हजारीबाग में झारखण्ड का पहला ओपेन जेल
कुछ दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव सुधार प्रक्रिया के अंतर्गत जेल से
चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी थी. पर हमारे माननीयों ने इस फैसले के खिलाफ तुरंत नया
कानून बनाकर संसद से पास करा दिया कि जबतक जेल में बंद व्यक्ति का नाम मतदाता सूची
में है, चुनाव लड़ने का अधिकारी है. अब सुप्रीम कोर्ट क्या करती
आखिर वे कानून के आधार पर ही तो अपना फैसला सुनाती है.
इधर झारखण्ड सरकार ने अपने राज्य में नयी शुरुआत की है, हजारीबाग में नया
ओपेन जेल का उद्घाटन कर के. इस ओपेन जेल
में कैदियों को सुधरने का मौका दिया जायेगा और उनपर कम से कम प्रतिबन्ध होंगे. ये
कैदी अगर भटक कर किसी अपराध से जुड़ गए और बाद में उन्होंने अपने आप में सुधार कर
लिया है, तो उन्हें और भी सुधरने का मौका दिया जायेगा. उन्हें अपने पैर पर खड़ा
होने के लिए आवश्यक सुविधायें मुहैया कराई जाएगी.
इनमे वैसे नक्सली भी हैं, जो बाद में अपने को मुख्य धारा में शामिल होना
चाहते हैं. इस तरह के कैदी इन ओपेन जेल में अपने परिवार के साथ भी रह सकते हैं,
उनपर सुरक्षा या पाबंदी कम से कम होगी.
वैसे जेल का दूसरा नाम सुधार गृह भी है, पर जेल की यातना. खतरनाक अपराधियों
का साथ कभी-कभी उन्हें और भी अपराधी बना देता है. तिहाड़ जेल इसका बड़ा उदाहरण है,
१९९३ से १९९५ तक तिहाड़ जेल की आई.जी. रह चुकी किरण बेदी ने भी कैदियों के सुधार के
लिए कई कार्य किये और सुर्ख़ियों में रहीं.
ओपन जेल की अवधारणा के पीछे असली भावना यही है कि कैदियों/अपराधियों को
सुधरने का मौका दिया जाय और परम्परागत कारागार
में भीड़ को कम किया जाय.
पहल ओपन जेल १८९१ में स्वीटजरलैंड में स्थापित किया गया, उसके बाद १९१६ में
अमेरिका में, १९३० में ब्रिटेन और १९५० में नीदरलैंड में स्थापित किया गया. उसके
बाद श्रीलंका, ऑस्ट्रेलिया, हांगकांग,
चीन, जापान, पाकिस्तान और भारत में भी ऐसे ओपन जेल बनाये गए.
भारत में पहला ओपन जेल १९०५ में बम्बई प्रेसिडेंसी में स्थापित किया गया,
हालाँकि इसे १९१० में बंद कर दिया गया. उसके बाद १९५३ में बनारस के चन्द्रप्रभा
नदी के डैम के निर्माण के समय ओपन कैम्प के रूप में रक्खा गया.
फ़िलहाल भारत में कुल ४४ ओपन जेल हैं, जिनमे लगभग पौने चार हजार कैदी रह रहे
हैं.
झारखण्ड के हजारीबाग में इसे एक नयी शुरुआत के रूप में देखा जा रहा है,
जिनमे अभी २५ कैदियों को रखा गया है.
अगर वास्तव में यह प्रयोग सफल होता है तो निश्चित ही अपराधियों में सुधार
और भविष्य में अपराध न करने की प्रेरणा मिलेगी. झारखण्ड सरकार के इस प्रयास को
बहुत सारे पत्रकारों ने सराहा है.
दुर्भाग्य अपने देश का है, जहाँ दिन प्रतिदिन हर प्रकार के अपराध में
वृद्धि होती जा रही है. न्याय प्रक्रिया की जटिलता और देरी से भी अपराधों में इजाफा
हो रहा है. अपराध करने वालों में शातिर अपराधी के साथ साथ भले और सभ्य लोग भी
लिप्त पाए जा रहे हैं. जरूरत है पूरी नैतिकता और शुचिता के अंतर्मनन की. समाज के
उच्पदस्थ, शिक्षित, समाजसेवी, और सच्चे संतों को आगे बढ़कर शुचिता के मानदंड को
स्थापित कर उसे अधिक से अधिक विकसित करने के लिए आगे आना चाहिए, तभी सही मायने में
स्वस्थ और परिमार्जित समाज की कल्पना की जा सकती है.
-जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.