Sunday, 23 June 2013

बरसात से बर्बादी

प्रस्तुत रचना केदारनाथ के जलप्रलय को अधार मानकर लिखी गयी है.
चौपाई -
सूरज ताप जलधि पर परहीं, जल बन भाप गगन पर चढही.
भाप गगन में बादल बन के, भार बढ़ावहि बूंदन बन के.
पवन उड़ावहीं मेघन भारी, गिरि से मिले जु नर से नारी.
बादल गरजा दामिनि दमके, बंद नयन भे झपकी पलके!
रिमझिम बूँदें वर्षा लाई, जल धारा गिरि मध्य सुहाई
अति बृष्टि बलवती जल धारा, प्रबल देवनदि आफत सारा
पंथ बीच जो कोई आवे. जल धारा सह वो बह जावे.
छिटके पर्वत रेतहि माही, धारा सह अवरुध पथ ताही.
कोई बांध सहै बल कैसे, पवन वेग में छतरी जैसे.
छेड़ा हमने ज्यों विधि रचना, विधि ने किया बराबर उतना.
पथ में शिला रेत की ढेरी, हे प्रभु, छमहु दोष सब मेरी.
भोलेनाथ शम्भु त्रिपुरारी, तुमही सबके विपदा हारी.
आफत बाद करो पुनि रचना, बड़ी भयंकर थी प्रभु घटना.
सहन न हो कछु करहु गुसाईं, तेरे शरण भगत की नाई,

दोहा- 
दीन हीन विनती करौ, हरहु नाथ दुख मोर.
आफ़तहि निकालो प्रभू, दास कहावहु तोर.

4 comments:

  1. बहुत सार्थक अभिव्यक्ति...

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    1. हार्दिक आभार श्री कैलाश शर्माजी!

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  2. पथ में शिला रेत की ढेरी, हे प्रभु, छमहु दोष सब मेरी......बहुत ही बेहतरीन रचना

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    1. हार्दिक आभार मंजूषा जी!

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