Wednesday, 18 March 2015

जाए तो जाए कहाँ ?

जाये तो जाए कहाँ, समझेगा कौन यहाँ दर्द भरे दिल की जुबाँ
कांग्रेस को मिली है सजा, सपने दिखा आयी भाजपा, कुछ दिन तो ढोल बजा.
जाए तो जाए कहाँ,
कहते थे, सुनते थे, अच्छे दिन, अब आएंगे, अब कहते, वो था जुमला
जाए तो जाए कहाँ,
झाड़ू पकड़ी, फावड़ा उठा, भाषण सुन ताली भी बजा, ‘ बैंक खाता’ भी खूब खुला
जाए तो जाए कहाँ,
लाख पंद्रह नही आएंगे, संचित धन, भी जायेंगे, ‘कर’ सेवा का भी है बढ़ा.
जाए तो जाए कहाँ,
भाजपा से मोह घटा, आम आदमी खोजे रास्ता, सौदागर, हर कोई हैं यहाँ
जाए तो जाए कहाँ,
टोपी पहन आया केजरी, मफलर भी बाँधा केजरी, खांसी से रहा वो परेशां
जाए तो जाए कहाँ,
आम आदमी समझा नहीं, धारा में बहा ‘मत’ भी, अब जाकर भेद खुला
जाए तो जाए कहाँ,
अपन करम, अपना धरम, करने में, नहीं हो शरम, कहिये सभी सच्ची जुबाँ
जाए तो जाए कहाँ,


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