Monday, 30 September 2013

चुनाव सुधार और राजनीति में शुचिता ….

१५ अगस्त १९४७ को अंग्रेजों की गुलामी से आजाद होने के बाद हमारे देश में नए लोकतंत्र की स्थापना हुई. हमारा अपना संविधान बना और उसके तहत चुनावी प्रक्रिया क प्रावधान हुआ जिसमे आम जनता की भागीदारी तय की गयी. आम जनता/ वयस्क जनता अपना मत प्रकट कर अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करे और और चुने हुए प्रतिनिधि जनता और देश के हित में काम करे, यही इस लोकतंत्र की मूल अवधारणा कही जायेगी.
एक समय ऐसा था जब हमारे जनप्रतिनिधि ईमानदार और स्वच्छ छवि वाले होते थे और उनके अन्दर जनता के लिए, अपने देश के लिए कुछ अच्छा करने की तमन्ना थी. कुछ दशकों तक सबकुछ ठीक-ठाक चला. फिर उन जनप्रतिनिधियों के मन में अपनी जनता से ज्यादा अपनी चिंता होने लगी. उस समय यह चिंता अपनी कुर्सी बचाने तक सीमित थी, अपना वर्चस्व बनाये रखने तक सीमित थी....  कालांतर में यह प्रतिस्पर्धा का दौर और आगे बढ़ा और तब यह भावना; समाज के बटवारे, अपना-अपना संगठन बनाने, उसे मजबूत बनाने और धन-बल, बाहुबल बढ़ाने, उसे असीम हद तक पहुँचाने में काम करने लगी. फलस्वरूप राजनीति में अपराधी तत्वों का बोल-बाला बढ़ने लगा, अपराधी अपना अपराध छुपाने के लिए और राजनेता अपना आधार बढ़ाने के लिए एक दूसरे को सहयोग करने लगे.
जनता में नेताओं के प्रति अविश्वास बढ़ने लगा और यही जनता मतदान केंद्र तक जाने में भी कतराने लगी. उन्हें मतदान केंद्र तक लाने के लिए के विभिन्न प्रकार के प्रलोभनों और हथकंडो का इस्तेमाल होने लगा, जनता भी इन्ही प्रलोभनों, हथकंडों का शिकार हो गलत प्रतिनिधि का चुनाव करने लगी और गलत प्रतिनिधि आखिर क्या करते? गलत-सलत फैसला और भ्रष्ट आचरण ही तो उनका धर्म था.
तभी १९९१ में एक चुनाव आयुक्त हुए श्री टी, एन. शेषण और उन्होंने मतदान में सुधार के लिए मतदाता पहचान पत्र (वोटर आई डी कार्ड) का प्रस्ताव रखा. प्रारंभ में भले इसका विरोध हुआ पर बाद में यह काफी लोकप्रिय हो गया, और यह हमारी पहचान का प्रमाण भी बन गया. टी. एन. शेषण से पूर्व बहुत कम लोग चुनाव आयुक्त के नाम से परिचित थे, पर शेषण का नाम हर जुबान पर था चाहे समर्थन में या विरोध में. यह चुनाव सुधारों में बहुत ही महत्वपूर्ण और कर्न्तिकारी कदम था. इसके चलते गलत या वोगस मतदान बहुत हद तक नियंत्रित हुआ.   शेषन का कहना था, "मैं वही कर रहा हूँ, जो कानून मुझसे करवाना चाहता है. उससे न कम न ज़्यादा. अगर आपको कानून नहीं पसंद तो उसे बदल दीजिए. लेकिन जब तक कानून है, मैं उसको टूटने नहीं दूँगा.'' 
आज हमारे देश का उच्चतम न्यायलय वही तो कर रहा है, पर उसे करने नहीं दिया जा रहा है. उसके राह में रोड़े अटकाने के लिए विधायिका और सरकार या तो कानून बदल दे रही है या अध्यादेश लाकर उसके इरादे को मटियामेट कर दे रही है. किन्तु आज मीडिया के माध्यम से और शिक्षा के माध्यम से जागरूकता का स्तर बढ़ा है. सभी लोग महंगाई, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, ऊँच–नीच की बढ़ती खाई से परेशान है और इससे निजात पाना चाहते हैं. पिछले दिनों अन्ना के आन्दोलन में लोकपाल बिल की मांग ने पूरे देश को झकझोर दिया था. पर राजनीति के इन चतुर खिलाड़ियों उस आन्दोलन की हवा ही निकाल दी. ‘फूट डालो और राज करो’ की रणनीति में निपुण सभी राजनेता इसमें कमोबेश एक ही रंग में दिखे.  मीडिया वालों ने भी जितनी कवरेज शुरू में की, उतनी बाद में नहीं की फलस्वरूप वह आन्दोलन अब अंतिम सांसें गिन रहा है.
इसके बाद राजनीतिक दलों को भी सूचना के अधिकार के अंतर्गत लाने की बात आयी, तो सभी राजनीती दलों ने एक मत से इसकी खिलाफत कर दी. फिर सुप्रीम कोर्ट ने जनप्रतिनिधि कानून की धारा ८(४) को रद्द करने का फैसला सुनाया तो वर्तमान सरकार ने अद्धयादेश के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को पलटने की कोशिश की. जबकि यह फैसला सभी राजनीतिक दलों के लिए चुनाव सुधार की दिशा में महत्वपूर्ण कदम था.
अब आए कांग्रेस के वर्तमान उपाध्यक्ष श्री राहुल गांधी, जिन्होंने इस अध्यादेश को बकवास और फाड़ने की सार्वजनिक बयान दे डाली. यह उनका अपने ही सरकार के प्रति बगावत थी, पर शायद उन्होंने दूर की सोची और रातों रात नायक बन गए. सभी पार्टियों, राजनेताओं, पत्रकारों, विश्लेषकों ने उनका गुणगान करना शुरू कर दिया.
एक और फैसला सुप्रीम कोर्ट का उसी दिन आया कि मतदाता निगेटिव (नकारात्मक) मतदान भी कर सकता है. यानी ई वी एम में अंतिम बटन होगा ‘इनमे से कोई नहीं’  और कोई मतदाता उन सभी उम्मीदवारों के प्रति अपना विरोध दर्ज कर सकता है. अन्ना का आन्दोलन भी इस अधिकार की मांग करता रहा है.
३० सितम्बर को चारा घोटाले के मुख्य आरोपी लालू जी के साथ कुल ४५ आरोपियों को रांची के सी बी आई कोर्ट से दोषी करार देना एक और महत्वपूर्ण कदम है, इसे भी राजनीतिक दलों को नजरंदाज नहीं करना चाहिए
अंतत: देखें, तो कुल मिलाकर चुनाव सुधार और राजनीति में स्वच्छ लोगों को लाने की प्रक्रिया तेजी से चल रही है. अगर राजनीतिक दल दागी या आरोपित व्यक्तियों को टिकट न देने पर मजबूर हो जायेगे तो अवश्य ही भले लोग राजनीति में आएंगे और देश तथा समाज का भला तभी हो सकेगा.

प्रस्तुति – जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.       

3 comments:

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    1. प्रिय जवाहर भाई अब बल मिल रहा है चुनाव आयोग को इस मौके का अवश्य लाभ लेना चाहिए और मतदाता और मतदान का महत्व दिखा ही देना चाहिए उम्मीदें बहुत हैं ..सार्थक लेख उपयोगी
      भ्रमर ५

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