हिसार, हरियाणा पुलिस ने
स्वयंभू संत रामपाल को आखिर में गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश कर दिया|
फ़िलहाल वह पूछ ताछ के लिए पुलिस की निगरानी में है. उसकी गिरफ्तारी से पहले
जो भी नाटक हुए उससे पूरा देश परिचित है. बीमारी का बहाना बनाकर कोर्ट और पुलिस से
बचने का नाटक करनेवाले रामपाल पूर्णत: स्वस्थ पाए गए. पर इस प्रकरण और इसके पहले
संत असहाराम के प्रकरण से कई सवाल आम आदमी के जेहन में उठाना लाजिमी है.
सर्वश्रेष्ठ कहे जाने वाले सनातन अथवा हिदू धर्म क्या इतना कमजोर है या अब
अप्रासंगिक हो गया है कि कोई भी अदना सा आदमी लोगों को आस्था के नाम पर बेवकूफ
बनाता रहे और समाज एवं सरकार चुपचाप देखती रहे. एक नासूर को पूरा जख्म बनने का
इंतज़ार करता रहे और एक भयंकर बिष्फोट को जन्म दे.
कहते हैं, महर्षि वेद्ब्यास ने दंडकारण्य में सभी ऋषियों- मनीषियों की सभा
बुलाई थी और सबके ज्ञान को एकत्रित कर चार वेद, छ: शास्त्र और अठारह पुराण की रचना
की थी. उन अठारहों पुराण में एक बात
सामान्य थी – परोपकार से पुन्य होता है और दूसरों को पीड़ा पहुँचाने से पाप.
(अष्टादशु पुरानेषु ब्यासस्य वचनम द्वयं परोपकाराय पुण्याय पापाये परपीडनम). हिन्दू
धर्म और सनातन धर्म इसे ही मानते हैं. फिर क्यों नाना प्रकार के पंथ-प्रचारक बने,
सबने धर्म की अलग अलग व्याख्या की और नए नए धाम बनते चले गए. जैन, बुद्ध, सिक्ख
आदि धर्म के मूल में सनातन धर्म ही है. फिर आज अनेक प्रचारक/उपदेशक अपनी अपनी डफली
बजाकर अप स्वार्थ सिद्ध कर रहे हैं. फलस्वरूप नए नए लोग जाल में फंसते जा रहे हैं
और उनका भन्दा भी फूटता जाता है. प्रश्न फिर वही है कि यह सब एक दिन में तो नहीं
हुआ न! काफी समय लगे, साल महीने दिन लगे ...पर चेतना तब जागती है जब बंटाधार हो
चूका होता है. बाकी सभी समाचार सभी को मीडिया के द्वारा मालूम है. उनमे से कुछ
सारांश इस प्रकार है.
रामपाल की गिरफ्तारी के बाद उससे जुड़े सनसनीखेज खुलासे सामने आ रहे हैं।
हिसार के बरवाला के सतलोक आश्रम में पुलिस सर्च ऑपरेशन चला रही है। एक अखबार में
छपी खबर के अनुसार सतलोक आश्रम में तलाशी के दौरान पुलिस को कंडोम, महिला शौचालयों में खुफिया कैमरे, नशीली दवाएं, बेहोशी की हालत में पहुंचाने वाली गैस, अश्लील साहित्य समेत काफी आपत्तिजनक सामग्री मिली है।
छपी खबर के मुताबिक आश्रम में सत्संग के लिए आए एक अनुयायी ने बताया कि
ध्यानमग्न रामपाल को दूध से नहलाया जाता था और बाद में उसी दूध की खीर बनाकर
प्रसाद के तौर पर बांट दिया जाता था। अनुयायियों को कहा जाता है कि यही खीर उनकी
जिंदगी में मिठास लाएगी।
रोहतक स्थिति करौंथा आश्रम में रामपाल ने सुरंग बनवा रखी है। वह अक्सर उसी
सुरंग में लगी लिफ्ट के माध्यम से प्रकट होता था। यहां सभी आधुनिक सुविधाएं मौजूद
हैं। आश्रम में छापामारी के दौरान यहां 30 किलो सोने के जेवरात मिले। इनमें
ज्यादातर महिलाओं के मंगलसूत्र और हार हैं। यहां नोटों से भरी कई बोरियां और
सिक्कों से भरी 17 बोरियां मिली हैं। इसके साथ ही विदेशी शराब की कई बोतलें और
अय्याशी के कई और सामान भी बरामद हुए।
बाबा रामपाल की काली दुनिया का सच - रामपाल ने ये भीड़ कैसे जुटाई। ये कौन
लोग हैं जो रामपाल के लिए मरने मारने पर उतारू हैं। क्या आपने कभी सोचा है कि
रामपाल नाम के जिस इंजीनियर ने जिंदगी में कभी सड़क का पुल नहीं बनाया वो आत्मा और
भगवान के बीच का पुल का ठेकेदार कैसे बन बैठा?
आठ साल पहले लेकर चलते हैं आपको। उसके पास तहखाना भी था। यही वो भेद है, जिसमें घुसकर रामपाल को भगवान का चोला ओढ़ रखा था।
रोहतक के सतलोक आश्रम का सच दहला देने वाला है। यह सतलोक नहीं है। रामपाल का
मायालोक है। इस मायालोक में विज्ञान के अविष्कारों से उसने फरेब का एक ऐसा आभामंडल
तैयार किया था, जिसने बर्खास्त जूनियर इंजीनियर रामपाल को बाबागीरी का उस्ताद बना दिया।
इस मायालोक में एक सिंहासन था। वहां से रामपाल अपने भक्तों को दर्शन दिया
करता था। इसके चारों तरफ बुलेट प्रूफ शीशा लगा हुआ होता था। किसी को पता नहीं चलता
था कि रामपाल इसके भीतर कैसे पहुंचता है। वो नीचे से कहीं से निकलता था। यही नहीं, जब यहां का प्रवचन खत्म हो जाता था तो बिना बाहर
निकले वो दूसरी तरफ हाजिर हो जाता था।
यहां भी वो नीचे से ऊपर की ओर निकलता था। लोग ताज्जुब में कि बाबा एक ही
जगह में दो जगह कैसे। इसका राज था ये तहखाना। इसी तहखाने से रामपाल दौड़कर दूसरी
तरफ भागता था। और इसे एक चमत्कार में बदलने के लिए उसने अपनी सारी इंजीनियरिंग
भिड़ा दी थी। ये सिंहासन दरअसल एक हाईड्रोलिक मशीन पर टंगा हुआ होता था।
इस सिंहासन के हत्थे में ही बटन लगे होते थे। बटन दबाते ही बाबा तहखाने से
सीधे प्रवचन के डिब्बे में पहुंच जाता था। और प्रवचन खत्म तो बटन दबाया सिंहासन
नीचे। अब नीचे ही नीजे बनी हुई थी एक सुरंग। इस सुरंग से रामपाल दूसरे हिस्से में
भागता। ये सुरंग सिर्फ रामपाल के फरेब के काम में आती थी।
सुरंग के रास्ते रामपाल एक हिस्से से दूसरे हिस्से में पहुंच जाता। वहां भी
बिल्कुल उसी तरह का सिंहासन। हाइड्रोलिक मशीन पर टंगा हुआ। बटन दबाते ही सिंहासन
ऊपर की ओर चल पड़ता। जहां रामपाल के भक्त उसका इंतजार कर रहे होते। रामपाल बिना
दिखे या चले हुए ऐसे निकलता जैसे जमीन फाड़कर निकला हो। लोगों की आंखें फटी की फटी
रह जातीं। उन्हें लगता कि ये तो सचमुच में चमत्कार है। और बाबा भगवान का अवतार है।
2000 से 2006 तक रामपाल करौंथा में रोज ये कलाकारी दिखाता रहा। दूर-दूर तक
उसने अपने इस ढकोसले को चमत्कार की तरह बेचा। वो तो एक दिन आश्रम से गोली चली। एक
नौजवान की मौत हुई और पुलिस आश्रम में घुस गई। तब जाकर पता चला रामपाल ने अपनी
बाबागीरी का बढिय़ा बाज़ार सजा रखा है।
ये उस जमाने की बात है जब रामपाल गोलीकांड में अपने 37 गुर्गों के साथ
गिरफ्तार हो गया था। तब रामपाल इतना बड़ा नहीं हुआ था। ये कितनी अजीब बात है कि
जिस रामपाल की पोल पट्टी 8 साल पहले खुल चुकी थी वो रामपाल जब दो साल बाद जेल से
निकला तो भक्ति की चादर ओढ़कर फिर से घी पीने लगा। अगर भक्तो की दुनिया ने उसके
फरेब की तरफ से आंखें नहीं बंद की होती तो एक भयानक विश्वासघात से हम अपनी दुनिया
को बचा लेते।
दो दिनों की मशक्कत के बाद गिरफ्त में आए स्वयंभू संत रामपाल को पुलिस ने
अदालत की अवमानना के मामले में पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट में पेश कर दिया है।
हाई कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई शुरू करते हुए पुलिस से रामपाल के खिलाफ चलाए गए
ऑपरेशन और उनकी ओर से किए गए प्रतिरोध पर रिपोर्ट मांगी। अदालत ने डेरों में
गैर-कानूनी हथियारों की मौजूदगी पर गंभीर चिंता जताई। इस मामले में अगली सुनवाई 28
नवंबर को होगी। हाई कोर्ट हत्या के मामले में उनकी जमानत सुबह ही रद्द कर चुका है।
कानून
का शासन लागू करने में हरियाणा के बरवाला में जिस प्रकार बाबा रामपाल के
अनुयायियों और पुलिस के बीच खुला टकराव सामने आया है उसने एक पुरानी समस्या को नए
सिरे से सतह पर ला दिया है। धर्म पर फिर सवाल खड़े हो रहे हैं और ऐसा इसलिए हो रहा
है, क्योंकि उनका आचरण ही संदेह के घेरे में है जो खुद को संत
अथवा धर्म का रक्षक घोषित करते हैं। जिन बाबा रामपाल ने हरियाणा पुलिस को नाको चने
चबवा दिए उनके बारे में कुछ बातों को जान लेना जरूरी है। रामपाल इंजीनियर से कथित
संत बने। उन्होंने कबीर पंथ को अपनाकर 1999 में
करौंथा में सतलोक आश्रम की स्थापना की। आज यह आश्रम 16 एकड़
की भूमि में फैला है। आश्रम किसी किले से कम नहीं है। तीन पर्तो में बनी
दीवारों को आसानी से पार नहीं किया जा सकता। इसमें एक लाख भक्तों के बैठने और 50 हजार
से अधिक के रहने व खाने की पूरी व्यवस्था है। उन्होंने कई और आश्रम स्थापित किए,
जिनमें
बरवाला का आश्रम भी शामिल है। बाबा के पास इस समय सत्तर से अधिक महंगी गाड़ियां
हैं। दिल्ली, राजस्थान व मध्य प्रदेश में भी रामपाल की करोड़ों की संपत्ति
है। कुल मिलाकर पिछले एक दशक में बाबा ने सौ करोड़ से भी अधिक का अपना साम्राज्य
खड़ा कर लिया। वह हत्या के एक मामले में वांछित हैं और करीब चालीस नोटिसों का
सामना कर रहे हैं। उन्हें गिरफ्तार करने गई पुलिस को अप्रत्याशित प्रतिरोध का
सामना करना पड़ा और इसकी परिणति एक बच्चे समेत पांच महिलाओं की मौत और तीन सौ
लोगों के घायल होने के रूप में हुई। 1 बाबा रामपाल का सतलोक आश्रम
जिस तरह हिंसा की रणभूमि बना उससे पुलिस के खुफिया तंत्र की नाकामी पर सवाल तो उठे
ही हैं, साथ ही सरकार की उदारता भी साफ नजर आई है। आश्रम के अंदर से
बंदूक, रायफल और अन्य कई लाइसेंसी व गैर लाइसेंसी हथियारों से हमला
किया गया। साथ ही आश्रम में भारी मात्र में पेट्रोल बम व तेजाब के साथ में
लाठी-डंडे होने के भी साक्ष्य मिले हैं। आश्रम केअनुयायियों ने बाहर आकर जिस
प्रकार अपनी व्यथा बयान की है उससे साफ पता लगता है कि आश्रम के अंदर बहुत कुछ गलत
हो रहा था। जहां तक स्वयंभू संत बाबा रामपाल का सवाल है तो वह अचानक ही सुर्खियों
में नहीं आए। वह पहली बार 2006 में आर्य समाज के संस्थापक
स्वामी दयानंद सरस्वती की पुस्तक सत्यार्थ प्रकाश पर विवादास्पद टिप्पणी कर चर्चा
में आए थे। इसी के चलते आर्य समाजियों से विवाद बढ़ा और दोनों के समर्थकों की
हिंसक झड़प में एक व्यक्ति की मौत हो गई। बाबा रामपाल इसी मामले में वांछित हैं।
रामपाल का मामला नया-अनोखा नहीं है। बीते साल एक कथावाचक आसाराम की गिरफ्तारी के
समय भी ऐसा ही दृश्य सामने आया था। रामपाल खुद को धार्मिक और आध्यात्मिक गुरु
घोषित करते हैं, परंतु उनका या उनके अनुयायियों का जिस प्रकार का आचरण
अराजकता के रूप में सामने आया है वह किसी भी हालत में धर्मानुकूल नहीं कहा जा
सकता। हिसार में जिस प्रकार से धार्मिक आस्था से कानून का टकराव हुआ वह सीधे-सीधे
विधि के शासन को खुली चुनौती है। धर्म कई बार आस्था के नाम पर भाव शून्यता और
अंधभक्ति को बढ़ाता है। सच यह है कि धार्मिक नेता स्वयंभू बनकर लोगों की गहन आस्था
और उनकी अंधभक्ति का लाभ उठाकर उनमें एक छद्म धार्मिक चेतना का संचार कर देते हैं।
धर्म के नाम पर यह एक प्रकार का सम्मोहन है। इसके माध्यम से धर्म गुरु अपनी हर
क्रिया को नैतिकता का लबादा ओढ़ाता है और भक्तों के सामने स्वयं की छवि को ईश्वर
के नजदीक ले जाता है। स्वयंभू बाबाओं की यही वह स्थिति है जहां वे अपनी धार्मिक
सत्ता को धनोन्मुख सत्ता में रूपांतरित करने में कामयाब हो जाते हैं। शायद इसी वजह
से तमाम धार्मिक संस्थानों और धर्मगुरुओं के पास अकूत धन,
संपत्ति,
जमीन,
निजी
सेना व बाहुबल का विस्तार होता चला जाता है। इन सभी का इस्तेमाल ये लोग अपनी
धार्मिक सत्ता को देश व विदेश में फैलाने में अधिक करते हैं। कड़वा सच यह है कि
धर्म अब धीरे-धीरे नैतिकता के लिबास को छोड़ रहा है। सामुदायिक ढांचे के कमजोर
होने से समाज में बढ़ती वैयक्तिक असुरक्षा और रातों-रात भौतिक लक्ष्यों को प्राप्त
करने की लालसा लोगों को इन धर्मगुरुओं के नजदीक जाने को मजबूर कर रही है। केवल
इतना ही नहीं, इस धर्म की सत्ता से अब राजनीति की वैतरणी पार करने के दावे
भी सामने आने लगे हैं। ऐसे तमाम उदाहरण हैं जहां अनेक राजनेता इन धर्मगुरुओं के
समक्ष दंडवत करते नजर आते हैं। इसी से जुड़ा यहां यक्ष प्रश्न यह भी है कि आखिर
बाबा रामपाल और उनके समर्थकों ने कानून के सारे नियम व कायदों को ताक पर रखकर
हिंसा के सहारे न्यायपालिका की अवमानना करने की हिम्मत कैसे और क्यों दिखाई। वह
इसलिए, क्योंकि वे अपने राजनीतिक और प्रशासनिक रसूख और उनकी गहराई व
कमजोरियों को बखूबी जानते हैं। अब समय आ गया है कि देश की तमाम ऐसी धार्मिक
संस्थाओं व ऐसे धर्म गुरुओं की धर्म और अंधविश्वास के नाम पर जुटाई धन-संपत्ति की
जांच करते हुए उसे कानून के दायरे में लाया जाए। आज ये संस्थान काले धन को श्वेत
करने के भी माध्यम बन गए हैं। आश्रमों अथवा डेरों का धर्म,
नैतिकता
और अध्यात्म से कोई लेना-देना नहीं है। फिर भी समाज में इनकी पैठ लगातार बढ़ रही
है। कानून के दबाव में रामपाल और उनके समर्थकों की घेराबंदी तो हो चुकी है,
परंतु
भविष्य में जनता ऐसे बाबाओं के चंगुल में न फंसे, इसके लिए समाज को भी आस्था और
अंधविश्वास में फर्क करना आना चाहिए। ऐसे बाबाओं से देश के संविधान को भविष्य में
चुनौती न मिले, इसके लिए भी राजनेताओं को समय रहते आत्ममूल्यांकन करने की
आवश्यकता है।
जवाहर
लाल सिंह, जमशेदपुर