Saturday, 30 September 2017

अथ श्री भागवत कथा

विजय दशमी के दिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने मोदी सरकार की जमकर तारीफ तो की लेकिन राष्ट्रवादी नीतियों पर. संघ प्रमुख ने अपने एक घंटे से ज्यादा की स्पीच में जहां मोदी सरकार की राष्ट्रवादी नीतियों का जिक्र करते हुए जमकर सराहना की, वहीं आर्थिक नीतियों पर संदेह जताया. साथ ही सरकार को आर्थिक नीतियों पर फिर से विचार करने की सलाह भी दे डाली. संघ के स्थापना दिवस पर स्वयंसेवकों को संबोधित करते हुए भागवत ने सबसे पहले मुंबई हादसे का जिक्र किया और संवेदना व्यक्त की. मुंबई हादसा जितना संवेदनशील था उसपर एक्शन भी जल्द हुआ और वर्तमान रेल मंत्री पीयूष गोयल ने कई सुधारों के फैसले लिए और कई मुद्दों को सुरक्षा के साथ जोड़ा जिसे जी एम लेवल पर फैसले लिए जा सकते हैं. उम्मीद है रेलवे में तात्कालिक नहीं तो कुछ महीनों बाद सुधार देखने को मिले खासकर सुरक्षा के मामले में.
कश्मीर को लेकर भी भागवत ने मोदी सरकार की तारीफ की. उन्होंने कहा कि सरकार ने मजबूती के साथ अलगाववादियों और उग्रवादियों का बंदोबस्त किया है. पुलिस और सेना को काम करने की पूरी छूट देकर राष्ट्रविरोधी ताकतों को मिलने वाली ताकत का रास्ता बंद किया है. साथ ही सरकार को नसीहत भी दी कि कश्मीर में विकास के लिए चुस्ती दिखाए. विस्थापितों की दिक्कतों का जिक्र करते हुए उन्होंने कश्मीरी पंडितों की दिक्कतों को भी बयां किया. साथ ही कहा कि अलगाववादियों और उग्रवादियों पर कड़ाई जारी रखते हुए ऐसे कदम उठाने चाहिए जिससे जम्मू-कश्मीर के लोगों को आत्मीयता का अनुभव हो. इसके लिए अगर नए प्रावधान बनाने पड़े या पुराने प्रावधान हटाने पड़े तो वह करना चाहिए. यह जरूरी है कि भारत के साथ कश्मीर की जनता का आत्मीकरण हो.
नए और पुराने प्रावधान की बात करना भागवत का धारा 370 की तरफ इशारा है. धारा-370 हटाना बीजेपी और संघ का प्रमुख अजेंडा रहा है. लेकिन जम्मू-कश्मीर में पीडीपी के साथ सरकार बनाने के बाद से बीजेपी इस मसले पर ज्यादा कुछ नहीं बोल रही है. संघ परिवार के कई संगठन इसके लिए लगातार दबाव बना रहे हैं और भागवत का यह कहना संघ के लोगों की भावना का इजहार करना है.
भागवत ने कहा कि बांग्लादेशी अवैध घुसपैठियों की समस्या अभी पूरी तरह निपटी भी नहीं कि म्यांमार से खदेड़े गए रोहिंग्या आ गए. अगर उन्हें आश्रय दिया तो वह हमारे रोजगार पर तो भार डालेंगे ही साथ ही देश की सुरक्षा के लिए भी संकट बनेंगे. उनका इस देश से नाता क्या है. मानवता की बात ठीक है पर उसके अधीन होकर अपने मानवत्व को समाप्त करे यह ठीक नहीं. भागवत ने सीमा पर तैनात सैनिकों को ज्यादा सुविधा देने पर भी जोर दिया. उन्होंने कहा कि उनके खाने पीने और सुविधा का ध्यान रखना होगा.
रोहिंग्या पर संघ शुरू से ही मोदी सरकार के कदम के साथ है. एक सैनिक का खराब खाने की शिकायत का विडियो आने के बाद मोदी सरकार पर यह सवाल उठने लगे थे कि देशभक्ति की बात करने वाली सरकार सैनिकों को सही से खाना तक नहीं दे सकती. भागवत ने यह दिखाने की कोशिश की कि संघ लोगों की इस भावना के साथ है और साथ ही सरकार को नसीहत भी दे डाली कि वह इस तरह के मसले पर ज्यादा ध्यान दें.
जहां राष्ट्रवादी नीतियों पर भागवत ने मोदी सरकार को पूरा समर्थन दिया वहीं आर्थिक नीतियों पर सवाल भी खड़े कर दिए. मोदी सरकार की कई योजनाओं का जिक्र करते हुए भागवत ने कहा कि भ्रष्टाचार खत्म करने और आर्थिक प्रगति के लिए कई योजनाएं चली. कई साहसपूर्ण फैसले भी लिए. लेकिन यह देखना होगा कि अर्थनीति से सबका भला हो रहा है या नहीं. उन्होंने कहा कि हमें दुनिया की घिसी-पिटी अर्थनीति की बजाय अपनी नीति बनानी चाहिए. साथ ही कहा कि मध्यम, लघु, कुटीर उद्योग, खुदरा व्यापारी, स्वरोजगार, कृषि और इनफॉर्मल इकॉनमी की वजह से ही हम आर्थिक भूचालों में सुरक्षित रहे. इसलिए आर्थिक सुधार करते वक्त यह ध्यान रखना होगा कि यह सुरक्षित रहें. उन्होंने कृषि का जिक्र करते हुए कहा कि कोई भी नई तकनीक लाने से पहले उसके परिणाम सोचने चाहिए. जो तकनीक दूसरे देश अपने वहां तो बंद कर रहे हैं लेकिन भारत में बेच रहे हैं उनसे सावधान रहने की सलाह भी दी. उन्होंने कहा कि किसानों के बच्चें खेती नहीं करना चाहते क्योंकि गांवों में उन्हें सुविधा नहीं मिल रही है. सरकार से इस तरफ भी ध्यान देने की बात कही. पिचले दिनों किसानों की आत्महत्या, उनके आन्दोलन और गोली चालान की घटना सुर्खियों में थी इसपर श्री भागवत की चिंता जायज है.  
निष्कर्ष - नोटबंदी और फिर जीएसटी के बाद सरकार की आर्थिक नीतियों पर सवाल उठने लगे हैं. कई छोटे और मझोले व्यापारियों ने विरोध जताया. संघ परिवार के संगठनों ने भी इन व्यापारियों के समर्थन में सरकार का विरोध किया. नाराजगी इस बात को लेकर है कि लोगों के रोजगार छिने हैं और व्यापारियों को भारी नुकसान हुआ है, साथ ही दिक्कतों का भी सामना करना पड़ रहा है. बीजेपी के अंदर से भी आर्थिक नीतियों को लेकर सवाल खड़े हुए हैं. संघ की हाल ही में हुई एक उच्च स्तरीय मीटिंग में भी नोटबंदी और जीएसटी को लेकर लोगों में सरकार के खिलाफ असंतोष की बात सामने आई. भागवत ने यह कहकर मोदी सरकार को नसीहत दी है कि वह आर्थिक नीतियों में इस बात का ख्याल रखे. स्वदेशी जागरण मंच बीटी को लेकर विरोध कर रहा है. सरकार से लगातार यह कह रहा है कि विदेशियों के दबाव में न आएं. भागवत ने उनकी चिंता से खुद को जोड़ा. संघ की तरफ से पहली बार इस तरह आर्थिक मोर्चे पर सरकार को नीतियां सुधारने की नसीहत दी गई है. साथ ही किसानों की तरफ ज्यादा ध्यान देने की सलाह भी संघ ने दी, क्योंकि सरकार किसानों और आर्थिक मसलों पर ही विपक्ष के निशाने पर है. उम्मीद है कि यहाँ पर जेटली जी मोहन भागवत की उम्र या हैसियत पर तंज कसने की हिमाकत तो नहीं ही करेंगे जैसा कि उन्होंने यशवंत सिन्हा द्वारा उठाये गए सवालों पर पलटवार कर किया था.
भागवत ने कहा कि कहीं गाय के नाम पर कुछ हिंसा हो जाती है तो उसका संबंध गोरक्षकों से जोड़ना गलत है. गाय की रक्षा करने वालों की भी हत्या हुई है. यूपी में सिर्फ बजरंगदल के लोग ही नहीं बल्कि मुस्लिम गोरक्षक भी शहीद हुए हैं. गोरक्षा को सांप्रदायिकता और हिंसा से नहीं जोड़ना चाहिए. उन्होंने कहा कि जब शासन में ऊंचे पदों पर बैठे लोग कुछ कहते हैं तो शब्दों का आधार लेकर उसे बिगाड़ा जाता है. इसकी चिंता गोरक्षकों को नहीं करनी चाहिए क्योंकि यह उनके लिए नहीं है. गोरक्षक कानून का पालन करते हैं और उसकी निगरानी भी करते हैं. संघ प्रमुख ने कहा कि आजकल विजिलांटे शब्द को गाली जैसा बना दिया और गाय शब्द का उच्चारण करने वाले पर यह शब्द चिपका देते हैं. संविधान बनाने वाले मार्गदर्शन देने वाले वे भी विजिलांटे थे क्या. ऊंचे पदों पर बैठे लोग और सुप्रीम कोर्ट ने जो कहा उसकी चिंता वह लोग करेंगे जो लोग गुनहगार होंगे. गोरक्षकों को उसकी चिंता करने की जरूरत नहीं है. पीएम मोदी कई मौकों पर गोरक्षकों की हिंसा के खिलाफ अपना गुस्सा जता चुके हैं और राज्य सरकारों से गोरक्षा के नाम पर होने वाली हिंसा से सख्ती से निपटने का निर्देश दे चुके हैं. सुप्रीम कोर्ट ने भी हाल ही में निर्देश दिए कि हर राज्य में गोरक्षा के नाम पर हिंसा रोकने के लिए हर जिले में नोडल अफसर तैनात किए जाएं. ये सुनिश्चित करें कि कोई भी विजिलेंटिजम ग्रुप कानून को अपने हाथ में ना लें. इसके बाद संघ के संगठनों की तरफ से नाराजगी भी जताई जा रही थी कि गोरक्षकों को बदनाम करने की कोशिश हो रही है. भागवत का यह कहना संदेश है कि वह गोरक्षक के साथ खड़े हैं.
भागवत ने कहा कि हम 70 साल से आजाद हैं लेकिन पहली बार दुनिया को और हमको थोड़ा-थोड़ा अनुभव हो रहा है कि भारत है और उठ रहा है. भारत की अंतरराष्ट्रीय जगह में प्रतिष्ठा बढ़ी है. डोकलाम में धैर्यतापूर्वक और संयम के साथ अपना गौरव न खोते हुए जिस तरह डील किया उससे हमारी प्रतिष्ठा बढ़ी. अब दुनिया भारत को गंभीरता से ले रही है और भारत में दखल देने से पहले 10 बार सोचती है. आर्थिक विकास की दिशा में भारत तेजी से बढ़ा है, गति मंद हो रही है लेकिन ठीक हो जाएगी. जानकार इसे मोदी सरकार की विदेश नीति को संघ के पूरे समर्थन के तौर पर देख रहे हैं. विपक्ष मोदी सरकार पर विदेश नीति को लेकर आरोप लगाता रहा है.
कुल मिलाकर अगर देखा जाय तो वर्तमान सरकार की आर्थिक नीति जिससे लोगों के रोजगार पर असर पड़ा है, उसपर श्री मोहन भागवत ने वाजिब चिंता जाहिर की है. इसपर मोदी सरकार अवश्य सोचेगी, शायद सोच भी रही है. बाकी लगभग सभी नीतियों पर वे सरकार के साथ हैं और उसके लिए शाबाशी भी दे रहे हैं. जेटली जी जनता से जुड़े नहीं हैं, इसीलिए वे अपना चुनाव भी हार गए थे तब भी वित्त के साथ रक्षा मंत्रालय जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालय का कार्यभार दिया जाना शायद उचित नहीं था. ये बात मोदी जी समझें तब ना! नहीं समझेंगे तो भुगतना उन्हीं को पड़ेगा. जय हिन्द!

-    जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.

Saturday, 23 September 2017

प्रधान मंत्री का वाराणसी दौरा – इज्जत घर और पशुधन आरोग्य मेला

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी में प्रवास के दूसरे दिन(२३ सितम्बर को) तोहफों की बौछार के बीच विपक्ष पर भी जोरदार तंज कसा. प्रधानमंत्री ने पीएम आवास योजना के लाभार्थियों को प्रमाण पत्र वितरित किया. इस दौरान उन्होंने छोटी सी सभा को संबोधित किया. उन्होंने कहा कि हम सिर्फ वोट बैंक के लिए काम नहीं करते हैं. उन्होंने कहा कि आमतौर पर राजनीति में लोग वही काम करते हैं जिससे वोट बैंक मजवूत हो. हम ऐसे नहीं. इन पशुओं से वोट नहीं मिलना. हमारी योगी सरकार ने इनका भी मेला लगाया. बधाई! हमारे संस्कार अलग हैं. हमारे लिए दल से बड़ा देश है. पशुधन आरोग्य मेले से किसानों को बहुत मदद मिलेगी. अब तक पशुधन के लिए काम नहीं किया गया था. पशुपालन और दूध उत्पादन से नई आर्थिक क्रांति का जन्म होगा. हमारे किसानों को सबसे ज्यादा मदद पशुपालन और दुग्ध उत्पादन के जरिये होती है. दूसरे स्थानों पर भी पशु आरोग्य मेला लगाने की अपील.
2022 में देश की आजादी के 75 वर्ष पूरे होंगे सो आजादी के दीवानों का संकल्प पूरा करने का संकल्प लें और 5 साल में संकल्प सिद्ध करें. 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का संकल्प है. स्वच्छता के साथ सबको घर तो देना ही है.
पीएम ने कहा कि हमने मुश्किल काम का बीड़ा उठाया, मैं मुश्किल काम नहीं करूंगा तो कौन करेंगा. हमें करोड़ों घर बनाने हैं, जिससे रोजगार आएगा. यूरोप के एक देश जितने घर हमें बनाने हैं. पिछली सरकारों ने घर को लेकर कोई काम नहीं किया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि 2022 आजादी का 75 वां साल होगा. 2022 तक सभी को आवास का संकल्प पूरा करेंगे, पिछली सरकार को लोगों के घरों में रूचि नहीं थी. पीएम ने कहा कि मैं आज शहंशाहपुर में शौचालय की नींव रखने गया था. वहां मैंने देखा कि उन्होंने शौचालय का नाम इज्जतघर दिया. मुझे बहुत अच्छा लगा. जिसे भी अपनी इज्जत की चिंता है, वह जरूर इज्जतघरबनाएगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि संकल्प लें एक-एक, बेहतर करने का. हमें स्वच्छता की ओर बढ़ना होगा क्योंकि आरोग्य की पहली शर्त यही है. स्वच्छता मेरे लिए पूजा है. मेरा सौभाग्य है कि नवरात्र में मुझे शौचालय की नीव रखने का मौका मिला. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस गांव में एक शौचालय के लिए प्रतीकात्मक गड्ढ़ा भी खोदा.
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी सभा को संबोधित किया. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वैश्विक नेता हैं. उन्होंने तो दुनियाभर में देश का सम्मान बढ़ाया. प्रधानमंत्री के मार्ग दर्शन में आवास योजना पर काम चल रहा है. उत्तर प्रदेश में छह महीने में हमने आठ लाख लोगों को घर दिया है. आज यहां 15 हजार लोगों को घर का सर्टिफिकेट दिया जाएगा. गांवों में शौचालय के लिए 12 हजार रुपये दिए जा रहे हैं.
इसके बाद पशु आरोग्य मेले का शुभारंभ किया. शाहंशाहपुर में पशु आरोग्य मेला शुभारंभित करने के बाद प्रधानमंत्री ने वहां पर ऐसी गायों को देखा जो पॉलीथीन के सेवन से गंभीर रूप से बीमार हो गईं थी. इसके बाद इन सभी को ऑपरेशन करने के बाद फिर से स्वस्थ्य किया गया. यहां गंगातीरी नस्ल की 1000 गायों को पशु आरोग्य मेले में लाया गया है. कदरन छोटी काठी की गायें बेहद पौष्टिक दूध देती हैं, मगर इन दिनों यह नस्ल संकट में है. कम से कम इस कार्य की सराहना की जानी चाहिए और दूसरे राज्य सरकारों को भी इससे सीख लेनी चाहिए. असल में गौरक्षा का संकल्प यही होगा.
इससे पहले शुक्रवार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केंद्र और राज्य की 30 परियोजनाओं में से 17 का लोकार्पण और बाकी का शिलान्यास किया. प्रधानमंत्री ने सबसे पहले बुनकरों के लिए 305 करोड़ की लागत से बने दीनदयाल हस्तकला संकुल ट्रेड सेंटर का लोकार्पण किया. इसके बाद उन्होंने वाराणसी से बड़ोदरा को जोडऩे वाली महामना एक्सप्रेस को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया.
दीनदयाल हस्तकला संकुल के उद्घाटन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सभा को भी संबोधित किया. प्रधानमंत्री ने इस दौरान विपक्ष पर हमला किया. उन्होंने कहा कि विपक्ष की सरकारों को विकास से कोई लेना देना नहीं था. उनका मकसद सिर्फ चुनावों के समय तिजोरी के बल पर चुनाव लडऩा था. उनकी तिजोरी में अब सेंध लग चुकी है, नोट्बंदी के दौरान. भाजपा तो बिना एक पैसा खर्च किये(?) चुनाव जीतती ही जा रही है.
उन्होंने कहा कि हमारी सरकार चाहती है कि पूर्वांचल और पूर्वी भारत देश की अर्थव्यवस्था में पश्चिम भारत जैसी ताकत बने. हम इस दिशा में काम भी कर रहे हैं. प्रधानमंत्री ने कहा कि गरीबों का सपना हमारी सरकार का भी सपना है. हम उनका सशक्तिकरण करने और उन्हें सामर्थ्यवान बनाने में लगे हुए हैं.
उधर छेड़खानी से त्रस्त बीएचयू की छात्राओं का धैर्य गुरुवार देर शाम हुई घटना के बाद जवाब दे गया. शुक्रवार को शहर में पीएम मोदी के आगमन से पूर्व सुबह बड़ी संख्या में आक्रोशित छात्राएं सड़क पर उतर आईं. बीएचयू सिंहद्वार पर उनकी गर्जना से शासन-प्रशासन हिल गया. छात्राओं के आक्रोश-आंदोलन की धमक सिर्फ काशी ही नहीं दिल्ली ने भी महसूस की. छात्राओं को सिंहद्वार से न हटता देख एसपीजी को मौके पर जाना पड़ा. छात्राओं ने करीब 12 घंटे तक सिंहद्वार बंद किए रखा, जिला-पुलिस प्रशासन के हाथ-पांव फूले रहे. त्रिवेणी और महिला महाविद्यालय के हॉस्टलों की छात्राओं ने सुबह से ही आंदोलन शुरू कर दिया. उनकी मांग थी कि कुलपति आकर उन्हें सुरक्षा के प्रति आश्वस्त करें, पर वे नहीं आए. इससे पांच मिनट में ही समाप्त होने वाला आंदोलन सुबह से रात तक चलता रहा. छात्राओं ने प्रशासन पर हास्टलों में कैद करने का भी आरोप लगाया. एसएस अस्पताल आने वाले मरीजों को छात्राओं के आंदोलन से परेशानी झेलनी पड़ी. उन्हें नरिया गेट से होकर अस्पताल आना-जाना करना पड़ा. एंबुलेंस को जाने की छूट थी. पल-पल की अपडेट दिल्ली जा रही थी. छात्राओं द्वारा शाम को पीएम मोदी के काफिले की घोषणा के बाद सभी अधिकारियों के हाथ-पांव फूलने लगे.
गुरुवार की शाम बीएफए द्वितीय वर्ष की एक छात्रा दृश्यकला संकाय से हास्टल की ओर जा रही थी. आरोप है कि इस दौरान भारत कला भवन के पास कुछ शोहदों ने उससे छेड़खानी की और कपड़े उतारने की कोशिश की. इस घटना से सहमी छात्रा ने बचाने की गुहार लगाई. आरोप है कि चंद कदम की दूरी पर बैठे सुरक्षाकर्मियों ने उस पर ध्यान नहीं दिया. छात्रा के जिम्मेदारों से शिकायत करने पर यह कहकर उसे टाल दिया गया कि इतनी शाम को तुम्हें बचकर चलना चाहिए. इसके बाद किसी तरह छात्रा होस्टल पहुंची और अन्य छात्राओं को घटना की जानकारी दी. इसके बाद त्रिवेणी सहित अन्य होस्टलों की छात्राओं में उबाल आ गया. रात में भी कई छात्राएं सड़क पर उतर आई. जिन्हें अधिकारियों ने पीएम के कार्यक्रम का हवाला देते हुए किसी तरह शांत किया लेकिन आए दिन हो रही छेड़खानी से आजिज छात्राओं ने शुक्रवार सुबह छह बजे ही सड़क पर उतर आंदोलन का शंखनाद कर दिया. इसके बाद बड़ी संख्या में छात्राएं सिंहद्वार पर पहुंचकर आंदोलन में शामिल हो गईं. इस दौरान छात्राएं कुलपति को हटाने, सुरक्षा व्यवस्था दुरुस्त करने, हर होस्टल, चौराहे पर सीसीटीवी लगाने की मांग करती रहीं. और अंतत: प्रशासन ने रात्रि में कर ही दिया लाठीचार्ज ! धन्य हैं योगी सरकार और मोदी जी का बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ का नारा!
इसमें कोई दो राय नहीं कि हमारे प्रधान मंत्री श्री मोदी जी इवेंट मैनेजमेंट के मास्टर हैं. अपने हर दौरे/ कार्यक्रम का इस तरह प्रचार-प्रसार करते हैं कि मीडिया कवरेज खूब हो और जहाँ तक संभव हो लाइव प्रसारण भी हो. मंदिरों के दर्शन को भी इस तरह दिखाया जाता है जैसे दर्शन के अन्दर भी कोई अंतर्निहित भावना हो जिसका उद्देश्य जनता/दर्शकों के दिलों पर छा जाना है.
सांकेतिक शिलान्यास और भव्य उद्घाटन! सब कुछ अच्छे दिन की भांति और फिर एक नया संकल्प! संकल्प से सिद्धि! इस बीच जो भी विरोध के स्वर होते हैं उन्हें आसानी से परदे के पीछे कर दिया जाता है. अच्छे परिणाम का श्रेय अगर आप लेते हैं तो बुरे परिणाम की भी जिम्मेदारी का अहसास होना चाहिए. मोदी जी के कार्यकाल में और योगी जी के कार्यकाल में सब कुछ अच्छा ही नहीं हुआ है. कभी उनका भी जिक्र कर लिया करते. पर उन्होंने पीछे मुड़कर देखना सीखा कहाँ है? अभी हाल ही में उनका एक भाषण वायरल हुआ है कि मोदी जी का बुलेट ट्रेन का शिलान्यास का मतलब अपनी शक्ति प्रदर्शन का था ताकि पड़ोसी जल मरे. ऐसे हैं हमारे प्रधान मंत्री और उनके इवेंट मैनेजर! अगर धरातल पर अच्छे परिणाम सामने आते हैं तो अवश्य लोग वाह वाह करेंगे पर जिस तरह से किसानों की ऋण माफी योजना के तहत कुछ किसानों को कुछ रुपये और कुछ पैसे यहाँ तक कि एक पैसे की ऋण माफी का सर्टिफिकेट सामने आया, यह किसानों की बेइज्जती नहीं तो क्या है? भले ही इसमें ऑफिसर की लापरवाही रही हो, पर दिखाया ही क्यों गया? क्या इससे सरकार की साख को धब्बा नही लगता है? दुःख की बात यही है कि अभी विपक्ष और मीडीया भी हमलावर नहीं है. जो भी आवाज उठाने की कोशिश करता है उसे दबा दिया जाता है या कुचल दिया जाता है. क्या एक लोकतान्त्रिक देश में सक्रिय विपक्ष और मीडिया की आवश्यकता नहीं है?
- जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.

Sunday, 17 September 2017

श्री श्री विश्वकर्मा, पारम्परिक और आधुनिक

विश्वकर्मा की नगरी टाटानगर
पौराणिक मान्यता के अनुसार जब विप्र सुदामा विपन्न अवस्था में अपने सहपाठी मित्र श्री कृष्ण से मिलने द्वारका गए थे, श्रीकृष्ण भगवान ने देवशिल्पी विश्वकर्मा को आदेश दिया था कि सुदामा जी के लिए सुन्दर महल का निर्माण किया जाय और श्री विश्वकर्मा ने सुदामा जी के उनके घर पहुँचने से पहले ही सुन्दर सा महल खड़ा कर दिया था. सुदामा जी भी अपने घर पहुंचकर आश्चर्यचकित हो गए थे.
थोड़ी कल्पना की कलम से -
देवशिल्पी श्री विश्वकर्मा जी को कलियुग में भी कुछ करने की ईच्छा हुई. उन्होंने जमशेदजी नुशेरवानजी टाटा को स्वप्न में दर्शन दिया. जमशेदजी चौंक कर उठ बैठे.
विश्वकर्मा जी बोले – मुझे तुमसे बहुत उम्मीद है वत्स!
टाटा – आज्ञा देवशिल्पी.
विश्वकर्मा – पूर्व दिशा में कालीमाटी (वर्तमान जमशेदपुर) नामक एक जगह है, जहाँ अभी भूमि पर तो वनसंपदा है, पर वहीं पर आस पास में काफी मात्रा में खनिज सम्पदा भी है. वस्तुत: यह धरती रत्नगर्भा है. उन रत्नों को पहचान कर उसे परिष्कृत कर उसका वास्तविक रूप देना है. यह काफी मजबूत रत्न है, जिसका इस्तेमाल हर जगह प्रचुरता से किया जाना है. तुम जाओ और विशेषज्ञों की मदद लेकर उस क्षेत्र में लौह संयंत्र की स्थापना करो. मिहनत तुम्हे और तुम्हारे साथियों/सहयोगियों को करनी होगी, सुफल जरूर मिलेगा. हम तुम्हारे साथ हैं.
टाटा ने देवशिल्पी से प्रेरणा पाकर कालीमाटी जगह की खोज की और उसे विकसित कर टाटा आयरन एंड स्टील कम्पनी की स्थापना की, जो आज टाटा स्टील के नाम से विख्यात है. टाटा स्टील के बाद टाटा मोटर्स एवं अन्य कम्पनियां अपना विस्तार करने लगी और आज यहाँ लगभग १५०० छोटे-बड़े उद्योग धंधे स्थापित हैं. इस शहर की आबादी अब १५ लाख से ऊपर है. १७ सितम्बर को यहाँ विश्वकर्मा पूजा बड़े धूमधाम से मनायी जाती है. उस दिन यह वास्तव में विश्वकर्मा नगरी लगती है.
टाटा एक व्यवस्थित नगर तो है ही. यहाँ टाटा कंपनी द्वारा दी गयी नागरिक सुविधा किसी भी राज्य सरकार द्वारा दी जानेवाली नागरिक सुविधा से बेहतर है.  जैसे अयोध्या के राजा राम थे. वैसे ही टाटानगर के नागरिकों के ह्रदय के राजा टाटा साहब हैं. विश्वकर्मा पूजा के दिन हम सभी जमशेदपुर वासी विश्वकर्मा भगवान के साथ टाटा साहब को भी नमन करते हैं!   
जितने तरह के कामगार, कारीगर, मैकेनिक, मिस्त्री, इंजिनियर, शिल्पी आदि अपने वर्कशॉप या दुकान में काम करते हैं. जो गाड़ियाँ बनाते या गाड़ियाँ रखते हैं सभी इस दिन साफ़ सफाई कर विश्वकर्मा भगवान की पूजा करते हैं और उनसे अपनी और अपने उपकरण की सकुशलता की कामना करते हैं. अब तो हर घर में कुछ न कुछ मशीनरी होती हैं इसलिए घरों में भी हमलोग अपने अपने उपकरणों की साफ़ सफाई कर विधिवत पूजा करते ही हैं.
जितनी तरह की भी पूजा हमारे यहाँ या कहीं भी की जाती है सबका एक कॉमन काम होता है साफ़-सफाई फिर पूजा और प्रसाद. मिलजुलकर काम करने की टीम भावना और आपसी सौहार्द्र बढ़ाने का जरिया तो है ही साथ ही कुछ मनोरंजन या मन का बदलाव भी होता है नित्य के कार्यकलापों से कुछ हटकर कुछ अलग करना.  
संयोग से इसबार १७ सितम्बर रविवार को पड़ा है, इसलिए इस दिन ज्यादातर जगहों में (अत्यावश्यक कार्य या लगातार उत्पादन के कार्य को छोड़कर) छुट्टी का दिन होता है, इसलिए इस साल लोगों में अच्छा उत्साह देखा गया है. एक संयोग यह भी रहा कि ज्यादातर संस्थानों में दुर्गापूजा से पहले होनेवाले बोनस का भी भुगतान हो गया है इसलिए कामगारों के पास खर्च करने और पूजा को उत्साहपूर्वक मनाने के लिए अतिरक्त रकम भी है. रेलवे और ऑटोमोबाइल के कारखानों में भी विश्वकर्मा पूजा उत्साहपूर्वक मनाया जाता है.
संयोग ही कहें कि १७ सितम्बर को ही हमारे वर्तमान प्रधान मंत्री मोदी जी का जन्म दिन भी है. काफी लोग इन्हें ‘नये भारत’ (न्यू इण्डिया) का विश्वकर्मा मान रहे हैं और अभी हाल ही में उन्होंने अहमदाबाद से लेकर मुंबई तक के लिए बुलेट ट्रेन चलाने का शिलान्यास जापान के प्रधान मंत्री शिंजो आबे के साथ मिलकर किया और संभावना है कि अगले पांच साल में बुलेट ट्रेन की सेवा शुरू हो जायेगी. आज ही यानी १७ सितम्बर के दिन उन्होंने गुजरात में नर्मदा नदी पर बने सबसे बड़े और ऊंचे सरदार सरोवर डैम को देश को समर्पित किया. यह पंडित जवाहर लाल नेहरू, सरदार वल्लभ भाई पटेल और बाबा साहेब भीम राव अम्बेडकर का सम्मिलित सपना था. इससे गुजरात सहित राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र को भी पानी के साथ-साथ पनबिजली का भी लाभ होगा.  
ज्ञातव्य है कि 56 साल पहले पंडित नेहरू ने ही सरदार सरोवार बांध की नींव रखी थी.  पंडित नेहरू को भी आधुनिक भारत का शिल्पी कहा जाता है. आजादी के बाद साल 1963 में भाखड़ा नांगल बांध को देश को समर्पित करते हुए नेहरू ने इसे आधुनिक भारत का मंदिर बताया था. देश में आधारभूत ढांचे का निर्माण और औद्योगीकरण की शुरूआत का श्रेय नेहरू को ही जाता है. यह बात अलग है कि वर्तमान प्रधान मंत्री मोदी जी ने नेहरू का जिक्र न करके लोगों द्वारा आलोचना झेलने का मन बना ही लिया है. इससे में उन्हें और उनके समर्थकों को आनंद आता है.        
देखा जाय तो पूरी दुनिया सहित भारत में भी काफी निर्माण कार्य हुए हैं और जो भी शिल्पी हैं, जो भी शिल्पकार्य में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से लगे हैं उन सबके योगदान को नकारा नहीं जा सकता है और अगर प्रेरणास्रोत के रूप में ही श्री विश्वकर्मा को मानें तो भी हमारी कार्यकुशलता और मनोबल तो बढ़ता ही है. आज के कम्प्यूटर युग में कम्प्यूटर के साथ-साथ नए नए रोबोट भी बनाये जाने लगे हैं जो कई मनुष्यों का काम अकेले बिना थके कर रहे हैं. ये सभी मनुष्यों द्वारा ही निर्मित हैं और लगातार विकास का क्रम जारी है. आदमी मशीन न बन जाए इसलिए बीच-बीच में पूजा, पर्व, त्योहार, बनाये गए हैं ताकि रोजमर्रा के कार्यों में उबाऊपन महसूस न हो.
६ दिन लगातार कार्य करने के बाद एक दिन की छुट्टी वैधानिक है उसके बाद बीच में मनाये  जानेवाले पर्व-त्योहार को सकारात्मक रूप में लिया जाना चाहिए. हाँ अति उत्साह में दुर्घटना या अप्रिय घटना को रोकने का पूरा-पूरा प्रयास किया जाना चाहिये. जमशेदपुर के हर छोटे बड़े संयत्र में यह सावधानी रखी जाती है. अभी तक किसी अप्रिय घटना की सूचना नहीं है. उम्मीद है बाबा विश्वकर्मा सबका उचित ख्याल रक्खेंगे. हम सभी यही कामना करते हैं कि बाकी के दिन सुरक्षित और खुशहाली के साथ व्यतीत हो.
जय श्री विश्वकर्मा बाबा !

-    जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.

Saturday, 9 September 2017

हमारे बच्चे कितने सुरक्षित

घटना – १. गुरुग्राम के नामी रयान इंटरनेशनल स्कूल में दूसरी क्लास में पढ़ने वाले 7 साल के बच्चे प्रद्युम्न का शव वॉशरूम में मिला है. शव के पास से चाकू बरामद हुआ है. बच्चे की गर्दन और शरीर के अन्य हिस्सों पर चाकू के निशान मिले हैं. हालाँकि घटना के बाद स्कूल के ही बस के कंडक्टर को आरोपी के रूप में गिरफ्तार कर पूछताछ की जा रही है. कंडक्टर ने अपना गुनाह भी कबूल कर लिया है. उसके अनुसार वह प्रद्युम्न के साथ अप्राकृतिक यौनाचार करना चाहता था और असफल रहने पर चाकू से उसकी गर्दन पर वार कर दिया और प्रद्युम्न की मौत हो गयी. स्कूल के प्रिंसिपल को तत्काल सस्पेंड कर दिया गया है. पर पूरा मामला संदिघ्ध लग रहा है और स्कूल की लापरवाही साफ़ झलक रही है. बाद में यह भी पता चला है कि प्रद्युम्न अभी अपने क्लास में आया भी नहीं था. उसकी सहपाठी बच्ची से प्रद्युम्न का बैग माँगा गया और उससे उसकी डायरी निकाली गयी. उसके स्कूल बैग और पानी के बोतल को जिसमे खून के निसान थे साफ़ किया गया. चाकू जिससे हत्या की गयी उसे भी साफ़ किया गया. बाथरूम के फर्श को साफ़ किया गया, यानी हत्या के निशान को मिटाने की कोशिश की गयी. यह सब मामले को और ज्यादा संदिघ्ध बनाता है. स्कूल प्रशासन और स्थानीय प्रशासन सभी शक के घेरे में हैं. जबकि मुख्य मंत्री मनोहर लाल खट्टर न्याय की बात करते हैं. खट्टर साहब कितने विश्वसनीय हैं, यह हाल की बहुत सारी घटनाओं से साफ़ झलकता है, पर उन्हें तो ऊपर से वरदहस्त प्राप्त है. बच्चे का मामला है, कुछ दिन बाद अपने आप शांत हो जाएगा.
घटना -२. हैदराबाद के एक संभ्रांत इलाके के स्कूल में सात साल के छात्र ने अपने से एक साल छोटे लड़के की कथित तौर पर इस कदर पिटाई की कि वह अपनी जान से हाथ धो बैठा। पुलिस के द्वारा दी गई जानकारी में पहली क्लास के मोहम्मद इब्राहिम को 12 जुलाई के दिन तीसरी में पढ़ने वाले एक छात्र ने न सिर्फ पीटा बल्कि उसके पेट में चार बार इस कदर लात मारी की दो सर्जरी के बाद भी उसे बचाया नहीं जा सका। अस्पताल में भर्ती होने के चार दिन बाद भी इब्राहिम अपनी चोटों से उभर नहीं पाया और उसकी मौत हो गई।

घटना -३. पिछले साल  दिल्ली के एक नामी स्कूल में 6 साल के बच्चे का शव वाटर टैंक में संदिग्ध हालत में मिला था. दिव्यांश नामक यह बच्चा रयान इंटरनेशनल स्कूल में पहली कक्षा का छात्र था. शनिवार को वह पोएम कॉम्पटिशन में भाग लेने स्कूल आया था. हैरानी की बात ये रही कि शव शनिवार दोपहर करीब सवा 12 बजे बरामद हुआ, जबकि पुलिस को इसकी जानकारी करीब 2 घंटे बाद दी गई. स्कूल पहुंचकर पुलिस ने जांच शुरू की तो पता चला कि दिव्यांश सांतवें पीरियड से क्लास से गायब हो गया था. स्कूल के पिछले हिस्से में एक वाटर पंप के टैंक में उसका शव मिला. जांच रिपोर्ट में स्कूल को लापरवाह और सबसे बड़ा जिम्मेदार बताया गया था. मामले में प्रिंसिपल से लेकर स्कूल मैनेजमेंट तक पर कार्रवाई की सिफारिश की गई थी. रिपोर्ट में कहा गया था कि स्कूल अपनी जिम्मेदारी निभाने में पूरी तरह से फेल रहा था. छुट्टी के दिन बच्चे को बुलाया था इसलिए एक्स्ट्रा ध्यान रखने की जरूरत थी जो नहीं हुआ.
घटना -४. गुड़गांव के रेयान इंटरनेशनल स्कूल में अभी सात वर्षीय प्रद्युम्न की रेप की कोशिश में नाकाम रहने के बाद हत्या किए जाने का मामला अभी शांत भी नहीं हुआ कि राजधानी दिल्ली के शाहदरा स्थित गांधी नगर इलाके में एक प्राइवेट स्कूल के परिसर में एक चपरासी द्वारा पांच साल एक बालिका के साथ कथित रूप से बलात्कार किये जाने का मामला सामने आया है. शाहदरा की पुलिस उपायुक्त नुपूर प्रसाद ने बताया 40 वर्षीय आरोपी विकास को गिरफ्तार कर लिया गया है. वह इसी स्कूल में चपरासी का काम करता है. पुलिस ने बच्ची के बताए हुलिये और पहनावे के आधार पर दबिश देकर विकास को पकड़ा, जिसके बाद उसकी तस्वीर बच्ची को दिखाई गई. बच्ची ने उसे पहचान लिया. हालांकि देर रात जब आजतक ने आरोपी विकास से बात की तो उसने इनकार कर दिया. उसने कहा कि वह तो बच्ची को जानता तक नहीं. पुलिस ने जब विकास को गिरफ्तार किया तब वह शराब पिए हुए था. पूछने पर उसने कहा कि वह रोज शराब पीता है. उसने कहा कि उसे किसी चीज की जानकारी नहीं है. उसके कहे अनुसार वह पिछले कई सालों से बच्चों को स्कूल छोड़ रहा है लेकिन कभी किसी ने शिकायत नहीं की. वहीं पुलिस ने बताया कि विकास स्कूल में पिछले तीन वर्षों से काम कर रहा था. इससे पहले वह इसी स्कूल में सुरक्षा गार्ड के रूप में काम करता था. पुलिस ने बताया कि वह बच्ची को सुबह करीब 11 बजकर 45 मिनट पर एक खाली क्लासरूम में ले गया और उसके साथ बलात्कार करने के बाद उसे गंभीर नतीजे भुगतने की धमकी दी. यह मामला तब सामने आया जब लड़की ने अपनी मां से उसके गुप्तांग से खून आने और दर्द होने की शिकायत की. लड़की को एक अस्पताल ले जाया गया जहां मेडिकल टेस्ट के बाद बलात्कार की पुष्टि हुई. पुलिस के अनुसार, घटना के बाद सदमे में आई बच्ची को काउंसलिंग के लिए भेजा गया है. ऐसे में पुलिस ने इस मामले में तेजी से कार्रवाई करते हुए धारा 376 और पॉस्को के तहत मामला दर्ज कर आरोपी को गिरफ्तार कर लिया.
सवाल फिर यही उठता है कि उपर्युक्त सभी घटनाएँ हाल-फिलहाल की हैं और नामी-गिरामी स्कूलों की हैं, जहाँ की बिल्डिंग अच्छी होती हैं. ब्यवस्था अच्छी कही जाती है और इन सबके एवज में बच्चों के माता पिता से काफी ऊंची फीस वसूली जाती है और जिम्मेवारी के नाम पर .... कुछ नहीं. इन स्कूलों में प्रबंधन तो मोटी कमाई करता है और एक बाद दूसरे तीसरे स्कूल भी खोलता चला जाता है पर अपने यहाँ के स्टाफों का खूब दोहन करता है. शिक्षक से लेकर तीसरे चौथे दर्जे के कर्मचारियों की न्युक्ति का पैमाना कितना सही होता है, यह नजदीक जाकर ही पता चलता है. मैं यह नहीं कहता कि सभी कर्मचारी या स्टाफ घटिया स्तर के होते हैं, पर कुछ तो ऐसे होते ही हैं जो अच्छे खासे स्कूल को बदनाम भी कर देते हैं. बहरहाल जिम्मेदारी तो स्कूल की बनती ही है. साथ ही स्थानीय प्रशासन और सरकार की भी जिम्मेदारी होती है कि इन सभी शिक्षण संस्थाओं पर अंकुश रक्खे और बीच-बीच में औचक निरीक्षण कर जायजा लेती रहे.  
विद्यालय विद्या का मंदिर होता है जिसमे बच्चे हर प्रकार से विकसित होते हैं. इन विद्यालयों में बच्चे पढ़ाई-लिखाई के साथ-साथ अनुशासन, खेलकूद, नैतिक शिक्षा और सांस्कृतिक गतिविधियों में भी भाग लेकर एक अच्छे नागरिक बनते हैं. एक अच्छे नागरिक की आधारशिला इन विद्यालयों में ही रखी जाती है. पर इसी समाज के कुटिल और क्रूर व्यक्ति बच्चों के साथ शर्मनाक हरकत कर स्कूल को बदनाम तो करते ही हैं, बाकी बच्चों पर भी इसका दुष्प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है. ऐसे ही आजकल बच्चे मोबाइल और इन्टरनेट के चलते बहुत हद तक बर्बाद हो रहे हैं. ऊपर से कुछ कातिल शातिर गेम भी काफी सारे बच्चों को आत्महत्या करने पर मजबूर करने लगे हैं.
बच्चों के लिए माँ की गोद के बाद अपना घर और उसके बाद पाठशाला ही सुरक्षित और संरक्षित जगह है. ऐसे में हम सबको, अभिभावकों को, विद्यालय प्रबंधकों को, बहुत हद तक सावधान रहने  की जरूरत है. क्योंकि यही बच्चे आगे चलकर हमारे और हमारे देश का भविष्य बननेवाले हैं. हम सभी नागरिकों का कर्तव्य है कि इन बच्चों को सही माहौल दिया जाय ताकि ये एक होनहार योग्य नागरिक बने. क्योंकि
गीता इसमें, बाइबिल इसमें, इसमें है कुरान, बोलो बच्चा है महान, जग में बच्चा है महान!  बच्चे में है भगवान! बोलो बच्चा है महान!

-    समस्त शुभकामनाओं के साथ – जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.  

Sunday, 3 September 2017

अस्पताल में बच्चों की मौत का मामला

गोरखपुर के बीआरडी अस्तपाल में बच्चों के मरने की घटना ने सबको चौंका दिया. 12 अगस्त को 48 घंटे में 30 बच्चों की मौत के बाद हम सबने ख़ूब बहस की, चर्चा की, मुख्यमंत्री से लेकर सरकार को घेरा, स्वास्थ्य मंत्री के विवादास्पद बयान, (अगस्त माह को दोषी ठहराने वाला,) फिर अगस्त माह पर चुटकुले बनाए और उसके बाद सब नॉर्मल हो गया. सिस्टम को भी समझ में आ गया कि ये लोग पहले गुस्सा करेंगे फिर चुटकुला बनाकर नॉर्मल हो जाएंगे. वैसे बी आर डी अस्पताल के प्रिंसिपल, उनकी पत्नी और अब डॉ. कफील को गिरफ्तार कर लिया गया है. जांच होगी मुक़दमे चलेंगे तबतक मुख्यमंत्री योगी जी भी कुछ बोलेंगे, बच्चों को सरकार के भरोसे न छोड़ें, ….. आदि आदि….. फिर सब नार्मल हो जायेंगे क्योंकि नॉर्मल हो गए तभी तो गोरखपुर के उसी अस्पताल से बच्चों के मरने की खबर आ रही है, अब तो कई और अस्पतालों से ऐसी खबरें आने लगी हैं. एक असर अच्छा हुआ है कि कुछ दिन के लिए ही सही अखबारों के पत्रकारों ने अस्पतालों में बच्चों की मौत पर ध्यान देना शुरू किया है. थोड़े दिन में वे भी नार्मल हो जाएंगे क्योंकि बदलेगा तो कुछ भी नहीं. तबतक राम रहीम, मंत्री विस्तार, चीन, डोकलाम, कश्मीर, पाकिस्तान, कुर्बानी, आदि आदि ख़बरें चलती रहेगी.
राजस्थान के बांसवाड़ा में 90 बच्चों की मौत
राजस्थान के बांसवाड़ा के महात्मा गांधी अस्पताल में जुलाई-अगस्त के महीने में 90 बच्चों की मौत हो गई है. इनमें से 43 की दम घुटने से मौत हुई है. राज्य के स्वास्थ्य मंत्री ने ज़िला कलेक्टर को जांच के आदेश दिए हैं. जुलाई महीने में 50 बच्चों की मौत हुई है. अगस्त में 40 बच्चों की मौत हुई है. बच्चों की मौत sick newborn care unit में हुई है, ये एक तरह का बच्चों का आईसीयू होता है. अप्रैल में भी 20 और मई में 18 बच्चों की मौत हो गई है. जिनके घरों में मौत हुई होगी, कितनी उदासी होगी. उन्हें क्या ऐसा भी लगता होगा कि सिस्टम ने उन्हें फेल किया. उनके बच्चों की जान बच सकती थी. इन बच्चों और इनकी माओं में कुपोषण कारण बताया गया है. राजस्थान के जनजातीय महिलाओं के लिए पुकार कार्यक्रम चलता है. दावा किया जाता है कि इसके तहत बहुत से बच्चों की जान बचाई भी गई है.
जमशेदपुर में तीन महीने में 164 बच्चों ने गंवाई जान
जमशेदपुर के सरकारी अस्पताल, महात्मा गांधी मेमोरियल(MGM) अस्पताल में मई जून जुलाई अगस्त में 164 बच्चों की मौत हुई है. अस्पताल की रिपोर्ट कहती है कि जून महीने में 60 बच्चों की मौत हो गई थी. जांच तो मई और जून में हुई मौत के बाद ही होनी चाहिए थी, लेकिन जब खबर आई की 30 दिनों में 64 की मौत हुई है तो हड़कंप मच गया. जांच के लिए चार सदस्यों की कमेटी भी बन गई. बताया गया कि कुपोषण के कारण ज्यादातर बच्चों की मौत हो रही है. ये सभी ग्रामीण क्षेत्र के हैं. ग्रामीण क्षेत्र में गरीबी कैसी है और वहां के लोगों की क्या स्थिति है यह भी पता चलता है और हमने कितना विकास किया है यह भी पता चलता है.
रांची के रिम्स में भी 133 बच्चों की मौत
यही नहीं रांची के सबसे बड़े अस्पताल रिम्स में भी 28 दिन के भीतर 133 बच्चे मर गए. एक स्थानीय अखबार ने लिखा है कि आठ महीने में 739 बच्चों की मौत हो गई है. मानवाधिकार आयोग ने राज्य सरकार से छह हफ्तों के भीतर जवाब देने के लिए कहा है. अखबार में छपे बयानों में रिम्स के निदेशक ने कहा है कि हम 88 प्रतिशत बच्चों को बचा लेते हैं. 13 प्रतिशत बच्चों की मौत हो जाती है. क्या यह सामान्य आंकड़ा है. राज्य के मुख्यमंत्री ने जांच के आदेश दिए हैं, लेकिन जांच नाम की सक्रियता कहीं गोरखपुर की घटना के बाद तो नहीं बढ़ी है. अस्पताल के निदेशक ने कहा है कि ज़्यादातर बच्चे बिना ऑक्सीजन और बिना किसी नर्सिंग के लाए जाते हैं, इसलिए भी दम तोड़ देते हैं. यह तो और पोल खुल गई हमारे सिस्टम की.
कमोबेश हर राज्यों का ऐसा ही बुरा हाल है लेकिन जो ख़बरें सुर्ख़ियों में आयी संयोग से तीनो राज्य, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, और झाड़खंड तीनो भाजपा शासित राज्य हैं. तीनो ही राज्य की सरकारें बड़े बड़े दावे करती है. अख़बारों में, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में, शहरों के चौराहों पर दृश्य और श्रव्य माध्यमों द्वारा सरकारी विज्ञापन खूब चलाये जाते हैं, पर जमीनी स्तर पर कितना काम होता है, यह तो वहां जाकर ही पता चलता है. जमशेदपुर, रांची, गोरखपुर आदि सुविधासंपन्न शहर हैं वहां की यह स्थिति है बाकी कम सुविधावाले शहरों की स्थिति क्या होगी अंदाजा लगे जा सकता है.
सवाल है कि क्या हम भी सरकार से स्वास्थ्य को लेकर सवाल करते हैं और क्या सरकार आपके सामने इस बारे में कोई दावे करती है. अगर आप ठीक से खरोंच कर देखेंगे तो देश के तमाम राज्य इस पैमाने पर फेल नज़र आएंगे. इसलिए सरकार बनाम सरकार का खेल खेलने से कोई लाभ नहीं होने वाला है. यह बात बिल्कुल सही है कि तीस सालों से गोरखपुर में एन्सिफ्लाइटिस की समस्या है. टीकाकरण की योजना है, इसके बाद भी इस बीमारी से होने वाली मौत कम नहीं की जा सकी है.
कहते हैं कि बच्चों के वार्ड में हर थोड़ी देर बाद किसी मां की दर्दनाक चीख गूंजती है, जो वहां मौजूद हर शख्स का कलेजा चीर देती है. एक मां वो रोती है जिसके बच्चे की मौत हो गई है और बाकी माएं इस अंदेशे से चीखती हैं कि कहीं उनका बच्चा भी न मर जाए. मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल कहते हैं कि बच्चे गंभीर हालत में आते हैं इसलिए मर जाते हैं. मरने वाले बच्चों को सिर्फ एन्सिफ्लाइटिस नहीं होती है और भी बीमारियां होती हैं. अकेले इस मेडिकल कालेज में इस साल 1346 बच्चों की मौत हो गई है. एक महीने में तो 386 बच्चे मर गए. अस्पताल के प्रिसिंपल का कहना है कि सभी ज़िम्मेदारी के साथ ड्‌यूटी कर रहे हैं. इस समय मरीज़ों की संख्या भी बहुत है.
स्वास्थ्य सेवाओं पर सीएजी की रिपोर्ट के अनुसार गांवों में स्वास्थ्य सेवा पहुंचाने के लिए 2005 में राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन की शुरुआत हुई थी, ताकि पैदा होने के वक्त बच्चे और मां की होने वाली मौत को रोका जा सके. सीएजी ने 2011 से मार्च 2016 तक का हिसाब किताब किया है. आपको जान कर कोई फर्क नहीं पड़ेगा क्योंकि सरकारों को भी यह जानकर कोई फर्क नहीं पड़ा कि 27 राज्यों ने इस मद का पैसा खर्च ही नहीं किया. 2011-12 में खर्च न होने वाली राशि 7,375 करोड़ थी जो 2015-16 में बढ़कर 9509 करोड़ हो गई. 6 राज्य ऐसे हैं जहां 36.31 करोड़ की राशि किसी और योजना में लगा दी गई. जब से बच्चों की मौत की रिपोर्टिंग बढ़ी है सरकार अपनी तैयारी नहीं बताती है. जांच कमेटी बन जाती है दो चार तबादले और निलंबन से हम लोग खुश हो जाते हैं. हम जानना चाहेंगे कि किस तरह से फंड में कमी की गई, उसका क्या असर पड़ा.
सवाल है कि क्या हम भी सरकार से स्वास्थ्य को लेकर सवाल करते हैं और क्या सरकार आपके सामने इस बारे में कोई दावे करती है. अगर आप ठीक से खरोंच कर देखेंगे तो देश के तमाम राज्य इस पैमाने पर फेल नज़र आएंगे. इसलिए सरकार बनाम सरकार का खेल खेलने से कोई लाभ नहीं होने वाला है. गोरखपुर को लेकर जब हंगामा शांत हो गया तब भी यह बात बिल्कुल सही है कि तीस सालों से गोरखपुर में एन्सिफ्लाइटिस की समस्या है. टीकाकरण की योजना है मगर इसके बाद भी इस बीमारी से होने वाली मौत कम नहीं की जा सकी है. इसका मतलब कि एन्सिफ्लाइटिस के टीके को पोलियो के टीके की तरह जोर शोर से नहीं चलाया गया, नहीं तो हमलोगों ने जैसे पोलियो मुक्त किया है वैसे ही एन्सिफ्लाइटिस मुक्त भी किया जा सकता है. जरूरत है संकल्प के साथ सिद्धि के लिए प्रयत्न की. संकल्प को धरातल पर उतरने की. सिर्फ नारों से कुछ नहीं होता धरातल पर उतारना होता है. जनता, आम जनता, गरीब जनता के बीच जाकर उन्हें जागरूक करते हुए सरकारी योजनाओं का लाभ पहुँचाने से होता है. केवल फण्ड से सबकुछ नहीं होता.
तात्पर्य यही है कि शिक्षा और स्वास्थ्य, भी रोटी, कपड़ा और मकान की तरह मूलभूत आवश्यकता है जिसे पाने का अधिकार हर नागरिक को है. सुनते हैं दिल्ली की केजरीवाल सरकार इन दोनों विषयों पर मन लगाकर काम कर रही है और उसके परिणाम भी सामने आने लगे हैं. क्या दूसरी सरकारें सरकारें इनसे सीख लेगी या केवल मीन-मेख ही निकलती रहेगी? अच्छी बात हम कहीं से भी सीख सकते हैं और उसे अपने जीवन में उतर भी सकते हैं….
इसी उम्मीद के साथ- जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर