Saturday, 21 April 2018

दुष्कर्म पर नया अध्यादेश


कठुआ समेत कई इलाकों में बच्चियों के साथ हुई दरिंदगी के बाद ऐसे आरोपियों को फांसी की सजा की मांग के लिए देश भर में आवाज उठाई गई. इसके बाद शनिवार(२१.०४.२०१८) को केंद्र सरकार ने 12 साल तक की बच्ची के साथ रेप के मामले में फांसी की सजा का प्रावधान कर दिया है. इसके लिए पोक्सो एक्ट  में बदलाव के लिए ऑर्डिनेंस जारी कर दिया है. 16 दिसंबर को निर्भया रेप और मर्डर केस में बाद देश में संसद से सड़क तक पर रेप कानून में बदलाव के लिए लोगों ने आवाज उठाई थी, तब रेप कानून में सख्त सजा का प्रावधान किया गया था और इसके तहत रेप विक्टिम मरनासन्न अवस्था में पहुंच जाए तो फांसी की सजा का प्रावधान किया गया था. पॉक्सो और ऐंटी-रेप लॉ में कानून का क्या प्रावधान है, उसका अवलोकन जरूरी है.
पॉक्सो कानून के तहत 18 साल से कम को बच्चा माना गया 
अधिवक्ता नवीन शर्मा के मुताबिक, पॉक्सो कानून के तहत 18 साल से कम उम्र के बच्चों से किसी भी तरह का सेक्शुअल अपराध इस कानून के दायरे में आता है. इस कानून के तहत 18 साल से कम उम्र के लड़के या लड़की दोनों को ही प्रॉटेक्ट किया गया है. इस ऐक्ट के तहत बच्चों को सेक्शुअल असॉल्ट, सेक्शुअल हैरसमेंट और पॉर्नोग्रफी जैसे अपराध से प्रॉटेक्ट किया गया है. 2012 में बने इस कानून के तहत अलग-अलग अपराध के लिए अलग-अलग सजा का प्रावधान किया गया है. पॉक्सो कानून की धारा-3 के तहत पेनेट्रेटिव सेक्शुअल असॉल्ट को परिभाषित किया गया है. इसके तहत कानून कहता है कि अगर कोई शख्स किसी बच्चे के शरीर के किसी भी हिस्से में प्राइवेट पार्ट डालता है या फिर बच्चे के प्राइवेट पार्ट में कोई भी ऑब्जेक्ट या फिर प्राइवेट पार्ट डालता है या फिर बच्चों को किसी और के साथ ऐसा करने के लिए कहा जाता है या फिर बच्चे से कहा जाता है कि वह ऐसा उसके (आरोपी) साथ करे तो यह सेक्शन-3 के तहत अपराध होगा और इसके लिए धारा-4 में सजा का प्रावधान किया गया है. इसके तहत दोषी पाए जाने पर मुजरिम को कम से कम 7 साल और ज्यादा से ज्यादा उम्रकैद तक की सजा का प्रावधान किया गया है. 
प्राइवेट पार्ट टच करने पर भी सजा 
भारत सरकार के वकील अजय दिग्पाल बताते हैं कि अगर कोई शख्स किसी बच्चे के प्राइवेट पार्ट को टच करता है या फिर अपने प्राइवेट पार्ट को बच्चों से टच कराता है तो ऐसे मामले में दोषी पाए जाने पर धारा-8 के तहत 3 साल से 5 साल तक कैद की सजा का प्रावधान किया गया है. अगर कोई शख्स बच्चों का इस्तेमाल पॉर्नोग्राफी के लिए करता है तो वह भी गंभीर अपराध है और ऐसे मामले में उम्रकैद तक की सजा का प्रावधान है. बच्चों के साथ ऐसा कोई काम करते हुए अगर उसकी पॉर्नोग्राफी की जाती है तो वैसे मामले में कम से कम 10 साल और ज्यादा से ज्यादा उम्रकैद तक हो सकती है. 
ऐंटी-रेप लॉ में क्या है प्रावधान 
16
दिसंबर 2012 को निर्भया गैंग रेप और हत्या के बाद की वारदात के बाद रेप और छेड़छाड़ से संबंधित कानून को सख्त करने के लिए सड़क से लेकर संसद तक बहस चली और फिर वर्मा कमिशन की सिफारिश के बाद सरकार ने कानून में तमाम बदलाव किए थे. संसद में बिल पास किया गया और दो अप्रैल 2013 को नोटिफिकेशन जारी कर दिया गया. सीनियर वकील रमेश गुप्ता के मुताबिक, मौजूदा समय में रेप व छेड़छाड़ के मामले में जो कानूनी प्रावधान हैं, उसके तहत रेप के कारण अगर कोई महिला मरणासन्न अवस्था में पहुंच जाती है या फिर मौत हो जाती है तो उस स्थिति में दोषियों को फांसी तक की सजा हो सकती है. साथ ही रेप मामले में अगर कोई शख्स दूसरी बार दोषी पाया जाता है, तो उसे फांसी की सजा तक हो सकती है. 
रेप की नई परिभाषा -आईपीसी की धारा-375 में रेप मामले में विस्तार से परिभाषित किया गया है. इसके तहत बताया गया है कि अगर किसी महिला के साथ कोई पुरुष जबरन शारीरिक संबंध बनाता है तो वह रेप होगा. साथ ही मौजूदा प्रावधान के तहत महिला के साथ किया गया यौनाचार या दुराचार दोनों ही रेप के दायरे में होगा. इसके अलावा महिला के शरीर के किसी भी हिस्से में अगर पुरुष अपना प्राइवेट पार्ट डालता है, तो वह भी रेप के दायरे में होगा. 
रेप में उम्रकैद तक की सजा -अधिवक्ता अमन सरीन का कहना है कि महिला की उम्र अगर 18 साल से कम है और उसकी सहमति भी है तो भी वह रेप ही होगा. अगर कोई महिला विरोध न कर पाए इसका मतलब सहमति है, ऐसा नहीं माना जाएगा. आईपीसी की धारा-376 के तहत कम से कम 7 साल और ज्यादा से ज्यादा उम्रकैद की सजा का प्रावधान किया गया. 
रेप में कब फांसी -इसके अलावा आईपीसी की धारा-376 ए के तहत प्रावधान किया गया कि अगर रेप के कारण महिला विजिटेटिव स्टेज (मरने जैसी स्थिति) में चली जाए तो दोषी को अधिकतम फांसी की सजा हो सकती है. साथ ही गैंग रेप के लिए 376 डी के तहत सजा का प्रावधान किया गया, जिसके तहत कम से कम 20 साल और ज्यादा से ज्यादा उम्रभर के लिए जेल का प्रावधान किया गया. साथ ही 376 ई के तहत प्रावधान किया गया कि अगर कोई शख्स रेप के लिए पहले दोषी करार दिया गया हो और वह दोबारा अगर रेप या गैंग रेप के लिए दोषी पाया जाता है तो उसे उम्रकैद से लेकर फांसी तक की सजा होगी. 
नाबालिगों से रेप की बढ़ती घटनाओं पर सख्ती बरतते हुए  मोदी सरकार ने बड़ा फैसला लिया है. केंद्रीय कैबिनेट ने शनिवार(२१.०४.२०१८) को 12 साल से कम उम्र की बच्चियों से रेप के दोषियों को मौत की सजा देने को मंजूरी दे दी. इस अध्यादेश की मंजूरी राष्ट्रपति से भी मिल गयी है अर्थात यह कानून मान्य हो गया और तत्काल प्रभाव से लागू भी हो गया. कैबिनेट ने रेप के मामलों में तेज जांच और सुनवाई की समयसीमा भी तय कर दी है.
मामले की गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विदेश दौरे से लौटते ही कैबिनेट की बैठक बुला ली. सरकार ने यह फैसला ऐसे समय में लिया है जब मासूम बच्चियों के साथ दरिंदगी की बढ़ती घटनाओं से देशभर में गुस्सा है.
6 साल से कम उम्र की लड़की से रेप करनेवाले की न्यूनतम सजा को 10 साल से बढ़ाकर 20 साल किया गया है. दोषी को उम्रकैद भी दी जा सकती है. इतना ही नहीं, अध्यादेश में यह भी प्रावधान किया गया है कि 12 साल से कम उम्र की लड़की से रेप के दोषी को न्यूनतम 20 साल की जेल या उम्रकैद या मौत की सजा दी जाएगी.
दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल ने शनिवार को घोषणा की कि वह रविवार को दो बजे अपना अनशन समाप्त कर देंगी, क्योंकि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने शनिवार को एक अध्यादेश को मंजूरी दी है जिसमें 12 साल से कम उम्र की बच्चियों से दुष्कर्म के दोषियों को फांसी की सजा का प्रावधान है. पिछले नौ दिन से यहां राजघाट पर भूख हड़ताल कर रहीं स्वाति ने आज अपने समर्थकों से कहा, ‘‘ प्रधानमंत्री ने हमारी और देश की मांगें सुनीं. इसलिए मैंने रविवार दोपहर दो बजे अपना अनशन समाप्त करने का फैसला किया है.’’ उन्होंने कहा, ‘‘ मैं इस अध्यादेश को लाने के लिए प्रधानमंत्री की शुक्रगुजार हूं. मैं देश की जनता को इस जीत के लिए बधाई देती हूं.’’  उन्होंने ट्वीट में कहा, ‘‘मैं अध्यादेश पारित होने तक अनशन करती रहूंगी. पुलिस के संसाधन और जवाबदेही भी बढ़ने चाहिए. वाकई दुख की बात है कि कुछ चैनल झूठी खबर फैला रहे हैं कि मैंने अनशन तोड़ दिया है. सभी समाचार चैनलों से मेरी अपील है कि फर्जी खबर नहीं चलाएं. ’’ दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने शुक्रवार को स्वाति से अनशन तोड़ने की अपील की थी, लेकिन दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष ने कहा था कि वह अपनी मांगें पूरी नहीं होने तक भूख हड़ताल जारी रखेंगी. यह भी शायद पहला अवसर है जब महिला आयोग के अध्यक्षा ने नौ दिन तक का अनशन किया. मीडिया और आम जन के बढ़ते दबाव में ही सही, सरकार ने एक सही फैसला लिया है. अब इसका पालन भी उसे तरह त्वरित गति से होना चाहिए. त्वरित न्यायालय बनाये जाने चाहिए जो जल्द फैसला लेकर बलात्कारी को जल्द से जल्द कठोरतम सजा दे ताकि दुष्कर्म करने से पहले कोई भी हजार बार सोचे. साथ ही हमारे समाज के अन्दर भी एक स्वस्थ सोच विकसित होनी चाहिए ताकि हम किसी भी महिला, युवती या बालिका को सम्मान की नजर से देखे. किसी भी महिला के प्रति कुत्सित विचार ही मन को इस प्रकार के दुष्कर्म करने को प्रेरित करते हैं. विचार में ही परिवर्तन आवश्यक है जिसके लिए कानून के साथ-साथ नजरिया बदलना चाहिए. महिला वर्ग को भी शालीन बने रहने का हर संभव प्रयास करना चाहिए. भरकीले पोशाक से बचने की कोशिश करनी चाहिए. फ़िल्में मनोरंजन का साधन है वहां की अभिनेत्रियों या अभिनेताओं का अन्धानुकरण सही नहीं हो सकता. महिला वर्ग को खुद अपने आपको सबल और समर्थ बनाने की जरूरत है. आत्मरक्षार्थ कदम उठाने से परहेज नहीं करनी चाहिए. आज बेटियां किसी भी हाल में बेटों से कम नहीं है इसलिए उन्हें कम करके आंकने की जरूरत भी नहीं होनी चाहिए. अंतत: सबका सहयोग जरूरी है तभी अपराध कम होंगे.
-  -    जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.

Sunday, 15 April 2018

दुष्कर्म, दुष्कर्म और क्रूरतम हत्या


हममे से काफी लोगों ने रेडियो मिर्ची के नावेद के उस ऑडियो को सुना होगा, जिसमे वह एक गायनेकोलॉजिस्ट डॉ. से फोन पर यह कहता है कि उसकी वाइफ प्रेग्नेंट है और उसे पता है कि उसे लडकी ही होनेवाली है. वह उसका एबॉर्शन करवाना चाहता है क्योंकि उसे डर है कि उसकी लड़की का रेप हो जायेगा. वह बहुत सारे उदाहरण देकर बतलाता है कि दिल्ली में आठ महीने की बच्ची का रेप हो जाता है, कहीं ६ साल की बच्ची तो कही आठ साल की बच्ची का सामूहिक बलात्कार हो जाता है. बलात्कार के बाद उसकी निर्मम हत्या कर दी जाती है. प्रतिदिन के अख़बार और टीवी इन्ही प्रकार के समाचारों से भरे होते हैं. लड़कियां या महिलाएं कहीं भी सुरक्षित नहीं हैं, न घर में, न खेत में, न बाजार में, न ऑफिस में, न थाने में, न न्यायालय में, नहीं मंदिर में, न ही मस्जिद में. साधू के वेश में भी लोग लड़कियों को अपने हवश का शिकार बनाते हैं, जो पुलिसकर्मी रक्षक हैं, वे भी अपनी हवश को मरते दम तक एक कमजोर लड़की के साथ शांत करते हैं. आखिर कहाँ जा रहे हैं हम सब? पाशविकता से भी बहुत आगे .... शायद राक्षस प्रवृत्ति पैदा हो गयी है, आज के पुरुषों में.    
अभी ताजा ताजा मामला कश्मीर के कठुआ और यु पी के उन्नाव का है, ये दोनों नाम तो बहुचर्चित हैं इसलिए.... मीडिया में और राजनीति में भी हलचल है. इसके अलावा भी अनगिनत ऐसे मामले हैं जिनकी चर्चा तो होती ही नहीं. थाने में प्राथमिकी तक दर्ज नही होती, लोकलाज के भय से लोग मामले को दबा देने में ही भलाई समझते हैं. पर कठुआ और उन्नाव की घटना दिल दहला देने वाली है और इसमे बड़े-बड़े रसूखदार लोग शामिल हैं. दिल्ली की दामिनी या निर्भया काण्ड के बाद सबसे चर्चित होनेवाले ये काण्ड हैं.
कठुआ में आठ साल की मासूम के साथ हुई हैवानियत और उत्तर प्रदेश के उन्नाव में 17 वर्षीय युवती के साथ गैंगरेप की घटना सामने आने के बाद देशभर में जबरदस्त गुस्सा है. कठुआ में आठ वर्षीय मासूम को बंधक बनाकर कई दिनों तक रखने उसके साथ गैंगरेप कर वहशियाना करतूत करने के बाद उसकी हत्या करने का आरोप है. इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने बेहद कड़ा रूख अपनाया है. उधर, उन्नाव रेप केस में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सीबीआई से 2 मई तक केस में स्टेटस रिपोर्ट फाइल करने के लिए कहा है.
बॉलीवुड एक्ट्रेस और बीजेपी सांसद हेमा मालिनी ने कठुआ और उन्नाव रेप केस में आखिर अपनी चुप्पी तोड़ते हुए दोषियों को फांसी देने की मांग की है. और कहा है कि ऐसे मामलों में मीडिया के समर्थन के साथ  राष्ट्रीय स्तर पर आंदोलन होने चाहिए. उन्होंने ट्वीट कर अपनी चिंता जाहिर की. 
उन्होंने ट्वीट करते हुए कहा कि इन जानवरों के खिलाफ, जो बच्चों और मासूमों को भी नहीं छोड़ते, मीडिया के जबरदस्त समर्थन के साथ राष्ट्रीय स्तर पर विरोध प्रदर्शन होना चाहिए... मैं मेनका जी (मेनका गांधी) से सहमत हूं कि दोषी साबित होने पर तत्काल मौत की सजा दी जान चाहिए और सभी दुष्कर्मो (नाबालिग) के लिए कोई जमानत या माफी नहीं मिलनी चाहिए... 
रवीना टंडन ने भी अपने ट्वीट में कहा कि – एक दुष्कर्म पीड़िता ने अपने पिता को खो दिया- ये चैनल वाले विधायक से जुड़े मामले दिखाने के बजाय यह दिखला रहे हैं कि सुबह किसने छोले भठूरे खाये?
जम्मू एवं कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने शनिवार को कठुआ जिले में आठ साल की बच्ची के साथ दुष्कर्म के बाद उसकी हत्या किए जाने के मामले में आरोपी चार पुलिसकर्मियों को बर्खास्त कर दिया. आधिकारिक सूत्रों ने यहां कहा कि मुख्यमंत्री ने जम्मू एवं कश्मीर उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर मामले की सुनवाई 90 दिनों में समाप्त करने के लिए त्वरित अदालत की मांग की है. जानकार सूत्रों ने कहा कि राज्य सरकार ने मामले में आरोपी एक उपनिरीक्षक, एक हवलदार और दो विशेष पुलिस अधिकारियों को बर्खास्त कर दिया है. राज्य सरकार ने यह कदम भाजपा के दो मंत्रियों चौधरी लाल सिंह और चंद्र प्रकाश गंगा के इस्तीफे के एक दिन बाद उठाया है. दोनों ही गठबंधन सरकार में मंत्री थे. दोनों मंत्री कठुआ में आठ साल की बच्ची के साथ दुष्कर्म और हत्या मामले के आरोपियों के समर्थन में निकाली गई रैली में शामिल हुए थे. 
बकरवाल समुदाय से ताल्लुक रखने वाली नाबालिग बच्ची का 10 जनवरी को अपहरण हुआ था. उसे कठुआ जिले के रसाना गांव के एक मंदिर में रखा गया था.  जहाँ उसका बलात्कार कर निर्मम हत्या कर दी गयी.
उन्नाव दुष्कर्म प्रकरण के बारे में इलाहाबाद उच्च न्यायालय की टिप्पणियों से यह साफ है कि भाजपा सरकार दुष्कर्म के आरोपियों को बचा रही है. यह निश्चित तौर पर 'जन विश्वासघात' है. उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री अपने पद का दुरुपयोग कर रहे हैं और अपनी जिम्मेदारियों का निवर्हन करने में नाकाम रहे हैं. राज्य में उनके रवैये के कारण भारतीय जनता पार्टी का शासन महिलाओं, दलितों और किसानों के लिए 'रावण राज' बन गया है. भाजपा के नेता दुष्कर्म के आरोपियों को सरंक्षण दे रहे हैं. पूरे मामले में राज्य की भाजपा सरकार और प्रशासन आरोपी विधायक के प्रभाव में काम कर रहे हैं. कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि भाजपा की मौजूदा प्रदेश सरकार के कार्यकाल में महिलाओं के खिलाफ अपराधों में बेहताशा बढ़ोत्तरी हुई है.
उन्नाव मामले में जनाक्रोश इतना बढ़ा कि इलाहाबाद हाई कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेकर सरकार को फटकार लगाई तब जाकर आरोपी विधायक कुलदीप सिंह सेंगर की गिरफ्तारी होती है. अब सीबीआई इस आरोप के जांच में लग गयी है संभवत: न्याय होगा और पीड़िता को न्याय मिलेगा. पर उसके पिता को तो जेल में ही पीटकर पीटकर मार डाला उसे कैसे वापस लायेंगे?
आश्चर्य इस बात का भी है कि उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री के साथ साथ प्रधान मंत्री भी दोनों मुद्दों पर कुछ दिन खामोश रहे बाद में या कहा जाय मीडिया के दबाव में इनलोगों ने अपनी चुप्पी तोड़ी और कहा कि बेटियों के साथ न्याय होगा. न्यायालय के दखल के बाद आरोपी विधायक की गिरफ्तारी होती है. हो सकता है कानून इंसाफ करे. पर इस प्रकार की घटनाओं में कोई कमी नहीं आ रही....प्रतिदिन अखबार और अन्य मीडिया में इन्ही ख़बरों की भरमार होती है. आखिर कब रुकेगा महिलाओं और बेटियों पर जुल्म! पुरुष की पाशविक वृत्ति में कब कमी आयेगी? क्या मनोवैज्ञानिक, बुद्धिजीवी, प्रशासन और सार्वजनिक जीवन में सामाजिक मुद्दों पर बहस करने वाले, कोई स्थाई समाधान खोज पायेंगे ताकि हमारी बच्चियां जो आज भी हर क्षेत्र में पुरुषों से कन्धा से कन्धा मिलाकर काम कर रही है उनकी स्वतंत्रता और भय के वातावरण में कोई कमी आयेगी? सवाल चुभनेवाला है. पर है चिंतनीय. क्या न्यायव्यवस्था दोषी नहीं है जहाँ फैसले आने में वर्षों लग जाते हैं और अंतत: आरोपी छूट जाता है, अगर उसके पास पैसा और पॉवर है. तो क्या बेटियों को अपनी रक्षा के लिए खुद का हथियार उठाना जरूरी हो गया है? दोषी चाहे कोई भी हो उसे तत्काल सजा नहीं मिलनी चाहिए? महिला और बच्चियों की सुरक्षा के लिए हर वर्ग को साथ आना चाहिए. सारे विकास के दावे धरे रह जायेंगे, अगर इस आधी आबादी के साथ न्याय नहीं होगा. एक बार फिर मजबूत जन-जागरण की आवश्यकता है. कई लोग अपने मुहल्लों में यह पोस्टर लगा रहे है कि फलां राजनीतिक दल के लोग इस मुहल्ले में न आयें, क्योंकि इस मुहल्ले में बहन बेटियां रहती हैं. डॉ. अम्बेडकर की १२७ जयन्ती मनाई गयी पर उनके विचारों को हम कब अपनाएंगे. संविधान की रक्षा कैसे होगी? महात्मा गाँधी के साथ अन्य महापुरुषों के विचारों  को अपनाना ज्यादा जरूरी है बशर्ते कि उनकी हर चौक चौराहे मूर्तियाँ लगाई जाय, उनकी जयन्ती मनाने में दिखावा किया जाय! यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते नमन्ते तत्र देवता केवल वेदवाक्य बनकर न रहा जाय बल्कि उसे जीवन में भी उतारा जाय! क्या भगवान में आस्था केवल दिखावा है. अगर हम भगवान और धर्म को मानते हैं तो इस प्रकार के अन्याय तो कदापि नहीं करते. दरअसल ये लोग धर्म को और भगवान को सिर्फ कवच के रूप में इस्तेमाल करते हैं. जरूरत है कि हम सभी अपने अन्दर झांकें और अन्दर की आत्मा को देखें कि वह क्या कह रही है?      
-   -  जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर  

Wednesday, 11 April 2018

देश के किसानों और नौजवानों की समस्या


एक किसान की समस्या - अक्तूबर के महीने में आलू के जो बीज बोए थे उनका उत्पादन काफी कम हुआ है. वे पहले से बर्बादी का सामना कर रहे थे मगर इस बार मार और पड़ गई है. इस समस्या का समाधान आखिर कब निकलेगा. उस किसान के अनुसार- एक एकड़ में चालीस पैकेट आलू का बीज लगता है. आम तौर पर चालीस पैकेट से 250 पैकेट आलू उपजता है मगर इस बार तो 80 पैकेट भी नहीं निकला है. यूपी सरकार सारे ख़र्चे जोड़ कर 650 रुपये प्रति क्विंटल आलू देने की बात करती है मगर सारा आलू कहां खरीद पाती है. आलू किसान ने बताया कि नोटबंदी के समय से ही वे बर्बादी झेल रहे हैं. अब अगर आलू थोक मंडी में 30 रुपये किलो बिकेगा तभी उनकी लागत निकलेगी. इसके लिए 1500 रुपये प्रति क्विंटल का भाव चाहिए. ज़्यादातर आलू उत्पादकों का यही हाल है. 
गन्ना किसानों ने चीनी मिलों को गन्ना तो दे दिया मगर पैसा नहीं मिला है. केंदीय खाद्य व सार्वजनिक वितरण राज्य मंत्री सी आर चौधरी ने संसद में बयान दिया है कि 31 जनवरी 2018 तक देश भर में चीनी मिलों पर 14000 करोड़ से अधिक का बकाया है. इतना पैसा किसानों के पास नहीं गया है. यूपी के गन्ना किसानों पर 8000 करोड़ से अधिक का बकाया है. जबकि यूपी सरकार ने वादा किया था कि 14 दिनों के अंदर पेमेंट होगा. कई जगह से किसान बताते हैं कि जनवरी के बाद से पैसे नहीं मिल रहे हैं. सोचिए इतना पैसा हाथ में नहीं होने से किसानों की क्या हालत होती होगी. किसान बीज लेता है, खाद लेता है, टाइम पर नहीं देगा तो ब्याज देना पड़ेगा. 
राजस्थान से एक किसान ने लिखा है कि सरसों का न्यूनतम समर्थन मूल्य 4000 रुपये प्रति क्विंटल है, मगर बाज़ार में कही 3500 से 3600 रुपये से ज्यादा का भाव नहीं है. चना का समर्थन मूल्य है 4400 रुपये प्रति क्विंटल और बाज़ार भाव है 3600 रुपये प्रति क्विंटल.
इतना हंगामा होने के बाद भी न्यूनतम समर्थन मूल्य की ये हकीकत है. जब तक किसान प्रदर्शन नहीं करते तब तक सरकार भी चुस्त नहीं होती है. प्रदर्शन सहन्तिपूर्ण ढंग से हो और कोई सशक्त नेता उनके साथ न हो तो मीडिया भी खोज खबर नहीं लेता. उलटे सोशल मीदोया पर उन्हें नकली किसान या नक्सली तक बोल देते हैं. सब्जी अच्छी हुई तो दाम आधे... लागत भी नहीं निकलेगी. अभी रब्बी फसल की कटाई और संचयन का समय है तो आंधी पानी ओला वृष्टि हो रही रही है जिससे रब्बी की तैयार फसल बर्बाद हो रही है.
इन सबके बीच अच्छी या बुरी ख़बर जो भी कह लें यह है कि भारत में पेट्रोल की राजनीति ख़त्म हो गई है. होती तो 75 से 85 रुपये प्रति लीटर पेट्रोल का दाम होने पर मिट्टी तेल डालकर पुतले फूंके जा रहे होते. महाराष्ट्र के ही 16 से ज़्यादा शहरों में पेट्रोल का भाव 80 रुपये से अधिक है. कुछ दिन पहले औरंगाबाद में एक लीटर पेट्रोल का दाम 85 रुपये से अधिक हो गया था. अब वैसे अर्थशास्त्री भी नहीं मिलते हैं जो चार साल पहले पेट्रोल डीज़ल के दाम बढ़ने पर गंभीर लेख लिखा करते थे. लगता है कि वे सारे अर्थशास्त्री लाफ्टर चैलेंज में चले गए हैं.  मुंबई में एक लीटर पेट्रोल का दाम 81 रुपये 83 पैसे हो गया है और पटना में 79 रुपये 49 पैसे. इससे पहले भारत की जनता आर्थिक रूप से इनती समझदार नहीं थी वर्ना तो 70 रुपये प्रति लीटर दाम देखकर ही सड़कों पर पुतला दहन होने लगता था. दिल्ली में पहली बार पेट्रोल 74 रुपये प्रति लीटर पहुंच गया है. 
राहुल गांधी ने जब एक ट्वीट किया तो उसके जवाब में पेट्रोलियम मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान ने भी ट्वीट किया और कहा कि पेट्रोलियम उत्पादों के दाम तय करना राजनीति की तरह एक गंभीर काम है, जिसके इतने अधिक कारक होते हैं, जितने लोकसभा में  कांग्रेस के एमपी नहीं है. धर्मेन्द्र प्रधान ने यह बताया कि पेट्रोल के दाम बढ़ाने के इतने फैक्टर होते हैं जितने कांग्रेस के सांसद नहीं हैं लोकसभा में. इससे पहले जब वे खुद विपक्ष में पेट्रोल के दाम बढ़ने पर विरोध करते थे तब कितने कारण होते थे उन्होंने यह नहीं बताया. धर्मेंद्र प्रधान ने एक और ट्वीट किया, जिसमें कहा कि पेट्रोल और डीजल के बढ़ते दाम के पीछे का अर्थशास्त्र ऐसे व्यक्ति को समझ नहीं आएगा, जिसका यथार्थ और तर्क से ज़ीरो कनेक्शन है. उम्मीद है कि राहुल गांधी स्वीकार करेंगे कि देश की बेहतरी के लिए अच्छी अर्थव्यवस्था, लोकप्रिय राजनीति से हमेशा अच्छा होता है. तो देश की बेहतरी के लिए पेट्रोल के दाम 80 पार हैं. ये तो है कि जिस खुशी के साथ जनता ने 80 रुपये प्रति लीटर पेट्रोल खरीदना शुरू किया है उतना खुश वो कभी 65 रुपये प्रति लीटर पेट्रोल खरीद कर नहीं होती थी. पेट्रोल का दाम बढ़ना वाकई गंभीर विषय है. विपक्ष का आरोप हल्का था और मंत्री का आरोप भी वैसा ही था. उन्हें बताना था कि फिर वे 65 रुपये प्रति लीटर दाम बढ़ने पर क्यों प्रदर्शन करते थे, तब क्या उनका यथार्थ और लाजिक से कनेक्शन नहीं होता था.
आब आते हैं नौजवानों की समस्या पर - दिल्ली सबोर्डिनेट स्टाफ सलेक्शन बोर्ड ने बुधवार को हाईकोर्ट में हलफनामा भी पेश किया है. सोशल ज्यूरिस्ट नाम की संस्था ने कोर्ट में याचिका दायर की है कि दिल्ली सरकार के 9232 और निगम स्कूलों के लिए 5906 शिक्षकों की भर्ती परीक्षा की तारीख घोषित करे. छात्रों से बोर्ड की चेयरमैन ने कहा कि 1 महीने के अंदर परीक्षाओं के कैलेंडर बन जाए और लंबित परीक्षाएं होने लगेंगी. करीब 15000 शिक्षकों की भर्ती नहीं हो रही है, परीक्षा नहीं हो रही है, क्लास ख़ाली रहते होंगे, इसे लेकर कहीं कोई इमरजेंसी चर्चा भी नहीं है. कितना दुखद है. अभी तक इन 15000 लोगों को नौकरी मिल गई होती तो समाज का कितना भला होता. नौजवानों को रोज़गार मिलता और बच्चों को मास्टर. पिछले 7 साल से कोई सीधी बहाली नहीं हुई है. क्या यह मज़ाक नहीं है. रेलवे ने खुद संसद की स्थाई समिति में माना है. अब जाकर मंत्री जी 1 लाख नौकरियां निकालने को लेकर ट्वीट कर रहे हैं, मगर जो भर्ती पूरी होने का ट्रैक रिकॉर्ड है उससे बहुत उत्साहित नहीं होना चाहिए. रेलवे में भर्ती होने में आम तौर दो से तीन साल लग जाते हैं. हां अगर अक्तूबर नवंबर तक नौकरियां मिल जाए तो क्या बात. वैसे कई परीक्षाएं जो पहले हो चुकी हैं उनका अप्वाइटमेंट लेटर आज तक नहीं मिला है. 2 लाख 20 हज़ार पद ख़ाली हैं तो वैंकेसी 1 लाख की ही क्यों आई है. बाकी के 1 लाख 20 हज़ार कब आएंगे. क्या बेरोज़गार कम हो गए हैं देश में. 90,000 की वैकेंसी के लिए ही ढाई करोड़ बेरोज़गारों ने फॉर्म भरे हैं. 
500
रुपये फॉर्म का था मगर रवीश कुमार के प्राइम टाइम में जब बात उठी तो 100 रुपये करना पड़ गया. नौजवानों को भर्तियों का खेल समझना है. उन्हें पैनी नज़र रखनी चाहिए. नौकरी देने को लेकर जो प्रचार होगा और जो नौकरी दी जाएगी दोनों में समय और अप्वाइंटमेंट लेटर को लेकर कितना अंतर है. गोरखपुर के एक नौजवान का कहना है कि, 'मैंने रेलवे के कैटरिंग इंस्पेक्टर की परीक्षा पास की है. नवंबर 2017 में ही फाइनल रिज़ल्ट आ गया था. अभी मेडिकल टेस्ट और ज्वाइनिंग लेटर का पता नहीं चल रहा है. चीफ पर्सनल ऑफिस गोरखपुर को ट्वीट किया तो जवाब नहीं मिला. अब सुन रहे हैं कि नई नीति के अनुसार कैटरिंग इंस्पेक्टर की ज़रूरत नहीं होगी तो इसमें हमारी क्या ग़लती है ?'
वाकई जब परीक्षा दी है तो ज्वाइनिंग होनी चाहिए. इस तरह से छात्र कैसे भरोसा करेंगे. इस तरह के कई और मामले हैं. इसलिए रेल मंत्री को एक लाख नौकरियों के विज्ञापन भी करें मगर इस बात पर ज़्यादा ध्यान दें कि नौकरी मिले. छह महीने के भीतर परीक्षा हो जाए.
एनआईटी मिज़ोरम के छात्र 31 मार्च की रात से यहां धरने पर बैठे हैं. इनका आरोप है कि प्रशासन की लापरवाही से इलेक्ट्रिकल एंड इलेक्ट्रानिक्स इंजिनयरिंग के प्रथम वर्ष के छात्र देवशरण की मौत हुई है. देवशरण भी यहां खराब खाना और अशुद्ध पानी के खिलाफ धरना में शामिल था. देवशरण बिहार के खगड़िया का रहने वाला था.
इस तरह देश भर के नौजवानों की यही समस्या है. टी वी पर मुद्रा योजना, स्टार्ट उप योजना के खूब विज्ञापन दिखलाये जाते हैं. उसी पर मीडिया ने इन सबकी वास्तविकता भी दिखला दी है. लोन के लिए कैसे कैसे पापड़ बेलने पड़ते हैं... bank मेनेजर के सामने नाक रगड़ने हूते है तब भी सबको उतनी आसानी से लोन नहीं मिलता. आंकड़े सब झूठे दिखलाये जाते हैं. लोन वैसे लोगों को आसानी से मिल जाता है जो लोन लेअक्र चुकता नहीं करते और और आराम से रसूखदार बन विदेशों में घूमते रहते हैं.
२०२२ का सपना दिखलाया जा रहा है उसके पहले २०१८-१९ तक के हालात पर चर्चा कर लें. घोषणाओं को जमीन पर उतारकर सच्चे आंकड़ें पेश करें.... अगर किसान और नौजवान खुश होंगे या कम से कम रोजगार पाकर अपना जीवन बसर करने लायक हो जायेंगे तो उन्हें न तो हड़ताल करने की फुर्सत रहेगी आ ही रैलियों, जुलूसों में झंडा बैनर लेकर चलने की फुर्सत होगी. पर सरकार और राजनीतिक पार्टियाँ यही तो चाहती हैं कि लोग बेरोजगार बने रहें. रैलियों, जुलूसों में भीड़ बढ़ाते रहें .... टी वी पर विकास दिखता रहेगा. टी वी पर बहसें होगी और संसद हंगामें की भेट चढ़ता रहेगा. 
उम्मीद की जानी चाहिए मोदी जी और उनके सिपहसलार वास्तविक मुद्दे और समस्यायों को हल करने की कोशिश करेंगे, ताकि कुछ तो खुशहाली आये और लोग कह सकें कि अच्छे दिन आ गए..
जय जवान के किसान सिर्फ नारा से तो कुछ नहीं होगा.
-    जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.