Monday, 6 January 2014

भारतीय रेल, भारतीय लोग! भाग – एक ( मैं तो फौजी हूँ!)

टाटानगर यशवंतपुर सुपरफास्ट एक्सप्रेस के लिए २० दिन पहले टिकट ली थी. जब ली थी वेटिंग लिस्ट १२१,१२२,१२३ था. जाने के दिन तक RAC ३१, ३२, और ३९ पर आकर रुक गया. बैठने की जगह मिल जायेगी, जानकार मन को थोड़ी संतुष्टि हुई, रात का समय, सर्द की रात, ठंढ भी कम नहीं … चलो, बारी बारी से सो लेंगे!…. वरीयता क्रम में मेरा ही नम्बर आया. मेरे साथ वाले सज्जन ने अपनी पत्नी के साथ बैठने का फैसला किया और मुझे सोने की जगह मिल गयी. रात दो बजे टी. टी. की कृपा से मुझे एस -३ में एक बर्थ मिल गया. मैं वहां चला गया और मेरी जगह पर श्रीमती जी आ गयी. हमलोग चैन की नीद सोते पर एक आदमी तीन बजे रात में आकर मेरी पत्नी की बर्थ पर बैठने का दावेदार बन गया…. टी. टी. का कहीं पता नहीं था. समझौता आपस में ही करना था. मैंने उस भले मानुष से कहा – आप एस ३ में मेरी बर्थ पर सो जाइए, मैं यहाँ अपनी पत्नी संग बैठ लूँगा…. वैसे भी तीन तो बज ही गए हैं,… वह भला आदमी मान गया … मैंने देखा, एस -२ में एक नीचे वाला ही बर्थ खाली पड़ा है, मैंने अपना बिस्तर वहीं लगा दिया और शुबह ६ बजेतक आराम से सोया. शुबह की चाय भी पी और शौचालय चला गया. जब शौचालय से आया तो देखा – मेरा बिस्तर हटाकर एक नया जोड़ा बैठा हुआ है. मैंने पूछा – “क्या यह आपकी बर्थ है?”. उसने कहा- “हाँ”. “आप कहा से आ रहे हैं?” – “टाटा से” . “फिर आप कहाँ थे?” “मेरा एक बर्थ यहाँ है, और दूसरा, दूसरे छोड़ पर. रात को पत्नी को अकेला नहीं छोड़, मैं उसी के पास बैठा रहा. दो बार मैं यहाँ भी आया था, पर आपको सोया देख डिस्टर्ब नहीं किया. सोये हुए आदमी को क्या डिस्टर्ब करना? मैं तो फौजी आदमी हूँ, खड़ा भी रह लूँगा” . “आप फौजी हैं? कहाँ पर पोस्टिंग है आपकी?” “टाटा में ही आदित्यपुर औध्योगिक क्षेत्र में”…. उसने मुझे बैठने को कहा- “आइये हम सब साथ बैठते हैं”. बैठने के बाद परिचय का दायरा बढ़ा. यह नौजवान बंगलौर का रहनेवाला है, एक साल पहले ही इसकी शादी हुई है, इसकी पत्नी हिंदी न समझती हैं, न बोलती है. इसीलिये वह इसे अकेला नहीं छोड़ना चाहता.
मैंने पूछा – “जमशेदपुर में कितने दिन से हैं?” ” दो साल से”. “कैसा लगता है जमशेदपुर?” ..”आहा हा हा … बहुत सुन्दर!…. बहुत ही सुन्दर जगह, बड़े ही प्यारे लोग!”…. मैं तो सातवें आसमान पर था. “और वहाँ का पर्व त्यौहार?” “बहुत ही अच्छा …वहाँ का नवरात्र ! वहाँ की दुर्गा पूजा!!!! आहा ..हा हा!!!. वहाँ की दीवाली … आहा ..हा हा!” मैंने पूछा – “और वहाँ का छठ?” “आहा ..हा हा!!! बहुत अच्छा!!! मैं तो देख देख मन्त्र मुग्ध होता … छठ का प्रसाद मुझे बहुत अच्छा लगता जी, मेरे बगल में शर्मा जी, बिहारी … छठ का प्रसाद खिलाता जी, मैं बड़े प्रेम से खाता.. बहुत अच्छे लोग.”
मैंने कहा – “आप सो जाइये ..रात भर जगे हैं, मेरी नींद तो हो गयी”. “न जी, मैं तो फौजी आदमी जी, कई दिन, कई रात जगकर गुजारता, खड़े होकर गुजारता. मेरी पत्नी है न ..इसे आराम चाहिए था. इसलिए मैं इसके बगल में लक्ष्मण की तरह खड़ा था, जैसे बनवास के समय लक्ष्मण सीता मैया की रक्षा करता. मैं इसकी रक्षा करता जी”….
इतनी सारी बातें करने के बाद मैं अपनी पुरानी जगह एस -१ में आ गया. कुछ चाय नाश्ता किया. फिर एस २ में आकर देखा – वह फौजी गायब! मेरा बिस्तर, कम्बल गायब!…. मैं घबराया…. फिर ध्यान से देखा तो उसकी पत्नी नीचे बैठी और वह फौजी ऊपर की बर्थ पर मेरा बिस्तर सिर के नीचे रखकर सोता…. मैंने भी सोचा – बेचारा फौजी, रात में जागता और दिन में सोता जी. फिर सोते हुए आदमी को क्यों डिस्टर्ब करना ..मैं अपनी सीट पर पुन: वापस. कई बार आकर देखा – वह फौजी निश्चिन्त सोता. उसकी पत्नी मूंगफली खाता… दोपहर बाद उसकी नींद खुलती और वह मुझे देख मुस्कुराता. नीचे आता और फिर बात करता … मैं बंगलौर में कहाँ जाऊंगा? वह मेरी कैसे मदद करेगा. बोला आटो या टैक्सी से मत जाओ, वे लोग बहुत पैसा मांगता. आप बस से जाओ. बहुत बस है! मैंने कहा- “मेरे पास ज्यादा सामान है, बस से बेहतर प्रीपेड टैक्सी रहेगा, ऐसा दुसरे लोग कह रहे हैं”.उसने कहा.- “हाँ वह ठीक रहेगा, पर लिखवा लेना ‘विथ लगेज’ नहीं तो लगेज का अलग से चार्ज करेगा. वे लोग नए आदमी को ठगते हैं.
यह है भारतीय रेल की स्लीपर क्लास में एक रात और एक दिन की कहानी. फैजियों के प्रति वैसे भी हमलोगों के मन में सम्मान का भाव होता है. ये हर समय हमारी रक्षा करते हैं. सीमा पर बाहरी दुश्मनों से, देश में नक्सली आतंकियों से, आपदा प्रबंधन में भी इनका रोल अहम् होता है!
क्रमश:

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