Saturday, 30 December 2017

फर्जी विज्ञापन में फंसते हम सभी

राज्यसभा में समाजवादी पार्टी के सदस्य नरेश अग्रवाल ने शुक्रवार(28.12.17) को भ्रामक विज्ञापन का मुद्दा उठाया था. इसके जवाब में उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने भी अपना अनुभव साझा किया.
अपना अनुभव बताते हुए नायडू ने कहा '28 दिन में वजन कम करने के एक विज्ञापन को अखबार में देखकर उन्होंने ऐसी दवाओं की हकीकत जानने का प्रयास किया. इसमें पता चला कि दवाओं के नाम पर फर्जी उत्पाद बेचने के लिए भ्रामक विज्ञापनों का कारोबार अमेरिका से संचालित हो रहा है. नायडू ने सरकार से इसकी तह में जाकर इस स्थिति से उपभोक्ताओं को बचाने के उपाय करने को कहा.' आगे बोलते हुए नायडू ने कहा 'मैंने भी 28 दिन में वेट लॉस करने का ऐड देखा और प्रोडक्ट ऑर्डर किया था. इसकी कीमत 1230 रुपए थी. जब पैकेट खोला तो उसमें असली दवा मंगाने के लिए 1 हजार रुपए और पेमेंट के लिए कहा गया.'
राज्यसभा में शुक्रवार को एसपी सदस्य नरेश अग्रवाल द्वारा यह मुद्दा उठाने पर मंत्री श्री राम विलास पासवान ने कहा कि सरकार समस्या की गंभीरता से अवगत है. इससे निपटने के लिए नया कानून संसद में विचाराधीन है. उन्होंने स्वीकार किया कि समस्या के समाधान में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 कारगर साबित नहीं हो पा रहा है. इसलिए नए स्वरूप में विधेयक को संसद के दोनों सदनों में पेश किया गया था, लेकिन कुछ सुझावों के साथ इसे स्थाई समिति के पास भेज दिया गया. आगे बोलते हुए उन्होंने कहा कि समिति द्वारा पेश सुझावों को संशोधित विधेयक में शामिल करने के बाद इसे मंत्रिमंडल की मंजूरी मिल गई है. जल्द ही इसे दोनों सदनों में फिर से पेश किया जाएगा. पासवान ने समस्या की गंभीरता को देखते हुए सदस्यों से इसे यथाशीघ्र पारित कराने में सकारात्मक सहयोग की अपील की.
यह तो एक उदाहरण है. यह हाई प्रोफाइल का मामला है जो तत्काल प्रकाश में आया और संभवत: इस पर त्वरित कार्रवाई संभव है. पर यह सर्वविदित है कि अनगिनत भ्रामक  विज्ञापन आये दिन समाचार पत्रों और चैनलों पर आते रहते हैं. जाने अनजाने प्रतिदिन करोड़ों लोग इसकी चपेट में भी आते ही रहते हैं. अभी प्रतिदिन सुबह सुबह अधिकांश चैनलों पर कार्यक्रम चलते हैं - मधुमेह यानी डायबिटीज कण्ट्रोल करनेवाली दवा का विज्ञापन का. इससे फायदा प्राप्त लोग भी अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं, पता नहीं कितना सत्य है? वैसे आजकल आरामप्रद जिन्दगी हो जाने के कारण अनगिनत लोग मधुमेह के शिकार हो गए हैं और पथ्य-परहेज के साथ व्यायाम के बजाय सभी चाहते हैं कि दवा से ही इस बीमारी से छुटकारा मिल जाय. उसी प्रकार उच्च रक्तचाप और हाई कोलेस्टेरॉल की समस्या भी आम हो गयी है. इनसे छुटकारे के अनेक विज्ञापन नित्य प्रतिदिन हम सभी देखते हैं और कहीं न कहीं ठगी के शिकार भी बनते हैं.
बाबा रामदेव ने वर्षों पहले योग सिखाना प्रारम्भ किया. बहुतों ने सीखा अभ्यास भी किया पर नियमित न कर सके, फलस्वरूप बीमारी से ग्रस्त हुए और तभी बाबा रामदेव ने भी दवाओं के साथ विभिन्न प्रकार की खाद्य सामग्री और घरेलू उपयोग की सामग्री का निर्माण करने लगे. लोग उनके उत्पाद भी खरीद रहे हैं और बाबा अपना व्यापार बढ़ाते चले जा रहे हैं. उनका भी बिज्ञापन हर चैनल अखबार में आता ही रहता है. किसी को उनके उत्पाद से फायदा है तो कहीं-कहीं उनके उत्पाद की गुणवत्ता पर भी उंगली उठी है.
दवाओं से हटकर अब आते हैं आम आवश्यकता के विज्ञापन पर. आज करोड़ों युवा बेरोजगार हैं और वे चाहते हैं रोजगार. ऐसे लोगों को भी नौकरी दिलाने के नाम पर अनेकों फर्जी कंपनियां और संस्थाएं फर्जी विज्ञापन निकालती है और युवाओं को झांसे में लेकर अवैद्य ढंग से वसूली भी करती है. बहुत सारे रियल स्टेट का धंधा करनेवाले भी अनेकों लोगों को घर और जमीन दिलाने के नाम पर करोड़ों रुपये डकार जा रहे हैं. केस मुक़दमे चलते रहते हैं पर पर्याप्त सबूत के अभाव में वे छूट भी जाते हैं.
इधर फर्जी बाबाओं का धंधा भी जोर-शोर से चल रहा है. इनके जाल में भी अच्छे-अच्छे लोग यहाँ तक कि नेता भी फंसते हैं. नेता इनका समर्थन भी करते नजर आते हैं बाद में जब अति हो जाती है. सैंकड़ों हजारों मासूम महिलाएं और बच्चियां जब इनके शिकार में फंसती हैं; कुछ तो जुल्म सहने को मजबूर होती रहती हैं, पर उन्ही में से एकाध कोई हिम्मत कर सामने आता है तो सारा पोल खुल जाता है, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होती है.
हमारी सरकारें क्या नहीं चला रही है फर्जी विज्ञापन? गरीबी हटाओ से लेकर गरीबी उन्मूलन, अच्छे दिन का सपना! स्मार्ट सिटीज, डिजिटल इण्डिया, मेक इन इण्डिया, नमामि गंगे, कौशल विकास, विकास और विकास ....फिर उसके अन्दर आ जाता है, धर्म, सम्प्रदाय और जाति ... प्रदर्शन, रैलियां, झूठे भाषण और वादे .... और प्रभावित होते आम नागरिक ....
कहावत है जो दिखता है वही बिकता है ...आज यह युक्ति पूरी तरह से यथार्थ साबित हो रही है. चाहे फिल्म का विज्ञापन हो या राजनीतिक सामाजिक संस्था का, सभी बढ़-चढ़ कर अपनी सेवा और उत्पाद के बारे में प्रचार करते हैं. दूसरों की जमकर बुराई भी करते हैं .... शिकार होता है आम आदमी.... गरीब जनता.    
इन सबकी जड़ में जायेंगे तो पाएंगे कि कहीं न कहीं हम भी दोषी हैं. हम मिहनत नहीं करना चाहते है, जल्द से जल्द धनवान, बलवान और बुद्धिमान बन जाना चाहते हैं. हम चाहते हैं बिमारियों से छुटकारा पर न तो स्वच्छता अपनाएंगे न ही मिहनत कर खेतों से सही उत्पादन करेंगे. हम पढेंगे नहीं, पर आरामदायक नौकरी चाहिए. नौकरी मिल भी गयी तो अपना काम नहीं करेंगे, तनख्वाह बढ़नी चाहिए. बैठे-बैठे हमारे खाते में १५ लाख आ जाने चाहिए. अच्छे दिन का जाप करने मात्र से ही अच्छे दिन आ जायेंगे! अब २०२२ तक तो सबको अपना घर मिल ही जायेगा, फिर हमें क्या करना है. अपने कर्म पर भरोसा न कर बाबाजी के प्रवचन और मन्त्र पर भरोसा कर उनके चंगुल में फंसेंगे.
हम भूल जाते हैं कि - कर्म प्रधान बिश्व करि राखा, जो जस करहिं सु तस फल चाखा.
और सकल पदारथ यहि जग माही, करमहीन नर पावत नाहीं.  जिन्होंने भी सफलता के  मुकाम को हासिल किया है उन्होंने काफी मिहनत की है समर्पित भावना से काम किया है तभी वे लोग सफल हो पाए है है फिर भी स्पर्धा के इस दौड़ में चुनौतियाँ बनी रहती है. लगातार मिहनत करनी होगी. विघ्न-बाधाओं से निपटाना ही होगा. अपने शरीर आर घर बहार की सफाई स्वयं करनी होगी. किसी से सहायता की आकांक्षा रखने से पहले किसी को सहायता पहुंचानी होगी.
तुम बेसहारा हो तो, किसी का सहारा बनो. तुमको अपने आप ही, सहारा मिल जायेगा.
अपने को काबिल बनाओ मिहनत करो फिर देखो सफलता कैसे तुम्हारा कदम चूमती है. लोग तो कहेंगे ही क्योंकि लोगों का कम ही है कहना ... करना तो हमें है ...नहीं? २०१७ अब जा चुका है. नए वर्ष २०१८ का हम सब स्वागत को तैयार हैं पर कुछ तो नया संकल्प लेना होगा अपने आपको सक्षम बनाने का संकल्प. खुद के पैरों पर खड़े होने का संकल्प! दूसरों/जरूरतमंदों का सहारा बनने का संकल्प. किसी का बुरा न चाहने या न करने का संकल्प! और इसी संकल्प के साथ आप सभी को नए साल की ढेर सारी शुभकामनाएं !

जयहिंद ! जय भारत! 
– जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.   

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