Monday, 23 September 2013

मुजफ्फरनगर दंगे से हमने क्या सीखा?



एक लडकी के साथ हुई छेड़छाड़ और उसके तत्काल प्रतिक्रिया के फलस्वरूप हुई तीन युवकों की हत्या सांप्रदायिक हिंसा का इतना बड़ा रूप ले लेगी, कौन जनता था. लेकिन वे लोग तो अवश्य जानते थे, जिन्होंने इसे फलने फूलने का मौका दिया. मौका ही नहीं बल्कि एक छोटी सी चिनगारी को दहकने के लिए हर प्रकार के इंधन जुटाए.
ऐसा अक्सर होता है, चाहे सांप्रदायिक दंगे हो, जातीय, भाषाई, या क्षेत्रवाद से सम्बंधित. हर मामले में दोनों पक्षों से कुछ नेता बयान जारी करते हैं, फिर बयान पर प्रतिक्रिया होती है और अन्दर अन्दर कुछ चालें चली जाती हैं. नुकसान हमेशा आवाम का होता है, पिसती, मरती है, हमेशा ही गरीब जनता. इन दंगों का शिकार कोई बड़ा नेता नहीं होता. वो तो हमेशा सुरक्षा घेरे में चलते हैं, या घटना के इलाके में जाने से परहेज करते हैं.  आजकल संचार के माध्यम बड़े तेज हो गए हैं और वे इन ख़बरों को नमक मिर्च लगाकर अपनी तरफ से पेश करते हैं, भले ही उनके पत्रकार भी इन दंगों में शिकार हो जाते हैं, पर उन्हें तो स्टूडियो में बैठकर खबरें चलानी होती है. विभिन्न पार्टियों के नेता जैसे इन्तजार करते रहते हैं, ऐसे मौके पर एक दूसरे पर दोषारोपण करने का. फल परिणाम तो गरीब जनता ही भोगेगी, शिविरों में अपने बचे खुचे परिवार को शरणार्थी की तरह बचायेगी और नई सृष्टि, जो विधाता की देन है, उसे भी सम्हालेगी.
मुस्लिम संगठनों ने भी कहा है कि दंगों में शामिल दलों की न केवल मान्यता खत्म हो और दंगा भड़काने में शामिल नेताओं के चुनाव लड़ने पर भी प्रतिबंध लगना चाहिए।
प्रस्ताव में दंगे को सुनियोजित बताते हुए कहा गया है कि ऐसा चुनावी लाभ हासिल करने के लिए किया गया।
इन दंगों पर सख्ती दिखाते हुए सुप्रीम कोर्ट जांच के साथ राहत व पुनर्वास कार्यो की आखिर तक निगरानी के लिए तैयार हो गया है। शीर्ष अदालत ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में लंबित मामले भी अपने यहां स्थानांतरित कर लिया है। अब तक एक-दूसरे पर तोहमत लगा रही केंद्र और उप्र सरकार ने कोर्ट में सुर में सुर मिला लिया है। केंद्र सरकार ने राज्य सरकार को हर तरह की मदद देने की प्रतिबद्धता जताते हुए साफ कर दिया है कि कानून व्यवस्था राज्य का मसला है। वह उसमें दखल नहीं देगी। वहीं राज्य सरकार ने मामले के राजनीतिकरण के प्रयासों का विरोध करते हुए कहा कि वह पीड़ितों को राहत और मदद देने में केंद्र सरकार के साथ मिलकर काम कर रही है।
प्रदेश सरकार ने पीड़ितों को दी जा रही मदद का विस्तृत ब्योरा देते हुए कहा कि इसे अपर्याप्त नहीं कहा जा सकता। राज्य केंद्र के साथ मिलकर काम कर रहा है। मामले को राजनीतिक रंग नहीं दिया जाना चाहिए। हमारे देश में दंगे होते हैं जो दुर्भाग्यपूर्ण है। गुजरात इसका एक उदाहरण है। ताजा स्थिति पूछे जाने पर उन्होंने बताया कि अब तक हिंसा में 50 लोग मारे गए हैं। जबकि 27 गंभीर और 46 को हल्की चोटें आई हैं। करीब 42000 लोग मुजफ्फरनगर और शामली से विस्थापित हो चुके हैं। इस पर कोर्ट ने चिंता भी जताई। कोर्ट ने सरकार को 26 सितंबर तक स्थिति रिपोर्ट पेश करने का आदेश देते हुए सुनवाई टाल दी।
अब चाहे मामला सुप्रीम कोर्ट में चले या हाई कोर्ट में जो क्षति हो चुकी है उसकी भरपाई बड़ी  मुश्किल है
एक रिपोर्ट के अनुसार मुजफ्फरनगर और शामली में हुई हिंसा ने जिले के उद्योग, कारोबार और बाजार को बदरंग कर दिया। इस हिंसा से जिले की औद्योगिक इकाईयों और व्यापारिक प्रतिष्ठानों को 265 करोड़ रुपये का फटका लगा है।

शामली जिले में करीब 400 छोटी बड़ी औद्योगिक इकाइयाँ हैं. इनमें लोहा, पेपर, बर्तन, रिम-धुरा एक्सल, केमिकल, कुकर, प्लास्टिक बर्तनों की 150 बडे़ कारखाने हैं। इंडियन इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के मुताबिक इन इकाईयों से प्रतिदिन करीब 20-25 करोड़ रुपये का कारोबार होता है। करीब 25 हजार से अधिक कर्मचारी-श्रमिक काम करते हैं। पिछले दिनों की हिंसा ने औद्योगिक इकाईयों की कमर ही तोड़कर रख दी।
तीन सितंबर को शहर में हुई हिंसा के बाद से फैक्ट्रियों में कर्मचारी ड्यूटी पर नहीं आ रहे। 40 फीसदी लेबर भी काम पर नहीं आई। रात की शिफ्ट में तो लेबर ने काम करने से ही मना कर
हिंसा के कारण ट्रांसपोर्टर शामली में अपनी गाड़ियां भेजने से कतराए। नतीजतन यहां से न तो माल जा सका ओर न ही कच्चा माल ही बाहर से आ सका। फैक्ट्रियां कच्चे माल के अभाव में कई दिन बंद रही।
लिसाढ़ गांव में हुई हिंसा के चलते यहां लगी करीब 20-25 हैंडलूम इकाईयां तबाह हो गई। इन छोटी हैँडलूम वाले गांव में दरी चादर तैयार कर पानीपत आदि स्थानों पर भेजते थे। हिंसा में सब कुछ बर्बाद हो गया। इनके चलाने वाले गांव से पलायन कर जा चुके हैं।
सारांश यह है कि नेता लोग ही दंगे करवाते हैं और उसपर अपनी राजनीतिक रोटियां भी सेंकते हैं. हम कब सम्ह्लेंगे. जब पूरी शांति हो जायेगी तो एक दूसरे की जान के दुश्मन बने लोग क्या आपस में मिलना जुलना छोड़ देंगे. ये नेता भी तो फिर से एक साथ मिल जाते हैं. फिर हम इन्हें मौका क्यों देते हैं. किसी फिल्म में शायद दिखाई गयी थी – आपस में घृणा फैलाने के लिए एक ही शक्स रात के अँधेरे में गाय काट कर मंदिर के सामने फेंक देता है और सूअर काटकर मस्जिद के सामने. शुबह शुरू हो जाता है दंगा, लूट मार, एक दुसरे के जान के दुश्मन ......
नहीं ऐसी घृणा की राजनीति जो करते हैं, उन्ही को मुबारक! हम सब भारतीय एक होकर राष्ट्र का मान बढ़ाएं और देश के बाहरी दुश्मनों से लोहा लें. देश के उत्थान के लिए कदम से कदम मिलाकर चलें. आतंकवादी, बलात्कारी, दुष्कर्मी, हत्यारे का कोई धर्म नहीं होता. वे सभी अपराधी हैं और उनके साथ कानून के तहत कार्रवाई होनी चाहिए!  
जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.

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