जमशेदपुर का दूसरा नाम टाटानगर भी है. यह झारखंड के दक्षिणी
हिस्से में स्थित पूर्वी सिंहभूम जिले का हिस्सा है. जमशेदपुर की स्थापना जमशेदजी
नुसेरवांजी टाटा ने की थी. 1907 में टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी (टिस्को) की स्थापना से इस
शहर की बुनियाद पड़ी. इस जगह की तलाश में भूवैज्ञानिकों को करीब 3 साल का वक्त लगा
था.
टाटा ग्रुप के जहांगीर रतनजी दादाभाई (जेआरडी) टाटा का 29 जुलाई को
जन्मदिन है. सर नॉवरोजी
सकटवाला की 1938 में मृत्यु हो
जाने के बाद जेआरडी टाटा को टाटा ग्रुप सौंपा गया था. इसी मौके पर हम बता रहे हैं
टाटा स्टील और जमशेदपुर शहर से जुड़ी कुछ बातें...
ऐसा माना जाता है कि 19 वीं शताब्दी के
आस पास जमशेदजी नुसेरवान जी टाटा पिट्टसबर्ग गए थे और वहां के भूवैज्ञानिकों से
मदद मांगी कि वह उनके लिए एक ऐसी जगह चुने जहां वो अपने सपने, भारत के पहले
स्टील कंपनी की स्थापना कर सकें. ऐसी जगह की खोज
में करीबन 3 साल लग गए जो
प्राकृतिक संसाधन के मामले में संपन्न हो. ऐसी जगह अंततः मिल गई. जो आज जमशेदपुर
के नाम से जाना जाता है. इससे पहले यह
साकची नामक एक आदिवासी गांव हुआ करता था. यहां की मिट्टी काली होने के कारण यहां
पहला रेलवे-स्टेशन कालीमाटी के नाम से बना, जिसे बाद में
बदलकर टाटानगर कर दिया गया.
जमशेदपुर को पहले साकची के नाम से जानते थे और 1918 में इस जगह का
नाम साकची से बदलकर जमशेदपुर रखा गया और यह इसके संस्थापक जमशेदजी नुसेरवांजी टाटा
को श्रद्धांजलि देते हुए किया गया. खनिज पदार्थों की
प्रचुर मात्रा में उपलब्धता और खड़काई तथा सुवर्णरेखा नदी के आसानी से उपलब्ध पानी, तथा कोलकाता से
नजदीकी के कारण यहां आज के आधुनिक शहर का पहला बीज बोया गया. जमशेदपुर आज भारत के सबसे प्रगतिशील औद्योगिक नगरों में से
एक है. टाटा घराने की कई कंपनियों के प्रॉडक्शन यूनिट जैसे टाटा स्टील, टाटा मोटर्स, टिस्कॉन, टिन प्लेट, टिमकन, ट्यूब डिवीजन, इत्यादि यहीं हैं.
यहां पर भारत का सबसे बड़ा औद्योगिक क्षेत्र आदित्यपुर है, जहां पर 1000 से भी ज्यादा छोटे
और बड़े तबके के उद्योग हैं. टाटा स्टील के 50 साल होने पर जमशेदपुर
वासी को तोहफे में जुबली पार्क दिया गया है. 225 एकड़ भूमि में
फैले इस पार्क का उद्घाटन 1958 ई. में उस समय के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु
ने किया था. वृंदावन गार्डन की तर्ज पर बने इस पार्क में गुलाब के लगभग एक हजार
किस्म के पौधे लगे हुए हैं. इस पार्क में एक चिल्ड्रेन पार्क भी है. हाल में ही
यहां एक एम्यूजमेंट पार्क का निर्माण किया गया है. एम्यूजमेन्ट पार्क में अनेक
किस्म के झूले लगे हुए हैं. हरेक साल 3 मार्च को जमशेदजी नुसेरवांजी टाटा की याद में
पूरे पार्क को बिजली के रंगीन बल्वों द्वारा बडे़ भव्य तरीके से सजाया जाता है.
अब आइये जानते है जे आर डी टाटा के बारे में कुछ महत्वपूर्ण
बातें-
जहाँगीर रतनजी दादाभाई टाटा का जन्म २९ जुलाई १९०४ को हुआ. इनके पिता पारसी
और माँ फ्रांसीसी थीं. जे आर डी ने फ्रांस, जापान और इंग्लॅण्ड में पढ़ाई की. १९२५
में बिना वेतन वाले एक ट्रेनी के रूप में टाटा एंड संस में काम शुरू किया. जे आर
डी ने ही टेल्को (टाटा मोटर्स) की स्थापना की. टाटा मोटर्स विभिन्न प्रकार के
ऑटोमोबाइल तो बनाती ही है. इसी कंपनी ने लखटकिया कार नैनो बनाकर आम लोगों को कार
में चलने का सपना पूरा किया. २६ जुलाई १९३८ को सर नौरोजी सकटवाला के निधन के बाद
उन्होंने टाटा ग्रुप की कमान सम्हाली. उस समय उनकी उम्र ३४ साल की थी. जे आर डी
युवावस्था में कारों के शौक़ीन थे. उनके
पिता जमशेद जी टाटा ने २९२७ में ही फ्रांस से बुगाती कार मंगवाई थी. इस चार में तब
न तो मडगार्ड था नहीं छत फिर भी उन्होंने इसी कार से मुंबई से पुणे की दूरी ढाई
घंटे में पूरी की थी, जो उस समय का एक रिकॉर्ड था.
जे आर डी टाटा भारत के पहले कमर्शियल पायलट बने. १० फरवरी १९२९
को उनको पायलट का लाइसेंस मिला था. जे आर डी ने १९३२ में टाटा एयरलाइन्स की शुरुआत
की जो कि बाद में १९४६ में एयर इंडिया, आज इंडियन एयर लाइन्स में तब्दील हो गया.
पहली ब्यवसायिक उड़ान उन्होंने १५ अक्टूबर १९३२ को भरी जब वे सिंगल इंजन वाले हैवी
लैंड पास मोथ हवाई जहाज को अहमदाबाद होते हुए करांची से मुंबई ले गए थे, उस उड़ान
में यात्री नहीं बल्कि २५ किलो चिट्ठियाँ थी.
जे आर डी विमान उड़ाने में भी समय के ऐसे पाबंद थे कि उनकी विमान
लैंडिंग से लोग अपनी घड़ी मिला लेते थे. टाटा एयर लाइन्स में भी यात्रियों की सुख
सुविधा का पूरा ख्याल रखते थे. उद्योग जगत में प्रवेश करने के बाद उन्होंने
कर्मचारियों को दी जानेवाली कई प्रकार की सुविधाओं की शुरुआत की जैसे कि ८ घंटे की
कार्यावधि, भविष्य निधि, वेतन के साथ छुट्टी, मुफ्त चिकित्सा सुविधा, कामगार
दुर्घटना क्षतिपूर्ति, आदि की सुविधा देने में टाटा ग्रुप अग्रणी रहा है. उन्होंने
१९५६ में ही कार्मिक(Personnel) विभाग की स्थापना की जिसके तहत कर्मचारियों की कई
तरह की समस्याओं का समाधान किया जाने लगा. उनका कहना था, “औद्योगिक विवाद की जड़
में अगर देखा जाय तो बहुत सारे विवादों का जन्म इसलिए हुआ, क्योंकि कामगारों की
बात सुनी नहीं गयी.”
ईमानदारी की वे मिशाल थे और उनका कहना था काम छोटा से छोटा
या बड़ा से बड़ा क्यों न हो पूरे मनोयोग और ईमानदारी के साथ की जानी चाहिए. इनफ़ोसिस
फाउंडेशन की चेयरपर्सन सुधा मूर्ति जे आर डी टाटा को अपना आदर्श मानती हैं और उनके
साथ बिताये कई यादगार पल को अपनी आत्मकथा में साझा करती रहती हैं. टाटा ग्रुप
कंपनियों में जुलाई का महीना ‘एथिक्स मंथ’ के रूप में मनाया जाता है जिनमे जे आर
डी को आदर्श मानते हुए ईमानदार पहल के कई उदाहरण पेश किये जाते है साथ ही कंपनी के
अलावा जमशेदपुर शहर में भी कई प्रकार का आयोजन किया जाता है जिसमे हर वर्ग के लोग
अपनी भागीदारी सुनिश्चित करते हैं.
जेआरडी टाटा को कई पुरस्कारों से सम्मानित
किया गया है. भारतीय वायु सेना ने उन्हें ग्रुप कैप्टन
की मानद पद से सम्मानित किया था और बाद में उन्हें एयर कमोडोर पद पर पदोन्नत किया
गया और फिर १ अप्रैल १९७४ को एयर वाइस मार्शल पद दिया गया. विमानन के लिए उनको कई अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार दिया गया -मार्च
१९७९ में टोनी जेनस
पुरस्कार, सन् १९९५ में फेडरेशन ऐरोनौटिक इंटरनेशनल द्वारा गोल्ड एयर पदक,सन् १९८६ में कनाडा
स्थित अन्तराष्ट्रीय नागर
विमानन संगठन द्वारा एडवर्ड वार्नर पुरस्कार और सन् १९८८ में डैनियल गुग्नेइनम अवार्ड . सन् १९५५ में उन्हें पद्मविभूषण से सम्मानित
किया गया. उनके नि: स्वार्थ मानवीय प्रयासों के लिए ,सन् १९९२ में जेआरडी
टाटा को भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान, भारत रत्न से सम्मानित किया गया. भारत रत्न मिलने
के बाद उनका कहना था – मैं यह नहीं चाहता कि भारत आर्थिक रूप से सुपर पॉवर बने
बल्कि यह कि भारत खुशहाल देश हो. (I do not
want India to be an economic superpower. I want India to be a happy country). 1992 में ही संयुक्त
राष्ट्र संघ ने भारत में जनसंख्या नियंत्रण में अहम योगदान देने के लिए
उन्हें ‘यूनाइटेड नेशन पापुलेशन आवार्ड’ से सम्मानित
किया.
२९ नवंबर १९९३ को गुर्दे में संक्रमण के
कारण जिनेवा में ८९ वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया. उनकी मृत्यु पर भारतीय संसद उनकी स्मृति में स्थगित कर दी गई
थी. उनको पेरिस में पेरे लेचसे नामक कब्रिस्तान में दफनाया गया है.
जे आर डी टाटा जैसी महान हस्ती को हम जमशेदपुर वासी श्रद्धासुमन
अर्पित करते हैं.
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन तुलसीदास जयंती और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteहार्दिक आभार हर्षवर्धन जी!
Deleteकुशल उद्योगपति होने के साथ राष्ट्रीय भावना और मानवीय गुणौं का समन्वय उन्हें विशेष स्मरणीय बनाता है .
ReplyDeleteआलेख को पढ़ने और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया व्यक्त करने के लिए हार्दिक आभार आदरणीय प्रतिभा सक्सेना जू!
Deleteटाटा आज भी देश की अग्रणीय संस्थानों में है
ReplyDeleteआलेख को पढ़ाने और प्रतिक्रिया व्यक्त करने के लिए आभार आदरणीय अंकुश चौहान जी!
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