Wednesday, 29 January 2014

क्या होगा 'आप' का .....गलतियाँ तो हुई है ....

आप पार्टी का जन्म अन्ना आंदोलन से ही हुआ. जब लोगों ने ताना मारा कि आप खुद कीचड में उतरिये और कीचड को साफ़ करिये. टीम केजरीवाल ने यह चुनौती स्वीकार की और कीचड में उतरने का फैसला कर लिया. जनता कांग्रेस के बोझ से दबी परेशान थी, इसलिए उसने टीम केजरीवाल का समर्थन कुछ इस प्रकार दिया जिसका कि अनुमान टीम केजरीवाल को भी नहीं था. किसी को नहीं था.. फिर भी उसे बहुमत प्राप्त नहीं हुआ और कांग्रेस अपनी रणनीति के तहत बिना शर्त समर्थन की चिट्ठी उप राज्यपाल को दे दी….. इधर भाजपा का ताना कि आआप जिम्मेवारी से भाग रही है…. जैसे तैसे आआप की सरकार बन गयी और बिन्नी जैसे लोगों को मत्री पद नहीं मिला … असंतोष की किरण फूटी और उसे तत्काल शांत करा दिया गया…. शायद उस समय वादा किया गया होगा कि लोक सभा का टिकट दिया जायेगा. पर उसमे भी आना कानी हुई, तब केजरीवाल जो कभी सर्वगुण संपन्न थे, अब बतौर बिन्नी ‘तानशाह’ और ‘झूठे’ भी बन गए. उधर मंत्रीपद सम्हाले सोमनाथ और राखी बिडलान ने सोचा कि जनता को दिखाकर कुछ किया जाय, जिसका तत्काल प्रभाव जनता पर पड़े, पर हुआ उल्टा ही … कानून के जानकार इन्हे ही दोषी मानने लगे . विरोधियों को तो मौके की तलाश थी ही. कांग्रेस और भाजपा दोनों एक साथ टूट पडी. ‘रैड’ करना पुलिस का काम है, मंत्री या राजनीतिक पार्टी के कार्यकर्त्ता का नहीं. आप ज्यादा से जयादा बयान जारी कर सकते हो या मोमबत्ती जला सकते हो. इन्होने आगे बढ़कर गृह मंत्रालय के सामने धरना देने का फैसला कर लिया. अब गृह विभाग किसी सरकार को धरना देने की अनुमति कैसे दे सकती है. यह तो विपक्ष या किसी संस्था का काम है.
बेचारे केजरीवाल बड़े पेशो पेश में हैं ..सबको तो एक साथ खुश किया नहीं जा सकता और नहीं कोई सिस्टम को चुटकी बजाकर तोडा जा सकता है. अब दिल्ली के समर्थन से उत्साहित होकर लोकसभा चुनाव लड़ने का भी फैसला कर लिया. यह भला धुरंधर पार्टियों को क्यों मंजूर होने लगा. कांग्रेस की नैया पहले ही डूब रही है, खिलने वाले कमल को खिलने से पहले ही क्यों रोकने पर तुले हो???.
आम आदमी का जगना ठीक नहीं है … आप सोये रहो,पांच साल में एक बार जगना है या तो कमल या हाथ पर बटन दबाना हैगब्बर से सिर्फ दो ही आदमी बचा सकता है या तो खुद गब्बर या ठाकुर …..ठाकुर के हाथ तो कटे हैं अब फैसला तुम्हे करना है हथकटा ठाकुर का साथ देना है या गब्बर का जो अभी सभी प्रकार के प्राचीन और आधुनिकतम हथियारों से लैस है.
किरण बेदी जैसी अन्ना आंदोलन की सहयोगी भी शायद अरविन्द केजरीवाल से खार खाये बैठी हैं, इसलिए केजरीवाल की हर नाकामियों के लिए केजरीवाल की अक्षमता पर टिप्प्णी देने को तैयार रहती हैं. अलबत्ता उनकी भाषा मर्यादित रहती है.
जनता ने सादगी की जितनी अपेक्षाएँ केजरीवाल सरकार से लगा ली हैं, उनमें यही होना था, जो हो रहा है. उनकी हर हरकत पर पैनी नज़र रखी जा रही है. तभी तो लोगों ने अरविंद केजरीवाल को टाइप 6 का डबल डुप्लेक्स बंगला मिलने पर इसका सबब पूछ लिया। ‘मुख्यधारा’ के किसी राजनीतिक दल के किसी मुख्यमंत्री को इससे भी बड़े फ्लैट अलॉट हो जाते, तो यकीनी तौर पर सवाल नहीं उठते. अभी तक उठे भी नहीं हैं. अरविंद केजरीवाल सरकार के सामने सुशासन देने से ज्यादा बड़ी अपनी ‘कमीज’ उजली रखने की चुनौती में आगे रहना चाहते है. कहीं ऐसा न हो कि ‘आप’ न तो अपनी कमीज उजली रख पाये और न ऐसा सुशासन दे पाये, जिसकी उम्मीद पूरे हिन्दुस्तान और दुनिया ने भी लगा रखी है. बंगला विवाद के बाद केजरीवाल का छोटे घर में रहने का फैसला संकेत है कि वे विरोधियों और मीडिया के दबाव में आ गए हैं और अब वे तीन बेडरूम वाले फ्लैट C-II/२३ में रहने के लिए तैयार हो गए हैं.
यह समझ से परे है कि आखिर उनके विरोधी और आलोचक चाहते क्या हैं? क्या यह कि किसी राज्य का मुख्यमंत्री दीन-हीन बनकर रहे और वे सुविधाएँ भी न ले, जो उसका अधिकार, और जरूरत हैं? किसी भी मुख्यमंत्री को इतनी जगह मिलनी ही चाहिए, जहाँ बैठकर वह उन वादों को पूरा कर सके, जो उसने जनता से किये हैं. ठीक है कि अरविंद ने दबाव में आकर छोटी जगह लेने की बात कही है, लेकिन सवाल यह है कि क्या वह छोटी जगह पर अपने काम को ठीक तरह से अंजाम दे पायेंगे? यदि अरविंद सरकार को छोटी-छोटी बातों पर घेरा जायेगा, तो शायद वह ऐसा कुछ न कर पाये, जिसकी आशा जनता ने उससे लगा रखी हैं.सादगी का मतलब यह नहीं होता कि मुख्यमंत्री सरकारी काम के लिये भी अपनी गाड़ी का इस्तेमाल करे. अगर वह ऐसा करेगा, तो इतना पैसा कहाँ से लायेगा? व्यक्तिगत आवास में रहेगा, तो उसके मेंटिनेंस का खर्च कौन उठायेगा?
दरअसल, अरविंद केजरीवाल से यही उम्मीद है कि वह सरकारी खजाने का दुरुपयोग नहीं होने देंगे, लेकिन आगत मेहमानों के चाय का बिल भी केजरीवाल ही भरें, यह तो मुमकिन नहीं हो सकता. देखा जाये, तो जिस तरह से सरकारी खजाने को लुटाया जा रहा है, उसे रोकने की जरूरत है और केजरीवाल का मिशन भी यही है। सरकारी खजाने की लूट ही वह भ्रष्टाचार है, जो पूरे देश में मची है. यही लूट देश के विकास में सबसे बड़ा रोड़ा भी है. सवाल यह है कि आप सरकार पर होने वाले न्यूनतम सरकारी खर्च ज्यादा अहमियत रखते हैं या करोड़ों हजार रुपये के घोटालों को रोकना?
हमारे देश की जनता की त्रासदी है कि वह ऐसे राजनीतिक दलों को तो बार-बार मौका देती रहेगी, जिन्होंने इस देश को रसातल में ले जाने में कोई कसर बाकी नहीं रखी, लेकिन अलग हटकर चलने का वादा करने वाले राजनीतिक दल से उम्मीद करेगी कि उनके नेता ‘देवता’ सरीखे हों…. कोई शख्स सर्वगुण सम्पन्न नहीं होता.
थोड़े बहुत अवगुण होना मानवीय कमजोरी है, जिन्हें बड़े मकसद के लिए नजरअंदाज किया जाना चाहिए.1977 में जब जेपी के नेतृत्व में कांग्रेस के खिलाफ आन्दोलन चला और जनता पार्टी ‘संपूर्ण क्रांति’के नाम पर देश की सत्ता पर काबिज हुयी, तो उससे भी ऐसी ही अपेक्षायें रखी गयी थीं, जो आज ‘आप’ से लगाई जा रही हैं। नतीजा यह हुआ था कि जनता पार्टी सरकार ‘अपेक्षाओं’ के बोझ से 19 महीने में ऐसी धराशायी हुयी कि दोबारा नहीं पनप सकी। ऐसा ही 1989 में वीपी सिंह के नेतृत्व में बनी जनता दल सरकार के साथ हुआ था. ‘आप’ के साथ ऐसा न हो, इसके लिये यह जरूरी है कि उससे सौ प्रतिशत परिणाम देने की अपेक्षा न रखी जाये. कोई भी सरकार सड़ चुके सिस्टम को दो-चार महीने में तो क्या पाँच साल में भी नहीं बदल सकती. हाँ, उसमें कुछ कमी जरूर ला सकती है. हमें नहीं भूलना चाहिए कि मध्यप्रदेश की शिवराज सिंह चौहान और छत्तीसगढ़ की रमन सिंह सरकार ने सब कुछ सही नहीं कर दिया, जो जनता ने उन्हें दोबारा मौका दिया है। बस, उन्होंने दूसरों की अपेक्षा बेहतर शासन दिया है.
समस्या यह है कि जनता या कह लीजिए कि विरोधी ‘आपको’ ‘जीरो टॉलरेंस’की कसौटी पर कस रहे हैं. कह नहीं सकते कि ‘आप’ की सरकार कितने दिन चलेगी, लेकिन जितने दिन भी चले, उससे उम्मीद यही है कि वह ऐसा कोई काम नहीं करेगी, जिससे यह साबित हो जाये कि सत्ता में आने के बाद सभी की कमीजों पर दाग लग ही जाता है. लेकिन ऐसा भी नहीं होना चाहिए कि सरकार चलाने वालों को मिले अधिकार को ही ‘दाग’ कहकर इतना प्रचारित कर दिया जाय़े कि वह असली लगने लगें? देश में अपने विरोधियों को चित करने के लिए कौन छद्म दुष्प्रचार करता है, इसे भी केजरीवाल अच्छी तरह समझते हैं. यह भी नहीं समझना चाहिए कि ‘आप’ के सभी कार्यकर्ता, विधायक या मन्त्री दूध के धुले ही होंगे. इनमें कुछ बिन्नी जैसी ‘खरपतवार’ भी होगी, जो खेत की फसल को खाने का काम करेगी. उस खरपतवार से केजरीवाल कैसे निपटेंगे, यह देखना दिलचस्प होगा. आज तो अरविंद के ऊपर दो बड़े घर लेने पर उंगलियाँ उठी हैं. अभी तो उनके हर कदम पर सबकी बहुत बारीक और पैनी नजर रहेगी. लेकिन यदि केजरीवाल यही सोचते रहे कि कहीं उनकी कमीज पर दाग न लग जाये, तो शायद न इधर के रहेंगे, न उधर के. सरकार उनकी है, उनके पास अधिकार हैं. विरोधियों और मीडिया का काम है, आलोचना करना. इनसे डरकर कदम वापस खींचना उनके लिए घातक हो सकता है।
फ़िलहाल तो टीम केजरीवाल को बिन्नी जैसे लोगों को शांत करने की जरूरत है ताकि २८ के २८ आपस में बंधे रहें नहीं तो भाजपा तो इसी ताक में है कि कैसे ४-५ विधायक अपने पक्ष में किया जाय. अगर आआप दिल्ली में अपनी सरकार बचाने में और कुछ काम दिखाने में कामयाब हो जाती है, तभी आगे का कुछ भविष्य हो सकता है अन्यथा अनुभवहीन होंने का तगमा तो लगा ही है. जिस तरह से अच्छे लोग आआप की तरफ आने लगे थे ..सोचने भी न लग जाएँ ? और तब जनता के पास विकल्प सिर्फ दो ही बचे. वैसे भी एक तगड़ा विपक्ष रहना भी जरूरी है, ताकि मनमानी को रोका जा सके.अगर आआप नहीं रहती है तो क्षेत्रीय दलों की चांदी रहेगी इसलिए वे भी नहीं चाहते कि आआप का वजूद रहे.
इन नए “नेताओं” को जरा कम से कम दो साल तक आम कार्यकर्ता की तरह घर-घर झाड़ू उठाकर काम करने दिया जाये ताकि इस “शुद्धीकरण प्रक्रिया” से इनका राजनैतिक शुद्धिकरण किया जा सके .
इस आन्दोलन को आम आदमी ने आगे बढ़कर अपने बल बूते पर लड़ा और जीता है. दिल्ली की जीत के बाद आये लोगों की वजह से “आप” नहीं जीती है । अगर “आप” को अच्छे लोग, अच्छे नेता, नए विचार, नए सुझाव वाले लोग चाहिए तो उसे इस देश की आम जनता से ऐसे हजारों हीरे मिल सकते हैं, बस थोडा मिहनत करके उन्हें तलाशने और तराशने की जरुरत है.
ये आन्दोलन पूरे मुल्क की आशाओं का प्रतिबिम्ब है और इस सपने को हम यूँ ही टूटने नहीं दे सकते चाहे इसके लिए कोई भी कुर्बानी क्यों ना देनी पड़े.
“आप” को बेतुकी आलोचना करने वालो पर ध्यान नहीं देना चाहिए और अपने नेक मकसद कि ओर बढ़ते जाना चाहिए. क्युकि इस देश में ऐसे लोगो कि कोई कमी नहीं है, जिन्होंने भगवान् राम और महात्मा गांधी तक को नहीं छोड़ा हो. तो केजरीवाल जी आप तो इनके आगे कुछ भी नहीं, आप को क्या छोड़ेंगे. ये वो लोग है जो सदा अपने स्वार्थ से किसी के साथ जुड़ते हैं। किसी को अपने मज़हब कि चिंता है , किसी को अपनी भ्रष्टाचारी गतिविधियो कि चिंता है , तो किसी को ये चिंता है कि अगर सरकार गरीबो के लिए काम करने लगी तो फिर हमारी अमीरी धरी कि धरी रह जायेगी। किसी को ये चिंता है कि समझदार लोग अगर राजनीति में आने लगे तो हम जैसे गधों का क्या होगा ?
ऐसे में टीम केजरीवाल का अपने मंत्रियों क साथ रेल भवन के सामने धरने पर बैठना, मंत्री सौरभ भरद्वाज को हिरासत में लेना फिर पुलिस का ही खंडन कि उन्हें धरने पर नहीं लिया गया वे खुद पुलिस गाडी में आकर बैठ गए, आप पार्टी के विधायक अखिलेश पति त्रिपाठी का पुलिस द्वारा पीटा जाना, उन्हें हॉस्पिटल में भर्ती करना, कितना जायज या नाजायज है, यह भी आम जनता ही तय करेगी, पत्रकार वर्ग और तमाम राजनीतिक पार्टियाँ टीम केजरीवाल को दोषी मान रहे हैं, पर केजरीवाल का यह कहना कि हम देश की जनता के लिए जान दे देंगे… कौन सही कौन गलत? आरोप प्रत्यारोप जारी है ….२०१४ का लोकसभा चुनाव बहुत कुछ तय करने वाला है, सभी पार्टियाँ यही कह रही है – जनता देख रही है और मीडिया भी दिखला रहा है ..अपने अपने तर्क, अपनी अपनी राजनीति! -
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अब ताजा सर्वे भी आ गये है और कम से कम हिंदी भाषी राज्यों में मोदी जी का परचम लहराता दिख रहा है, प्रधान मंत्री के उम्मीदवार के रूप में भी मोदी ५३%लोगों की पसंद बनकर सबसे आगे हैं और राहुल गांधी १५%लोगों की पसंद बनकर दूसरे नंबर पर आ गए जबकि दूसरे नंबर चल रहे केजरीवाल अब ५ %लोगों की पसंद बनकर पांचवें नंबर पर हैं. पर आम आदमी का जनाधार बढ़ता दिखाई नहीं देता. पर दिल्ली में अभी भी लोगों को आप और अरविंद पर भरोसा है!
ऐसे में ‘आप’ को एक बार पुन: विचार करना होगा कि गलतियां कहाँ हुई है और उसका निराकरण क्या हो सकता है.
मेरे हिशाब से सबसे बड़ी गलती वहीं हुई कि २८ सीट पाकर अतिउत्साहित हो जाना. फिर हम समर्थन न लेंगे न देंगे और कांग्रेस के बिना शर्त समर्थन से उत्साहित होकर उसके जाल में फंस जाना. भाजपा के हमलों के दबाव में आकर सरकार बनाने का फैसला… जब ३२ सीट पाकर भाजपा विपक्ष में बैठ सकती है तो ‘आप’ को क्या गर्ज थी, कांगेस की वैशाखी लेकर सरकार बनाने की. आपको तो पता था कांग्रेस ने कैसे चद्रशेखर, इन्दर कुमार गुजराल और देवेगौड़ा आदि को भी समर्थन दिया और वापस लिया था. क्या आप को वी पी सिंह भी याद नहीं आए जो बोफोर्स तोप की दलाली का खुलासा नहीं कर पाये और मंडल कमीशन के चक्कर में काफी बदनाम हुए. अन्य कई राज्यों में कांग्रेस के समर्थन का इतिहास भी आप तो जानते थे ..इस कुचक्र को आप भली भांति समझते थे …. फिर भी शायद आप को जनता पर भरोसा था, पर अपने विधायकों के बीच चल रहे विद्रोह के स्वर का आभास नहीं था और उसे भी आपने अन्य राजनीतिक दलों की तरह ही दबाने की कोशिश की…. आपको कैसे पता होता कि वे सभी अपनी अपनी महत्वकांक्षा की पूर्ति चाहते थे. आपने उसकी आवाज न सुनी पर मीडिया और विपक्षी दलों ने सुनी और जबर्दस्त मुद्दा बना दिया. कांग्रेस आप पर प्रहार भी करती है और आपको रोने भी नहीं देती. हाथ-पैर बांधकर कहती है, दौड़ो. एक दरोगा की हैसीयत वाले SHO को न अपना आदेश मानने को मजबूर कर सकते थे, न ही उसे आप सस्पेंड या ट्रान्सफर करा सकते थे. आपने धरना दिया और आपके धरने को गैरकानूनी घोषित कर दिया गया. अब आप पर मुकदमा भी ठोक दिया गया …अब आपके ऊपर दबाव बन रहा है, कानून मंत्री को हटाने का …आप को न निगलते बन रहा है न उगलते, आपने उन्हें जबान पर काबू रखने की हिदायत दे डाली पर पतंगबाजी से नहीं रोक सके. लो अब और सुनो सोमनाथ भारती ने फिर अपना गन्दा मुख खोला – मोदी ने कितने पैसे दिए हैं ? ऐसे सवाल पूछने के लिए ऐसे भस्मासुरों से आप कैसे निपटेंगे? आप (श्रीमान केजरीवाल) ने अपना संयम भी खो दिया और शिंदे साहब कहते कहते, शिंदे कौन होता है ? कह दिया … भाई वह केंद्र का गृह मंत्री है. वह तो आपको वहाँ से उठवा सकते थे पर उन्होंने खुद संयम बरत कर आपको असंयमित कर दिया और आपको पागल तक कह दिया… वह भी मुम्बई में जाकर अब उद्धव ठाकरे को भी तो अपने पिता की जागीरदारी सम्हालनी है. वे कैसे चुप रहते उन्होंने राखी सावंत से आपकी तुलना कर दी .. आप क्या कर लेंगे. कल होकर युगाण्डा की और महिलाएं आपके खिलाफ उतर जाएंगी और महिला आयोग आपके खिलाफ मोर्चा खोले हुए है ही …सब से एक साथ आप कैसे लड़ेंगे. आप अनिल कपूर के फ़िल्मी नायक की तरह बनकर उभरे थे, पर हस्र भी तो वही होना था आप फिल्मों की पटकथा की तरह अपनी मर्जी से बदलाव तो नहीं कर सकते …इतना बड़ा देश इतना बड़ा भारतीय संविधान, संवैधानिक संस्थाएं, नागरिक की रक्षा तो नहीं कर सकती पर संविधान की रक्षा तो करनी पड़ेगी… संवैधानिक पदों पर रहकर आप असंवैधानिक कार्य कैसे कर सकते हैं.
किरण बेदी जी तो आपकी सबसे बड़ी विरोधी बनकर खड़ी है ..एक भी मौका वह छोड़ना नहीं चाहती, आप पर वार करने का ...राजनीतिक धुरंधर जानते हैं, किसका कब और कैसे इस्तेमाल करना है आप सबों से एक साथ कैसे लड़ेंगे. जिस मीडिया ने आपको सर चढ़ाया उसे भी दुत्कार दिया. अब वे भी आपके पीछे हाथ धोकर पीछे पड़ गए हैं.
अंत में यही कहूंगा कि ‘आप’ कुछ दिन मीडिया से दूर रहकर शांति से जनता के दुःख दर्द को दूर करने का हर सम्भव प्रयास करो. जो अधिकारी हैं उन्ही से काम चलाओ.कुछ तो ट्रिक अपनाओ श्रीमान जी. वैसे ही लोग आपके बारे में कहते फिर रहे हैं – आप हर काम बीच में छोड़ देते हो. थोडा चिंतन मनन कर लो कुछ और बुद्धिजीवियों, पत्रकारों, नीति निर्धारकों से मिल अपना जड़ तो मजबूत करो. फिर आर एस एस की तरह अपने कार्यकर्ताओं की सेना बनाओ जो निस्वार्थ भाव से जनता की सेवा करे. तब आपका भी जनाधार मजबूत होगा. कुमार बिस्वास पर भी थोडा लगाम लगाओ किसी मंच पर कविता पाठ करना और राजनीतिक भाषण देना अलग अलग बातें हैं.
अभी भी बहुत सारे लोग आपको आश भरी नजरों से देख रहे हैं. मोदी जी ने गुजरात में मिहनत की है …काम किया है तभी वे प्रधान मंत्री के रेस में सबसे आगे हैं. इस बार उन्हें बनने दीजिये उन्हें रोकने का प्रयास पासा पलट सकता है, कहीं ऐसा न हो दिल्ली भी हाथ असे चली जाय और आप फिर सड़क से सड़क पर…. आपके सलाहकार अच्छे लोग हो सकते हैं पर जनता की आवाज सुना करो …आपने तो कहा था – भगवन हमें घमंड न देना अहम न देना …आप इंसान से इंसान का भाईचारे की बात करते हैं ..वही कायम करिये संयम रखिये समय पर ही फल मिलता है ….धीरे धीरे रे मन धीरे सब कुछ होत, माली सींचै सौ घड़ा ऋतू आए फल होत. जो मुर्गी रोज एक अंडा देती हो उसके पेट फाड़कर सभी अंडे एक ही दिन निकाल लेने का जोखिम तो आप जानते हैं न!….
आप का लोकसभा चुनाव लड़ना लगभग तय है. नेता कि निर्णय सोच विचार कर करें. केजरीवाल को सी एम से पी एम बनाने की हालातों में उचित सी एम का चुनाव जरूरी है – अन्यथा आधी छोड़ पूरी को दावे, आधी रहे न पूरी पावे.


अंत में फिर से कहना चाहूंगा कि आप के कार्यकर्ता , नेता व मंत्री अपनी भाषा पर पूर्ण संयम बरतें. कार्य विधि संवैधानिक रखें. बात करें , पत्र लिखें और यदि इस पर भी बात न बने तो आगे की कार्रवाई जन समर्थन के साथ करें. अन्यथा भले इस चुनाव में आप कोई हस्ती बनकर उभरें, पर अगले चुनाव में आम बनकर रह जाएगे.
ABP न्यूज़ पर जो रैन बसेरों का सच दिखलाया गया है, वह काफी हद तक संतोष जनक है.टेम्पो वाले खुश हैं . नौजवान उन्हें और समय देना चाहते हैं.चलिए आम गरीब आदमी और नौजवान तो ‘आप’ से संतुष्ट हैं …अभी भी वे वोट ‘आप’ ही को करना चाहते हैं! सरकारी स्कूल, सरकारी अस्पताल, सरकारी दफ्तर, पुलिस अगर ठीक हो जाएँ तो भी बहुत बड़ी उपलब्धि कही जायेगी. अभिजात्य वर्ग हमेशा असंतुष्ट रहता है और उसे चाँद की शीतलता नहीं दिखती, दिखता है काला धब्बा….
जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.

सृष्टि का श्रृंगार कैसा!

सृष्टि का श्रृंगार कैसा! भक्ति का ब्यवहार कैसा!
पेड़ से लिपटी लताएँ
देखती क्या कोई कंटक?
श्याम बादल घूमते ज्यों,
सकल मही या खाई पर्वत,
गिरि-शिखर निर्झर व नदियां,
स्वच्छ है जल धार कैसा!

सृष्टि का श्रृंगार कैसा! भक्ति का ब्यवहार कैसा!
मातृ लेती जब बलाएं,
शिशु का मुंह चूमती है
गाय की बछिया पुलक हो
थन से पय को चूसती है
जब यशोदा दूहती गौ,
कृष्ण देखें धार कैसा!

सृष्टि का श्रृंगार कैसा! भक्ति का ब्यवहार कैसा!
सूर ने क्या कृष्ण देखा,
तुलसी ने कब राम देखा,
मीरा को हम क्या कहेंगे,
नयन ने घनश्याम देखा,
गोपिकाओं के ह्रदय में
वीथि वन में प्यार कैसा!

सृष्टि का श्रृंगार कैसा! भक्ति का ब्यवहार कैसा!
सूर्य की रश्मि नवेली,
ओस की बूंदे अकेली
रजत आभा फूटती है
दूब से शोभित मही री.
पक्षी रव जब कूजते हैं
मुक्त नभ में हार जैसा!

सृष्टि का श्रृंगार कैसा! भक्ति का ब्यवहार कैसा!
उपवनों में जाके देखो,
भांति भांति पुष्प पेखो,
तितलियों की ये छटाएं ,
भ्रमर के भी रूप देखो,
चलती जब ठंढी हवाएं,
आ..हा..हा! बयार कैसा,

सृष्टि का श्रृंगार कैसा! भक्ति का ब्यवहार कैसा!
कृषक जन अपने फसल को
मुग्ध होकर देखते हैं,
फूल सरसो के सुहाते,
मटरफली भी सोहते हैं,
कृषक मन में भी पनपती
सस्य के संग प्यार कैसा!

सृष्टि का श्रृंगार कैसा! भक्ति का ब्यवहार कैसा!
शिल्पकारी की कलाएं
सबके मन को मोहती है,
मूल्य इसका क्या लगाएं
दर्शकों को जोहती है
कवि के दिल से पूछ देखो,
पंक्ति निज से प्यार कैसा !

सृष्टि का श्रृंगार कैसा! भक्ति का ब्यवहार कैसा!

- जवाहर लाल सिंह

Monday, 20 January 2014

उठो केजरीवाल!

उठो केजरीवाल, न मन में चिंता पालो,
भूलो बिन्नी दोष, अपना देश सम्हालो.
सरिता जल की राह में आते रहते पत्थर,
तीव्र धार से वे भी बन जाते अति लघुतर

***
निंदक नियरे राखिये, कहते सकल सुजान
निंदा से मल धोइये, नयी डिटर्जेंट जान
समझ न पाये आप को, राजनीति के घाघ,
कर्म निरंतर कीजिये, जनता में हैं आग. .
***
शत्रु सदा से होते है नर के प्रतिद्वंदी. .
दोस्त बिखर के होते हैं शत्रु के संगी.
एक विभीषण देख स्वर्ण लंका को जारे
भेद न होते अगर स्वजन न जाते मारे.
आप आप में आप जलेंगे दुश्मन सारे,
कोस कोस के खुद जल मर जाएँ सारे.
होती अगर न हार तजुर्बा होता कैसे,
तेज होत तलवार शान चढ़ावत जैसे

देना मत अभिमान, कहा था तुमने प्रभु से,
कसमे खाई थी तुमने मिट्टी ले भू से.
बड़े धुरंधर देखो तुझको टोक रहे हैं,
वेगवती धारा को कैसे रोक रहे हैं!
देश विदेश में तुमने जो अब नाम कमाया,
हुए कुपित सब देख ये सब है प्रभु की माया.
मदर टेरेसा ने तुझको जो सिखलाया था,
दुखियों की सेवा करना ही बतलाया था.

क्या होगा गर कुर्सी तेरी छिन जायेगी
नयी विपत्ति जन लोगों में फिर आयेगी.
होगा अगर चुनाव तुम्हे फिर जीत मिलेगी.
और अधिक लोगों की तुमको प्रीत मिलेगी.
बिन्नी जैसे लोग शक्ति-पद के लोलुप हैं,
उसे चढ़ाकर झाड़ शत्रुजन कैसे चुप हैं.
धोखा खाकर ही नर फिर से जग उठता है,
सोना होकर तप्त तेज ज्यादा दिखता है.
असल लड़ाई की घड़ी देखो आन पड़ी है,
केशव साथ में तेरे विपदा मही पड़ी है.
कौरव दल में दम्भ, साथ में सेना शक्ति
पांडव के संग सत्य और केशव की भक्ति.

विजय सत्य की होती, है सन्देश पुराना ,
छोटी मोटी विपदा से तू न घबराना.
हार जीत जीवन के पथ के दो पहलू हैं,
देख आज टी वी चैनेल में तू ही तू है.
भारत के जन में जागी है नूतन आशा,
सभी विरोधी फेंक रहे हैं तुझपर पासा.
अन्ना के वारिश तुम हो राहुल पर भारी
मोदी जी की तेज सिमटती दिखती सारी

पंत प्रधान सचिव सारे असमंजस में हैं,
सत्य आत्मबल निष्ठा तेरे अंकुश में है
जनता और जनार्दन भी है साथ तुम्हारे
किसकी हिम्मत है जो आकर तुझको मारे!. ,
किसकी हिम्मत है जो आकर तुझको मारे
!

किरण जी, आपने देर कर दी या सही अवसर चुना!

भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन में अन्ना हजारे की अहम सहयोगी रहीं पूर्व आई पी एस ऑफिसर किरन बेदी ने बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी का खुलकर समर्थन करते हुए कहा है कि वह स्थिर, जवाबदेह और अच्छी सरकार दे सकते हैं। गुरुवार की देर रात बेदी ने कहा कि स्थिर, बेहतर शासन वाले और अच्छे देश के लिए मेरा वोट मोदी को जाएगा।
उन्होंने ट्विटर पर लिखा कि उनकी पहली प्राथमिकता देश है। साथ ही उन्होंने कहा कि जवाबदेह और निष्पक्ष मतदाता के तौर उनका वोट नमो (नरेंद्र मोदी) को जाएगा। गौरतलब है कि किरन बेदी ने पिछले साल अक्टूबर में अहमदाबाद में दिए अपने भाषण में भी मोदी का समर्थन किया था।
उन्होंने नाम लिए बगैर आम आदमी पार्टी पर भी निशाना साधा और कहा कि आज देश के लिए स्थिर और अनुभवी हाथों की जरूरत है। उन्होंने ट्वीट किया कि हममें से कोई भी जो घोटाला मुक्त देश चाहता है, वह कांग्रेस को वोट नहीं दे सकता।
बेदी के इस कॉमेंट के साथ ही उनके बीजेपी में आने के कयास बढ़ गए हैं। वैसे, कुछ समय यह बात चर्चा में है कि बेदी को कांग्रेस के केन्द्रीय मंत्री कपिल सिब्बल के खिलाफ चांदनी चौक से उम्मीदवार बनाया जा सकता है। लेकिन बेदी ने अभी तक खुद को अन्ना हजारे के लोकपाल आंदोलन से ही जोड़े रखे हुआ था। वह और पूर्व सेना प्रमुख जनरल वीके सिंह हाल ही में रालेगण सिद्धी में अन्ना के अनशन के दौरान भी मौजूद रहे थे। इन दोनों को ही बीजेपी में शामिल करने की पैरवी शुरू हो गई है। बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने दोनों को बीजेपी में लाने पर बल दिया है।
केजरीवाल सरकार के शनिवार के ‘असफल जनता दरबार’ पर सबसे ज्यादा तंज उनकी पूर्व सहयोगी किरन बेदी ने ही कसा। इस अफरा-तफरी का माहौल देखने के बाद अपने पहले ट्वीट में बेदी ने कहा, ‘भगवान के लिए, अरविंद और टीम, – सचिवालय छतों से नहीं चलाए जाते! प्लीज सुनने-समझने में वक्त लीजिए! तब जाकर अच्छे से विचार करके फैसले लीजिए।’ उसके कुछ देर बाद किरन ने फिर ट्वीट किया। इन बार उन्होंने लिखा, ‘शासन चलाने के अच्छे और बुरे तरीकों का पता होना चाहिए। अनुभवी नेतृत्व अच्छी परंपराएं स्थापित करता चलता है और बुरी परंपराओं का हटाता जाता है।’
दुश्मन तो दुश्मन पहले ही थे, एक दोस्त का दुश्मन(प्रतिद्वंदी) बन जाना ज्यादा खतरनाक होता है. दोनों मुख्य सियासी पार्टियां कोई भी मौका छोड़ना नही चाहती, आप पर हमला करने का उधर विजय गोयल भी मुखर नजर आए तो शकील अहमद और भीम अफजल भी जले पर नामक ही छिड़क रहे हैं. पर अरविंद क्या इतनी जल्दी हार मानने वालों में से हैं क्या?
डॉ. किरण बेदी भारतीय पुलिस सेवा की प्रथम वरिष्ठ महिला अधिकारी हैं। उन्होंने विभिन्न पदों पर रहते हुए अपनी कार्य-कुशलता का परिचय दिया है। वे संयुक्त आयुक्त पुलिस प्रशिक्षण तथा दिल्ली पुलिस स्पेशल आयुक्त (खुफिया) के पद पर कार्य कर चुकी हैं। उन्हें वर्ष 2002 के लिए भारत की ‘सबसे प्रशंसित महिला’ चुना गया।
डॉ. बेदी का जन्म सन् 1949 में पंजाब के अमृतसर शहर में हुआ। वे श्रीमती प्रेमलता तथा श्री प्रकाश लाल पेशावरिया की चार पुत्रियों में से दूसरी पुत्री हैं। उनके मानवीय एवं निडर दृष्टिकोण ने पुलिस कार्यप्रणाली एवं जेल सुधारों के लिए अनेक आधुनिक आयाम जुटाने में महत्वपूर्ण योगदान किया है। निःस्वार्थ कर्त्तव्यपरायणता के लिए उन्हें शौर्य पुरस्कार मिलने के अलावा अनेक कार्यों को सारी दुनिया में मान्यता मिली है जिसके परिणामस्वरूप एशिया का नोबल पुरस्कार कहा जाने वाला रमन मैगसेसे पुरस्कार से उन्हें नवाजा गया।
किरण बेदी ने राजनीति विज्ञान में व्याख्याता (1970-1972) विमेन, के रूप में अमृतसर खालसा कॉलेज में अपना कैरियर शुरू किया. जुलाई 1972 में, वह भारतीय पुलिस सेवा में शामिल हो गई,
निरीक्षक कारागार तिहाड़ जेल (दिल्ली) (1993-1995) में, जनरल के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान वह जेल के प्रबंधन में सुधार की एक इकाई की स्थापना की है, जीने की कला के रूप में इस तरह के उपायों की एक इकाई शुरू कर जेल में कैदियों के लिए योग, ध्यान, और साक्षरता कार्यक्रमों की शुरुआत की. वह तिहाड़ जेल में अपने काम के बारे में लिखने के लिए 1994 के रेमन मैगसेसे पुरस्कार, और ‘जवाहर लाल नेहरू फैलोशिप’, से सम्मानित हैं.
25 दिसम्बर 2007 को भारत सरकार को पुलिस अनुसंधान और विकास ब्यूरो के महानिदेशक पद से स्वेच्छा से मुक्त हुईं.
बेदी की लोकपाल विधेयक पर सरकार के साथ वार्ता में एक कट्टरपंथी होने के लिए आलोचना भी की गयी थी. बाद में संसद के सदस्यों के लिए लोकपाल विधेयक के विरोध प्रदर्शन के दौरान कथित तौर पर सांसदों को मजाक उड़ाने के लिए किरण बेदी और कुछ अन्य कार्यकर्ताओं के खिलाफ विशेषाधिकार प्रस्ताव का उल्लंघन लाने का प्रस्ताव का नोटिस भी जारी किया गया, हालांकि नोटिस बाद में वापस ले लिया.
किरण बेदी अन्ना हजारे और अरविंद केजरीवाल के साथ भ्रष्टाचार के खिलाफ भारत (IAC) के प्रमुख सदस्यों में से एक है. भ्रष्टाचार के खिलाफ विरोध और भारत सरकार के आग्रह के लिए एक मजबूत लोकपाल विधेयक अधिनियमित.16 अगस्त, 2011 को, बेदी सहित भ्रष्टाचार के खिलाफ भारत के प्रमुख सदस्यों की योजना बनाई. अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल के पहले चार घंटे के द्वारा गिरफ्तार किया गया था हजारे हालांकि, बेदी और अन्य कार्यकर्ताओं को बाद में शाम को उसी दिन रिहा कर दिया गया. विरोध और सरकार और कार्यकर्ताओं के बीच कई विचार विमर्श के बारह दिनों के बाद, संसद लोकपाल का मसौदा तैयार करने में तीन बिंदुओं पर विचार करने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया.
अरविंद केजरीवाल को जब यह चुनौती दी गयी कि राजनीति में स्वयं घुसकर सिस्टम ठीक करें, तो उन्होंने वह चुनौती स्वीकार कर ली. पर किरण बेदी इसी मुद्दे पर केजरीवाल से अलग हो गयी. शायद यहाँ पर दोनों की अपनी अपनी अलग अलग महत्वकांक्षा काम कर रही थी.
महात्मा गाँधी ने अंग्रेजों के खिलाफ लड़कर कुछ नेता दिए, जैसे जवाहर लाल नेहरू, सरदार वल्लभ भाई पटेल और मोहम्मद जिन्ना,
लोकनायक जयप्रकाश आन्दोलन से भी कुछ नेता उभरे, मोरारजी देसाई, चौधरी चरण सिंह और जगजीवन राम… अब अन्ना आन्दोलन से कई नेता उभरे अरविन्द केजरीवाल, किरण बेदी और जनरल वी के सिंह
देखना यह है कि मोदी अगर प्रधान मंत्री बनाते हैं तो गृह मंत्री किसको बनाते हैं – किरण बेदी को या वी. के. सिंह को.
प्रश्न यही है कि सक्रिय राजनीति में भाग लेने की विरोधी रही किरण बेदी को क्या यही वक्त उपयुक्त लगा या केजरीवाल की सफलता से वह भी उत्साहित हुई हैं.
अभी फिर उन्होंने कहा कि ‘आप’ को वोट देना मतलब कांग्रेस को वोट देना है…यानी कि किरन जी आप की विरोधी बन गयी हैं.
मेरा अपना मानना है कि अगर किरण जी, केजरीवाल के साथ होती तो अच्छा पद पा सकती थीं. फेसबुक तो कब से उन्हें प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहता है….जो भी हो आगामी लोकसभा चुनाव दिलचस्प होने वाला है. प्रधान मंत्री की कुर्सी तक कौन पहुँच पाता है, यही देखना है. जनता को तो अमन चैन और सुशासन चाहिए, रोजगार चाहिए और महंगाई से निजात चाहिए. – जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.

Thursday, 9 January 2014

‘आप’ की बढ़ती लोकप्रियता!

टाइम्स ऑफ़ इंडिया के ताजा सर्वे के अनुसार देश के बड़े महानगरों में ४४% लोग आम आदमी पार्टी को वोट देंगे. ५८% लोग नरेंद्र मोदी प्रधान मंत्री के रूप में देखना चाहते हैं पर २५% लोग अरविन्द केजरीवाल को प्रधान मंत्री के रूप में देखना चाहते हैं राहुल गांधी १४% के साथ तीसरे नंबर पर हैं. यह अभी का और सिर्फ महानगरों का सर्वे है. आगे और भी सर्वे आएंगे. जिनमे सम्भावना है कि ‘आप’ का ग्राफ बढ़ने वाला है.
ऐसे में भारतीय जनता पार्टी, जो कि आगामी चुनाव में देश की सत्ता प्राप्त करने का सपना संजोये हुए है, का चिंतित होना लाजिमी है. और अब तो आर. एस. एस. प्रमुख मोहन भागवत ने भी कह दिया – भाजपा के लिए ‘आप’ बड़ी चुनौती है.
महज चार सीटों के अंतर से दिल्ली राज्य के सिंहासन से वचित होना दुर्भाग्य और चिंता की बात तो है ही.कांग्रेस अपनी हार से कुछ भी सबक नहीं लेना चाहती है, वह गरीबों के लिए खाद्य सुरक्षा बिल लाकर, हड़बड़ी में लोकपाल बिल पास कराकर और साम्प्रदायिकता का भय दिखाकर तीसरी बार सत्ता में आने का सपना संजोये हुए है या जैसे तैसे तिकड़म भिड़ाकर मोदी या भाजपा को सत्ता से दूर रखना चाहती है.इसमे क्षेत्रीय पार्टियां और भाजपा विरोधी पार्टियां कुछ मददगार साबित हो सकती है.पर दिल्ली के सबसे करीब और सबसे ज्यादा लोकसभा सीट देनेवाली उत्तर प्रदेश की सत्ताधारी समाजवादी पार्टी कुछ भी सबक लेना नहीं चाहती. मुजफ्फरनगर के दंगे में चाहे जिसका भी हाथ हो उनका पुनर्वास न करा पाना और इस भयानक ठंढ में दंगापीड़ित शिविरों में बदइंतजामी से बेफिक्र सैफई में और विदेश में आम आदमी के टैक्स के पैसों से जश्न मनाना ही उनके लिए प्राथमिकता में है. (ऐसा मौका फिर शायद न मिले!).
मायावती ने प्रस्तर की हाथियों के द्वारा अम्बेदकर पार्क के नाम पर करोड़ो रुपये खर्च किये गए, स्व्यं सोने- चांदी की मुकुट पहनने वाली बहन जी मायावती के सर से ताज अभी हाल ही में उतरा और गत विधान सभा के चुनावों में बैकफुट पर चले जाना,यह दर्शाता है कि जनता अब झूठे वादों के झांसे में नहीं आने वाली.
मोदी जी भी गुजरात में सरदार वल्लभ भाई पटेल की सबसे बड़ी प्रतिमा स्थापित करना चाहते हैं, इससे जनता के रोजमर्रा की समस्या कैसे हल हो सकती है.
उधर दिल्ली में अल्पमत की सरकार होकर भी अपने वादे को पूरे करने में तत्काल सक्रियता, अरविंद केजरीवाल के प्रति आम आदमी का सकारात्मक रुख को खींचता है.
प्रशांत भूषण के बयान से आम आदमी पार्टी के दफ्तर पर हिन्दू नाम धारी पार्टियों(संगठनों) का तोड़फोड़ उनकी हताशा को ही दर्शाता है. किसी विचारधारा का विरोध किया जा सकता है पर विरोधस्वरूप तोड़फोड़ से नुकसान किसका होनेवाला है? सलमान रश्दी, तस्लीमा नसरीन और मलाला पर फतवा और हमले का अंजाम भी कट्टड़वादी संगठन देख चुके हैं. फिर ‘आप’ पर इस तरह हमला क्यों? आपको(तोड़ फोड़ करने वाले को) अन्य लोग, मीडिया वाले जाने इसके अलावा और क्या फायदा ‘इनलोगों’ को होनेवाला है? इसके पहले भी वेलेंटाइन डे पर, इन तथाकथित हिंदूवादी संगठन का हिंसात्मक विरोध जग जाहिर है. यही संगठन आसाराम …. आदि पर चुप रहते हैं.
विरोध करने का तरीका दूसरा भी हो सकता है.
फेकबुक पर भी आजकल भाजपा समर्थक कांग्रेस को छोड़ ‘आप’ के पीछे लगे हैं. ये सभी मिलकर ‘आप’ को फायदा ही पहुंचा रहे हैं, ऐसा मेरा मानना है. हरेक को किसी भी राजनीतिक पार्टी या संगठन को समर्थन या विरोध करने का पूरा अधिकार है, पर उसके लिए भद्दा तरीका अपनाना, मेरे ख्याल से बिलकुल गलत है.
जब अमर्त्य सेन ने मोदी का विरोध किया था, तो यही लोग उनकी बेटी की अर्धनग्न तस्वीर फेकबुक पर डाल कर अपना गुस्सा निकल रहे थे. इस बार भी ‘आप’ की मंत्री राखी बिडलान की तुलना राखी सावंत से कर अपने दिमागी दिवालियापन का ही परिचय दे रहे हैं.
‘आप’ की लोकप्रियता और विचारधारा से प्रभावित होकर प्रगतिशील बुद्धिजीवी वर्ग ‘आप’ में शामिल होने के लिए खिंचे चले आ रहे हैं, बहुत सारी पार्टियां और नेता ‘आप’ की विचारधारा से प्रभावित होकर अपनी सोच में भी बदलाव लाने की पहल कर रहे हैं.
माना कि और भी कई मुख्यमंत्री सादगी का आचरण करते रहे हैं ..फिर उनका आचरण का उदाहरण दूसरे लोग अपने आचरण में परिवर्तन कर क्यों नहीं देते?
अरविन्द केजरीवाल की शैली सब से अलग है. आज भी उनकी विनम्रता देखी जा सकती है, जब उन्होंने मीडिया को सम्बोधन के समय कहा- “आपलोग हमें ऐसे ही डाँटते रहें, ताकि हम अपने आप में निरंतर सुधार करते रहें. ‘आप’ से सबक सभी क्षेत्रीय दलों को भी लेना है, भाजपा को सबसे अधिक सीख लेनी है, अगर सत्ता पर काबिज होना है तो … मोदी जी के लिए आलीशान मंच, कभी नकली लाल किला, तो कभी नकली संसद भवन बनाकर वे क्या सन्देश देना चाहते हैं ? मोदी भी उन सभाओं में जाकर अपनी चाय बेचने वाली छवि तो कभी अपनी माता द्वारा बर्तन मांजने की कथा सुनाकर भ्रमित करने की कोशिश करते हैं. उस महंगे प्रचार से बेहतर होता कि उन पैसों से किसी गरीब का भला करते. आम आदमी के सचमुच का आंसू पोंछते.
आम आदमी को गुजरात के वैभव से क्या लेना देना, जिस राज्यों में आपकी सरकारें हैं, वहाँ आप अच्छा कीजिये आप को जनता अवश्य चुनेगी जैसा कि छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में आपको सफलता मिली है.
कर्णाटक, चेन्नई, और आंध्र में भी विकास के कार्य हुए हैं और हो रहे हैं, तभी वहाँ की सरकारें स्थिर रहती हैं.ममता बनर्जी सादगी में भी रह्कर बंगाल का कुछ विशेष भला नहीं कर पायी हैं.कानून ब्यवस्था किसी भी राज्य के लिए चुनौती का कार्य होता है. यह भी राज्य सरकार का मामला है. उनमे आमूल-चूल परिवर्तन आना ही चाहिए. केवल सरकार भरोसे नहीं, जनता और सामाजिक संगठनों को भी जागरूक होना होगा.
‘आप’ को भी ब्यर्थ की बयानबाजी से बचकर काम करने की जरूरत है. कुछ महीने बचे हैं. आज मीडिया, दूसरे संचार के माध्यम, सोसल साइट्स भी महत्व्पूर्ण भूमिका निभा रहे हैं…. परिवर्तन तो आनी है … आयेगी …सभी राजनीतिक पार्टियां चिंतित जरूर हैं …अगर परिवर्तन आता है, जनता के हित में फैसला होता है, तो यह सबके लिए खुशी की बात होगी. भ्रष्टाचार, पूंजीवाद, जातिवाद, धर्मवाद, भाषावाद, क्षेत्रवाद …आदि अगर दूर होते है,… देश के हित की बात, देशवासियों के हित की बात होती है, तो इससे भारत का नाम अवश्य ही एक बार फिर विश्व पटल पर उभरेगा. सर्वे भवन्तु सुखिन:, सर्वे सन्तु निरामया:!
-जवाहर लाल सिंह

Monday, 6 January 2014

इस हफ्ते की कुछ सुर्खियां

हफ्ते की हलचल
‘आप’ ने विश्वास मत हासिल कर लिया. उनका विधान सभा का स्पीकर भी चुन लिया गया. मुख्य मंत्री केजरीवाल का नया बंगला भी आवंटित हो गया और मंत्रियों को इन्नोवा गाड़ी भी. मीडिया और आम आदमी के दबाव पर केजरीवाल ने बड़े बंगले लेने से इंकार भी कर दिया… (लोक लाज का ख्याल या फिर आम आदमी पार्टी के घोषणापत्र का खेल!) घोषण-पत्र के वादे के अनुसार २०,००० लीटर/प्रति माह मुफ्त पानी और सस्ती बिजली देने की घोषणा भी हो गयी. बिजली कंपनियों का CAG से ऑडिट भी चालू हो गया (शायद).
उधर यु. पी. ए. के प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह ने अपनी नाकामियों को मान भी लिया.- बेरोजगारी, महंगाई और भ्रष्टाचार उनकी पार्टी की हार का कारण बनी …फिर भी सी. एन. जी, पी. एन. जी, एल. पी. जी, पेट्रोल, डीजल को बढ़ाते जाने का कारण समझ से परे रहा. भ्रष्टाचार से लड़ने का उनका दावा भी खोखला ही साबित हुआ. आखिर वीरभद्र सिंह ने भी सोनिया का वरदहस्त प्राप्त कर लिया.
सबसे ज्यादा प्रधान मंत्री का यह बयान कि ‘मोदी का प्रधान मंत्री बनना देश में तबाही लाने वाला होगा’. इसे इस तरह से लिया जा सकता है कि ऐसा कहकर मनमोहन सिंह ने मोदी पर हमला कर मीडिया औए भाजपा को बैठे बिठाये मुद्दा दे दिया. पिछली बार सम्भवत: २००९ में जब श्री लाल कृष्ण आडवाणी मनमोहन सिंह को कमजोर प्रधान मंत्री बता रहे थे और अपने को लौहपुरुष तो भी मनमोहन सिंह ने चुटकी ली थी – “गांधार में ‘लौह पुरुष’ (लाल कृष्ण आडवाणी) मुलायम(सॉफ्ट) हो जाते हैं”. अडवाणी जी आज ढलवा लोहा की तरह एक सांचे में बंद हैं. मोदी जी बहुत बार मनमोहन सिंह को ललकार चुके थे. इस बार पत्रकारों के सवाल के जवाब में मनमोहन सिंह ने अपना गुब्बार निकाल दिया या मोदी जी को उनपर एक और हमला करने के लिए विषय दे दिया. मोदी जी पुरानी बातों का ही टेप हर जगह चलाये जा रहे हैं. अब कुछ नया बोलेंगे. मनमोहन सिंह पर तेज धारदार हथियार फेंकेंगे. तबतक बाबा रामदेव भी तैयार हो गए – मोदी को समर्थन देने के लिए कुछ शर्तें रख दी. इधर वे मीडिया में नजर नहीं आ रहे थे. हर जगह मोदी, मनमोहन, राहुल और अरविंद केजरीवाल ही छाये हुए थे, सो उन्होंने भी अपनी उपस्थिति दर्ज करा दी. मीडिया ने भी उन्हें हाथों हाथ लिया और दिन भर एक चैनेल से दुसरे चैनेल पर छाये रहे. उनक पास देश की आर्थिक अवस्था सुधरने के और महंगाई कम करने के अमोघ योग है. केवल बैंक ट्रांजैक्सन पर टैक्स लगाया जाय. (बैंकिंग सुविधा सरल होने से ट्रांजैक्सन बहुत बढ़ गए हैं!)
‘आम आदमी पार्टी’ में बहुत लोग जाना चाह रहे हैं. कुछ आवंछित दागदार भी इसमें घुसना चाह रहे हैं. बिहार के एक दागदार बाहुबली कुंदन सिंह भी आप की सदस्यता अभियान चला रहे थे, जिन्हे मीडिया रिपोर्ट पर रोका गया है. ऐसे अनेक अवांछित लोग ‘आप’ में आ सकते हैं. इन सब पर कैसे रोक लगाएंगे केजरीवाल? उन्होंने आम आदमी की परिभाषा भी बदल दी है … उन्होंने कहा कि फूटपाथ सोने वाला से लेकर चाँद और मंगल ग्रह पर जाने वाला ईमानदार आदमी भी आम आदमी है…बेईमान नेता को छोड़कर! (और अब तो आम आदमी नेता भी बन ही गया है….)
इनफ़ोसिस के पूर्व निदेशक वी बालाकृष्णन, रॉयल बैंक ऑफ़ स्कॉटलैंड की सी. ई. ओ. मीरा सान्याल. भूतपूर्व प्रधान मंत्री लाल बहादुर शास्त्री के पोते आदर्श शास्त्री का करोड़ों की सैलरी देनेवाली संस्था एप्पल को छोड़ ‘आप’ से जुड़ना कुछ तो माने रखता है. अन्य गण्यमान लोग ‘आप’ की तरफ खींचते जा रहे हैं, गुजरात की राजस्व मंत्री आनंदी बेन के पति मफतभाई पटेल को ‘आप’ में आ मिलना, अन्य राज्यों एवं जानी मानी हस्तियों का ‘आप’ की तरफ खिंचाव जारी है. झारखण्ड में जे वी एम का आप के साथ गठबंधन का फैसला. राहुल का अपने कार्यकर्ताओं से यह कहना कि हमें आप से चुनाव प्रचार सीखने की जरूरत है. झारखण्ड के मुख्य मंत्री हेमंत सोरेन का अपने मंत्रियों द्वारा लाल नीली बत्ती और सायरन के इस्तेमाल से मनाही. महाराष्ट्र में बिजली की दर कम करने का कांग्रेस के संजय निरुपम का अपने ही राज्य सरकार पर दबाव. … बहुत सारे मंत्री अपनी सुरक्षा कम करने में लगे हैं, यह सब परिवर्तन दिखने लगा है. क्या सचमुच परिवर्तन की आहट सुनाई पड़ने लगी है कि यह लोक सभा चुनाव की तैयारी(?) है.
शिर्डी के साई बाबा के चरणों में एक हफ्ते के अंदर पंद्रह करोड़ का चढ़ावा. यह साबित करता है कि भारत के भक्त गरीब नहीं है. धूम -३ का रफ़्तार साढ़े तीन सौ करोड़ से ४०० करोड़ तक की कमाई …पैसे की कमी कहाँ है… महंगाई की मार झेलता हुआ आम आदमी ने नव वर्ष के उपलक्ष्य में, होटलों, पार्कों और वनभोज स्थलों पर खूब मौज मस्ती की. अन्न की बर्बादी के साथ शराब की नदियां भी बही. गंदगी का अम्बार भी लगा और अभी यह सिलसिला जारी है. गरीब उन जूठे अन्न, उच्छिष्ट भोजन के लिए लालायित देखे जा सकते हैं..
ममता के राज्य में नाबालिक (बंगाल की निर्भया) से बलात्कार कर उसको जलाकर मार डालना …जिसकी गूँज बंगाल से बिहार तक सुनाई पड़ रही है. उधर दिल्ली पुलिस कहती है बलात्कार की घटनाएं दुगनी बड़ी है. अंतर क्या पड़ा … आशाराम, नारायण साईं के साथ, तरुण तेजपाल, जस्टिस ए.के. गांगुली यौन प्रताड़ना का कानूनी लड़ाई लड़ रहे है..
आप पर भाजपा के हमले तेज हैं, पर आप मजबूती से जनसमर्थन के साथ आगे बढ़ रही है. अब बाबा रामदेव क्या करें वे भी असमंजस में हैं. अपने पुराने मुद्दे को लेकर मोदी, केजरीवाल और कांग्रेस सबको एक साथ चुनौती दे रहे हैं. उनका अर्थशास्त्र ज्ञान सबको चौंका रहा है उन्होंने आखिर काफी संपत्ति अर्जित की है अब वे देश को आर्थिक रूप से मजबूत करना चाहते हैं. कोई उनकी भी सुन ले भाई! कहाँ हैं नरेंद्र मोदी भाई! उन्हें लग रहा है कि उनकी तरफ से लोगों का ध्यान हट गया है. मीडिया को भी तो रोज नया नया समाचार चाहिए होता है.
ठंढ से सिकुरते लोगों का हाल चाल ‘आप’ पूछ रही है सम्भवत: हल भी निकाल रही है.
समाजवादी पार्टी की अपनी गुंडा की छवि के साथ साथ सायकिल की सवारी बरक़रार रखने, और अल्पसंख्यक समुदाय को लुभाने की लगातार कोशिशे जारी है.
येदुरप्पा की भाजपा में वापसी तो लालू को यह लाभ क्यों नहीं. वे भी जेल से बाहर आए हैं और अपनी खोई जमीन तलाश कर रहे हैं, राहुल की छत्रछाया में..
अजीब सी दुविधा और असमंजस की स्थिति बनी हुई है. मतदाता करे तो क्या, कोई चमत्कार होता दीखता नहीं. थोडा सा पुचकार दुलार पाकर ही अभिभूत हो जाता है. उधर वित्त मंत्री सब्सिडी वाली गैस सिलिंडरों की संख्या नौ से बढ़ाकर १२ करना चाह रहे हैं, तो पेट्रोलियम मंत्री आगे बढ़कर कहते हैं – संभव नहीं.
एक अंतर है अरविंद या आप में वे अभी भी जनता की बात सुन रहे हैं और आगे की रणनीति बनाने में लगे हैं. अब योगेन्द्र यादव का सपना – अरविंद को प्रधान मंत्री के रूप में देखना. कब पूरा होगा पता नहीं..
अरविन्द की स्वीकारोक्ति कि आप लोग मेरी गलती निकालें (निंदक नियरे रखिये). वे लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ेंगे. फ़िलहाल मोदी जी और राहुल जी के लिए राहत या आगे के लिए ‘आप’ की रणनीति
राहुल गांधी का कांग्रेस के प्रधान मंत्री के नामित उम्मीदवार…. की घोषणा होनेवाली है. अब तीन ध्रुव बनते दीख रहे हैं मोदी, कांग्रेस और आप, बाकी पार्टियां भी अपना अपना जुगत लगा रही हैं. २०१४ का लोकसभा का चुनाव बड़ा दिलचस्प होने वाला है.
कड़ाके की ठंढक, धुंध, कोहरा, रेलगाड़ियों का लेट चलना, जम्मू कश्मीर में बर्फ़बारी, शैलानियों का आकर्षण का केंद्र बना हुआ है. गरीब, बुजुर्ग लोग ठंढ से आक्रांत हो रहे है तो रईस लोगों के लिए ठंढ में बर्फ से खेलना मजा देता है. यही तो है संसार और जिन्दगी! समय का चक्र चलता रहता है, अनवरत, लगातार!
अंतत: जस्टिस गांगुली ने पश्चिम बंगाल के मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष पद से इस्तीफ़ा दे दिया है. एक न्यायाधीश महोदय को इतने दबाव के बाद अपने बारे में निर्णय लेने में इतना समय लगा, फिर दूसरे लोगों के बारे में कितना समय लगायेंगे?
- जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.

भारतीय रेल, भारतीय लोग! भाग – तीन (आप का नाम क्या है?)

आप का नाम क्या है?- एक भोली भाली बच्ची (लगभग तीन साल की) अपने बड़े पापा से पूछती है. बड़े पापा अपना नाम ख्याति बताते हैं. नहीं ख्याति तो मेरा नाम है आप तो बड़े पापा हो!
आज से हमने अपना नाम बदल लिया है मेरा नाम ख्याति है. आपका नाम ख्याति है तो मेरा नाम बड़े पापा है! ठीक है अब हम अपना कपड़ा भी बदल लेते हैं मेरा कपड़ा तुम पहन लो मैं तुम्हारा पहन लेता हूँ . आपको मेरा कपड़ा होगा क्या? यहाँ तक आयेगा अपने घुटने दिखलाती हुई बोलती है. तो क्या हुआ? हम वैसे ही पहन लेंगे. …फिर वे ख्याति को गुदगुदी करते हैं. ख्याति पूछती है- किसने गुदगुदी लगाई? बड़े पापा – मैंने तो नहीं लगाई.
मैंने आपको देखा है...
इतनी अच्छी हिंदी बोलने वाली तीन साल की बच्ची! मेरा मन मोह रही थी. कृष्णाराजपुरम रेलवे स्टेसन पर हम यशवंतपुर हटिया ट्रैन का इंतजार करते हुए टाइम पास कर रहे थे. ख्याति के माता पिता का वेटिंग लिस्ट था..हमारा कन्फर्म बर्थ था.
ट्रैन आयी और हम सभी अपने निर्धारित बर्थ पर स्थान ले चुके थे पर हमेशा की तरह बिना रिजर्वेशन वाले भी स्लीपर क्लास में चढ़ जाते हैं, महिला टी. टी. ई. उन सबको जनरल डब्बे में जाने को कह रही थी.
मेरे सामने की सीट पर एक लड़की बैठी थी. उसके पास एक मोटी सी पुस्तक थी. Oath of Vayuputras ( Triology of Shiva ) Part -3 author Amish Tripathi . मेरे पास पढ़ने योग्य कोई पुस्तक नहीं थी, इसलिए मैंने उस श्वेता नाम की लड़की से पुस्तक मांग ली, देखने के लिए. क्योंकि वह अभी नहीं पढ़ रही थी. थोडा पढ़ने के बाद ही उसका नाम पूछा - क्या नाम है तुम्हारा, बेबी! उसने अपना नाम श्वेता बताया. कहाँ तक जाओगी – हटिया तक . पिताजी का नाम ?- ए. के. उपाध्याय.
Oath of Vayuputras ( Triology of Shiva ) Part -3
uthor: Amish Tripathi
Publisher: Westland
Pages: 575
Price: Rs 350
What is evil? Why does it exist? How does one deal with it? These are questions that keep coming up in the first two books of The Shiva Trilogy. The third and final instalment of the series, The Oath Of The Vayuputras, offers some answers.
In The Immortals Of Meluha, Shiva, a tribal from Tibet, was invited to the kingdom of Meluha, ruled by the Suryavanshis who are at war with the ‘evil’ Chandravanshis and facing attacks by Naga terrorists. Meluhan citizens live long thanks to the Somras, a drink manufactured by Meluhan scientists. Shiva’s throat turns blue when he first drinks the Somras, giving rise to the belief that he is the Neelkanth, an incarnation of Lord Rudra. The book ends with Shiva helping the Meluhan king, Daksha, defeat the Chandravanshi king.
The Secret Of The Nagas suggested the notion of evil is more complicated than the Meluhans would have Shiva believe. The Chandravanshis, it turned out, also believe in the legend of the Neelkanth and while their way of life is not as orderly as the Meluhan’s, it isn’t evil. Something far more sinister is afoot — this is causing the river Saraswati to dry up, creating deformed babies and causing cancerous diseases.
While the first book was a runaway success, the second book received criticism for bad editing and sloppy writing. Philosophical discourses interfered with the arc of the story. Those chinks have been ironed out in The Oath… and while characters do slip into monologues about topics like life and the significance of human action, there’s enough richly detailed action to engage those reading the book purely for ploy. One scene where Sati, Shiva’s wife, fights a group of assassins is particularly well-told.
New characters are introduced in this book, including the Vayuputras, Lord Rudra’s tribe and those whose divinely assigned task is to help the next incarnation of Lord Rudra —Shiva — with his mission. It’s unclear why author Amish Tripathi imagined the Vayuputras to be from present-day Iran but as a result, the description of Zoroastrian mythological elements seems ornamental. Tripathi also mentions Hariyuappa in the book, (an obvious reference to Harappa) melding ancient history with mythology. Again, there doesn’t seem to be a good reason to do this.
Ultimately, different characters turn out to be weak, greedy, foolish, brave or principled. But Tripathi doesn’t tag them with value judgements like ‘evil’. Which leads to an end that is fitting, for ultimately, everyone has lost something.
EVIL HAS RISEN.
ONLY A GOD CAN STOP IT.
Shiva is gathering his forces. He reaches the Naga capital, Panchavati, and Evil is finally revealed. The Neelkanth prepares for a holy war against his true enemy, a man whose name instils dread in the fiercest of warriors.
India convulses under the onslaught of a series of brutal battles. It’s a war for the very soul of the nation. Many will die. But Shiva must not fail, no matter what the cost. In his desperation, he reaches out to the ones who have never offered any help to him: the Vayuputras.
Will he succeed? And what will be the real cost of battling Evil? To India? And to Shiva’s soul?
Discover the answer to these mysteries in this concluding part of the bestselling Shiva Trilogy.
About the Author :
Amish is a 1974-born, IIM (Kolkata)-educated, boring banker turned happy author. The success of his debut book, The Immortals of Meluha (Book 1 of the Shiva Trilogy), encouraged him to give up a fourteen-yearold career in financial services to focus on writing. He is passionate about history, mythology and philosophy, finding beauty and meaning in all world religions.
Amish lives in Mumbai with his wife Preeti and son Neel.
ऊपर के भाग को मैंने गूगल से कॉपी कर यहाँ ज्यों का त्यों पेस्ट कर दिया है ताकि विद्वान लोग इसे मूल रूप में देख-समझ सकें.
मैंने बी.कॉम. में पढने वाली श्वेता से पूछा – इस पुस्तक को क्या तुम्हारे पिताजी ने पढ़ा या देखा है? उनकी क्या प्रतिक्रिया थी.
उनके अनुसार यह बकवास है हमारे धर्मशास्त्रों का विकृत रूप[ है. डिस्कवरी ऑफ़ इण्डिया में नेहरू ने भी भारत की प्राचीन संस्कृति को अपने नजरिये से देखा अब आज के नौजवान भी वही कर रहे हैं. तुम्हे इसमें कैसे इंटरेस्ट जगा ? असल में मैं इसका पहले दो भाग पढ़ चुकी हूँ इसलिए तीसरा भी ले लिया. मैं पढ़ती हूँ, इस तरह की पुस्तकें. जान कर अच्छा लगा आज के नौनिहाल भी हमारी हिन्दू संस्कृति में रूचि रखते हैं और पढ़ते हैं चाहे जिस रूप में . आमिष त्रिपाठी भी आईआईएम कोलकाता से पढ़ा युवक है, जिसने इस किताब के तीन भाग को लिखने और प्रकाशित करने का साहस किया है. प्रारम्भ में कोई प्रकाशक इसे छापने को तैयार नहीं था. बाद में इसके पहले भाग की लोकप्रियता के बाद इसका दूसरा और तीसरा भाग भी खूब बिका. पौराणिक आख्यानों को आज की भाषा में तार्किक रूप से पेश किया जाय तो आज के परिष्कृत वर्ग ज्यादा पसंद करते हैं,.ऐसा मुझे लगता है.
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अब आगे का सफ़र… ट्रेन की पैंट्री का नाश्ता, खाना देने वाला व्यक्ति केवल हमारा बर्थ नम्बर कागज की प्लेट पर नोट कर रहा था. पैसे नहीं मांग रहा था. उस नौजवान का स्वभाव प्रभावित कर गया. हंसमुख, मजाकिया … दूसरे दिन मैंने कहा – “दोपहर का खाना नहीं खाऊंगा.” क्यों?” “आपलोग सब्जी में मसाला बहुत डालते हो”. “आज मसाला नहीं है, मैंने मना कर दिया है”. उसके ब्यवहार से मैंने पुन: खाने का आर्डर दे दिया.
राउरकेला स्टेसन आने से पहले इस नौजवान ने हमलोगों के कूपे का रुख किया और सारा हिशाब कर रुपये ले गया. यहाँ भी उसका मजाक जारी रहा, हम जो बोलेंगे आप दे देंगे? मेरी श्रीमती जी से नहीं रहा गया … उसने पूछ ही लिया -आपका नाम क्या है? आजाद (मोहम्मद आजाद खान) मैंने उसके ”यूनिफार्म” पर लिखा ‘नेम प्लेट’ पढ़ लिया.
उसी कोच में कुछ मुस्लिम धर्मावलम्बी भी थे, जिनकी पहचान उनकी टोपी दाढ़ी आदि से हो रही थी..मैंने उनलोगों को देखा – एक साथ नमाज पढते हुए. एक कूपे में एक साथ तीन… दो बर्थ पर और तीसरा नीचे. दो कूपे में कुल छह: सभी एक साथ खड़े होते, झुकते, बुदबुदाते..,…. क्या सामंजस्य था, उनमे….
रायगढ़ में ट्रैन कुछ ज्यादा देर के लिए रुक गयी, शुबह का समय सभी धूप का आनंद लेने, ट्रेन से बाहर निकल गए. मुस्लिम बंधुओं की जमात भी एक जगह इकट्ठे हो गए. बात चीत में मालूम हुआ वे लोग धर्म के प्रचार के लिए बैंगलोर गए थे. “अल्लाताला ने हम सबको इतना कुछ दिया है कि हम उन्हें जिंदगी भर शुक्रिया अदा नहीं कर सकते”. मुझे भी कबीरदास की पंक्ति याद आ गयी - “सात समुद को मसि करौ, लेखनी सब बनराई, धरती सब कागद कराऊँ हरी गुण लिखा न जाई”. उनलोगों में एक दो सज्जन हंसमुख अंदाज में प्रेम दर्शा रहे थे. उनमे एक अति उत्साही सज्जन से मैंने उनका नाम पूछ लिया – “आपका नाम क्या है”” मुहम्मद हयात” . हयात का मतलब ही ऐसी जिंदगी से है, इसमें सामाजिकता कूट कूट कर भरी हो.
कुल मिलकर कहा जाय तो इस सफ़र में हर प्रकार के लोगों से मिलना हुआ.
यह प्रसंग अधूरा रह जायेगा अगर किन्नरों की चर्चा न करें तो! जिस डब्बे में हम थे, उसमे कुछ नौजवान भी थे. किन्नरों का आना-जाना लगातार जारी था. वे युवकों पर ही ज्यादा प्यार बरसाते थे, .. “दे बाबा दे”,”दे रे चिकना!” दोनों हाथ से ताली का विशेष अंदाज..ज्यादातर युवक दस रुपये देकर छुटकारा पाना चाहते थे. पर कितनी बार देते. एक हो तब न? सौ पचास की संख्या में वे लोग होंगे और मांगना ही उनका पेशा है. मांगकर गुजारा करना. वे काफी सज धज कर नारी रूप में ही रहती हैं ताकि पुरुषों को आकर्षित कर सकें.
बगल की बर्थ पर बैठने की कोशिश की तो उस बर्थ की मालकिन ने आपत्ति दर्ज की … तुनकती हुई उठ गयी- “लो बाबा नहीं बैठती तुम्हारे सीट पर, मैं किन्नर न नर.. न नारी… विपदा की मारी,… मैं किसी का बुरा नहीं चाहती…. जो खुशी से देता उसे आशीर्वाद देती”. वे तीन मेरे बर्थ और और मेरी पत्नी की बर्थ पर बैठ गयी. मिले रुपयों का हिशाब किताब करने लगी. दोनों ने अपने सारे रुपये तीसरी (उनकी मेट) को दे दी. उनमे  से एक का तबीयत ख़राब था, इसलिए आँख बंद कर झपकी लेने लगी. .बाकी दो आपस में बात करती ही जा रही थी. उत्सुकतावश मैंने उनका रहने का ठिकाना पूछ लिया. “हमलोगों का कोई ठिकाना नहीं.. पहले, रायगढ़ में रहती थी,फिर बलांगीर में कुछ दिन रही, वहाँ से लोगों ने भगा दिया तो सम्बलपुर में आ गयी”.“आपलोग कुछ काम क्यों नहीं करतीं. इस तरह भीख मांगने के बजाय?” मेरा सवाल. “कौन काम देगा हमलोगों को .. सभी हमलोगों को दुत्कारते हैं. गोरमिंट भी कुछ नहीं करती. हमलोगों का इसी तरह गुजारा चल जाता है और क्या? हमें कोई बच्चा पालना है या घर बसाना है?” मैंने किन्नरों के बारे में जानना चाहा तो मालूम हुआ ये तो पुरातन काल से हैं. राम जब वन जा रहे थे, तो सभी अयोध्या वासी उनके साथ आ गए थे. भगवन राम ने कुछ दूर आकर सभी नर-नारियों से निवेदन किया – “आप सभी नर नारी अवधपुर लौट जायं”. भगवन राम के आदेशानुसार सभी नर नारी तो लौट गए पर किन्नर लोग वही रुक गए. जब भगवान राम चौदह वर्ष बनवास काटकर लौट रहे थे तो उन्होंने इन किन्नरों को उसी स्थान पर पाया. पूछने पर उन लोगों ने कहा – “आपने तो नर और नारी को अयोध्या लौटने को कहा था, पर हम लोग तो न नर हैं न नारी” भगवान राम ने उसी समय उनलोगों को वरदान दिया – “आप लोग जिसे भी मन से आशीर्वाद देंगे, वह फलीभूत होगा.और तब से ये लोग किसी भी बच्चे के जन्म के बाद बधाई गाने आते हैं.और कुछ दान स्वरुप रुपये पैसे पा जाते हैं….मुझे कुछ किन्नरों के समाचार याद आते हैं, जिन्होंने म्युनिस्पैलिटी के चुनाव जीते हैं और विधायक के लिए भी चुनाव लड़े हैं और जीते हैं. वही किन्नरों के दिल्ली में हुए एक सम्मलेन में हुई आगजनी में ३५ किन्नर जल मरे थे. ये भी विधाता की ही रचना हैं, इनका अपना ऐतिहासिक और पौराणिक गाथा भी है.कहते हैं इनका आशीर्वाद फलता है. पर अब इनका एक मात्र ब्यवसाय ट्रेनों में या भीड़ भाड़ के इलाकों में माँगना और उसी से निर्वाह करना इनका पेशा रह गया है. अगर ये लोग भी भारतीय नागरिक हैं, तो इनके अस्तित्व की रक्षा होनी चाहिए और इन्हे भी भीख मांगने के बजाय कुछ रचनात्मक काम करना चाहिए..कुछ करते भी हैं पर या तो वे खुद यौन शोषण के शिकार बनते हैं या फिर ये उसे ही अपना पेशा बना लेते हैं. सामजिक स्तरमें गिरावट लगतार जारी है. पर मैं इस लम्बी यात्रा के दास्तान को यहीं विराम दे रहा हूँ. हो सकता है कुछ और संस्मरण या रचना जन्म ले तबतक आप इसे पढ़ें बहुत लम्बा हो गया है…. उबाऊ भी लगेगा ..पर मैं अपना अनुभव साझा करना चाहता था. इसलिए लिखा और उम्मीद करता हूँ कि आप सबको बोर कर पाया हूँ.
जवाहर लाल सिंह

भारतीय रेल, भारतीय लोग! भाग – दो(लड़कियां तेज होती ही है!)

जब आप स्लीपर क्लास में ट्रेन से यात्रा करते हैं, बहुत सारे सहयात्री से बात चीत होती है. कुछ खट्टी, कुछ मीठी, जब दूर का सफर हो और बर्थ कन्फर्म न हो, कहीं न कहीं समझौता करना पड़ता है. चाहे टी. टी. ई. को पैसे देकर, उनसे विनती कर या रिजर्व बर्थ वाले यात्रियों से अनुनय और विनय कर अपनी जगह बनानी पड़ती है…..
एक किशोर और किशोरी दोनों साथ साथ बंगलौर जा रहे थे.. एक बर्थ कन्फर्म थी और दूसरी वेटिंग लिस्ट थी. कन्फर्म बर्थ ऊपर का था, उन्होंने पहले टी. टी. ई. से बात की फिर नीचे बर्थ वाले कई यात्रियों से बात की … कि अगर उन्हें नीचे का बर्थ मिल जाता तो दोनों सामंजस्य बैठा लेते. मेरा RAC था इसलिए संभव नहीं था. दुसरे यात्री तैयार नहीं हुए…. वे दोनों मेरे नीचेवाले साइड की RAC पर बैठकर घर से दी गयी टिफिन से निकालकर एक साथ खाना खाये.और अपने बैग से चादर कम्बल निकाल ऊपर की बर्थ पर ही दोनों सो गए … दोनों दुबले पतले ही थे, इसलिए समायोजन हो गया.
वहीं कुछ(८) नौजवान बोगी में इधर से उधर करते रहे. उनलोगों के अनुसार उनलोगों ने तत्काल टिकट लिया था,.तत्काल टिकट में ‘आइडेंटिटी प्रूफ’ की जरूरत होते है. उनमे किसी के पास ओरिजनल था, किसी के पास ओरिजिनल नहीं था ..इसीलिये टी. टी. ई. उन्हें तंग कर रहा था और ज्यादा पैसे की मांग कर रहा था.वे लोग रातभर चहलकदमी करते रहे या कहें पहरा देते रहे. अंतत: दरवाजे के पास वाले कूपे में उनलोगों ने रात बिताई….कुछ लेन-देन कर टी. टी. ई. से समझौता हो गया था.
शुबह करीब १० बजे विशखापटनम आया और युवक(युवती का भाई) ट्रेन से उतर गया. अब युवती (किशोरी) अकेली थी और मुझसे काफी सहज थी. वह स्टेट बैंक ऑफ़ इण्डिया, बंगलोर में जॉब करती है. अभी उसके आठ महीने हुए है. उतरने वाला युवक उसका भैया है, वह भी एस. बी. आई. बंगलोर में ही ज्वाइन करने जा रहा है. विशाखापट्नम में उसे कुछ जरूरी काम था, इसलिए उतर गया…. अब वह दूसरी ट्रेन से आयेगा. मैंने पूछा- “भैया है, यानी तुमसे बड़ा है?” “हाँ”. “इसका मतलब पहले तुझे नौकरी मिल गयी बाद में उसे मिली है”. “हाँ, मैने गणित के साथ बी. एस-सी.. किया, और पहली बार में ही मेरा सेलेक्सन हो गया. मेरे भैया का दूसरी बार में हुआ. उसने बी. कॉम .किया है”. मैंने कहा – “लड़कियां तेज होती ही है!”. उसकी बाते सुन एक और किशोरी(IBM में कार्यरत) आकर्षित हुई और एस. बी. आई. की युवती से पूछने लगी – “क्या क्या सवाल पूछा था, फाइनल इंटरव्यू में”….”फाइनल में तो बहुत सारे सवाल पूछे थे – ट्रेन के रास्ते में कौन कौन मुख्य स्टेशन मिले, यह भी पूछ लिया”. उसने(IBM वाली ने) कहा- “तुम बोली नहीं कि मैं तो सो रही थी. कौन कौन स्टेसन आया और गया, मुझे कुछ पता नहीं”. “नहीं- जो जो मुझे याद था मैंने बता दिया”. “मुझे तो कुछ ख़ास याद नहीं रहता, मैं तो ‘गूगल सर्च’ कर के ही जान पाती हूँ. जॉब में भी मैं कुछ नहीं करती. जो करता है गूगल करता है!” मुझे उनकी बातें सुन आनंद आ रहा था.
एक बुजुर्ग महिला जो हम सब की बातें सुन रही थी, आगे बढ़कर बोली – “मेरी पांच बेटियां है, चार की शादी कर चुकी हूँ, सभी दामाद अच्छे पद पर हैं. मैंने सभी लड़कियों को ग्रेजुएट कराया, वे सभी अपने पतियों के साथ खुश हैं, उनमे कई तो काम भी काम कर रही है. छोटी बेटी घर पर रहकर अभी स्कूल चला रही है. दरअसल चौथी नंबर वाली का ही स्कूल था, जब उसकी शादी हो गयी तो अब छोटी वाली स्कूल सम्हाल रही है. मैं अपनी बेटी के पास ही जा रही हूँ.उसको बच्चा होनेवाला है, इसलिए, मैं वहाँ कुछ दिन रुकूँगी. दामाद आ जायेंगे स्टेसन पर मुझे ले जाने के लिए!”
एक और महिला थोडा आगे बढ़कर बोली – “मेरे परिवार में १८ लड़कियां हैं और ५ बेटे हैं..हमारे भी सभी दामाद अच्छे पद पर हैं. हमारे परिवार में कुल ५६ सदस्य हैं और सबका खाना एक साथ बनता है. हमारे ससुर जी, सारी ब्यवस्था करते हैं. सबकी कमाई उनके पास जमा होता है. वे सभी बहुओं को एक मूल्य की ही साड़ियाँ खरीदते हैं. इनका मूल निवास आरा जिला (बिहार) है. इसलिए बीच बीच में भोजपुरी भी बोल रही थी.अभी जमशेदपुर में ही रह रहे हैं,.उनका अपना ट्रांसपोर्ट चलता है. यह रहा हमलोगों के बीच बात चीत का कुछ अंश! बीच बीच में हम सब खेत खलिहान भी देखते जा रहे थे..आंध्र में खेती अच्छी होती है. एक धान मशीनो द्वारा काटा जा रहा था तो दूसरी तरफ कुछ खेतों में नए धानों की रोपाई भी मशीन द्वारा की जा चुकी थी. काटे हुए धान खेत में ही गांज के रूप में सजा कर रख दिए जाते हैं, ताकि वर्षा आदि से उन्हें बचाया जा सके. मेरे अनुमान से जरूरत के अनुसार या राइस मिल के मांग के अनुसार उनसे धान निकाल कर उन्हें वितरित किया जाता होगा.
राजमुंदरी के पास गोदावरी नदी पर बना रेल-सह-सड़क पुल भी अद्भुत है. यह अपने आप में एशिया का सबसे बड़ा पुल है! इसकी लम्बाई,४.७ किलोमीटर है गोदावरी नदी पूर्वी और पश्चिमी गोदावरी जिले की विभाजक रेखा है.यहाँ पर गोदावरी दो धाराओं में बंट जाती है. बीच में बड़ा सा टापू दिखता है. गोदावरी दक्षिण की गंगा है इसे लोग गंगा की तरह पूजते हैं. इसका पानी काफी साफ़ है और इसके दोनों किनारे हरे भरे खेत और आबादी से भरपूर है. -कुछ तो मैंने देखा पर इसके बारे में विस्तृत जानकारी दो लड़कियों ने दी जो विशाखापटनम से विजयवाड़ा ‘जॉब सर्च’ के लिए जा रही थी.इस इलाके में लड़कियां अकेले ही रेल मार्ग से निकल पड़ती हैं. वे पुरुषों से बात चीत में सहज भी होती हैं. हल्की मुस्कान तो इनके चेहरे पर अंकित रहती है….यहाँ मैं यह बतलाता चलूँ कि विशाखापटनम में ही हमारा तीनो बर्थ एक ही कोच एस -१ में आस पास में ही ३१, ३२ और ३९ नंबर कन्फर्म हो गया था. अब ज्यादा चिंता नहीं थी. आज इतना ही!
क्रमश:

भारतीय रेल, भारतीय लोग! भाग – एक ( मैं तो फौजी हूँ!)

टाटानगर यशवंतपुर सुपरफास्ट एक्सप्रेस के लिए २० दिन पहले टिकट ली थी. जब ली थी वेटिंग लिस्ट १२१,१२२,१२३ था. जाने के दिन तक RAC ३१, ३२, और ३९ पर आकर रुक गया. बैठने की जगह मिल जायेगी, जानकार मन को थोड़ी संतुष्टि हुई, रात का समय, सर्द की रात, ठंढ भी कम नहीं … चलो, बारी बारी से सो लेंगे!…. वरीयता क्रम में मेरा ही नम्बर आया. मेरे साथ वाले सज्जन ने अपनी पत्नी के साथ बैठने का फैसला किया और मुझे सोने की जगह मिल गयी. रात दो बजे टी. टी. की कृपा से मुझे एस -३ में एक बर्थ मिल गया. मैं वहां चला गया और मेरी जगह पर श्रीमती जी आ गयी. हमलोग चैन की नीद सोते पर एक आदमी तीन बजे रात में आकर मेरी पत्नी की बर्थ पर बैठने का दावेदार बन गया…. टी. टी. का कहीं पता नहीं था. समझौता आपस में ही करना था. मैंने उस भले मानुष से कहा – आप एस ३ में मेरी बर्थ पर सो जाइए, मैं यहाँ अपनी पत्नी संग बैठ लूँगा…. वैसे भी तीन तो बज ही गए हैं,… वह भला आदमी मान गया … मैंने देखा, एस -२ में एक नीचे वाला ही बर्थ खाली पड़ा है, मैंने अपना बिस्तर वहीं लगा दिया और शुबह ६ बजेतक आराम से सोया. शुबह की चाय भी पी और शौचालय चला गया. जब शौचालय से आया तो देखा – मेरा बिस्तर हटाकर एक नया जोड़ा बैठा हुआ है. मैंने पूछा – “क्या यह आपकी बर्थ है?”. उसने कहा- “हाँ”. “आप कहा से आ रहे हैं?” – “टाटा से” . “फिर आप कहाँ थे?” “मेरा एक बर्थ यहाँ है, और दूसरा, दूसरे छोड़ पर. रात को पत्नी को अकेला नहीं छोड़, मैं उसी के पास बैठा रहा. दो बार मैं यहाँ भी आया था, पर आपको सोया देख डिस्टर्ब नहीं किया. सोये हुए आदमी को क्या डिस्टर्ब करना? मैं तो फौजी आदमी हूँ, खड़ा भी रह लूँगा” . “आप फौजी हैं? कहाँ पर पोस्टिंग है आपकी?” “टाटा में ही आदित्यपुर औध्योगिक क्षेत्र में”…. उसने मुझे बैठने को कहा- “आइये हम सब साथ बैठते हैं”. बैठने के बाद परिचय का दायरा बढ़ा. यह नौजवान बंगलौर का रहनेवाला है, एक साल पहले ही इसकी शादी हुई है, इसकी पत्नी हिंदी न समझती हैं, न बोलती है. इसीलिये वह इसे अकेला नहीं छोड़ना चाहता.
मैंने पूछा – “जमशेदपुर में कितने दिन से हैं?” ” दो साल से”. “कैसा लगता है जमशेदपुर?” ..”आहा हा हा … बहुत सुन्दर!…. बहुत ही सुन्दर जगह, बड़े ही प्यारे लोग!”…. मैं तो सातवें आसमान पर था. “और वहाँ का पर्व त्यौहार?” “बहुत ही अच्छा …वहाँ का नवरात्र ! वहाँ की दुर्गा पूजा!!!! आहा ..हा हा!!!. वहाँ की दीवाली … आहा ..हा हा!” मैंने पूछा – “और वहाँ का छठ?” “आहा ..हा हा!!! बहुत अच्छा!!! मैं तो देख देख मन्त्र मुग्ध होता … छठ का प्रसाद मुझे बहुत अच्छा लगता जी, मेरे बगल में शर्मा जी, बिहारी … छठ का प्रसाद खिलाता जी, मैं बड़े प्रेम से खाता.. बहुत अच्छे लोग.”
मैंने कहा – “आप सो जाइये ..रात भर जगे हैं, मेरी नींद तो हो गयी”. “न जी, मैं तो फौजी आदमी जी, कई दिन, कई रात जगकर गुजारता, खड़े होकर गुजारता. मेरी पत्नी है न ..इसे आराम चाहिए था. इसलिए मैं इसके बगल में लक्ष्मण की तरह खड़ा था, जैसे बनवास के समय लक्ष्मण सीता मैया की रक्षा करता. मैं इसकी रक्षा करता जी”….
इतनी सारी बातें करने के बाद मैं अपनी पुरानी जगह एस -१ में आ गया. कुछ चाय नाश्ता किया. फिर एस २ में आकर देखा – वह फौजी गायब! मेरा बिस्तर, कम्बल गायब!…. मैं घबराया…. फिर ध्यान से देखा तो उसकी पत्नी नीचे बैठी और वह फौजी ऊपर की बर्थ पर मेरा बिस्तर सिर के नीचे रखकर सोता…. मैंने भी सोचा – बेचारा फौजी, रात में जागता और दिन में सोता जी. फिर सोते हुए आदमी को क्यों डिस्टर्ब करना ..मैं अपनी सीट पर पुन: वापस. कई बार आकर देखा – वह फौजी निश्चिन्त सोता. उसकी पत्नी मूंगफली खाता… दोपहर बाद उसकी नींद खुलती और वह मुझे देख मुस्कुराता. नीचे आता और फिर बात करता … मैं बंगलौर में कहाँ जाऊंगा? वह मेरी कैसे मदद करेगा. बोला आटो या टैक्सी से मत जाओ, वे लोग बहुत पैसा मांगता. आप बस से जाओ. बहुत बस है! मैंने कहा- “मेरे पास ज्यादा सामान है, बस से बेहतर प्रीपेड टैक्सी रहेगा, ऐसा दुसरे लोग कह रहे हैं”.उसने कहा.- “हाँ वह ठीक रहेगा, पर लिखवा लेना ‘विथ लगेज’ नहीं तो लगेज का अलग से चार्ज करेगा. वे लोग नए आदमी को ठगते हैं.
यह है भारतीय रेल की स्लीपर क्लास में एक रात और एक दिन की कहानी. फैजियों के प्रति वैसे भी हमलोगों के मन में सम्मान का भाव होता है. ये हर समय हमारी रक्षा करते हैं. सीमा पर बाहरी दुश्मनों से, देश में नक्सली आतंकियों से, आपदा प्रबंधन में भी इनका रोल अहम् होता है!
क्रमश:

भारतीय रेल, भारतीय लोग! भाग – एक ( मैं तो फौजी हूँ!)

टाटानगर यशवंतपुर सुपरफास्ट एक्सप्रेस के लिए २० दिन पहले टिकट ली थी. जब ली थी वेटिंग लिस्ट १२१,१२२,१२३ था. जाने के दिन तक RAC ३१, ३२, और ३९ पर आकर रुक गया. बैठने की जगह मिल जायेगी, जानकार मन को थोड़ी संतुष्टि हुई, रात का समय, सर्द की रात, ठंढ भी कम नहीं … चलो, बारी बारी से सो लेंगे!…. वरीयता क्रम में मेरा ही नम्बर आया. मेरे साथ वाले सज्जन ने अपनी पत्नी के साथ बैठने का फैसला किया और मुझे सोने की जगह मिल गयी. रात दो बजे टी. टी. की कृपा से मुझे एस -३ में एक बर्थ मिल गया. मैं वहां चला गया और मेरी जगह पर श्रीमती जी आ गयी. हमलोग चैन की नीद सोते पर एक आदमी तीन बजे रात में आकर मेरी पत्नी की बर्थ पर बैठने का दावेदार बन गया…. टी. टी. का कहीं पता नहीं था. समझौता आपस में ही करना था. मैंने उस भले मानुष से कहा – आप एस ३ में मेरी बर्थ पर सो जाइए, मैं यहाँ अपनी पत्नी संग बैठ लूँगा…. वैसे भी तीन तो बज ही गए हैं,… वह भला आदमी मान गया … मैंने देखा, एस -२ में एक नीचे वाला ही बर्थ खाली पड़ा है, मैंने अपना बिस्तर वहीं लगा दिया और शुबह ६ बजेतक आराम से सोया. शुबह की चाय भी पी और शौचालय चला गया. जब शौचालय से आया तो देखा – मेरा बिस्तर हटाकर एक नया जोड़ा बैठा हुआ है. मैंने पूछा – “क्या यह आपकी बर्थ है?”. उसने कहा- “हाँ”. “आप कहा से आ रहे हैं?” – “टाटा से” . “फिर आप कहाँ थे?” “मेरा एक बर्थ यहाँ है, और दूसरा, दूसरे छोड़ पर. रात को पत्नी को अकेला नहीं छोड़, मैं उसी के पास बैठा रहा. दो बार मैं यहाँ भी आया था, पर आपको सोया देख डिस्टर्ब नहीं किया. सोये हुए आदमी को क्या डिस्टर्ब करना? मैं तो फौजी आदमी हूँ, खड़ा भी रह लूँगा” . “आप फौजी हैं? कहाँ पर पोस्टिंग है आपकी?” “टाटा में ही आदित्यपुर औध्योगिक क्षेत्र में”…. उसने मुझे बैठने को कहा- “आइये हम सब साथ बैठते हैं”. बैठने के बाद परिचय का दायरा बढ़ा. यह नौजवान बंगलौर का रहनेवाला है, एक साल पहले ही इसकी शादी हुई है, इसकी पत्नी हिंदी न समझती हैं, न बोलती है. इसीलिये वह इसे अकेला नहीं छोड़ना चाहता.
मैंने पूछा – “जमशेदपुर में कितने दिन से हैं?” ” दो साल से”. “कैसा लगता है जमशेदपुर?” ..”आहा हा हा … बहुत सुन्दर!…. बहुत ही सुन्दर जगह, बड़े ही प्यारे लोग!”…. मैं तो सातवें आसमान पर था. “और वहाँ का पर्व त्यौहार?” “बहुत ही अच्छा …वहाँ का नवरात्र ! वहाँ की दुर्गा पूजा!!!! आहा ..हा हा!!!. वहाँ की दीवाली … आहा ..हा हा!” मैंने पूछा – “और वहाँ का छठ?” “आहा ..हा हा!!! बहुत अच्छा!!! मैं तो देख देख मन्त्र मुग्ध होता … छठ का प्रसाद मुझे बहुत अच्छा लगता जी, मेरे बगल में शर्मा जी, बिहारी … छठ का प्रसाद खिलाता जी, मैं बड़े प्रेम से खाता.. बहुत अच्छे लोग.”
मैंने कहा – “आप सो जाइये ..रात भर जगे हैं, मेरी नींद तो हो गयी”. “न जी, मैं तो फौजी आदमी जी, कई दिन, कई रात जगकर गुजारता, खड़े होकर गुजारता. मेरी पत्नी है न ..इसे आराम चाहिए था. इसलिए मैं इसके बगल में लक्ष्मण की तरह खड़ा था, जैसे बनवास के समय लक्ष्मण सीता मैया की रक्षा करता. मैं इसकी रक्षा करता जी”….
इतनी सारी बातें करने के बाद मैं अपनी पुरानी जगह एस -१ में आ गया. कुछ चाय नाश्ता किया. फिर एस २ में आकर देखा – वह फौजी गायब! मेरा बिस्तर, कम्बल गायब!…. मैं घबराया…. फिर ध्यान से देखा तो उसकी पत्नी नीचे बैठी और वह फौजी ऊपर की बर्थ पर मेरा बिस्तर सिर के नीचे रखकर सोता…. मैंने भी सोचा – बेचारा फौजी, रात में जागता और दिन में सोता जी. फिर सोते हुए आदमी को क्यों डिस्टर्ब करना ..मैं अपनी सीट पर पुन: वापस. कई बार आकर देखा – वह फौजी निश्चिन्त सोता. उसकी पत्नी मूंगफली खाता… दोपहर बाद उसकी नींद खुलती और वह मुझे देख मुस्कुराता. नीचे आता और फिर बात करता … मैं बंगलौर में कहाँ जाऊंगा? वह मेरी कैसे मदद करेगा. बोला आटो या टैक्सी से मत जाओ, वे लोग बहुत पैसा मांगता. आप बस से जाओ. बहुत बस है! मैंने कहा- “मेरे पास ज्यादा सामान है, बस से बेहतर प्रीपेड टैक्सी रहेगा, ऐसा दुसरे लोग कह रहे हैं”.उसने कहा.- “हाँ वह ठीक रहेगा, पर लिखवा लेना ‘विथ लगेज’ नहीं तो लगेज का अलग से चार्ज करेगा. वे लोग नए आदमी को ठगते हैं.
यह है भारतीय रेल की स्लीपर क्लास में एक रात और एक दिन की कहानी. फैजियों के प्रति वैसे भी हमलोगों के मन में सम्मान का भाव होता है. ये हर समय हमारी रक्षा करते हैं. सीमा पर बाहरी दुश्मनों से, देश में नक्सली आतंकियों से, आपदा प्रबंधन में भी इनका रोल अहम् होता है!
क्रमश: