सी बी आई डिरेक्टर श्री रणजीत सिन्हा का बयान आया अगर सट्टेबाजी और
बलात्कार रोक अही सकते तो एन्जॉय करिए. हालाँकि बाद में उन्होंने संदर्भ समझाया और
माफी भी मांग ली. इब बयान को मीडिया और महिला
संगठनों ने जोर शोर से उठाया, उसके बाद ही उन्हें माफी मांगनी पडी.
यह कोई नया मसला/मामला नहीं था, जब उच्च पदों पर बैठे लोग कुछ भी बोलकर
बाद में माफी मांग लेते हैं.
१६ दिसम्बर २०१२ के बाद इस तरह के बयानों की बाढ़ सी आ गयी थी. किसी ने
कहा- लक्ष्मण रेखा का उल्लंघन करने से सीता का हरण होगा ही, किसी ने कहा –
बलात्कार इण्डिया में होते है भारत में नहीं. किसी ने कपड़ों पर उंगली उठाई तो किसी
ने सख्त सजा की भी मांग की. बड़े बड़े आन्दोलन हुए, त्वरित अदालत गठित की गयी, महीनो
मुक़दमे की सुनवाई चली, सजा भी सुनाई गयी, पर फर्क कुछ नहीं पड़ा. सजा सुनाना भर कोर्ट
का काम था, उसे आगे अपील और सजा का पालन आदि कुछ नहीं हुआ. नए नए जघन्य केस आते
गए, सुर्खियाँ बनती रही, पर कुछ फर्क नहीं पड़ा ... ऐसे में अगर उच्च पदासीन लोगों
की जुबान फिसलती है, तो क्या फर्क पड़ती है. जुबान फिसलने की कोई सजा तो नहीं
निर्धारित है. माफी मांग लेंगे.
‘पुरानी बीबी उतनी मजा नहीं देती’ कहकर श्रीप्रकाश जायसवाल ने भी माफी
मांग ली थी. ‘पचास करोड़ की गर्ल फ्रेंड’ कहने वाले प्रधान मंत्री पद के दावेदार
हैं. उन्हें माफी मांगने के लिए कौन कहेगा? वे तो कुछ भी कह सकते हैं, अपनी सुविधा
के अनुसार इतिहास भूगोल भी बना सकते हैं. आंकड़ों में भी उन्हें कोई नहीं पकड़ सकता.
एक वंश पर चाहे जितने हमले करें – कौन रोकेगा उन्हें? अपने को हमले से बचाने के
लिए भीड़ को हमले का शिकार बना सकते हैं. अपनी पार्टी के अलावा सबका सफाया करने को
भी कह सकते हैं. खूनी पंजा से कमल को बचाना है ..इतना सब कुछ तो सहन पड़ेगा ही.
नहीं रोक सकते, तो एन्जॉय करिए.
राहुल जी के पास आई बी के ऑफिसर आते हैं और कुछ मुस्लिम युवकों के आई
एस आई से संपर्क की बात बताते है और राहुल जी इस पर नियंत्रण करने के बजाय पब्लिक
को सुनाते हैं. कौन रोकेगा उन्हें? चुनाव आयोग? चेतावनी तो दे दी है ... आगे से
ऐसी बातें न बोलें! राहुल जी भी एन्जॉय कर रहे हैं.
हम सब एन्जॉय ही तो कर रहे हैं. गरीबी, भुखमरी, बेकारी, भ्रष्टाचार
आदि को भी हम एन्जॉय ही कर रहे हैं. प्याज, आलू, टमाटर के साथ हरी सब्जियों के दाम
सुनकर एन्जॉय ही तो कर रहे हैं.
और अभी पांच दिन बचे हैं एन्जॉय करने के लिए ... टिकट पाने के लिए चाहे
कई दिन लाइन में लगनी पड़े या पंचगुने से भी ज्यादा कीमत देकर टिकट खरीदनी पड़े,
क्रिकेट के भगवान को देखने का मजा ही कुछ और है. अगर ऐसे लोकप्रिय, जनप्रिय
महानुभाव को देश का ताज पहना कर प्रधान मंत्री बना दिया जाय तो सारी समस्यायों का
हल तत्काल निकल आयेगा.
१४ नवम्बर ‘बाल दिवस’ का दिन आज कितनों को याद है – पर फूल से बच्चे
सचिन को आगे भी खेलमंत्री या क्रिकेट के कोच के रूप में देखना चाहते हैं.
अब लता दीदी को भी दुःख हो रहा है कि सचिन रिटायर हो रहे हैं. दीदी ने
अभी तक अपना रिटायरमेंट का ऐलान नहीं किया!!! क्रिकेट में सचिन जैसा कोई नहीं और
संगीत में लता दीदी जैसा भी कोई नहीं.
तो आइये टी वी के सामने बैठ जाइए, एन्जॉय करिए !!!
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