Monday, 25 November 2013

हजारीबाग में झारखण्ड का पहला ओपेन जेल

हजारीबाग में झारखण्ड का पहला ओपेन जेल
कुछ दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव सुधार प्रक्रिया के अंतर्गत जेल से चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी थी. पर हमारे माननीयों ने इस फैसले के खिलाफ तुरंत नया कानून बनाकर संसद से पास करा दिया कि जबतक जेल में बंद व्यक्ति का नाम मतदाता सूची में है, चुनाव लड़ने का अधिकारी है. अब सुप्रीम कोर्ट क्या करती आखिर वे कानून के आधार पर ही तो अपना फैसला सुनाती है.
इधर झारखण्ड सरकार ने अपने राज्य में नयी शुरुआत की है, हजारीबाग में नया ओपेन जेल  का उद्घाटन कर के. इस ओपेन जेल में कैदियों को सुधरने का मौका दिया जायेगा और उनपर कम से कम प्रतिबन्ध होंगे. ये कैदी अगर भटक कर किसी अपराध से जुड़ गए और बाद में उन्होंने अपने आप में सुधार कर लिया है, तो उन्हें और भी सुधरने का मौका दिया जायेगा. उन्हें अपने पैर पर खड़ा होने के लिए आवश्यक सुविधायें मुहैया कराई जाएगी.
इनमे वैसे नक्सली भी हैं, जो बाद में अपने को मुख्य धारा में शामिल होना चाहते हैं. इस तरह के कैदी इन ओपेन जेल में अपने परिवार के साथ भी रह सकते हैं, उनपर सुरक्षा या पाबंदी कम से कम होगी.
वैसे जेल का दूसरा नाम सुधार गृह भी है, पर जेल की यातना. खतरनाक अपराधियों का साथ कभी-कभी उन्हें और भी अपराधी बना देता है. तिहाड़ जेल इसका बड़ा उदाहरण है, १९९३ से १९९५ तक तिहाड़ जेल की आई.जी. रह चुकी किरण बेदी ने भी कैदियों के सुधार के लिए कई कार्य किये और सुर्ख़ियों में रहीं. 
ओपन जेल की अवधारणा के पीछे असली भावना यही है कि कैदियों/अपराधियों को सुधरने का मौका दिया जाय और परम्परागत  कारागार में भीड़ को कम किया जाय.
पहल ओपन जेल १८९१ में स्वीटजरलैंड में स्थापित किया गया, उसके बाद १९१६ में अमेरिका में, १९३० में ब्रिटेन और १९५० में नीदरलैंड में स्थापित किया गया. उसके बाद श्रीलंका, ऑस्ट्रेलिया, हांगकांग,  चीन, जापान, पाकिस्तान और भारत में भी ऐसे ओपन जेल बनाये गए.
भारत में पहला ओपन जेल १९०५ में बम्बई प्रेसिडेंसी में स्थापित किया गया, हालाँकि इसे १९१० में बंद कर दिया गया. उसके बाद १९५३ में बनारस के चन्द्रप्रभा नदी के डैम के निर्माण के समय ओपन कैम्प के रूप में रक्खा गया.
फ़िलहाल भारत में कुल ४४ ओपन जेल हैं, जिनमे लगभग पौने चार हजार कैदी रह रहे हैं.
झारखण्ड के हजारीबाग में इसे एक नयी शुरुआत के रूप में देखा जा रहा है, जिनमे अभी २५ कैदियों को रखा गया है.
अगर वास्तव में यह प्रयोग सफल होता है तो निश्चित ही अपराधियों में सुधार और भविष्य में अपराध न करने की प्रेरणा मिलेगी. झारखण्ड सरकार के इस प्रयास को बहुत सारे पत्रकारों ने सराहा है.
दुर्भाग्य अपने देश का है, जहाँ दिन प्रतिदिन हर प्रकार के अपराध में वृद्धि होती जा रही है. न्याय प्रक्रिया की जटिलता और देरी से भी अपराधों में इजाफा हो रहा है. अपराध करने वालों में शातिर अपराधी के साथ साथ भले और सभ्य लोग भी लिप्त पाए जा रहे हैं. जरूरत है पूरी नैतिकता और शुचिता के अंतर्मनन की. समाज के उच्पदस्थ, शिक्षित, समाजसेवी, और सच्चे संतों को आगे बढ़कर शुचिता के मानदंड को स्थापित कर उसे अधिक से अधिक विकसित करने के लिए आगे आना चाहिए, तभी सही मायने में स्वस्थ और परिमार्जित समाज की कल्पना की जा सकती है.  

-जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.

Tuesday, 19 November 2013

गजब का धैर्य है बिहारियों में …

नरेंद्र मोदी अहमदाबाद (१७.११.१३)में कह रहे थे – गजब का धैर्य है बिहारियों में …
२ नवंबर को पटना में बिहारियों के धैर्य की प्रशंशा कर चुके थे. उन्हें लगा होगा कि बिहारियों में समझदारी की भी कमी है. .. वे कह रहे थे – आप लोग यहाँ मेरा भाषण सुन रहे हो… कोई जोर से चिल्ला दिया सांप!… सांप ! तो क्या आपलोग भागोगे नहीं? लेकिन देखो बिहारी लोग कितने धैर्यवान होते हैं. … उधर बम फट रहा है, फिर भी मेरा भाषण एकाग्रचित्त होकर सुने जा रहे हैं …उसके बाद भी आज तक उनमे कोई हरकत नहीं हुई? इन्डियन मुजाहिद्दीन और मुस्लिन आतंकवादी के नाम पर भी कोई हरकत नहीं?……गजब का धैर्य ….
ऐसे भी वे कुछ गलत नहीं कह रहे थे. … राजेंद्र बाबू, और श्री कृष्ण सिंह की जन्म भूमि आज बेहद शांत है. जयप्रकाश नारायण ने एक ज्योति (मशाल) जलाई थी. कई नेता उनमे लालू, नितीश, रामविलास पासवान, सुशील मोदी, …आदि आदि ..सभी उस मशाल को टुकड़े टुकड़े कर बुझा दिए….
१५ सालों तक लालू को झेला, अब नीतीश को झेल रहे हैं. ..कोई सुगबुगाहट ही नहीं होती? उनका किसानो का नेता बरह्मदेव सिंह अपने घर के बाहर मारा जाता है, पटना में थोडा सा तोड़ फोड़ कर शांत हो जाते हैं.लक्ष्मणपुर बाथे नरसंहार के सभी आरोपी बाइज्जत बड़ी हो जाते हैं, फिर भी कोई हरकत नहीं…
मुम्बई में मार खाते हैं,… ठाकरे परिवार से गलियां सुनते हैं…कुछ फर्क नहीं पड़ता ..दिल्ली से भी जलील होते हैं, दक्षिण से भगाए जाते हैं, फिर भी हर जगह रिक्शा चलाने, कुलीगिरी आदि छोटे छोटे काम करने में ये लोग ही आगे रहते हैं.
गजब का धैर्य!…. मारीसस में मिट्टी खोदने के लिए गिरमिटिया बन कर जाते हैं … वहाँ के राष्ट्रपति, प्रधान मंत्री बन जाते हैं, फिर भी अपने पुराने टूटे खडंहर घर को देखने के लिए आ जाते हैं…
ऐसा धैर्य बिहारियों में ही हो सकता है …..

Wednesday, 13 November 2013

रोक नहीं सकते तो मजा लीजिये, एन्जॉय करिए !

सी बी आई डिरेक्टर श्री रणजीत सिन्हा का बयान आया अगर सट्टेबाजी और बलात्कार रोक अही सकते तो एन्जॉय करिए. हालाँकि बाद में उन्होंने संदर्भ समझाया और माफी भी मांग ली.  इब बयान को मीडिया और महिला संगठनों ने जोर शोर से उठाया, उसके बाद ही उन्हें माफी मांगनी पडी.
यह कोई नया मसला/मामला नहीं था, जब उच्च पदों पर बैठे लोग कुछ भी बोलकर बाद में माफी मांग लेते हैं.
१६ दिसम्बर २०१२ के बाद इस तरह के बयानों की बाढ़ सी आ गयी थी. किसी ने कहा- लक्ष्मण रेखा का उल्लंघन करने से सीता का हरण होगा ही, किसी ने कहा – बलात्कार इण्डिया में होते है भारत में नहीं. किसी ने कपड़ों पर उंगली उठाई तो किसी ने सख्त सजा की भी मांग की. बड़े बड़े आन्दोलन हुए, त्वरित अदालत गठित की गयी, महीनो मुक़दमे की सुनवाई चली, सजा भी सुनाई गयी, पर फर्क कुछ नहीं पड़ा. सजा सुनाना भर कोर्ट का काम था, उसे आगे अपील और सजा का पालन आदि कुछ नहीं हुआ. नए नए जघन्य केस आते गए, सुर्खियाँ बनती रही, पर कुछ फर्क नहीं पड़ा ... ऐसे में अगर उच्च पदासीन लोगों की जुबान फिसलती है, तो क्या फर्क पड़ती है. जुबान फिसलने की कोई सजा तो नहीं निर्धारित है. माफी मांग लेंगे.
‘पुरानी बीबी उतनी मजा नहीं देती’ कहकर श्रीप्रकाश जायसवाल ने भी माफी मांग ली थी. ‘पचास करोड़ की गर्ल फ्रेंड’ कहने वाले प्रधान मंत्री पद के दावेदार हैं. उन्हें माफी मांगने के लिए कौन कहेगा? वे तो कुछ भी कह सकते हैं, अपनी सुविधा के अनुसार इतिहास भूगोल भी बना सकते हैं. आंकड़ों में भी उन्हें कोई नहीं पकड़ सकता. एक वंश पर चाहे जितने हमले करें – कौन रोकेगा उन्हें? अपने को हमले से बचाने के लिए भीड़ को हमले का शिकार बना सकते हैं. अपनी पार्टी के अलावा सबका सफाया करने को भी कह सकते हैं. खूनी पंजा से कमल को बचाना है ..इतना सब कुछ तो सहन पड़ेगा ही. नहीं रोक सकते, तो एन्जॉय करिए.
राहुल जी के पास आई बी के ऑफिसर आते हैं और कुछ मुस्लिम युवकों के आई एस आई से संपर्क की बात बताते है और राहुल जी इस पर नियंत्रण करने के बजाय पब्लिक को सुनाते हैं. कौन रोकेगा उन्हें? चुनाव आयोग? चेतावनी तो दे दी है ... आगे से ऐसी बातें न बोलें! राहुल जी भी एन्जॉय कर रहे हैं.
हम सब एन्जॉय ही तो कर रहे हैं. गरीबी, भुखमरी, बेकारी, भ्रष्टाचार आदि को भी हम एन्जॉय ही कर रहे हैं. प्याज, आलू, टमाटर के साथ हरी सब्जियों के दाम सुनकर एन्जॉय ही तो कर रहे हैं.
और अभी पांच दिन बचे हैं एन्जॉय करने के लिए ... टिकट पाने के लिए चाहे कई दिन लाइन में लगनी पड़े या पंचगुने से भी ज्यादा कीमत देकर टिकट खरीदनी पड़े, क्रिकेट के भगवान को देखने का मजा ही कुछ और है. अगर ऐसे लोकप्रिय, जनप्रिय महानुभाव को देश का ताज पहना कर प्रधान मंत्री बना दिया जाय तो सारी समस्यायों का हल तत्काल निकल आयेगा.
१४ नवम्बर ‘बाल दिवस’ का दिन आज कितनों को याद है – पर फूल से बच्चे सचिन को आगे भी खेलमंत्री या क्रिकेट के कोच के रूप में देखना चाहते हैं.
अब लता दीदी को भी दुःख हो रहा है कि सचिन रिटायर हो रहे हैं. दीदी ने अभी तक अपना रिटायरमेंट का ऐलान नहीं किया!!! क्रिकेट में सचिन जैसा कोई नहीं और संगीत में लता दीदी जैसा भी कोई नहीं.

तो आइये टी वी के सामने बैठ जाइए, एन्जॉय करिए !!!       

Monday, 4 November 2013

जिसने कच्छ नहीं देखा, उसने कुछ नहीं देखा...

चन्द्रगुप्त और चाणक्य
चन्द्रगुप्त मौर्य पर अन्यान्य आलेख मौजूद है. इतिहास में भी बहुत बातें विवादित हैं, पर जो सच्चाई सबको मालूम है – वह यह कि महानंद बहुत धनी और घमंडी राजा था. चाणक्य उसकी दान-संघ का अध्यक्ष था. चाणक्य महानंद के मंत्री शकटार का ही चयन था. शकटार तीक्ष्ण बुद्धि का था, पर घमंडी नन्द ने उसके किसी चतुर बात(राज्य हित की बात) से ही रुष्ट होकर, परिवार सहित उसे कैद में डाल दिया था. कैद में भी उसकी तीक्ष्ण बुद्धि से प्रेरित होकर महानंद पुन: उसे मत्रीपद पर नियुक्त कर दिया.
शकटार के मन में नन्द के प्रति घृणा थी और नन्द को काले कलूटे लोगों से चिढ़ थी. शकटार ने कूटिनीति के तहत चाणक्य (जो कि काले ब्रह्मण थे) को नन्द की सभा में उच्चासन पर बैठा दिया, जिसे देखते ही नन्द चिढ़ गया और उसे गद्दी से उतार दिया. चाणक्य ने उसी समय अपनी चोटी (शिखा) को खोलते हुए कहा था. “जबतक वह नन्द वंश का नाश नहीं कर लेता, अपनी शिखा नही बांधेगा.”
चाणक्य अन्यमनस्क से चले जा रहे थे… तभी देखा कि एक लड़का जो पशुओं की चरवाही करते हुए राजा बनने का अभिनय कर रहा था. दूसरे चरवाहे उसकी प्रजा बने हुए थे. चाणक्य को कौतूहल हुआ. वे राजा बने हुए चन्द्रगुप्त के पास जाकर बोलते हैं – “राजन हमें दूध पीने के लिए गऊ चाहिए.” राजा बने हुए बालक चन्द्रगुप्त ने कहा- “वो देखिये, सामने गौएँ चर रही हैं. आप उनमे से जितनी चाहे अपनी पसंद से ले लें.”
चाणक्य ने इस बालक में राजा की छवि देखी और उसे राजा बनाने के विचार से अपने साथ में ले लिया. उसे युद्ध कौशल सीखने के लिए सिकंदर की सेना में भर्ती भी करवा दिया. बाद में यही चन्द्रगुप्त ने नन्द वंश को समाप्त किया और मगध का राजा बना और पाटलिपुत्र उसकी राजधानी. उसने अपने राज्य का विस्तार भी किया और चाणक्य को अपना मंत्री/मुख्य सलाहकार बनाकर रक्खा.
चीनी यात्री फाहियान के अनुसार चन्द्रगुप्त के राज में सभी सुखी थे और अपना वाजिब कर राजा को अवश्य चुकाते थे. राजा भी प्रजा के सब सुख सुविधा का ख्याल रखते थे. एक दिन फाहियान चाणक्य से मिलने आया. वह चन्द्रगुप्त के राज्य की खुशहाली का राज जानना चाहता था.
चाणक्य के मेज पर दो मोमबत्तियां थी जिसमे एक जल रही थी. वह मोमबत्ती के प्रकाश में कुछ लिखने का काम कर रहे थे. फाहियान के आने पर उन्होंने जलती हुई मोमबत्ती को बुझा दिया और दूसरी जला ली. फाहियान ने पूछा – “महाराज, आपने ऐसा क्यों किया?”
चाणक्य ने जवाब दिया – “पहली मोमबत्ती राजा के कोष से प्राप्त हुई थी, जिसे जलाकर मैं राजकाज कर रहा था. अब मैं आपसे व्यक्तिगत बात कर रहा हूँ, इसलिए अपनी व्यक्तिगत मोमबती जला ली.”
फाहियान ने कहा – मुझे जवाब मिल गया. जहाँ आपके जैसे ईमानदार मंत्री हों, वहां की प्रजा कैसे खुशहाल न होगी?
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इस कथा का मूल भाव हमारे पाठक समझ रहे होंगे. एक और कहानी चन्द्रगुप्त के बारे में मशहूर है. वह यह कि रोटी को उसके किनारे से ही खाना चाहिए और तभी पूरी रोटी अपने अन्दर होगी.
गोधरा वाला गुजरात…. गुजरात भारत के एक किनारे पर है, आंध्रा दूसरे किनारे पर. बिहार, महाराष्ट, पंजाब, राजस्थान, कर्नाटका, चेन्नई, उत्तरांचल, ये सभी किनारे के राज्य हैं. पाटन(गुजरात) से पटना का सफ़र, पुणे(महराष्ट्र) से पटना…. मकसद जीतना है हमें.
भाजपा के तरफ से २०१४ के लिए प्रधान मंत्री के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के बारे में बहुत कुछ कहा और लिखा जा रहा है. पर जो हवा के रुख को अपने अनुकूल बनाने की क्षमता रखता हो. उसके बढ़ते पराक्रम को रोक पाना शायद अब किसी के लिए संभव नहीं है. भले ही हवा ब्लोअर से फेंकी जा रही हो (बकौल नितीश कुमार), पर अब कारवां निकल चुका है, लोग मिलते जा रहे हैं, विरोधी अन्दर के या बाहर के सभी एक एक कर धराशायी होते जा रहे हैं. साम, दाम, दंड, भेद… हर कला को अपनाते हुए, आडवाणी, सुषमा स्वराज, यशवंत सिन्हा, शत्रुघ्न सिन्हा, अरुण जेटली आदि सभी एक एक कर घुटने टेकते हुए नजर आए.
१५ अगस्त को लालन से लालकिला को जवाब, छत्तीशगढ़ में लालकिले की स्थापना, मध्यप्रदेश में संसद, और झांसी में लक्ष्मीबाई का किला फतह….. विरोधी उनके भाषण में व्याकरणीय(इतिहास. भूगोल की) त्रुटि ढूंढ रहे है और यह मुकद्दर का सिकंदर, अपनी विजय पताका फहराता हुआ ‘अजेय’ बनता जा रहा है.
पहले कांग्रेस मुक्त भारत! फिर सबका (समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी के साथ कांग्रेस) सफाया और अब नीतीश का दुर्ग भेदने की तरफ, यह ‘पिछड़े वर्ग का नेता’, ‘चाय बेचने वाला’ ‘दिल्ली का चौकीदार’ बनना चाहता है. आपको कोई आपत्ति? ….यह है आज का चन्द्रगुप्त. इसके पीछे काली दाढ़ी वाला चाणक्य कौन है या कौन कौन है? … देखते जाइए!
लोगों का दिल जीतने के लिए उसकी भाषा में बोलना, उसके बगल में जाकर बैठना, उसके बीच का आदमी बताना, बहुत बड़ा हथियार होता है. लालू ने यह शैली अपनाई थी. इंदिरा जी ने भी हर प्रदेशों/इलाकों में जाकर वहां का भेष भूषा बनाई थी. कुछ साल पहले सोनिया ने भी ऐसा ही करने का प्रयास किया था. … राहुल कर रहे हैं, ….पर राहुल में वो दमखम नहीं दीखता. उनकी सरकार से लोग परेशान हैं, तंग आ चुके हैं. महंगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, अनाचार मुंह फैलाये हुए है. आज जरूरत है परिवर्तन की और लोग एक बड़े परिवर्तन के रूप में मोदी को आजमाना चाहते हैं.
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आम आदमी पार्टी दिल्ली तक सीमित है, चंद लोगों की पार्टी है अभी. अभी समय लगेगा उसे अपनी पहचान सुनिश्चित करने में. आखिर प्रचार-प्रसार के लिए धन (दाम) की भी जरूरत होती है. केवल ईमानदारी से राजनीति के दुर्ग को भेदना मुश्किल है. रणनीति तो बनानी पड़ती है.
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दिल्ली का रास्ता बिहार से होकर जाता है, चाहे वह महात्मा गाँधी हो, जयप्रकाश नारायण हो, महारथी नरेंद्र मोदी हो. पटना के गांधी मैदान में उन्होंने शुरुआत की, भोजपुरी से, मथिली से और मगही से. मगध के सम्राटों की राजधानी पाटलिपुत्र(आज का पटना).
चंद बम धमाको को फटाखे बता भीड़ को नियंत्रित रखने का जज्बा, भले ही कई गिलास पानी पीकर और पसीने पोंछकर करनी पड़े….और अब उन धमाकों में शहीद हुए लोगों के परिजन से मिलकर, चप्पल उतार जमीन पर शोकाकुल मुद्रा में बैठ, उनके आंसू पोंछते हुए, हिम्मत बढ़ाने की कोशिश. यह मोदी जैसे बड़े दिल वाले का ही काम है. इसी क्रम में उन्होंने पटना के पास के गावों की बदहाली भी तो देख ली. (नितीश बाबु का सुशासन).
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नितीश बाबू, बकौल गिरिराज सिंह, गाँव की ईर्ष्यालु/झगड़ालू औरतों जैसा गुस्सा ठीक नहीं है. प्रोटोकॉल का तो पालन कीजिये. रातभर आपके सरकारी आवास के सामने ठहरकर, देश का भावी प्रधान मंत्री अब आपके बिहार के गावों में घूमते हुए आपके जन्मस्थान तक भी पहुँच गया.
ब्लोअर की हवा का अहसास कुछ हो रहा है. सभी राष्ट्रीय चैनेल लाइव कवरेज दिखा रहे हैं. और आप हैं कि धनतेरस की झाड़ू से ही खुश दिखने का प्रयास कर रहे हैं.
सरदार पटेल की १८२ मीटर ऊंची ‘एकता की मूर्ति’ के रूप में दुनिया के मानचित्र पर स्थापित करने का सपना, जिसमे भारत के हर ग्रमीणों का योगदान होगा.
जिसने कच्छ नहीं देखा, उसने कुछ नहीं देखा!
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पटना से वापस रवाना होने से पहले नरेंद्र मोदी ने बिहार वासियों के उसके शांतिपूर्ण माहौल बनाये रखने के लिए उनके धैर्य को नमन किया और आने वाले पर्व दीपावली और छठ के लिए शुभकामना व्यक्त की. पर भाजपा कार्यकर्ताओं ने ‘दीवाली’ नहीं मनाई…. पहले ही इतने विष्फोट हो चुके हैं, अब तो शांतिपूर्ण बयान जारी करने का माहौल है. इस बीच सुशील मोदी नरेंद्र मोदी के साथ रहे तो श्री गिरिराज सिंह ने बयान जारी करने और बहस करने में प्रमुख भूमिका निभाई. उन्होंने श्री कृष्ण बाबू का उदाहरण देते हुए नितीश बाबू को बहुत अच्छे परामर्श भी दे डाले. नितीश बाबु को ऐसे शुभचिंतक निंदकों के परामर्श पर अवश्य ध्यान देना चाहिए आखिर सत्रह वर्षों का गठबन्धन इस तरह एक ही धक्के में नहीं टूटना चाहिए था.
अभी भी समय है सम्हलने का, आखिर गिर के सम्हलने का नाम ही तो राजनीति की जिन्दगी है.
प्रस्तुति- जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.