आप पार्टी का जन्म अन्ना आंदोलन से ही हुआ. जब लोगों ने ताना मारा कि आप खुद कीचड में उतरिये और कीचड को साफ़ करिये. टीम केजरीवाल ने यह चुनौती स्वीकार की और कीचड में उतरने का फैसला कर लिया. जनता कांग्रेस के बोझ से दबी परेशान थी, इसलिए उसने टीम केजरीवाल का समर्थन कुछ इस प्रकार दिया जिसका कि अनुमान टीम केजरीवाल को भी नहीं था. किसी को नहीं था.. फिर भी उसे बहुमत प्राप्त नहीं हुआ और कांग्रेस अपनी रणनीति के तहत बिना शर्त समर्थन की चिट्ठी उप राज्यपाल को दे दी….. इधर भाजपा का ताना कि आआप जिम्मेवारी से भाग रही है…. जैसे तैसे आआप की सरकार बन गयी और बिन्नी जैसे लोगों को मत्री पद नहीं मिला … असंतोष की किरण फूटी और उसे तत्काल शांत करा दिया गया…. शायद उस समय वादा किया गया होगा कि लोक सभा का टिकट दिया जायेगा. पर उसमे भी आना कानी हुई, तब केजरीवाल जो कभी सर्वगुण संपन्न थे, अब बतौर बिन्नी ‘तानशाह’ और ‘झूठे’ भी बन गए. उधर मंत्रीपद सम्हाले सोमनाथ और राखी बिडलान ने सोचा कि जनता को दिखाकर कुछ किया जाय, जिसका तत्काल प्रभाव जनता पर पड़े, पर हुआ उल्टा ही … कानून के जानकार इन्हे ही दोषी मानने लगे . विरोधियों को तो मौके की तलाश थी ही. कांग्रेस और भाजपा दोनों एक साथ टूट पडी. ‘रैड’ करना पुलिस का काम है, मंत्री या राजनीतिक पार्टी के कार्यकर्त्ता का नहीं. आप ज्यादा से जयादा बयान जारी कर सकते हो या मोमबत्ती जला सकते हो. इन्होने आगे बढ़कर गृह मंत्रालय के सामने धरना देने का फैसला कर लिया. अब गृह विभाग किसी सरकार को धरना देने की अनुमति कैसे दे सकती है. यह तो विपक्ष या किसी संस्था का काम है.
बेचारे केजरीवाल बड़े पेशो पेश में हैं ..सबको तो एक साथ खुश किया नहीं जा सकता और नहीं कोई सिस्टम को चुटकी बजाकर तोडा जा सकता है. अब दिल्ली के समर्थन से उत्साहित होकर लोकसभा चुनाव लड़ने का भी फैसला कर लिया. यह भला धुरंधर पार्टियों को क्यों मंजूर होने लगा. कांग्रेस की नैया पहले ही डूब रही है, खिलने वाले कमल को खिलने से पहले ही क्यों रोकने पर तुले हो???.
आम आदमी का जगना ठीक नहीं है … आप सोये रहो,पांच साल में एक बार जगना है या तो कमल या हाथ पर बटन दबाना है. गब्बर से सिर्फ दो ही आदमी बचा सकता है या तो खुद गब्बर या ठाकुर …..ठाकुर के हाथ तो कटे हैं अब फैसला तुम्हे करना है हथकटा ठाकुर का साथ देना है या गब्बर का जो अभी सभी प्रकार के प्राचीन और आधुनिकतम हथियारों से लैस है.
किरण बेदी जैसी अन्ना आंदोलन की सहयोगी भी शायद अरविन्द केजरीवाल से खार खाये बैठी हैं, इसलिए केजरीवाल की हर नाकामियों के लिए केजरीवाल की अक्षमता पर टिप्प्णी देने को तैयार रहती हैं. अलबत्ता उनकी भाषा मर्यादित रहती है.
जनता ने सादगी की जितनी अपेक्षाएँ केजरीवाल सरकार से लगा ली हैं, उनमें यही होना था, जो हो रहा है. उनकी हर हरकत पर पैनी नज़र रखी जा रही है. तभी तो लोगों ने अरविंद केजरीवाल को टाइप 6 का डबल डुप्लेक्स बंगला मिलने पर इसका सबब पूछ लिया। ‘मुख्यधारा’ के किसी राजनीतिक दल के किसी मुख्यमंत्री को इससे भी बड़े फ्लैट अलॉट हो जाते, तो यकीनी तौर पर सवाल नहीं उठते. अभी तक उठे भी नहीं हैं. अरविंद केजरीवाल सरकार के सामने सुशासन देने से ज्यादा बड़ी अपनी ‘कमीज’ उजली रखने की चुनौती में आगे रहना चाहते है. कहीं ऐसा न हो कि ‘आप’ न तो अपनी कमीज उजली रख पाये और न ऐसा सुशासन दे पाये, जिसकी उम्मीद पूरे हिन्दुस्तान और दुनिया ने भी लगा रखी है. बंगला विवाद के बाद केजरीवाल का छोटे घर में रहने का फैसला संकेत है कि वे विरोधियों और मीडिया के दबाव में आ गए हैं और अब वे तीन बेडरूम वाले फ्लैट C-II/२३ में रहने के लिए तैयार हो गए हैं.
यह समझ से परे है कि आखिर उनके विरोधी और आलोचक चाहते क्या हैं? क्या यह कि किसी राज्य का मुख्यमंत्री दीन-हीन बनकर रहे और वे सुविधाएँ भी न ले, जो उसका अधिकार, और जरूरत हैं? किसी भी मुख्यमंत्री को इतनी जगह मिलनी ही चाहिए, जहाँ बैठकर वह उन वादों को पूरा कर सके, जो उसने जनता से किये हैं. ठीक है कि अरविंद ने दबाव में आकर छोटी जगह लेने की बात कही है, लेकिन सवाल यह है कि क्या वह छोटी जगह पर अपने काम को ठीक तरह से अंजाम दे पायेंगे? यदि अरविंद सरकार को छोटी-छोटी बातों पर घेरा जायेगा, तो शायद वह ऐसा कुछ न कर पाये, जिसकी आशा जनता ने उससे लगा रखी हैं.सादगी का मतलब यह नहीं होता कि मुख्यमंत्री सरकारी काम के लिये भी अपनी गाड़ी का इस्तेमाल करे. अगर वह ऐसा करेगा, तो इतना पैसा कहाँ से लायेगा? व्यक्तिगत आवास में रहेगा, तो उसके मेंटिनेंस का खर्च कौन उठायेगा?
दरअसल, अरविंद केजरीवाल से यही उम्मीद है कि वह सरकारी खजाने का दुरुपयोग नहीं होने देंगे, लेकिन आगत मेहमानों के चाय का बिल भी केजरीवाल ही भरें, यह तो मुमकिन नहीं हो सकता. देखा जाये, तो जिस तरह से सरकारी खजाने को लुटाया जा रहा है, उसे रोकने की जरूरत है और केजरीवाल का मिशन भी यही है। सरकारी खजाने की लूट ही वह भ्रष्टाचार है, जो पूरे देश में मची है. यही लूट देश के विकास में सबसे बड़ा रोड़ा भी है. सवाल यह है कि आप सरकार पर होने वाले न्यूनतम सरकारी खर्च ज्यादा अहमियत रखते हैं या करोड़ों हजार रुपये के घोटालों को रोकना?
हमारे देश की जनता की त्रासदी है कि वह ऐसे राजनीतिक दलों को तो बार-बार मौका देती रहेगी, जिन्होंने इस देश को रसातल में ले जाने में कोई कसर बाकी नहीं रखी, लेकिन अलग हटकर चलने का वादा करने वाले राजनीतिक दल से उम्मीद करेगी कि उनके नेता ‘देवता’ सरीखे हों…. कोई शख्स सर्वगुण सम्पन्न नहीं होता.थोड़े बहुत अवगुण होना मानवीय कमजोरी है, जिन्हें बड़े मकसद के लिए नजरअंदाज किया जाना चाहिए.1977 में जब जेपी के नेतृत्व में कांग्रेस के खिलाफ आन्दोलन चला और जनता पार्टी ‘संपूर्ण क्रांति’के नाम पर देश की सत्ता पर काबिज हुयी, तो उससे भी ऐसी ही अपेक्षायें रखी गयी थीं, जो आज ‘आप’ से लगाई जा रही हैं। नतीजा यह हुआ था कि जनता पार्टी सरकार ‘अपेक्षाओं’ के बोझ से 19 महीने में ऐसी धराशायी हुयी कि दोबारा नहीं पनप सकी। ऐसा ही 1989 में वीपी सिंह के नेतृत्व में बनी जनता दल सरकार के साथ हुआ था. ‘आप’ के साथ ऐसा न हो, इसके लिये यह जरूरी है कि उससे सौ प्रतिशत परिणाम देने की अपेक्षा न रखी जाये. कोई भी सरकार सड़ चुके सिस्टम को दो-चार महीने में तो क्या पाँच साल में भी नहीं बदल सकती. हाँ, उसमें कुछ कमी जरूर ला सकती है. हमें नहीं भूलना चाहिए कि मध्यप्रदेश की शिवराज सिंह चौहान और छत्तीसगढ़ की रमन सिंह सरकार ने सब कुछ सही नहीं कर दिया, जो जनता ने उन्हें दोबारा मौका दिया है। बस, उन्होंने दूसरों की अपेक्षा बेहतर शासन दिया है.
समस्या यह है कि जनता या कह लीजिए कि विरोधी ‘आपको’ ‘जीरो टॉलरेंस’की कसौटी पर कस रहे हैं. कह नहीं सकते कि ‘आप’ की सरकार कितने दिन चलेगी, लेकिन जितने दिन भी चले, उससे उम्मीद यही है कि वह ऐसा कोई काम नहीं करेगी, जिससे यह साबित हो जाये कि सत्ता में आने के बाद सभी की कमीजों पर दाग लग ही जाता है. लेकिन ऐसा भी नहीं होना चाहिए कि सरकार चलाने वालों को मिले अधिकार को ही ‘दाग’ कहकर इतना प्रचारित कर दिया जाय़े कि वह असली लगने लगें? देश में अपने विरोधियों को चित करने के लिए कौन छद्म दुष्प्रचार करता है, इसे भी केजरीवाल अच्छी तरह समझते हैं. यह भी नहीं समझना चाहिए कि ‘आप’ के सभी कार्यकर्ता, विधायक या मन्त्री दूध के धुले ही होंगे. इनमें कुछ बिन्नी जैसी ‘खरपतवार’ भी होगी, जो खेत की फसल को खाने का काम करेगी. उस खरपतवार से केजरीवाल कैसे निपटेंगे, यह देखना दिलचस्प होगा. आज तो अरविंद के ऊपर दो बड़े घर लेने पर उंगलियाँ उठी हैं. अभी तो उनके हर कदम पर सबकी बहुत बारीक और पैनी नजर रहेगी. लेकिन यदि केजरीवाल यही सोचते रहे कि कहीं उनकी कमीज पर दाग न लग जाये, तो शायद न इधर के रहेंगे, न उधर के. सरकार उनकी है, उनके पास अधिकार हैं. विरोधियों और मीडिया का काम है, आलोचना करना. इनसे डरकर कदम वापस खींचना उनके लिए घातक हो सकता है।
फ़िलहाल तो टीम केजरीवाल को बिन्नी जैसे लोगों को शांत करने की जरूरत है ताकि २८ के २८ आपस में बंधे रहें नहीं तो भाजपा तो इसी ताक में है कि कैसे ४-५ विधायक अपने पक्ष में किया जाय. अगर आआप दिल्ली में अपनी सरकार बचाने में और कुछ काम दिखाने में कामयाब हो जाती है, तभी आगे का कुछ भविष्य हो सकता है अन्यथा अनुभवहीन होंने का तगमा तो लगा ही है. जिस तरह से अच्छे लोग आआप की तरफ आने लगे थे ..सोचने भी न लग जाएँ ? और तब जनता के पास विकल्प सिर्फ दो ही बचे. वैसे भी एक तगड़ा विपक्ष रहना भी जरूरी है, ताकि मनमानी को रोका जा सके.अगर आआप नहीं रहती है तो क्षेत्रीय दलों की चांदी रहेगी इसलिए वे भी नहीं चाहते कि आआप का वजूद रहे.
इन नए “नेताओं” को जरा कम से कम दो साल तक आम कार्यकर्ता की तरह घर-घर झाड़ू उठाकर काम करने दिया जाये ताकि इस “शुद्धीकरण प्रक्रिया” से इनका राजनैतिक शुद्धिकरण किया जा सके .
इस आन्दोलन को आम आदमी ने आगे बढ़कर अपने बल बूते पर लड़ा और जीता है. दिल्ली की जीत के बाद आये लोगों की वजह से “आप” नहीं जीती है । अगर “आप” को अच्छे लोग, अच्छे नेता, नए विचार, नए सुझाव वाले लोग चाहिए तो उसे इस देश की आम जनता से ऐसे हजारों हीरे मिल सकते हैं, बस थोडा मिहनत करके उन्हें तलाशने और तराशने की जरुरत है.
ये आन्दोलन पूरे मुल्क की आशाओं का प्रतिबिम्ब है और इस सपने को हम यूँ ही टूटने नहीं दे सकते चाहे इसके लिए कोई भी कुर्बानी क्यों ना देनी पड़े.
“आप” को बेतुकी आलोचना करने वालो पर ध्यान नहीं देना चाहिए और अपने नेक मकसद कि ओर बढ़ते जाना चाहिए. क्युकि इस देश में ऐसे लोगो कि कोई कमी नहीं है, जिन्होंने भगवान् राम और महात्मा गांधी तक को नहीं छोड़ा हो. तो केजरीवाल जी आप तो इनके आगे कुछ भी नहीं, आप को क्या छोड़ेंगे. ये वो लोग है जो सदा अपने स्वार्थ से किसी के साथ जुड़ते हैं। किसी को अपने मज़हब कि चिंता है , किसी को अपनी भ्रष्टाचारी गतिविधियो कि चिंता है , तो किसी को ये चिंता है कि अगर सरकार गरीबो के लिए काम करने लगी तो फिर हमारी अमीरी धरी कि धरी रह जायेगी। किसी को ये चिंता है कि समझदार लोग अगर राजनीति में आने लगे तो हम जैसे गधों का क्या होगा ?
ऐसे में टीम केजरीवाल का अपने मंत्रियों क साथ रेल भवन के सामने धरने पर बैठना, मंत्री सौरभ भरद्वाज को हिरासत में लेना फिर पुलिस का ही खंडन कि उन्हें धरने पर नहीं लिया गया वे खुद पुलिस गाडी में आकर बैठ गए, आप पार्टी के विधायक अखिलेश पति त्रिपाठी का पुलिस द्वारा पीटा जाना, उन्हें हॉस्पिटल में भर्ती करना, कितना जायज या नाजायज है, यह भी आम जनता ही तय करेगी, पत्रकार वर्ग और तमाम राजनीतिक पार्टियाँ टीम केजरीवाल को दोषी मान रहे हैं, पर केजरीवाल का यह कहना कि हम देश की जनता के लिए जान दे देंगे… कौन सही कौन गलत? आरोप प्रत्यारोप जारी है ….२०१४ का लोकसभा चुनाव बहुत कुछ तय करने वाला है, सभी पार्टियाँ यही कह रही है – जनता देख रही है और मीडिया भी दिखला रहा है ..अपने अपने तर्क, अपनी अपनी राजनीति! -
बेचारे केजरीवाल बड़े पेशो पेश में हैं ..सबको तो एक साथ खुश किया नहीं जा सकता और नहीं कोई सिस्टम को चुटकी बजाकर तोडा जा सकता है. अब दिल्ली के समर्थन से उत्साहित होकर लोकसभा चुनाव लड़ने का भी फैसला कर लिया. यह भला धुरंधर पार्टियों को क्यों मंजूर होने लगा. कांग्रेस की नैया पहले ही डूब रही है, खिलने वाले कमल को खिलने से पहले ही क्यों रोकने पर तुले हो???.
आम आदमी का जगना ठीक नहीं है … आप सोये रहो,पांच साल में एक बार जगना है या तो कमल या हाथ पर बटन दबाना है. गब्बर से सिर्फ दो ही आदमी बचा सकता है या तो खुद गब्बर या ठाकुर …..ठाकुर के हाथ तो कटे हैं अब फैसला तुम्हे करना है हथकटा ठाकुर का साथ देना है या गब्बर का जो अभी सभी प्रकार के प्राचीन और आधुनिकतम हथियारों से लैस है.
किरण बेदी जैसी अन्ना आंदोलन की सहयोगी भी शायद अरविन्द केजरीवाल से खार खाये बैठी हैं, इसलिए केजरीवाल की हर नाकामियों के लिए केजरीवाल की अक्षमता पर टिप्प्णी देने को तैयार रहती हैं. अलबत्ता उनकी भाषा मर्यादित रहती है.
जनता ने सादगी की जितनी अपेक्षाएँ केजरीवाल सरकार से लगा ली हैं, उनमें यही होना था, जो हो रहा है. उनकी हर हरकत पर पैनी नज़र रखी जा रही है. तभी तो लोगों ने अरविंद केजरीवाल को टाइप 6 का डबल डुप्लेक्स बंगला मिलने पर इसका सबब पूछ लिया। ‘मुख्यधारा’ के किसी राजनीतिक दल के किसी मुख्यमंत्री को इससे भी बड़े फ्लैट अलॉट हो जाते, तो यकीनी तौर पर सवाल नहीं उठते. अभी तक उठे भी नहीं हैं. अरविंद केजरीवाल सरकार के सामने सुशासन देने से ज्यादा बड़ी अपनी ‘कमीज’ उजली रखने की चुनौती में आगे रहना चाहते है. कहीं ऐसा न हो कि ‘आप’ न तो अपनी कमीज उजली रख पाये और न ऐसा सुशासन दे पाये, जिसकी उम्मीद पूरे हिन्दुस्तान और दुनिया ने भी लगा रखी है. बंगला विवाद के बाद केजरीवाल का छोटे घर में रहने का फैसला संकेत है कि वे विरोधियों और मीडिया के दबाव में आ गए हैं और अब वे तीन बेडरूम वाले फ्लैट C-II/२३ में रहने के लिए तैयार हो गए हैं.
यह समझ से परे है कि आखिर उनके विरोधी और आलोचक चाहते क्या हैं? क्या यह कि किसी राज्य का मुख्यमंत्री दीन-हीन बनकर रहे और वे सुविधाएँ भी न ले, जो उसका अधिकार, और जरूरत हैं? किसी भी मुख्यमंत्री को इतनी जगह मिलनी ही चाहिए, जहाँ बैठकर वह उन वादों को पूरा कर सके, जो उसने जनता से किये हैं. ठीक है कि अरविंद ने दबाव में आकर छोटी जगह लेने की बात कही है, लेकिन सवाल यह है कि क्या वह छोटी जगह पर अपने काम को ठीक तरह से अंजाम दे पायेंगे? यदि अरविंद सरकार को छोटी-छोटी बातों पर घेरा जायेगा, तो शायद वह ऐसा कुछ न कर पाये, जिसकी आशा जनता ने उससे लगा रखी हैं.सादगी का मतलब यह नहीं होता कि मुख्यमंत्री सरकारी काम के लिये भी अपनी गाड़ी का इस्तेमाल करे. अगर वह ऐसा करेगा, तो इतना पैसा कहाँ से लायेगा? व्यक्तिगत आवास में रहेगा, तो उसके मेंटिनेंस का खर्च कौन उठायेगा?
दरअसल, अरविंद केजरीवाल से यही उम्मीद है कि वह सरकारी खजाने का दुरुपयोग नहीं होने देंगे, लेकिन आगत मेहमानों के चाय का बिल भी केजरीवाल ही भरें, यह तो मुमकिन नहीं हो सकता. देखा जाये, तो जिस तरह से सरकारी खजाने को लुटाया जा रहा है, उसे रोकने की जरूरत है और केजरीवाल का मिशन भी यही है। सरकारी खजाने की लूट ही वह भ्रष्टाचार है, जो पूरे देश में मची है. यही लूट देश के विकास में सबसे बड़ा रोड़ा भी है. सवाल यह है कि आप सरकार पर होने वाले न्यूनतम सरकारी खर्च ज्यादा अहमियत रखते हैं या करोड़ों हजार रुपये के घोटालों को रोकना?
हमारे देश की जनता की त्रासदी है कि वह ऐसे राजनीतिक दलों को तो बार-बार मौका देती रहेगी, जिन्होंने इस देश को रसातल में ले जाने में कोई कसर बाकी नहीं रखी, लेकिन अलग हटकर चलने का वादा करने वाले राजनीतिक दल से उम्मीद करेगी कि उनके नेता ‘देवता’ सरीखे हों…. कोई शख्स सर्वगुण सम्पन्न नहीं होता.थोड़े बहुत अवगुण होना मानवीय कमजोरी है, जिन्हें बड़े मकसद के लिए नजरअंदाज किया जाना चाहिए.1977 में जब जेपी के नेतृत्व में कांग्रेस के खिलाफ आन्दोलन चला और जनता पार्टी ‘संपूर्ण क्रांति’के नाम पर देश की सत्ता पर काबिज हुयी, तो उससे भी ऐसी ही अपेक्षायें रखी गयी थीं, जो आज ‘आप’ से लगाई जा रही हैं। नतीजा यह हुआ था कि जनता पार्टी सरकार ‘अपेक्षाओं’ के बोझ से 19 महीने में ऐसी धराशायी हुयी कि दोबारा नहीं पनप सकी। ऐसा ही 1989 में वीपी सिंह के नेतृत्व में बनी जनता दल सरकार के साथ हुआ था. ‘आप’ के साथ ऐसा न हो, इसके लिये यह जरूरी है कि उससे सौ प्रतिशत परिणाम देने की अपेक्षा न रखी जाये. कोई भी सरकार सड़ चुके सिस्टम को दो-चार महीने में तो क्या पाँच साल में भी नहीं बदल सकती. हाँ, उसमें कुछ कमी जरूर ला सकती है. हमें नहीं भूलना चाहिए कि मध्यप्रदेश की शिवराज सिंह चौहान और छत्तीसगढ़ की रमन सिंह सरकार ने सब कुछ सही नहीं कर दिया, जो जनता ने उन्हें दोबारा मौका दिया है। बस, उन्होंने दूसरों की अपेक्षा बेहतर शासन दिया है.
समस्या यह है कि जनता या कह लीजिए कि विरोधी ‘आपको’ ‘जीरो टॉलरेंस’की कसौटी पर कस रहे हैं. कह नहीं सकते कि ‘आप’ की सरकार कितने दिन चलेगी, लेकिन जितने दिन भी चले, उससे उम्मीद यही है कि वह ऐसा कोई काम नहीं करेगी, जिससे यह साबित हो जाये कि सत्ता में आने के बाद सभी की कमीजों पर दाग लग ही जाता है. लेकिन ऐसा भी नहीं होना चाहिए कि सरकार चलाने वालों को मिले अधिकार को ही ‘दाग’ कहकर इतना प्रचारित कर दिया जाय़े कि वह असली लगने लगें? देश में अपने विरोधियों को चित करने के लिए कौन छद्म दुष्प्रचार करता है, इसे भी केजरीवाल अच्छी तरह समझते हैं. यह भी नहीं समझना चाहिए कि ‘आप’ के सभी कार्यकर्ता, विधायक या मन्त्री दूध के धुले ही होंगे. इनमें कुछ बिन्नी जैसी ‘खरपतवार’ भी होगी, जो खेत की फसल को खाने का काम करेगी. उस खरपतवार से केजरीवाल कैसे निपटेंगे, यह देखना दिलचस्प होगा. आज तो अरविंद के ऊपर दो बड़े घर लेने पर उंगलियाँ उठी हैं. अभी तो उनके हर कदम पर सबकी बहुत बारीक और पैनी नजर रहेगी. लेकिन यदि केजरीवाल यही सोचते रहे कि कहीं उनकी कमीज पर दाग न लग जाये, तो शायद न इधर के रहेंगे, न उधर के. सरकार उनकी है, उनके पास अधिकार हैं. विरोधियों और मीडिया का काम है, आलोचना करना. इनसे डरकर कदम वापस खींचना उनके लिए घातक हो सकता है।
फ़िलहाल तो टीम केजरीवाल को बिन्नी जैसे लोगों को शांत करने की जरूरत है ताकि २८ के २८ आपस में बंधे रहें नहीं तो भाजपा तो इसी ताक में है कि कैसे ४-५ विधायक अपने पक्ष में किया जाय. अगर आआप दिल्ली में अपनी सरकार बचाने में और कुछ काम दिखाने में कामयाब हो जाती है, तभी आगे का कुछ भविष्य हो सकता है अन्यथा अनुभवहीन होंने का तगमा तो लगा ही है. जिस तरह से अच्छे लोग आआप की तरफ आने लगे थे ..सोचने भी न लग जाएँ ? और तब जनता के पास विकल्प सिर्फ दो ही बचे. वैसे भी एक तगड़ा विपक्ष रहना भी जरूरी है, ताकि मनमानी को रोका जा सके.अगर आआप नहीं रहती है तो क्षेत्रीय दलों की चांदी रहेगी इसलिए वे भी नहीं चाहते कि आआप का वजूद रहे.
इन नए “नेताओं” को जरा कम से कम दो साल तक आम कार्यकर्ता की तरह घर-घर झाड़ू उठाकर काम करने दिया जाये ताकि इस “शुद्धीकरण प्रक्रिया” से इनका राजनैतिक शुद्धिकरण किया जा सके .
इस आन्दोलन को आम आदमी ने आगे बढ़कर अपने बल बूते पर लड़ा और जीता है. दिल्ली की जीत के बाद आये लोगों की वजह से “आप” नहीं जीती है । अगर “आप” को अच्छे लोग, अच्छे नेता, नए विचार, नए सुझाव वाले लोग चाहिए तो उसे इस देश की आम जनता से ऐसे हजारों हीरे मिल सकते हैं, बस थोडा मिहनत करके उन्हें तलाशने और तराशने की जरुरत है.
ये आन्दोलन पूरे मुल्क की आशाओं का प्रतिबिम्ब है और इस सपने को हम यूँ ही टूटने नहीं दे सकते चाहे इसके लिए कोई भी कुर्बानी क्यों ना देनी पड़े.
“आप” को बेतुकी आलोचना करने वालो पर ध्यान नहीं देना चाहिए और अपने नेक मकसद कि ओर बढ़ते जाना चाहिए. क्युकि इस देश में ऐसे लोगो कि कोई कमी नहीं है, जिन्होंने भगवान् राम और महात्मा गांधी तक को नहीं छोड़ा हो. तो केजरीवाल जी आप तो इनके आगे कुछ भी नहीं, आप को क्या छोड़ेंगे. ये वो लोग है जो सदा अपने स्वार्थ से किसी के साथ जुड़ते हैं। किसी को अपने मज़हब कि चिंता है , किसी को अपनी भ्रष्टाचारी गतिविधियो कि चिंता है , तो किसी को ये चिंता है कि अगर सरकार गरीबो के लिए काम करने लगी तो फिर हमारी अमीरी धरी कि धरी रह जायेगी। किसी को ये चिंता है कि समझदार लोग अगर राजनीति में आने लगे तो हम जैसे गधों का क्या होगा ?
ऐसे में टीम केजरीवाल का अपने मंत्रियों क साथ रेल भवन के सामने धरने पर बैठना, मंत्री सौरभ भरद्वाज को हिरासत में लेना फिर पुलिस का ही खंडन कि उन्हें धरने पर नहीं लिया गया वे खुद पुलिस गाडी में आकर बैठ गए, आप पार्टी के विधायक अखिलेश पति त्रिपाठी का पुलिस द्वारा पीटा जाना, उन्हें हॉस्पिटल में भर्ती करना, कितना जायज या नाजायज है, यह भी आम जनता ही तय करेगी, पत्रकार वर्ग और तमाम राजनीतिक पार्टियाँ टीम केजरीवाल को दोषी मान रहे हैं, पर केजरीवाल का यह कहना कि हम देश की जनता के लिए जान दे देंगे… कौन सही कौन गलत? आरोप प्रत्यारोप जारी है ….२०१४ का लोकसभा चुनाव बहुत कुछ तय करने वाला है, सभी पार्टियाँ यही कह रही है – जनता देख रही है और मीडिया भी दिखला रहा है ..अपने अपने तर्क, अपनी अपनी राजनीति! -
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अब ताजा सर्वे भी आ गये है और कम से कम हिंदी भाषी राज्यों में मोदी जी का परचम लहराता दिख रहा है, प्रधान मंत्री के उम्मीदवार के रूप में भी मोदी ५३%लोगों की पसंद बनकर सबसे आगे हैं और राहुल गांधी १५%लोगों की पसंद बनकर दूसरे नंबर पर आ गए जबकि दूसरे नंबर चल रहे केजरीवाल अब ५ %लोगों की पसंद बनकर पांचवें नंबर पर हैं. पर आम आदमी का जनाधार बढ़ता दिखाई नहीं देता. पर दिल्ली में अभी भी लोगों को आप और अरविंद पर भरोसा है!
ऐसे में ‘आप’ को एक बार पुन: विचार करना होगा कि गलतियां कहाँ हुई है और उसका निराकरण क्या हो सकता है.
मेरे हिशाब से सबसे बड़ी गलती वहीं हुई कि २८ सीट पाकर अतिउत्साहित हो जाना. फिर हम समर्थन न लेंगे न देंगे और कांग्रेस के बिना शर्त समर्थन से उत्साहित होकर उसके जाल में फंस जाना. भाजपा के हमलों के दबाव में आकर सरकार बनाने का फैसला… जब ३२ सीट पाकर भाजपा विपक्ष में बैठ सकती है तो ‘आप’ को क्या गर्ज थी, कांगेस की वैशाखी लेकर सरकार बनाने की. आपको तो पता था कांग्रेस ने कैसे चद्रशेखर, इन्दर कुमार गुजराल और देवेगौड़ा आदि को भी समर्थन दिया और वापस लिया था. क्या आप को वी पी सिंह भी याद नहीं आए जो बोफोर्स तोप की दलाली का खुलासा नहीं कर पाये और मंडल कमीशन के चक्कर में काफी बदनाम हुए. अन्य कई राज्यों में कांग्रेस के समर्थन का इतिहास भी आप तो जानते थे ..इस कुचक्र को आप भली भांति समझते थे …. फिर भी शायद आप को जनता पर भरोसा था, पर अपने विधायकों के बीच चल रहे विद्रोह के स्वर का आभास नहीं था और उसे भी आपने अन्य राजनीतिक दलों की तरह ही दबाने की कोशिश की…. आपको कैसे पता होता कि वे सभी अपनी अपनी महत्वकांक्षा की पूर्ति चाहते थे. आपने उसकी आवाज न सुनी पर मीडिया और विपक्षी दलों ने सुनी और जबर्दस्त मुद्दा बना दिया. कांग्रेस आप पर प्रहार भी करती है और आपको रोने भी नहीं देती. हाथ-पैर बांधकर कहती है, दौड़ो. एक दरोगा की हैसीयत वाले SHO को न अपना आदेश मानने को मजबूर कर सकते थे, न ही उसे आप सस्पेंड या ट्रान्सफर करा सकते थे. आपने धरना दिया और आपके धरने को गैरकानूनी घोषित कर दिया गया. अब आप पर मुकदमा भी ठोक दिया गया …अब आपके ऊपर दबाव बन रहा है, कानून मंत्री को हटाने का …आप को न निगलते बन रहा है न उगलते, आपने उन्हें जबान पर काबू रखने की हिदायत दे डाली पर पतंगबाजी से नहीं रोक सके. लो अब और सुनो सोमनाथ भारती ने फिर अपना गन्दा मुख खोला – मोदी ने कितने पैसे दिए हैं ? ऐसे सवाल पूछने के लिए ऐसे भस्मासुरों से आप कैसे निपटेंगे? आप (श्रीमान केजरीवाल) ने अपना संयम भी खो दिया और शिंदे साहब कहते कहते, शिंदे कौन होता है ? कह दिया … भाई वह केंद्र का गृह मंत्री है. वह तो आपको वहाँ से उठवा सकते थे पर उन्होंने खुद संयम बरत कर आपको असंयमित कर दिया और आपको पागल तक कह दिया… वह भी मुम्बई में जाकर अब उद्धव ठाकरे को भी तो अपने पिता की जागीरदारी सम्हालनी है. वे कैसे चुप रहते उन्होंने राखी सावंत से आपकी तुलना कर दी .. आप क्या कर लेंगे. कल होकर युगाण्डा की और महिलाएं आपके खिलाफ उतर जाएंगी और महिला आयोग आपके खिलाफ मोर्चा खोले हुए है ही …सब से एक साथ आप कैसे लड़ेंगे. आप अनिल कपूर के फ़िल्मी नायक की तरह बनकर उभरे थे, पर हस्र भी तो वही होना था आप फिल्मों की पटकथा की तरह अपनी मर्जी से बदलाव तो नहीं कर सकते …इतना बड़ा देश इतना बड़ा भारतीय संविधान, संवैधानिक संस्थाएं, नागरिक की रक्षा तो नहीं कर सकती पर संविधान की रक्षा तो करनी पड़ेगी… संवैधानिक पदों पर रहकर आप असंवैधानिक कार्य कैसे कर सकते हैं.
किरण बेदी जी तो आपकी सबसे बड़ी विरोधी बनकर खड़ी है ..एक भी मौका वह छोड़ना नहीं चाहती, आप पर वार करने का ...राजनीतिक धुरंधर जानते हैं, किसका कब और कैसे इस्तेमाल करना है आप सबों से एक साथ कैसे लड़ेंगे. जिस मीडिया ने आपको सर चढ़ाया उसे भी दुत्कार दिया. अब वे भी आपके पीछे हाथ धोकर पीछे पड़ गए हैं.
अंत में यही कहूंगा कि ‘आप’ कुछ दिन मीडिया से दूर रहकर शांति से जनता के दुःख दर्द को दूर करने का हर सम्भव प्रयास करो. जो अधिकारी हैं उन्ही से काम चलाओ.कुछ तो ट्रिक अपनाओ श्रीमान जी. वैसे ही लोग आपके बारे में कहते फिर रहे हैं – आप हर काम बीच में छोड़ देते हो. थोडा चिंतन मनन कर लो कुछ और बुद्धिजीवियों, पत्रकारों, नीति निर्धारकों से मिल अपना जड़ तो मजबूत करो. फिर आर एस एस की तरह अपने कार्यकर्ताओं की सेना बनाओ जो निस्वार्थ भाव से जनता की सेवा करे. तब आपका भी जनाधार मजबूत होगा. कुमार बिस्वास पर भी थोडा लगाम लगाओ किसी मंच पर कविता पाठ करना और राजनीतिक भाषण देना अलग अलग बातें हैं.
अभी भी बहुत सारे लोग आपको आश भरी नजरों से देख रहे हैं. मोदी जी ने गुजरात में मिहनत की है …काम किया है तभी वे प्रधान मंत्री के रेस में सबसे आगे हैं. इस बार उन्हें बनने दीजिये उन्हें रोकने का प्रयास पासा पलट सकता है, कहीं ऐसा न हो दिल्ली भी हाथ असे चली जाय और आप फिर सड़क से सड़क पर…. आपके सलाहकार अच्छे लोग हो सकते हैं पर जनता की आवाज सुना करो …आपने तो कहा था – भगवन हमें घमंड न देना अहम न देना …आप इंसान से इंसान का भाईचारे की बात करते हैं ..वही कायम करिये संयम रखिये समय पर ही फल मिलता है ….धीरे धीरे रे मन धीरे सब कुछ होत, माली सींचै सौ घड़ा ऋतू आए फल होत. जो मुर्गी रोज एक अंडा देती हो उसके पेट फाड़कर सभी अंडे एक ही दिन निकाल लेने का जोखिम तो आप जानते हैं न!….
अब ताजा सर्वे भी आ गये है और कम से कम हिंदी भाषी राज्यों में मोदी जी का परचम लहराता दिख रहा है, प्रधान मंत्री के उम्मीदवार के रूप में भी मोदी ५३%लोगों की पसंद बनकर सबसे आगे हैं और राहुल गांधी १५%लोगों की पसंद बनकर दूसरे नंबर पर आ गए जबकि दूसरे नंबर चल रहे केजरीवाल अब ५ %लोगों की पसंद बनकर पांचवें नंबर पर हैं. पर आम आदमी का जनाधार बढ़ता दिखाई नहीं देता. पर दिल्ली में अभी भी लोगों को आप और अरविंद पर भरोसा है!
ऐसे में ‘आप’ को एक बार पुन: विचार करना होगा कि गलतियां कहाँ हुई है और उसका निराकरण क्या हो सकता है.
मेरे हिशाब से सबसे बड़ी गलती वहीं हुई कि २८ सीट पाकर अतिउत्साहित हो जाना. फिर हम समर्थन न लेंगे न देंगे और कांग्रेस के बिना शर्त समर्थन से उत्साहित होकर उसके जाल में फंस जाना. भाजपा के हमलों के दबाव में आकर सरकार बनाने का फैसला… जब ३२ सीट पाकर भाजपा विपक्ष में बैठ सकती है तो ‘आप’ को क्या गर्ज थी, कांगेस की वैशाखी लेकर सरकार बनाने की. आपको तो पता था कांग्रेस ने कैसे चद्रशेखर, इन्दर कुमार गुजराल और देवेगौड़ा आदि को भी समर्थन दिया और वापस लिया था. क्या आप को वी पी सिंह भी याद नहीं आए जो बोफोर्स तोप की दलाली का खुलासा नहीं कर पाये और मंडल कमीशन के चक्कर में काफी बदनाम हुए. अन्य कई राज्यों में कांग्रेस के समर्थन का इतिहास भी आप तो जानते थे ..इस कुचक्र को आप भली भांति समझते थे …. फिर भी शायद आप को जनता पर भरोसा था, पर अपने विधायकों के बीच चल रहे विद्रोह के स्वर का आभास नहीं था और उसे भी आपने अन्य राजनीतिक दलों की तरह ही दबाने की कोशिश की…. आपको कैसे पता होता कि वे सभी अपनी अपनी महत्वकांक्षा की पूर्ति चाहते थे. आपने उसकी आवाज न सुनी पर मीडिया और विपक्षी दलों ने सुनी और जबर्दस्त मुद्दा बना दिया. कांग्रेस आप पर प्रहार भी करती है और आपको रोने भी नहीं देती. हाथ-पैर बांधकर कहती है, दौड़ो. एक दरोगा की हैसीयत वाले SHO को न अपना आदेश मानने को मजबूर कर सकते थे, न ही उसे आप सस्पेंड या ट्रान्सफर करा सकते थे. आपने धरना दिया और आपके धरने को गैरकानूनी घोषित कर दिया गया. अब आप पर मुकदमा भी ठोक दिया गया …अब आपके ऊपर दबाव बन रहा है, कानून मंत्री को हटाने का …आप को न निगलते बन रहा है न उगलते, आपने उन्हें जबान पर काबू रखने की हिदायत दे डाली पर पतंगबाजी से नहीं रोक सके. लो अब और सुनो सोमनाथ भारती ने फिर अपना गन्दा मुख खोला – मोदी ने कितने पैसे दिए हैं ? ऐसे सवाल पूछने के लिए ऐसे भस्मासुरों से आप कैसे निपटेंगे? आप (श्रीमान केजरीवाल) ने अपना संयम भी खो दिया और शिंदे साहब कहते कहते, शिंदे कौन होता है ? कह दिया … भाई वह केंद्र का गृह मंत्री है. वह तो आपको वहाँ से उठवा सकते थे पर उन्होंने खुद संयम बरत कर आपको असंयमित कर दिया और आपको पागल तक कह दिया… वह भी मुम्बई में जाकर अब उद्धव ठाकरे को भी तो अपने पिता की जागीरदारी सम्हालनी है. वे कैसे चुप रहते उन्होंने राखी सावंत से आपकी तुलना कर दी .. आप क्या कर लेंगे. कल होकर युगाण्डा की और महिलाएं आपके खिलाफ उतर जाएंगी और महिला आयोग आपके खिलाफ मोर्चा खोले हुए है ही …सब से एक साथ आप कैसे लड़ेंगे. आप अनिल कपूर के फ़िल्मी नायक की तरह बनकर उभरे थे, पर हस्र भी तो वही होना था आप फिल्मों की पटकथा की तरह अपनी मर्जी से बदलाव तो नहीं कर सकते …इतना बड़ा देश इतना बड़ा भारतीय संविधान, संवैधानिक संस्थाएं, नागरिक की रक्षा तो नहीं कर सकती पर संविधान की रक्षा तो करनी पड़ेगी… संवैधानिक पदों पर रहकर आप असंवैधानिक कार्य कैसे कर सकते हैं.
किरण बेदी जी तो आपकी सबसे बड़ी विरोधी बनकर खड़ी है ..एक भी मौका वह छोड़ना नहीं चाहती, आप पर वार करने का ...राजनीतिक धुरंधर जानते हैं, किसका कब और कैसे इस्तेमाल करना है आप सबों से एक साथ कैसे लड़ेंगे. जिस मीडिया ने आपको सर चढ़ाया उसे भी दुत्कार दिया. अब वे भी आपके पीछे हाथ धोकर पीछे पड़ गए हैं.
अंत में यही कहूंगा कि ‘आप’ कुछ दिन मीडिया से दूर रहकर शांति से जनता के दुःख दर्द को दूर करने का हर सम्भव प्रयास करो. जो अधिकारी हैं उन्ही से काम चलाओ.कुछ तो ट्रिक अपनाओ श्रीमान जी. वैसे ही लोग आपके बारे में कहते फिर रहे हैं – आप हर काम बीच में छोड़ देते हो. थोडा चिंतन मनन कर लो कुछ और बुद्धिजीवियों, पत्रकारों, नीति निर्धारकों से मिल अपना जड़ तो मजबूत करो. फिर आर एस एस की तरह अपने कार्यकर्ताओं की सेना बनाओ जो निस्वार्थ भाव से जनता की सेवा करे. तब आपका भी जनाधार मजबूत होगा. कुमार बिस्वास पर भी थोडा लगाम लगाओ किसी मंच पर कविता पाठ करना और राजनीतिक भाषण देना अलग अलग बातें हैं.
अभी भी बहुत सारे लोग आपको आश भरी नजरों से देख रहे हैं. मोदी जी ने गुजरात में मिहनत की है …काम किया है तभी वे प्रधान मंत्री के रेस में सबसे आगे हैं. इस बार उन्हें बनने दीजिये उन्हें रोकने का प्रयास पासा पलट सकता है, कहीं ऐसा न हो दिल्ली भी हाथ असे चली जाय और आप फिर सड़क से सड़क पर…. आपके सलाहकार अच्छे लोग हो सकते हैं पर जनता की आवाज सुना करो …आपने तो कहा था – भगवन हमें घमंड न देना अहम न देना …आप इंसान से इंसान का भाईचारे की बात करते हैं ..वही कायम करिये संयम रखिये समय पर ही फल मिलता है ….धीरे धीरे रे मन धीरे सब कुछ होत, माली सींचै सौ घड़ा ऋतू आए फल होत. जो मुर्गी रोज एक अंडा देती हो उसके पेट फाड़कर सभी अंडे एक ही दिन निकाल लेने का जोखिम तो आप जानते हैं न!….
. आप का लोकसभा चुनाव लड़ना लगभग तय है. नेता कि निर्णय सोच विचार कर करें. केजरीवाल को सी एम से पी एम बनाने की हालातों में उचित सी एम का चुनाव जरूरी है – अन्यथा आधी छोड़ पूरी को दावे, आधी रहे न पूरी पावे.
अंत में फिर से कहना चाहूंगा कि आप के कार्यकर्ता , नेता व मंत्री अपनी भाषा पर पूर्ण संयम बरतें. कार्य विधि संवैधानिक रखें. बात करें , पत्र लिखें और यदि इस पर भी बात न बने तो आगे की कार्रवाई जन समर्थन के साथ करें. अन्यथा भले इस चुनाव में आप कोई हस्ती बनकर उभरें, पर अगले चुनाव में आम बनकर रह जाएगे.
ABP न्यूज़ पर जो रैन बसेरों का सच दिखलाया गया है, वह काफी हद तक संतोष जनक है.टेम्पो वाले खुश हैं . नौजवान उन्हें और समय देना चाहते हैं.चलिए आम गरीब आदमी और नौजवान तो ‘आप’ से संतुष्ट हैं …अभी भी वे वोट ‘आप’ ही को करना चाहते हैं! सरकारी स्कूल, सरकारी अस्पताल, सरकारी दफ्तर, पुलिस अगर ठीक हो जाएँ तो भी बहुत बड़ी उपलब्धि कही जायेगी. अभिजात्य वर्ग हमेशा असंतुष्ट रहता है और उसे चाँद की शीतलता नहीं दिखती, दिखता है काला धब्बा….
जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.
ABP न्यूज़ पर जो रैन बसेरों का सच दिखलाया गया है, वह काफी हद तक संतोष जनक है.टेम्पो वाले खुश हैं . नौजवान उन्हें और समय देना चाहते हैं.चलिए आम गरीब आदमी और नौजवान तो ‘आप’ से संतुष्ट हैं …अभी भी वे वोट ‘आप’ ही को करना चाहते हैं! सरकारी स्कूल, सरकारी अस्पताल, सरकारी दफ्तर, पुलिस अगर ठीक हो जाएँ तो भी बहुत बड़ी उपलब्धि कही जायेगी. अभिजात्य वर्ग हमेशा असंतुष्ट रहता है और उसे चाँद की शीतलता नहीं दिखती, दिखता है काला धब्बा….
जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.