Sunday, 20 May 2018

कर्नाटक में लोकतंत्र की जीत!


वाराणसी का पुल तो उसी दिन गिर गया था जिस दिन भाजपा को सबसे बड़ी पार्टी के रूप जीत की खुशी मनाने का दिन था. प्रधान मंत्री ने शाम को अपने वक्तव्य में इसकी चर्चा भी की थी. कोई भी लापरवाही बड़ी दुर्घटना का कारण बन सकती है, इस बात को हमेशा याद रखना चाहिए. अति आत्मविश्वास और अति आत्मश्लाघा अक्सर धोखा दे जाती है.
२८ मई १९९६ को माननीय श्री अटल बिहारी बाजपेयी सबसे बड़े दल के नेता के रूप में संख्या बल नहीं होने के कारण विश्वास मत का सामना करने से पहले ही प्रधान मंत्री पद से इस्तीफ़ा दे दिया था. पर वह भाषण शानदार था. उनका व्यक्तित्व भी विशाल था. उसके बाद भाजपा की तेरह दिन की सरकार भले ही गिर गयी थी. पर उसके बाद वे प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में आये थे. उनके भाषण का वह हिस्सा आज भी सभी की जुबान पर है- “पार्टियाँ आयेंगी जायेंगी पर यह देश रहना चाहिए और देश में लोकतंत्र रहना चाहिए”. उन्होंने कभी कांग्रेस से भारत को मुक्त करने की बात नहीं की. अलोकतांत्रिक और अनैतिक तरीके से सरकार चलाने की बात नहीं की. इसीलिए उनका आदर तब भी पूरा पक्ष और विपक्ष करता था.
१९ मई २०१८ को कर्नाटक विधानसभा में बीएस येदियुप्पा ने सीएम पद से इस्तीफे का ऐलान के बाद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा कि बीजेपी के विधायक और स्पीकर राष्ट्रगान खत्म होने से पहले ही चले गए. इससे साबित होता है कि संस्थाओं का कितना सम्मान करते हैं. इतनी जल्दबाजी क्या थी महोदय? दुसरे को राष्ट्रभक्ति का उपदेश देनेवाले खुद इतनी बड़ी गलती कर बैठे? इस्तीफे से पहले बीएस येदियुरप्पा ने भावुक भाषण दिया. और कहा कि वह किसानों के लिए लड़ाई जारी रखेंगे. उन्होंने कहा कि पीएम मोदी के सुशासन की वजह से बीजेपी ने 104 सीटें जीती हैं. सूत्रों के हवाले से खबर है कि बीजेपी आलाकमान ने पहले ही संकेत दे दिया था कि नंबर न होने की स्थिति में बीएस येदियुरप्पा इस्तीफा दे देंगे ताकि चुनावी साल में किसी भी तरह के खरीद-फरोख्त का आरोप न लगे.  १५ मई २०१८ को मतगणना के बाद कर्नाटक विधानसभा में किसी को भी पूर्ण बहुमत नहीं मिला. बीजेपी 104 सीट पर जीत दर्ज की जबकि कांग्रेस 78 सीटों पर जीत दर्ज की. जेडीएस के खाते में 38 सीट गई जीत दर्ज करने में सफल रहे. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार 19 मई की शाम 4 बजे कर्नाटक विधानसभा में बीजेपी नेता बीएस येदियुरप्‍पा को अपना बहुमत साबित करना था. वे 17 मई की सुबह 9:30 बजे कर्नाटक के 25वें मुख्‍यमंत्री के रूप में शपथ लिए थे.
कर्नाटक संकट में शुरू से लेकर आखिर तक जो एक शख्स कांग्रेस के लिए संकटमोचक बना रहा. जब एक एक विधायक के लिए मार मची हुई थी ऐसे समय में जिसने कांग्रेस के सभी विधायकों को एकजुट रखा. उसका नाम है डी के शिवकुमार. कर्नाटक में अब जेडीएस-कांग्रेस गठबंधन की सरकार बनेगी. कांग्रेस इसे अपनी जीत बता रही है लेकिन इस जीत का असली श्रेय सिद्धरमैया सरकार में मंत्री रह चुके कांग्रेसी विधायक डी के शिवकुमार को जाता है. डी के शिवकुमार की रणनीति के आगे बीजेपी के सारे दांव फेल हो गए. दरअसल कांग्रेस-जेडीएस की जीत का नायक कांग्रेस का वो विधायक है जो पिछले 4 दिनों से सभी कांग्रेसी विधायकों को सेंधमारी से बचाने में लगा है.
कांग्रेस के 7 बार के विधायक डी के शिवकुमार ने विधानसभा में शक्ति परीक्षण के पहले ही ये भविष्यवाणी कर दी थी कि येदुरप्पा बहुमत साबित नहीं कर पाएंगे और उन्हें इस्तीफा देना होगा. शिवकुमार का ये दावा भी उस वक्त सही साबित हुआ जब विश्वास मत के पहले वो खुद आनंद सिंह का हाथ पकड़कर उन्हें विधानसभा के अंदर लाते देखे गए. इसके ठीक पहले विधानसभा के बाहर वो कांग्रेस के दूसरे विधायक प्रताप गौड़ा के साथ भी नजर आए, जब किसी ने गौड़ा को एक तरफ खींचने की कोशिश की तो डी के शिवकुमार ने हाथ पकड़कर उन्हें रोका. दरअसल कर्नाटक में त्रिशंकु विधानसभा के नतीजे आने के बाद से ही कांग्रेस ने डी के शिवकुमार को सभी कांग्रेसी विधायकों को एक साथ रखने की जिम्मेदारी सौंप दी थी. बेंगलुरु के ईगलटन रिसॉर्ट से लेकर हैदराबाद तक और फिर वहां से विधानसभा तक कांग्रेसी विधायकों को पहुंचाने की जिम्मेदारी को शिवकुमार ने पूरी जिम्मेदारी से निभाया. ये पहला मौका नहीं है जब डी के शिवकुमार कांग्रेस के संकटमोचक बने. पिछले ही साल राज्यसभा चुनाव के वक्त सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल को जिताने के लिए गुजरात के कांग्रेस विधायकों की सुरक्षा का जिम्मा डी के शिवकुमार को सौंपा गया था. यही नहीं 2002 में महाराष्ट्र की विलासराव देशमुख सरकार को गिरने से बचाने के लिए वहां के 40 कांग्रेसी विधायक को भी डी के शिवकुमार की देखरेख में बेंगलुरु के ईगलटन रिसॉर्ट में भेजा गया था.
स्वतंत्र पत्रकार राजेश कश्यप जी के शब्द - आज यही बात जेहन में बार-बार घूम रही है. मोदीजी आखिर क्या बना दिया आपने अपने पद को? ठीक है कि यह दौर शर्मनिरपेक्षता का है. लेकिन क्या वाकई सत्ता के ऐसे निर्लल्ज खेल में उतरे बिना आपका काम नहीं चल सकता थापार्टी की फजीहत, नेताओं के झुके कंधे और विरोधियों के गर्वोन्मत अट्टाहास. आखिर क्यों मोल लिया आपने यह सब? सच बताउं तो आपकी फजीहत देखकर मुझे ऐसा लग रहा है कि कोई अरबपति आदमी किसी मॉल में दो-चार सौ रूपये की कोई मामूली चीज़ चुराता हुआ रंगे हाथो पकड़ा गया हो. प्रधानमंत्री अगर चाहते तो सीना ठोककर यह कह सकते थे कि कर्नाटक की जनता ने हमें सबसे बड़ी पार्टी बनाया है और कांग्रेस को नकार दिया है. हमारे पास नंबर नहीं है तो हम विपक्ष में बैठेंगे. अगर कांग्रेस चुनाव के बाद सत्ता की खातिर गठजोड़ करके अपने विरोधी के साथ सरकार चलाना चाहती है तो चला लें. प्रधानमंत्री अगर यह स्टैंड लेते तो गोवा और मणिपुर जैसे राज्यों में बीजेपी की पुरानी कारगुजारियों के दाग धुल जाते. कार्यकर्ताओं में एक अलग तरह का नैतिक बल आता और कांग्रेस बैकफुट पर होती. यह भी संभव था कि कुछ समय बाद जेडीएस-कांग्रेस की सरकार गिर जाती और बीजेपी किसी तरह सत्ता में आ जाती. लेकिन इसके बदले मोदीजी ने खुलेआम खरीद-फरोख्त का घटिया रास्ता चुना. बीजेपी तमाम नेता खुलेआम दावा करते रहे कि वे जरूरी विधायक खरीद लेंगे. राज्यपाल बेहयाई की सीमाएं तोड़ते हुए अनूठी स्वामीभक्ति दिखाई और जोड़-तोड़ के लिए 15 दिन का वक्त दिया. 20 से ज्यादा राज्यों में सरकार और अभूतपूर्व जनसमर्थन के बावजूद मोदीजी ने ऐसा रास्ता इसलिए चुना क्योंकि उनके बिना बालो वाले चाणक्य अपनी चुटिया खोलकर कांग्रेस के विनाश पर तुले हुए हैं. खुद मोदीजी परशुराम बनकर कांग्रेसियों के संहार के लिए निकल पड़े हैं. संहार उसी का होगा जो खरीदे जाने या बीजेपी में शामिल होने से बच जाएगा. लेकिन परशुराम भी क्षत्रियों का संहार पूरी तरह कहां कर पाये? जोगी ठाकुर तो आज भी बीजेपी के मुख्यमंत्री हैं.
अरुणाचल प्रदेश, उत्तराखंड और अब कर्नाटक, बीस मंत्री को लगाकर बोल देने से सब सही नहीं हो जाता. संविधान की झूठी व्याख्याओं के दंभ की हार हुई है. 26 जनवरी की रात अरुणाचल में राष्ट्रपति शासन लगा था. नशे में चूर जनता को तब नहीं दिखा था, कोर्ट में हर दलील की हार हुई थी. उत्तराखंड में जस्टिस केएम जोसेफ़ ने कहा था कि राष्ट्रपति राजा नहीं होता कि उसके फैसले की समीक्षा नहीं हो सकती. आज तक जस्टिस जोसेफ़ इसकी सज़ा भुगत रहे हैं. मौलिक अधिकार का विरोध करते हुए मुकुल रोहतगी ने कहा था कि नागरिक के शरीर पर राज्य का अधिकार होता है. कोर्ट में क्या हुआ सबको पता है. अदालत और लोकतंत्र में हर मसले की लड़ाई अलग होती है. एक जज की मौत की जांच पर रोक लगी. और भी कई उदाहरण दिए जा सकते हैं.
भाजपा के शीर्ष नेतृत्व श्रीमान मोदी और श्रीमान अमित शाह के पास अब कुल एक साल का भी समय नहीं है. उन्हें चाहिए, कांग्रेस विरोध और विरोधियों के दमन का रास्ता छोड़कर जनता के काम में सकारात्मक रूप से जुड़ें. नौजवानों को रोजगार दें, किसानों को न्याय दें और बढ़ती हुई महंगाई और पेट्रोल की कीमतों पर लगाम लगायें. छद्म राष्ट्रवाद, धार्मिक उन्माद के बजाय रचनात्मक कार्यों पर जोर दें जैसे कि उन्होंने कश्मीर में सबसे बड़े टनल मार्ग का शिलन्यास करके किया. उसी तरह एनी नागरिक सुविधाओं पर केवल भाषणबाजी न करके जमीनी स्तर पर काम दिखाना चाहिए. महंगे प्रचार माध्यमों के इस्तेमल से उलटे राज्य सरकार पर बोझ पड़ता है और उसका खामियाजा अधिक कर चुकाकर जनता को ही भुगतना पड़ता है.
कर्नाटक में अश्वमेघ का घोड़ा थमा है अब विपक्षी पार्टियों में एक जुटता आयेगी तो एक सशक्त विपक्ष भी तैयार होगा जो सरकार को गलत करने से रोक सके. लोकतन्त्र में जितना महत्व सत्ता पक्ष का है उतना ही महत्व विपक्ष का भी है. हाँ उसे सरकार रचनात्मक कार्यों में सहयोग करना चाहिए. संसद में बहस होनी चाहिए, हंगामा नहीं. 
-     -  जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.

Sunday, 13 May 2018

बिनु सतसंग विवेक न होई!


श्री मोरारी बापू की रामकथा (मानस सत्संग)
अपने विशिष्ट अंदाज में रामकथा का रसास्वादन करवाने वाले और देश-विदेश के लाखों लोगों को जीवनदर्शन का सही मार्ग बताने वाले संतश्री मोरारी बापू रामचरित मानस को सरल, सहज और सरस तरीके से प्रस्तुत करने वाले 72 वर्षीय बापू की सादगी का कोई सानी नहीं है. टीवी चैनलों पर अनेक संत-महात्माओं के प्रवचन आते हैं, जिनमें बापू भी शामिल हैं, लेकिन जो लोग उनसे जुड़े हुए हैं, वे बापू की कथा का पता चलते ही कभी चैनल नहीं बदलते. जहाँ पर कथा होती है, वहाँ लाखों की संख्या में श्रद्धालु मौजूद रहते हैं. 
राम के जीवन के बारे में तो सब जानते हैं, लेकिन पता नहीं बापू की वाणी में ऐसा कौन-सा जादू है, जो श्रोताओं और दर्शकों को बाँधे रखता है. वे कथा के जरिये मानव जाति को सद्‍कार्यों के लिए प्रेरित करते हैं. सबसे बड़ी खासियत तो यह है कि उनकी कथा में न केवल बुजुर्ग महिला-पुरुष मौजूद रहते हैं, बल्कि युवा वर्ग भी काफी संख्या में मौजूद रहता है. वे न केवल भारत में, बल्कि विदेशों में भी मानव कल्याण के लिए रामकथा की भागीरथी को प्रवाहित कर रहे हैं.
25 
सितम्बर, 1946 के दिन महुआ के समीप तलगारजा (सौराष्ट्र) में वैष्णव परिवार में मोरारी बापू का जन्म हुआ. पिता प्रभुदास हरियाणी के बजाय दादाजी त्रिभुवनदास का रामायण के प्रति असीम प्रेम था. तलगारजा से महुआ वे पैदल विद्या अर्जन के लिए जाया करते थे. 5 मील के इस रास्ते में उन्हें दादाजी द्वारा बताई गई रामायण की 5 चौपाइयाँ प्रतिदिन याद करना पड़ती थीं. इस नियम के चलते उन्हें धीरे-धीरे समूची रामायण कंठस्थ हो गई. 
दादाजी को ही बापू ने अपना गुरु मान लिया था. 14 वर्ष की आयु में बापू ने पहली बार तलगारजा में चैत्रमास 1960 में एक महीने तक रामायण कथा का पाठ किया. विद्यार्थी जीवन में उनका मन अभ्यास में कम, रामकथा में अधिक रमने लगा था. बाद में वे महुआ के उसी प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक बने, जहाँ वे बचपन में विद्यार्जन किया करते थे, लेकिन बाद में उन्हें अध्यापन कार्य छोड़ना पड़ा, क्योंकि रामायण पाठ में वे इतना डूब चुके थे कि समय मिलना कठिन था. 
महुआ से निकलने के बाद 1966 में मोरारी बापू ने 9 दिन की रामकथा की शुरुआत नागबाई के पवित्र स्थल गाँठिया में रामफलकदासजी जैसे भिक्षा माँगने वाले संत के साथ की. उन दिनों बापू केवल सुबह कथा का पाठ करते थे और दोपहर में भोजन की व्यवस्था में स्वयं जुट जाते. ह्रदय के मर्म तक पहुँचा देने वाली रामकथा ने आज बापू को दूसरे संतों से विलग रखा हुआ है. 
file photo
मोरारी बापू का विवाह सावित्रीदेवी से हुआ. उनके चार बच्चों में तीन बेटियाँ और एक बेटा है. पहले वे परिवार के पोषण के लिए रामकथा से आने वाले दान को स्वीकार कर लेते थे, लेकिन जब यह धन बहुत अधिक आने लगा तो 1977 से प्रण ले ‍लिया कि वे कोई दान स्वीकार नहीं करेंगे. इसी प्रण को वे आज तक निभा रहे हैं. सर्वधर्म सम्मान की लीक पर चलने वाले मोरारी बापू की इच्छा रहती है कि कथा के दौरान वे एक बार का भोजन किसी दलित के घर जाकर करें और कई मौकों पर उन्होंने ऐसा किया भी है. 
बापू ने जब महुआ में स्वयं की ओर से 1008 राम पारायण का पाठ कराया तो पूर्णाहुति के समय हरिजन भाइयों से आग्रह किया कि वे नि:संकोच मंच पर आएँ और रामायण की आरती उतारें. तब डेढ़ लाख लोगों की धर्मभीरु भीड़ में से कुछ लोगों ने इसका विरोध भी किया और कुछ संत तो चले भी गए, लेकिन बापू ने हरिजनों से ही आरती उतरवाई. 
सौराष्ट्र के ही एक गाँव में बापू ने हरिजनों और मुसलमानों का मेहमान बनकर रामकथा का पाठ किया. वे यह बताना चाहते थे कि रामकथा के हकदार मुसलमान और हरिजन भी हैं. बापू की नौ दिवसीय रामकथा का उद्देश्य है- धर्म का उत्थान, उसके द्वारा समाज की उन्नति और भारत की गौरवशाली संस्कृति के प्रति लोगों के भीतर ज्योति जलाने की तीव्र इच्छा. 
मोरारी बापू के कंधे पर रहने वाली 'काली कमली' (शॉल) के विषय में अनेकानेक धारणाएँ प्रचलित हैं. एक धारणा यह है कि काली कमली स्वयं हनुमानजी ने प्रकट होकर प्रदान की और कुछ लोगों का मानना है कि यह काली कमली उन्हें जूनागढ़ के किसी संत ने दी, लेकिन मोरारी बापू इन मतों के बारे में अपने विचार प्रकट करते हुए कहते हैं कि काली कमली के पीछे कोई रहस्य नहीं है और न ही कोई चमत्कार. यह शाल उनकी दादी के आशीर्वाद का प्रतीक है जिसमे वह इन्हें बचपन से ही लपेटकर रखती थी. 
किसी भी धार्मिक और राजनीतिक विवादों से दूर रहने वाले मोरारी बापू को अंबानी परिवार में विशेष सम्मान दिया जाता है. स्व. धीरूभाई अंबानी ने जब जामनगर के पास खावड़ी नामक स्थान पर रिलायंस की फैक्टरी का शुभारंभ किया तो उस मौके पर मोरारी बापू की कथा का पाठ किया था. तब उन्होंने धीरूभाई से पूछा कि लोग इतनी दूर से यहाँ काम करने आएँगे तो उनके भोजन का क्या होगा? बापू की इच्छा थी कि अंबानी परिवार अपने कर्मचारियों को एक समय का भोजन दे और तभी से रिलायंस में एक वक्त का भोजन दिए जाने की शुरुआत हुई. यह परंपरा अब तक कायम है. 
मोरारी बापू अपनी कथा में शे'रो-शायरी का भरपूर उपयोग करते हैं, ताकि उनकी बात आसानी से लोग समझ सकें. वे कभी भी अपने विचारों को नहीं थोपते और धरती पर मनुष्यता कायम रहे, इसका प्रयास करते रहते हैं.
इन दिनों मोरारी बापू की कथा जमशेदपुर के गोपाल मैदान में चल रही है. ५ मई से शुरू होकर यह कथा १३ मई को समाप्त होगी. अभी अभी जमशेदपुर में मानस सतसंग कार्यक्रम चल रहा है. पहला दिन मैं भी सपरिवार सतसंग में उपस्थित हुआ और सतसंग का आनंद लिया. प्रारम्भ मंगलाचरण और हनुमान चालीसा पाठ से होता है. मोरार जी बापू के ब्यासपीठ के पीछे हनुमान जी का चित्र लगा होता है जिसमे शिवलिंग भी दृष्टिगोचर होता है. आखिर हनुमान जी शंकर-सुवन भी तो कहलाते हैं, क्योंकि वे शिवजी के अंशावतार है.
तुलसी दास ने मानस में ही सतसंग की महिमा का गुणगान किया है.
सो जानब सतसंग प्रभाऊ, लोकहुँ वेद न आन उपाऊ
बिनु सतसंग विवेक न होई, रामकृपा बिनु सुलभ न सोई
बापू के अनुसार सत्य के साथ संगत को ही सतसंग कहते हैं. संत के साथ को सतसंग कहते हैं, आत्मा के साथ को सतसंग कहते हैं, परमात्मा के साथ को सतसंग कहते हैं. किसी भी दो व्यक्ति के बीच सद्विचार के साथ संवाद को भी सतसंग कहते हैं. यानी सतसंग को व्यापक रूप में परिभाषित किया जा सकता है. इसे सीमा में बांधना ठीक नहीं है.
मोरारजी बापू विभिन्न प्रकार के आडम्बर भरे कर्मकांड को भी नकारते हैं. कट्टरता को नकारते हैं, सर्व-धर्म-समभाव की भी बात करते हैं. वे अल्लाह की भी बात करते हैं, जीसस क्राइस्ट की भी बात करते हैं, बुद्ध और शंकराचार्य की भी बात करते हैं. बापू के अनुसार भ्रम पैदा करने वाला संत नहीं हो सकता, भ्रम को दूर करनेवाला संत होता है. वे राम और कृष्ण के साथ भी सम्बन्ध स्थापित करते हैं. उनके अनुसार राम से जीवन मिलता है तो कृष्ण से जीवन का आनन्द. राम सत्य हैं तो कृष्ण प्रेम और बुद्ध करुणा के प्रतीक हैं. मति, कीर्ति, गति, ऐश्वर्य और भलाई ये पांच चीजें सतसंग से ही मिलती है. उन्होंने आज के सन्दर्भ में कहा कि बुद्धि नष्ट नहीं हु है बल्कि प्रगति के साथ भ्रष्ट हुई है. ईर्ष्या द्वेष भ्रष्टता का संकेत है. उन्होंने यह भी कहा कि देश छोड़ना आसान है पर द्वेष छोड़ना कठिन है.
प्रारम्भ में ही उन्होंने मानस के सातो कांडों में सतसंग और कुसंग से जोड़ दिया. यह मानस भी सतसंग और कुसंग का अद्भुत मिश्रण है. बापू के अनुसार राम कथा कहने और हनुमान जी की प्रार्थना करने में वह दशा और दिशा नहीं देखते. हर समय भगवान का समय है और हर समय प्रार्थना की जा सकती है. भजन किया जा सकता है. मानस में तो तुलसी ने भी कहा है - कलियुग केवल नाम अधारा, जो सुमिरहि ते उतरहिं पारा.
बापू अपने आप को मनुवादी नहीं मनवादी कहते हैं. यानी अपने मन की सुनो और करो. क्योंकि तोरा मन दर्पण कहलाये. मन कोरा कागज है. दर्पण के समान है. यह परम पवित्र है.
उन्होंने मानस को गंगा और गाय से भी जोड़ा है. यह जहाँ भी है दिव्य ज्योति की तरह राह दिखती रहेगी.
जैसे शरीर के हर हिस्से का अपना अलग अलग महत्व है उसी तरह समाज के हर वर्ग का भी अपना अलग अलग महत्व है. किसी को छोटा या बहुत बड़ा मत समझो. बिना पैर के हम खड़े नहीं रह सकते और बिना मन मस्तिष्क के सही निर्णय नहीं ले सकते. भुजाएं काम के साथ रक्षा भी करती है तो पेट अपने साथ सब अंगों का ख्याल रखता है उसे पालन पोषण करता है. बापू जय श्रीराम नहीं जय सियाराम कहते हैं और अब मोदी जी ने भी जय सियाराम कहना शुरू कर दिया है, जनकपुर में जाकर. बापू ने अपने सतसंग के क्रम में मोदी जी के श्री राम और हिन्दू धर्म में आस्था की चर्चा भी की और जनकपुर से अयोध्या बस चलाने की योजना को भी सराहा. सभी को सतसंग का सन्देश और सद्मार्ग का सन्देश देकर बापू जमशेदपुर से विदा हुए. हम  राह या सद्मार्ग पर चलाने का प्रयास तो कर ही सकते हैं. बाधाएँ आती हैं उनको सामना करने में भी भगवान को समरण करते रहने से आत्मबल में बृद्धि होती है. संयोग देखिये कि पहले दिन मंगलाचरण के दिन ही थोड़ी वर्षा हुई बाकी दिन कथा के दौरान मौसम साफ़ रहा. गर्मी रही लेकिन सहनीय थी. तूफ़ान का कोई ख़ास असर इस बीच जमशेदपुर ने नहीं हुआ. टाटा स्टील के ह्रदय स्थल बिष्टुपुर के गोपाल मैदान में यह कार्यक्रम होने के कारन बिजली पानी और यातायात भी सुचारू ढंग से चला. इसी बीच रविवार(१३.०५.१८) को गोपाल मैदान के पास ही बिष्टुपुर मुख्य मार्ग पर ‘जाम ऐट स्ट्रीट’ का आयोजन हुआ जिसमे सभी वर्ग के लोगों ने आनंद उठाया. शाम को जोर की आंधी आई जिससे गैर कंपनी इलाके में विद्युत् आपूर्ति में बाधा उत्पन्न हुई, पर कंपनी कमांड एरिया में सब कुछ सामान्य ही रहा. आप अच्छे उद्देश्य और सकारात्मक विचार के साथ संकल्प बद्ध रूप से हरिनाम के सहारे आगे बढ़ सकते हैं. जनता भी जनार्दन का रूप होती है, अत: जनसमर्थन अनिवार्य है. बापू ने अंतिम दिन मातृ दिवस पर भी सभी माताओं का आभार व्यक्त किया और माता को भी भगवान का दूसरा रूप बताया. माँ और बापू के प्रेम के परिणाम स्वरुप ही हम सब हैं. गुरु ज्ञान देते हैं और हम अपने साथ परिवार और समाज का निर्माण और पालन पोषण भी करते हैं. व्यक्ति में समष्टि समाहित है और समष्टि के एक अंश मात्र हैं हम, जैसे परमात्मा का ही अंश आत्मा है. गोस्वामी जी ने भी कहा है ईश्वर अंश जीव अविनाशी.  जय सियाराम!
– जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर