पौराणिक कथाओं के अनुसार
महाभारत के युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभानेवाले भगवान श्रीकृष्ण का एक नाम
रणछोड़ (युद्ध से भागने वाला) भी है, क्योंकि
जब जरासंध ने मथुरा पर हमला किया था तो उन्होंने अपनी प्रजा के हित में युद्ध करने
के स्थान पर मथुरा से भागने का फैसला किया था, जिससे
कृष्ण का नाम रणछोड़ पड़ गया. बाद में इस कदम से नाराज़ बड़े भाई बलराम को समझाते
हुए कृष्ण ने कहा,
"दाऊ, अगर मुझे रणछोड़ कहा जाता है, और इससे मेरा अपमान होता है, तो भी कोई बात नहीं, क्योंकि इस वक्त युद्ध न करना मथुरावासियों के हित
में है... शांति हमेशा युद्ध से अच्छी होती है..."
उरी में जब १८ सैनिक शहीद हुए थे, पूरा देश टी वी के माध्यम से उनके विलखते हुए परिवार को देख रहा था, हर भारतीय बदले की अपेक्षा रखता था. मीडिया के शोरगुल में हम सभी युद्धोन्मादी बन गए थे. उपर्युक्त दृष्टान्त देश के भीतर जंग के लिए शोर मचा रहे सभी राष्ट्रवादियों के लिए है, क्योंकि भारत और पाकिस्तान के बीच किसी भी वक्त जंग की संभावना कोई अच्छी खबर नहीं हो सकती. इसीलिए उरी में हुए आतंकवादी हमले के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की संयमित प्रतिक्रिया सुकून देने वाली है. यही बात उन्होंने केरल के कोझिकोड से भी कही. जहाँ उन्होंने पकिस्तान के शासकों को ललकारा भी है, तो वहाँ के नागरिकों से भी अपील की है कि वह अपने शासकों से सवाल पूछे के क्यों आजादी के बाद भारत सॉफ्टवेयर निर्यात करता है और पाकिस्तान आतंकवाद! भले ही गुजरात के मुख्यमंत्री रहते या फिर लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार की हैसियत से उन्होंने पाकिस्तान को 'सबक' सिखाने की बात कही थी और पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार पर 'कमज़ोर सरकार' कहते हुए निशाना भी साधा था, लेकिन अभी सरकार को किसी भी तरह के बड़बोलेपन या जंगबहादुरी से बचने की ज़रूरत है. एक मंजे हुए नेता की यही पहचान होती है. अब वे कूटनीतिक तरीके से पकिस्तान को अलग थलग करने की बात कर रहे हैं.
उरी में जब १८ सैनिक शहीद हुए थे, पूरा देश टी वी के माध्यम से उनके विलखते हुए परिवार को देख रहा था, हर भारतीय बदले की अपेक्षा रखता था. मीडिया के शोरगुल में हम सभी युद्धोन्मादी बन गए थे. उपर्युक्त दृष्टान्त देश के भीतर जंग के लिए शोर मचा रहे सभी राष्ट्रवादियों के लिए है, क्योंकि भारत और पाकिस्तान के बीच किसी भी वक्त जंग की संभावना कोई अच्छी खबर नहीं हो सकती. इसीलिए उरी में हुए आतंकवादी हमले के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की संयमित प्रतिक्रिया सुकून देने वाली है. यही बात उन्होंने केरल के कोझिकोड से भी कही. जहाँ उन्होंने पकिस्तान के शासकों को ललकारा भी है, तो वहाँ के नागरिकों से भी अपील की है कि वह अपने शासकों से सवाल पूछे के क्यों आजादी के बाद भारत सॉफ्टवेयर निर्यात करता है और पाकिस्तान आतंकवाद! भले ही गुजरात के मुख्यमंत्री रहते या फिर लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार की हैसियत से उन्होंने पाकिस्तान को 'सबक' सिखाने की बात कही थी और पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार पर 'कमज़ोर सरकार' कहते हुए निशाना भी साधा था, लेकिन अभी सरकार को किसी भी तरह के बड़बोलेपन या जंगबहादुरी से बचने की ज़रूरत है. एक मंजे हुए नेता की यही पहचान होती है. अब वे कूटनीतिक तरीके से पकिस्तान को अलग थलग करने की बात कर रहे हैं.
पाकिस्तान की तुलना में
भारत बहुत बड़ा देश है और अंतरराष्ट्रीय मंच पर उसकी एक साख है. भारत के पास विश्व
बाज़ार और आर्थिक महाशक्ति बनने की अपार संभावनाएं हैं और पाकिस्तान की छवि
आतंकवाद को पनाह और बढ़ावा देने वाले एक देश की है. पाकिस्तान का पिछले 40 साल का इतिहास बताता है कि वह आतंकवाद के खेल में
शामिल रहा है और उसकी सेना और खुफिया एजेंसियां इस खेल का हिस्सा रही हैं. इसलिए
भारत सिर्फ पाकिस्तान को 'सबक' सिखाने के लिए जंग के जाल
में नहीं फंस सकता. भारत ने पाकिस्तान के साथ तीन युद्ध और फिर करगिल की जंग लड़ी
है. कारगिल युद्ध के दौरान सरकार ने जो किया, वह
ज़रूरी था. अभी जंग जरूरी नहीं है. आत्मरक्षा जरूरी है. हमारे अपने छिद्रों कप भरने की
जरूरत है.
फिलहाल भारत को पाकिस्तान जैसे
बीमारू और आतंकवादी देश से निबटने के लिए वैश्विक मंच पर अपनी साख मजबूत करनी है.
यह सब करने के लिए भुखमरी, कुपोषण, अशिक्षा
और सामाजिक असमानता और शिशु मृत्युदर से लड़ने के साथ बेरोज़गारी और जनसंख्या की
समस्या उसके सामने खड़ी है. पाकिस्तान के साथ जंग के जाल में फंसने पर हमारी
अर्थव्यवस्था जो अभी गतिमान है, थम जायेगी.
अमेरिका पाकिस्तान को जैसे छद्म समर्थन देता है और आतंकवाद के खेल में उसकी शिरकत को अनदेखा करता है, उसके खिलाफ भारत को एक कूटनीतिक रणनीति बनानी होगी. अमेरिका भले ही दुनियाभर में आतंक के खिलाफ जंग की बात करता हो, लेकिन युद्ध के सामान को बेचने का कारोबार उसकी अर्थव्यवस्था के लिए ज़रूरी रहा है. भारत को इस सच को भी समझना है कि लाखों-करोड़ का जंगी साजोसामान उसकी वास्तविक ज़रूरतों से उसे कितना पीछे धकेल रहा है. फ्रांस के साथ राफेल विमान का समझौता अभी अभी ही हुआ है.
अमेरिका पाकिस्तान को जैसे छद्म समर्थन देता है और आतंकवाद के खेल में उसकी शिरकत को अनदेखा करता है, उसके खिलाफ भारत को एक कूटनीतिक रणनीति बनानी होगी. अमेरिका भले ही दुनियाभर में आतंक के खिलाफ जंग की बात करता हो, लेकिन युद्ध के सामान को बेचने का कारोबार उसकी अर्थव्यवस्था के लिए ज़रूरी रहा है. भारत को इस सच को भी समझना है कि लाखों-करोड़ का जंगी साजोसामान उसकी वास्तविक ज़रूरतों से उसे कितना पीछे धकेल रहा है. फ्रांस के साथ राफेल विमान का समझौता अभी अभी ही हुआ है.
सोशल
मीडिया में जंगप्रेमी उफान पर सर्फिंग कर रहे देशभक्तों को पूर्व प्रधानमंत्री अटल
बिहारी वाजपेयी की ही एक कविता की कुछ पंक्तियों का एक बार अवलोकन कर लेना चाहिए
...
भारत-पाकिस्तान पड़ोसी, साथ-साथ ही रहना है,
प्यार करें या वार करें, दोनों को ही सहना है,
तीन बार लड़ चुके लड़ाई, कितना महंगा सौदा है
रूसी बम हो या अमरीकी, ख़ून एक ही बहना है...
भारत-पाकिस्तान पड़ोसी, साथ-साथ ही रहना है,
प्यार करें या वार करें, दोनों को ही सहना है,
तीन बार लड़ चुके लड़ाई, कितना महंगा सौदा है
रूसी बम हो या अमरीकी, ख़ून एक ही बहना है...
यह देश सचमुच लालबहादुर
शास्त्री के एक बार कहने पर दिन में एक बार भोजन करने लगा था. इस देश में ऐसा भी
होता था कि पूरे शहर को अंधेरे में रखना है, घंटे-आधा
घंटे हर घर की बत्ती बुझानी है, इसलिए पूरा का पूरा शहर
स्वतः 'ब्लैकआउट' का
अभ्यास करता था. इस देश में ऐसा भी होता था, जब लोग
घरों से तरह-तरह की चीजें बनाकर विशेष रेलगाड़ियों से आवागमन कर रही सेना की ओर
दौड़ पड़ते थे, कोई हलवा बनाकर खिलाता, कोई
महिला बिना त्योहार के ही राखी बांधती नजर आती, किसी
ने स्वेटर तक बना डाला, इसलिए कि फौजी भाई सीमा पर उनकी रक्षा करने जा रहे
हैं. युवाओं की टोली स्कूल-कॉलेज के बाद टीन के डिब्बों में एक-एक दो-दो रुपये जमा
करने के लिए निकल पड़ती. किसी सोशल मीडिया के बिना यह सब कुछ बिना अतिरिक्त प्रयास
के स्वतः चलता रहता था. आज भी यह संभव है पर, जब अत्यंत जरूरी हो तब!
उरी में जो कुछ भी हुआ, उसके बाद इस तरह के गुस्से से कौन इंकार कर सकता है...? भारत की आवाम अब कोई हल चाहती है, ठोस हल. रोज-रोज की शहादत, रोज-रोज की अशांति को किसी एक निर्णय से निपटा देने का यह बेहतरीन वक्त लगता है, इसलिए भी, क्योंकि यह जो सरकार है, जिसे कई-कई सालों बाद भारतीय जनता ने अपनी पूरे समर्थन से सत्ता पर आसीन कराया है, वह कोई निर्णय ले पाने में समर्थ है. वह हल निकाल सकती है, लेकिन क्यों नहीं निकलता कोई हल. सबसे बड़ा सवाल यह कि क्या युद्ध इसका हल है...?
उरी में जो कुछ भी हुआ, उसके बाद इस तरह के गुस्से से कौन इंकार कर सकता है...? भारत की आवाम अब कोई हल चाहती है, ठोस हल. रोज-रोज की शहादत, रोज-रोज की अशांति को किसी एक निर्णय से निपटा देने का यह बेहतरीन वक्त लगता है, इसलिए भी, क्योंकि यह जो सरकार है, जिसे कई-कई सालों बाद भारतीय जनता ने अपनी पूरे समर्थन से सत्ता पर आसीन कराया है, वह कोई निर्णय ले पाने में समर्थ है. वह हल निकाल सकती है, लेकिन क्यों नहीं निकलता कोई हल. सबसे बड़ा सवाल यह कि क्या युद्ध इसका हल है...?
ध्यान दीजिए, तमाम ख़बरों के बीच अमेरिका के राष्ट्रपति बराक
ओबामा का अख़बारों में छपा बयान, जिसमें
उन्होंने उरी के हमलों ओर आतंक को प्रश्रय देने की निंदा तो की, लेकिन साथ ही यह भी कहा है कि 'इस वक्त दुनिया का कोई भी बड़ा देश किसी दूसरे देश पर
युद्ध नहीं कर सकता है...' इस वक्त इस परिस्थिति में
ओबामा के इस वक्तव्य के क्या मायने हैं? इसका
छिपा सन्देश क्या है? दुनियाभर में अपनी
दादागिरी दिखाने वाला यह देश क्या भारत-पाकिस्तान के इस मसले को यूं ही सुलगाए
रखना चाहता है?
पाकिस्तान के पास अपने मूल सवालों, लोगों की बदहाल स्थिति, गरीबी से लड़ने और लोगों को उनके हकों से वंचित रखने के लिए इस कथित राष्ट्रवाद और कश्मीर के मसले को जिन्दा रखने के अलावा कोई हल नहीं है, लेकिन क्या हमारी राजनीति और विमर्श में भी कश्मीर का यह मुद्दा दूसरे अन्य मुद्दों पर पानी डालने का काम नहीं करता है...?
यदि पूरी गंभीरता से विकास के पहिये को और आगे ले जाना है तो निश्चित ही इस मुद्दे का हल निकालना होगा, लेकिन यदि अमेरिकी राष्ट्रपति खुले रूप में किसी भी हमले से इंकार कर रहे हैं, तो क्या हमारी राजनीतिक, कूटनीतिक रणनीति उनके खिलाफ जाकर हमले का साहस कर पाएगी, यदि हां, तो हम इसके लिए कितना तैयार हैं...? लड़ाई होती भी है, तो गौर कीजिए, क्या यह केवल भारत और पाकिस्तान ही की लड़ाई रह जाएगी, क्या दुनिया के दूसरे देश चुप बैठेंगे...? चीन का रवैया क्या होगा...? अमेरिका किसके साथ खड़ा होगा...? रूसी सेना किसके खेमे में जाएगी...? क्या हम यह सोच सकते हैं...! क्या हम कल्पना कर सकते हैं कि भारत-पाकिस्तान का यह युद्ध केवल दो देशों में ही नहीं रह जाएगा...? और यदि फिर भी हमारा निर्णय लड़ाई के पक्ष में है तो क्या हम एक टाइम भोजन करने को तैयार हैं...? क्या देश अब भी वैसा ही है, या कुछ बदल गया है...? हमारे देश की कुल आबादी में से लगभग 70 फीसदी गरीबी रेखा के नीचे रहती है, इस बात का ठीक-ठीक कोई आंकड़ा नहीं है कि हजारों मीट्रिक टन अनाज पैदा होने के बावजूद कितने लोग रातों में भूखे सोते हैं, बीमारियों से हज़ारों लोग कर्जदार होकर कंगाल हो रहे हैं, हमारे देश के आधे बच्चे कुपोषण का शिकार हैं, आधे भारत में बाढ़ के कारण उत्पन्न स्थिति से निपटने के लिए आपदा प्रबंधन की टीम के साथ सेना भी संघर्ष कर रही है. कई राज्य सरकारों के साथ केंद्र भी इन समस्यायों से निपटने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है और हम पाकिस्तान से युद्ध करके उसे रौंदने चल पड़ें? यह सही है कि पाकिस्तान हमें फूटी आंख नहीं भाता, उसके लोग बार-बार हम पर हमला करते हैं, और चुनौती देते हैं, लेकिन यह भी उतना ही सही है कि जैसा युद्धोन्माद का मानस हमारा समाज बनाता है, उससे हासिल क्या होना है? अत: सभी राष्ट्रभक्तों से हमारा विनम्र निवेदन है कि युद्धोन्माद के वातावरण से अपने को दूर रक्खे. केंद्र सरकार और हमारे सशक्त प्रधान मंत्री मंत्रणा कर सही हल निकालने के लिए प्रयासरत हैं. हमें उनके निर्णयों पर भरोसा होना चाहिए. जय हिन्द! जय भारत! जय जवान! जय किसान! जय विज्ञानं!
- जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर
पाकिस्तान के पास अपने मूल सवालों, लोगों की बदहाल स्थिति, गरीबी से लड़ने और लोगों को उनके हकों से वंचित रखने के लिए इस कथित राष्ट्रवाद और कश्मीर के मसले को जिन्दा रखने के अलावा कोई हल नहीं है, लेकिन क्या हमारी राजनीति और विमर्श में भी कश्मीर का यह मुद्दा दूसरे अन्य मुद्दों पर पानी डालने का काम नहीं करता है...?
यदि पूरी गंभीरता से विकास के पहिये को और आगे ले जाना है तो निश्चित ही इस मुद्दे का हल निकालना होगा, लेकिन यदि अमेरिकी राष्ट्रपति खुले रूप में किसी भी हमले से इंकार कर रहे हैं, तो क्या हमारी राजनीतिक, कूटनीतिक रणनीति उनके खिलाफ जाकर हमले का साहस कर पाएगी, यदि हां, तो हम इसके लिए कितना तैयार हैं...? लड़ाई होती भी है, तो गौर कीजिए, क्या यह केवल भारत और पाकिस्तान ही की लड़ाई रह जाएगी, क्या दुनिया के दूसरे देश चुप बैठेंगे...? चीन का रवैया क्या होगा...? अमेरिका किसके साथ खड़ा होगा...? रूसी सेना किसके खेमे में जाएगी...? क्या हम यह सोच सकते हैं...! क्या हम कल्पना कर सकते हैं कि भारत-पाकिस्तान का यह युद्ध केवल दो देशों में ही नहीं रह जाएगा...? और यदि फिर भी हमारा निर्णय लड़ाई के पक्ष में है तो क्या हम एक टाइम भोजन करने को तैयार हैं...? क्या देश अब भी वैसा ही है, या कुछ बदल गया है...? हमारे देश की कुल आबादी में से लगभग 70 फीसदी गरीबी रेखा के नीचे रहती है, इस बात का ठीक-ठीक कोई आंकड़ा नहीं है कि हजारों मीट्रिक टन अनाज पैदा होने के बावजूद कितने लोग रातों में भूखे सोते हैं, बीमारियों से हज़ारों लोग कर्जदार होकर कंगाल हो रहे हैं, हमारे देश के आधे बच्चे कुपोषण का शिकार हैं, आधे भारत में बाढ़ के कारण उत्पन्न स्थिति से निपटने के लिए आपदा प्रबंधन की टीम के साथ सेना भी संघर्ष कर रही है. कई राज्य सरकारों के साथ केंद्र भी इन समस्यायों से निपटने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है और हम पाकिस्तान से युद्ध करके उसे रौंदने चल पड़ें? यह सही है कि पाकिस्तान हमें फूटी आंख नहीं भाता, उसके लोग बार-बार हम पर हमला करते हैं, और चुनौती देते हैं, लेकिन यह भी उतना ही सही है कि जैसा युद्धोन्माद का मानस हमारा समाज बनाता है, उससे हासिल क्या होना है? अत: सभी राष्ट्रभक्तों से हमारा विनम्र निवेदन है कि युद्धोन्माद के वातावरण से अपने को दूर रक्खे. केंद्र सरकार और हमारे सशक्त प्रधान मंत्री मंत्रणा कर सही हल निकालने के लिए प्रयासरत हैं. हमें उनके निर्णयों पर भरोसा होना चाहिए. जय हिन्द! जय भारत! जय जवान! जय किसान! जय विज्ञानं!
- जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर