे हैं पर अफसरशाही तो हर जगह हावी रहती है. योजनाओं को समय पर पूरा ही नहीं होने देगी. झाड़खंड में मूलभूत सुविधाओं का घोर अभाव है. सड़क, बिजली पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य, उन्नत खेती, सिंचाई की समुचित ब्यवस्था से ये मीलों दूर हैं. जबतक इन सबका विकास नहीं होगा, इस रत्नगर्भा धरती को अन्य राज्यों की तुलना में आने में अभी काफी समय लगेगा. आम आदमी को चाहिए विकास और रोजगार के अवसर, चाहे जो पार्टी या सरकार दे.
- जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर

Monday, 13 April 2015

मोदी सरकार के एक साल (ग्यारह महीने) - एक आकलन

एक साल पहले इकनॉमिक टाइम्स में चैतन्य कालबाग ने लिखा था कि देश के वोटरों के पास बेहतर चॉइस की कमी है। अब हम देख चुके हैं कि सत्ता संभालने के बाद पीएम नरेंद्र मोदी उम्मीदों, निराशा, उपलब्धियों और नाकामियों जैसे तमाम पहलुओं से रूबरू हो चुके हैं। लोगों को जब बदलाव का मौका दिया जाता है, तो वे इकट्ठे होकर इसका इस्तेमाल करते हैं। वे उम्मीद करते हैं कि उनकी जिंदगी नाटकीय रूप से बदलकर बेहतर हो जाएगी। उनके पास खर्च करने के लिए ज्यादा पैसे होंगे, उनकी सुरक्षा बेहतर होगी और सहूलियतें बढ़ेंगी। हर चुनाव उम्मीद की किरण होती है और वोटर इसमें छले जाने को तैयार होते हैं।
फिर कुछ ही दिनों में अहसास हो जाता है कि बदलाव नहीं होगा और अगर थोड़ा-बहुत होगा भी, तो उससे कुछ खास फर्क नहीं पड़ने वाला है। पिछले तीन दशक में पहली बार एक पार्टी के बहुमत वाली सरकार बनने के एक साल बाद कॉन्फिडेंस इंडेक्स के मामले में हम कहां हैं? काफी ज्यादा वक्त और एनर्जी गैर-जरूरी मसलों पर खर्च हो गए। मसलन, तंबाकू के सेवन और कैंसर से इसके लिंक, गोहत्या और बीफ पर पाबंदी जैसे मसलों को कुछ ज्यादा ही तवज्जो मिल रही है।
सभी भर्तियां पीएमओ ऑफिस में केंद्रित हो गई हैं और कई संस्थाएं बिना बॉस के चल रही हैं और इन्हें दुरुस्त करने के लिए सक्रियता नहीं नजर आती। पुरानी रिजीम के स्ट्रक्चर को खत्म करने पर ज्यादा जोर है। आजादी के बाद विकास के लिए गंवाए गए मौकों को लेकर जोर-जोर से अफसोस जताया जा रहा है।
हालांकि, क्या इस सरकार ने जल्द से जल्द काम शुरू करने के लिए मौके का इस्तेमाल किया? क्या भारत का बेहतर भविष्य बनाने के लिए सरकार ने सही दिशा में अगुवाई की? इसका जवाब नहीं है। दरअसल, रेवेन्यू संकट से जूझ रही सरकार ने सामाजिक क्षेत्र पर खर्च में कटौती की है। मोदी सरकार ने केंद्र सरकार की तरफ से प्रायोजित रूरल ड्रिंकिंग वॉटर प्रोग्राम से अपने हाथ खींच लिए हैं।
सरकार ने हेल्थ पर खर्च में 15 फीसदी की कटौती की। ग्रामीण विकास विभाग के बजट में 10 फीसदी की कमी की गई। महिला और बाल विकास मंत्रालय का बजट घटाकर आधा कर दिया गया है। फाइनैंस मिनिस्टर ने एजुकेशन बजट में 16 फीसदी की कटौती ऐेसे वक्त में की है, जब उनके इकनॉमिक एडवाइजर ने इकनॉमिक सर्वे में एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि स्कूलों में छात्रों की संख्या बढ़ने के बावजूद साक्षरता काफी कम है। मिसाल के तौर पर ग्रामीण बच्चों में पांचवीं क्लास के वैसे बच्चों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है, जो बमुश्किल से दूसरे दर्जे की किताब पढ़ सकते हैं। एक ऐसे देश के लिए इसका क्या मतलब है, जिसका मकसद संपूर्ण साक्षरता हासिल करना है।
2014 की लेबर ब्यूरो रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में स्किल्ड वर्कफोर्स की मौजूदा साइज 2 फीसदी है, जबकि साउथ कोरिया में 96 फीसदी स्किल्ड कर्मचारी हैं और जापान का यह आंकड़ा 80 फीसदी है। इकनॉमिक सर्वे में इस बात की संभावना काफी कम बताई गई है कि सरकार 2022 तक अतिरिक्त 12 करोड़ स्किल्ड वर्कर्स का टारगेट हासिल कर पाएगी। दूसरी तरफ, संघ परिवार से जुड़ी विश्व हिंदू परिषद हिंदुओं से ज्यादा से ज्यादा बच्चे पैदा करने की अपील कर रही है, ताकि हिंदुओं की आबादी तेजी से बढ़ सके। क्या आजादी के इतने साल बाद भी हमें देश के सभी नागरिकों के लिए रोटी, कपड़ा और मकान सुनिश्चित करने पर फोकस नहीं करना चाहिए?
हमारे यहां इन दिनों विकास का खूब डंका बज रहा है। सरकार इस बारे में दावे पर दावे कर रही है। अपनी पीठ ठोक लेना आसान है लेकिन असली सफलता तो तब कही जाएगी, जब दूसरे भी हमारा लोहा मानें। सच्चाई यह है कि सामाजिक विकास की अंतरराष्ट्रीय कसौटियों पर हम किसी गिनती में नहीं आते। अमेरिका के सामाजिक शोध संस्थान ‘सोशल प्रोग्रेस इंपरेटिव’ ने दुनिया के 133 देशों के सामाजिक विकास को बताने वाला जो ‘सोशल प्रोग्रेस इंडेक्स’ जारी किया है, उसमें भारत बेहद नीचे 101 वें स्थान पर है। यहां तक कि गरीब पड़ोसी देश बांग्लादेश और नेपाल भी हमसे बेहतर पोजिशन में हैं। नॉर्वे इस सूची में पहले और अमेरिका 16वें स्थान पर है। इस इंडेक्स के लिए सेहत, पानी, सैनिटेशन की सुविधा, सुरक्षा, सहिष्णुता, आजादी और मौकों की उपलब्धता के कुल 52 मानक तय किए गए हैं।
वर्ष 2013 से इस रेंटिंग की शुरुआत हुई। इसमें अलग-अलग मानकों के लिए अलग-अलग रेटिंग है। जैसे सहिष्णुता और समावेशन (इन्क्लूजन) में भारत की रैंक 128 वीं है, जबकि सेहत के मामले में 120 वीं। इस रेटिंग के मानकों को देखें तो साफ पता चलेगा कि जीडीपी, विकास दर या सैनिक साजो-सामान के आधार पर किसी देश को विकसित मान लेने की समझ कहीं न कहीं आंखों देखी हकीकत को झुठलाने का काम करती है। यह सिर्फ प्रभावशाली समूहों को देखती है, सामान्य नागरिकों को नहीं। सही मायने में कोई राष्ट्र विकसित तभी कहला सकता है जब उसके सभी नागरिकों को जीवन की बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध हों और ज्यादातर लोग अपनी जिंदगी से खुश हों। पर इसके लिए पर्याप्त आर्थिक संसाधन के अलावा एक सहज सामाजिक माहौल भी जरूरी है।
कहीं ऐसा न हो कि किसी समुदाय के प्रति फैली कटुता के कारण उसका जीना ही मुहाल हो जाए। इसमें दो मत नहीं कि पिछले कुछ वर्षों में भारत की अर्थव्यवस्था में मजबूती आई है। देश में अरबपतियों की संख्या बढ़ी है। मध्यवर्ग का भी तेजी से विस्तार हुआ है। मैकिन्सी ग्लोबल इंस्टीट्यूट का आकलन है कि वर्ष 2025 तक लगभग 4 प्रतिशत भारतीय मध्यवर्ग भारत के कुल उपभोग का 20 फीसदी हिस्सा हड़प जाएगा। दूसरी तरफ गरीबों की हालत में कोई बदलाव नहीं होता दिख रहा। वे शिक्षा, स्वास्थ्य और दूसरी बुनियादी सुविधाओं से बहुत दूर हैं।
दरअसल एक किस्म की दोहरी व्यवस्था भारत में हर मामले में देखी जा सकती है। निजी क्षेत्र समाज के एक छोटे वर्ग को स्वास्थ्य से लेकर शिक्षा तक सारी सुविधाएं उपलब्ध करा रहा है। लेकिन एक बड़ी आबादी सरकार के भरोसे है, जिसके पास शिक्षा, स्वास्थ्य तथा दूसरे सामाजिक क्षेत्रों के लिए पर्याप्त बजट नहीं है। यही नहीं, इनके लिए जो तंत्र उसने खड़ा किया है, वह प्राय: अक्षम और भ्रष्ट है। इस तरह सोशल डिवेलपमेंट के नाम पर जो भी थोड़ा-बहुत सरकारी खजाने से निकल रहा है, वह रिश्वत के रूप में मध्यवर्ग के पास ही पहुंच रहा है। सरकार को अपनी सामाजिक जिम्मेदारी पर ध्यान देना होगा और अपने सिस्टम को चुस्त-दुरुस्त बनाना होगा। इसके बिना विकास के लंबे-चौड़े दावों का कोई अर्थ नहीं है।
प्रधान मंत्री की रैलियों, रुतबा, देश विदेश में प्रदर्शन और उसके सीधे प्रसारण में करोड़ों रुपये पानी की तरह बहाये जा रहे हैं वहीं बेमौसम बरसात से जो रब्बी की फसलें बर्बाद हुई है किसान आत्महत्या करने को मजबूर हैं उन्हें कहीं कहीं दो सौ रुपये का चेक देकर आंसू पोंछने का स्वांग रचा जा रहा है.वहीं रब्बी फसलों के नुक्सान से जो खाद्यान्नों की कमी होनेवाली है उसकी भरपाई लिए आयात की कोई योजना अभी तक नहीं दिखलाई पड़ रही है. जब जमाखोर लोग दाम बढ़ा देंगे तब खामियाजा आम जन को ही भुगतना पड़ेगा और तब आयात नीति बनाई जाएगी और उसमे भी घपले नहीं होंगे, यह कौन तय करेगा. प्रधान मंत्री लोगों से सब्सिडी छोड़ने की अपील करते हैं, पर अपने साजो सामान में, विदेश भ्रमण में कहीं से भी कमी नहीं दिखाते. विदेशों में भारत को बढ़ा चढ़ा कर पेश कर उनसे उधार लेने की कोशिश की जा रही है. अपने देश में गरीबों के हित की सिर्फ बात होगी, धरातल पर कुछ होता दीखता नहीं. न तो रोजगार के अवसर पैदा हो रहे हैं न ही भूमि सुधार, न वैज्ञानिक खेती के लिए धरातल पर कुछ किया जा रहा है उलटे किसानों से उनकी जमीन हथियाने की साजिश हो रही है. बिजली के उत्पादनऔर वितरण में सुधार, सिंचाई ब्यवस्था में सुधार, ग्रामीण परिवेश में सुधार के के लिए क्या कदम उठाये गए, यह भी सरकार को बताना चाहिए, एक साल पूरा होनेवाला है(अभी एक महीना बाकी है) जनधन योजना की सफलता का डंका तो खूब पीटा जा रहा है, उससे गरीब जनों को क्या फायदा हुआ यह भी बताया जाना चाहिए. महंगाई तो कम होने से रही, कानून ब्यवस्था में भी कहीं कोई सुधार नहीं दीखता. दूर की बात छोड़िये दिल्ली में ही घटनाओं में कितनी बृद्धि हो रही है. महिला सुरक्षा के लिए क्या कदम उठाये गए? आज भी महिलाएं वैसे ही जुल्म की शिकार हो रही हैं. बाहुबलियों के साम्राज्य में कहीं कोई कमी नहीं आयी. साधारण महिला की बात कौन कहे मानव संसाधन विकास मंत्री भी सुरक्षित नहीं हैं और फेब इण्डिया का बचाव खुद गोवा के मुख्य मंत्री कर रहे हैं. वर्तमान भाजपा सरकार में मोदी जी के बाद किसी मंत्री की चर्चा अगर होती भी है, तो उनमे अरुण जेटली के बाद स्मृति ईरानी और अब जनरल वी के सिंह का नाम आया है.
मोदी जी, आपका चमत्कार अगर नहीं दिखा तो दिल्ली जैसे ही बिहार, बंगाल आदि के चुनावों में मुंह की खानी होगी. उम्मीद है आपको अंदाजा होगा ही. विदेशों में भारत की छवि बेहतर हुई है, अमरीका, फ्रांस, यूरोप और दूसरे देशों में स्थित प्रवासी भारतीय भी मेक इन इण्डिया के तहत निवेश करने को तैयार हैं पर माहौल भी तो सुधरना चाहिए. सकारात्मक निवेश कहीं हुआ है क्या. हर साल बढ़ते युवा बेरोजगारों के लिए रोजगार का सृजन हो रहा है क्या ? प्रश्न अभी भी अनुत्तरित है. स्वच्छ भारत अभियान में क्या प्रगति दीख रही है. ट्रेनों में स्थिति बदली है क्या? सार्वजनिक स्थानों के रख रखाव में परिवर्तन दीखता है या सब नारों तक ही सीमित है. शौचालय बनाने के लिए विज्ञापन खूब दिखाए जा रहे हैं पर उनके घरों में जहाँ टी वी भी नहीं है, झुग्गी झोपड़ियों के लिए सार्वजनिक शौचालय बनाये जाने के कार्यक्रम में कितने प्रगति हुई है इन सबका आकलन और जवाबदेही तय होनी चाहिए.
विदेशों में जाकर मोदी जी अपनी ही पीठ खुद से बार बार ठोक रहे हैं. भारत की गरिमा जहाँ बढ़ रही है वहीं आत्मश्लाघा की प्रक्रिया वही पुराने अंदाज में जो कई बार उन्ही शब्दों में वे अन्य मंचों पर कह चुके हैं. परिणाम खुद दीखना चाहिए, जिसे जनता भी वाह वाह करे और दूसरे देश वाले भी. अब फ्रांस से विमान खरीदने वाली बात ही ले लीजिये, जिसे खुद उनके समर्थक और भाजपा के धुरंधर नेता सुब्रमण्यम स्वामी कोर्ट में जाने को कह रहे हैं. हर लम्हे को कैमरे में कैदकर मीडिया में बार बार दिखाना क्या है? एक समय आकाशवाणी और दूरदर्शन को इंदिरा दर्शन और राजीव दर्शन का नाम दिया गया था अभी क्या कहा जाय ? आम आदमी की कमर टूट रही है अच्छे दिन की आश में …महंगाई बेरोजगारी से निजात कब मिलेगी? नक्सलियों, आतंकवादियों, अलगाववादियों, की दहशत कब कम होगी? कब लोग चैन की सांस और नींद ले सकेंगे. माना कोई बड़ा भ्रष्टाचार सामने नहीं आया है, पर दफ्तरों में, थानों में क्या घूसखोरी बंद हो गयी है? इन सब पर फिर से मनन चिंतन और समाधान के लिए सोचना होगा. 

जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर

Monday, 6 April 2015

कैमरा ख़ुफ़िया या सार्वजनिक

वैसे तो केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री प्रारंभिक दिनों से ही सुर्खियों में रही हैं. लेकिन इस बार तो हद ही हो गयी. एक कपड़ों के स्टोर ‘फेब इंडिया’ के ट्रायल रूम में छिपे कैमरे की आँख उनकी तरफ लग गयी. मंत्री की सहायिका की नजर कैमरे पर गयी और वह चिल्लाकर रोने भी लगी. तभी स्मृति ईरानी को अहसास हुआ और उसने अपने पति को फोन किया, गोवा के स्थानीय विधायक को फोन किया, विधायक ने पुलिस को फोन किया और तत्काल चार लोग पकड़ लिए गए. कम्प्यूटर के हार्ड डिस्क भी खंगाल लिया गया, जिससे पता चला कि उसमे पिछले छ: महीने पीछे तक के फोटो कैद थे. वैसे फोटो जो महिलाएं ट्रायल रूम में कपडे बदलते समय जिस अवस्था में होती हैं. कैमरे का फोकस की पहुँच महिलाओं के पेट तक थी यानी कमर के ऊपर के हिस्से का फोटो लिया जा रहा था. चूंकि यह केंद्रीय मंत्री का मामला था, इसलिए आनन-फानन में कार्रवाई हुई और दिल्ली के भी कई दुकानों के ट्रायल रूम की भी तलाशी ली गयी. अगर यह किसी और महिला का मामला होता तो जैसे तैसे निपटा दिया गया होता या उस महिला पर ही चोरी का आरोप लगा दिया जाता.
मामला हाई प्रोफाइल होने पर भी अब कंपनी की तरफ से कहा गया – ‘फैब इंडिया महिला प्रधान संस्थान है और देश से लेकर विदेशों में 70 पर्सेंट एम्पलॉयी महिला हैं. हम महिलाओं की मर्यादा को लेकर बेहद सतर्क रहते हैं. ग्राहक हमारे लिए सुप्रीम हैं. इस मामले में स्टोर स्टाफ से लेकर मैनजर तक किसी तार्किक नतीजे तक पहुंचने के लिए पुलिस को जांच में पूरा सहयोग देंगे. यदि हमारी तरफ से किसी भी तरह की कोई चूक सामने आती है तो किसी को बख्शा नहीं जाएगा’ फैब इंडिया ने कहा कि कंपनी ने अपनी तरफ से भी इस मामले की जांच के लिए तीन एक्जेक्युटिव महिलाओं की टीम बनाई है. शुक्रवार को ईरानी ने इस स्टोर के चेंजिग रूम में गोपनीय कैमरे लगे होने की बात कही थी. वह शुक्रवार को इस शोरूम में खरीदारी के लिए गई थीं. इसके बाद इस स्टोर के चार कर्मियों पर एफआईआर दर्ज की गई थी. शनिवार को गोवा कोर्ट ने इन चारों को जमानत भी दे दी.
स्मृति ईरानी के मुताबिक कैमरे का फोकस ट्रायल करने वाले की तरफ था. ईरानी ने इसकी शिकायत पुलिस में की जिसके बाद पुलिस प्रशासन ने हरकत में आते हुए तत्काल एफआईआर दर्ज की. पुलिस ने फैब इंडिया के मैनेजिंग डायरेक्टर और स्टोर इंचार्ज को सम्मन किया. इस मामले में स्टोर मैनेजर,असिस्टेंट मैनेजर समेत चार लोगों की कोर्ट में पेशी हुई. जहाँ से इन्हें तत्काल बेल भी मिल गयी.
फैब इंडिया ने अपने आधिकारिक बयान में कहा, ‘कैंडोलिम-गोवा के स्टोर में जिस कैमरे की बात की जा रही है तो वह स्टोर में निगरानी व्यवस्था का हिस्सा था और खरीददारी की जगह पर लगाया गया था. ट्रायल रूम सहित स्टोर में कहीं भी कोई भी छुपा हुआ कैमरा नहीं था. ये कैमरे ऐसी जगह लगे हुए हैं जिन्हें हर कोई देख सकता है और सभी स्टोरों में लगे निगरानी कैमरे अच्छी-खासी तरह नजर आते हैं’.
उधर गोवा के बाद अब कोल्हापुर में भी फैब इंडिया के शोरूम से एक कर्मचारी को छिपे कैमरे से तस्वीरें लेने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है. कोल्हापुर के ताराबाई इलाके में फैब इंडिया का शोरूम है जहां के चेंजिंग रूम में ये घटना हुई है. पुलिस के मुताबिक एक लड़की ने इस मामले में कल रात शिकायत दर्ज कराई थी. पुलिस ने आरोपी से वो मोबाइल जब्त कर लिया है जिसके जरिए उसने चोरी से तस्वीरें ली थीं.
अभी हाल ही में दक्षिणी दिल्ली के लाजपत नगर इलाके में ‘वैन ह्यूसन’ के ट्रायल रूम में एक लड़की की सावधानी के चलते उसके साथ दुर्घटना होते-होते बची. मल्टीनेशनल कंपनी में काम करने वाली 23 वर्षीय लड़की जब कपड़े ट्राई करने ट्रायल रूम गई, तो वहां उसने दरवाजे के बीच की दरार में एक मोबाइल फोन देखा. फोन को वीडियो रिकॉर्डिंग मोड पर रखा गया था। लड़की की निगाह जैसे ही मोबाइल पर पड़ी, उसने तुरंत ही हंगामा कर दिया और पुलिस कंट्रोल रूम में फोन भी मिला दिया. इस घटना के तुरंत बाद शोरूम पर छापा मारा गया और स्टोर मैनेजर पुलकित सनवाल को गिरफ्तार कर लिया गया. पुलकित के खिलाफ आईपीसी की धारा 354 के तहत छेड़छाड़ और 354सी के तहत छिपकर किसी महिला को देखने और उसकी निजी तस्वीरें खींचने का मामला दर्ज किया गया है. पूछताछ के दौरान पुलकित ने कुबूला कि फोन उसने खुद ही छुपाया था। लखनऊ का रहने वाला पुलकित एमबीए ग्रेजुएट है और आठ महीने पहले वह बतौर मैनेजर यहां काम करने आया था. पुलिस अब यह पता करने की कोशिश कर रही है कि आरोपी इन रिकार्डेड वीडियो का इस्तेमाल पेशेवर उद्देश्य से कर रहा था या खुद के लिए. हालांकि, आरोपी कुबूल कर चुका है कि वो यह सब सिर्फ अपने लिए निजी तौर पर ही कर रहा था. पुलकित का मोबाइल जब्त कर जांच के लिए एफएसएल भेज दिया गया है, हालाँकि अब पुलकित को भी जमानत मिल चुकी है.
गोवा में भाजपा का शासन है वहां के मुख्यमंत्री लक्ष्मीकांत परेसकर अभी हाल ही में हड़ताली नर्सों से कहा था कि धूप में बैठकर भूख हड़ताल करने से उनका रंग काला पड़ जाएगा जिससे उनकी शादी में दिक्कत होगी. अब वे क्या कहेंगे महिलाओं को कि वे बड़े ब्रांड के स्टोर के चेंज/ ट्रायल रूम में न जाएँ, कहीं उनका फोटो न ले ली जाय(?) जबकि यहाँ पर भुक्त भोगी केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्री हैं.
स्मृति ईरानी इस तरह के बयानों का विरोध करती नजर आयी हैं. संसद में उन्होंने शरद यादव को हाथ जोड़कर उनसे महिलाओं के बारे में अनर्गल टिप्पणी करने से मना किया था. इस बार भी उन्होंने शख्त कदम उठाया है. अब देखना यही है फैब इण्डिया के प्रबंधन पर इसका क्या असर पड़ता है ? UGC को बंद करने की सिफारिश करने वाली मानव संशाधन मंत्री क्या फैब इण्डिया को बंद करा सकती है या ऐसे तमाम शो रूम के ट्रायल रूम, होटलों के बाथ रूम, बेड रूम आदि में लगे छिपे कैमरों की जांच होगी(?) जो लोगों की गोपनीयता की तस्वीरें उतार रही होती हैं. इन तस्वीरों क उपयोग किस स्तर पर होता होगा इसकी कल्पना भी की ही जा सकती है.
उधर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सांसद मीनाक्षी लेखी ने शनिवार को आशंका जताई कि बंगलुरु चल रही पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के कवरेज से ध्यान भटकाने की कोशिश हो रही है. उनका यह बयान एक दिन पहले गोवा स्थित फैबइंडिया के एक स्टोर में ट्रायल रूम के भीतर सीसीटीवी कैमरा होने की खबरों को तवज्जो दिए जाने के बाद आया है, जिसका खुलासा स्वयं केंद्रीय मानव संसाधन एवं विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने किया था. लेखी ने शनिवार को ट्वीट कर कहा, ”मुझे लगता है कि भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक से ध्यान भटकाने की कोशिश की जा रही है. इस तरह की कोशिश की जा रही है. अब तुलसी बाबा की पंक्ति याद आती है – “मोह न नारी नारी के रूपा, पन्नगारि यह चरित अनूपा”. मीनाक्षी जी आप भी अगर मंत्री बनने की क़तार में हैं, तो कोई बात नहीं आप की यह बात मोदी जी तक पहुँच गयी होगी. वैसे गिरिराज सिंह जी अपने बयानों से ही चर्चा में रहते हैं और उन जैसों को मोदी जी खूब पहचानते हैं. गिरिराज सिंह बिहार में भाजपा की जमीन तैयार कर रहे हैं दिल्ली तो अभी दूर है. किरण बेदी जी जरूर समर्थन में नजर आती हैं, और ऐसे दो हजार मामले होने की बात को स्वीकार करती हैं.
महिलाओं के बारे में अक्सर पुरुषों के बयान या नजरिया शर्मनाक होता है, चाहे वे गिरिराज सिंह हों, या दिग्विजय सिंह, मोहन भागवत हों या विजय वर्गीस, श्री प्रकाश जायसवाल हो या शरद यादव. इसे भी गंभीरता से लिया जाना चाहिए ताकि महिला सम्मान बना रहे. यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता.
– जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर

Friday, 3 April 2015

मेरे मित्र प्रकाश कुमार मिश्रा, आप कहाँ हो?

मेरे मित्र प्रकाश कुमार मिश्रा, आप कहाँ हो?
आज अंतर्जाल की सिमटती दुनियां में नित्य नए मित्र बनते है, बिछुड़ते हैं, फिर मिल जाते हैं. वहीं काफी पुराने मित्रों से मिलना बड़ा मुश्किल लगता है. गांव के मित्र, स्कूल के मित्र, कॉलेज के मित्र विभिन्न कार्यस्थलों के मित्र, विभिन्न निवास-स्थलों के मित्र बनते हैं, बिछुड़ते हैं. फिर अचानक कभी मुलाकात हो जाती है, एक दूसरे को असमंजस की स्थिति में देखते हैं, बड़ी हिम्मत जुटाकर पूछते हैं, अगर पुराने जान पहचान के मित्र मिल गए तो बड़ी प्रसन्नता होती है. अगर पुराने न भी हुए तो नए सम्बन्ध तो बन ही जाते हैं.
आज संचार के माध्यम काफी विकसित हुए हैं. चिट्टी-पत्री की जगह इ मेल और मोबाइल मैसेज ने ले ली हैं. फिर भी मुझे लगता है कि अभी काफी लोग, खासकर मेरे समय के लोग, मेरे परिवेश के लोग, अभी भी काफी कम ही इससे जुड़ पाये हैं. आजकल के नौजवान अगर गांव में भी हैं तो भी मोबाइल के द्वारा जुड़े हैं.
इतना सब कुछ लिखने के पीछे मेरा सिर्फ एक ही मकसद है मेरे प्रिय मित्र प्रकाश कुमार मिश्रा की खोज करना. 
हम दोनों की मुलाकात बिन्देश्वर सिंह कॉलेज, दानापुर में ही हुई थी. हमलोग केमिकल लैब में अपना परिचय अपने प्राध्यापक को दे रहे थे. मैंने कहा – मैं भूमिहार ब्राह्मण हायर सेकेंडरी स्कूल, बक्सर से मैट्रिक पास किया हूँ . ‘बक्सर’ का नाम सुनते ही प्रकाश मेरे पास आये और मेरे बारे में पूरी जानकारी हासिल की. फिर हमदोनो एक दूसरे के अच्छे मित्र बन गए. दो और मित्र एक दिनेश कुमार सिंह और दूसरा राजकुमार गुप्ता यानी कि हम चार की चांडाल चौकड़ी बन गयी. राजकुमार गुप्ता तो दानापुर में ही रहते थे. पर हम तीनों यानी मैं, प्रकाश और दिनेश खगौल से बस के द्वारा आना जाना करते थे. मैं और दिनेश रेलवे की लोको कॉलोनी में रहते थे और प्रकाश खगौल बाजार के पास प्राइवेट घर में भाड़ा में रहते थे. प्रकाश के पिताजी. एल आई सी में काम करते थे. प्रकाश और मुझमे घनिष्ठता बढ़ती गयी और हम दोनों एक दूसरे के घर आने जाने लगे… इस तरह पारिवारिक सम्बन्ध भी स्थापित हो गया. पर यह सम्बन्ध दो साल ही चला, यानी कि इंटर की पढाई तक. (१९७४ से १९७६ तक)
प्रकाश की याद इसलिए भी अधिक है क्योंकि वे किसी भी काम में मेरा साथ देते थे. हंशी-खुशी और गम के मौके पर भी हमने एक दूसरे का साथ निभाया. मुझे आज भी वह दिन अच्छी तरह याद है, जब मेरे पिताजी गंभीर बीमारी से ग्रस्त थे और रात भर पेट दर्द से परेशान थे. उनका इलाज पटना PMCH के डॉ. श्याम नारायण आर्य से चल रहा था. डॉ. श्याम नारायण आर्य की प्राइवेट क्लिनिक गोविन्द मित्र रोड में थी, जहाँ वे शुबह आठ बजे से बैठते थे. पिताजी रात भर इतना बेचैन थे कि मैं शुबह के चार बजे ही एक ऑटो बुलाकर, उन्हें उसपर बिठाकर पटना के लिए रवाना होने वाला था. तभी सोचा कि क्यों न अपने मित्र प्रकाश कुमार मिश्रा को भी साथ लेता चलूँ…. और मैंने ऑटोवाले को प्रकाश के घर चलने को कहा. प्रकाश अभी सोये ही थे. उनको जगाकर मैंने अपनी परेशानी बताई और वे तुरंत तैयार होकर मेरे साथ चल दिए. करीब साढ़े छ: बजे शुबह तो हम डॉ. श्याम नारायण आर्य के क्लिनिक में पहुँच भी गए थे. पर डॉ. को तो आठ बजे के बाद ही आना था. चाहे जो हो हम सबको इंतज़ार करना ही था. कुछ और पेसेंट आने लगे थे. तब तक पिताजी के दर्द में भी कुछ कमी होने लगी थी. हम दोनों (मैं और प्रकाश कुमार मिश्रा) ने वहीं पास की चाय दुकान से नीम्बू वाली चाय पी और डॉ के आने का इंतज़ार करते रहे. डॉ. चूंकि पिताजी की बीमारी के बारे में जानते थे, इसलिए आते ही उन्होंने पहले पिता जी की जांच की, आवश्यक दवाइयाँ लिखी और कुछ जांच भी कराये. पिता जी कुछ ठीक महसूस करने लगे थे. पर वे डॉ. की निगरानी में थे और हमदोनो डॉ. के आदेश का निरंतर पालन कर रहे थे. शुबह चार बजे से दोपहर तीन बजे तक हम दोनों सिर्फ कई बार नीम्बू की चाय और पानी ही पीकर रह रहे थे. खाने की इच्छा भी नहीं हो रही थी. वह मेरे लिए आज भी अविश्मरणीय दिन था. हालाँकि अंग्रेजी दवा से परहेज करनेवाले पिताजी अपनी जिंदगी में पहली बार गंभीर रूप से बीमार पड़े थे और ठीक होते होते आखिर अपनी अवधि पूरी कर इस दुनियां से गुजर गए.पर हर दुःख सुख में साथ खड़ा रहनेवाला ऐसा दोस्त बहुत कम ही मिलता है आज के स्वार्थी संसार में. तब मेरे और प्रकाश के बीच न ही कोई स्वार्थ था नहीं कोई दैहिक रिश्ता ..पर था अटूट बंधन. मैं अपनी नौकरी ढूढते ढूढते टाटानगर (जमशेदपुर) आ गया. प्रकाश के बारे में सिर्फ इतना ही मालूम हो सका कि वे शायद रेलवे में नौकरी पा गए थे. पर फिर उनसे कोई सम्पर्क न रहा. शुरू के दिनों में एकाध बार पत्राचार हुआ था. फिर कहाँ हम कहाँ वे. मैंने अंतर्जाल पर, फेसबुक पर काफी सर्च किया पर आज तक नहीं मिल सके हम दोनों. मैं इस आलेख को विभिन्न मंचों पर डालकर देखता हूँ, शायद वे या उनको जाननेवाले कोई भी ब्यक्ति उनके बारे में बता सके. प्रकाश कुमार मिश्रा मूलत: बक्सर (पांडे पट्टी) के निवासी हैं उनके एक चचेरे भाई आशुतोष मिश्र पटना के गर्दनीबाग में रहते थे, मैं उनके घर भी जा चूका हूँ. इससे ज्यादा जानकारी अब मुझे याद नहीं है.
जवाहर लाल सिंह, साकची, जमशेदपुर 09431567275 jlsingh452@gmail.com

किसको रोऊँ मैं दुखड़ा ?



ग्रीष्म में तपता हिमाचल, घोर बृष्टि हो रही
अमृत सा जल बन हलाहल, नष्ट सृष्टि हो रही
काट जंगल घर बनाते, खंडित होता अचल प्रदेश
रे नराधम, बदल डाले, स्वयम ही तूने परिवेश
धर बापू का रूप न जाने, किसने लूटा संचित देश
मर्यादा के राम बता दो, धारे हो क्या वेश
मोड़ी धारा नदियों की तो, आयी नदियाँ शहरों में
बहते घर साजो-सामान, हम रात गुजारें पहरों में.
आतुर थे सारे किसान,काटें फसलें तैयार हुई
वर्षा जल ने सपने धोये, फसलें सब बेकार हुई
लुट गए सारे ही किसान,अब नहीं फायदा खेती में
मिहनत करते हाड़ तोड़ते, बीज मिट गए सेती में.
इससे अच्छा लो जमीन अब, रोजगार दो मुझको भी,
काम महीने भर करावा लो, दो पगार अब मुझको भी
चाहे कोई खेल खेला लो, गीत खुशी के गाऊंगा
चला मशीनें घर आऊंगा, बच्चों के संग खाऊँगा
कुछ भी कर लो मेरे आका, नहीं सहन अब होता है
नही चाहता मरना असमय, बच्चों का दुख होता है
ऐसी क्या सरकार बनेगी, समझे ऐसे मसलों को
लागत पर ही मूल्य नियत हो, बीमित कर दे फसलों को
हम भी आखिर मतदाता हैं, कहलाते हैं अन्नदाता ,
नारों से न पेट भरेगा, हमें समझ में है आता
मिहनतकश हूँ सो लेता हूँ, चाहे बिस्तर हो रुखड़ा,
नहीं बुझेगी जठराग्नि तो, किसको रोऊँँ मैं दुखड़ा?
- जवाहर लाल सिंह