Monday, 6 January 2014

भारतीय रेल, भारतीय लोग! भाग – दो(लड़कियां तेज होती ही है!)

जब आप स्लीपर क्लास में ट्रेन से यात्रा करते हैं, बहुत सारे सहयात्री से बात चीत होती है. कुछ खट्टी, कुछ मीठी, जब दूर का सफर हो और बर्थ कन्फर्म न हो, कहीं न कहीं समझौता करना पड़ता है. चाहे टी. टी. ई. को पैसे देकर, उनसे विनती कर या रिजर्व बर्थ वाले यात्रियों से अनुनय और विनय कर अपनी जगह बनानी पड़ती है…..
एक किशोर और किशोरी दोनों साथ साथ बंगलौर जा रहे थे.. एक बर्थ कन्फर्म थी और दूसरी वेटिंग लिस्ट थी. कन्फर्म बर्थ ऊपर का था, उन्होंने पहले टी. टी. ई. से बात की फिर नीचे बर्थ वाले कई यात्रियों से बात की … कि अगर उन्हें नीचे का बर्थ मिल जाता तो दोनों सामंजस्य बैठा लेते. मेरा RAC था इसलिए संभव नहीं था. दुसरे यात्री तैयार नहीं हुए…. वे दोनों मेरे नीचेवाले साइड की RAC पर बैठकर घर से दी गयी टिफिन से निकालकर एक साथ खाना खाये.और अपने बैग से चादर कम्बल निकाल ऊपर की बर्थ पर ही दोनों सो गए … दोनों दुबले पतले ही थे, इसलिए समायोजन हो गया.
वहीं कुछ(८) नौजवान बोगी में इधर से उधर करते रहे. उनलोगों के अनुसार उनलोगों ने तत्काल टिकट लिया था,.तत्काल टिकट में ‘आइडेंटिटी प्रूफ’ की जरूरत होते है. उनमे किसी के पास ओरिजनल था, किसी के पास ओरिजिनल नहीं था ..इसीलिये टी. टी. ई. उन्हें तंग कर रहा था और ज्यादा पैसे की मांग कर रहा था.वे लोग रातभर चहलकदमी करते रहे या कहें पहरा देते रहे. अंतत: दरवाजे के पास वाले कूपे में उनलोगों ने रात बिताई….कुछ लेन-देन कर टी. टी. ई. से समझौता हो गया था.
शुबह करीब १० बजे विशखापटनम आया और युवक(युवती का भाई) ट्रेन से उतर गया. अब युवती (किशोरी) अकेली थी और मुझसे काफी सहज थी. वह स्टेट बैंक ऑफ़ इण्डिया, बंगलोर में जॉब करती है. अभी उसके आठ महीने हुए है. उतरने वाला युवक उसका भैया है, वह भी एस. बी. आई. बंगलोर में ही ज्वाइन करने जा रहा है. विशाखापट्नम में उसे कुछ जरूरी काम था, इसलिए उतर गया…. अब वह दूसरी ट्रेन से आयेगा. मैंने पूछा- “भैया है, यानी तुमसे बड़ा है?” “हाँ”. “इसका मतलब पहले तुझे नौकरी मिल गयी बाद में उसे मिली है”. “हाँ, मैने गणित के साथ बी. एस-सी.. किया, और पहली बार में ही मेरा सेलेक्सन हो गया. मेरे भैया का दूसरी बार में हुआ. उसने बी. कॉम .किया है”. मैंने कहा – “लड़कियां तेज होती ही है!”. उसकी बाते सुन एक और किशोरी(IBM में कार्यरत) आकर्षित हुई और एस. बी. आई. की युवती से पूछने लगी – “क्या क्या सवाल पूछा था, फाइनल इंटरव्यू में”….”फाइनल में तो बहुत सारे सवाल पूछे थे – ट्रेन के रास्ते में कौन कौन मुख्य स्टेशन मिले, यह भी पूछ लिया”. उसने(IBM वाली ने) कहा- “तुम बोली नहीं कि मैं तो सो रही थी. कौन कौन स्टेसन आया और गया, मुझे कुछ पता नहीं”. “नहीं- जो जो मुझे याद था मैंने बता दिया”. “मुझे तो कुछ ख़ास याद नहीं रहता, मैं तो ‘गूगल सर्च’ कर के ही जान पाती हूँ. जॉब में भी मैं कुछ नहीं करती. जो करता है गूगल करता है!” मुझे उनकी बातें सुन आनंद आ रहा था.
एक बुजुर्ग महिला जो हम सब की बातें सुन रही थी, आगे बढ़कर बोली – “मेरी पांच बेटियां है, चार की शादी कर चुकी हूँ, सभी दामाद अच्छे पद पर हैं. मैंने सभी लड़कियों को ग्रेजुएट कराया, वे सभी अपने पतियों के साथ खुश हैं, उनमे कई तो काम भी काम कर रही है. छोटी बेटी घर पर रहकर अभी स्कूल चला रही है. दरअसल चौथी नंबर वाली का ही स्कूल था, जब उसकी शादी हो गयी तो अब छोटी वाली स्कूल सम्हाल रही है. मैं अपनी बेटी के पास ही जा रही हूँ.उसको बच्चा होनेवाला है, इसलिए, मैं वहाँ कुछ दिन रुकूँगी. दामाद आ जायेंगे स्टेसन पर मुझे ले जाने के लिए!”
एक और महिला थोडा आगे बढ़कर बोली – “मेरे परिवार में १८ लड़कियां हैं और ५ बेटे हैं..हमारे भी सभी दामाद अच्छे पद पर हैं. हमारे परिवार में कुल ५६ सदस्य हैं और सबका खाना एक साथ बनता है. हमारे ससुर जी, सारी ब्यवस्था करते हैं. सबकी कमाई उनके पास जमा होता है. वे सभी बहुओं को एक मूल्य की ही साड़ियाँ खरीदते हैं. इनका मूल निवास आरा जिला (बिहार) है. इसलिए बीच बीच में भोजपुरी भी बोल रही थी.अभी जमशेदपुर में ही रह रहे हैं,.उनका अपना ट्रांसपोर्ट चलता है. यह रहा हमलोगों के बीच बात चीत का कुछ अंश! बीच बीच में हम सब खेत खलिहान भी देखते जा रहे थे..आंध्र में खेती अच्छी होती है. एक धान मशीनो द्वारा काटा जा रहा था तो दूसरी तरफ कुछ खेतों में नए धानों की रोपाई भी मशीन द्वारा की जा चुकी थी. काटे हुए धान खेत में ही गांज के रूप में सजा कर रख दिए जाते हैं, ताकि वर्षा आदि से उन्हें बचाया जा सके. मेरे अनुमान से जरूरत के अनुसार या राइस मिल के मांग के अनुसार उनसे धान निकाल कर उन्हें वितरित किया जाता होगा.
राजमुंदरी के पास गोदावरी नदी पर बना रेल-सह-सड़क पुल भी अद्भुत है. यह अपने आप में एशिया का सबसे बड़ा पुल है! इसकी लम्बाई,४.७ किलोमीटर है गोदावरी नदी पूर्वी और पश्चिमी गोदावरी जिले की विभाजक रेखा है.यहाँ पर गोदावरी दो धाराओं में बंट जाती है. बीच में बड़ा सा टापू दिखता है. गोदावरी दक्षिण की गंगा है इसे लोग गंगा की तरह पूजते हैं. इसका पानी काफी साफ़ है और इसके दोनों किनारे हरे भरे खेत और आबादी से भरपूर है. -कुछ तो मैंने देखा पर इसके बारे में विस्तृत जानकारी दो लड़कियों ने दी जो विशाखापटनम से विजयवाड़ा ‘जॉब सर्च’ के लिए जा रही थी.इस इलाके में लड़कियां अकेले ही रेल मार्ग से निकल पड़ती हैं. वे पुरुषों से बात चीत में सहज भी होती हैं. हल्की मुस्कान तो इनके चेहरे पर अंकित रहती है….यहाँ मैं यह बतलाता चलूँ कि विशाखापटनम में ही हमारा तीनो बर्थ एक ही कोच एस -१ में आस पास में ही ३१, ३२ और ३९ नंबर कन्फर्म हो गया था. अब ज्यादा चिंता नहीं थी. आज इतना ही!
क्रमश:

No comments:

Post a Comment