(आज मोदी मतलब एक ही नाम पूरे भारत में गूँज रहा है श्री नरेंद्र मोदी, भारत के वर्तमान प्रधान मंत्री ... सभी उनका गुणगान तो कर ही रहे हैं, मैंने भी कुछ उदगार व्यक्त किये हैं. आगे भी समय आएगा जब हम उनके बारे में लिखेंगे और परिचर्चा भी करेंगे... फ़िलहाल एक और मोदी के बारे में जानें पढ़ें और अपने विचारों से अवगत कराएँ)
यह संयोग की ही बात है की जिस दिन लोक सभा २०१४ के चुनाव परिणाम में श्री नरेंद्र मोदी को देश को भावी प्रधान मंत्री के रूप में विजेता घोषित किया जा रहा था, ठीक उसी दिन एक भारतीय इस्पात पुरुष और पद्मभूषण से सम्मानित श्री रुसी मोदी का देहांत कोलकता के अस्पताल में हो गया. श्री रूसी मोदी ने १९३९ में टाटा स्टील (टिस्को) में ऑफिस असिस्टेंट के पद से सेवा शुरू की और चेयरमैन सह मैनेजिंग डायरेक्टर के पद तक पहुंचे. अंत में कुछ विवाद के चलते उन्हें १९९२ में ७५ साल की आयु पूरा करने के बाद टाटा स्टील से सेवामुक्त होना पड़ा. इस तरह उन्होंने ५३ साल तक टाटा स्टील(टिस्को) की सेवा की और कंपनी को नई ऊंचाइयों तक पहुँचाया. १७ जनवरी १९१२ को जन्मे श्री रुस्तमजी होर्मूसजी मोदी सर होमी मोदी और लेडी जेरबी के पुत्र थे. उनका पुकार का नाम रुसी मोदी ही था. वे पारसी परिवार में पैदा हुए और भारत में हाई स्कूल तक पढने के बाद इंग्लॅण्ड के क्राइस्ट चर्च कॉलेज, ऑक्सफ़ोर्ड से अपनी पढाई पूरी की.
टाटा स्टील (टिस्को) में असिसटेंट से लेबर वेलफेयर डिपार्टमेंट में गए और उन्हें कंपनी का डायरेक्टर ऑफ़ पर्सनल बनाया गया. पर्सनल डिपार्टमेंट में रहते हुए उन्होंने टिस्को के मजदूरों का भरपूर ख्याल रक्खा. उनके समय में मजदूर यूनियन उनसे मजदूरों के हित में जो भी मांग रखती थी, वे उसे तत्क्षण पूरा करते थे. समय के पाबंद और अनुशासित रहते हुए, उन्होंने अपने सभी अधीनस्तों और मजदूरों, कर्मचारियों को अनुशासन बद्धता की पाठ सिखाई.. टिस्को के कई विभागों का प्रतिनिधित्व करते हुए वे १९८४ से १९९३ तक कंपनी के चेयरमैन सह मैनेजिंग डायरेक्टर के पद पर रहे.
अब हम उनके कुछ खास पहलू पर प्रकाश डालते हैं. कंपनी की किसी भी बड़ी उपलब्धि पर वे अक्सर यही कहा करते थे – “ये सब हमारे कर्मचारियों की देन है” यानी खुद का श्रेय लेने के बजाय वह सारा श्रेय अपने कर्मचारियों एवं अधिकारियों को दे देते थे. किसी भी खास मौके पर वह कंपनी के किसी भी कर्मचारी से आत्मीय सम्बन्ध स्थापित कर लेते थे. कर्मचारियों के साथ बैठकर कैंटीन में खाना खाने में भी उन्हें आनंद आता था. उन्होंने कंपनी को अपनी ५० साल सेवा देने के बाद कंपनी परिसर में ही बड़ा खाना का आयोजन करवाया था और यह समारोह दो दिन चला था, जिसमे कंपनी के सभी कर्मचारियों को कुर्सी टेबुल पर बैठाकर खाना खिलाया गया था. इस मौके पर उन्होंने खुद भी कई बार खाना परोसा था, जिससे कर्मचारियों में उनकी लोकप्रियता में और भी बृद्धि हुई थी..
अपने जन्म दिन समारोह पर अपने आवास पर सभी कर्मचारियों, जमशेदपुर वासियों को आमंत्रित करते थे और सबको केक और मिठाइयाँ खिलाते थे.
३ मार्च को जे एन टाटा के जन्म दिन पर कंपनी के मुख्य द्वार पर टाटा साहब की मूर्ति के सामने हर साल श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है. इस अवसर पर विभिन्न प्रकार की झांकियां निकली जाती है. एक साल कंपनी के प्रशिक्षुओं ने ३६ राइडर सायकिल बनाई थी, जिस पर सभी ३६ प्रशिक्षु एक साथ पैडिल चलाते हुए आगे बढ़ रहे थे. श्री रुसी मोदी ने झट एक प्रशिक्षु को अपनी सीट से उतरने को कहा और खुद बैठकर सबके साथ पैडिल चलाते हुए साइकिल चलाने लगे. ३ मार्च को ही स्थानीय गोपाल मैदान में खेलकूद दौड़ आदि का आयोजन किया जाता है. वे इसमे भी उत्साहपूर्वक भाग लेते थे. १०० मीटर दौड़ और रस्सा खींच प्रतियोगिता में अवश्य भाग लेते थे. उनका एक वाक्य आज भी लोकप्रिय है – स्पोर्ट्स - अ वे ऑफ़ लाइफ! (Sports – A way of life!)
खेल में गहरी रूचि और उससे मिलने वाली टीम स्पिरिट के वे कायल थे. उन्होंने जमशेदपुर फूटबाल एकेडमी की स्थापना की, खेल कूद के लिए जे. आर. डी. स्पोर्ट्स कमप्लेक्स का निर्माण करवाया. वे बिहार क्रिकेट एसोसिएसन और बाद में झारखंड क्रिकेट एसोसिएसन तथा जमशेदपुर स्पोर्टिंग एसोसिएसन के अध्यक्ष भी रहे.
हालाँकि जमशेदपुर के कीनन स्टेडियम का निर्माण १९३३ में ही हो गया था, अस्सी के दशक में रुसी मोदी ने इसका पुनरुद्धार कर १९८४ में पहली बार भारत और वेस्ट इंडीज का मैच कराकर कीनन स्टेडियम को अन्तर्राष्ट्रीय पटल पर पहचान कराया था.
कंपनी के कल्याणकारी योजनाओं के सफल क्रियान्वयन से वे जमशेदपुर के लोगों में भी लोकप्रिय रहे. उन्होंने १९९९ में जमशेदपुर सीट से लोकसभा के लिए निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव भी लड़ा, इसमे वे भाजपा की लोकसभा उम्मीदवार आभा महतो से हार कर दूसरे नंबर पर रहे.
एक बार दिल्ली के प्रगति मैदान में ब्यापार प्रदर्शनी में टाटा स्टील के स्टाल पर गए तो उन्होंने देखा कि इस बार कंपनी की सामाजिक सरोकार और कल्याणकारी योजनाओं को ही प्रमुखता से दिखाया गया है. तब उन्होंने तपाक से कहा – वी आल्सो मेक स्टील (इस्पात भी हम बनाते हैं) या नारा खूब लोकप्रिय हुआ और तब दूरदर्शन पर काफी दिनों तक प्रमुखता से दिखाया जाता रहा.
५३ साल टिस्को की सेवा करने के बावजूद उनके कार्यकाल के अंतिम कुछ साल विवादों में रहे. कुछ नीतिगत मामले में उनके गलत फैसले का आरोप और समय की मांग के अनुसार उन्हें दबाव के साथ त्याग-पत्र देना पड़ा. तब देश की नरसिम्हाराव की सरकार ने उन्हें एयर इंडिया और इन्डियन एयर लाइन्स का संयुक्त रूप से चेयरमैन बनाया पर यहाँ वे नहीं टिक पाए और स्वेच्छा से त्याग-पत्र दे दिया. फिर उन्होंने कोलकता में मोबार नाम से अपनी कंपनी खोली जो स्टील ट्रेडिंग का काम करती थी.
स्व. जे. आर. डी. टाटा को वे अपना गुरु मानते थे और उनके अन्दर उन्होंने तन्मयता से काम किया था. हर कदम पर वे जे. आर. डी. की इज्जत करते थे.
दिवंगत रुसी मोदी का दाम्पत्य जीवन सुखकर नहीं था. पर वे अपनी माँ को ह्रदयस्थल से प्यार करते थे. जमशेदपुर से बाहर रहने के बावजूद भी हर साल अपनी माँ की पुण्य तिथि पर जमशेदपुर आकर अपनी माँ की कब्र पर श्रद्धासुमन अर्पित करते थे. वे पारसी धर्म के अनुयायी थे और उनके धर्म में मृत शरीर का दाह संस्कार नहीं होता, पर उनकी ईच्छानुसार उनका कोलकाता के केवड़ातल्ला श्मशान घाट पर दाहसंस्कार कर उनके अस्थिकलश को जमशेदपुर में उनकी माँ के कब्र के बगल में दफनाया गया.
ऐसे महापुरुष के अन्दर काम करने का और नजदीक से साक्षात्कार करने का अवसर मुझे भी प्राप्त हुआ था, जिसका मुझे गर्व है. ऐसे महापुरुष को श्रद्धांजलि औए शत-शत नमन!
इधर श्री नरेंद्र मोदी के शपथ समारोह में पाकिस्तान के प्रधान मंत्री श्री नवाज शरीफ के शरीक होने से पाकिस्तान के साथ अच्छे सम्बन्ध होने की अशा बढ़ी है, जिसका सभी लोगों ने स्वागत किया है.
आम आदमी पार्टी का एक और विकेट शाजिया इल्मी के रूप में गिरा. जरूरत है आम आदमी के नेताओं को आत्म चिंतन और मंथन करने की, अन्यथा एक अच्छे उद्देश्य के साथ बनी पार्टी का ‘अरविन्द’ खिलने से पहले ही कुम्हला जाएगा और जनता की भ्रष्टचार से मुक्ति और स्वराज की रही सही आशा का अंत हो जायेगा.
तबतक श्री नरेंद्र मोदी के सफल प्रधान मंत्री बनने और भारतीय जनता के अच्छे दिन की कामना करते हैं. जय हिन्द! जय भारत!
जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.
यह संयोग की ही बात है की जिस दिन लोक सभा २०१४ के चुनाव परिणाम में श्री नरेंद्र मोदी को देश को भावी प्रधान मंत्री के रूप में विजेता घोषित किया जा रहा था, ठीक उसी दिन एक भारतीय इस्पात पुरुष और पद्मभूषण से सम्मानित श्री रुसी मोदी का देहांत कोलकता के अस्पताल में हो गया. श्री रूसी मोदी ने १९३९ में टाटा स्टील (टिस्को) में ऑफिस असिस्टेंट के पद से सेवा शुरू की और चेयरमैन सह मैनेजिंग डायरेक्टर के पद तक पहुंचे. अंत में कुछ विवाद के चलते उन्हें १९९२ में ७५ साल की आयु पूरा करने के बाद टाटा स्टील से सेवामुक्त होना पड़ा. इस तरह उन्होंने ५३ साल तक टाटा स्टील(टिस्को) की सेवा की और कंपनी को नई ऊंचाइयों तक पहुँचाया. १७ जनवरी १९१२ को जन्मे श्री रुस्तमजी होर्मूसजी मोदी सर होमी मोदी और लेडी जेरबी के पुत्र थे. उनका पुकार का नाम रुसी मोदी ही था. वे पारसी परिवार में पैदा हुए और भारत में हाई स्कूल तक पढने के बाद इंग्लॅण्ड के क्राइस्ट चर्च कॉलेज, ऑक्सफ़ोर्ड से अपनी पढाई पूरी की.
टाटा स्टील (टिस्को) में असिसटेंट से लेबर वेलफेयर डिपार्टमेंट में गए और उन्हें कंपनी का डायरेक्टर ऑफ़ पर्सनल बनाया गया. पर्सनल डिपार्टमेंट में रहते हुए उन्होंने टिस्को के मजदूरों का भरपूर ख्याल रक्खा. उनके समय में मजदूर यूनियन उनसे मजदूरों के हित में जो भी मांग रखती थी, वे उसे तत्क्षण पूरा करते थे. समय के पाबंद और अनुशासित रहते हुए, उन्होंने अपने सभी अधीनस्तों और मजदूरों, कर्मचारियों को अनुशासन बद्धता की पाठ सिखाई.. टिस्को के कई विभागों का प्रतिनिधित्व करते हुए वे १९८४ से १९९३ तक कंपनी के चेयरमैन सह मैनेजिंग डायरेक्टर के पद पर रहे.
अब हम उनके कुछ खास पहलू पर प्रकाश डालते हैं. कंपनी की किसी भी बड़ी उपलब्धि पर वे अक्सर यही कहा करते थे – “ये सब हमारे कर्मचारियों की देन है” यानी खुद का श्रेय लेने के बजाय वह सारा श्रेय अपने कर्मचारियों एवं अधिकारियों को दे देते थे. किसी भी खास मौके पर वह कंपनी के किसी भी कर्मचारी से आत्मीय सम्बन्ध स्थापित कर लेते थे. कर्मचारियों के साथ बैठकर कैंटीन में खाना खाने में भी उन्हें आनंद आता था. उन्होंने कंपनी को अपनी ५० साल सेवा देने के बाद कंपनी परिसर में ही बड़ा खाना का आयोजन करवाया था और यह समारोह दो दिन चला था, जिसमे कंपनी के सभी कर्मचारियों को कुर्सी टेबुल पर बैठाकर खाना खिलाया गया था. इस मौके पर उन्होंने खुद भी कई बार खाना परोसा था, जिससे कर्मचारियों में उनकी लोकप्रियता में और भी बृद्धि हुई थी..
अपने जन्म दिन समारोह पर अपने आवास पर सभी कर्मचारियों, जमशेदपुर वासियों को आमंत्रित करते थे और सबको केक और मिठाइयाँ खिलाते थे.
३ मार्च को जे एन टाटा के जन्म दिन पर कंपनी के मुख्य द्वार पर टाटा साहब की मूर्ति के सामने हर साल श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है. इस अवसर पर विभिन्न प्रकार की झांकियां निकली जाती है. एक साल कंपनी के प्रशिक्षुओं ने ३६ राइडर सायकिल बनाई थी, जिस पर सभी ३६ प्रशिक्षु एक साथ पैडिल चलाते हुए आगे बढ़ रहे थे. श्री रुसी मोदी ने झट एक प्रशिक्षु को अपनी सीट से उतरने को कहा और खुद बैठकर सबके साथ पैडिल चलाते हुए साइकिल चलाने लगे. ३ मार्च को ही स्थानीय गोपाल मैदान में खेलकूद दौड़ आदि का आयोजन किया जाता है. वे इसमे भी उत्साहपूर्वक भाग लेते थे. १०० मीटर दौड़ और रस्सा खींच प्रतियोगिता में अवश्य भाग लेते थे. उनका एक वाक्य आज भी लोकप्रिय है – स्पोर्ट्स - अ वे ऑफ़ लाइफ! (Sports – A way of life!)
खेल में गहरी रूचि और उससे मिलने वाली टीम स्पिरिट के वे कायल थे. उन्होंने जमशेदपुर फूटबाल एकेडमी की स्थापना की, खेल कूद के लिए जे. आर. डी. स्पोर्ट्स कमप्लेक्स का निर्माण करवाया. वे बिहार क्रिकेट एसोसिएसन और बाद में झारखंड क्रिकेट एसोसिएसन तथा जमशेदपुर स्पोर्टिंग एसोसिएसन के अध्यक्ष भी रहे.
हालाँकि जमशेदपुर के कीनन स्टेडियम का निर्माण १९३३ में ही हो गया था, अस्सी के दशक में रुसी मोदी ने इसका पुनरुद्धार कर १९८४ में पहली बार भारत और वेस्ट इंडीज का मैच कराकर कीनन स्टेडियम को अन्तर्राष्ट्रीय पटल पर पहचान कराया था.
कंपनी के कल्याणकारी योजनाओं के सफल क्रियान्वयन से वे जमशेदपुर के लोगों में भी लोकप्रिय रहे. उन्होंने १९९९ में जमशेदपुर सीट से लोकसभा के लिए निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव भी लड़ा, इसमे वे भाजपा की लोकसभा उम्मीदवार आभा महतो से हार कर दूसरे नंबर पर रहे.
एक बार दिल्ली के प्रगति मैदान में ब्यापार प्रदर्शनी में टाटा स्टील के स्टाल पर गए तो उन्होंने देखा कि इस बार कंपनी की सामाजिक सरोकार और कल्याणकारी योजनाओं को ही प्रमुखता से दिखाया गया है. तब उन्होंने तपाक से कहा – वी आल्सो मेक स्टील (इस्पात भी हम बनाते हैं) या नारा खूब लोकप्रिय हुआ और तब दूरदर्शन पर काफी दिनों तक प्रमुखता से दिखाया जाता रहा.
५३ साल टिस्को की सेवा करने के बावजूद उनके कार्यकाल के अंतिम कुछ साल विवादों में रहे. कुछ नीतिगत मामले में उनके गलत फैसले का आरोप और समय की मांग के अनुसार उन्हें दबाव के साथ त्याग-पत्र देना पड़ा. तब देश की नरसिम्हाराव की सरकार ने उन्हें एयर इंडिया और इन्डियन एयर लाइन्स का संयुक्त रूप से चेयरमैन बनाया पर यहाँ वे नहीं टिक पाए और स्वेच्छा से त्याग-पत्र दे दिया. फिर उन्होंने कोलकता में मोबार नाम से अपनी कंपनी खोली जो स्टील ट्रेडिंग का काम करती थी.
स्व. जे. आर. डी. टाटा को वे अपना गुरु मानते थे और उनके अन्दर उन्होंने तन्मयता से काम किया था. हर कदम पर वे जे. आर. डी. की इज्जत करते थे.
दिवंगत रुसी मोदी का दाम्पत्य जीवन सुखकर नहीं था. पर वे अपनी माँ को ह्रदयस्थल से प्यार करते थे. जमशेदपुर से बाहर रहने के बावजूद भी हर साल अपनी माँ की पुण्य तिथि पर जमशेदपुर आकर अपनी माँ की कब्र पर श्रद्धासुमन अर्पित करते थे. वे पारसी धर्म के अनुयायी थे और उनके धर्म में मृत शरीर का दाह संस्कार नहीं होता, पर उनकी ईच्छानुसार उनका कोलकाता के केवड़ातल्ला श्मशान घाट पर दाहसंस्कार कर उनके अस्थिकलश को जमशेदपुर में उनकी माँ के कब्र के बगल में दफनाया गया.
ऐसे महापुरुष के अन्दर काम करने का और नजदीक से साक्षात्कार करने का अवसर मुझे भी प्राप्त हुआ था, जिसका मुझे गर्व है. ऐसे महापुरुष को श्रद्धांजलि औए शत-शत नमन!
इधर श्री नरेंद्र मोदी के शपथ समारोह में पाकिस्तान के प्रधान मंत्री श्री नवाज शरीफ के शरीक होने से पाकिस्तान के साथ अच्छे सम्बन्ध होने की अशा बढ़ी है, जिसका सभी लोगों ने स्वागत किया है.
आम आदमी पार्टी का एक और विकेट शाजिया इल्मी के रूप में गिरा. जरूरत है आम आदमी के नेताओं को आत्म चिंतन और मंथन करने की, अन्यथा एक अच्छे उद्देश्य के साथ बनी पार्टी का ‘अरविन्द’ खिलने से पहले ही कुम्हला जाएगा और जनता की भ्रष्टचार से मुक्ति और स्वराज की रही सही आशा का अंत हो जायेगा.
तबतक श्री नरेंद्र मोदी के सफल प्रधान मंत्री बनने और भारतीय जनता के अच्छे दिन की कामना करते हैं. जय हिन्द! जय भारत!
जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.
इनके सपनों और प्रयासों को मैं स्वयं देख पाया हूँ टाटा नगर में ! बहुत सही पोस्ट लिखी है आपने श्री जवाहर सिंह जी
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय योगी जी!
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