Sunday, 29 March 2015

जो भी हुआ, गलत हुआ

क्रिकेट के विश्व कप का खुमार भारतीय जनमानस से उतर चुका है. भारतीय टीम अब घर लौट चुकी है. राष्ट्र धर्म और अकूत मनोरंजन वाला महंगा खेल ही भारतीयों में राष्ट्रधर्म की मदिरा पिलाता है. भारत जब तक जीतता रहता है, खिलाड़ियों की खूब प्रशंशा होती है, पर हारने के बाद आक्रोश भी वैसा ही दीखता है…. खैर सायना नेहवाल ने यह कमी पूरी कर दी… ऐसा कारनामा करने वालीं वह भारत की पहली महिला खिलाड़ी भी बन गई हैं. इंडियन ओपन बैडमिंटन टूर्नामेंट के सेमीफाइनल में पहुंचने के साथ ही वह नंबर एक रैंकिंग के काफी करीब आ गई थीं.उसने वर्ल्ड चैंपियन कैरोलिना मैरीन को हराकर यह मुकाम हासिल कर ली. सेना नेहवाल को आज भारतीय जनमानस तहेदिल से बधाई दे रहा है.
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विश्व कप का खुमार भले ही भारतीय जन-मानस से उतर चुका है. पर आम आदमी पार्टी के अन्दर मचे घमासान का रोमांच भी कम नहीं चल रहा. स्टिंग का पाठ पढ़ाने वाले खुद ही स्टिंग का शिकार हो गए. फोन पर गुस्से में ऐसी भाषा बोल गए जिसे असंसदीय कहा गया और केजरीवाल ने इतने दिनों की कमाई हुई खुद की इज्जत को धूल में मिला दिया. उन्होंने जो चाहा था, कर के दिखा दिया. उनके पास समर्थकों की फ़ौज है, पर आम कार्यकर्ता इन सब के लिए तैयार तो नहीं था. उसे अपने नेता पर गर्व था, पर अब वह शर्म महसूस कर रहा है. इसे ही कहते हैं शायद पावर का अहंकार, दंभ और हिटलर शाही.
आपकी आईआईटी की पृष्ठभूमि, आपका आम आदमी की तरह कपड़े पहनना और वैसे ही उठना-बैठना, ये सब उन्हें आश्वस्त करता था. मगर पिछले कुछ दिनों के घटनाक्रम ने सब कुछ बदल दिया है. जिस तरह आपकी पार्टी में एक के बाद एक स्टिंग हुए और उनमें खुद आपको अपने साथियों के लिए अभद्र भाषा का इस्तेमाल करते सुना और फिर जैसी अलोकतांत्रिक प्रक्रिया अपनाकर योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण को पार्टी के विभिन्न पदों से निकाला गया, यह सब देखने के बाद देश भर के नौजवान वॉलंटियरों की आंखों के आगे जल रही उम्मीद की लौ बुझ सी गई है.
हर समय मीडिया में बने रहने वाले अरविन्द केजरीवाल अब मीडिया के सामने आने से कतराने लगे. अपनी बात को ट्वीट कर भी नहीं जाहिर किया. कुमार बिश्वास भी २८ तारिख की घटनाक्रम में लगभग शांत ही दिखे. संजय सिंह और मनीष सिसोदिया मीडिया को ब्रीफिंग देते रहे पर सवालों से कतराते रहे. सारा मीडिया ग्रुप और राजनीतिक विश्लेषक अरविंद केजरीवाल के इस आत्मघाती कदम से चिंतित दिखे. आखिर क्या हो गया है, इस अधिनायकवादी नेता को? वो केवल अपने आसपास चापलूसों का गिरोह ही रखना चाहता है? जो उसका विरोध करेगा, उसे बाहर का रास्ता दिखा दिया जायेगा.?
अब्राहम लिंकन ने कहा था कि लगभग हर आदमी मुसीबतों का सामना कर सकता है, लेकिन अगर आपको किसी के चरित्र की असली परीक्षा लेनी हो, तो उसे पावर देकर देखो। तो हम यह क्यों न मानें कि पावर हाथ में आने के बाद यह आपके भी इम्तिहान की घड़ी थी और आप इसमें फेल हो गए. फेल इसलिए क्योंकि अगर आप चाहते तो अपने अहम और अहंकार को पीछे रख, पार्टी के हितों को आगे रखते और कोई ऐसी राह निकालते कि यादव और भूषण भी साथ ही बने रहते. आपके पास एक बड़ा, नि:स्वार्थी और दूरदर्शी नेता बनने का ऐतिहासिक मौका था, जिसे आपने गंवा दिया.
प्रश्न यही उठता है कि क्या अब भारतीय जनता कोई नयी राजनीति के बारे में सोच सकती हैं क्या? लोकनायक जयप्रकाश के आंदोलन के बाद जनता पार्टी, राष्ट्रीय मोर्चा, तीसरा मोर्चा का हस्र लोगों ने देखा हुआ है, अब अन्ना आंदोलन से जन्मे आम आदमी पार्टी का अंजाम भी वही हुआ ऐसा लग रहा है. ज्यादा जोगी मठ उजाड़. सभी पढ़े-लिखे लोग, राजनीति से दूर रहने वाले एक राजनीतिक पार्टी बनाते हैं. ईमानदारी और पारदर्शिता का दम भरते हैं. जनलोकपाल का सपना दिखाकर भ्र्ष्टाचार को जड़ से समाप्त करने का दवा करते हैं …. एक बार नहीं, तो दुबारा अविश्वसनीय, अकूत बहुमत पाकर अहकार के वशीभूत हो जाते हैं, जबकि खुले मंचों से इंसान का इंसान से भाईचारा का सन्देश देते हैं. जनता की हक़ की बात करने वाले, पारदर्शिता की बात करने वाले, शुचिता की बात करने वाले, वही सब कुछ करने लगते हैं, जो पूर्व की पार्टियां करती रही हैं. दूसरी पार्टियां कुछ साल कुछ पारी झेल पाई, पर यह तो पहली पारी में ही हिचखोले खाने लगे हैं. पहली बार ४९ दिन का सत्तासुख और अब तो पांच साल के लिए जिम्मेदारी मिल चुकी है. कुछ अच्छा कर रहे थे, ऐसी खबरें आ रही थी. पर अब जो मैसेज पूरे देश को गया है, क्या यह पार्टी दूसरे राज्यों में अपने पैर फैला सकेगी? क्या यह नयी राजनीति का बीजारोपण कर पाएगी या दिल्ली तक एक क्षेत्रीय पार्टी बन कर रह जाएगी. दिल्ली की समस्यायों से निपटना भी इनके बस की बात तो है नहीं, जब तक केंद्र इन्हे मदद नहीं करेगा?…. और अब इन हालातों में केंद्र इन्हे क्यों मदद करेगी. इन्होने अपने कुछ मजबूत खम्भे को हटा दिया है,बाकी खम्भे कब तक ठीक रहेंगे. इन सब अंतर्कलहों से ऊब कर अंजलि दमानिया और अब मेधा पाटेकर ने भी पार्टी की सदस्यता से इस्तीफ़ा दे दिया है. बहुत सारे कार्यकर्ता निराश हैं. कोई यह नहीं बता रहा है कि आखिर पार्टी के पदों से हटाए गए लोगों की गलती क्या थी? पार्टी विरोधी गतिविधि अगर थी, तो उसके प्रमाण कहाँ हैं? उन्हें भी अपनी बात रखने, स्पष्टीकरण देने का मौका दिया जाना चाहिए था पर यह तो जैसे पहले से तय था और जो कुछ नाटक किया गया उसे सबने दिखावा माना. उनके चाँद समर्थकों को छोड़कर …
केजरीवाल के बंगलोर से लौटने के बाद ऐसा लगा था, मामला सुलझने की ओर है… प्रशांत भूषण और योगेन्द्र यादव थोड़े नरम हुए थे, लेकिन अरविंद तो जैसे अपनी जिद्द के अनुसार पहले ही फैसला ले चुके थे और और उसने अपने फैसले को अमलीजामा पहना दिया.
राजनीति में इतना गुस्सा भी जायज नहीं है, यह उनके राजनीतिक अपरिपक्वता को ही दर्शाता है. वैसे भी प्रशांत भूषण, योगेन्द्र यादव, प्रोफ़ेसर आनंद कुमार और अजित झा के समर्थक इतनी जल्दी हार मान जायेंगे ऐसा लगता नहीं है. कोई न कोई रणनीति फिर बनेगी कुछ और सदस्य टूटेंगे उनके साथ आएंगे या वे फिर एक नयी पार्टी बनाएंगे अभी कुछ भी कहाँ जल्दबाजी होगी लेकिन जो भूचाल आया है उसे शान हो गया समझाना भी भूल होगी मेरे ख्याल से .
एक पपीते का पेड़ एक साल में इतना बड़ा हो जाता है कि फल भी देने लायक हो जाता है.दूसरे साल भी वह फलता है पर तब उसके फल छोटे हो जाते हैं. पपीता का पेड़ दूसरे साल या दूसरे फल के बाद धराशायी हो जाता है…. वैसे अरविंद केजरीवाल को भी पपीता पसंद है. डॉ. उसे पपीता खाने की सलाह भी देते हैं और लोग उसे गिफ्ट में भी पपीता ही देते हैं. अब पपीते से इतना लगाव रखनेवाले आदमी की रचनात्मकता यही देखने में आई है कि ज्यादातर वे दो साल ही एक काम को बखूबी कर पाये हैं, उसके बाद रास्ता बदल लेते हैं. …पर पपीते के अंदर बीज बहुत होते हैं और उस बीज से पुन: नए पौधे तैयार होते हैं. एक परिवर्तन की हवा चली है. कांग्रेस को हरा भाजपा सत्ता में आई. यहाँ भी मोदी जी ही प्रधान नायक रहे और अपनी ही मनमर्जी फैसले लेते रहे. अपनी वक्तृत्वकला से लोगों को लुभाते रहे पर नौ महीनों के अंदर ही जनता ने उन पर भरोसा करना छोड़ दिया, फलस्वरूप केजरीवाल की आम आदमी पार्टी दिल्ली में सत्तासीन हुई …परिणाम सबके सामने है. अब आगे क्या होगा भविष्य के गर्भ में है या डार्विन के सिद्धांत के अनुसार अपने आप विकास होता है, होता रहेगा. या फिर गीता के अनुसार हम सब तो निमित्त मात्र हैं. जो होना है होकर ही रहेगा. सारे खेल का सूत्रधार अदृश्य रहकर अपनी कठपुतलियों को नचाता रहता है. चित्रगुप्त महाराज के पास सारा लेखा-जोखा है. या फिर कह सकते है, जनता ही जनार्दन का रूप होती है. लोकतंत्र की चाभी उसी के पास है, लेकिन वह करे तो क्या करे. जिसको चुनती है वही धोखेबाज निकल जाता है …इसलिए सहनशील बनो और सबकुछ सहते रहो. आम आदमी हो अपनी औकात में रहो. समरथ को नहीं दोष गुंसाईं .
भारत रत्न पुरस्कार से सम्मानित वयोवृद्ध लोकप्रिय नेता अटल बिहारी बाजपेयी का कहना था- हम रहे न रहें यह देश रहना चाहिए और इस देश में लोकतंत्र रहना चाहिए. लोकतंत्र तो जिन्दा है. जितनी बार भी इसे दबाने की कोशिश हुई है यह और भी निखरे हुए रूप में प्रकट हुआ है. 

- जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर

Saturday, 21 March 2015

क्रिकेट का जूनून और भारत



भारत में क्रिकेट खेल को राष्ट्रधर्म की तरह देखा जाता है. क्रिकेट की दुनियां में भारत, पाकिस्तान, बांग्ला देश, श्रीलंका, ऑस्ट्रेलिया, साउथ अफ्रीका, इंग्लॅण्ड, आयरलैंड, न्यूजीलैंड, अफगानिस्तान, स्कॉटलैंड, वेस्ट-इंडीज, जिम्बाब्वे, यु. ए. ई. आदि का प्रमुख नाम है. इन देशों की टीमें ही इस बार विश्व कप में भाग ले रही हैं. किकेट का जितना कवरेज और जूनून भारत के साथ पड़ोसी देशों पाकिस्तान, बांग्लादेश, और श्रीलंका में देखा जाता है शायद उतना दूसरे देशों में नहीं – यह मेरा आकलन है. यहां के लोग जूनून की हद तक क्रिकेट मैच देखते हैं और अपने अपने देश के जीत की कामना भी करते है. अपने देश के टीम को जीतने पर जिस प्रकार खिलाडियों को सर पे चढ़ाते हैं, हार के बाद उसी तरह का गुस्सा/आक्रोश भी दिखाते हैं. कभी कभी वे लोग टी. वी. सेट तोड़ कर भी अपना आक्रोश प्रकट करते हैं, जो कहीं से भी जायज नहीं है. क्रिकेट डिप्लोमेसी के भी कई रूप देखने को मिले हैं. भारत पाकिस्तान के बीच सम्बद्ध सुधारने की दिशा में भी इसे अपनाया गया है. आपको याद होगा कि भारत के प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह और पाकिस्तान के प्रधान मंत्री युसूफ रजा गिलानी दोनों ने एक साथ बैठकर २०११ का क्रिकेट मैच मोहली में देखा था. इसे भारत और पाकिस्तान के बीच सम्बन्ध सुधारने की दिशा में एक कदम बताया जा रहा था.इस बार भी भारत और पाकिस्तान के साथ पहला मैच १५ फरवरी को था और वर्तमान प्रधान मंत्री नवाज शरीफ को शुभकामना भी दी थी और क्रिकेट डिप्लोमैसी की तरफ एक कदम बढ़ाने की कोशिश की थी. अरविन्द केजरीवाल दिल्ली के सी एम के रूप में पहले की गयी घोषणा के अनुसार १५ फरवरी को शपथ लेने वाले थे पर भारत पाकिस्तान के साथ उसी दिन मैच होने के कारण उन्होंने (अरविन्द केजरीवाल ने) अपना शपथ ग्रहण समारोह १४ फरवरी को रक्खा था ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग रामलीला मैदान में जुट सकें.
मुझे तो लगता है कि इतना इंटरेस्ट वर्तमान प्रधान मंत्री के भाषण में भी नहीं होता होगा जितना क्रिकेट मैच में होता है. अब भारत और बंगला देश के बीच जो क्वार्टर फाइनल मैच हुआ उस दिन सड़कें सूनी थी, बाजार खाली थे. लोग बिना ब्रश किये, बिना नहाये शुबह से ही टी वी के सामने चिपक कर बैठ गए थे. हर समाचार चैनेल मैच पर ही परिचर्चा दिखा रहे थे. उस दिन कहीं कोई खबर नहीं थी न तो कही कोई चोरी-डकैती या दुष्कर्म की वारदात हुई, नहीं आतंकी हमला हुआ. भारत पाकिस्तान की सीमा पर भी शांति बनी रही. यहाँ तक कि जनता एक्सप्रेस भी दुर्घटना करने के लिए एक दिन रुकी रही, दूसरे दिन ही दुर्घटना ग्रस्त हुई और दूसरे दिन ही जम्मू कश्मीर में आतंकवादी घुसपैठ की कोशिश हुई. कुछ हमारे जवान शहीद हुए और कुछ आतंकवादी मारे गए. उधर बंगला देश के हारने पर आईसीसी प्रेसिडेंट मुस्तफा कमाल ने भी इस बात की आशंका जताई कि क्वॉर्टर फाइनल मं भारत को फायदा पहुंचाने के लिए गलत अम्पायरिंग का सहारा लिया गया. बंगला देश की पीएम शेख हसीना ने यहां तक कह दिया कि अगर अंपायरिंग में एक भी गलती न हुई होती तो भारतीय टीम बांग्लादेश को नहीं हरा पाती. कमाल ने कहा था कि अम्पायरिंग ने एक के बाद एक सारे फैसले बांग्लादेश के खिलाफ सुनाए. कमाल बांग्लादेश क्रिकेट बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष हैं.
आईसीसी ने हालांकि कमाल के इस बयान पर सख्त आपत्ति जताई और कहा कि उन्हें सोच-समझकर बयान देना चाहिए था. आईसीसी के सीईओ डेव रिचर्ड्सन ने यहां तक कह दिया कि मुस्तफा कमाल का बयान काफी दुर्भाग्यपूर्ण था.
पत्रकार रवीश kumar लिखते हैं – 40 साल का किसान राम नारायण कहाँ हार मानने वाला था. साल दर साल फ़सलें बर्बाद होती रहीं, तब भी उसने खेती नहीं छोड़ी. नुक़सान की भरपाई के लिए तीन बीघा खेत बेच दिया. तब भी खेती नहीं छोड़ सका. बँटाई पर ज़मीन लेकर फिर खेती की. इस बार मौसम ने उसकी उम्मीदों पर हमला कर दिया. चालीस साल का राम नारायण आज फिर खेत पर गया. जिस दिन भारत जीत गया, उसी दिन राम नारायण अपना क्वार्टर फ़ाइनल हार गया. उसने फाँसी लगा ली. कानपुर के प्रतापपुर गाँव की यह ख़बर मेरे सैंकड़ों ई-मेल के बोझ से दबकर एक और मौत मर गई. पर लगता है कि राम नारायण ने टीवी नहीं देखा होगा, जिसमें नेता बोल रहे थे कि भूमि अधिग्रहण बिल से किसानों का विकास होगा और मुआवज़े के एलान से राहत पहुँचेगी. श्रद्धांजलि! – रवीश कुमार
अकसर कहा जाता है कि पड़ोसी देशों से संबंध सुधारने के लिए उनके साथ क्रिकेट का खेल जारी रहना चाहिए। पर इस खेल में पर्दे के पीछे चल रहा खेल कहीं दो पड़ोसी देशों के संबंध में जहर न घोल दे….विश्व-कप के क्वार्टर-फाइनल में भारत ने बांग्लादेश को हराया तो आईसीसी के चेयरमैन मुस्तफा कमाल ने अंपायरिंग को अत्यंत खराब बताते हुए कहा कि भारत को जिताने की नीयत से अंपायरिंग की गयी। ऐसा लग रहा था कि अंपायर मन में कुछ रखकर मैदान में उतरे हैं। क्रिकेट को नियंत्रित करने वाली विश्व की सबसे बड़ी कुर्सी पर बैठे व्यक्ति का ये बयान आये तो हारने वाली टीम के देश में बवाल मचना स्वाभाविक है, ये बवाल तेज होता जा रहा है।
कई बार पहले भी ऐसी बातें आ चुकी हैं कि क्रिकेट में फिक्सिंग का रोग बहुत ऊपर तक पहुंच चुका है। भारत से होने वाली जबरजस्त कमाई से चूंकि दुनिया के अन्य तमाम क्रिकेट बोर्ड और खिलाड़ी भी लाभान्वित होते रहे हैं, इस कारण ज्यादातर लोग चुप्पी साधे रहते हैं.
आईसीसी के चेयरमैन के बयान से क्या अब इस बात पर भी गौर करने का समय आ गया है कि फिक्सिंग की इस बीमारी से विश्व-कप भी अछूता नहीं बच पाया है. ये बीमारी यदि है, तो कहीं ये दो पड़ोसी देशो के संबंधों में जहर न घोल दे!
क्या क्रिकेट सचमुच सारी समस्यायों का हल है? अगर क्रिकेट मैच होता रहे तो लोग अपनी सारी समस्यायों को भूल बस क्रिकेट मैच ही देखते रहेंगे. १२ हजार महीने की नौकरी करने वाला राम पदारथ क्रिकेट के सट्टे में महीने भर की कमाई हार गया. पिछली बार उसने आठ हजार जीते थे, इसलिए इस बार पूरी सैलरी दाँव पर लगा गया. क्रिकेट में सटोरिये खूब सट्टे लगाते हैं और करोड़ों के वारे न्यारे होते हैं. अब फ़िल्मी कलाकार अमिताभ बच्चन से लेकर रणबीर कपूर तक क्रिकेट की कमेंट्री कर अपनी फिल्मों का प्रोमोसन करते हैं. शिल्पा सेट्टी, प्रीती जिंटा, शाहरुख़ खान, जूही चावला, आदि फ़िल्मी आर्टिस्ट और सुब्रत राय, विजय माल्या. मुकेश अम्बानी आदि आईपीएल में पैसा लगाने लगे हैं. क्रिकेट प्लेयर की बोली करोड़ों में लगाई जा रही है. आखिर कितनी कमाई होती है इस क्रिकेट मैच से.
भारतीय टीम के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी भले ही अपनी कॉलेज की पढाई पूरी न की हो पर उससे क्या फायदा होता, जो आज क्रिकेट में हो रहा है. युवराज सिंह जिसने पिछले विश्व कप में भारत को जिताने के लिए कैंसर से लड़ गया था, इस बार विश्व कप के टीम चयन नहीं होने से नाराज था और आईपीएल के लिए १६ करोड़ में बिक गया. सबसे महंगे और दुर्लभ सितारे होते हैं, ये क्रिकेट प्लेयर. इन पर युवतियां जान छिड़कती हैं. इनकी शादियाँ क्रिकेट के मैदान में ही तय हो जाती है.
मैं अपने गली मुहल्ले में बच्चों, नौजवानों को क्रिकेट खेलते देखता हूँ, तो उनमे मुझे धोनी, सौरभ तिवारी, विराट कोहली, युवराज सिंह, सुरेश रैना नजर आते हैं. भगवान उन सभी बच्चों का भविष्य उज्जवल करें और देश भी आगे और आगे बढ़ता जाय! बार बार विश्व विजेता बने. बस दो कदम की दूरी पर है विश्व कप …हम सभी बड़ी बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हैं आखिर तीसरी बार हम जीत पाएंगे न विश्व कप!
- जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.

Wednesday, 18 March 2015

जाए तो जाए कहाँ ?

जाये तो जाए कहाँ, समझेगा कौन यहाँ दर्द भरे दिल की जुबाँ
कांग्रेस को मिली है सजा, सपने दिखा आयी भाजपा, कुछ दिन तो ढोल बजा.
जाए तो जाए कहाँ,
कहते थे, सुनते थे, अच्छे दिन, अब आएंगे, अब कहते, वो था जुमला
जाए तो जाए कहाँ,
झाड़ू पकड़ी, फावड़ा उठा, भाषण सुन ताली भी बजा, ‘ बैंक खाता’ भी खूब खुला
जाए तो जाए कहाँ,
लाख पंद्रह नही आएंगे, संचित धन, भी जायेंगे, ‘कर’ सेवा का भी है बढ़ा.
जाए तो जाए कहाँ,
भाजपा से मोह घटा, आम आदमी खोजे रास्ता, सौदागर, हर कोई हैं यहाँ
जाए तो जाए कहाँ,
टोपी पहन आया केजरी, मफलर भी बाँधा केजरी, खांसी से रहा वो परेशां
जाए तो जाए कहाँ,
आम आदमी समझा नहीं, धारा में बहा ‘मत’ भी, अब जाकर भेद खुला
जाए तो जाए कहाँ,
अपन करम, अपना धरम, करने में, नहीं हो शरम, कहिये सभी सच्ची जुबाँ
जाए तो जाए कहाँ,


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Monday, 16 March 2015

आखिर हम कहाँ जाएँ?

जब कांग्रेस यानी यु पी ए -२ का भ्रष्टाचार सर चढ़कर बोलने लगा और भरतीय जनता को मोदी नीत भाजपा से आशा बंधी, भारतीय जनमानस ने उन्हें अभूतपूर्व बहुमत दिया. केंद्र के साथ कई राज्यों में भी सत्ता सौंपी. मोदी जी देश-विदेश में अपनी जीत का डंका बजाते रहे, भारतीयों को आशा बंधाते रहे कि अब अच्छे दिन आ गए हैं. अच्छे दिन का मतलब आम जनता मानती है- महंगाई से निजात, भ्रष्टाचार पर रोक, महिलाओं के साथ-साथ आम आदमी की सुरक्षा, सुविधा और अनुकूल वातावरण. युवकों की नौकरी, मूलभूत सुविधाओं में इजाफा, सड़क, बिजली, पानी, सफाई और स्वस्थ माहौल. शिक्षा और चिकित्सा के साथ सीमाओं की सुरक्षा, भयमुक्त भाईचारे का वातावरण. मोदी जी ने काफी कुछ करने का प्रयास किया है पर जनता की आकांक्षाएं बड़ी होती है. जितनी सुविधा मिलती है और अधिक चाहता है और जल्द चाहता है. मोदी जी ने कुछ वादे ही ऐसे किये थे – सौ दिन में काला धन …पर नौ महीने में कोई ख़ास प्रगति न देख जनता का मोदी सरकार से धीरे-धीरे मोहभंग होने लगा. दिल्ली में लगभग एक साल से चुनी हुई सरकार नही थी. राष्ट्रपति शासन के दौरान सरकार बनाने की कोशिश भाजपा भी करती रही और बकौल आम आदमी पार्टी उसे रोकने के लिए वह भी कांग्रेस और उनके विधायकों से संपर्क बनाती रही. दोनों में कोई सफल नहीं हुए अंतत: दिल्ली राज्य में भी चुनाव की घोषणा हुई. कई राज्यों में अपनी जीत से भरमाई भाजपा को दिल्ली की जनता पर भी भरोसा था. मोदी जी ने तो कहा भी था – जो देश का मूड है वही दिल्ली का मूड है ….. पर दिल्ली की जनता ने भाजपा को ही नहीं मोदी जी और अमित शाह की कूटनीति और क्रिया-कलाप पर बहुत बड़ा प्रश्न चिह्न लगा दिया.
उधर आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं और केजरीवाल को भरपूर समय मिल गया, अपना प्रचार-प्रसार करने को. उसने भी खूब वादे किये और घर घर जाकर मध्यम और निम्न वर्ग को समझाया, दिल्ली में जल्द चुनाव न करने के लिए कांग्रेस और भाजपा सरकार को जिम्मेदार भी बताया, साथ ही जहाँ जरूरत समझी माफी भी माँगी, थप्पड़ भी खाया, कालिख भी लगवाया; फिर भी सबको गले लगाया. परिणाम दिल्ली की जनता ने भी अपना फैसला सुनाया ७० में ६७ सीटें देकर…. एक इतिहास बनाया. अब पांच साल इसे कौन हटा सकता है पर सभी लोग तो नि:स्वार्थी नहीं हो सकते न! सारा श्रेय एक आदमी ले जाए, ऐसा कैसे हो सकता है, सबने मिहनत की है, सबने अपना अपना योगदान किया है सबको यथोचित पुरस्कार/भागीदारी मिलनी चाहिए …मन में असंतोष उपजा और मीडिया भी चटखारे लेकर एक-एक मुद्दे को तूल देने लगी. आप का क्या होगा? जो घर नहीं सम्हाल सकते वे दिल्ली और देश कैसे सम्हाल सकते हैं….इधर इतना हंगामा चल रहा है और उधर केजरीवाल अज्ञातवास में अपना इलाज करा रहे हैं. मीडिया क्या किसी से बात करने की भी इजाजत नहीं है. उधर उनका स्वास्थ्य ठीक हो रहा है, इधर हल्ला गुल्ला भी शांत हो रहा है. आखिर एक ही बात, एक ही ‘स्टिंग’ कितनी बार लोग देखेगा और सुनेगा और भी बहुत काम है लोगों को. उधर भूमि अधिग्रहण बिल है जिसे राज्य सभा में पास कराना है, बीमा बिल तो कांग्रेस की मदद से पास हो गया है. आखिर मनमोहन सिंह को भी तो कोर्ट जाने से बचाना है. कितनी बदनामी हो रही है, कांग्रेस के मनमोहन सिंह की. उससे अच्छा है कि भूमि अधिग्रहण बिल भी पास हो जाय और मनमोहन सिंह, सोनिया गांधी की बची-खुची इज्जत बची रह जाय. राहुल गांधी भी अज्ञातवास से बाहर निकल आएं.
मुझे लगता है मीडिया, सोसल मीडिया, आम आदमी को कुछ कुछ मसाला मिलता रहना चाहिए. अधिकाँश लोग तो वर्ल्ड कप का मैच देखने में ही ब्यस्त हैं … कोई बॉल तो कोई बैट की चर्चा में मशगूल है भारत लगातार मैच जीत रहा है इधर मीडिया स्टिंग की खबरें, खाली पेन ड्राइव दिखा रहा है. उधर मोदी जी जब श्रीलंका से वापस आएंगे तो अपना अनुभव और मन की बात किसानों को सुनाएंगे. वैसे सुनेगा तो पूरा देश ही ..तब तक केजरीवाल बेंगलुरु के नेचरोपैथी सेंटर से अन्ताक्षरी खेलकर वापस आ ही जायेंगे. तबतक कुमार बिश्वास लक्ष्मण की तरह बल्ला सम्हाले हुए हैं. मुझे लगता है कुमार बिश्वास को ही प्रवक्ता पद दे देना चाहिए .योगेन्द्र यादव और प्रशांत भूषण, शांति भूषण आदि को सलाहकार/मार्गदर्शक-मंडल में जगह बनाने की आदत डाल लेनी चाहिए और अपना मत पत्र के माध्यम से व्यक्त करते रहें या ब्लॉग लिखते रहें…आडवाणी जी भी तो पत्र लिखते-लिखते ब्लॉग पर आ गए हैं इधर भाजपा की प्रखर प्रवक्ता मिनाक्षी लेखी भी ब्लॉग लिखने लगी है. ब्लॉग लिखना अच्छा भी है बहुत सारे लोग पढ़ लेते हैं, सारे लोग अगर नहीं भी पढ़ते हैं, तो मीडिया उसका मुख्य हिस्सा पढ़ा देती है.
संचार माध्यमों से एक फायदा तो सबको हुआ है आप अगर सपने में भी कुछ सोचते है तो वह भी प्रकाश में आ जाता है. क्या पता कौन सपने में भी आपके दिमाग में कोई चिप्स फिट कर दे और वह भी स्टिंग का हिस्सा बन जाए.
एक महीना हो चुका है, आम आदमी पार्टी अपना रिपोर्ट कार्ड पेश करनेवाली है. तबतक मीडिया में सर्वे आ गए हैं. पार्टी की बदनामी हुई है जरूर, लेकिन केजरीवाल की लोकप्रियता अभी भी मोदी जी से ज्यादा है, कम से कम दिल्ली में.
इधर नीतीश बाबु एक दिन का उपवास रखकर भूमि अधिग्रहण बिल पर विरोध दर्ज करा चुके हैं. किसानों का वोट उन्हें तो चाहिए ही. जीतन राम मांझी बेचारे उधेड़ बन में हैं इधर जाएँ या उधर घर वापसी या प्रवासी बनें. अपने घर में रहकर कुछ दिन के लिए बिहार के मुख्यमंत्री बनकर काफी लोकप्रियत हासिल कर ली प्रवासी बनकर मुख्यमंत्री बन पाएंगे – संदेह के घेरे में हैं. भाजपा भी किरण बेदी का हस्र देख चुकी है अब क्या बिहार में भी वैसा रिश्क लेगी? फिर सुशील मोदी, नंदकिशोर यादव आदि क्या करेंगे.
वैसे क्रिकेट मैच में जितना मजा नहीं होता उससे ज्यादा मजा मुझे उसकी चर्चा में लगता है. क्रिकेट खेल के बारे में कुछ भी नहीं समझनेवाला आदमी अपनी राय जाहिर तो कर ही देता है ऐसा होता तो वैसा हो जाता… आदि वर्ल्ड कप भारत जीते यह भला कौन भारतीय नहीं
चाहेगा? इसलिए मैच देखना और उसपर परिचर्चा सुनना ज्यादा जरूरी है. धोनी और उकी टीम को सवा सौ करोड़ भारतीयों का समर्थन चाहिए. मोदी जी भी तो कहते हैं कि हम से जब कोई विदेशी हाथ मिलाता है तो उसे सवा सौ करोड़ हाथ दिखलाई पड़ता है. क्रिकेट के खिलाड़ियों को भी वही सब दिखाने लगा है नहीं तो क्रिकेट का जन्मदाता इंग्लैण्ड बंगला देश से हार जाता? बंगला देश को जन्म देने वाला भी तो भारत ही है न!
१६ तारीख, सोमवार को पापमोघनी एकादशी व्रत है. हमारे हिदू धर्म में बहुत सारे व्रत है जिन्हें अगर श्रद्धा और बिश्वासपूर्वक किया जाय तो हमारे सारे पाप धुल जाते हैं और हम अपने अभीष्ट को प्राप्त करने में सफलता हाशिल कर लेते हैं. ईश्वर का ध्यान कर अगर सद्कर्म किया जाय तो फल अवश्य मिलता है. वैसे भी ‘कर्मप्रधान विश्व करी राखा’ का यह देश है. हमें अपना अपना कर्म करना है, फल की चिता नहीं करनी है. फल तो मिलेगा ही आज नहीं तो कल … इसलिए कर्मरत रहिये हर पल! आखिर कहाँ जाइएगा? जाए तो जाए कहाँ …. कांग्रेस भाजपा वाम आवाम या आम! जय श्री राम! जय हिन्द! जय भारत!
- जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर

Sunday, 8 March 2015

दीमापुर, पर्थ, होली, आप और भारत !

नागालैंड के सबसे बड़े शहर दीमापुर में एक चौंकाने वाली घटना में रेप के आरोपी को गुस्साई भीड़ ने जेल से निकालकर मौत के घाट उतार दिया । एक कॉलेज स्टूडेंट से रेप के इस आरोपी को भीड़ ने दीमापुर सेंट्रल जेल से बाहर निकालकर पीटा और उसका दम निकल जाने पर लाश को चौराहे पर टांग दिया। घटना गुरुवार शाम करीब चार बजे की है।
एक आदिवासी कॉलेज स्टूडेंट से रेप की घटना के बाद लोगों में भारी गुस्सा देखा जा रहा था। हजारों लोगों ने गुरुवार दोपहर को दीमापुर सेंट्रल जेल पर हमला बोल दिया, जहां पर आरोपी को रखा गया था। भीड़ ने आरोपी को जेल से निकाला और करीब सात किलोमीटर उसे घसीटा और जमकर धुनाई की। बुरी तरह से जख्मी होने की वजह से उसकी मौत हो गई, तो भीड़ ने लाश को एक चौक पर फांसी पर टांग दिया।
सचमुच यह भारत जैसे लोकतान्त्रिक देश के लिए शर्मनाक घटना है, पर क्या हमारे न्यायविदों, पुलिस, राजनेता, सामाजिक संगठन, बुद्धिजीवी वर्ग कुछ भी सीख लेंगे इस घटना से या इसे भी सामान्य घटना की श्रेणी में डालकर कानूनी प्रक्रिया में उलझा दिया जायेगा? एक तरफ देश के क्रूरतम बलात्कार और निर्मम हत्या कांड के दोषी को अब तक जेल में संभालकर रक्खा गया है और उससे इंटरव्यू लेकर डॉक्यूमेंट्री बनाई गयी जिसका राज्य सभा में घोर विरोध हुआ. भारत सरकार ने उसपर बैन लगाया फिर भी BBC ने उसे प्रसारित किया और यूट्यूब पर उपलब्ध भी करा दिया. हो हंगामा हुआ फिर सब कुछ शांत. बलात्कार, छेड़छाड़, और नारी प्रताड़ना की घटना, दिन-रात जारी है बल्कि बढ़ती ही जा रही है, पीड़ित महिलाएं या तो मार दी जा रही है या आत्महत्या कर ले रही हैं…..और हमारी न्यायब्यवस्था ऐसी कि उसे कोई फर्क ही नहीं पड़ता. आखिर आम जनता क्या करे? न्याय की आश में कबतक भटकती रहे या चुपचाप ऑंखें बंदकर सो जाय?
वह तो दीमापुर जैसे छोटे शहर में उतने लोग इकठ्ठा हो गए और आवेश में आकर जेल में घुसकर अपराधी को खींच निकाला और उसकी निर्मम हत्या कर दी. क्या दिल्ली जैसे बड़े शहर में यह सम्भव है? यहाँ मोमबत्ती और तख्ती लेकर भले ही लोग खड़े हो जाएँ, पर हत्या जैसी घटना का अंजाम देनेवाली भीड़ नहीं हो सकती है. साथ ही यहाँ पुलिस ज्यादा संख्या में है और नियंत्रण करने में सक्षम है. भले ही अपराध को रोकने में सक्षम नहीं है.
अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवश पर जारी किया गया अरविन्द केजरीवाल का सन्देश काबिले तारीफ है. यह हर भारतीयों और विश्व के पुरुषों के अनुकरणीय हो सकता है…. वैसे भी महिला दिवश पर खूब चर्चाएं हुई, खूब लेख लिखे गए—परिणाम क्या निकला? क्या महिला उत्पीड़न कम होंगे? क्या बलात्कार रुकेंगे? क्या दहेज़ हत्याएं बंद होंगी? क्या फिल्मों में और विज्ञापनों में अंग प्रदर्शन कम होगा? क्या पोर्न साइट्स बंद होंगे? क्या एक बलात्कार को ख़बरें बनाकर बेंचने का कार्यक्रम बंद होगा? क्या बलात्कार पीड़िता को उसका खोया हुआ आत्मसम्मान वापस आएगा? क्या दोषियों को जल्द सजा-ए मौत दी जाएगी? नहीं तो फिर इस महिला दिवश का क्या अर्थ है? …मुझे नहीं मालूम. ….महिला को खुद सशक्त होना होगा…चाहे उसके लिए जो भी करना पड़े…. 

उसके बाद आते हैं, आम आदमी पार्टी के अंतर्कलह पर. प्रशांत भूषण और योगेन्द्र यादव को जिस तरह PAC से बाहर का रास्ता दिखाया गया, केजरीवाल की इस पूरे मुद्दे पर चुप्पी और दिल्ली में रहकर भी बैठक में भाग न लेना, सवाल तो खड़े करता ही है. देश के काफी समर्पित कार्यकर्ता इस घटना से मर्माहत हैं. कुछ लोग आप के विभाजित होने की आशंका जताने लगे हैं. अवश्य ही सभी सीनियर नेताओं को इसे आपसी बात चीत से हल कर प्रशांत भूषण और योगेन्द्र यादव को कोई अन्य महत्वपूर्ण जिम्मेदारी देनी चाहिए ताकि उनके मन का मलाल दूर हो सके. भाजपा, कांग्रेस और आप के ही शाजिया, बिन्नी, किरण बेदी आदि इस मौके की तलाश में हैं और आप को कमजोर करने के लिए हर सम्भव प्रयास करती रहेंगी. आप के बारे में यही प्रचार किया गया कि यह सभी पार्टियों से अलग है, पर कुछ दिनों के बाद ऐसा लगाने लगा है कि यह भी बाकी पार्टियों की तरह ही है. आलाकमान के खिलाफ आवाज उठाने की इजाजत यहाँ भी नहीं है. यह भी अन्य पार्टियों की तरह व्यक्ति आधारित पार्टी हो गयी है. आप के ही नेता मयंक गांधी ब्लॉग के माध्यम से लगातार सवाल उठा रहे हैं और भय भी जाता रहे हैं की उनपर भी अनुशासनात्मक कार्रवाई की जा सकती या उन्हें बदनाम करने की कोशिश की जा रही है. यह विवाद कहाँ जाकर शांत होगा पता नहीं. पर जो कुछ हो रहा है इस नयी पार्टी के लिए अच्छी बात तो कत्तई नहीं है. वैसे सत्ता में एक नशा तो होती ही है उसी से सम्बंधित कुछ पंक्तियाँ रख रहा हूँ.
हुकूमत हाथ में आते, नशा कुछ हो ही जाता है,
अगर तहजीब न बदली, तो कैसे याद रक्खोगे.
मुखौटे ओढ़कर हमने, फिजां अनुकूल ढाली थी,
समय के साथ चलना है, तभी फ़रियाद रक्खोगे!
तीसरी घटना कश्मीर में सरकार बनने और मुफ्ती मोहम्मद सईद के विवादस्पद बयान को लेकर चर्चा गर्म है. दो विपरीत विचारधारा वाली पार्टियां कब तक साथ निभाएंगी या समानांतर रेखा की तरह साथ साथ चलेंगी?
मोदी जी सबका साथ सबका विकास का नारा, जमीन अधिग्रहण कानून के पक्ष में अपनी दलील से सबको समझाने का प्रयास कर रहे हैं, जबकि यह काम संसद के अंदर करने का है. जनता तो अपना मत दे चुकी है. नहर अस्पताल सड़कें, स्कूल आदि पहले से भी बनते रहे हैं. कारखाने पहले भी बने हैं. फिर नया कानून में सख्ती क्यों? हर बार गरीबों के नाम से योजनाएं बनाई जाती है, पर उसका फायदा कितने गरीबों को मिल पाता है. बातें काम और काम ज्यादा होने चाहिए पर मोदी जी थकते भी नहीं हैं, धाराप्रवाह एक ही बात को बोलते जाते हैं. बार बार सुनते सुनते आम आदमी ऊब चूका है. इसका अहसास मोदी जी को भी है, वे भी इस बात को समझा चुके हैं, झूठ एक बार चल सकता है, बार बार नहीं.
होली का जश्न पूरा देश मना रहा था तभी पर्थ में टीम धोनी ने वेस्ट इंडीज को चार विकेट से हराकर होली की सबसे बड़ी सौगात दे दी. अब होली की उमंग से बड़ा जीत का उमंग हो गया और सभी चैनेल क्रिकेट का ही गीत गाने लगे. वैसे होली आपसी सौहार्द्र और मेल मिलाप का पर्व है. इसमें चाहे जितने भी कष्ट हो बिहार के लोग अपने परिजनों के पास बस और ट्रेन की छत पर भी बैठकर चले जाते हैं. होली में रसीले गीतों और हास्य कविसम्मेलनों की बहार आ जाती है. सबी टी वी चैनल इसे प्रायोजित कर खुशियां बिखेड़ने लगते हैं. पर बे मौसम बारिश से किसानों को भयंकर क्षति हुई है. ठंढा जाते जाते लौट आया है. स्वाइनफ्लू का आतंक बढ़ता जा रहा है. रोज नए नए मरीज इससे आक्रांत हो रहे हैं. मौतों की संख्या भी बढ़ती ही जा रही है. 
भारत विविधताओं से भरा देश है. यहाँ विभिन्न जातियों, सम्प्रदायों के लोग आपस में मिलजुलकर रहना चाहते हैं. पर कुछ कट्टर ताकतें हमेशा इसे कमजोर करने की कोशिश करती रहती हैं. कुछ मुश्लिम संगठन, कुछ हिंदूवादी संगठन भी जहर फ़ैलाने का काम करते रहते हैं. ऐसे में इन साध्वियों को क्या कहें, जो प्रेम और भाईचारा का सन्देश देने के बजाय अपनी बदजुबानी से सुर्ख़ियों में रहना चाहती है. आश्चर्य होता है उनके ज्ञान पर और उनके अनुयाइयों पर.
हमारे यहाँ होली, ईद दीवाली, क्रिसमस और गुरुपर्व सभी भाईचारे का सन्देश देते हैं. हम सभी को इसे सुदृढ़ करने का प्रयास करना चाहिए. तभी बनेगा एक भारत, नेक भारत, श्रेष्ट भारत, सशक्त और विश्वगुरु भारत! 

- जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर