Saturday, 29 July 2017

जहाँगीर रतन जी दादाभाई(जे आर डी) टाटा

जमशेदपुर का दूसरा नाम टाटानगर भी है. यह झारखंड के दक्षिणी हिस्से में स्थित पूर्वी सिंहभूम जिले का हिस्सा है. जमशेदपुर की स्थापना जमशेदजी नुसेरवांजी टाटा ने की थी. 1907 में टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी (टिस्को) की स्थापना से इस शहर की बुनियाद पड़ी. इस जगह की तलाश में भूवैज्ञानिकों को करीब 3 साल का वक्त लगा था.
टाटा ग्रुप के जहांगीर रतनजी दादाभाई (जेआरडी) टाटा का 29 जुलाई को जन्मदिन है. सर नॉवरोजी सकटवाला की 1938 में मृत्यु हो जाने के बाद जेआरडी टाटा को टाटा ग्रुप सौंपा गया था. इसी मौके पर हम बता रहे हैं टाटा स्टील और जमशेदपुर शहर से जुड़ी कुछ बातें...
ऐसा माना जाता है कि 19 वीं शताब्दी के आस पास जमशेदजी नुसेरवान जी टाटा पिट्टसबर्ग गए थे और वहां के भूवैज्ञानिकों से मदद मांगी कि वह उनके लिए एक ऐसी जगह चुने जहां वो अपने सपने, भारत के पहले स्टील कंपनी की स्थापना कर सकें. ऐसी जगह की खोज में करीबन 3 साल लग गए जो प्राकृतिक संसाधन के मामले में संपन्न हो. ऐसी जगह अंततः मिल गई. जो आज जमशेदपुर के नाम से जाना जाता है. इससे पहले यह साकची नामक एक आदिवासी गांव हुआ करता था. यहां की मिट्टी काली होने के कारण यहां पहला रेलवे-स्टेशन कालीमाटी के नाम से बना, जिसे बाद में बदलकर टाटानगर कर दिया गया.
जमशेदपुर को पहले साकची के नाम से जानते थे और 1918 में इस जगह का नाम साकची से बदलकर जमशेदपुर रखा गया और यह इसके संस्थापक जमशेदजी नुसेरवांजी टाटा को श्रद्धांजलि देते हुए किया गया. खनिज पदार्थों की प्रचुर मात्रा में उपलब्धता और खड़काई तथा सुवर्णरेखा नदी के आसानी से उपलब्ध पानी, तथा कोलकाता से नजदीकी के कारण यहां आज के आधुनिक शहर का पहला बीज बोया गया. जमशेदपुर आज भारत के सबसे प्रगतिशील औद्योगिक नगरों में से एक है. टाटा घराने की कई कंपनियों के प्रॉडक्शन यूनिट जैसे टाटा स्टील, टाटा मोटर्स, टिस्कॉन, टिन प्लेट, टिमकन, ट्यूब डिवीजन, इत्यादि यहीं हैं.
यहां पर भारत का सबसे बड़ा औद्योगिक क्षेत्र आदित्यपुर है, जहां पर 1000 से भी ज्यादा छोटे और बड़े तबके के उद्योग हैं. टाटा स्टील के 50 साल होने पर जमशेदपुर वासी को तोहफे में जुबली पार्क दिया गया है. 225 एकड़ भूमि में फैले इस पार्क का उद्घाटन 1958 ई. में उस समय के तत्‍कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु ने किया था. वृंदावन गार्डन की तर्ज पर बने इस पार्क में गुलाब के लगभग एक हजार किस्‍म के पौधे लगे हुए हैं. इस पार्क में एक चिल्ड्रेन पार्क भी है. हाल में ही यहां एक एम्‍यूजमेंट पार्क का निर्माण किया गया है. एम्‍यूजमेन्‍ट पार्क में अनेक किस्‍म के झूले लगे हुए हैं. हरेक साल 3 मार्च को जमशेदजी नुसेरवांजी टाटा की याद में पूरे पार्क को बिजली के रंगीन बल्वों द्वारा बडे़ भव्‍य तरीके से सजाया जाता है.
अब आइये जानते है जे आर डी टाटा के बारे में कुछ महत्वपूर्ण बातें-
जहाँगीर रतनजी दादाभाई टाटा का जन्म २९ जुलाई १९०४ को हुआ. इनके पिता पारसी और माँ फ्रांसीसी थीं. जे आर डी ने फ्रांस, जापान और इंग्लॅण्ड में पढ़ाई की. १९२५ में बिना वेतन वाले एक ट्रेनी के रूप में टाटा एंड संस में काम शुरू किया. जे आर डी ने ही टेल्को (टाटा मोटर्स) की स्थापना की. टाटा मोटर्स विभिन्न प्रकार के ऑटोमोबाइल तो बनाती ही है. इसी कंपनी ने लखटकिया कार नैनो बनाकर आम लोगों को कार में चलने का सपना पूरा किया. २६ जुलाई १९३८ को सर नौरोजी सकटवाला के निधन के बाद उन्होंने टाटा ग्रुप की कमान सम्हाली. उस समय उनकी उम्र ३४ साल की थी. जे आर डी युवावस्था में कारों के शौक़ीन थे.  उनके पिता जमशेद जी टाटा ने २९२७ में ही फ्रांस से बुगाती कार मंगवाई थी. इस चार में तब न तो मडगार्ड था नहीं छत फिर भी उन्होंने इसी कार से मुंबई से पुणे की दूरी ढाई घंटे में पूरी की थी, जो उस समय का एक रिकॉर्ड था.
जे आर डी टाटा भारत के पहले कमर्शियल पायलट बने. १० फरवरी १९२९ को उनको पायलट का लाइसेंस मिला था. जे आर डी ने १९३२ में टाटा एयरलाइन्स की शुरुआत की जो कि बाद में १९४६ में एयर इंडिया, आज इंडियन एयर लाइन्स में तब्दील हो गया. पहली ब्यवसायिक उड़ान उन्होंने १५ अक्टूबर १९३२ को भरी जब वे सिंगल इंजन वाले हैवी लैंड पास मोथ हवाई जहाज को अहमदाबाद होते हुए करांची से मुंबई ले गए थे, उस उड़ान में यात्री नहीं बल्कि २५ किलो चिट्ठियाँ थी.
जे आर डी विमान उड़ाने में भी समय के ऐसे पाबंद थे कि उनकी विमान लैंडिंग से लोग अपनी घड़ी मिला लेते थे. टाटा एयर लाइन्स में भी यात्रियों की सुख सुविधा का पूरा ख्याल रखते थे. उद्योग जगत में प्रवेश करने के बाद उन्होंने कर्मचारियों को दी जानेवाली कई प्रकार की सुविधाओं की शुरुआत की जैसे कि ८ घंटे की कार्यावधि, भविष्य निधि, वेतन के साथ छुट्टी, मुफ्त चिकित्सा सुविधा, कामगार दुर्घटना क्षतिपूर्ति, आदि की सुविधा देने में टाटा ग्रुप अग्रणी रहा है. उन्होंने १९५६ में ही कार्मिक(Personnel) विभाग की स्थापना की जिसके तहत कर्मचारियों की कई तरह की समस्याओं का समाधान किया जाने लगा. उनका कहना था, “औद्योगिक विवाद की जड़ में अगर देखा जाय तो बहुत सारे विवादों का जन्म इसलिए हुआ, क्योंकि कामगारों की बात सुनी नहीं गयी.”
ईमानदारी की वे मिशाल थे और उनका कहना था काम छोटा से छोटा या बड़ा से बड़ा क्यों न हो पूरे मनोयोग और ईमानदारी के साथ की जानी चाहिए. इनफ़ोसिस फाउंडेशन की चेयरपर्सन सुधा मूर्ति जे आर डी टाटा को अपना आदर्श मानती हैं और उनके साथ बिताये कई यादगार पल को अपनी आत्मकथा में साझा करती रहती हैं. टाटा ग्रुप कंपनियों में जुलाई का महीना ‘एथिक्स मंथ’ के रूप में मनाया जाता है जिनमे जे आर डी को आदर्श मानते हुए ईमानदार पहल के कई उदाहरण पेश किये जाते है साथ ही कंपनी के अलावा जमशेदपुर शहर में भी कई प्रकार का आयोजन किया जाता है जिसमे हर वर्ग के लोग अपनी भागीदारी सुनिश्चित करते हैं.    
जेआरडी टाटा को कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है. भारतीय वायु सेना ने उन्हें ग्रुप कैप्टन की मानद पद से सम्मानित किया था और बाद में उन्हें एयर कमोडोर पद पर पदोन्नत किया गया और फिर १ अप्रैल १९७४ को एयर वाइस मार्शल पद दिया गया. विमानन के लिए उनको कई अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार दिया गया -मार्च १९७९ में टोनी जेनस पुरस्कार, सन् १९९५ में फेडरेशन ऐरोनौटिक इंटरनेशनल द्वारा गोल्ड एयर पदक,सन् १९८६ में कनाडा स्थित अन्तराष्ट्रीय नागर विमानन संगठन द्वारा एडवर्ड वार्नर पुरस्कार और सन् १९८८ में डैनियल गुग्नेइनम अवार्ड . सन् १९५५ में उन्हें पद्मविभूषण से सम्मानित किया गया. उनके नि: स्वार्थ मानवीय प्रयासों के लिए ,सन् १९९२ में जेआरडी टाटा को भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान, भारत रत्न से सम्मानित किया गया. भारत रत्न मिलने के बाद उनका कहना था – मैं यह नहीं चाहता कि भारत आर्थिक रूप से सुपर पॉवर बने बल्कि यह कि भारत खुशहाल देश हो. (I do not want India to be an economic superpower. I want India to be a happy country). 1992 में ही संयुक्त राष्ट्र संघ ने भारत में जनसंख्या नियंत्रण में अहम योगदान देने के लिए उन्हें यूनाइटेड नेशन पापुलेशन आवार्डसे सम्‍मानित किया.
२९ नवंबर १९९३ को गुर्दे में संक्रमण के कारण जिनेवा में ८९ वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया. उनकी मृत्यु पर भारतीय संसद उनकी स्मृति में स्थगित कर दी गई थी. उनको पेरिस में पेरे लेचसे नामक कब्रिस्तान में दफनाया गया है.

जे आर डी टाटा जैसी महान हस्ती को हम जमशेदपुर वासी श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं.  

Sunday, 23 July 2017

महिला क्रिकेट विश्व कप - संघर्षपूर्ण मैच

भारतीय महिला क्रिकेट टीम का वर्ल्ड कप जीतने का सपना एक बार फिर टूट गया है. एक वक्त मैच पूरी तरह भारत की झोली में जाती दिख रही थी. लेकिन आखिरी के 10 ओवरों में मैच का रूख पलट गया और इंग्लैंड टीम ने एक बार फिर वर्ल्ड कप पर कब्जा कर लिया. फिर भी कोई बात नहीं मिताली और टीम इण्डिया बधाई की पात्र है. क्योंकि फाइनल में पहुँचना और संघर्ष करते हुए खेलना ही मैच का उद्देश्य होना चाहिए. चैम्पियन ट्रॉफी में जिस बुरी तरह से भारत पाकिस्तान से हारा था वह बेहद शर्मनाक था. उस मैच के लिए पूरे देश में क्या माहौल बना था! और क्या परिणाम आये! महिला क्रिकेट टीम को वैसे भी मीडिया और हम भारत के लोग उतना महत्व नहीं देते. मैं तो हमारी बेटियों का प्रशंसक हूँ, क्योंकि यह हर क्षेत्र में ये लोग अच्छा प्रदर्शन कर रही हैं
इस मैच में 10 अहम टर्निंग प्वाइंट रहे जिससे भारतीय टीम जीती हुई बाजी हार गई.
1. टॉस जीत मेजबान टीम ने पहले बल्लेबाजी करने का फैसला किया, लेकिन भारतीय गेंदबाजी को मिली शुरुआत सफलता ने इंग्लैंड टीम की तेज शुरुआत पर कुछ हद तक ब्रेक लगा दिया. 11 से 16 ओवर के बीच में इंग्लैंड टीम को लगातार तीन झटके लगे. पूनम यादव ने दो तो राजेश्वरी गायकवाड़ ने एक विकेट झटककर इंग्लैंड को बड़े स्कोर से रोका.
2. 16वें ओवर में झटके के बाद इंग्लैंड के खिलाड़ियों के पैर जमाने की कोशिश की और स्कोर में एक-एक कर रन बढ़ने लगे, स्कोरबोर्ड में इंग्लैंड के 3 विकेट 146 रन जा पहुंचा. इस बीच सारा टेलर और नताली स्काइवर के बीच चौथे विकेट के लिए 83 रन की पार्टनरशिप हो गई. लेकिन फिर 33 ओवरों में इस जोड़ी को झूलन गोस्वामी ने तोड़ डाला. इस जोड़ी को तोड़ना भारत की जीत के एक तरह से टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ. 33वें ओवर में ही भारतीय गेंदबाजी झूलन ने टेलर (45) को भी सुषमा वर्मा के हाथों कैच करा दिया.
3. 33वें ओवर में झूलन ने लगातार दो गेंदों पर दो विकेट झटके, पहले भारत के लिए सिर दर्द साबित हो रहीं सारा टेलर को आउट किया और फिर अगली ही गेंद पर नई बैट्समैन फ्रेन विल्सन को क्रीज से चलता किया. जिससे मैच में एक बार भारतीय टीम जोरदार तरीके से वापसी की, और फिर इंग्लैंड की टीम पर कुछ देर के लिए खुलकर खेलने पर ब्रेक लग गया, जिससे स्कोर 228 तक ही पहुंच पाया.
4. सारा टेलर और नताली स्काइवर के बीच चौथे विकेट के लिए 83 रन की पार्टनरशिप कीसारा टेलर के आउट होने के बाद नताली स्काइवर खुलकर खेलने लगीं और फिर ये विकेट लेना भारतीय टीम के लिए जरूरी हो गया था. ऐसे में एक बार फिर 37.1 ओवरों में नताली स्काइवर (51) के रूप में भारत में छठी सफलता मिली. ये विकेट भी झूलन गोस्वामी के झोली में गईं.
5. इंग्लैंड के स्कोरबोर्ड 228 रन: आखिरी के 10 ओवरों में इंग्लैंड की टीम ने तेजी से रन बनाने की कोशिश की. कैथरीन ब्रंट तेजी से रन जुटा रही थीं, तभी 46वें ओवर में कैथरीन को 34 रन पर दीप्ति शर्मा ने रन आउट कर दिया. सातवां विकेट गिरने के बाद इंग्लैंड की टीम ने रन बनाने के बजाय पूरे ओवर खेलने पर अपना फोकस दिया, जिससे स्कोर 230 से ऊपर नहीं पहुंच पाया.   
6. भारत को शुरुआती झटका: 228 रन का पीछा करने उतरी भारतीय महिला टीम को दूसरे ही ओवर में स्मृति मंधाना बिना खाता खोले आउट हो गईं. जिससे ओपनिंग में भारत टीम को जो रफ्तार मिलनी चाहिए थी वो नहीं मिल पाई.  
7. तीसरे विकेट की शानदार साझेदारी: स्मृति मंधाना का विकेट गिरने के बाद हरमनप्रीत कौर और पूनम राउत ने भारतीय पारी को आगे बढ़ाया. दोनों के बीच तीसरे विकट के लिए 95 रनों का पार्टनरशिप हुई, जिससे भारत की राह आसान हुई.
8. मिताली राज का राउट होना: पूनम राउत के 85 रन पर आउट होने के बाद एक वक्त पूरी तरह से मैच भारत की पकड़ में गई थी. जिसके बाद मिताली राज 17 रन बनाकर आउट हो गईं और फिर इंग्लैंड टीम से भारतीय टीम के रन बनाने के रफ्तार पर ब्रेक लगा दिया. इसके बाद हरमनप्रीत कौर के तेज रन बनाने की जिम्मेदारी संभाली और फिर शानदार 51 रनों की पारी खेली.
9. लगातार विकेट गिरना: हरमनप्रीत कौर के आउट होने के बाद टीम इंडिया की राह आसान लग रही थी. लेकिन 42वें ओवर के बाद लगातार एक-एक बाद चार विकेट गिर गए. जिससे भारतीय टीम बैकफुट पर गई और प्रशंसकों में मायूसी छा गई.
10. 42वें ओवर में झटके के बाद भारतीय टीम उबर नहीं पाई. इंग्लैंड की अन्या श्रब्सोल ने 46 रन देकर 6 विकेट झटकर मैच भारत से छीन लिया. आखिरी के 28 रन बनाने में भारतीय टीम ने 7 विकेट गवां दिए. जिसके बाद पूरी टीम 219 रन पर ऑल आउट हो गई. और मैच 9 रन से भारतीय टीम मैच हार गई.
25 जून, 1983 को लॉर्ड्स की बॉलकनी में वर्ल्ड कप को हाथ में उठाए कपिल की तस्वीरें हर हिन्दुस्तानी के ज़ेहन में जिंदा हैं क्योंकि इस तस्वीर ने भारतीय क्रिकेट की दुनिया बदल दी. उस वक्त भारतीय टीम की कप्तान मिताली राज की उम्र बस 6 महीने थी लेकिन मिताली और उनकी टीम के लिए एक बार फिर इसी बॉल्कनी पर कप उठाकर भारतीय महिला क्रिकेट को बुलंदी पर ले जाने का एक शानदार मौक़ा था. 34 साल पहले टीम इंडिया ने लॉर्ड्स पर दुनियाभर में अपनी बादशाहत साबित की थी. 34 साल बाद महिला टीम से कुछ वैसे ही धमाके की उम्मीद की जा रही थी.
महिला टीम के हौसले बुलंद थे. लेकिन मिताली इंग्लैंड को हराने के बावजूद उसकी चुनौती को हल्का नहीं आंक रही. कप्तान मिताली कहती हैं, " एक टीम की तरह हम बहुत उत्साहित हैं. हमें शुरू से ही मालूम था कि ये टूर्नामेंट हमारे लिए आसान नहीं होगा. लेकिन जब भी ज़रूरत पड़ी हमारी लड़कियों ने स्तर से ऊपर उठकर प्रदर्शन किया. सिर्फ़ बैटिंग या बॉलिंग ही नहीं, एकाध मौक़ों को छोड़ दे तो टीम ने फ़ील्डिंग में भी अच्छा प्रदर्शन किया है. हमने ऑस्ट्रेलिया जैसी अच्छी टीम को परास्त किया है. लेकिन इंग्लैंड के ख़िलाफ़ हमें अलग प्लानिंग करनी होगी और रणनीति बनानी होगी. हमसे हारने के बाद इंग्लैंड ने भी इस टूर्नामेंट में बहुत अच्छा प्रदर्शन किया है. "
वनडे क्रिकेट में 6000 से ज़्यादा रन बनाने वाली इकलौती बल्लेबाज़ मिताली कहती हैं, "2005 में भी हमने फ़ाइनल में खेला था. लेकिन तब बात अलग थी. तब किसी को पता भी नहीं था कि हमने क्वालिफ़ाई किया है. सब मेन्स क्रिकेट में व्यस्त थे. अगर हम ख़िताब जीत पाती हैं तो ये हमारे लिए बड़ी कामयाबी होगी. मैंने लड़कियों को कहा है कि वो इस मौक़े का लुत्फ़ उठायें. लॉर्ड्स पर फ़ाइनल खेलना सबके लिए किस्मत की बात है. इतिहास की वजह से लॉर्ड्स पर खेलना सभी क्रिकेटर के लिए सपने जैसा होता है. मिताली ने कहा कि फाइनल आसान नहीं होगा लेकिन हम अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करेंगे." और लड़कियों ने अपना श्रेष्ठ प्रदर्शन किया. हार-जीत लगी रहती है. पर संघर्ष पूर्ण ढंग से मैच खेलना अपने आप में गर्व का विषय है.
रविवार को लॉर्ड्स के क्रिकेट मैदान पर भारत और इंग्लैंड की महिला टीमों के बीच वर्ल्ड कप फाइनल खेला गया. मिताली राज के कप्तानी में भारत ने दूसरी बार महिला वर्ल्ड कप के फाइनल में पहुंचने का गौरव हासिल किया है. 2005 में भी भारत फाइनल में पहुंचा था लेकिन ऑस्ट्रेलिया से हार गया था. लॉर्ड्स के मैदान पर भारतीय महिला टीम का यह तीसरा एकदिवसीय मैच था और पहला वर्ल्ड कप मैच. भारतीय महिला टीम ने अपना पहला एकदिवसीय मैच लॉर्ड्स के मैदान पर 2006 में खेला था और इंग्लैंड के खिलाफ इस मैच को 100 रन से हार गई थी फिर 2012 में इंग्लैंड को 5 विकेट से हराया था. लॉर्ड्स के मैदान पर भारत और इंग्लैंड महिला टीम के बीच आखिरी मैच 25 अगस्त 2014 को खेला गया था लेकिन बारिश की वजह से यह मैच रद्द हो गया था.
कपिल देव की कप्तानी में लॉर्ड्स में भारत जीता था वर्ल्ड कप : लॉर्ड्स के मैदान पर भारतीय महिला टीम ने कोई फाइनल मैच नहीं खेला है, लेकिन पुरुष टीम ने इस मैदान पर दो फाइनल मैच खेला है और दोनों मैच जीतने में कामयाब हुई है. कपिल देव की कप्तानी में भारत ने इसी मैदान पर 1983 का वर्ल्ड कप जीता था. 1983 के वर्ल्ड कप के फाइनल से पहले किसी को यह उम्मीद नहीं थी कि भारत, वेस्टइंडीज जैसी दो बार की चैंपियन रही टीम को हराकर वर्ल्ड कप जीतने का गौरव हासिल करेगा लेकिन लॉर्ड्स में भारत ने यह कर दिखाया थावेस्टइंडीज को 43 रन से हराकर भारत ने इतिहास रचा था. इस जीत के साथ भारत ने पहली वार वर्ल्ड कप जीतने का गौरव हासिल किया था.