Thursday, 27 June 2013

आम आदमी

हाँ, सद्कर्म हमेशा करता आम आदमी!
फल की चिंता करता रहता आम आदमी.
पाप कर्म करने से डरता आम आदमी
अनजाने में पाप से डरता आम आदमी
धर्म कर्म में लिप्त ही रहता आम आदमी
ईश्वर में भी आस्था रखता आम आदमी
मोक्ष की चिंता करता रहता आम आदमी
तीर्थाटन करने को जाता आम आदमी!
देवभूमि में जाकर मरता आम आदमी
प्राकृत आपदा में भी मरता आम आदमी
जलधारा मे कौन है बहता आम आदमी!
धर्म आधारित दंगा करता आम आदमी
सबसे ज्यादा कौन है मरता आम आदमी
महंगाई के मार से मरता आम आदमी
टैक्स हमेशा समय से भरता आम आदमी
कानून का नित पालन करता आम आदमी
कानून के डंडे से डरता आम आदमी
सजा हमेशा ही है पाता आम आदमी
छोटा धंधा नौकरी करता आम आदमी!
हर हालत में मदद है करता आम आदमी
वोट बूथ पर जाकर देता आम आदमी
नेता का भी बना चहेता आम आदमी
नेता का शिकार भी बनता आम आदमी
जात धर्म में जाकर बंटता आम आदमी
आत्म हत्या ज्यादा करता आम आदमी!
रोज दिखावा कौन है करता आम आदमी
और कर्ज में भी है फंसता आम आदमी
किसी किसी को ख़ास बनाता आम आदमी
और जुल्म की मार है सहता आम आदमी
बीच सड़क पर कौन है मरता आम आदमी
मुआवजे के लिए भी मरता आम आदमी
दफ्तर के बाबू से भिड़ता आम आदमी
बच्चे ज्यादा पैदा करता आम आदमी
सदा शिकायत करता रहता आम आदमी
इज्जत की चिंता भी करता आम आदमी
ईश्वर को भी खूब मानता आम आदमी
उनसे दया की आशा रखता आम आदमी
रक्षा मेरी करो ये कहता आम आदमी
रोज रोज बंद कौन है करता आम आदमी
बंद की पीड़ा कौन है सहता आम आदमी
नेताओं की ढाल है बनता आम आदमी
शिकार आतंकी का बनता आम आदमी
आतंकी भी कौन है बनता आम आदमी
सेना पुलिस में भरती होता आम आदमी
कभी जुल्म तब वो ही करता आम आदमी
आदेश पालन वो ही करता आम आदमी
उसका डंडा कौन है सहता आम आदमी
सीमा की रक्षा है करता आम आदमी
विपदा से भी रक्षा करता आम आदमी
और ना बदले में कुछ लेता आम आदमी
सदा अभाव के बीच ही रहता आम आदमी!
नई नई जिज्ञाषा रखता आम आदमी!
अन्दर रोता बाहर हँसता आम आदमी!
अपनों की चिंता में मरता आम आदमी!
हर कोई की बातें सुनता आम आदमी!
रोज नई कविताएँ लिखता आम आदमी!
कविता लिखकर खुद ही पढ़ता आम आदमी!
आम आदमी का गुण गाता आम आदमी
अब जग जाओ ये भी कहता आम आदमी

Sunday, 23 June 2013

बरसात से बर्बादी

प्रस्तुत रचना केदारनाथ के जलप्रलय को अधार मानकर लिखी गयी है.
चौपाई -
सूरज ताप जलधि पर परहीं, जल बन भाप गगन पर चढही.
भाप गगन में बादल बन के, भार बढ़ावहि बूंदन बन के.
पवन उड़ावहीं मेघन भारी, गिरि से मिले जु नर से नारी.
बादल गरजा दामिनि दमके, बंद नयन भे झपकी पलके!
रिमझिम बूँदें वर्षा लाई, जल धारा गिरि मध्य सुहाई
अति बृष्टि बलवती जल धारा, प्रबल देवनदि आफत सारा
पंथ बीच जो कोई आवे. जल धारा सह वो बह जावे.
छिटके पर्वत रेतहि माही, धारा सह अवरुध पथ ताही.
कोई बांध सहै बल कैसे, पवन वेग में छतरी जैसे.
छेड़ा हमने ज्यों विधि रचना, विधि ने किया बराबर उतना.
पथ में शिला रेत की ढेरी, हे प्रभु, छमहु दोष सब मेरी.
भोलेनाथ शम्भु त्रिपुरारी, तुमही सबके विपदा हारी.
आफत बाद करो पुनि रचना, बड़ी भयंकर थी प्रभु घटना.
सहन न हो कछु करहु गुसाईं, तेरे शरण भगत की नाई,

दोहा- 
दीन हीन विनती करौ, हरहु नाथ दुख मोर.
आफ़तहि निकालो प्रभू, दास कहावहु तोर.

Sunday, 16 June 2013

रवि महिमा

रवि महिमा- ॐ श्री सूर्याय नम:
चौपाई – रवि की महिमा सब जग जानी, बिनू रवि संकट अधिक बखानी.
शुबह सवेरे प्रगट गगन में, फूर्ति जगावत जन मन तन में!
दूर अँधेरा भागा फिरता, सूरज नहीं किसी से डरता.
आभा इनका सब पर भारी, रोग जनित कीटन को मारी
ग्रीष्म कठिन अति जन अकुलानी, शरद ऋतू में दुर्लभ जानी
ग्रीष्महि जन सब घर छुप जावें, शरद ऋतू में बाहर आवें.
गर्मी अधिक पसीना आवे, मेघ दरस न गगन में पावे.
पावस मासहि छिप छिप जावें. जलद बीच नजर नहीं आवे.
हल्की बारिश में दिख जावें, इन्द्रधनुष अति सुन्दर भावे.
दोहा - कबहू रवि घन में छिपे, कबहू प्रगटे सुदूर
लुक्का छिप्पी करत हैं, नभ से निकले नूर.
सूरज जग के त्राण हैं, पूजा करिए जरूर.
जो जन सूरज भगत हैं, तन से निकले नूर!