Saturday, 28 February 2015

सबै भूमि गोपाल की

आज से लगभग पचास साल पहले हमारे गांवों में खेतों के बड़े बड़े प्लॉट होते थे. कोई भी प्लॉट एक बीघे से कम का नहीं होता था. अधिकांश खेतों में मेड़ें नहीं होती थी. लोग अपने अपने खेतों को पहचानते थे. या बीच बीच में मजबूत झाड़ लगा देते थे, ताकि एक सीमा रेखा बनी रहे. वैसे भी बरसात में ये सभी खेत पानी से भरे होते थे. पानी निकलने के बाद सिर्फ एक फसल रब्बी की होती थी. रब्बी यानी मूलत: दलहन-तिलहन की पैदावार मूंग, मसूर, मटर,चना, खेसारी, तीसी, सरसो, अरहर, आदि. कुछ ऊंचे खेतों में धान, मक्का, मडुआ, ज्वार  आदि लगाने की कोशिश की जाती थे. अगर बाढ़ में नहीं डूबा तो कुछ धान मकई, ज्वार आदि भी हो जाते थे... तब सभी लोग तीन-चार पुत्र/पुत्रियाँ पैदा करते ही थे. ताकि कृषि कार्यों में मदद मिल सके, पशुधन की भी सेवा ठीक से हो. और अगर किसी से भिड़ने की नौबत आ गयी तो तीन चार लाठियां भी घर से ही निकल जाये.... कालांतर में लाठियां आपस में भी भंजने लंगी और खेतों के टुकड़े होते गए प्लॉट छोटे होते चले गए. पहले खेतों की जुताई हल बैलों से होती थी, फिर आ गया ट्रैक्टर और पावर टिलर का जमाना ... तो किसलिए बैलों को पालना और खिलाना? खेत जब छोटे छोटे टुकड़ों में बंटने लगे ट्रैक्टर से जुताई में दिक्कत भी होने लगी फिर तो ‘पावर टिलर’ या कुदाल का ही सहारा रहा.      
खेतों के टुकड़े होते गए परिवार की जनसंख्या बढ़ती गयी, उपज बढ़ाने के लिए फर्टिलाइजर का इस्तेमाल होने लगा. फलत: खेतों की उर्वरा शक्ति भी अंतत: कम होती गयी. अब भरण पोषण के लिए घर से बाहर निकालना अपरिहार्य हो गया. अब एक बेटा या तो नौकरी करे या खेती करेसंग रहना जरूरी नहीं लगा. अपने अपने स्वार्थ अपना अपना घर. आँगन में भी दीवारें बनने लगी. जो मर्यादा में बंधे रहे उनकी तो प्रतिष्ठा बढ़ती रही, अमर्यादित लोग तीन तेरह होते चले गए. खेतों में अब मेड़ों के साथ साथ क्यारियां भी बढ़ने लगी.  सिंचाई के लिए कुंए या ट्यूब वेल बनवाए गए.  बड़े किसान राजनीति करने लगे छोटों को उकसा कर फोड़ते गए और उनके जमीन पर धीरे धीरे आधिपत्य बनाते गए. पहले कर्ज फिर खेत पर कब्ज़ा. आपस में फूट और बंटने की सजा!
फिर सरकारी योजनाएँ गांवों तक पहुंचने लगी. रेडिओ में चौपाल के कार्यक्रम से कृषि सम्बन्धी जानकारी दी जाने लगी, बीच बीच में लोकगीतों द्वारा मनोरंजन किया जाने लगा. अब भूमि से मोह कहाँ, लोग गांव घर छोड़ शहरों में रहने लगे, भले ही फुटपाथ पर ही क्यों न सोना पड़े! विकास के लिए सरकार को किसानों की ही जमीन चाहिए. किसान को चाहिए सड़क, बिजली पानी की सुविधा. कारखाने अगर बनेंगे तो नौकरियां मिलेंगी. बेरोजगारों को रोजगार मिलेगा. अब उत्तम खेती मध्यम बाण, अंतिम सेवा भीख मंगान का जमाना गया अब तो भीख मांगना ही उत्तम हो गया. अब तो बड़े बड़े लोग मूल्यवान कपडे पहनकर मूल्यवान पात्र लेकर बैंकों से लेकर अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से भी भीख(कर्ज) लेने लगे. मुद्राएँ भी अब अन्तर्राष्ट्रीय हो गयीं. नीतियां विश्व ब्यापी होने लगी. अब हम सीमा से बंधे नहीं रहे. ब्यापार का पर्ग भी प्रसस्त हो गया. आम आदमी अपनी जरूरत के सामन बाजारों से खरीदने लगा. अब वह दिन दूर नहीं कि हम अपने ही खेतों में मजदूरी करें और उसके उत्पाद को कच्चा माल की तरह उद्योगपतियों को बेचें और उनसे तैयार माल अपने उपयोग के लिए खरीदें. कुटीर उद्योग में फायदा नहीं है, क्योंकि मंझले और बड़े उद्योगों का उनपर कब्ज़ा होने लगा है. झाड़ू, रस्सी से लेकर खाद्य सामग्री भी ब्रांडेड कंपनियां बनायेगी और हम पैक्ड फ़ूड पर निर्भर होंगे. इसे ही तो कहते हैं- विकास! ...और विकास के लिए चाहिए भूमि, पैसा, कच्चा माल और समर्पित मजदूर. तो भूमि अधिग्रहण भी तो करना पड़ेगा. भूमि अधिग्रहण के लिए नित्य नए कानून बनाने पड़ेंगे जिससे आपका और देश का विकास हो सके.      
भूमि अधिग्रहण कानून को लेकर कांग्रेस सरकार पर हमला बोलते हुए श्री मोदी ने संसद में कहा- ‘किसी को यह अभिमान नहीं होना चाहिए कि इससे अच्छा नहीं हो सकता है।‘ उन्होंने कहा कि हमें पता था कि आप चुनाव में फायदे के लिए हड़बड़ी में नया कानून ला रहे हैं, इसके बावजूद हम देशहित में उस समय आपके साथ रहे। प्रधानमंत्री ने कहा, 'जब हमारी सरकार बनी तो पार्टियों से इतर सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने कहा कि सिंचाई की परियोजनाओं के लिए जमीन नहीं मिल पा रही है। किसान तबाह हो रहे हैं।'
उन्होंने कहा कि सेना के प्रतिष्ठान कह रहे हैं कि हम यह कैसे लिखकर दे सकते हैं कि उस जमीन पर क्या करने जा रहे हैं, फिर तो बेहतर होगा कि पाकिस्तान को ही बता दें कि कहां क्या ठिकाना बना रहे हैं। मोदी ने कहा, 'मैं नहीं मानता कि यह कानून गलत है, लेकिन कुछ गलतियां रह गई हैं। क्या इसे ठीक करना हमारी जिम्मेदारी नहीं है? आप इस कानून के लिए श्रेय लीजिए, मुझे इससे समस्या नहीं है। मैं खुद सार्वजनिक रूप से आपको श्रेय दूंगा। आप बताइए भूमि अधिग्रहण विधेयक में किसानों के खिलाफ अगर एक भी चीज है तो मैं उसे बदलना चाहता हूं।'
मोदी पर सांप्रदायिक मामलों में चुप रहने के आरोप लगते रहे हैं। पहली बार संसद पर इस बारे में वह खुलकर बोले। हालांकि उन्होंने वही दोहराया जो एक-दो बार वह हाल ही में कुछ कार्यक्रमों में कह चुके हैं। उन्होंने कहा, 'कोई कानून अपने हाथ में नहीं ले सकता और धर्म के नाम पर किसी का शोषण नहीं हो सकता।' मोदी ने कहा कि मैं पहले भी कह चुका हूं कि मेरी सरकार का एक ही धर्म है, इंडिया फर्स्ट और एक ही ग्रंथ हैं संविधान।  'मुझे सिर्फ एक ही रंग दिखता है, तिरंगा।'
ऐसे समर्पित नेता, जिनकी बातों में जादू हो, विपक्ष भी ताली बजाने पर मजबूर हो जाय! बाजपेयी जी में भी इतनी वाकपटुता शायद न रही हो...मोदी जी शब्दों के बाजीगर हैं. शब्दों के उचित प्रयोग से ही उन्होंने पिछले सालों में भारत को सर्वोच्च शिखर तक पहुँचाने का सपना दिखाया है. आप सपने देखते रहिये और सुखद नींद लेते रहिये. हम आपके पॉकेट तक, आपके घरों की तिजोरी तक आराम से पहुँच जायेंगे.
तभी तो अब आम बजट और रेल बजट से महंगाई बढ़ने ही वाली है कि अचानक पेट्रोल डीजल के दामों में भारी बृद्धि नसीब तो बदलता रहता है न! (तीन रुपये प्रति लीटर, झाड़खंड सरकार ने इसपर वैट दर में बृद्धि कर और बढ़ा दिया है) विकास के लिए पैसा कहाँ से आयेगा? ...अच्छे दिन का सब्जबाग खूब दिखाया गया, अब पांच साल तक अच्छे दिन का इंतज़ार करना ही होगा. खेतों को सरकार के हवाले कर दिया जाय ...सरकार भूमिहीनों को भी २०२२ तक घर बना कर देनेवाली है. तब तक सपने देखते-देखते दिन कट ही जायेंगे!  आखिर देश के प्रति हमारा कुछ तो फर्ज बनता ही है. यह देश कुर्बानियों का देश है, हमारे पुरखों ने कुर्बानिया दी है, हम सबको भी कुछ न कुछ देना चाहिए था. मनोज कुमार का वह डायलॉग याद कीजिये जो उन्होंने उपकार में बोला था.- यह मत सोचो की देश तुम्हे क्या दे रहा है, सोचो यह कि तुम देश को क्या दे रहे हो!  देश, धर्म, जाति और भाषा मनुष्य को भावुक बना देती है. इसी का फायदा सभी प्रबुद्ध वर्ग उठा रहे हैं आम आदमी तो आम आदमी है उसे समस्या से निपटने की आदत होनी ही चाहिए. जिन्दगी एक जंग है इस जंग को जीतने के लिए आपको लड़ना होगा. आन्दोलन करिए, सरकारें बदलिए, वे कानून बदलेंगे और साथ ही आपको भी.  जय हिन्द! जय भारत! जय हो मोदी जी की ...नमो! नमो !  

-       -  जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर, ०१.०३.२०१५  .     

Sunday, 22 February 2015

माझी जो नाव डुबाए उसे कौन बचाए….



२० फरवरी को विधानसभा में शक्ति परीक्षण से ठीक पहले बिहार के मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने राजभवन जाकर इस्तीफ़ा दे दिया। मांझी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इसकी औपचारिक घोषणा की। मांझी के इस्तीफे के बाद बिहार विधानसभा अनिश्चित काल तक के लिए स्थगित कर दी गई। २० फरवरी से ही विधानसभा में बजट का सत्र शुरू होना था। राज्यपाल श्री केशरी नाथ त्रिपाठी ने मांझी का इस्तीफा मंजूर कर लिया है।
राजभवन पहुंचे नीतीश कुमार ने पत्रकारों से कहा कि इस चीज का फैसला पहले हो जाना चाहिए था, ताकि बजट सत्र सुचारू रूप से चल सके। उन्होंने कहा कि राज्यपाल के अभिभाषण से ठीक पहले यह किया गया। इसके साथ ही नीतीश ने कहा कि इससे बीजेपी का गेमप्लान एक्सपोज हुआ है।
उधर, बीजेपी प्रवक्ता शाहनवाज हुसैन ने नीतीश के आरोपों को गलत बताया है और कहा कि इस घटनाक्रम में बीजेपी का कोई रोल नहीं है। आरजेडी नेता लालू प्रसाद यादव ने कहा है कि मांझी को बीजेपी के साथ नहीं जाना चाहिए। उन्होंने मांझी को नीतीश के साथ मिलकर काम करने की सलाह भी दी है।
राज्यपाल केशरीनाथ त्रिपाठी के अभिभाषण के बाद मांझी को बहुमत साबित करना था, लेकिन संख्याबल नहीं होने की वजह से इस्तीफा दे दिया था। मांझी के साथ बीजेपी के 87 विधायकों के अलावा जेडी(यू) के 13-14 विधायक थे। बीजेपी ने गुरुवार(१९ फरवरी) को ही मांझी के समर्थन में वोट डालने का फैसला किया था।
अब नीतीश कुमार २२ तारीख को चौथी बार बिहार के मुख्य मंत्री के रूप में शपथ ले लिया है. इस शपथ ग्रहण समारोह में भाजपा के खिलाफ एक जुट होकर भाजपा को हराने के लिए सभी क्षेत्रीय पार्टियों के प्रमुख ममता बनर्जी, बाबूलाल मरांडी, यह दी देवगौड़ा, मुलायम सिंह यादव, अखिलेश यादव, तरुण गोगोई के साथ जीतनराम मांझी भी शामिल हुए. नीतीश जी के मंत्रिमंडल की टीम लगभग वही लोग है जो जीतन मांझी के टीम में थे. उम्मीद है की बिहार फिर से पटरी पर दौड़ेगा. विकास की तरफ उन्मुख होगा.
२०१४ के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के चलते बिहार में नीतीश कुमार के जे डी यु को सिर्फ दो सीटें मिली थी. हार की जिम्मेदारी लेते हुए नितीश कुमार ने मुख्य मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था और एक महादलित समाज से आने वाले जीतन राम मांझी को मुख्य मंत्री मनोनीत किया था. कुछ दिन वे नीतीश कुमार के बिश्वास पात्र बने रहे, पर बाद में (शायद भाजपा के बहकावे में आकर) अपनी ताकत दिखाने का प्रयास करने लगे. कुछ ऊटपटांग बयान भी देते रहे, जिसकी जमकर आलोचना भी हुई. फिर कुछ अपने राजनीतिक हित के खातिर कुछ कुछ घोषणाएं भी करने लगे, जिससे नितीश कुमार और उनके समर्थक नाराज होने लगे. उन्हें अपने नीचे की जमीन खिसकती हुई दिखाई पड़ने लगी. तब उन्होंने अपने समर्थन में १३० विधायकों को इकठ्ठा किया और उन्हें लेकर राज्यपाल और राष्ट्रपति के सामने परेड भी करा दिया. वे चाहते थे कि राज्यपाल महोदय मांझी को बर्खाश्त कर उन्हें यानी नितीश कुमार को फिर से नयी सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करें, पर राजभवन और पटना हाई कोर्ट भी नियमों का हवाला देता रहा. अंत में राज्यपाल महोदय ने मांझी को अपना बहुमत साबित करने के लिए २० फरवरी की तिथि निश्चित की. मांझी अपने बहुमत का दावा करते रहे पर उन्हें अंदाजा हो गया कि बहुमत उनके साथ नहीं है, इसलिए विधान सभा में बिश्वास मत साबित करने से पहले ही इस्तीफा दे दिया.
इधर नितीश कुमार ने अपना इस्तीफ़ा देकर जीतन राम मांझी को मुख्य मंत्री बनाने की गलती स्वीकार कर ली और बिहार की जनता से सार्वजनिक रूप से बार बार माफी मांग ली है. अरविन्द केजरीवाल ने भी दिल्ली की जनता से माफी मांगी और जनता ने उन्हें माफ़ ही नहीं किया बल्कि प्रचंड बहुमत देकर फिर से सत्ताशीन किया. अब देखने वाली बात यह होगी कि बिहार की सियासत किस करवट मोड़ लेती है. यहाँ भाजपा विरोधी पार्टियाँ इकठ्ठा हो रही हैं. भाजपा की कूटनीति फिर एक बार मात खा गयी है. अंतिम फैसला तो जनता की अदालत में ही होना है, तब तक(लगभग आठ महीने का समय) नीतीश कुमार को मिल जाएगा, अपनी छवि को बेहतर बनाने के लिए. भाजपा और श्री जीतन राम मांझी ने यहाँ महादलित कार्ड खेलने की कोशिश की है. कुछ महादलितों में अपनी पैठ बनाई भी है. यह बात जग जाहिर है कि बिहार में जातिगत आधार पर ही मतदान होते हैं और लालू, नितीश यहाँ तक कि भाजपा भी यहाँ विभिन्न जातियों को ही भुनाती रही है…. अभी तक.
बिहार के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद जीतन राम मांझी द्वारा लगाए गए आरोपों का जवाब देते हुए पूर्व सी. एम. नीतीश कुमार ने कहा कि मैंने कभी भी सरकार के कामकाज में दखल नहीं दिया। उन्होंने कहा- ‘एक बार फिर बिहार की जनता की सेवा करूंगा और उसी तेवर के साथ करूंगा जैसा कि इससे पहले साढ़े आठ साल करता रहा था।‘ उन्हें राज्यपाल महोदय से निमत्रण मिल चुका है और २२ तारीख को शपथग्रहण समारोह होने जा रहा है.(आलेख छपने तक शपथ ग्रहण हो चुका होगा)
मांझी के इस्तीफे के बाद बुलाई गई जेडी(यू) विधायकों की बैठक के बाद नीतीश ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि भावना में आकर मैंने आठ महीने पहले इस्तीफा दे दिया था, इसके लिए मैं बिहार की जनता से हाथ जोड़कर माफी मांगता हूं। उन्होंने बीजेपी पर आरोप लगाते हुए कहा कि पूरी स्क्रिप्ट बीजेपी की तरफ से लिखी गई थी और उसका गेमप्लान बेनकाब हो गया है। नीतीश ने कहा कि हमारी पार्टी की चट्टानी एकता की वजह से मांझी पहले ही मैदान छोड़कर भाग गए। उन्होंने कहा कि मांझी अब जाति कार्ड खेल रहे हैं, जबकि इतना बड़ा सम्मान उन्हें पार्टी ने ही दिया था।
नीतीश ने कहा कि बीजेपी जुगाड़ से सरकार बनवाना चाहती थी. इससे पहले बिहार विधानसभा में विश्वास मत के दौरान हार के आसार साफ तौर पर देख रहे मांझी ने यह कहते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया कि उनके समर्थकों को जान से मारने की धमकी दी गई और वह नहीं चाहते थे कि विधानसभा से उनके समर्थक विधायकों की सदस्यता समाप्त हो। मांझी ने अपने घर पर संवाददाताओं को बताया, ‘जब यह स्पष्ट हो गया कि किसी और के कहने पर काम कर रहे विधानसभा अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी विश्वास मत के दौरान गुप्त मतदान की अनुमति नहीं देंगे तो मैंने सोचा कि अपने समर्थक विधायकों को खतरे में डालना उचित नहीं होगा और फिर मैंने इस्तीफा दे दिया।’
मांझी ने दावा किया अगर आज भी गुप्त मतदान हो, तो उनके पास मौजूद बहुमत का पता चल जाएगा। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री बनने के बाद दो-तीन महीने तक वह सिर्फ उनके पास भेजे गए फाइलों पर ही हस्ताक्षर करते रहे और कुंठित रहे, लेकिन लोगों द्वारा रबर स्टांप मुख्यमंत्री कहे जाने पर उनका स्वाभिमान जागा और खुद निर्णय लेना शुरू किया, जिसके बाद पैसे के लिए काम करने वाले लोग नाराज हो गए।
उन्होंने कार्यकाल के दौरान कई काम पूरे नहीं कर पाने पर भी अफसोस जाहिर किया। मांझी ने कहा, ‘मैं समाज के हर तबके के लिए काम करना चाहता था, कुछ तो काम किया, लेकिन बहुत कुछ नहीं कर पाया।’ उन्होंने राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के अध्यक्ष लालू प्रसाद पर भी निशाना साधते हुए कहा, ‘पहले वह भी मांझी को परेशान नहीं करने की बात करते थे, लेकिन पिछले 10-15 दिन से न जाने क्या हो गया कि वह भी चुप हो गए।’
अब देखने वाली बात यह होगी कि मांझी का अगला रुख क्या होता है, वे जे डी यु में ही रहते हैं, भाजपा में जाते हैं या अलग पार्टी बनाने की घोषणा करते हैं. उनकी हालत सांप छुछूंदर वाली हो गयी है. जिस पार्टी और उसके मुखिया ने उन्हें सम्मान दिया वे उसी की खिलाफत में लग गए और अंत में गच्चा खा गए. अगर वह भी समयानुसार अपनी भूल सुधारकर पार्टी के साथ बने रहते हैं तो सबका भला होगा पर अगर अलग हो जाते हैं तो नीतीश जी के लिए थोड़ा मुश्किल हो सकता है. लालू यादव तथा अन्य पार्टियां जो अभी उन्हें समर्थन दे रही है अपना कीमत भी वसूल करना चाहेगी. मांझी गुट अगर भाजपा के साथ हो जाता है तो भाजपा को भविष्य में फायदा हो सकता है. यह समय बतलायेगा. पर भाजपा को ऐसे तिकड़मों से बचना चाहिए ताकि मोदी और अमित शाह की वर्तमान छवि में इजाफा हो. अभी तो वे लोग दिल्ली की हार से उबर नहीं पाये हैं. बल्कि अपने अंदर ही दबी जुबान में विरोध का सामना कर रहे हैं. राजनीत गजब चीज है!… यहाँ कब किसको कौन और कहाँ पटखनी दे दे, कहना मुश्किल है. इसीलिये ज्यदातर राजनीतिक व्यक्ति अपने परिवार वालों को ही उत्तराधिकारी बनाते हैं. लालूजी जेल जाने से पहले अपनी पत्नी राबडी देवी को अपना उत्तराधिकारी बनाया था. मुलायम सिंह यादव अपने बेटे अखिलेश सिंह को उत्तर प्रदेश की जागीर सौंप चुके है. झाड़खंड के गुरूजी शिबू सोरेन ने अपने बेटे हेमंत सोरेन को अपना उत्तराधिकारी बनाया है. नेहरु खानदान से हम सभी परिचित हैं ही. अर्थात इस प्रजातंत्र में भी अप्रत्यक्ष रूप से राजतन्त्र ही हावी रहता है. 
- जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर 

Sunday, 15 February 2015

पांच साल केजरीवाल – कुदरत का करिश्मा!

आम आदमी पार्टी (आप) के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली के आठवें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने के बाद रामलीला मैदान में मौजूद समर्थकों की भीड़ के सामने अपनी सरकार की प्राथमिकताएं गिनाईं। अपने मंत्रियों, विधायकों और कार्यकर्ताओं को अहंकार से बचने की सलाह देते हुए उन्होंने दिल्ली को देश का पहला भ्रष्टाचार मुक्त राज्य बनाने का वादा किया। केजरीवाल ने कहा, ‘हम जितना जल्द संभव होगा, जनलोकपाल विधेयक लाएंगे और पांच साल के अंदर दिल्ली को भ्रष्टाचार मुक्त राज्य बनाएंगे। उन्होंने दिल्ली के विकास के लिए बीजेपी और कांग्रेस के अच्छे लोगों से सहयोग लेने की बात भी कही। बिना सबके सहयोग के सरकार के मंसूबों को कामयाब करना संभव भी नहीं है।
केजरीवाल ने कहा, ‘पूरे एक साल के बाद आम आदमी की सरकार बनी है। गजब संयोग बना है। पिछली बार आठ सीटें कम रह गई थी, इस बार दिल्ली की जनता ने इस बार पूर्ण बहुमत दिया है। मुझे पता था कि दिल्ली के लोग हमें प्यार करते हैं, लेकिन यह नहीं पता था कि इतना प्यार करते हैं। 70 में से 67 सीटें…गिनती के दिन तो लगा जैसी सीटों की बारिश हो रही है। दोस्तो, लगता है ऊपरवाले की कोई खास मंशा है। हम सौभाग्यशाली हैं कि ऊपर वाले ने हमें अपने काम के लिए चुना है। 70 में से 67 सीटें किसी आदमी की मेहनत से नहीं मिल सकती है।’ यह कुदरत का करिश्मा ही है। कुदरत कुछ और ही चाहती है। हम सब तो निमित्त मात्र हैं ।
केजरीवाल ने शनिवार को कहा कि अपने पांच साल के कार्यकाल के दौरान वह दिल्ली को पहला भ्रष्टाचार मुक्त राज्य मनाएंगे। उन्होंने कहा कि उनकी पिछली 49 दिनों की सरकार के दौरान दिल्ली से रिश्वतखोरी खत्म हो गई थी और इसे उनके विपक्षी भी मानते हैं। केजरीवाल ने कहा, ‘मुझे याद है, अन्ना आंदोलन के दौरान हमलोग खूब नारा लगाया करते थे, भ्रष्टाचार मुक्त भारत।(कांग्रेस मुक्त नहीं ) लेकिन मन के कोने में संशय उठता था, क्या वास्तव में ऐसा हो सकता है। लोकपाल को लेकर भी संशय था कि क्या लोकपाल आने के बाद भ्रष्टाचार समाप्त हो जाएगा। आज यकीन है कि हम भ्रष्टाचार खत्म करेंगे और दिल्ली को भ्रष्टाचार मुक्त राज्य बनाएंगे।’
दिल्ली के मुख्यमंत्री ने शनिवार को अपनी पार्टी के मंत्रियों, विधायकों, कार्यकर्ताओं एवं समर्थकों से अहंकार से दूर रहने की अपील की। रामलीला मैदान में उन्होंने हजारों समर्थकों से कहा, ‘जब इतनी बड़ी जीत मिलती है, तो इंसान के मन में अहंकार जागता है। लेकिन जब ऐसा होता है तो सब खत्म हो जाता है। इसलिए हम सब लोगों को, मुझे, मंत्रियों को, सहयोगियों को चौकस रहना पड़ेगा। हमें टटोलना पड़ेगा कि कहीं हमारे अंदर अहंकार तो नहीं जाग रहा। यदि ऐसा हुआ तो हम अपना मिशन पूरा नहीं कर पाएंगे।’
पांच साल सिर्फ दिल्ली में केजरीवाल 
उन्होंने कहा, ‘दिल्ली चुनाव के बाद हमारे कुछ लोग कह रहे हैं कि हम यहां का चुनाव लड़ेंगे, वहां का चुनाव लड़ेंगे। मुझे इसमें अहंकार नजर आ रहा है। यह ठीक नहीं है।’ केजरीवाल ने कहा, ‘कांग्रेस को लोगों ने इसलिए हराया, क्योंकि उसमें अहंकार आ गया था। पिछले साल मई में लोकसभा चुनाव में भारी बहुमत से जीतने वाली बीजेपी को भी जनता ने यहां इसलिए हराया, क्योंकि उनमें भी अहंकार आ गया था।’ उन्होंने कहा कि दिल्ली में पिछले चुनाव में 28 सीटों पर जीत दर्ज करने के बाद हमारी पार्टी के अंदर भी अहंकार आ गया था और इसलिए हमने लोकसभा चुनाव लड़ने का निर्णय लिया, लेकिन नतीजों से पता चला कि हमें अहंकार नहीं करना चाहिए। मुख्यमंत्री ने कहा, ‘मैं पांच साल तक दिल्ली में रहकर अपनी जिम्मेदारी को पूरे तन मन धन से निभाने की कोशिश करूंगा।’
केजरीवाल ने कहा कि उनकी सरकार वीआईपी संस्कृति समाप्त करेगी। उन्होंने कहा, ‘हम वीआईपी संस्कृति समाप्त करना चाहते हैं। क्या आपको वह स्थिति पसंद आती है जब कोई मंत्री सड़क से गुजरते हैं तो मार्ग बंद कर दिया जाता है और सड़क पर जाम लग जाता है। यूरोप के देशों में प्रधानमंत्री बस स्टॉप पर खड़े नजर आ जाते हैं। हमें उसी तरह की संस्कृति की आवश्यकता है। इसमें समय लगेगा, लेकिन हम इसे करेंगे।’ इसके साथ ही उन्होंने कहा कि हो सकता है कि कल से मीडिया में खबर आने लगेगी अरविंद ने बड़ा बंगला ले लिया और मंत्रियों ने गाड़ियां ले लीं। मुख्यमंत्री ने कहा कि काम करने के लिए हमें इन चीजों की जरूरत है। केजरीवाल अब पक्के राजनीतिक नेता हो गए है।
केजरीवाल ने केंद्र सरकार के साथ रचनात्मक साझेदारी की इच्छा जताते हुए दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग की। उन्होंने कहा, ‘चुनाव नतीजे आने के बाद मैंने प्रधानमंत्री से मुलाकात की और कहा कि पिछले लगभग 15 सालों से बीजेपी अपने चुनावी घोषणा-पत्र में दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की बात कहती रही है। दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने के लिए इससे सुनहरा मौका और कोई नहीं हो सकता, क्योंकि केंद्र में बीजेपी की सरकार है और दिल्ली में ‘आप’ की पूर्ण बहुमत वाली सरकार।’ केजरीवाल ने कहा, ‘मुझे यकीन है कि प्रधानमंत्री दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने के बारे में सोचेंगे। प्रधानमंत्री के पास बहुत काम होते हैं। उन्हें पूरे देश को देखना होता है और विदेश भी जाना होता है। इसलिए जब वह प्रधानमंत्री से मिले तो उनसे कहा कि दिल्ली को दिल्ली वालों पर छोड़ दीजिए।’ हालांकि, यह भी एक तथ्य है कि बीजेपी ने इस बार अपने विजन डॉक्युमेंट में दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने का कोई वादा नहीं किया था।
टीम इंडिया को शुभकामनाएं 
दिल्ली के नए मुख्यमंत्री केजरीवाल ने शपथ ग्रहण समारोह में भाषण के दौरान भारतीय क्रिकेट टीम को शुभकामनाएं दीं और उम्मीद जताई कि 2011 में विश्व कप जीतने वाली टीम इंडिया अपना खिताब बरकरार रखेगी। उन्होंने कहा, ‘मैं भारतीय टीम को शुभकामनाएं देता हूं और मुझे विश्वास है कि वह विश्व कप के साथ घर लौटेगी। भारत रविवार को चिर प्रतिद्वंदी पाकिस्तान के साथ एडिलेड में होने वाले मैच के साथ विश्व कप में अपने अभियान की शुरुआत करेगा। पूरा भारत इस पर ऑंखें गडाए हुए है. सभी टी वी चैनल पर गर्म गर्म चर्चायें भी चल रही है। हमारी और से भी टीम इण्डिया को शुभकामना ! …और भारत पाकिस्तान से जीत गया ७६ रनों से … यही है भारतीयों की दुआओं का असर! ऑस्ट्रेलिया के एडीलंड में एक ख़ास चीज जो मुझे देखने को मिली वह यह कि वहां भारत और पाकिस्तान के दर्शक एक ही दर्शक दीर्घा में बैठे थे और अपने-अपने झंडे लहरा रहे थे. कहते हैं १५ मिनट के अंदर स्टेडियम के सारे टिकट बिक गए थे. अमिताभ बच्चन साहब को कॉमेंट्री करते देख अच्छा लगा. अमिताभ बच्चन ने भी अपनी विनम्रता नहीं छोड़ी. सबके ह्रदय सम्राट अमिताभ के लिए कोई दिन रविवार जैसा छुट्टी का दिन नहीं होता. पर यहाँ कॉमेंट्री करते हुए अपने आपको गौरवान्वित महसूस कर रहे थे. मोदी जी ने भी नवाज शरीफ से क्रिकेट कूटनीति करने का हर सम्भव प्रयास किया. यह है मोदी जी की खासियत. शरद पवार के साथ मंच साझा करने में भी उन्हें कोई हिचक नहीं होती… उद्धव ठाकरे को ‘आप’ के साथ जाना हो तो जाय! (समझे बाबू!). आज अमित शाह के लाडले की शादी की पार्टी है. सुना है जीतन राम मांझी भी गए हैं, भोज खाने और अपना गोटी सेट करने. २० तारिख अब ज्यादा दूर नहीं है. गुप्त मतदान के बाद ही पता चलेगा कि कौन कितना चाणक्यगिरी जानता है? हम लोग तो घर फूंक तमाशा देखनेवाले ठहरे. माझी या नीतीश!… बिहार के सरकार की नैया डगमग कर रही है …अब कौन मांझी इसे पार उतारता है? . अमित शाह के पुत्र के शादी के दिन ही दिल्ली का परिणाम आया था. रंग में भंग पर गया था. आज तो टीम इण्डिया ने पाकिस्तान पर विजय प्राप्त किया है. अत: आज दोहरी खुशी का दिन है. हो सकता है माझी जी जीत जाएँ तब तिहरी खुशी मिल जाएगी … अमित शाह जी को!…. और बिहार फिर नया कुरुक्षेत्र बनेगा. यह तो बाद में पता चलेगा कि यहाँ कौरव कौन है और पाण्डव कौन? चन्द्रगुप्त कौन और धनानंद कौन? पाटलिपुत्र है न! मगध की राजधानी. मौर्य काल वापस लौटेगा तो!
अंतिम पैराग्राफ में पून: केजरीवाल जी के पास आते हैं….
अपने भाषण के अंत में केजरीवाल ने कहा कि आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता हीरा हैं। उन्होंने कहा, दोस्तो, आज मुख्यमंत्री की शपथ मैंने नहीं, आप सबने ली है। दिल्ली का मुख्यमंत्री आज दिल्ली का एक एक नागरिक बना है।’ इसके बाद उन्होंने पिछली बार के शपथ ग्रहण सामरोह में गाया देशभक्ति गाना इस चेतावनी के साथ सुनाया कि वह बहुत खराब गाते हैं और आज तो उनका गला भी खराब है। वंदे मातरम् और भारत माता की जय के नारे के साथ उन्होंने अपना भाषण समाप्त किया।
श्री केजरीवाल द्वारा गाया गया स्वर्गीय प्रदीप का लिखा हुआ गीत-
इंसान का इंसान से हो भाई चारा यही पैगाम हमारा …
हर एक महल से कहो के झोपड़ियों में दिए जलाये
छोटो और बड़ो में अब कोई फर्क नहीं रह जाये
इस धरती पर हो प्यार का घर घर उजियारा…. यही पैगाम हमारा…
इन्सान का इन्सान से हो भाईचारा… यही पैगाम हमारा…
क्या इस एक गाने में आम आदमी पार्टी का विजन नहीं दीखता है, बशर्ते कि ये अपने मकसद में दृढसंकल्प के साथ कामयाब भी हों.
निश्चित ही अगर यह दिल्ली में आम आदमी के सपनो को अगर साकार कर पाते हैं तो देश के दूसरे हिस्सों में भी इनका जनाधार बढ़ेगा, यही नहीं दूसरी पार्टियाँ भी इनसे सीख लेते हुए जनता के कार्यों में रूचि लेगी. हालाँकि कठिनाइयाँ और अनेक बाधाएं आयेगी, फिर भी – श्री हरिवंश राय बच्चन के शब्दों में –
हिम्मत करने वालों की हार नहीं होती, लहरों से डरकर नैया पार नहीं होती।
नन्ही चींटी जब दाना लेकर चलती है, चढ़ती दीवारों पर सौ बार फिसलती है,
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है, चढ़ कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है
आख़िर उसकी मिहनत बेकार नहीं … हिम्मत करनेवालों की हार नहीं होती ….
बस यही शुभकामना है हमारी कि केजरीवाल और आम आदमी पार्टी अपनी छवि को साफ़ सुथरी रक्खे और जनता को किये गए वादे को हर सम्भव पूरा करने का प्रयास करे. अन्यथा पांच साल बाद फिर तो आना ही होगा रणक्षेत्र में. अगर दिल्ली में अच्छा काम हुआ तो इसका असर दूसरे राज्यों के चुनावों पर भी पड़ेगा…. बेचारे बिनोद कुमार बिन्नी और शाजिया इल्मी भी ‘सूर्य किरण’ की आभा के सामने फीके पड़ गए. इन लोगों को नया दरवाजा ढूंढना होगा या घर वापसी करेंगे(?) यह तो समय ही बताएगा. समय सब कुछ सिखला देता है…. और सब दिन एक समान भी नहीं होते…समय परिवर्तनशील है,.यह मानकर हम सबको चलना चाहिए. अहंकार का त्याग ही मनुष्य को श्रेष्ठ बनता है. सचिन तेंदुलकर, अमिताभ बच्चन, डॉ कलाम आदि अनेकों उदाहरण हैं….. इति शुभम! जय हिन्द! जय भारत! वन्दे मातरम!
- जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.

Sunday, 8 February 2015

ग़ज़ब चीज है राजनीति!

हम सभी अगर किसी बड़े और अच्छे मकसद के लिए निकलते हैं तो घर के भगवान के साथ साथ रास्ते के हर मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे, चर्च में सर झुकाने से गुरेज नहीं करते. हमने भरपूर प्रयास किया, अब भगवान ही मालिक हैं. वही नैया पार लगाएंगे. ऐसा ही कुछ मतदान के एक दिन पहले अरविंद केजरीवाल और किरन बेदी सभी धर्म स्थलों में सर झुकाने गए और ईश्वर की आस्था पर बिश्वास किया. किरण बेदी ने तो अपने चुनाव क्षेत्र कृष्णा नगर के गुरूद्वारे में रोटियां भी बेली और सर्वधर्म समभाव और मानव धर्म को सर्वश्रेष्ठ बताया. यह भी बताया कि वह तो बचपन से ही अपनी नानी के साथ गुरूद्वारे में रोटियां बेलने का काम करती रही हैं.
केजरीवाल भी योगासन ध्यान के बाद, ढाढ़ी बाल भी सैलून में जाकर कटवाए. नहा धोकर नाश्ता किया और अपने इलाके के मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारे और चर्च में भी सर झुकाया. भगवान के साथ लोगों से भी मिलते रहे और कहा कि जनता ही तो जनार्दन होती है.
अंतिम दिन भी बयानों के तीर चलते रहे और सभी अपने को बेहतर बताने और विरोधी को कोसने से बाज नहीं आए.
उधर डेरा-सच्चा-सौदा के राम-रहीम ने भाजपा को समर्थन देने का फैसला किया तो भाजपा को कोई परहेज नहीं हुआ. पर जब इमाम बुखारी ने आम आदमी पार्टी को समर्थन करने की घोषणा की तो भाजपा के अरुण जेटली ने चुटकी ली, वहीं आम आदमी पार्टी ने इसे लेने से ही इंकार कर दिया. बुखारी की राजनीतिक मंशा और परिणाम को शायद वे भांप चुके थे. सभी ने अपना-अपना काम किया, फैसला तो जनता ही करने वाली है. पांच साल में एक दिन ही तो मौका मिलता है जनता को इस बार दिल्ली की जनता इस मामले में खुशनशीब रही कि उसे एक साल के अंदर ही तीन चुनावों में अपना मत देने का सुअवसर मिल गया. मतदान का प्रतिशत भी लगातार बढ़ता रहा.
चुनाव के एक दिन पहले अख़बारों में विज्ञापन का भी मुद्दा उठा. दोनों पार्टियां एक दूसरे के फंड का मुद्दा उठाती रही. वही सफाई देने की नाकाम कोशिश भी. अब फैसला तो जनता को करना है. अगर भाजपा के विज्ञापन और विजन दोनों में मामूली गलती भी मुद्दे को तूल देती रही. पहले तो भाजपा ने पूर्वोत्तर को अप्रवासी बताकर फिर माफी भी मांग ली. अब एल ई डी बल्ब को देने और दिए जाने का मुद्दा भी छाया रहा. हिंदी में छापा गया – ८० लाख एल ई डी बल्ब देने की योजना है तो अग्रेजी में छपा ८० लाख एल ई डी बल्ब दे दिए गए.
जहाँ अपनी वक्तृत्व कला का लोहा दुनिया को मनवा चुके श्री मोदी दिल्ली की अंतिम रैली में घबराये हुए नजर आये और सर्वे करने वाले मीडिया को बाजारू तक कहा डाला, तो अमित शाह भी यह कहते हुए पाये गए कि दिल्ली का जनमत मोदी सरकार के काम काज का जनमत संग्रह नहीं है. हो सकता है केजरीवाल अपनी बात लोगों तक पहुँचाने में कामयाब हो गए हैं. श्रीमान वेंकैया नायडू भी इसी बात को अमित शाह से पहले ही कह चुके हैं. शायद इन सब लोगों को भी मीडिया के ओपिनियन पोल पर भरोसा हो गया है. देखें है ऊँट किस करवट बैठता है. अब तो एग्जिट पोल के नतीजे भी आम आदमी पार्टी को सत्तासीन देखना चाह रही है. अंतिम फैसला तो १० फरवरी को ही होना है.
स्वभाव से सख्त और कठोर अनुशासन के लिए प्रसिद्ध किरण बेदी को जनता के सामने रोना भी पड़ता है, गला रुंध जाता है तो कभी-कभी बैठ भी जाता है. अपने प्रतिद्वंद्वी चिर-भ्राता केजरीवाल को भला-बुरा भी कहना पड़ता है. वहीं केजरीवाल अपनी मुंह बोली बड़ी बहन (किरण बेदी) को भी अवसरवादी और भाजपा के प्रति पहले से ही सॉफ्ट बताने से नहीं चूकते.
बेचारे अन्ना अपने दोनों दायें-बाएं हाथ को ताली बजाते हुए देखते हैं और मन ही मन मुस्काते हैं. – मैंने तो पहले ही कहा था राजनीति बड़ी गंदी चीज है. लेकिन उनके चेले तो इस गंदगी को साफ़ करने के इरादे से राजनीति रूपी कीचड में उत्तर चुके हैं. अपने हाथ पाँव और मुंह गंदे कर चुके हैं. सभी दिल्ली को अपने अपने तरीके से स्वर्ग बनाना चाहते हैं, झुग्गी झोपड़ी रहित आलीशान बनाना चाहते हैं. चौबीस घंटे सस्ती बिजली और पानी मुहैया करना चाहते हैं. नालियां साफ़ करना चाहते हैं. सड़के सुन्दर बनाना चाहते हैं, अपराध मुक्त बनाना चाहते हैं. अगर ये जीत गए तो अपराधी कहाँ जायेंगे? खुशबूदार ताजी हवा कहाँ से लाएंगे, इन्हे खुद पता नहीं पर जनता को सब्जबाग दिखलाने में हर्ज ही क्या है? आखिर यही जनता तो उनको फर्श से अर्श तक पहुंचाती है.
पिछले लेख में मैंने लिखा था – वादे हैं वादों का क्या! अब अमित शाह जी भी कह रहे हैं वह तो चुनावी जुमला था. इसी चुनावी जुमले का इस्तेमाल हर राजनीतिक पार्टियां शुरू से करती आ रही है. इतने सालों से कांग्रेस गरीबी दूर करती रही. अब भाजपा और दूसरी पार्टियों को मौका मिला है, गरीबी हटाने का, सूट पहनने का और टोपी पहनाने का. जनता भी कितनी भोली है, जो बहुत ही जल्द इनके बहकावे में आ जाती है. कभी राम मंदिर, तो कभी हिन्दू राष्ट्र तो कभी अधिक बच्चे पैदा करने की नशीहत. संघाई बनाने का सपना, स्मार्ट सिटी, स्मार्ट कार्ड, स्मार्ट मोबाइल सब कुछ कितने स्मार्ट तरीके से कहे जाते हैं और स्मार्ट के हरेक अक्षर का मीनिंग (मतलब) भी यही बताते हैं.
कुर्सी बड़ी प्यारी होती है सबको ललचाती है, पास बुलाती है. बैठाती है, फिर चिपका लेती है. नितीश बाबू, चाणक्य से चन्द्रगुप्त और चंद्रगुप्त से चाणक्य बनते हैं फिर उन्ही का चन्द्रगुप्त (जीतन राम मांझी) उन्हें ऑंखें दिखाता है. यही कुर्सी बड़े भाई लालू जी से दूर तो फिर नजदीक लाती है. गरीबों, पिछड़ों, दलितों के मसीहा यही कहलाते हैं, तभी तो चतुर राजनीतिज्ञ कहलाते हैं.
एल ई डी बल्ब, थोड़ा महंगा जरूर है पर इसकी लाइफ ज्यादा दिनों तक की होती है, यह कम बिजली में ज्यादा प्रकाश देती है, यह बात कितनों को पता था? पर यह अब हर किसी को मालूम है. अब देखना यही है कि यह एल ई डी कितने घरों को रोशन कर पाती है. ऐसे भी महंगाई कम होने से (बतौर अमित शाह) – हर व्यक्ति को हर महीने हजारों रुपये के बचत हो ही रही है. तो ले आइये एल ई डी बल्ब, बिजली बचाइये खुद के साथ औरों के घरों को भी रोशन होने दीजिये. समझे न बाबू.
खबरनसीबों अर्थात मीडिया वालों को खूब मसाला मिलता है और वे इसे भुनाते भी हैं, चटखारे लेकर सुनाते भी हैं. वहीं खुशनसीब और बदनसीब की परिभाषा भी बतलाते हैं. चाहे जो हो परिणाम तो १० को ही आएगा, मगर ऐसा लगता है भाजपा यानी मोदी जी के विजय रथ का घोड़ा पकड़ लिया गया है, जिसका दूरगामी परिणाम बिहार, उत्तर प्रदेश, बंगाल आदि राज्यों के चुनावों में असर होना लाजिमी है. आम आदमी पार्टी के अस्तित्व का पुनरुद्धार होगा, अगर दिल्ली में ठीक ठाक सरकार चल गयी तो! भाजपा को भी अपनी रणनीति बदलनी होगी. हिंदूवादी संगठनों पर लगाम लगाना होगा, साथ ही मोदी जी को धरातल पर भी परिणाम दिखलाना होगा. केवल हाइप से काम नहीं चलने वाला. और वे खुद भी स्वीकार कर चुके हैं झूठ एक बार चलता है बार बार नहीं चलता. कुछ पुराने जमीन से जुड़े नेताओं को भी आगे लाना होगा. केवल मोदी और अमित शाह का चेहरा नहीं चलेगा.
सत्ता मिलते ही हर कोई गुरूर महसूस करने लगता है, सफाई अभियान का केवल फोटो सेसन नहीं चलनेवाला. सफाई दिखनी चाहिए. विदेशी निवेश दिखनी चाहिए. ऐसा न हो कि जिसके स्वागत में पूरा तंत्र लगा दिया गया हो वह अंत में धार्मिक सहिष्णुता का उपदेश देकर चला जाय और अपने देश जाकर भी हमारी भद्द करे. महात्मा गांधी का नाम लेकर हमें ही सीख देने लगे. कुछ तो गलतियां हर सत्ताधारी दल से होती है, जिसका खामियाजा उसे बाद में भुगतना पड़ता है. अभी भाजपा के पास समय है और कांग्रेस को सम्हलने में देर है तब तक भाजपा को अपनी विकासवादी छवि को ही बरक़रार रखना होगा. दूसरे की गलती निकालना तो विरोधी दल का काम है.सत्ताधारी दल को अपनी उपलब्धि दिखलानी होती है वह भी धरातल पर. एक चीज और साबित हो रही है कि अब लोग घरों से बाहर निकलकर मतदान करने लगे हैं, मतदान केन्द्रों पर भीड़ यह बतलाती है कि लोगों में जागरूकता बड़ी है और अब लोग धर्म, जाति, भाषा और क्षेत्रवाद से ऊपर उठकर मुद्दों के आधार पर अपना मत देने लगे हैं. यह लोकतंत्र की मजबूती को ही दर्शाता है. अगर विकल्प मौजूद है तो हम अपनी राय भी बदल सकते हैं, मोबाइल फोन की तरह.
ये सटोरिये भी हर चीज में सट्टा लगाते हैं.. कभी क्रिकेट के खेल में, तो कभी राजनीति की उठापटक में भी. कोई दिल्ली में भाजपा की सरकार बनते देख रहा है तो कोई केजरीवाल को मुख्यमंत्री की शपथ लेते देख रहा है. यानी भाजपा की सरकार में केजरीवाल मुख्य मंत्री …इसी को कहते हैं – इंसान का इंसान से हो भाईचारा यही पैगाम हमारा. अगर यह सपना सच हुआ तो सारे जहाँ से अच्छा गुलसिताँ हमारा. लोकतंत्र और आम आदमी की ताकत ! जय हिन्द! जय भारत!
- जवाहर लाल सिंह , जमशेदपुर