Sunday 21 September 2014

एक बार फिर भाई-भाई!

“हिन्दी चीनी भाई-भाई”- यही नारा दिया था उस पंचशील योजना के दौरान, जब पंडित जवाहर लाल नेहरू चीन यात्रा पर गये थे। उसके कुछ समय पश्चात ही चीन ने हम पर हमला कर दिया और 1962 का वो युद्ध हम हार गये। वो बीता हुआ समय है, पर सवाल ये है कि क्या अब बदले हुए वक्त में जब भारत भी सशक्त हो चुका है और विश्व में अपनी पहचान बना चुका है, तब चीन और भारत के पड़ोसी रिश्ते वैसे ही हैं, जैसे 1962 में थे अथवा नहीं? क्या चीन की सोच भारत के लिये बदली है?
बदले हुए माहौल में भारत और चीन के शीर्ष नेतृत्व ने जिस तरह एक-दूसरे के प्रति विश्वास जताया है, वह एशिया ही नहीं पूरे विश्व के लिए महत्वपूर्ण है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की बातचीत में कई जरूरी मुद्दे उठे और आपसी सहयोग पर सहमति बनी। चीन फिलहाल भारत में 20 अरब डॉलर का निवेश करने के लिए तैयार हुआ है। सिविल न्यूक्लियर मामले में सहयोग के लिए दोनों देश बातचीत करने पर सहमत हुए हैं। शिखर वार्ता में दोनों देशों के बीच 12 समझौते हुए, जिनमें पांच साल के आर्थिक प्लान पर हुआ करार बेहद अहम है। कैलाश यात्रा के लिए नए रूट, ऑडियो वीडियो मीडिया, रेलवे के आधुनिकीकरण, अंतरिक्ष, स्वास्थ्य और सांस्कृतिक क्षेत्र में सहयोग को लेकर भी समझौता हुआ। कस्टम को आसान करने का करार हुआ है। मुंबई को शंघाई की तरह विकसित करने में चीन मदद करेगा और गुजरात तथा महाराष्ट्र में दो इंडस्ट्रियल पार्क बनाएगा। जाहिर है, भारत के तेज विकास और आधुनिकीकरण में चीन की भूमिका बढ़ने वाली है। निश्चय ही इसका लाभ चीनी इकॉनमी को भी मिलेगा। कारोबारी गतिविधियां तभी सुचारू रूप से चल पाती हैं जब दो मुल्कों के सियासी और कूटनीतिक रिश्ते बेहतर होते रहें। अभी जो भरोसा राजनयिक स्तर पर कायम हुआ है, वह दोनों देशों की जनता के बीच भी बनना चाहिए, तभी आर्थिक समझौतों का कोई मतलब है। इसके लिए दोतरफा सांस्कृतिक आदान-प्रदान बढ़ाना एक अच्छा रास्ता है। दुर्भाग्य से शी जिनपिंग की यात्रा के दौरान ही जम्मू-कश्मीर के चुमार इलाके में चीनी सेना की घुसपैठ का मामला सामने आ गया। शिखर वार्ता में यह मसला भी उठा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि सीमा पर शांति के लिए वास्तविक नियंत्रण रेखा को लेकर स्थिति स्पष्ट करने की जरूरत है। उन्होंने चीन से अपनी वीजा नीति पर भी स्टैंड साफ करने को कहा। यह मसला अरुणाचल प्रदेश और कश्मीर के लोगों को स्टेपल्ड वीजा दिए जाने को लेकर उठता रहा है। चीनी राष्ट्रपति का मानना है(कूटनीतिक जवाब) कि भारत-चीन की सीमा चिह्नित न होने के कारण वहां कुछ ऐसी गतिविधियां होती हैं, जिससे गलतफहमी फैलती है। शी ने इस मुद्दे को सुलझाने का आश्वासन भी दिया है। दोनों देशों को यह बात समझनी होगी कि सीमा पर स्थायी शांति कायम करके ही आर्थिक रिश्तों को दूर तक ले जाया जा सकेगा। भारत के आम लोगों में जब तक चीन को लेकर पॉजिटिव राय नहीं बनेगी, तब तक उसका निवेश यहां अन्य देशों जितना सुरक्षित नहीं रह सकता। इसलिए आशा की जानी चाहिए कि इस दिशा में अलग से पहल होगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग की वार्ता के कुछ ही घंटे बाद चीन के सैनिकों ने लद्दाख के चुमार में भारतीय इलाके से पीछे हटना शुरू कर दिया। हालांकि, चीनी सेना के वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के पूरी तरह पीछे हो जाने की पुष्टि नहीं हो पाई है। डेमचोक में अभी भी गतिरोध बना हुआ है। घटना के बारे में बताया जाता है कि चीनी एल.ए.सी. के उस पार अपने क्षेत्र में सड़क बना रहे थे, लेकिन रविवार को उसके कामगार भारतीय क्षेत्र में घुस गए। विरोध करने पर करीब सौ भारतीय सैनिकों को 300 चीनी सैनिकों ने घेर लिया था और चार दिनों से अवैध रूप से जमे हुए थे। गुरुवार तक चीनी सैनिकों की संख्या बढ़कर 1000 के करीब हो गई थी। इसके बाद भारत ने भी अपने सैनिकों की संख्या बढ़ा दी। इससे तनाव काफी बढ़ गया। आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक, गुरुवार रात करीब 9:45 बजे चीन के सैनिक लौटने लगे। इसके बाद भारत ने भी अपने सैनिकों की संख्या घटा दी, लेकिन पैनी नजर रखी जा रही है, क्योंकि वास्तविक नियंत्रण रेखा के नजदीक चीन की आर्मी ने कैंप लगा रखे हैं। हालात की समीक्षा की जाएगी। चुमार से करीब आठ किमी दूर डेमचक इलाके में चीनी खानाबदोश जाति ‘रेबोस’ के घुसने और भारतीय क्षेत्र में चल रहे नहर निर्माण कार्य को रुकवाने की कोशिश के कारण बनी तनाव की स्थिति जस की तस है।
मोदी ने द्विपक्षीय बातचीत में चीन के राष्ट्रपति चिनफिंग के सामने सीमा विवाद और चीनी सैनिकों की घुसपैठ का मुद्दा जोरशोर से उठाया था। मोदी ने चीन से कहा कि वह भारत की संवेदनशीलता का सम्मान करे ताकि दोनों देशों के संबंध नई ऊंचाई पर पहुंच सकें। मोदी ने इस बात पर भी ऐतराज जताया कि चीन अरुणाचल प्रदेश के निवासियों को स्टेपल्ड वीजा जारी करता है।
पीएम नरेंद्र मोदी और चीन से राष्ट्रपति शी जिनफिंग के बीच कैलाश मानसरोवर की यात्रा के लिए एक ‘अल्टरनेटिव रूट’ बनाने पर सहमति के बाद इससे जुड़ा एक गंभीर विवाद खड़ा हो गया है। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हरीश रावत ने इस नए रूट का विरोध करते हुए कहा है कि यह शास्त्र सम्मत नहीं है। नए रूट के तहत कैलाश मानसरोवर की इस धार्मिक यात्रा को नाथुला पास के जरिये कराए जाने पर सहमति बनी है। हरीश रावत का कहना है कि यह नया रूट धर्म सम्मत और शास्त्र सम्मत नहीं है। उनका कहना है कि यह लोगों की धार्मिक मान्यताओं के खिलाफ है। – अब रावत साहब की अपनी अलग राय हो सकती है, वैसे भी विपक्ष के नेता कुछ तो कहेंगे ही.
अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि भारतीय मुस्लिमों की देशभक्ति पर सवाल नहीं उठाया जा सकता है। प्रधानमंत्री बनने के बाद दिए गए अपने पहले इंटरनैशनल इंटरव्यू में मोदी ने कहा कि भारतीय मुस्लिम देश के लिए ही जिएंगे और देश के लिए ही मरेंगे। उन्होंने कहा कि अल कायदा को इस बात का भ्रम है कि वे उसके इशारों पर नाचेंगे। सीएनएन से बातचीत में अलकायदा द्वारा हाल में जारी विडियो के बारे में पूछे गए सवाल के जवाब में मोदी ने कहा, ‘मेरा मानना है कि वे हमारे देश के मुसलमानों के साथ अन्याय कर रहे हैं। अगर कोई यह सोचता है कि मुसलमान उनके इशारों पर नाचेंगे तो यह उनका भ्रम है। भारत के मुसलमान जान दे देंगे लेकिन भारत के साथ विश्वासघात नहीं करेंगे। वे भारत के लिए बुरा नहीं सोचेंगे।’ यह इंटरव्यू भारतीय मूल के जाने माने पत्रकार फरीद जकारिया ने लिया है। उन्होंने भारतीय मुसलमानों की देशभक्ति के समर्थन में तर्क देते हुए कहा, ‘भारत के पड़ोस में अफगानिस्तान और पाकिस्तान में अलकायदा का अच्छा प्रभाव है। भारत में करीब 17 करोड़ मुसलमान हैं, लेकिन उनमें से अलकायदा के सदस्य न के बराबर हैं।’ उन्होंने अलकायदा को मानवता के खिलाफ संकट बताते हुए इसके खिलाफ मिलकर लड़ने की बात कही। मोदी ने अमेरिका और भारत के बीच संबंध को और मजबूत बनाने पर जोर दिया। सितंबर के अंतिम सप्ताह में मोदी अमेरिका के दौरे पर जाने वाले हैं।
सवाल फिर वही है कि श्री नरेंद्र मोदी क्या नेहरू के कदमों पर चल पड़े हैं. १९६२ की तरह चीन फिर से धोखा तो नहीं देगा ? वैसे इसकी संभावना कम नजर आती है, क्योंकि तब और अब की स्थितियों में काफी बदलाव आया है. अब कोई भी देश जल्दी युद्ध नहीं चाहता. हाँ एक दूसरे पर दबाव बनाने की जद्दो-जहद कायम रहती है. सबको एक दूसरे की जरूरत भी है. बदले हुए ग्लोबल माहौल में ब्यापार और प्रसार बढ़ाने के लिए यह जरूरी भी है, साथ ही आतंकवाद जैसे हथकंडों से मिलकर मुकाबला करना अत्यंत ही आवश्यक है. कुछ दिन पहले तक भाजपा के कुछ नेता मुस्लिमों पर दनादन जुबानी हमले किये जा रहे थे, पर उपचुनाव में पासा पलट जाने से कदम खींच लेने में ही बुद्धिमानी है, यह मोदी जी अच्छी तरह जानते हैं. साथ ही अमेरिका जाने से पहले अपनी छवि को नया रूप देना ही होगा.
१९६२ के समय में ही भारत के तत्कालीन प्रधान मंत्री पंडित नेहरू और अमरीका के राष्ट्रपति जॉन केनेडी के साथ भी अच्छे ताल्लुकात थे. नेहरू भारतीय उद्योग के जन्मदाता कहे जाते हैं तो मोदी आधुनिक विकास के समर्थक. अब तो चाचा नेहरू की तरह मोदी भी ‘बच्चों के चाचा’ बन ही गए हैं.
चाहे जो हो मोदी जी हर कला में माहिर हैं और लगातार सफलता की सीढ़ी चढ़ते जा रहे हैं. अब तो बिल गेट्स भी आ गए है, बाढ़ पीड़ित कश्मीरियों की मदद के लिये, साथ सात लाख अमरीकी डॉलर लेकर; साथ ही प्रधान मंत्री जन-धन योजना की निगरानी रखने की भी पेशकश कर रहे हैं, जिसके लिए आर बी आई ने पिछले दिनों चिंता व्यक्त की थी. उम्मीद यही की जानी चाहिए कि उनके साथी, सहयोगी भी उनके साथ चलेंगे. वैसे श्री मोदी को विदेश मंत्रालय अपने पास ही रखना चाहिए था. विदेश मंत्री बेचारी सुषमा स्वराज कहीं भी नजर नहीं आतीं. जब विदेशों से बातें चल रही होती हैं, तो वह बिहार के नालंदा में सास्कृतिक धरोहर खोजती नजर आती हैं. वैसे अब खबर है की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज 24 सितंबर से शुरू हो रही 10 दिन की अमेरिका यात्रा में करीब 100 देशों के विदेश मंत्रियों से मुलाकात करेंगी।
योगी आदित्य नाथ अब क्या बोलेंगे वे ही जाने. वैसे उनके बारे में यही कहा जाता है, वे अपनी बात को ही सही मानते हैं.
जय भारत! जय हिन्द!
जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर

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