हमारा देश विभिन्न
संस्कृतियों परम्पराओं और त्योहारों के लिए प्रसिद्ध है. अंग्रेजी कैलेंडर की तरफ
से देखें तो यह इस साल का पहल पर्व होगा जो देश के विभिन्न हिस्से में हर्षोल्लास
के साथ मनाया जायेगा या कहें मनाया जा रहा है. सूर्य देव के मकर परायण के अवसर पर
सभी तरह के पवित्र और पुनीत कार्यक्रम जो प्रतिबंधित थे, अब शुरू हो जायेंगे.
शीतकाल अपनी चरम स्थिति के बाद शायद मद्धिम पड़ने लगे और खरीफ फसलों की कटाई और
रब्बी की फसलों की बुवाई भी चरम पर हो. हम काम तो प्रतिदिन करते ही हैं पर त्योहार
उन नियमित कार्यों से हटकर जीवन को मनोरम बनाने के लिए ही बनाये गए हैं. कल तक सभी
प्रकार के किसान, मजदूर, निम्न और मध्यम वर्ग के लोग जो नित्य के कार्यों में
ब्यस्त थे आज कुछ हटकर क्रिया-कलाप करेंगे. देश के विभिन्न भागों में वहां की
परंपरा, जलवायु, फसल आदि के आधार पर ही ये पर्व-त्योहार के रूप भी तय किये जाते
हैं. पंजाब और उत्तर भारत के कुछ हिस्सों में यह लोहड़ी के रूप में मनाया जाता है.
लोहड़ी
से संबद्ध परंपराओं एवं रीति-रिवाजों से ज्ञात होता है कि प्रागैतिहासिक गाथाएँ भी
इससे जुड़ गई हैं. दक्ष प्रजापति की पुत्री सती के योगाग्नि-दहन की याद में ही यह
अग्नि जलाई जाती है. इस अवसर पर विवाहिता पुत्रियों को माँ के घर से 'त्योहार' (वस्त्र, मिठाई, रेवड़ी, फलादि) भेजा जाता है. यज्ञ के समय अपने जामाता शिव का भाग न
निकालने का दक्ष प्रजापति का प्रायश्चित्त ही इसमें दिखाई पड़ता है. उत्तर प्रदेश
के पूर्वांचल में 'खिचड़वार' और दक्षिण भारत के 'पोंगल' पर भी-जो 'लोहड़ी' के समीप ही मनाए जाते हैं, बेटियों को भेंट की जाती है. लोहड़ी
से २०-२५ दिन पहले ही बालक एवं बालिकाएँ 'लोहड़ी' के लोकगीत गाकर लकड़ी और उपले इकट्ठे करते हैं. संचित
सामग्री से चौराहे या मुहल्ले के किसी खुले स्थान पर आग जलाई जाती है. मुहल्ले या
गाँव भर के लोग अग्नि के चारों ओर आसन जमा लेते हैं. घर और व्यवसाय के कामकाज से
निपटकर प्रत्येक परिवार अग्नि की परिक्रमा करता है. रेवड़ी (और कहीं कहीं मक्की के
भुने दाने) अग्नि की भेंट किए जाते हैं तथा ये ही चीजें प्रसाद के रूप में सभी
उपस्थित लोगों को बाँटी जाती हैं. घर लौटते समय 'लोहड़ी' में से
दो चार दहकते कोयले, प्रसाद
के रूप में,
घर पर लाने की प्रथा भी है. जिन
परिवारों में लड़के का विवाह होता है अथवा जिन्हें पुत्र प्राप्ति होती है, उनसे पैसे लेकर मुहल्ले या गाँव भर में बच्चे ही बराबर-बराबर
रेवड़ी बाँटते हैं.
झाड़खंड में मकर संक्रांति के त्योहार में क्षेत्र के चार प्रमुख नदियों
में लोग दो दिनों तक आस्था की डुबकी लगाते हैं. हालांकि ज्यादातर लोग रविवार को ही रोरो, कुजूर, वैतरणी व कारो
नदी में स्नान कर सूर्य को अर्घ्य अर्पित कर चुके. वहीं कई लोग सोमवार को भी पवित्र नदियों
में स्नान कर सूर्य को अर्घ्य देंगे. मकर संक्रांति के पर्व पर लगने वाले मेले व नदियों में स्नान
के लिए उमड़ने वाली भीड़ के मद्देनजर जगह-जगह पुलिस बलों व दंडाधिकारियों की
प्रतिनियुक्ति की गई है. क्षेत्र का सबसे
बड़ा पर्व होने के कारण होटलों व दुकानदारों में कर्मियों की कमी हो गई है. ऐसे में क्षेत्र के दो दर्जन से भी ज्यादा छोटे होटल बंद हो जाएंगे. नववर्ष के बाद से ही क्षेत्र के लोग तैयारी में जुट गए थे. दूर दराज गांव से सब्जी लेकर आने वाले दो-तीन
दिन अनुपस्थित रहेंगे. सफाईकर्मी भी ज्यादातर स्थानीय लोग ही होते हैं. वे लोग भी
दो-चार दिन की छुट्टी मनाएंगे और शहर की सफाई संभवत: उतनी नहीं हो पायेगी, जितनी
अन्य दिनों में होती है. हाँ अति आवश्यक सेवा निर्बाध ढंग से चलती रहेगी, यही रीति
और नीति है. देश में मकर पर्व को अलग-अलग नाम से मनाया
जाता है. कहीं टुसू, पोंगल तो कहीं
बिहू और लोहढ़ी के नाम से भी जाना जाता है
मकर पर्व को लेकर गांवों में टुसू गीत गूंजने लगे हैं. लजीज व्यंजन बनाने की तैयारी में लोग जुटे हैं. यह पर्व मांस-पीठा पर्व के नाम से जाना जाता है. मकर अवसर पर कई स्थानो मे धार्मिक मेले लगते हैं. जैंतगढ़ मे रामतीर्थ स्थल, नीलकंठ के संगम स्थल, और केसरकुंड में धार्मिक मेला लगेगा. इस अवसर पर मकर मेहमाननवाजी होती है. 14 जनवरी को रामतीर्थ व केसरकुंड और 15 जनवरी को नीलकंठ, कादोकोड़ा, सियालजोड़ा व बाराटिबरा में धार्मिक मेला लगेगा. जमशेदपुर शहर के पास जोयदा मंदिर के आस-पास लगभग एक सप्ताह का मेला चलेगा. इसमें घरों में नए अरवा चावल को भिगोया जाता है. ढेंकी में कूटकर चावल का आटा बनाया जाता है, जिससे गुड़-पीठा बनता है. 13 जनवरी को बाउंडी पर्व मनाया जाएगा. बाउंडी के मौके पर घरों में विशेष पूजा अर्चना की जाती है. इस दिन सभी घरों में पीठा बनाया जाता है, घर के सभी लोग एक साथ बैठकर पीठा खाते हैं. इसके बाद मकर संक्राति के अवसर पर टुसू पर्व मनाया जाएगा. इस अवसर पर लोग पवित्र नदी व स्थानीय जलाशयों में आस्था की डुबकी लगाएंगे. मौके पर श्रद्धालु नए वस्त्र धारण करेंगे और मंदिरों में पूजा अर्चना कर दान पुण्य कमाएंगे. मकर संक्रांति के दिन टुसू और चौड़ल का विसर्जन किया जाता है. पूरे गांव की महिलाएं-लड़कियां और बच्चे समूह बनाकर नदी या तलाब में टुसू गीतों के साथ झूमते गाते पहुंचते हैं. पर्व को लेकर तैयारी अब अंतिम चरण हाट बाजारों में खरीदारी के लिए लोगों की अच्छी खासी भीड़ उमड़ रही थी. खासकर कपड़ों, जूतों की दुकानों में खरीदारी के लिए लोग पहुंच रहे थे. इसके साथ राशन की दुकानों में गुड़, तेल, तिल, चूड़ा आदि समेत पर्व में बनाए जाने वाले पकवानों के लिए सामान की खरीदारी की गई. चारों ओर टुसू गीत गूंजने लगे हैं. मकर संक्रांति के अवसर पर मनाए जाने वाले टुसू पर्व के दौरान लगने वाले मेले की अच्छी-खासी तैयारी की गयी है. टुसू पर्व में गुड़ पीठा, मुढ़ी-लड्डू, चूड़ा-लड्डू, तिल-लड्डू आदि का विशेष महत्व है. सास्कृतिक विविधताओं का प्रदेश झारखंड प्राकृतिक पर्वो और विशिष्ट संस्कृति को समेटे हुए है. पूर्णतया एवं विशुद्ध रूप से कृषि एवं प्रकृति पर ही आधारित इन्हीं पर्वो में से एक मुख्य पर्व है टुसू. यह पर्व फसल, धान कटनी के उपरात मनाया जाता है. समय में बदलाव के साथ मेले का स्वरूप भी बदलने लगा और टुसू भासान के उपरात भी लोग अपने-अपने प्रभाव क्षेत्र में सुविधानुसार दिनों का चयन कर विभिन्न स्थलों पर मेला का आयोजन कराने लगे है.
मकर पर्व को लेकर गांवों में टुसू गीत गूंजने लगे हैं. लजीज व्यंजन बनाने की तैयारी में लोग जुटे हैं. यह पर्व मांस-पीठा पर्व के नाम से जाना जाता है. मकर अवसर पर कई स्थानो मे धार्मिक मेले लगते हैं. जैंतगढ़ मे रामतीर्थ स्थल, नीलकंठ के संगम स्थल, और केसरकुंड में धार्मिक मेला लगेगा. इस अवसर पर मकर मेहमाननवाजी होती है. 14 जनवरी को रामतीर्थ व केसरकुंड और 15 जनवरी को नीलकंठ, कादोकोड़ा, सियालजोड़ा व बाराटिबरा में धार्मिक मेला लगेगा. जमशेदपुर शहर के पास जोयदा मंदिर के आस-पास लगभग एक सप्ताह का मेला चलेगा. इसमें घरों में नए अरवा चावल को भिगोया जाता है. ढेंकी में कूटकर चावल का आटा बनाया जाता है, जिससे गुड़-पीठा बनता है. 13 जनवरी को बाउंडी पर्व मनाया जाएगा. बाउंडी के मौके पर घरों में विशेष पूजा अर्चना की जाती है. इस दिन सभी घरों में पीठा बनाया जाता है, घर के सभी लोग एक साथ बैठकर पीठा खाते हैं. इसके बाद मकर संक्राति के अवसर पर टुसू पर्व मनाया जाएगा. इस अवसर पर लोग पवित्र नदी व स्थानीय जलाशयों में आस्था की डुबकी लगाएंगे. मौके पर श्रद्धालु नए वस्त्र धारण करेंगे और मंदिरों में पूजा अर्चना कर दान पुण्य कमाएंगे. मकर संक्रांति के दिन टुसू और चौड़ल का विसर्जन किया जाता है. पूरे गांव की महिलाएं-लड़कियां और बच्चे समूह बनाकर नदी या तलाब में टुसू गीतों के साथ झूमते गाते पहुंचते हैं. पर्व को लेकर तैयारी अब अंतिम चरण हाट बाजारों में खरीदारी के लिए लोगों की अच्छी खासी भीड़ उमड़ रही थी. खासकर कपड़ों, जूतों की दुकानों में खरीदारी के लिए लोग पहुंच रहे थे. इसके साथ राशन की दुकानों में गुड़, तेल, तिल, चूड़ा आदि समेत पर्व में बनाए जाने वाले पकवानों के लिए सामान की खरीदारी की गई. चारों ओर टुसू गीत गूंजने लगे हैं. मकर संक्रांति के अवसर पर मनाए जाने वाले टुसू पर्व के दौरान लगने वाले मेले की अच्छी-खासी तैयारी की गयी है. टुसू पर्व में गुड़ पीठा, मुढ़ी-लड्डू, चूड़ा-लड्डू, तिल-लड्डू आदि का विशेष महत्व है. सास्कृतिक विविधताओं का प्रदेश झारखंड प्राकृतिक पर्वो और विशिष्ट संस्कृति को समेटे हुए है. पूर्णतया एवं विशुद्ध रूप से कृषि एवं प्रकृति पर ही आधारित इन्हीं पर्वो में से एक मुख्य पर्व है टुसू. यह पर्व फसल, धान कटनी के उपरात मनाया जाता है. समय में बदलाव के साथ मेले का स्वरूप भी बदलने लगा और टुसू भासान के उपरात भी लोग अपने-अपने प्रभाव क्षेत्र में सुविधानुसार दिनों का चयन कर विभिन्न स्थलों पर मेला का आयोजन कराने लगे है.
बिहार के काफी
लोग मकर पर्व को दही-चूड़ा-गुड़ के साथ तिलकुट, तिल के लड्डू, आदि खाकर मनाते हैं.
खाने से पहले नदियों में पवित्र स्नान करके तिल, चूड़ा आदि को छूकर दान करने के लिए
निकलते हैं जिन्हें ब्राह्मणों या जरूरतमंदों को दान कर दिया जाता है. किसान के नई
फसल के ही सभी उत्पाद होते हैं. चूड़ा नए धान का होता है. गुड़ भी नया नया बनता है.
तिल बादाम आदि के भी पैदावार इसी समय होते हैं. नई फसल के उत्पाद के साथ किसान और
मजदूर नए कपड़े, जूते आदि पहनकर मेला जाते हैं और नाच गाकर खुशी मानते हैं. नीलकंठ
पक्षी और मछली का दर्शन भी शुभ माना जाता है. दूसरे दिन या उसी दिन शाम को खिचड़ी
भी खाने की परंपरा है.
सारांश यही
है कि पर्व त्योहार के नाम पर ही हम कम से कम प्रकृति के पास होते हैं और
प्राकृतिक नदियों में पुण्य स्नान कर सूर्य देवता को अर्घ्य भी देते हैं. प्रयाग
में माघमेला का आयोजन भी हो रहा है. इसे भी धार्मिक मान्यता और आस्था से ही जोड़कर
देखा जाता है. इसी पर्व त्योहार के माध्यम से हम एक दूसरे के करीब होते हैं और बधू-बांधव
संग मिलते भी हैं. अब एक और परंपरा बनती जा रही है कि पर्व त्योहार को भी सियासी और
शक्ति प्रदर्शन के रूप में देखने लगे हैं. एक समय लालू यादव के घर मकर संक्रांति और
होली को अनूठे अंदाज में मनाया जाता था. आज वे जेल में दही-चूड़ा खाकर संतुष्ट हैं
और नितीश कुमार लालू को छोड़कर भाजपा नेताओं के साथ दही-चूड़ा खाकर मुघ्ध हैं. इस
बार दही का टीका भाजपा के लोगों ने पहले ही लगा दिया था. जीतन राम मांझी और राम
विलास पासवान ने भी इस बार नितीश के साथ ही दही-चूड़ा का आनंद लिया. तो गुजरात में
रुपानी जी पतंगबाजी करते नजर आए! तो इजरायल के राष्ट्रपति नेतन्याहू भारत के
आतिथ्य स्वीकार कर रहे हैं. मोदी जी नेतन्याहू को गले लगाकर भारत का दर्शन करवा
रहे हैं. यही है भारत भूमि और यहाँ की परंपरा. न्यायिक व्यवस्था पर कोई टिप्पणी
करने योग्य हम अपने आप को नहीं समझते. जो हो रहा है वह भी समय की मांग है! आगे जो
होगा समय के अनुसार ही होगा. समय की गणना करनेवालों में से एक सूर्यदेव भी हैं. जय
सूर्यदेव! जयहिंद!
- जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.
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