Sunday, 5 October 2014

धार्मिक आयोजन और भगदड़

भारत में बड़े धार्मिक आयोजन के दौरान भगदड़ की घटनाएं अक्सर होती रही हैं.
आइये कुछ आंकडे देखते हैं, जो अंतर्जाल से लिए गए हैं.
त्योहारों और विशेष आयोजनों के मौकों पर धार्मिक स्थलों में श्रद्धालुओं की भीड़ भारत में आम बात है लेकिन कई बार भगदड़ मचने से रंग में भंग हो जाता है ... 1986 - हरिद्वार में एक धार्मिक आयोजन के दौरान भगदड़ में 50 लोगों की मौत हो गई.
14-01-2011 - ... 100 लोगों की मौत हो गई है. श्रृद्धालुओं को लेकर जा रही जीप के नियंत्रण खो देने और लोगों से टकरा जाने के बाद मची भगदड़ से हुआ हादसा. ...
08-11-2011 - हरिद्वार में हुई एक भगदड़ के दौरान कम से कम 16 लोग मारे गए और 40 जख्मी हुए हैं. गंगा के किनारे शांतिकुंज आश्रम के एक आयोजन के दौरान मुख्य समारोह स्थल के एक गेट पर भगदड़ मची. ... भगदड़ उस समय हुई जब कुछ श्रद्धालुओं ने गायत्री परिवार के धार्मिक अनुष्ठान में हिस्सा लेने की जल्दी की.
14-01-2012 - मध्यप्रदेश के रतलाम में शहीदे कर्बला के 40 वें दिन हुए धार्मिक आयोजन के दौरान अचानक भगदड़ मच गई। इस भगदड़ में बारह लोगों की मौत हो गई और कई अन्य जख्मी हो गए।
20-02-2012 - गुजरात में भगदड़, 6 लोगों की मौत गुजरात के जूनागढ़ में आयोजित शिवरात्रि मेले में रविवार रात हुई भगदड़ में 6 लोगों ... के लिए लाखों श्रद्धालुओं की एकत्रित भीड़ में अचानक हुई भगदड़ से 6 लोगों की मौत हो गई, जिनमें 3 महिलाएं और 1 बच्चा शामिल हैं।
24-09-2012 ... देवघर में अनुकूल चन्द्र ठाकुर की 125वीं जयंती पर सत्संग आश्रम में आयोजित समारोह में भगदड़ मे कम से कम 9 यात्रियों की मृत्यु और अनेक के घायल होने की घटना
11-02-2013 - बारह वर्षों में होने वाले कुंभ मेले में कल रविवार को मौनी अमावस्‍या के दिन इलाहाबाद के रेलवे स्‍टेशन पर भगदड़ मच जाने से लगभग 36 लोगों की मौत हो गयी।
26 अगस्त 2014 ... मथुरा के बरसाना और देवघर के श्री ठाकुर आश्रम में मची भगदड़ से लगभग एक दर्जन श्रद्धालु मारे गए थे।
०४.१०.२०१४ को आंध्रप्र्रदेश के कुर्नूल जिले में एक मंदिर में आयोजित एक धार्मिक समारोह में भगदड़ मच गई। भगदड़ में 12 साल के एक बच्चे की मौत हो गई जबकि 37 श्रद्धालु घायल हो गए।
०३.१०.२०१४ बिहार की राजधानी पटना में रावण दहन के बाद भगदड़ में मरने वालों की अधिकारिक  संख्या 3बतायी जा रही है. पटना के गांधी मैदान में हुई इस घटना पर राज्य के गृह सचिव आमिर सुभानी ने घटना की पुष्टि करते हुए बताया कि 100 से ज्यादा लोग घायल हुए हैं. घटना की उच्चस्तरीय जांच के आदेश दे दिए गए हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार के सीएम जीतन राम मांझी से फोन पर बात की है. पीएम ने मृतकों के परिजनों को 2-2 लाख रुपये का मुआवजा देने का ऐलान किया है.
घटना एक्जीबिशन रोड इलाके में रामगुलाम चौक के पास उस वक्त हुई जब अफवाह की वजह से भगदड़ मच गई. घायलों को पीएमसीएच में भर्ती कराया गया है. पटना के डीएम मनीष वर्मा ने बताया कि हादसे में मरने वालों में अध‍िकतर महिलाएं और बच्चे हैं. डीएम का कहना है कि हादसे की वजह की जांच की जा रही है.
पुलिस के मुताबिक लोग गांधी मैदान में आयोजित रावण दहन कार्यक्रम से लौट रहे थे. वहीं, मां दुर्गा की मूर्ति विसर्जन के लिए भी इसी रास्ते पर सैंकड़ों की तादाद में लोग मौजूद थे. बताया जा रहा है कि इस दौरान किसी ने बिजली का तार गिरने की अफवाह फैला दी. चश्मदीदों के मुताबिक जिस वक्त भगदड़ मची उस वक्त गांधी मैदान का सिर्फ एक गेट ही खुला था और एक्जीबिशन रोड पर काफी भीड़ थी. हादसे के बाद कई लोग लापता हैं जिनके परिजन तलाश कर रहे हैं. चश्मदीदों का कहना है कि जिस वक्त घटना हुई, उस वक्त मौके पर रोशनी न के बराबर थी. घटनास्थल के पास अब भी लोगों के चप्पल जूते बिखरे पड़े हैं.
हादसे के बाद सियासत भी शुरू हो गई है. बीजेपी सांसद रामकृपाल यादव ने राज्य की जेडी(यू) नीत सरकार पर लापरवाही बरतने का आरोप लगाया है. बीजेपी नेता सीपी ठाकुर ने कहा कि राज्य सरकार और स्थानीय प्रशासन भीड़ की तुलना में इंतजाम करने में विफल रहे हैं. पूर्व सीएम लालू यादव ने कहा है कि भगदड़ प्रशासनिक चूक का मामला है.
पटना में उसी दिन सुबह ही एक सड़क हादसा हुआ था जब फुलवारीशरीफ में एक कार ने आठ लोगों को रौंद दिया. इस हादसे में चार लोगों की मौत हो गई. गौरतलब है कि साल 2012 में छठ पर्व के दौरान भी पटना के गंगा घाट पर भगदड़ मच गई थी जिसमें कई लोग मारे गए थे.
दो वर्ष पूर्व छठ पर्व के दौरान भी पटना में इसी तरह भगदड़ मची थी लेकिन उससे कोई सबक न लेते हुए इस बार भी प्रशासन की इंतजाम नाकाफी थे। हादसे के बाद नाराज लोगों ने घटनास्थल पर और पीएमसीएच के बाहर हंगामा किया। गृह मंत्रालय ने हादसे पर रिपोर्ट तलब की है।
पांच लाख से ज्यादा की भीड़ से खचाखच भरे गांधी मैदान में 60 फीट ऊंचा रावण का पुतला बनाया गया था। पुतला दहन कार्यक्रम में मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी ने भी शिरकत की थी। बताया गया है कि रावण, कुंभकर्ण व मेघनाद के पुतलों में आग लगने के बाद जैसे ही लोग मैदान से बाहर जाने लगे, तभी भगदड़ मची। मैदान के अंतर्गत रामगुलाम चौक के नजदीक मची भगदड़ में अंधेरा होने के कारण लोग चपेट में आते चले गए। बताते हैं कि भगदड़ बिजली का तार टूटने की अफवाह फैलने के बाद मची। सुरक्षा में लगे पुलिसकर्मियों ने स्थिति पर काबू पाने की कोशिश की लेकिन वे असफल रहे। घटना के बाद बचाव के उपाय न होने से लोगों में काफी आक्रोश था। वे हंगामे पर उतारू हो गए। मुख्यमंत्री ने घटना की जांच का आदेश दिया है। गृह सचिव और एडीजी घटना की जांच करेंगे।
यह वही गांधी मैदान है जहां पर अक्टूबर, 2013 में नरेंद्र मोदी की रैली हुई थी और उस दौरान बम विस्फोट हुए थे। बावजूद इस सबके प्रशासन ने कोई सतर्कता नहीं बरती।
80 के दशक में जमशेदपुर में भी विजयादशमी के दिन भगदड़ मची थी और कई लोग मारे गए थे. उसके बाद जमशेदपुर में भगदड़ का इतिहास नहीं है. यहाँ के प्रशासन और अनुशासित नागरिकों ने भी सबक ले लिया.
दिक्कत यह है कि ऐसी घटनाएं होने के बाद भी न धार्मिक आयोजनों के आयोजक और न ही स्थानीय प्रशासन सावधान रहता है। स्थानीय प्रशासन इसलिए इन आयोजनों में हस्तक्षेप नहीं करता, क्योंकि इससे धार्मिक भावनाएं भड़कने का खतरा होता है। इनके आयोजकों में भी इसलिए लापरवाही होती है, क्योंकि वे जानते हैं कि धार्मिक आयोजन होने के नाते वे काफी छूट ले सकते हैं। कम ही धार्मिक प्रतिष्ठान हैं, जो आम लोगों की सुविधा और सुरक्षा के नजरिये से योजनाबद्ध तरीके से आयोजन करते हों।
ज्यादातर जगहों पर आने-जाने के मार्ग इतने संकरे होते हैं कि भगदड़ होने पर लोगों के कुचले जाने का खतरा होता है। इन दिनों भीड़ के नियंत्रण के लिए धार्मिक प्रतिष्ठानों में ऐसे बैरिकेड लगा दिए जाते हैं कि भगदड़ होने पर कोई इधर-उधर नहीं हो सकता। ज्यादातर मंदिरों या अन्य धार्मिक प्रतिष्ठानों का निर्माण तब हुआ था, जब देश की आबादी इतनी नहीं थी और यातायात के साधन भी सुगम नहीं थे। अब तो दूरदराज के मंदिरों में भी आसानी से लाखों लोग पहुंच जाते हैं। कई मंदिरों में पहले कुछ विशेष अवसरों पर ही थोड़ी-बहुत भीड़ होती थी, अब रोज वहां मीलों लंबी लाइनें देखने को मिलती हैं।
हमारा आम रवैया यह होता है कि जब तक दुर्घटना नहीं हो जाती, तब तक कुछ नहीं करते और अगर दुर्घटना हो जाती है, तो दूसरों पर जिम्मेदारी डाल देते हैं। अब संचार और यातायात की सुविधा की वजह से लाखों लोगों का किसी आयोजन में इकट्ठा होना कोई मुश्किल नहीं है, इसलिए सुरक्षा के मामले में लापरवाही का रवैया चल नहीं सकता और यह बात सिर्फ आयोजकों को नहीं, वहां पहुंचने वाले श्रद्धालुओं को भी समझनी होगी। कोई नहीं चाहता कि श्रद्धा से की गई तीर्थयात्रा किसी के लिए मृत्यु का कारण बने, लेकिन धार्मिक आयोजन तभी सुरक्षित होंगे, जब आयोजक और श्रद्धालु, दोनों व्यवस्था और अनुशासन बनाए रखने की अपनी जिम्मेदारी को समझें।
आजकल अन्धानुकरण भी काफी बढ़ गया है, सभी लोग इन धार्मिक आयोजनों में शामिल होकर अपने पाप धो डालना चाहते हैं या पुण्य कमाकर सीधे स्वर्ग जाने की कामना रखते हैं. इसमे किसी को भी जरा सा धैर्य नहीं होता. आखिर हम सब विकसित होकर क्या सीख रहे हैं. आस्था होना अलग बात है और अन्धानुकरण अलग. हमें इनमे फर्क करना सीखना होगा. खासकर इन दुर्घटनाओं में बच्चे और महिलाएं ही ज्यादा हताहत होते हैं कम से कम उन्हें तो इस भीड़-भाड़ से बचाए जाने की कोशिश की जानी चाहिए. जांच होगी राजनीति भी होगी. मुआवजा भी मिलेगा, पर जिन्दगी वापस नहीं मिलेगी. हम सब मृत आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना ही कर सकते हैं.
-       -  जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.


     

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