Monday, 26 May 2014

एक और मोदी....

(आज मोदी मतलब एक ही नाम पूरे भारत में गूँज रहा है श्री नरेंद्र मोदी, भारत के वर्तमान प्रधान मंत्री ... सभी उनका गुणगान तो कर ही रहे हैं, मैंने भी कुछ उदगार व्यक्त किये हैं. आगे भी समय आएगा जब हम उनके बारे में लिखेंगे और परिचर्चा भी करेंगे... फ़िलहाल एक और मोदी के बारे में जानें पढ़ें और अपने विचारों से अवगत कराएँ)
यह संयोग की ही बात है की जिस दिन लोक सभा २०१४ के चुनाव परिणाम में श्री नरेंद्र मोदी को देश को भावी प्रधान मंत्री के रूप में विजेता घोषित किया जा रहा था, ठीक उसी दिन एक भारतीय इस्पात पुरुष और पद्मभूषण से सम्मानित श्री रुसी मोदी का देहांत कोलकता के अस्पताल में हो गया. श्री रूसी मोदी ने १९३९ में  टाटा स्टील (टिस्को) में ऑफिस असिस्टेंट के पद से सेवा शुरू की और चेयरमैन सह मैनेजिंग डायरेक्टर के पद तक पहुंचे. अंत में कुछ विवाद के चलते उन्हें १९९२ में ७५ साल की आयु पूरा करने के बाद टाटा स्टील से सेवामुक्त होना पड़ा. इस तरह उन्होंने ५३ साल तक टाटा स्टील(टिस्को) की सेवा की और कंपनी को नई ऊंचाइयों तक पहुँचाया. १७ जनवरी १९१२ को जन्मे श्री रुस्तमजी होर्मूसजी मोदी सर होमी मोदी और लेडी जेरबी के पुत्र थे. उनका पुकार का नाम रुसी मोदी ही था. वे पारसी परिवार में पैदा हुए और भारत में हाई स्कूल तक पढने के बाद इंग्लॅण्ड के क्राइस्ट चर्च कॉलेज, ऑक्सफ़ोर्ड से अपनी पढाई पूरी की.
टाटा स्टील (टिस्को) में असिसटेंट से लेबर वेलफेयर डिपार्टमेंट में गए और उन्हें कंपनी का डायरेक्टर ऑफ़ पर्सनल बनाया गया. पर्सनल डिपार्टमेंट में रहते हुए उन्होंने टिस्को के मजदूरों का भरपूर ख्याल रक्खा. उनके समय में मजदूर यूनियन उनसे मजदूरों के हित में जो भी मांग रखती थी, वे उसे तत्क्षण पूरा करते थे. समय के पाबंद और अनुशासित रहते हुए, उन्होंने अपने सभी अधीनस्तों और मजदूरों, कर्मचारियों को अनुशासन बद्धता की पाठ सिखाई.. टिस्को के कई विभागों का प्रतिनिधित्व करते हुए वे १९८४ से १९९३ तक कंपनी के चेयरमैन सह मैनेजिंग डायरेक्टर के पद पर रहे.
अब हम उनके कुछ खास पहलू पर प्रकाश डालते हैं. कंपनी की किसी भी बड़ी उपलब्धि पर वे अक्सर यही कहा करते थे – “ये सब हमारे कर्मचारियों की देन है” यानी खुद का श्रेय लेने के बजाय वह सारा श्रेय अपने कर्मचारियों एवं अधिकारियों को दे देते थे. किसी भी खास मौके पर वह कंपनी के किसी भी कर्मचारी से आत्मीय सम्बन्ध स्थापित कर लेते थे. कर्मचारियों के साथ बैठकर कैंटीन में खाना खाने में भी उन्हें आनंद आता था. उन्होंने कंपनी को अपनी ५० साल सेवा देने के बाद कंपनी परिसर में ही बड़ा खाना का आयोजन करवाया था और यह समारोह दो दिन चला था, जिसमे कंपनी के सभी कर्मचारियों को कुर्सी टेबुल पर बैठाकर खाना खिलाया गया था. इस मौके पर उन्होंने खुद भी कई बार खाना परोसा था, जिससे कर्मचारियों में उनकी लोकप्रियता में और भी बृद्धि हुई थी..
अपने जन्म दिन समारोह पर अपने आवास पर सभी कर्मचारियों, जमशेदपुर वासियों को आमंत्रित करते थे और सबको केक और मिठाइयाँ खिलाते थे.
३ मार्च को जे एन टाटा के जन्म दिन पर कंपनी के मुख्य द्वार पर टाटा साहब की मूर्ति के सामने हर साल श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है. इस अवसर पर विभिन्न प्रकार की झांकियां निकली जाती है. एक साल कंपनी के प्रशिक्षुओं ने ३६ राइडर सायकिल बनाई थी, जिस पर सभी ३६ प्रशिक्षु एक साथ पैडिल चलाते हुए आगे बढ़ रहे थे. श्री रुसी मोदी ने झट एक प्रशिक्षु को अपनी सीट से उतरने को कहा और खुद बैठकर सबके साथ पैडिल चलाते हुए साइकिल चलाने लगे. ३ मार्च को ही स्थानीय गोपाल मैदान में खेलकूद दौड़ आदि का आयोजन किया जाता है. वे इसमे भी उत्साहपूर्वक भाग लेते थे. १०० मीटर दौड़ और रस्सा खींच प्रतियोगिता में अवश्य भाग लेते थे. उनका एक वाक्य आज भी लोकप्रिय है – स्पोर्ट्स - अ वे ऑफ़ लाइफ! (Sports – A  way of life!)
खेल में गहरी रूचि और उससे मिलने वाली टीम स्पिरिट के वे कायल थे. उन्होंने जमशेदपुर फूटबाल एकेडमी की स्थापना की, खेल कूद के लिए जे. आर. डी. स्पोर्ट्स कमप्लेक्स का निर्माण करवाया. वे बिहार क्रिकेट एसोसिएसन और बाद में झारखंड क्रिकेट एसोसिएसन तथा जमशेदपुर स्पोर्टिंग एसोसिएसन के अध्यक्ष भी रहे.
हालाँकि जमशेदपुर के कीनन स्टेडियम का निर्माण १९३३ में ही हो गया था, अस्सी के दशक में रुसी मोदी ने इसका पुनरुद्धार कर १९८४ में पहली बार भारत और वेस्ट इंडीज का मैच कराकर कीनन स्टेडियम को अन्तर्राष्ट्रीय पटल पर पहचान कराया था.
कंपनी के कल्याणकारी योजनाओं के सफल क्रियान्वयन से वे जमशेदपुर के लोगों में भी लोकप्रिय रहे. उन्होंने १९९९ में जमशेदपुर सीट से लोकसभा के लिए निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव भी लड़ा, इसमे वे भाजपा की लोकसभा उम्मीदवार आभा महतो से हार कर दूसरे नंबर पर रहे.
एक बार दिल्ली के प्रगति मैदान में ब्यापार प्रदर्शनी में टाटा स्टील के स्टाल पर गए तो उन्होंने देखा कि इस बार कंपनी की सामाजिक सरोकार और कल्याणकारी योजनाओं को ही प्रमुखता से दिखाया गया है. तब उन्होंने तपाक से कहा – वी आल्सो मेक स्टील (इस्पात भी हम बनाते हैं) या नारा खूब लोकप्रिय हुआ और तब दूरदर्शन पर काफी दिनों तक प्रमुखता से दिखाया जाता रहा.  
५३ साल टिस्को की सेवा करने के बावजूद उनके कार्यकाल के अंतिम कुछ साल विवादों में रहे. कुछ नीतिगत मामले में उनके गलत फैसले का आरोप और समय की मांग के अनुसार उन्हें दबाव के साथ त्याग-पत्र देना पड़ा. तब देश की नरसिम्हाराव की सरकार ने उन्हें एयर इंडिया और इन्डियन एयर लाइन्स का संयुक्त रूप से चेयरमैन बनाया पर यहाँ वे नहीं टिक पाए और स्वेच्छा से त्याग-पत्र दे दिया. फिर उन्होंने कोलकता में मोबार नाम से अपनी कंपनी खोली जो स्टील ट्रेडिंग का काम करती थी.
स्व. जे. आर. डी. टाटा को वे अपना गुरु मानते थे और उनके अन्दर उन्होंने तन्मयता से काम किया था. हर कदम पर वे जे. आर. डी. की इज्जत करते थे.
दिवंगत रुसी मोदी का दाम्पत्य जीवन सुखकर नहीं था. पर वे अपनी माँ को ह्रदयस्थल से प्यार करते थे. जमशेदपुर से बाहर रहने के बावजूद भी हर साल अपनी माँ की पुण्य तिथि पर जमशेदपुर आकर अपनी माँ की कब्र पर श्रद्धासुमन अर्पित करते थे. वे पारसी धर्म के अनुयायी थे और उनके धर्म में मृत शरीर का दाह संस्कार नहीं होता, पर उनकी ईच्छानुसार उनका कोलकाता के केवड़ातल्ला श्मशान घाट पर दाहसंस्कार कर उनके अस्थिकलश को जमशेदपुर में उनकी माँ के कब्र के बगल में दफनाया गया.
ऐसे महापुरुष के अन्दर काम करने का और नजदीक से साक्षात्कार करने का अवसर मुझे भी प्राप्त हुआ था, जिसका मुझे गर्व है. ऐसे महापुरुष को श्रद्धांजलि औए शत-शत नमन!
इधर श्री नरेंद्र मोदी के शपथ समारोह में पाकिस्तान के प्रधान मंत्री श्री नवाज शरीफ के शरीक होने से पाकिस्तान के साथ अच्छे सम्बन्ध होने की अशा बढ़ी है, जिसका सभी लोगों ने स्वागत किया है.
आम आदमी पार्टी का एक और विकेट शाजिया इल्मी के रूप में गिरा. जरूरत है आम आदमी के नेताओं को आत्म चिंतन और मंथन करने की, अन्यथा एक अच्छे उद्देश्य के साथ बनी पार्टी का ‘अरविन्द’ खिलने से पहले ही कुम्हला जाएगा और जनता की भ्रष्टचार से मुक्ति और स्वराज की रही सही आशा का अंत हो जायेगा.
तबतक श्री नरेंद्र मोदी के सफल प्रधान मंत्री बनने और भारतीय जनता के अच्छे दिन की कामना करते हैं. जय हिन्द! जय भारत!
जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.

Thursday, 15 May 2014

मोबाइल किसने बनवाई....!

मोबाइल किसने बनवाई, हमें सोने नहीं देती.
न चाहा रिंग जब आती, हमें सोने नहीं देती
आया हूँ रात्रि पाली कर, सोऊंगा घोड़े बेंचकर
काहे न सबको बतलाई, हमें सोने नहीं देती.
ससुर जी हाल पूछेंगे, सासु माँ चाल पूछेंगी
साली जी लेंगी अंगराई, हमें सोने नहीं देंगी.
पिताजी गांव से बोले, माँ पुचकारती हौले
बहन की होगी विदाई, हमें सोने नहीं देंगी
चलाते जब भी दो पहिया, जरा स्पीड हो बढ़िया
तभी बजती हो शहनाई, सड़क रुकने नहीं देती.
कभी जब बॉस हो संग में, मोबाइल जब लगे बजने
इसी ने डाँट खिलवाई, प्रगति होने नहीं देती.
कभी जब बंद कर रख दूँ, शिकायत ढंग की सुन लूँ,
बजे बेसिक(फोन) की तब घुँघरू, हमें सोने नहीं देती…

Wednesday, 7 May 2014

कुछ दोहे

माली ऐसा चाहिए, किसलय को दे प्यार
खरपतवारहि छांटके, कलियन देहि निखार.
नित उठ देखे बाग़ को, नैना रहे निहार 
सिंचन, खुरपी चाहिए, मन में करे विचार
हवा ताजी तन में लगे, करे भ्रमर गुंजार,
दिल में यूं खुशियाँ भरे, होवे जग से प्यार
कर्म सबहि तो करत हैं, गर न करे प्रचार
लोग न जानहि पात हैं, जाने बस करतार     
दीपक ऐसा चाहिए, घर में करे प्रकाश
तन मन जारे आपनो, किन्तु नेह की आश.
उजियारा लेते रहें, बुझने न दें ज्योति  
समय समय पर तेल दें, कभी उभारें बाति  

Monday, 5 May 2014

ये शीशे के घर वाले

वक्त’ फिल्म का मशहूर डायलाग – ‘जिनके घर शीशे के होते हैं वह दूसरों के घरों पर पत्थर नहीं फेंका करते’ ..पर आज वही हो रहा है …शुरुआत किससे करूँ? …अभी ताजा मामला दिग्विजय सिंह का है … अपने बयानों से चर्चा में रहनेवाले दिग्विजय सिंह का वयक्तिगत जीवन पारदर्शी हो गया तो भी उन्होंने अपना मुंह नहीं छुपाया, बल्कि शान से स्वीकारते हुए मोदी जी पर निशाना चला ही दिया – ‘मैं विधुर हूं और अगर मैं दोबारा शादी करता हूं, तो डियर फेंकू की तरह नहीं छिपाऊंगा।’
इधर दिग्विजय सिंह और अमृता राय का किस्सा वायरल हुआ उधर अमृता के वर्तमान पति जो IIMC के प्रोफ़ेसर जो एक प्रतिष्ठित व्यक्ति हैं, अमृता राय की जिन्दगी से कभी जुड़े थे, उसकी मान मर्यादा को कितनी ठेस पहुँच रही है, इसका अंदाजा शायद इस कांग्रेसी नेता दिग्विजय सिंह और अमृता राय को भी नहीं है !!
आनंद प्रधान जो मीडिया जगत की एक जानी मानी हस्ती हैं, खुद उन्होंने अपनी फेसबुक प्रोफाइल पर पोस्ट लिखकर अपनी बात रखीं है कि……((((((मैं एक बड़ी मुश्किल और तकलीफ से गुजर रहा हूँ. यह मेरे लिए परीक्षा की घडी है. मैं और अमृता लम्बे समय से अलग रह रहे हैं और परस्पर सहमति से तलाक के लिए आवेदन किया हुआ है. एक कानूनी प्रक्रिया है, जो समय लेती है. लेकिन हमारे बीच सम्बन्ध बहुत पहले से ही खत्म हो चुके हैं. अलग होने के बाद से अमृता अपने भविष्य के जीवन के बारे में कोई भी फैसला करने के लिए स्वतंत्र हैं और मैं उनका सम्मान करता हूँ. उन्हें भविष्य के जीवन के लिए मेरी शुभकामनाएं हैं !!!!
मैं जानता हूँ कि मेरे बहुतेरे मित्र, शुभचिंतक, विद्यार्थी और सहकर्मी मेरे लिए उदास और दुखी हैं, लेकिन मुझे यह भी मालूम है कि वे मेरे साथ खड़े हैं. मुझे विश्वास है कि मैं इस मुश्किल से निकल आऊंगा मुझे उम्मीद है कि आप सभी मेरी निजता (प्राइवेसी) का सम्मान करेंगे शायद ऐसे ही मौकों पर दोस्त की पहचान होती है. उन्हें आभार कहना ज्यादती होगी,
लेकिन जो लोग स्त्री-पुरुष के संबंधों की बारीकियों और स्त्री के स्वतंत्र अस्तित्व और व्यक्तित्व को सामंती और पित्रसत्तात्मक सोच से बाहर देखने के लिए तैयार नहीं हैं, उसे संपत्ति और बच्चा पैदा करने की मशीन से ज्यादा नहीं मानते हैं और उसकी गरिमा का सम्मान नहीं करते, उनके लिए यह चटखारे लेने, मजाक उड़ाने, कीचड़ उछालने और निजी हमले करने का मौका है लेकिन वे यही जानते हैं उनकी सोच और राजनीति की यही सीमा है. उनसे इससे ज्यादा की अपेक्षा भी नहीं)))))))))
मौका मिला तो उमा भारती भी कहाँ चूकनेवाली थी – पत्नी की चिता तो ठंढी होने देते दिग्विजय… बेचारी भूल गयीं कि उनका नाम भी कभी गोविंदाचार्य से जुड़ा था, तब वे कितनी उद्वेलित थीं.
दिग्विजय सिंह की छोटे भाई की दूसरी पत्नी रुबीना ने भी अपना गुस्सा निकाला- रूबीना कहती हैं, ‘मैं दिग्विजय सिंह से नाराज हूं क्योंकि उन्होंने उनके छोटे भाई से मेरी शादी का विरोध किया था। इसकी वजहें उन्होंने ये बताई थीं कि मैं लक्ष्मण सिंह से 13 साल छोटी हूं और राजपूत भी नहीं हूं।’ अपने ट्वीट्स में रूबीना ने दावा किया है कि वह लक्ष्मण सिंह की पत्नी हैं। जबकि इनकी भी लक्ष्मण सिंह शादी का किस्सा कम रोचक नहीं है. ख़बरों के अनुसार छोटे भाई की पत्नी से दिग्विजय सिंह के संबंध शुरू से ही तल्ख रहे हैं। रूबीना शर्मा सिंह मूल रूप से कश्मीर की रहने वाली हैं। लक्ष्मण सिंह की पहली पत्नी जागृति सिंह की कैंसर के इलाज के दौरान ही लक्षमण सिंह की रुबीना से हॉस्पिटल में ही भेंट हुई थी वह भी अपनी माँ का इलाज करा रही थी और लक्ष्मण सिंह अपनी पत्नी का.एक ही अस्पताल में. पत्नी जाग्रति सिंह की मौत के बाद रूबीना से उनका प्यार परवान चढ़ा था। बताया जाता है कि दिग्विजय सिंह ने इसका काफी विरोध किया था और इसके कुछ समय बाद लक्ष्मण सिंह बीजेपी में शामिल हो गए थे। बाद में वह बीजेपी के टिकट पर लोकसभा का चुनाव भी जीते थे।
दिग्विजय सिंह कांग्रेस के महासचिव हैं और अपने विवादस्पद बयानों के लिए चर्चित रहे हैं, चुनाव के माहौल में कांग्रेस पर तोहमत लगाने का एक और मौका मिला तो सोसल मीडिया पीछे कैसे रहता …सभी ने उनके अन्तरंग फोटो को खूब प्रचारित-प्रसारित किया जैसे कि इनपर चटखारे लेनेवाले, इल्जाम लगानेवाले सभी सावित्री और सत्यवान के अनुयायी हैं.
काफी पहले आचार्य रजनीश ने कहा था – कोई व्यक्ति स्त्री या पुरुष यह कहता है कि किसी एक पुरुष या स्त्री से प्यार करता है, तो वह झूठ बोल रहा है… यह कुदरती चीज है, जिसे किसी ने नहीं रोक पाया है. हाँ सामाजिक और धार्मिक मर्यादाएं हमें जरूर एकनिष्ठा के सूत्र में बांधे रखने का काम करती है. आज सामाजिक और धार्मिक मर्यादाएं तार-तार हो रही हैं इसलिए भी इस तरह की घटनाएँ आम होने लगी हैं.
अब चर्चा चली है, तो बहुत सारे चेहरे बेनकाब हो चुके हैं. नारायण दत्त तिवारी का उज्ज्वला शर्मा के साथ अब ‘लिव इन रिलेशनशिप’ के साथ रहेंगी. कानूनी डिग्री तो मिल ही चुकी है.
अभिषेक मनु सिंघवी का एक महिला वकील के साथ आपत्तिजनक स्थिति वाला किस्सा जो दो साल पहले ही वायरल हुआ था…. और भी बहुत सारे नेता हैं, जो अपने विवाहेतर संबंधों के लिए कुख्यात रहे. अभी हाल का ही मामला चंद्रमोहन उर्फ़ चाँद मुहम्मद और अनुराधा बाली उर्फ़ फिजा का किस्सा, गोपाल कांदा और और एयर होस्टेस गीतिका काण्ड …साथ ही साथ शशि थरूर और सुनंदा पुष्कर का मामला है ही…और भी बहुत सारे मामले हैं जो या तो परदे के पीछे हैं या ज्यादा चर्चित नहीं हुए. सबका उल्लेख भी यहाँ जरूरी नहीं.
सब कुछ देखने-सुनने के बाद यही लगता है, सामाजिक और कानूनी मान्यता हमें विवाहेतर सम्बन्ध की इजाजत तो नहीं देता, फिर भी जब जाने माने लोग प्रतिष्ठित लोग इससे अछूते नहीं रह सकते तो या तो इसकी मान्यता दे दी जाय या ऐसे मामलों को व्यक्तिगत मानकर छोड़ दिया जाय.
पंडित जवाहर लाल नेहरू के अलावा अन्य जानी मानी हस्ती भी इसके लपेटे में हैं. कोई नेता अपनी पत्नी को छोड़े हुए हैं तो कोई एक के साथ रहते दूसरी की तरफ भी लालायित है. फ़िल्मी हस्तियों की तो बात ही निराली है. उनके यहाँ तो यह सब धरल्ले से होता है. एक का साथ छूटता है तो दूसरे के साथ जुड़ जाता है …
चुनाव के माहौल में हर कोई राजनीतिक फायदा उठाने के लिए एक दूसरे पर व्यक्तिगत कीचड उछाल रहे हैं. सुब्रमण्यम स्वामी प्रियंका गांधी के बारे में कहते हैं – “वो तो बहुत शराब पीती हैं. शाम के बाद होश में ही नहीं रहती”. अब इसका क्या अर्थ है ? क्या सुब्रमण्यम स्वामी उसके साथ बैठकर शराब पीते हैं या उसे पीते हुए देखा है …अगर उसका भी शराब पीने वाला कोई तस्वीर होती तो अब तक वह भी फेसबुक पर आ गयी होती. नोबल पुरस्कार और भारत रत्न से सम्मानित प्रसिद्द अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने मोदी जी की आलोचना कर दी तो उनकी बेटी की अर्धनग्न तस्वीर फेसबुक पर आ गयी. किसी किसी ने तो उनसे भारतरत्न वापस लेने की भी मांग कर दी.
तात्पर्य यही है कि हर एक व्यक्तिगत और सामाजिक/सार्वजनिक जीवन होते हैं. नेहरू जी के व्यक्तिगत जीवन से महात्मा गाँधी को ऐतराज नहीं था. हम चाह कर भी इन व्यक्तिगत विकृतियों को नहीं रोक पा रहे हैं. पश्चिमी सभ्यता का अतिक्रमण भारत पर हावी हो रहा है और इससे छुटकारे का कोई भी उपाय फिलहाल नजर नहीं आ रहा. इन परिस्थितियों के लिए सिर्फ पुरुष को ही दोषी मानना उचित नहीं होगा. बहुत सारी महिलाएं भी अपनी कैरियर में आगे बढ़ाने के लिए प्रारंभिक अवस्था में विरोध नहीं करती … बाद में अगर स्वार्थ सिद्ध नहीं होता तो वे आगे बढ़कर हमले करने को तैयार हो जाती हैं… हालाँकि खामियाजा भी ज्यादातर महिलाओं को भुगतना पड़ता है जिसका कारण प्रकृति ने उन्हें शारीरिक रूप कमजोर बनाया है और स्थिति तब और बदतर हो जाती है, जब या तो उन्हें मार दिया जाता है या वे खुद आत्महत्या करने को मजबूर हो जाती हैं.
क्या हम सभी इस समस्या से छुटकारे के लिए नयी शुरुआत कर सकते हैं? चिंतन-मनन और अनुकरण जरूरी है, अच्छाई के लिए…. इसी आशा के साथ.
- जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.

Thursday, 1 May 2014

गर्मी का अभिशाप....

इस बार अप्रैल के महीने में ही अच्छी गर्मी पड़ रही है. कुलीन के आंगन में एक आम का बहुत बड़ा पेड़ है. इस बार आम में मंजर कम निकले और नए पत्ते काफी निकले. दोपहर के समय आम के पेड़ की छाया कंपाउंड के बाहर मैदान में आ जाती है. कुछ गायें, बकरिया और कुत्ते आकर उस छाया में आराम करते हैं. कुलीन अक्सर उन पशुओं को पानी पिलाता है. बाल्टी में भरकर घर के अंदर से बाहर ले आता है और सभी पशु बारी बारी से पानी पी अपनी प्यास बुझाते हैं.. सभी जानवर कुलीन को देखते ही अपने अपने तरीके से प्यार जताते हैं. कुत्ते तो पहले आकर पूँछ हिलाने लगते हैं, गायें उन्हें देख रम्भाने लगती हैं. और बकरियां में-में करने लगती हैं.
गायों/ पशुओं को पानी पिलाने का सिलसिला कई हफ़्तों तक चला. तभी एक बूढ़ी गाय जो शर्मा जी की थी बीमार पडी और मर गयी. शर्मा जी ने कुछ लोगों को इकठ्ठा किया और बैठक बुलाई. हो न हो यह कुलीन ने पानी में जहर मिला दिया हो, जिससे उनकी गाय मर गयी. फिर क्या था … यह बात जंगल में आग की तरह फ़ैल गयी … कुछ पंक्तियाँ उन्ही के आधार पर गढ़ी गयी है कृपया अवलोकन करें….
गर्मी का अभिशाप
एक गाय आयी, फिर दूसरी आयी
एक एक करके कुल बीस गायें आयीं
कुछ बकरियां कुछ कुत्ते भी
उग्र गर्मी में सभी को
तलाश थी छाये की.
आम्र का विशाल पेड़
मंजर थे कम जिसमे
पत्ते सुकोमल थे.
विशालकाय पेड़ और शीतल छाया
पशुओं ने इसे आश्रय है बनाया
लगी होगी प्यास इन को
चिंता यह करे कौन
हिन्दुओं की माता है
विश्व दुग्ध पाता है
निकला कुलीन घर से
कूलर नहीं है घर में
गर्मी से व्याकुल हो
गौओं को सहलाता
शीतलता वह पाता
पानी वह ले आया
बाल्टी में भर लाया
गौएँ भी प्यासी थी
छाई उदासी थी
पानी के बर्तन में मुंह उसने दे डाला
अल्पकाल में ही बाल्टी खाली कर डाला
कुलीन को हुई खुशी
भर लाया फिर पानी
नहीं कोई उसका सानी
सिलसिला चलता रहा
कुलीन पानी भरता रहा
कुदरत का कहर भी
आसमां से झरता रहा.
एक गाय बूढ़ी थी,
हाँ, वो शर्मा जी की थी.
तपिश वह न सह पाई
शाम तक न उठ पाई.
शर्मा जी घबराये
बेटे को साथ लाये
हुआ क्या गाय माता ?
कुछ समझ नहीं आता
एक युवक तब आया
कान में कुछ फरमाया
गड़बड़ घोटाला है
जहर किसी ने डाला है
गाय का दुश्मन है कौन ?
साधे सभी थे मौन
पंचायत बैठ गयी
राय सबों से ली गयी
कुलीन को बुलाया गया
क्यों उसने ऐसा किया
कुलीन हो गया आवाक
क्या कह रहे हैं आप ?
क्यों करूंगा मैं ऐसा
नहीं मेरे पास पैसा
सजा तो भुगतनी होगी
पंचों की सुननी होगी
पाप गोहत्या का
मिटेगा नहीं ऐसे
गोमूत्र पान करो
गंगा स्नान करो
ब्रह्मभोज करवाओ
पाप अपनी धुलवाओ
यह समाज कैसा है
न्याय क्यों ऐसा है
पानी जो पिलाता है
सजा वही पाता है
गाय को खुला जो छोड़े
दूध सिर्फ पाता है
गाय को खुला जो छोड़े
दूध सिर्फ पाता है
-    जवाहर लाल सिंह