Sunday, 1 September 2019

सरकार ने भी माना – मंदी है!


चारो तरफ से उठ रही मंदी के शोर के बीच आखिर सरकार ने भी माना कि मंदी है, तभी उसे रिज़र्व बैंक के आपातकालीन कोष से 1.76 लाख करोड़ रुपये लेने पड़े. कई तरह के आर्थिक सुधार के कदम उठाने पड़े, कई राष्ट्रीय बैंकों के विलय कर खर्च में कटौती और ऋण देने में आसानी के कदम उठाने पड़े. अन्यान्य राष्ट्रीय, अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दों के साथ भावनात्मक को हवा देने के बावजूद भी जमीनी स्तर पर कार्रवाई की आवश्यकता महसूस की गई. काश कि ये सब कदम पूर्व में उठाये जाते और आद्योगिक मंदी को रोकने का सकारात्मक प्रयास किया गया होता. पता नहीं प्रधान मंत्री और उनके सलाहकारों को यह बात पहले क्यों नहीं समझ में आई? ऑटोमोबाइल उद्योग, कपड़ा उद्योग, रियल एस्टेट से लेकर कृषि क्षेत्र में अभूतपूर्व गिरावट को आखिर कबतक नजरअंदाज किया जा सकता था.
इस बीच पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने देश की जीडीपी, अर्थव्यवस्था में मंदी और नौकरियों में कमी को लेकर मोदी सरकार पर निशाना साधा है. उनका कहना है कि फिलहाल देश की स्थिति बेहद चिंताजनक है. पिछली तिमाही की सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की वृद्धि दर 5 फीसदी इस बात के साफ संकेत देती है कि हम एक लंबे समय से मंदी के बीच में हैं.
उन्होंने कहा, देश में इससे कहीं ज्यादा दर पर वृद्धि की क्षमता है लेकिन मोदी सरकार के कुप्रबंध के कारण आज अर्थव्यवस्था में मंदी देखने को मिल रही है. मनमोहन सिंह ने कहा, यह विशेष रूप से परेशान करने वाला तथ्य है कि मैन्यूफैक्टरिंग सेक्टर की वृद्धि 0.6% से कम हो रही है. इससे ये साफ पता चलता है कि हमारी अर्थव्यवस्था अभी तक नोटबंदी जैसी गलती और जल्दबाजी में लागू की गई जीएसीटी से उबर नहीं पाई है.
पूर्व प्रधानमंत्री ने कहा, घरेलू मांग की स्थिति बेहद चिंताजनक है और खपत में वृद्धि भी 18 महीने के निचले स्तर पर है. नाममात्र जीडीपी विकास 15 साल के निचले स्तर पर है.
वहीं बढ़ती बेरोजगारी के बारे में बात करते हुए उन्होंने इसकी बड़ी वजह मोदी सरकार की नीतियों को बताया. उन्होंने कहा, केवल ऑटोमोबाइल सेक्टर में ही 3.5 लाख लोग अपनी नौकरी खो चुके हैं. इसी तरह अनौपचारिक क्षेत्र में बड़े पैमाने पर नौकरी का नुकसान होगा. इसके अलावा किसानों के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा, किसानों को पर्याप्त मूल्य नहीं मिल रहा है और ग्रामीण आय में गिरावट आई है.
मनमोहन सिंह ने कहा, कि संवैधानिक संस्थाओं पर हमले किए जा रहे हैं. सरकार ने आरबीआई से 1.76 लाख करोड़ रुपये लिए, लेकिन उसके पास कोई योजना नहीं है कि इस पैसे के साथ क्या होगा. वहीं सरकार जो डेटा उपलब्ध करती है उसकी विश्वसनियता भी सवालों के घेरे में आ गई है. बजट की घोषणाओं को वापस लिया गया, जिससे अंतरराष्ट्रीय निवेशकों का विश्वास डगमगा गया. उन्होंने कहा कि भू-राजनीतिक बदलाव के कारण वैश्विक व्यापार में पैदा हुए मौकों का लाभ लेने में भारत नाकाम रहा और वह अपना निर्यात तक बढ़ा नहीं पाया. मोदी सरकार में आर्थिक प्रबंधन की यह हालत है.
वहीं पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चह्वाण ने भी कहा कि केंद्र कश्मीर, अनुच्छेद 370 और पाकिस्तान पर ध्यान केंद्रित कर रहा है, इसलिए कोई भी अर्थव्यवस्था पर नजर नहीं रख रहा है. उन्होंने केंद्र सरकार से जीडीपी वृद्धि दर के चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में गिरकर पांच फीसदी पर पहुंचने पर पांच ट्रिलियन डॉलर अर्थव्यवस्था बनाने की योजना के बारे में सवाल किया. चह्वाण ने कहा, 'वृद्धि दर गिरकर पांच फीसदी पर पहुंचना हैरान करने वाला है.'
उन्होंने कहा, 'अगर आप पिछली पांच तिमाहियों पर नजर डालें तो पिछले साल इस दौरान जीडीपी आठ फीसदी थी और फिर यह गिरकर सात प्रतिशत, 6.6 प्रतिशत, 5.8 प्रतिशत और आखिरकार अब पांच प्रतिशत पर आ गई. यह गिरावट तेजी से हुई.'
झाड़खंड का जमशेदपुर एक बहुत बड़ा औद्योगिक शहर है. यहाँ पर टाटा ग्रुप का टाटा स्टील, टाटा मोटर्स, टिन प्लेट, ट्यूब के अलावा अन्य इंजीनियरिंग और मैन्युफैक्चरिंग की छोटी-बड़ी कंपनियां और सहायक कंपनियां हैं. ऑटोमोबाइल क्षेत्र में मांग की कमी के कारण टाटा मोटर्स का उत्पादन ठप्प पड़ा है, फलस्वरूप उस पर आधारित सैंकड़ों कंपनियां बंद हो गईं या बंदी के कगार पर हैं. उन पर आश्रित निम्न और मध्यम आय ग्रुप वाले हजारों कामगार बेकार हुए साथ ही उनपर आश्रित दूकानदार भी बेहाल हुए हैं. पारले बिस्कुट से लेकर हीरा व्यापार तक प्रभावित हुआ है. रियल एस्टेट से शेयर मार्केट भी मंदी से जूझ रहा है. बैंकों का NPA लगातार बढ़ रहा है. अब बैंक द्वारा ऋण के ब्याज दर घटाए जा रहे हैं तो घरेलू बचत योजनाओं के भी ब्याज दर घटाए जा रहे हैं. तो छोटी बचत कर बैंकों या पोस्ट ऑफिस में पैसा रखने वालों को भी कम रुपये मिल रहे हैं. नौकरियां जा रही हैं, बेरोजगारी बढ़ रही है तो लोगों के खरीदने की क्षमता में भी कमी हो रही है. लोग अगर खरीदेंगें नहीं तो मांग बढ़ेगी कैसे और फिर उत्पादन कैसे बढ़ेगा?
हाँ, यह बात अलग है कि विश्व बाजार में हो रहे उथल-पुथल का भी असर अपने देश में होना स्वाभाविक है. मॉनसून का अनियमित प्रभाव भी कृषि को बहुत हद तक प्रभावित करता है. इस साल कहीं पर या तो अतिबृष्टि से नुक्सान हुआ है तो कहीं पर कम बारिश से सूखे की स्थिति का सामान करना पड़ा है. इसका असर कृषि उत्पादों पर होना स्वाभाविक है और कृषि आधारित बहुत सारे उद्योग और अर्थ व्यवस्था प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकती.
सरकार कदम उठा रही है, पर सारा बोझ फिर से आम आदमी पर पड़ रहा है. जैसे ट्रेनों के टिकट पर सेवा शुल्क पर बढ़ोत्तरी, बैंकों की विभिन्न सेवाओं पर शुल्क लगाना, और ऑटोमोबाइल उत्पादों, उसके पंजीयन शुल्क, सड़क शुल्क और बीमा राशि में हर साल बढ़ोत्तरी भी आम आदमी के व्यय-भार को बढ़ाता है.
आम आदमी पर ही पूरी अर्थ-व्यवस्था चलती है और आम आदमी हर बार प्रभावित भी होता है. यही आम आदमी सरकारों के बनाने बिगाड़ने में भी अहम भूमिका निभाता है. यह बात सही है कि भावनात्मक मुद्दे को उछालकर तत्काल राजनीति की जा सकती है, पर हर हाथ को काम और उसके अनुसार उसकी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति भी सरकार का दायित्व होता है. सरकारें होती ही हैं इसीलिए, अत: वर्तमान सरकार भी देर से ही सही, जागी है तो उसे तमाम अर्थशास्त्रियों और समाजशास्त्रियों के साथ विचार-विमर्श कर तत्काल और लम्बी अवधि के लिए भी नीति निर्धारण करना चाहिए जिससे देश की अर्थव्यवस्था पटरी पर आये और निराशा का दौर समाप्त हो.
पहले भी मंदी आती रही हैं, प्राकृतिक आपदाएं आती रही हैं और सभी सरकारें यथोचित कदम उठाती रही हैं. उम्मीद है और ऐसा देखा भी जा रहा है, वर्तमान सरकार भी कदम उठा रही है. हमें आशान्वित रहना चाहिए कि आगे अच्छे दिन आयेंगे. हर रात के बाद सवेरा होता है. अस्त के बाद उदय भी होता है.
अभी गणेश चतुर्थी के बाद ही त्योहारों का मौसम आ रहा है. उम्मीद है लोग संचित धन से भी त्योहारों के लिए खरीददारी करेंगे ही, और बाजारों में भी रौनक लौट आयेगी. सभी पाठकों और आम नागरिकों को आनेवाले सभी त्योहारों की बधाई और शुभकामनाएं! हम सभी ईश्वरीय शक्ति में विश्वास रकहते हैं. वही सबके पालनहार भी हैं और विघ्नहर्ता भी हैं. इसलिए हम सभी उसी ईश्वरीय शक्ति को एक बार पूर्ण समर्पण के साथ मन से याद करें और अपना काम ईमानदारी के साथ करें! जय श्री गणेश! जय माँ दुर्गे! जयहिंद! वन्दे मातरम!
-जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर 

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