Wednesday, 28 August 2013

आगे आगे देखिये होता है क्या?

आगे आगे देखिये, होता है क्या !
पहले चीन और पाकिस्तान की गुर्राहट, फिर रुपये का गिरना और प्याज का ऊपर चढ़ना. कही अति बृष्टि तो कहीं अल्प बृष्टि. ऐसे में खाद्य सुरक्षा बिल ...न बाबा न!
पहले गंभीर विपत्ति को सम्हालो तब तक लोग इंतज़ार कर लेगे ... इंतज़ार ही तो कर रहे हैं गत ६६ सालों से... कुछ महीने और कर लेंगे.. बहुत बड़ा परिवर्तन होने वाला है! यह परिवर्तन होकर रहेगा.  
परिस्थितियाँ प्रतिकूल है, सत्तादल के लिए ... विपक्ष के लिए वही अनुकूल हो जाता है. दो ध्रुव हैं, जनता किसी एक पास तो जायेगी ही. वैसे भी किसी के साथ ज्यादा दिन रहते रहते विकर्षण अपने आप होने लगता है. यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया है. परिवर्तन ही जिन्दगी है.
इसी बीच एक और सामूहिक बलात्कार!.... १६ दिसंबर २०१२ को बीते हुए लगभग  नौ महीने हो गए. उस दिन की काली रात दिल्ली की थी और २२ अगस्त की काली रात मुंबई की थी. क्या फर्क पड़ता है किसी को. दिल्ली और मुंबई होने से हो हंगामा ज्यादा होता है.... राजनीति भी ज्यादा होती है.... संसद तक में गूँज सुनाई पड़ जाती है, कुछ झंडे चमक जाते है, रास्ते बंद हो जाते हैं, संसद ठप्प हो जाती है. पुलिस और गृह मंत्री के बयान आ जाते है ...कुछ आरोपी पकड़ भी लिए जाते हैं ...उसके बाद शुरू होती है, न्यायिक प्रक्रिया और सब शांत. फिर करते रहते है, कोई बड़ी घटना का इन्तजार! ... इस बीच घटनाएँ घटती रहती है. टी वी या प्रिंट मीडिया के किसी कोने में खबर आ भी जाय तो सब इसे स्वाभाविक प्रक्रिया मानकर शांत हो जाते हैं.
क्यों किसी मासूम, नाबालिग के साथ छोटे शहरों में होने वाला जुर्म उतनी सुर्खियाँ और सहानुभूति नहीं बटोर पाता, क्यों उसके साथ हुए जुर्म को उतनी तरजीह नहीं दी जाती ... तरजीह देने से भी किसी न्यायाधिपति के कानों पर जूँ नहीं रेंगती. त्वरित न्यायालय का क्या मतलब होता है? अगर त्वरित अदालतें भी उसी रफ़्तार से चलेंगी, तो घटनाएँ त्वरित गति से बढ़ती जायेंगी, अपराधी गिरफ्तार होते रहेंगे. फिर जेल भी अपराधियों से भर जायेंगे, और नए जेल का निर्माण हो जायेंगा,  पर अदालतें अपनी रफ़्तार से चलेंगी. अपराध करने के लिए २४ घंटे और ३८५ दिन.... फैसला सुनाने के लिए कुछ घंटे, .... नियमित अवकाश के साथ. क्या अब कानून की पढाई पढ़ने में लोगों की रूचि कम हो गयी है, या किसी भी अदालत के बाहर बैठे वकीलों की दुर्दशा देखकर कानून पढ़ना नहीं चाहते! ये वकील लोग भी क्या सचमुच किसी अपराधी को सजा दिलाना चाहते हैं कि अपनी जेबें गरम करना जानते हैं.
अगर किसी इंजीनियर या डाक्टर से गलती हो गयी तब तो ढेरों सवाल पूछे जायेंगे, पर वकील या न्यायाधीश की गलती हो तो ऊपर का न्यायालय और उसके वकील और जज और ज्यादा फीश और ज्यादा समय ... आखिर इन सबका अंत कहाँ जाकर होगा? अपराध बढ़ते ही जायेंगे, क्योकि वे जानते है कि सजा तो होनी नहीं है,... केस चलते रहेंगे. कभी न कभी बाहर छूट कर आ जायेंगे और बड़े गर्व से मुस्कुराएंगे. 
अपराध करने वाला कोई बड़ा शक्स हो तो उसके ऊपर हाथ डालने में पुलिस भी सौ बार सोचेगी और तबतक राजनीतिक दल अपनी रोटियां सेंकते रहेंगे. मुझे यह समझ में नहीं आता ये तथाकथित बड़े  लोग कब आम आदमी बन कर सोचेंगे. एक महिला, लड़की या बालिका जो इस दुष्कर्म का शिकार होती है, कितनी गंभीर शारीरिक और मानसिक यातना से गुजरती हैं और कितना संताप उनके रिश्तेदारों को होता है!    
जज साहब, सुरक्षा कर्मी, राजनीतिक दल, समाज सेवी संस्थाएं, मीडिया कर्मी, साहित्यकार गण, सभी धर्मावलम्बियों, आम आदमी सबसे मेरी हाथ जोड़कर प्रार्थना है – आप एक बार उस पीड़ित की जगह पर खुद को या अपने परिवार के किसी सदस्य को रखकर सोचिये – आप पर क्या बीतती? आपको खुद जवाब मिल जाएगा... इसके लिए कोई सत्संग या चिंतन शाला की जरूरत नहीं पड़ेगी, आप को अपने आप सत्य के दर्शन हो जायेगे! अपने अन्दर अवश्य झांकिए! 
इस भीषण परिस्थिति में ८४ कोसी परिक्रमा करने की जिद और उसे रोकने के लिए पूरी पुलिस को लगा देना कितना वाजिब है, मुझे नहीं मालूम. पर परिक्रमा तो हो कर रहेगी चाहे उसे साधु संत करें या पुलिस तथा मीडिया कर्मी ... हम सभी घर बैठे टी वी देखते रहेंगे इस जिज्ञाशा के साथ कि अगले पल क्या होने वाला है.
बहरहाल ८४ कोसी परिक्रमा का हस्र हमलोग देख चुके हैं. खाद्यसुरक्षा विधेयक लोकसभा से पारित हो चूका है और रूपये की गिरावट तीव्र गति से जारी है ...जानकर लोग इसे खाद्य सुरक्षा विधेयक एवं अनेक मद में दी गयी सरकारी योगदान(सब्सिडी) को दे रहे हैं. कोई तुरंत लोकसभा भंग कर चुनाव की मांग कर रहा है तो वित्त मंत्री धैर्य धारण करने को कह रहे हैं.
आज (२८.०८.१३ को) श्रीकृष्ण जन्माष्टमी है ... पूरे देश में यह दिन हर्षोल्लास और आस्था पूर्वक मनाया जा रहा है. हम सभी मिलकर भगवान श्रीकृष्ण से प्रार्थना करें कि पुन: अवतार लेकर विश्व को इस महान संकट की घड़ी से बाहर निकालें. जय श्रीकृष्ण! ... जय श्री राधे!   



Friday, 23 August 2013

एक और सामूहिक बलात्कार!

एक और सामूहिक बलात्कार!
१६ दिसंबर २०१२ को बीते हुए लगभग  नौ महीने हो गए. उस दिन की काली रात दिल्ली की थी और २२ अगस्त की काली रात मुंबई की थी. क्या फर्क पड़ता है किसी को. दिल्ली और मुंबई होने से हो हंगामा ज्यादा होता है.... राजनीति भी ज्यादा होती है.... संसद तक में गूँज सुनाई पड़ जाती है, कुछ झंडे चमक जाते है, रास्ते बंद हो जाते हैं, संसद ठप्प हो जाती है. पुलिस और गृह मंत्री के बयान आ जाते है ...कुछ आरोपी पकड़ भी लिए जाते हैं ...उसके बाद शुरू होती है, न्यायिक प्रक्रिया और सब शांत. फिर करते रहते है, कोई बड़ी घटना का इन्तजार! ... इस बीच घटनाएँ घटती रहती है. टी वी या प्रिंट मीडिया के किसी कोने में खबर आ भी जाय तो सब इसे स्वाभाविक प्रक्रिया मानकर शांत हो जाते हैं.
क्यों किसी मासूम, नाबालिक के साथ हुआ जुर्म उतनी सुर्खियाँ और सहानुभूति नहीं बटोर पाता, क्यों उसके साथ हुए जुर्म को उतनी तरजीह नहीं दी जाती ... तरजीह देने से भी किसी न्यायाधिपति के कानों पर जूँ नहीं रेंगती. त्वरित न्यायालय का क्या मतलब होता है? अगर त्वरित अदालतें भी उसी रफ़्तार से चलेंगी तो घटनाएँ त्वरित गति से घटती जायेंगी, अपराधी गिरफ्तार होते रहेंगे. फिर जेल भी अपराधियों से भर जायेंगे, और जेल निर्माण हो जायेंगे पर अदालतें अपनी रफ़्तार से चलेंगी. अपराध करने के लिए २४ घंटे और ३८५ दिन.... फैसला सुनाने के लिए कुछ घंटे, नियमित अवकाश के साथ. क्या अब कानून की पढाई पढ़ने में लोगों की रूचि कम हो गयी है या किसी भी अदालत के बाहर बैठे वकीलों की दुर्दशा देखकर कानून पढ़ना नहीं चाहते! ये वकील लोग भी क्या सचमुच किसी अपराधी को सजा दिलाना चाहते हैं कि अपनी जेबें गरम करना जानते हैं.
अगर किसी इंजीनियर या डाक्टर से गलती हो गयी तब तो ढेरों सवाल पूछे जायेंगे, पर वकील या न्यायाधीश की गलती हो तो ऊपर का न्यायालय और उसके वकील और जज और ज्यादा फीश और ज्यादा समय ... आखिर इन सबका अंत कहाँ जाकर होगा? अपराध बढ़ते ही जायेंगे क्योकि वे जानते है कि सजा तो होनी नहीं है,... केस चलते रहेंगे. कभी न कभी बाहर छूट कर आ जायेंगे और बड़े गर्व से मुस्कुराएंगे. 
अपराध करने वाला कोई बड़ा शक्स हो तो उसके ऊपर हाथ डालने में पुलिस भी सौ बार सोचेगी और तबतक राजनीतिक दल अपनी रोटियां सेंकते रहेंगे. मुझे यह समझ में नहीं आता ये तथाकथित बड़े  लोग कब आम आदमी बन कर सोचेंगे. एक महिला, लड़की या बालिका जो इस दुष्कर्म का शिकार होती है कितनी गंभीर शारीरिक और मानसिक यातना से गुजरती हैं और कितना संताप उनके रिश्तेदारों को होता है!     
जज साहब, सुरक्षा कर्मी, राजनीतिक दल, समाज सेवी संस्थाएं, मीडिया कर्मी, साहित्यकार गण, सभी धर्मावलम्बियों, आम आदमी सबसे मेरी हाथ जोड़कर प्रार्थना है – आप एक बार उस पीड़ित की जगह पर खुद को या अपने परिवार के किसी सदस्य को रखकर सोचिये – आप पर क्या बीतती? आपको खुद जवाब मिल जाएगा... इसके लिए कोई सत्संग या चिंतन शाला की जरूरत नहीं पड़ेगी, आप को अपने आप सत्य के दर्शन हो जायेगे! अपने अन्दर अवश्य झांकिए! 


Friday, 16 August 2013

जश्ने आजादी!

१५ अगस्त
स्वतंत्र भारत
आभा में रत
यही है हमारा भारत!
मिली है, बोलने की आजादी
नेताओं को
मिली है, कुछ भी करने की आजादी
नेताओं को
मिली है,
गरीबी को परिभाषित करने की आजादी
नेताओं को!
“भारत आगे बढ़ रहा है
गरीब भी अब खा रहे हैं
ज्यादा खा रहे हैं
अच्छा खा रहे हैं
मिलता है, ५ रुपये में खाना
१२ रूपये की थाली
दे ताली!
अरे महापूतों,
न कर सकते कुछ अगर
तो चिढाओ तो मत
यही रहा अगर तुम्हारा मत
तो हम दे देंगे
अपना मत
फिर कहना मत
क्योंकि भारत अभी जिन्दा है
गाँव में, गरीबों में
जिसकी तरफ
तुम्हारा रुख होता है
पांच साल में एक बार
और वो समय
आनेवाला है
अभी अभी
बताएगी तुम्हारी औकात
ये जमीं भारत भूमि!
क्योंकि हमने भी पाई है आजादी
अपने मत को इस्तेमाल करने की
आज मैं भी मना रहा हूँ
जश्ने आजादी!

Tuesday, 13 August 2013

मेरे सपनों का भारत !



१५ अगस्त स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष्य में पेश है ‘मेरे सपनों का भारत’!
*******
मेरे सपनों के भारत में, कोई न भूखा नंगा होगा.
हर लड़का लडकी के हाथ में, ऊंचा सदा तिरंगा होगा!
कोई न होगा गोरा काला, कोई न नाटा ठिंगना होगा
फूलों की खुशबू से सुरभित, अपना प्यारा अंगना होगा!
न कोई नेता न कोई क्रेता, मिलजुल कर सब काम करें
मिलकर रोटी दूध मलाई, भोजन शुबहो शाम करें.
मंदिर जाय मुस्लिम मुल्ला, राम नाम का पाठ करे
मस्जिद जाकर हिन्दू पंडित, अल्ला का भी जाप करे!
गिरिजाघर, गुरुद्वारा शोभे, एक दूसरे के सम्मुख.
मालिक सबका एक ‘वही’ है, समझें हर कोई का दुःख
दीवाली में दिए जलाएं, ईद में सब जन मिले गले.
क्रिसमस में गिरिजाघर जाकर, भूले शिकवे और गिले!
राष्ट्र की भाषा एक हो अपनी, सीखें अन्य कोई भाषा
सीमा में ना बंधे कोई भी, बोले पंजाबी बंग भाषा
आम आदमी बनकर देखे, उच्च सिंहासन का सपना
ऊंचे पद का मालिक समझे, हर कोई को ही अपना.
ऐसा भारत स्वर्ग बनेगा, नहीं चाहिए अब जन्नत.
मालिक सबका एक तुम्ही हो, पूरी कर दो यह मन्नत!
मेरे मौला राम तुम्ही हो, गुर नानक साईं बाबा.
जन्नत धरती स्वर्ग यही सब, क्या करना जाकर काबा!
धान, ज्वार, गेहूं की फसलें, देख जिया सबका हरसे
गैया, भैंसी, भेड़, बकरियां, चीता और हिरण हरसे
बादल देख मोर नाचते, पपीहा पिया पुकारे क्यों?
साजन संग मिले सजनी, फिर गीत विरह के गाये क्यों!
चोरी कोई नहीं करेगा, पुलिस थाने का न कोई काम,
दिन में मिहनत सभी करेंगे, रात करेंगे पूर्ण आराम!
दिव्य रोशनी पुलकित यामिनी, चंदा मामा देखेंगे
सूरज की किरणों से रोशन, नया सवेरा देखेंगे!
नहीं चाहिए मनमोहन, न मोदी का सुन्दर सपना!
ब्लोग्गर कवि सब मुदित मनोहर, सोहेगा अपना अंगना!
भारत माता ग्राम वासिनी, गाँव में खग कूजेंगे
वृद्धों को उनके कुटुंब जन, देवों के संग पूजेंगे!
मेरे जैसे सपने देखें, मेरे सब संगी साथी.
बुरे वक्त में साथ निभाए, न होगा कोई घाती!
ऐसा मैंने सपना देखा, मित्र मेरे सब आन मिले
हर्ष के आंसू निकले दृग से, जब हम सब आ मिले गले!…

Thursday, 8 August 2013

शिव बाबा की महिमा

शिव बाबा की महिमा
शिव बाबा की कृपा से, सब काम हो रहा है
हम माने या न माने, कल्याण हो रहा है!
खुद विष का पान करके, अमृत किया हवाले,
आशीष सबको देते, विषधर गले में डाले.
तन में भभूत लिपटे, तिरसूल को सम्हाले
आये शरण में कोई, उसको गले लगा ले. 
हम भक्त हैं उन्ही के, ये भान हो रहा है! हम माने या न माने कल्याण हो रहा है!
रावण भी उनको भजता, राम जी भी मानें,
जब भी पड़ी जरूरत, देवों की बात माने
धारे हैं रूप कपि का, हनुमान उनको जाने
रावण की लंका पहुंचे, सीता का हाल पाने    
कपी रूप में वही हैं, अब भान हो रहा है , हम माने या न माने कल्याण हो रहा है!
माता सती के मन में संशय कभी हुआ था
बाबा के मन में उस दिन, संताप ही हुआ था.
माता को त्याग मन से, प्रत्यक्ष न कुछ कहा था.
पिता का यज्ञशाला, सती ने ही खुद कहा था
पूजित अन्य सुर सब, शिव अपमान हो रहा है! हम माने या न माने कल्याण हो रहा है!
डांटा सती ने पितु को, खुद को भी खूब कोसा 
जीवित न मैं रहूंगी,  अपने ही मन में सोचा 
बलिदान की खुदी को, अग्नि में तन को झोंका
ऐसा भी कृत्य होगा, था न किसी ने सोचा!
दक्ष राज को ग्लानी, का भान हो रहा है . हम माने या न माने कल्याण हो रहा है!
शिव ने उठाया त्रिशूल, सर दक्ष का काट डाला  
आई जब उन्हें दया, तब बकरे का जोड़ डाला
हिमवान के घर सती ने, कन्या का रूप ढाला
यह है विधान विधि का, मैना ने उनको पाला!
घनघोर तप से गौरी को ज्ञान हो रहा है . हम माने या न माने कल्याण हो रहा है!
बालक हूँ बाबा तेरा, तप क्या मैं कर सकूंगा,
अंतर्मन साफ़ कर के, तेरा नाम ही जपूंगा
दुखियों को दान देकर, संतुष्ट हो सकूंगा
हो ना अहित किसी का, कोशिश मैं यही करूँगा
तू सत्यम शिवम सुन्दरम, सद्ज्ञान हो रहा है. हम माने या न माने कल्याण हो रहा है!

जवाहर लाल सिंह 

Tuesday, 6 August 2013

दुर्गा शक्ति - ईमानदार अधिकारियो का जमाना गया?


लखनऊ।। आईएएस दुर्गा शक्ति नागपाल की पहली पोस्टिंग ग्रेटर नोएडा में हुई। वह सब-डिविजनल मैजिस्ट्रेट (एसडीएम) बनकर आई थीं। इनकी पोस्टिंग के मुश्किल से 6 महीने हुए थे कि अखिलेश यादव सरकार ने उन्हें सस्पेंड कर दिया। शनिवार(२७.०७.१३) को नागपाल ने ग्रेटर नोएडा में अवैध रूप से सरकारी जमीन पर बनाई जा रही मस्जिद की दीवार को तोड़ने का आदेश दिया था। उत्तर प्रदेश की अखिलेश यादव सरकार का कहना है कि नागपाल ने रमजान के पवित्र महीने में समस्या खड़ी करने वाला फरमान जारी किया था। अखिलेश यादव ने कहा कि सांप्रदायिक तनाव से बचने के लिए हमें यह फैसला लेना पड़ा। मुख्यमंत्री के इस फैसले पर यूपी आईएएस असोसिएशन ने नाराजगी जताई है।
यूपी आईएएस असोसिएशन के सचिव पार्थसारथी सेन शर्मा के साथ दुर्गा नागपाल ने यूपी के ऐक्टिंग मुख्य सचिव आलोक रंजन से मुलाकात की। असोसिएशन ने आलोक रंजन से निलंबन वापस लेने की मांग की है। इस बीच यूपी सरकार ने इस निलंबन पर सफाई दी है कि दुर्गा सांप्रदायिक सौहार्द्र कायम रखने में नाकाम रही हैं।
अखिलेश यादव सरकार के इस तर्क को लोग बहाने के रूप में देख रहे हैं। लोगों का मानना है कि दुर्गा शक्ति नागपाल जिस तरीके से काम कर रही थीं, उसका नतीजा अखिलेश सरकार में यही होना था। नागपाल रेत खनन माफियाओं पर लगातार शिकंजा कसती जा रही थीं। ऐसे में अखिलेश सरकार पर खनन माफियाओं का भारी दबाव था कि नागपाल को हटाया जाए।

नागपाल 2009 बैच की आईएएस ऑफिसर हैं। कुछ हफ्तों से ग्रेटर नोएडा में अवैध खनन पर लगाम कसने के लिए नागपाल युद्धस्तर पर काम कर रही थीं। उन्होंने यमुना नदी से रेत से भरी 300 ट्रॉलियों को अपने कब्जे में किया था। नागपाल ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में यमुना और हिंडन नदियों में खनन माफियाओं पर नजर रखने के लिए विशेष उड़न दस्तों का गठन किया था। नागपाल ने सस्पेंड होने से पहले ही कहा कि था - "इन माफियाओं पर कार्रवाई की वजह से धमकियां मिलती हैं।"

नागपाल पर सरकार के फैसले के बाद विपक्ष हमलावर तेवर में आ गया है। विपक्ष ने एक सुर में कहा कि अखिलेश सरकार को माफिया चला रहे हैं, इसलिए ईमानदार आईएएस को सजा दी गई। बीजेपी से सीनियर नेता कलराज मिश्रा ने कहा कि अब यह साबित हो गया है कि सरकार उन ऑफिसरों को बर्दाश्त नहीं करेगी जो माफियाओं के खिलाफ हैं। आखिर दुर्गा शक्ति नागपाल की गलती क्या थी कि उन्हें सस्पेंड कर दिया गया? पहले से ही उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था को लेकर चिंता कायम है। वहीं अखिलेश सरकार के इस फैसले की चौतरफा आलोचना हो रही है।
सवाल यह है कि क्या ईमानदार अफसरों का जमाना चला गया!..... इसके पहले हरियाणा सरकार पर उत्पीड़न का आरोप लगाने वाले अशोक खेमका, 1991 बैच के आईएस अधिकारी हैं. 21 साल की नौकरी में 40 बार उनका तबादला हो चुका है. इस बार उनका तबादला बीज निगम में किया गया है, जहां जूनियर अफसरों को भेजा जाता है.
खेमका कहते हैं कि सरकार किसी भी पार्टी की रही हो, उन्हें हर बार अपनी ईमानदारी की सजा भुगतनी पड़ी, क्योंकि वे लगातार घपलों और घोटालों का पर्दाफाश करते रहे हैं. आपको याद होगा रोबर्ट वाड्रा और डी एल एफ के बीच 'डील' वाला मामला!
मार्च २०१२ में मध्यप्रदेश के मुरैना में अवैध उत्खनन रोकने के लिए गए भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) अधिकारी नरेन्द्र कुमार की ट्रैक्टर से कुचलकर हत्या कर दी गई.
बामौर के अनुविभागीय अधिकारी नरेंद्र कुमार इस इलाके में चल रहे अवैध उत्खनन की जांच कर रहे थे. नरेद्र कुमार ने बामौर में सड़क किनारे खड़े होकर एक ट्रैक्टर को रोककर उसकी जांच की कोशिश की, तो चालक ने ट्रैक्टर उन पर चढ़ा दिया.
बिहार के अवकाश प्राप्त डी. जी. पी.  श्री डी एन गौतम अपनी ईमानदार छवि के कारण कई बार हासिये पर डाले गए थे. अवकाश प्राप्ति के बाद भी उन्होंने झारखण्ड सरकार के सुरक्षा सलाहकार के रूप में काम किया. उन्होंने पुलिस की सुधार के लिए बिहार और झारखण्ड में बेहतर काम किया... बाद में(राजनीतिक कारणों से ही) उन्होंने स्वेच्छा से ही झारखण्ड सरकार के सुरक्षा सलाहकार पद से इस्तीफ़ा दे दिया और अब कविताएँ लिखते हैं. बिहार के ही पूर्व आइ पी एस अधिकारी किशोर कुणाल ने बिहार के नक्स्सलियों और माफियायों से लोहा लेने का काम किया था ..पर जैसे ही उनके हाथ कुछ राजनीतिज्ञों के गर्दन तक पहुँचने वाले थे, उन्हें शंट कर दिया गया ...आज वे बिहार धार्मिक न्यास बोर्ड के अध्यक्ष हैं.
जमशेदपुर के पूर्व एस पी (आइ पी एस) डॉ. अजय कुमार को भी अपनी ईमानदारी की कीमत चुकानी पडी थी और आज अपनी उसी ईमानदार छवि के  बदौलत जमशेदपुर के सांसद चुने गए और आज वे राजनीति में बेहतर काम कर रहे हैं.
इस प्रकार ऐसे अनेक ईमानदार अधिकारी हैं जिन्हें ईमानदारी का दंश झेलना पड़ा है ... मैं तो कहूँगा कि ऐसे ईमानदार छवि वाले अधिकारियों को राजनीति में भाग्य आजमाइश करनी चाहिए. किरण बेदी, अरविन्द केजरीवाल आदि ने पहल की है ..अब देखना है कि जनता उन्हें किस कदर लेती है और देश की 'दशा-दिशा' किस ओर जाती है?
(निर्झर टाइम्स में प्रकाशित )

Friday, 2 August 2013

आखिर हम भी पढ़े-लिखे लोग हैं!

आखिर हम भी पढ़े-लिखे लोग हैं!
एक हैं बंधु ..उनके आगे तिर्की लगा है यानी कि बंधु तिर्की और दूसरे हैं चमरा …लिंडा. दोनों है झारखण्ड विधान सभा के निर्दलीय विधायक. इनके बलबूते ही हेमंत सोरेन की सरकार टिकी है जो कि अभी हाल ही में मुख्य मंत्री की कुर्सी सम्हाले हैं. उनके अंदर अभीतक सिर्फ दो मंत्री हैं एक है कांग्रेस के श्री राजेंद्र सिंह और दूसरी है श्रीमती अन्नपूर्णा देवी राजद की विधायक ये तीनो लगभग अपना बराबर कद रखते हैं. फिर भी कांग्रेस नेता राजेंद्र सिंह का बोलबाला ज्यादा है क्योंकि उनकी कृपा से ही हेमंत सोरेन सोनिया गांधी का आशीर्वाद पाने में सक्षम हुए और सरकार बनाने का दावा पेश कर सके. कांग्रेस और राजद के सहयोग से बनी सरकार को निर्दलीय का भी समर्थन प्राप्त है. अब राजेंद्र सिंह ने कह दिया कि कि निर्दलीय को मंत्रीमंडल में शामिल नही किया जायेगा. अब क्या करें बंधु और चमरा… दिल्ले में डेरा जमा बैठे – कहा हमारी मांगें (मत्री पद वाली) मान ली जाय तो वे कांग्रेस के साथ मिलने को तैयार हैं.. उन्होंने तो आवेश यहाँ तक कह दिया कि अगर उनकी मान मान ली गयी तो वे अपनी(निर्दलीय पार्टी) तो क्या राजनीति भी छोड़ने को तैयार हैं. मेरा अराजनीतिक मन बड़ा बेचैन हुआ … बिना राजनीति में आए मंत्री पद कैसे प्राप्त किया जा सकता है? बहुत सोच विचार करने के बाद राजनीतिक विद्वानों से विचार विमर्श के बाद पता चला कि हमारे प्रधान मंत्री तो खालिस गैर राजनीतिक है और वे इस गरिमामयी धरती आर्यावर्त (अब भारत अर्थात इण्डिया) के प्रधान मंत्री हैं. कांग्रेस की राजनीति हमेशा हावी रही है साम दाम दंड भेद का पूरा पूरा उपयोग केवल यही पार्टी कर पाती है. बिहार से भाजपा को सत्ता से बाहर किया फिर झारखण्ड में भाजपा को हटाकर स्वयं आसीन हो गयी. अब लगता अपने विधायकों की संख्या बढ़ाने में लगी है. अभी तक कांग्रेस के पास तेरह विधायक हैं, जो कि जल्द ही बढ़कर १५ होने वाले हैं. वोट देने के लिए आप स्वतंत्र है, उसी तरह विधायक बिकने के लिए स्वतंत्र हैं!
यहाँ ज्ञातव्य है कि हेमंत सोरेन ने कांग्रेस, राजद और निर्दलीयों के समर्थन से सरकार बनाई है. सरकार में झामुमो के 18, कांग्रेस के 13, राजद के पांच, मासस के एक और छह निर्दलीय विधायक शामिल हैं. तब निर्दलीयों ने बिना शर्त (सशर्त) समर्थन की बात कही थी.
बंधु तिर्की महोदय ने आगे कहा – “आखिर हम भी पढ़े लिखे लोग हैं!”
पढ़े लिखे लोगों से पता चला कि हमारे रत्नगर्भा झारखण्ड के वर्तमान मुख्य मंत्री श्री हेमंत सोरेन भी पढ़े लिखे होनहार नौजवान हैं! यही बात श्री अखिलेश यादव (उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री) के बारे में कहा जाता है. अब पढ़े लिखे युवाओं की संख्या (जो राजनीति में अपना भाग्य आजमाईश के दौर में हैं) में लगातार वृद्धि हो रही है वे हैं आदरणीय शकुनी चौधरी के पुत्र सम्राट चौधरी, लालू पुत्र तेज प्रताप और तेजस्वी, रामविलास पुत्र चिराग पासवान!
महामहिम ठाकरे, श्री चौटाला और युवराज तक हमारी पहुँच नही है, इसलिए उनकी बात नही कहूँगा, क्या पता, मेरे ऊपर हमला ही न हो जाय!