हम सभी अगर किसी बड़े और अच्छे मकसद के लिए निकलते हैं तो घर के भगवान के साथ साथ रास्ते के हर मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे, चर्च में सर झुकाने से गुरेज नहीं करते. हमने भरपूर प्रयास किया, अब भगवान ही मालिक हैं. वही नैया पार लगाएंगे. ऐसा ही कुछ मतदान के एक दिन पहले अरविंद केजरीवाल और किरन बेदी सभी धर्म स्थलों में सर झुकाने गए और ईश्वर की आस्था पर बिश्वास किया. किरण बेदी ने तो अपने चुनाव क्षेत्र कृष्णा नगर के गुरूद्वारे में रोटियां भी बेली और सर्वधर्म समभाव और मानव धर्म को सर्वश्रेष्ठ बताया. यह भी बताया कि वह तो बचपन से ही अपनी नानी के साथ गुरूद्वारे में रोटियां बेलने का काम करती रही हैं.
केजरीवाल भी योगासन ध्यान के बाद, ढाढ़ी बाल भी सैलून में जाकर कटवाए. नहा धोकर नाश्ता किया और अपने इलाके के मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारे और चर्च में भी सर झुकाया. भगवान के साथ लोगों से भी मिलते रहे और कहा कि जनता ही तो जनार्दन होती है.
अंतिम दिन भी बयानों के तीर चलते रहे और सभी अपने को बेहतर बताने और विरोधी को कोसने से बाज नहीं आए.
उधर डेरा-सच्चा-सौदा के राम-रहीम ने भाजपा को समर्थन देने का फैसला किया तो भाजपा को कोई परहेज नहीं हुआ. पर जब इमाम बुखारी ने आम आदमी पार्टी को समर्थन करने की घोषणा की तो भाजपा के अरुण जेटली ने चुटकी ली, वहीं आम आदमी पार्टी ने इसे लेने से ही इंकार कर दिया. बुखारी की राजनीतिक मंशा और परिणाम को शायद वे भांप चुके थे. सभी ने अपना-अपना काम किया, फैसला तो जनता ही करने वाली है. पांच साल में एक दिन ही तो मौका मिलता है जनता को इस बार दिल्ली की जनता इस मामले में खुशनशीब रही कि उसे एक साल के अंदर ही तीन चुनावों में अपना मत देने का सुअवसर मिल गया. मतदान का प्रतिशत भी लगातार बढ़ता रहा.
चुनाव के एक दिन पहले अख़बारों में विज्ञापन का भी मुद्दा उठा. दोनों पार्टियां एक दूसरे के फंड का मुद्दा उठाती रही. वही सफाई देने की नाकाम कोशिश भी. अब फैसला तो जनता को करना है. अगर भाजपा के विज्ञापन और विजन दोनों में मामूली गलती भी मुद्दे को तूल देती रही. पहले तो भाजपा ने पूर्वोत्तर को अप्रवासी बताकर फिर माफी भी मांग ली. अब एल ई डी बल्ब को देने और दिए जाने का मुद्दा भी छाया रहा. हिंदी में छापा गया – ८० लाख एल ई डी बल्ब देने की योजना है तो अग्रेजी में छपा ८० लाख एल ई डी बल्ब दे दिए गए.
जहाँ अपनी वक्तृत्व कला का लोहा दुनिया को मनवा चुके श्री मोदी दिल्ली की अंतिम रैली में घबराये हुए नजर आये और सर्वे करने वाले मीडिया को बाजारू तक कहा डाला, तो अमित शाह भी यह कहते हुए पाये गए कि दिल्ली का जनमत मोदी सरकार के काम काज का जनमत संग्रह नहीं है. हो सकता है केजरीवाल अपनी बात लोगों तक पहुँचाने में कामयाब हो गए हैं. श्रीमान वेंकैया नायडू भी इसी बात को अमित शाह से पहले ही कह चुके हैं. शायद इन सब लोगों को भी मीडिया के ओपिनियन पोल पर भरोसा हो गया है. देखें है ऊँट किस करवट बैठता है. अब तो एग्जिट पोल के नतीजे भी आम आदमी पार्टी को सत्तासीन देखना चाह रही है. अंतिम फैसला तो १० फरवरी को ही होना है.
स्वभाव से सख्त और कठोर अनुशासन के लिए प्रसिद्ध किरण बेदी को जनता के सामने रोना भी पड़ता है, गला रुंध जाता है तो कभी-कभी बैठ भी जाता है. अपने प्रतिद्वंद्वी चिर-भ्राता केजरीवाल को भला-बुरा भी कहना पड़ता है. वहीं केजरीवाल अपनी मुंह बोली बड़ी बहन (किरण बेदी) को भी अवसरवादी और भाजपा के प्रति पहले से ही सॉफ्ट बताने से नहीं चूकते.
बेचारे अन्ना अपने दोनों दायें-बाएं हाथ को ताली बजाते हुए देखते हैं और मन ही मन मुस्काते हैं. – मैंने तो पहले ही कहा था राजनीति बड़ी गंदी चीज है. लेकिन उनके चेले तो इस गंदगी को साफ़ करने के इरादे से राजनीति रूपी कीचड में उत्तर चुके हैं. अपने हाथ पाँव और मुंह गंदे कर चुके हैं. सभी दिल्ली को अपने अपने तरीके से स्वर्ग बनाना चाहते हैं, झुग्गी झोपड़ी रहित आलीशान बनाना चाहते हैं. चौबीस घंटे सस्ती बिजली और पानी मुहैया करना चाहते हैं. नालियां साफ़ करना चाहते हैं. सड़के सुन्दर बनाना चाहते हैं, अपराध मुक्त बनाना चाहते हैं. अगर ये जीत गए तो अपराधी कहाँ जायेंगे? खुशबूदार ताजी हवा कहाँ से लाएंगे, इन्हे खुद पता नहीं पर जनता को सब्जबाग दिखलाने में हर्ज ही क्या है? आखिर यही जनता तो उनको फर्श से अर्श तक पहुंचाती है.
पिछले लेख में मैंने लिखा था – वादे हैं वादों का क्या! अब अमित शाह जी भी कह रहे हैं वह तो चुनावी जुमला था. इसी चुनावी जुमले का इस्तेमाल हर राजनीतिक पार्टियां शुरू से करती आ रही है. इतने सालों से कांग्रेस गरीबी दूर करती रही. अब भाजपा और दूसरी पार्टियों को मौका मिला है, गरीबी हटाने का, सूट पहनने का और टोपी पहनाने का. जनता भी कितनी भोली है, जो बहुत ही जल्द इनके बहकावे में आ जाती है. कभी राम मंदिर, तो कभी हिन्दू राष्ट्र तो कभी अधिक बच्चे पैदा करने की नशीहत. संघाई बनाने का सपना, स्मार्ट सिटी, स्मार्ट कार्ड, स्मार्ट मोबाइल सब कुछ कितने स्मार्ट तरीके से कहे जाते हैं और स्मार्ट के हरेक अक्षर का मीनिंग (मतलब) भी यही बताते हैं.
कुर्सी बड़ी प्यारी होती है सबको ललचाती है, पास बुलाती है. बैठाती है, फिर चिपका लेती है. नितीश बाबू, चाणक्य से चन्द्रगुप्त और चंद्रगुप्त से चाणक्य बनते हैं फिर उन्ही का चन्द्रगुप्त (जीतन राम मांझी) उन्हें ऑंखें दिखाता है. यही कुर्सी बड़े भाई लालू जी से दूर तो फिर नजदीक लाती है. गरीबों, पिछड़ों, दलितों के मसीहा यही कहलाते हैं, तभी तो चतुर राजनीतिज्ञ कहलाते हैं.
एल ई डी बल्ब, थोड़ा महंगा जरूर है पर इसकी लाइफ ज्यादा दिनों तक की होती है, यह कम बिजली में ज्यादा प्रकाश देती है, यह बात कितनों को पता था? पर यह अब हर किसी को मालूम है. अब देखना यही है कि यह एल ई डी कितने घरों को रोशन कर पाती है. ऐसे भी महंगाई कम होने से (बतौर अमित शाह) – हर व्यक्ति को हर महीने हजारों रुपये के बचत हो ही रही है. तो ले आइये एल ई डी बल्ब, बिजली बचाइये खुद के साथ औरों के घरों को भी रोशन होने दीजिये. समझे न बाबू.
खबरनसीबों अर्थात मीडिया वालों को खूब मसाला मिलता है और वे इसे भुनाते भी हैं, चटखारे लेकर सुनाते भी हैं. वहीं खुशनसीब और बदनसीब की परिभाषा भी बतलाते हैं. चाहे जो हो परिणाम तो १० को ही आएगा, मगर ऐसा लगता है भाजपा यानी मोदी जी के विजय रथ का घोड़ा पकड़ लिया गया है, जिसका दूरगामी परिणाम बिहार, उत्तर प्रदेश, बंगाल आदि राज्यों के चुनावों में असर होना लाजिमी है. आम आदमी पार्टी के अस्तित्व का पुनरुद्धार होगा, अगर दिल्ली में ठीक ठाक सरकार चल गयी तो! भाजपा को भी अपनी रणनीति बदलनी होगी. हिंदूवादी संगठनों पर लगाम लगाना होगा, साथ ही मोदी जी को धरातल पर भी परिणाम दिखलाना होगा. केवल हाइप से काम नहीं चलने वाला. और वे खुद भी स्वीकार कर चुके हैं झूठ एक बार चलता है बार बार नहीं चलता. कुछ पुराने जमीन से जुड़े नेताओं को भी आगे लाना होगा. केवल मोदी और अमित शाह का चेहरा नहीं चलेगा.
सत्ता मिलते ही हर कोई गुरूर महसूस करने लगता है, सफाई अभियान का केवल फोटो सेसन नहीं चलनेवाला. सफाई दिखनी चाहिए. विदेशी निवेश दिखनी चाहिए. ऐसा न हो कि जिसके स्वागत में पूरा तंत्र लगा दिया गया हो वह अंत में धार्मिक सहिष्णुता का उपदेश देकर चला जाय और अपने देश जाकर भी हमारी भद्द करे. महात्मा गांधी का नाम लेकर हमें ही सीख देने लगे. कुछ तो गलतियां हर सत्ताधारी दल से होती है, जिसका खामियाजा उसे बाद में भुगतना पड़ता है. अभी भाजपा के पास समय है और कांग्रेस को सम्हलने में देर है तब तक भाजपा को अपनी विकासवादी छवि को ही बरक़रार रखना होगा. दूसरे की गलती निकालना तो विरोधी दल का काम है.सत्ताधारी दल को अपनी उपलब्धि दिखलानी होती है वह भी धरातल पर. एक चीज और साबित हो रही है कि अब लोग घरों से बाहर निकलकर मतदान करने लगे हैं, मतदान केन्द्रों पर भीड़ यह बतलाती है कि लोगों में जागरूकता बड़ी है और अब लोग धर्म, जाति, भाषा और क्षेत्रवाद से ऊपर उठकर मुद्दों के आधार पर अपना मत देने लगे हैं. यह लोकतंत्र की मजबूती को ही दर्शाता है. अगर विकल्प मौजूद है तो हम अपनी राय भी बदल सकते हैं, मोबाइल फोन की तरह.
ये सटोरिये भी हर चीज में सट्टा लगाते हैं.. कभी क्रिकेट के खेल में, तो कभी राजनीति की उठापटक में भी. कोई दिल्ली में भाजपा की सरकार बनते देख रहा है तो कोई केजरीवाल को मुख्यमंत्री की शपथ लेते देख रहा है. यानी भाजपा की सरकार में केजरीवाल मुख्य मंत्री …इसी को कहते हैं – इंसान का इंसान से हो भाईचारा यही पैगाम हमारा. अगर यह सपना सच हुआ तो सारे जहाँ से अच्छा गुलसिताँ हमारा. लोकतंत्र और आम आदमी की ताकत ! जय हिन्द! जय भारत!
- जवाहर लाल सिंह , जमशेदपुर
केजरीवाल भी योगासन ध्यान के बाद, ढाढ़ी बाल भी सैलून में जाकर कटवाए. नहा धोकर नाश्ता किया और अपने इलाके के मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारे और चर्च में भी सर झुकाया. भगवान के साथ लोगों से भी मिलते रहे और कहा कि जनता ही तो जनार्दन होती है.
अंतिम दिन भी बयानों के तीर चलते रहे और सभी अपने को बेहतर बताने और विरोधी को कोसने से बाज नहीं आए.
उधर डेरा-सच्चा-सौदा के राम-रहीम ने भाजपा को समर्थन देने का फैसला किया तो भाजपा को कोई परहेज नहीं हुआ. पर जब इमाम बुखारी ने आम आदमी पार्टी को समर्थन करने की घोषणा की तो भाजपा के अरुण जेटली ने चुटकी ली, वहीं आम आदमी पार्टी ने इसे लेने से ही इंकार कर दिया. बुखारी की राजनीतिक मंशा और परिणाम को शायद वे भांप चुके थे. सभी ने अपना-अपना काम किया, फैसला तो जनता ही करने वाली है. पांच साल में एक दिन ही तो मौका मिलता है जनता को इस बार दिल्ली की जनता इस मामले में खुशनशीब रही कि उसे एक साल के अंदर ही तीन चुनावों में अपना मत देने का सुअवसर मिल गया. मतदान का प्रतिशत भी लगातार बढ़ता रहा.
चुनाव के एक दिन पहले अख़बारों में विज्ञापन का भी मुद्दा उठा. दोनों पार्टियां एक दूसरे के फंड का मुद्दा उठाती रही. वही सफाई देने की नाकाम कोशिश भी. अब फैसला तो जनता को करना है. अगर भाजपा के विज्ञापन और विजन दोनों में मामूली गलती भी मुद्दे को तूल देती रही. पहले तो भाजपा ने पूर्वोत्तर को अप्रवासी बताकर फिर माफी भी मांग ली. अब एल ई डी बल्ब को देने और दिए जाने का मुद्दा भी छाया रहा. हिंदी में छापा गया – ८० लाख एल ई डी बल्ब देने की योजना है तो अग्रेजी में छपा ८० लाख एल ई डी बल्ब दे दिए गए.
जहाँ अपनी वक्तृत्व कला का लोहा दुनिया को मनवा चुके श्री मोदी दिल्ली की अंतिम रैली में घबराये हुए नजर आये और सर्वे करने वाले मीडिया को बाजारू तक कहा डाला, तो अमित शाह भी यह कहते हुए पाये गए कि दिल्ली का जनमत मोदी सरकार के काम काज का जनमत संग्रह नहीं है. हो सकता है केजरीवाल अपनी बात लोगों तक पहुँचाने में कामयाब हो गए हैं. श्रीमान वेंकैया नायडू भी इसी बात को अमित शाह से पहले ही कह चुके हैं. शायद इन सब लोगों को भी मीडिया के ओपिनियन पोल पर भरोसा हो गया है. देखें है ऊँट किस करवट बैठता है. अब तो एग्जिट पोल के नतीजे भी आम आदमी पार्टी को सत्तासीन देखना चाह रही है. अंतिम फैसला तो १० फरवरी को ही होना है.
स्वभाव से सख्त और कठोर अनुशासन के लिए प्रसिद्ध किरण बेदी को जनता के सामने रोना भी पड़ता है, गला रुंध जाता है तो कभी-कभी बैठ भी जाता है. अपने प्रतिद्वंद्वी चिर-भ्राता केजरीवाल को भला-बुरा भी कहना पड़ता है. वहीं केजरीवाल अपनी मुंह बोली बड़ी बहन (किरण बेदी) को भी अवसरवादी और भाजपा के प्रति पहले से ही सॉफ्ट बताने से नहीं चूकते.
बेचारे अन्ना अपने दोनों दायें-बाएं हाथ को ताली बजाते हुए देखते हैं और मन ही मन मुस्काते हैं. – मैंने तो पहले ही कहा था राजनीति बड़ी गंदी चीज है. लेकिन उनके चेले तो इस गंदगी को साफ़ करने के इरादे से राजनीति रूपी कीचड में उत्तर चुके हैं. अपने हाथ पाँव और मुंह गंदे कर चुके हैं. सभी दिल्ली को अपने अपने तरीके से स्वर्ग बनाना चाहते हैं, झुग्गी झोपड़ी रहित आलीशान बनाना चाहते हैं. चौबीस घंटे सस्ती बिजली और पानी मुहैया करना चाहते हैं. नालियां साफ़ करना चाहते हैं. सड़के सुन्दर बनाना चाहते हैं, अपराध मुक्त बनाना चाहते हैं. अगर ये जीत गए तो अपराधी कहाँ जायेंगे? खुशबूदार ताजी हवा कहाँ से लाएंगे, इन्हे खुद पता नहीं पर जनता को सब्जबाग दिखलाने में हर्ज ही क्या है? आखिर यही जनता तो उनको फर्श से अर्श तक पहुंचाती है.
पिछले लेख में मैंने लिखा था – वादे हैं वादों का क्या! अब अमित शाह जी भी कह रहे हैं वह तो चुनावी जुमला था. इसी चुनावी जुमले का इस्तेमाल हर राजनीतिक पार्टियां शुरू से करती आ रही है. इतने सालों से कांग्रेस गरीबी दूर करती रही. अब भाजपा और दूसरी पार्टियों को मौका मिला है, गरीबी हटाने का, सूट पहनने का और टोपी पहनाने का. जनता भी कितनी भोली है, जो बहुत ही जल्द इनके बहकावे में आ जाती है. कभी राम मंदिर, तो कभी हिन्दू राष्ट्र तो कभी अधिक बच्चे पैदा करने की नशीहत. संघाई बनाने का सपना, स्मार्ट सिटी, स्मार्ट कार्ड, स्मार्ट मोबाइल सब कुछ कितने स्मार्ट तरीके से कहे जाते हैं और स्मार्ट के हरेक अक्षर का मीनिंग (मतलब) भी यही बताते हैं.
कुर्सी बड़ी प्यारी होती है सबको ललचाती है, पास बुलाती है. बैठाती है, फिर चिपका लेती है. नितीश बाबू, चाणक्य से चन्द्रगुप्त और चंद्रगुप्त से चाणक्य बनते हैं फिर उन्ही का चन्द्रगुप्त (जीतन राम मांझी) उन्हें ऑंखें दिखाता है. यही कुर्सी बड़े भाई लालू जी से दूर तो फिर नजदीक लाती है. गरीबों, पिछड़ों, दलितों के मसीहा यही कहलाते हैं, तभी तो चतुर राजनीतिज्ञ कहलाते हैं.
एल ई डी बल्ब, थोड़ा महंगा जरूर है पर इसकी लाइफ ज्यादा दिनों तक की होती है, यह कम बिजली में ज्यादा प्रकाश देती है, यह बात कितनों को पता था? पर यह अब हर किसी को मालूम है. अब देखना यही है कि यह एल ई डी कितने घरों को रोशन कर पाती है. ऐसे भी महंगाई कम होने से (बतौर अमित शाह) – हर व्यक्ति को हर महीने हजारों रुपये के बचत हो ही रही है. तो ले आइये एल ई डी बल्ब, बिजली बचाइये खुद के साथ औरों के घरों को भी रोशन होने दीजिये. समझे न बाबू.
खबरनसीबों अर्थात मीडिया वालों को खूब मसाला मिलता है और वे इसे भुनाते भी हैं, चटखारे लेकर सुनाते भी हैं. वहीं खुशनसीब और बदनसीब की परिभाषा भी बतलाते हैं. चाहे जो हो परिणाम तो १० को ही आएगा, मगर ऐसा लगता है भाजपा यानी मोदी जी के विजय रथ का घोड़ा पकड़ लिया गया है, जिसका दूरगामी परिणाम बिहार, उत्तर प्रदेश, बंगाल आदि राज्यों के चुनावों में असर होना लाजिमी है. आम आदमी पार्टी के अस्तित्व का पुनरुद्धार होगा, अगर दिल्ली में ठीक ठाक सरकार चल गयी तो! भाजपा को भी अपनी रणनीति बदलनी होगी. हिंदूवादी संगठनों पर लगाम लगाना होगा, साथ ही मोदी जी को धरातल पर भी परिणाम दिखलाना होगा. केवल हाइप से काम नहीं चलने वाला. और वे खुद भी स्वीकार कर चुके हैं झूठ एक बार चलता है बार बार नहीं चलता. कुछ पुराने जमीन से जुड़े नेताओं को भी आगे लाना होगा. केवल मोदी और अमित शाह का चेहरा नहीं चलेगा.
सत्ता मिलते ही हर कोई गुरूर महसूस करने लगता है, सफाई अभियान का केवल फोटो सेसन नहीं चलनेवाला. सफाई दिखनी चाहिए. विदेशी निवेश दिखनी चाहिए. ऐसा न हो कि जिसके स्वागत में पूरा तंत्र लगा दिया गया हो वह अंत में धार्मिक सहिष्णुता का उपदेश देकर चला जाय और अपने देश जाकर भी हमारी भद्द करे. महात्मा गांधी का नाम लेकर हमें ही सीख देने लगे. कुछ तो गलतियां हर सत्ताधारी दल से होती है, जिसका खामियाजा उसे बाद में भुगतना पड़ता है. अभी भाजपा के पास समय है और कांग्रेस को सम्हलने में देर है तब तक भाजपा को अपनी विकासवादी छवि को ही बरक़रार रखना होगा. दूसरे की गलती निकालना तो विरोधी दल का काम है.सत्ताधारी दल को अपनी उपलब्धि दिखलानी होती है वह भी धरातल पर. एक चीज और साबित हो रही है कि अब लोग घरों से बाहर निकलकर मतदान करने लगे हैं, मतदान केन्द्रों पर भीड़ यह बतलाती है कि लोगों में जागरूकता बड़ी है और अब लोग धर्म, जाति, भाषा और क्षेत्रवाद से ऊपर उठकर मुद्दों के आधार पर अपना मत देने लगे हैं. यह लोकतंत्र की मजबूती को ही दर्शाता है. अगर विकल्प मौजूद है तो हम अपनी राय भी बदल सकते हैं, मोबाइल फोन की तरह.
ये सटोरिये भी हर चीज में सट्टा लगाते हैं.. कभी क्रिकेट के खेल में, तो कभी राजनीति की उठापटक में भी. कोई दिल्ली में भाजपा की सरकार बनते देख रहा है तो कोई केजरीवाल को मुख्यमंत्री की शपथ लेते देख रहा है. यानी भाजपा की सरकार में केजरीवाल मुख्य मंत्री …इसी को कहते हैं – इंसान का इंसान से हो भाईचारा यही पैगाम हमारा. अगर यह सपना सच हुआ तो सारे जहाँ से अच्छा गुलसिताँ हमारा. लोकतंत्र और आम आदमी की ताकत ! जय हिन्द! जय भारत!
- जवाहर लाल सिंह , जमशेदपुर
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