Saturday, 20 January 2018

प्रभुता पाई जाहि मद नाहीं

गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस में बहुत पहले लिख दिया था -  
नहिं कोउ अस जनमा जग माहीं, प्रभुता पाई जाहि मद नाहीं.
अर्थात संसार में ऐसा कोई नहीं है जिसको प्रभुता पाकर घमंड न हुआ हो 
आम आदमी पार्टी को दूसरी बार के दिल्ली विधान सभा के चुनाव के बाद जब ७० में से ६७ सीटें मिली थी तो अरविन्द केजरीवाल ने शपथ ग्रहण समारोह के दिन ही कहा था. हमें बहुत बड़ा बहुमत और बहुत बड़ी जिम्मेवारी मिली है. पर इस बहुमत का अहं हमारे पास नहीं होना चाहिए! अहम् किसी के लिए भी विनाश का कारण होता है. पौराणिक और ऐतिहासिक पात्रों के चरित्र से हम यही समझ पाए हैं. पर ऐसा बिलकुल सत्य है कि प्रभुता, पद, सम्मान, यश आदि प्राप्त हो जाने के पास सबके पास अहंकार आ ही जाता है. भगवान राम के परम भक्त हनुमान जी को और श्री बिष्णु भगवान के परम भक्त नारद जी के मन में भी अहंकार का भाव आ ही गया था, जिसे भगवान ने खुद ही लीला करके अहंकार को मिटाया भी था. रावण, कंस, हिरन्यकश्यप आदि तो राक्षस कुल से थे तो उनका अहंकार चूर होना ही था. अभी हम केजरीवाल जी पर आते हैं. ६७ सीट पाने के बाद उनपर और उनके विधायकों/मंत्रियों पर कई बार अनेक प्रकार के आरोप लगे.... पहले उन्होंने उनका बचाव किया... बाद में दोषी साबित हो जाने के बाद या तो हटाया या कानूनन पदत्याग करना पड़ा.
कई बार बिना पर्याप्त सबूत के विरोधियों पर आरोप लगाते रहे. जिसके चलते उन्हें कोर्ट या कोर्ट के बाहर माफी भी माँगनी पड़ी है. अपनी पार्टी के प्रभावशाली लोगों को एक-एक कर नाराज करते चले गए या पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाते रहे. योगेन्द्र यादव और प्रशांत भूषण इनको मदद करनेवालों में से थे, पर उन्हें पार्टी से बाहर निकाल दिया. कपिल मिश्रा चाहे जिसके बहकावे मे बोलते रहें पर फ़िलहाल केजरीवाल की बोलती बंद करनेवालों में से एक वह भी हैं, जो पार्टी से सस्पेंडेड होकर बागी का रोल निभा रहे हैं. अंतिम कील के रूप में  कुमार विश्वास रहे जिन्हें राज्य सभा की सीट की उम्मीद थी और केजरीवाल ने उन्हें नाराज करते हुए गुप्ता द्वय को दे दिया. जाते जाते चुनाव आयोग के अध्यक्ष ए. के. जोती साहब ने २० विधायकों पर लगे लाभ के पद के मामले में भी अपना फैसला सुनाते हुए विधायक पद के लिए अयोग्य करार कर दिया. अभी मामला राष्ट्रपति के पास है, जानकार बताते हैं चुनाव आयोग का फैसला मानने के लिए राष्ट्रपति भी बाध्य हैं. अभी मामला कोर्ट में भी चल रहा है. फैसला क्या होगा यह तो भविष्य बताएगा पर केजरीवाल को मुश्किल में डालने के लिए यह फैसला काफी है.
वैसे हाल फिलहाल में प्रधान मंत्री श्री मोदी ने भी  iCreate  का उद्घाटन करते हुए कहा था – मैंने i को जानबूझकर छोटा रखवाया क्योंकि I अगर बड़ा हो जाता है अहंकार का बोध होता है. मगर का ऐसा है क्या? प्रधान मंत्री हर काम की सफलता का श्रेय खुद ही लेते हैं. अपने भाषणों में भी ज्यदातर मैं का इस्तेमाल करते हैं. चलिए उनकी बात हम यहाँ क्यों करें? वे तो संत फ़कीर हैं! उनकी तुलना यहाँ क्यों?     
दूसरी बात – एक कहावत है “जल में रहे मगर से बैर?” यह भी उचित नहीं. लगभग सभी लोग समझ चुके हैं और मगर के सामने सर झुका कर खुद ग्रास बन जाते हैं या बना लिए जाते हैं. यह कैसे हो सकता है कि पूरे देश की राजधानी दिल्ली में भाजपा की सरकार हो वहां के तख़्त पर विश्व विजेता बैठा हो, और उसके ही अपने घर में जो कि एक सम्पूर्ण राज्य भी नहीं है, उसका शासन एक अदना सा आम आदमी पार्टी का नेता के हाथ में हो और वह अच्छे-अच्छे काम करके मुंह चिढ़ाता रहे.... गंदी बात!

अब आते है वर्तमान विषय पर- रवीश कुमार के ही शब्दों में – “हर सरकार तय करती है कि लाभ का पद क्या होगा, इसके लिए वह कानून बनाकर पास करती है. इस तरह बहुत से पद जो लाभ से भी ज़्यादा प्रभावशाली हैं, वे लाभ के पद से बाहर हैं. लाभ के पद की कल्पना इसलिए की गई थी कि सत्ता पक्ष या विपक्ष के विधायक सरकार से स्वतंत्र रहें. क्या वाक़ई होते हैं? बात इतनी थी कि मंत्रियों के अलावा विधायक कार्यपालिका का काम न करें, सदन के लिए उपलब्ध रहें और जनता की आवाज़ उठाएं. सदन चलते नहीं और लाभ के पद के नाम पर आदर्श विधायक की कल्पना करने की मूर्खता भारतीय मीडिया में ही चल सकती है. जब ऐसा है तो फिर व्हीप क्यों है, क्यों व्हीप जारी कर विधायकों को सरकार के हिसाब से वोट करने के लिए कहा जाता है. व्हीप तो खुद में लाभ का पद है. किसी सरकार में दम है क्या कि व्हीप हटा दे. व्हीप का पालन न करने पर सदस्यता चली जाती है. बक़ायदा सदन में चीफ़ व्हीप होता है ताकि वह विधायकों या सांसदों को सरकार के हिसाब से वोट के लिए हांक सके. अगर इतनी सी बात समझ आती है तो फिर आप देख सकेंगे कि चुनाव आयोग या कोई भी दिल्ली पर फालतू में चुनाव थोप रहा है जिसके लिए लाखों या करोड़ों फूंके जाएंगे. अदालती आदेश भी लाभ के पद को लेकर एक जैसे नहीं हैं. उनमें निरंतरता नहीं है. बहुत से राज्यों में हुआ है कि लाभ का पद दिया गया है. कोर्ट ने उनकी नियुक्ति को अवैध ठहराया है, उसके बाद राज्य ने कानून बना कर उसे लाभ का पद से बाहर कर दिया है और अदालत ने भी माना है. फिर दिल्ली में क्यों नहीं माना जा रहा है? कई राज्यों में retrospective effect यानी बैक डेट से पदों को लाभ के पद को सूची से बाहर किया गया. संविधान में प्रावधान है कि सिर्फ क्रिमिनल कानून को छोड़ कर बाकी मामलों में बैक डेट से छूट देने के कानून बनाए जा सकते हैं. कांता कथुरिया, राजस्थान के कांग्रेस विधायक थे. लाभ के पद पर नियुक्ति हुई. हाईकोर्ट ने अवैध ठहरा दिया. राज्य सरकार कानून ले आई, उस पद को लाभ के पद से बाहर कर दिया. तब तक सुप्रीम कोर्ट में अपील हो गई, सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार भी कर लिया. विधायक की सदस्यता नहीं गई. ऐसे अनेक केस हैं.
2006
में शीला दीक्षित ने 19 विधायकों को संसदीय सचिव बनाया. लाभ के पद का मामला आया तो कानून बनाकर 14 पदों को लाभ के पद की सूची से बाहर कर दिया. केजरीवाल ने भी यही किया. शीला के विधेयक को राष्ट्रपति की मंज़ूरी मिल गई, केजरीवाल के विधेयक को मंज़ूरी नहीं दी गई.
मार्च 2015 में दिल्ली में 21 विधायक संसदीय सचिव नियुक्त किए जाते हैं. जून 2015 में छत्तीसगढ़ में भी 11 विधायकों को संसदीय सचिव नियुक्त किया जाता है. इनकी भी नियुक्ति हाईकोर्ट से अवैध ठहराई जा चुकी है, जैसे दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली के विधायकों की नियुक्ति को अवैध ठहरा दिया.
छत्तीसगढ़ के विधायकों के मामले में कोई फैसला क्यों नहीं, कोई चर्चा भी क्यों नहीं? जबकि दोनों मामले एक ही समय के हैं. मई 2015 में रमन सिंह सरकार ने 11 विधायकों को संसदीय सचिव बना दिया. इसके बारे में किसी को कुछ पता नहीं है. न्यू इंडियन एक्सप्रेस में 1 अगस्त 2017 को ख़बर छपी है कि छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने सभी संसदीय सचिवों की नियुक्ति रद्द कर दी है क्योंकि इनकी नियुक्ति राज्यपाल के दस्तख़त से नहीं हुई है. दिल्ली में भी यही कहा गया था. हरियाणा में भी लाभ के पद का मामला आया. खट्टर सरकार में ही. पांच विधायक 50 हज़ार वेतन और लाख रुपये से अधिक भत्ता लेते रहे. पंजाब हरियाणा कोर्ट ने इनकी नियुक्ति अवैध ठहरा दी. पर इनकी सदस्यता तो नहीं गई. राजस्थान में भी दस विधायकों के संसदीय सचिव बनाए जाने का मामला चल ही रहा है. पिछले साल 17 नवंबर को हाईकोर्ट ने वहां के मुख्य सचिव को नोटिस भेजा है. इन्हें तो राज्य मंत्री का दर्जा दिया गया है. मध्य प्रदेश में भी लाभ के पद का मामला चल रहा है. वहां तो 118 विधायकों पर लाभ के पद लेने का आरोप है. 20 विधायकों के लिए इतनी जल्दी और 118 विधायकों के बारे में कोई फ़ैसला नहीं? 2016 में अरुणाचल प्रदेश में जोड़ तोड़ से बीजेपी की सरकार बनती है. सितंबर 2016 में मुख्यमंत्री प्रेमा खांडू 26 विधायकों को संसदीय सचिव नियुक्त कर देते हैं. उसके बाद अगले साल मई 2017 में 5 और विधायकों को संसदीय सचिव नियुक्त कर देते हैं. अरुणाचल प्रदेश में 31 संसदीय सचिव हैं. वह भी तो छोटा राज्य है. वहां भी तो कोटा होगा कि कितने मंत्री होंगे. फिर 31 विधायकों को संसदीय सचिव क्यों बनाया गया? क्या लाभ का पद नहीं है? अरविंद केजरीवाल की आलोचना हो रही है कि 21 विधायकों को संसदीय सचिव क्यों बनाया? मुझे भी लगता है कि उन्हें नहीं बनाना चाहिए था. पर क्या कोई अपराध हुआ है, नैतिक या आदर्श या संवैधानिक पैमाने से? केजरीवाल अगर आदर्श की राजनीति कर रहे हैं, इसलिए उन्हें 21 विधायकों को संसदीय सचिव नहीं बनाना चाहिए था तो फिर बाकी मुख्यमंत्री आदर्श की राजनीति नहीं कर रहे हैं?”  जयहिंद! तो कहना पड़ेगा न?
- जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.

Sunday, 14 January 2018

मकर संक्रांति और टुसू : हर्षोल्लास और नहाने-खाने का पर्व!

हमारा देश विभिन्न संस्कृतियों परम्पराओं और त्योहारों के लिए प्रसिद्ध है. अंग्रेजी कैलेंडर की तरफ से देखें तो यह इस साल का पहल पर्व होगा जो देश के विभिन्न हिस्से में हर्षोल्लास के साथ मनाया जायेगा या कहें मनाया जा रहा है. सूर्य देव के मकर परायण के अवसर पर सभी तरह के पवित्र और पुनीत कार्यक्रम जो प्रतिबंधित थे, अब शुरू हो जायेंगे. शीतकाल अपनी चरम स्थिति के बाद शायद मद्धिम पड़ने लगे और खरीफ फसलों की कटाई और रब्बी की फसलों की बुवाई भी चरम पर हो. हम काम तो प्रतिदिन करते ही हैं पर त्योहार उन नियमित कार्यों से हटकर जीवन को मनोरम बनाने के लिए ही बनाये गए हैं. कल तक सभी प्रकार के किसान, मजदूर, निम्न और मध्यम वर्ग के लोग जो नित्य के कार्यों में ब्यस्त थे आज कुछ हटकर क्रिया-कलाप करेंगे. देश के विभिन्न भागों में वहां की परंपरा, जलवायु, फसल आदि के आधार पर ही ये पर्व-त्योहार के रूप भी तय किये जाते हैं. पंजाब और उत्तर भारत के कुछ हिस्सों में यह लोहड़ी के रूप में मनाया जाता है.   
लोहड़ी से संबद्ध परंपराओं एवं रीति-रिवाजों से ज्ञात होता है कि प्रागैतिहासिक गाथाएँ भी इससे जुड़ गई हैं. दक्ष प्रजापति की पुत्री सती के योगाग्नि-दहन की याद में ही यह अग्नि जलाई जाती है. इस अवसर पर विवाहिता पुत्रियों को माँ के घर से 'त्योहार' (वस्त्र, मिठाई, रेवड़ी, फलादि) भेजा जाता है. यज्ञ के समय अपने जामाता शिव का भाग न निकालने का दक्ष प्रजापति का प्रायश्चित्त ही इसमें दिखाई पड़ता है. उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में 'खिचड़वार' और दक्षिण भारत के 'पोंगल' पर भी-जो 'लोहड़ी' के समीप ही मनाए जाते हैं, बेटियों को भेंट की जाती है. लोहड़ी से २०-२५ दिन पहले ही बालक एवं बालिकाएँ 'लोहड़ी' के लोकगीत गाकर लकड़ी और उपले इकट्ठे करते हैं. संचित सामग्री से चौराहे या मुहल्ले के किसी खुले स्थान पर आग जलाई जाती है. मुहल्ले या गाँव भर के लोग अग्नि के चारों ओर आसन जमा लेते हैं. घर और व्यवसाय के कामकाज से निपटकर प्रत्येक परिवार अग्नि की परिक्रमा करता है. रेवड़ी (और कहीं कहीं मक्की के भुने दाने) अग्नि की भेंट किए जाते हैं तथा ये ही चीजें प्रसाद के रूप में सभी उपस्थित लोगों को बाँटी जाती हैं. घर लौटते समय 'लोहड़ी' में से दो चार दहकते कोयले, प्रसाद के रूप में, घर पर लाने की प्रथा भी है. जिन परिवारों में लड़के का विवाह होता है अथवा जिन्हें पुत्र प्राप्ति होती है, उनसे पैसे लेकर मुहल्ले या गाँव भर में बच्चे ही बराबर-बराबर रेवड़ी बाँटते हैं.  
झाड़खंड में मकर संक्रांति के त्योहार में क्षेत्र के चार प्रमुख नदियों में लोग दो दिनों तक आस्था की डुबकी लगाते हैं. हालांकि ज्यादातर लोग रविवार को ही रोरो, कुजूर, वैतरणी व कारो नदी में स्नान कर सूर्य को अर्घ्य अर्पित कर चुके. वहीं कई लोग सोमवार को भी पवित्र नदियों में स्नान कर सूर्य को अर्घ्य देंगे. मकर संक्रांति के पर्व पर लगने वाले मेले व नदियों में स्नान के लिए उमड़ने वाली भीड़ के मद्देनजर जगह-जगह पुलिस बलों व दंडाधिकारियों की प्रतिनियुक्ति की गई है. क्षेत्र का सबसे बड़ा पर्व होने के कारण होटलों व दुकानदारों में कर्मियों की कमी हो गई है. ऐसे में क्षेत्र के दो दर्जन से भी ज्यादा छोटे होटल बंद हो जाएंगे. नववर्ष के बाद से ही क्षेत्र के लोग तैयारी में जुट गए थे. दूर दराज गांव से सब्जी लेकर आने वाले दो-तीन दिन अनुपस्थित रहेंगे. सफाईकर्मी भी ज्यादातर स्थानीय लोग ही होते हैं. वे लोग भी दो-चार दिन की छुट्टी मनाएंगे और शहर की सफाई संभवत: उतनी नहीं हो पायेगी, जितनी अन्य दिनों में होती है. हाँ अति आवश्यक सेवा निर्बाध ढंग से चलती रहेगी, यही रीति और नीति है. देश में मकर पर्व को अलग-अलग नाम से मनाया जाता है. कहीं टुसू, पोंगल तो कहीं बिहू और लोढ़ी के नाम से भी जाना जाता है
मकर पर्व को लेकर गांवों में टुसू गीत गूंजने लगे हैं. लजीज व्यंजन बनाने की तैयारी में लोग जुटे हैं. यह पर्व मांस-पीठा पर्व के नाम से जाना जाता है. मकर अवसर पर कई स्थानो मे धार्मिक मेले लगते हैं. जैंतगढ़ मे रामतीर्थ स्थल, नीलकंठ के संगम स्थल, और केसरकुंड में धार्मिक मेला लगेगा. इस अवसर पर मकर मेहमाननवाजी होती है. 14 जनवरी को रामतीर्थ व केसरकुंड और 15 जनवरी को नीलकंठ, कादोकोड़ा, सियालजोड़ा व बाराटिबरा में धार्मिक मेला लगेगा. जमशेदपुर शहर के पास जोयदा मंदिर के आस-पास लगभग एक सप्ताह का मेला चलेगा. इसमें घरों में नए रवा चावल को भिगोया जाता है. ढेंकी में कूटकर चावल का आटा बनाया जाता है, जिससे गुड़-पीठा बनता है. 13 जनवरी को बाउंडी पर्व मनाया जाएगा. बाउंडी के मौके पर घरों में विशेष पूजा अर्चना की जाती है. इस दिन सभी घरों में पीठा बनाया जाता है, घर के सभी लोग एक साथ बैठकर पीठा खाते हैं. इसके बाद मकर संक्राति के अवसर पर टुसू पर्व मनाया जाएगा. इस अवसर पर लोग पवित्र नदी व स्थानीय जलाशयों में आस्था की डुबकी लगाएंगे. मौके पर श्रद्धालु नए वस्त्र धारण करेंगे और मंदिरों में पूजा अर्चना कर दान पुण्य कमाएंगे. मकर संक्रांति के दिन टुसू और चौड़ल का विसर्जन किया जाता है. पूरे गांव की महिलाएं-लड़कियां और बच्चे समूह बनाकर नदी या तलाब में टुसू गीतों के साथ झूमते गाते पहुंचते हैं. पर्व को लेकर तैयारी अब अंतिम चरण हाट बाजारों में खरीदारी के लिए लोगों की अच्छी खासी भीड़ उमड़ रही थी. खासकर कपड़ों, जूतों की दुकानों में खरीदारी के लिए लोग पहुंच रहे थे. इसके साथ राशन की दुकानों में गुड़, तेल, तिल, चूड़ा आदि समेत पर्व में बनाए जाने वाले पकवानों के लिए सामान की खरीदारी की गई. चारों ओर टुसू गीत गूंजने लगे हैं. मकर संक्रांति के अवसर पर मनाए जाने वाले टुसू पर्व के दौरान लगने वाले मेले की अच्छी-खासी तैयारी की गयी है. टुसू पर्व में गुड़ पीठा, मुढ़ी-लड्डू, चूड़ा-लड्डू, तिल-लड्डू आदि का विशेष महत्व है. सास्कृतिक विविधताओं का प्रदेश झारखंड प्राकृतिक पर्वो और विशिष्ट संस्कृति को समेटे हुए है. पूर्णतया एवं विशुद्ध रूप से कृषि एवं प्रकृति पर ही आधारित इन्हीं पर्वो में से एक मुख्य पर्व है टुसू. यह पर्व फसल, धान कटनी के उपरात मनाया जाता है. समय में बदलाव के साथ मेले का स्वरूप भी बदलने लगा और टुसू भासान के उपरात भी लोग अपने-अपने प्रभाव क्षेत्र में सुविधानुसार दिनों का चयन कर विभिन्न स्थलों पर मेला का आयोजन कराने लगे है.
बिहार के काफी लोग मकर पर्व को दही-चूड़ा-गुड़ के साथ तिलकुट, तिल के लड्डू, आदि खाकर मनाते हैं. खाने से पहले नदियों में पवित्र स्नान करके तिल, चूड़ा आदि को छूकर दान करने के लिए निकलते हैं जिन्हें ब्राह्मणों या जरूरतमंदों को दान कर दिया जाता है. किसान के नई फसल के ही सभी उत्पाद होते हैं. चूड़ा नए धान का होता है. गुड़ भी नया नया बनता है. तिल बादाम आदि के भी पैदावार इसी समय होते हैं. नई फसल के उत्पाद के साथ किसान और मजदूर नए कपड़े, जूते आदि पहनकर मेला जाते हैं और नाच गाकर खुशी मानते हैं. नीलकंठ पक्षी और मछली का दर्शन भी शुभ माना जाता है. दूसरे दिन या उसी दिन शाम को खिचड़ी भी खाने की परंपरा है.
सारांश यही है कि पर्व त्योहार के नाम पर ही हम कम से कम प्रकृति के पास होते हैं और प्राकृतिक नदियों में पुण्य स्नान कर सूर्य देवता को अर्घ्य भी देते हैं. प्रयाग में माघमेला का आयोजन भी हो रहा है. इसे भी धार्मिक मान्यता और आस्था से ही जोड़कर देखा जाता है. इसी पर्व त्योहार के माध्यम से हम एक दूसरे के करीब होते हैं और बधू-बांधव संग मिलते भी हैं. अब एक और परंपरा बनती जा रही है कि पर्व त्योहार को भी सियासी और शक्ति प्रदर्शन के रूप में देखने लगे हैं. एक समय लालू यादव के घर मकर संक्रांति और होली को अनूठे अंदाज में मनाया जाता था. आज वे जेल में दही-चूड़ा खाकर संतुष्ट हैं और नितीश कुमार लालू को छोड़कर भाजपा नेताओं के साथ दही-चूड़ा खाकर मुघ्ध हैं. इस बार दही का टीका भाजपा के लोगों ने पहले ही लगा दिया था. जीतन राम मांझी और राम विलास पासवान ने भी इस बार नितीश के साथ ही दही-चूड़ा का आनंद लिया. तो गुजरात में रुपानी जी पतंगबाजी करते नजर आए! तो इजरायल के राष्ट्रपति नेतन्याहू भारत के आतिथ्य स्वीकार कर रहे हैं. मोदी जी नेतन्याहू को गले लगाकर भारत का दर्शन करवा रहे हैं. यही है भारत भूमि और यहाँ की परंपरा. न्यायिक व्यवस्था पर कोई टिप्पणी करने योग्य हम अपने आप को नहीं समझते. जो हो रहा है वह भी समय की मांग है! आगे जो होगा समय के अनुसार ही होगा. समय की गणना करनेवालों में से एक सूर्यदेव भी हैं. जय सूर्यदेव! जयहिंद!

-    जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.

Monday, 8 January 2018

राज्य सभा का टिकट न मिलने से कुमार विश्वास नाराज

कवि से आम आदमी पार्टी के राजनेता बने डॉ कुमार विश्वास संभवतः पार्टी के भीतर अपनी राजनैतिक भूमिका के अंत तक पहुंच गए है, क्योंकि अब अरविंद केजरीवाल उनके उन संदेशों का भी जवाब नहीं दे रहे हैं, जिनमें वह अपने 12 साल पुराने साथ का हवाला देते हुए मुलाकात की ख्वाहिश जता रहे हैं. यह दरार राज्यसभा की उन तीन सीटों के मुद्दे पर है, जो 'आप' को मिलना तय है, और जिनकी वजह से पार्टी के भीतर चल रहा घमासान उजागर हो गया है. बताया जाता है कि कुमार विश्वास से एक कदम आगे रहने की कोशिश में अरविंद केजरीवाल ने ये तीन सीटें जानी मानी हस्तियों को दिए जाने की पेशकश की, लेकिन काम नहीं बना. RBI के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने सार्वजनिक रूप से 'नहीं, शुक्रिया' कह डाला, और BJP के बागी नेताओं यशवंत सिन्हा, अरुण शौरी, नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज टीएस ठाकुर, जाने-माने वकील गोपाल सुब्रह्मण्यम, उद्योगपति सुनील मुंजाल तथा इन्फोसिस के संस्थापक एनआर नारायण मूर्ति की ओर से भी मिलते-जुलते जवाब ही आए, हालांकि वे कुछ 'चुपचाप' आए.
'इंकार' की इस झड़ी के बाद 'आप' नेता संजय सिंह का काम बन गया, दो बाहरी लोगों- चार्टर्ड एकाउंटेंट एनडी गुप्ता तथा पूर्व में कांग्रेस के साथ जुड़े रहे व्यवसायी सुशील गुप्ता के नाम भी शॉर्टलिस्ट किए गए. इससे 'आप' के कई वरिष्ठ नेताओं का संसद के उच्च सदन में पहुंचने का सपना चूर-चूर हो गया, जिनमें पूर्व पत्रकार आशुतोष भी शामिल हैं, जिनका दावा काफी मजबूत माना जा रहा था. इस बात से पार्टी कैडर और विधायक भी नाराज़ हैं. 'आप' विधायक अल्का लाम्बा ने सोशल मीडिया पर खुलकर पूर्व बैंकर मीरा सान्याल का समर्थन करते हुए कहा था कि राज्यसभा सीट उन्हें मिलनी चाहिए. दिल्ली के मंत्री तथा दो अन्य विधायकों को केजरीवाल ने यह सुनिश्चित करने का काम सौंपा है कि पार्टी विधायक दोनों बाहरी लोगों के पक्ष में ही मतदान करें. कुमार विश्वास, अपनी छवि के अनुरूप, शायराना अंदाज़ में ही अपनी तकलीफ भी बांट रहे हैं कि कैसे राजनीति की दुनिया में उनके अगले तार्किक कदम -राज्यसभा सदस्यता पाना- को नाकाम करने की कोशिश की गई. कुमार विश्वास कहते हैं, "मैं इंसान हूं, मेरी भी महत्वाकांक्षाएं हैं... मैं और बड़ी संख्या में मेरे समर्थक मानते हैं कि मुझे राज्यसभा में पहुंचना चाहिए, जहां मैं BJP और कांग्रेस के खिलाफ सधी हुई आवाज़ बन सकूंगा... मैंने अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया के साथ मिलकर आम आदमी पार्टी की स्थापना की थी"
प्रोफेसर, हिन्दी कवि और भीड़ जुटाने वाले कुमार विश्वास ने इसी साल अरविंद केजरीवाल को भी एक ज़ोरदार झटका दिया था- ऐसी ख़बरें थीं कि उन्होंने तख्तापलट लगभग कर ही डाला था, ताकि वह उस आम आदमी पार्टी के मुखिया बन सकें, जिसकी 2012 में स्थापना करने वालों में वह भी शामिल थे. वैसे पार्टी पर काबिज़ होने की यह कथित कोशिश पहला मौका नहीं था, जब कुमार विश्वास को सफाई देने के लिए मजबूर होना पड़ा हो. अब वे कह रहे हैं कि AAP में जो लोग उन्हें नीचे धकेलने के लिए दृढ़प्रतिज्ञ हैं, ताकतवर बने हुए हैं. उन्होंने ऐसे लोगों को 'कायरों' की संज्ञा दी, जो 'महाभारत के अभिमन्यु की तरह उनका वध करने के लिए एकजुट हो गए हैं...' उनकी बड़ी शिकायतों में से एक यह भी थी कि जिन अमानतुल्लाह खान ने उन्हें 'RSS एजेंट' कहा था, और उन पर तख्तापलट की साज़िश का आरोप लगाया था, उन्हें पार्टी में सभी पदों पर बहाल कर दिया गया है. वर्ष 2015 में दिल्ली में मिली शानदार जीत की बदौलत आम आदमी पार्टी दिल्ली की तीनों राज्यसभा सीटें निश्चित रूप से जीत जाएगी. ये सीटें जनवरी में खाली होंगी, जब मौजूदा सदस्यों का कार्यकाल खत्म होगा, और कुमार विश्वास का कहना है कि तीनों में से एक सीट के हकदार वह हैं. "मैं बस इतना कहना चाहता हूं कि पार्टी मेरे साथ प्रशांत भूषण योगेंद्र यादव पार्ट- 2 की योजना बना रही है... मेरे से असुरक्षा किसे महसूस हो रही है... मेरे खिलाफ काम कर रही गुट कहती रही, वह सिर्फ आलोचना करते हैं, ज़मीनी स्तर पर कोई काम नहीं करते, तो मई में मैंने कहा था, ठीक है, मुझे दिल्ली में (निगम चुनाव के लिए) काम करने दीजिए... मेरी नहीं मानी गई... फिर मैंने पंजाब के लिए कहा, वह भी नहीं मानी गई... आखिरकार, मुझे राजस्थान दिया गया, और मैं वहां गया... कहने के बावजूद AAP के केंद्रीय नेतृत्व ने एक बार भी मेरी मदद नहीं की..."
कुमार ने कहा, "जब मैंने पार्टी बनाई थी, हम विपक्ष नहीं, विकल्प बनना चाहते थे... अब लगातार सात चुनाव हारकर, जिनमें पंजाब उपचुनाव भी शामिल है, जिस तरह पार्टी चल रही है, क्या मुझे उसकी तारीफ करनी चाहिए...?"
इण्डिया टीवी के एक कार्यक्रम में कुमार विश्वास ने आम आदमी पार्टी के राज्यसभा प्रत्याशी सुशील गुप्ता की तुलना कुत्ते से कर डाली है. इस कार्यक्रम में कुमार विश्वास से शो के एंकर रजत शर्मा  ने कहा कि सोशल मीडिया में ये बातें की जा रही हैं कि सुशील गुप्ता ने 50 करोड़ रुपए दिये इसिलिए उन्हें आप ने राज्यसभा का टिकट दे दिया. इस पर कुमार ने कहा मैं ऐसा नहीं कहूंगा नहीं तो मेरे ऊपर मानहानि का मुकदमा हो जाएगा. कुमार ने आगे कहा कि हां ये जरूर पूछा जा रहा है कि सुशील गुप्ता गले में अजगर लपेटने के अलावा और क्या-क्या कर लेते हैं. कार्यक्रम में कुमार विश्वास ने बताया कि अरविंद केजरीवाल उनसे अपने ऊपर कविताएं लिखने को कहते थे. कुमार विश्वास ने बताया कि इसिलिए पिछले तीन दिनों में मैंने उनके लिए जीवन की पहली औऱ आखिरी कविता लिख दी है. शो में कुमार विश्वास ने उनपर लिखी कविता को पढ़ कर भी सुनाया. इस कविता में कुमार विश्वास ने केजरीवाल पर जमकर हमला बोला है.
इधर सोशल मीडिया पर भी आम आदमी पार्टी के समर्थक बंटे हुए दिखलाई पड़ रहे हैं पर ज्यादातर लोग अरविन्द को ही सही मन रहे हैं. कुमार विश्वास के प्रशंसक भी उनके हाल के बयानों से चिंतित हैं. कुछ कह रहे हैं- हम आम आदमी पार्टी को सिर्फ उसके द्वारा जनहित में किये जा रहे कार्यों के कारण समर्थन कर रहे हैं, पार्टी में चाहे कोई आये या जाए उससे हमें कोई फर्क नहीं पड़ता. केवल अपराधी, भ्रष्टाचारी और चरित्रहीन न आ पायें .
जिनको लगता है कि ये आप पार्टी बिना अरविंद के ज्यादा अच्छी चलेगी, वो KV को नेता बनाकर YY और PB जैसे बुद्दिजीवियों के सहयोग से अपना दमखम दिखाये तो अरविंद अपने आप खत्म हो जायेगा. अन्ना भी दुबारा आंदोलन का ऐलान कर ही चुके है. समझ नही आ रहा है कोई अन्ना, कोई KV ,कोई YY ,कोई कपिल मिश्रा, कोई बिन्नी या कोई किरण बेदी कैसे अरविंद को बना सकते है. अगर हाँ तो सब मिलकर ही दूसरा AK बना लें.
अंत में कुमार विश्वास की ही कविता - स्वयं से दूर हो तुम भी, स्वयं से दूर हैं हम भी. 
बहुत मशहूर हो तुम भी, बहुत मशहूर हैं हम भी. बड़े मगरूर हो तुम भी, बड़े मगरूर हैं हम भी, अतः मजबूर हो तुम भी, अतः मजबूर हैं हम भी. -कुमार विश्वास
जब प्रशांत भूषण और योगेन्द्र यादव को पार्टी से बाहर निकाला गया था तब भी मैंने लिखा था- जो भी हुआ वह गलत हुआ है. इसबार भी गलत या सही क्या कहूँ?... अधिकांश पार्टियाँ व्यक्ति आधरित ही हैं. भाजपा का मतलब आज मोदी और अमित शाह ही हैं. कांग्रेस के बारे में सभी जानते हैं. इसके अलावा शिवसेना से लेकर बसपा, सपा, जे डी यु, आर जे डी, बी जे डी, टी एम सी, DMK आदि अनेकों क्षेत्रीय पार्टियाँ हैं जो किसे एक सुप्रीमो के अन्दर चल रही है. AAP के बारे में लोगों की धारना अलग थी, लेकिन यहाँ भी वही सब होता दिख रहा है तो विकल्प की उम्मीद क्या की जाय. फिलहाल मोदी जी का विकल्प बनना अभी मुश्किल दीख रहा है. तो जनता को भाजपा या कांगेस में से किसी एक से ही संतोष करना पड़ेगा. भाजपा मन ही मन खुश है और वे लोग कुमार विश्वास के प्रति सहानुभूति भी जता रहे हैं. अगर कवि विश्वास का मन डोला और वे भी नीतीश कुमार की तरह अंतरात्मा की आवाज पर भाजपा में शामिल हो गए तो पता नहीं अरविन्द केजरीवाल और AAP का क्या होगा?  

-जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर