Saturday, 24 September 2016

युद्ध हल नहीं हो सकता

पौराणिक कथाओं के अनुसार महाभारत के युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभानेवाले भगवान श्रीकृष्ण का एक नाम रणछोड़ (युद्ध से भागने वाला) भी है, क्योंकि जब जरासंध ने मथुरा पर हमला किया था तो उन्होंने अपनी प्रजा के हित में युद्ध करने के स्थान पर मथुरा से भागने का फैसला किया था, जिससे कृष्ण का नाम रणछोड़ पड़ गया. बाद में इस कदम से नाराज़ बड़े भाई बलराम को समझाते हुए कृष्ण ने कहा, "दाऊ, अगर मुझे रणछोड़ कहा जाता है, और इससे मेरा अपमान होता है, तो भी कोई बात नहीं, क्योंकि इस वक्त युद्ध न करना मथुरावासियों के हित में है... शांति हमेशा युद्ध से अच्छी होती है..."
उरी में जब १८ सैनिक शहीद हुए थे, पूरा देश टी वी के माध्यम से उनके विलखते हुए परिवार को देख रहा था, हर भारतीय बदले की अपेक्षा रखता था. मीडिया के शोरगुल में हम सभी युद्धोन्मादी बन गए थे. उपर्युक्त दृष्टान्त देश के भीतर जंग के लिए शोर मचा रहे सभी राष्ट्रवादियों के लिए है, क्योंकि भारत और पाकिस्तान के बीच किसी भी वक्त जंग की संभावना कोई अच्छी खबर नहीं हो सकती. इसीलिए उरी में हुए आतंकवादी हमले के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की संयमित प्रतिक्रिया सुकून देने वाली है. यही बात उन्होंने केरल के कोझिकोड से भी कही. जहाँ उन्होंने पकिस्तान के शासकों को ललकारा भी है, तो वहाँ के नागरिकों से भी अपील की है कि वह अपने शासकों से सवाल पूछे के क्यों आजादी के बाद भारत सॉफ्टवेयर निर्यात करता है और पाकिस्तान आतंकवाद! भले ही गुजरात के मुख्यमंत्री रहते या फिर लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार की हैसियत से उन्होंने पाकिस्तान को 'सबक' सिखाने की बात कही थी और पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार पर 'कमज़ोर सरकार' कहते हुए निशाना भी साधा था, लेकिन अभी सरकार को किसी भी तरह के बड़बोलेपन या जंगबहादुरी से बचने की ज़रूरत है. एक मंजे हुए नेता की यही पहचान होती है. अब वे कूटनीतिक तरीके से पकिस्तान को अलग थलग करने की बात कर रहे हैं.
पाकिस्तान की तुलना में भारत बहुत बड़ा देश है और अंतरराष्ट्रीय मंच पर उसकी एक साख है. भारत के पास विश्व बाज़ार और आर्थिक महाशक्ति बनने की अपार संभावनाएं हैं और पाकिस्तान की छवि आतंकवाद को पनाह और बढ़ावा देने वाले एक देश की है. पाकिस्तान का पिछले 40 साल का इतिहास बताता है कि वह आतंकवाद के खेल में शामिल रहा है और उसकी सेना और खुफिया एजेंसियां इस खेल का हिस्सा रही हैं. इसलिए भारत सिर्फ पाकिस्तान को 'सबक' सिखाने के लिए जंग के जाल में नहीं फंस सकता. भारत ने पाकिस्तान के साथ तीन युद्ध और फिर करगिल की जंग लड़ी है. कारगिल युद्ध के दौरान सरकार ने जो किया, वह ज़रूरी था. अभी जंग जरूरी नहीं है. आत्मरक्षा जरूरी है. हमारे अपने छिद्रों कप भरने की जरूरत है.
फिलहाल भारत को पाकिस्तान जैसे बीमारू और आतंकवादी देश से निबटने के लिए वैश्विक मंच पर अपनी साख मजबूत करनी है. यह सब करने के लिए भुखमरी, कुपोषण, अशिक्षा और सामाजिक असमानता और शिशु मृत्युदर से लड़ने के साथ बेरोज़गारी और जनसंख्या की समस्या उसके सामने खड़ी है. पाकिस्तान के साथ जंग के जाल में फंसने पर हमारी अर्थव्यवस्था जो अभी गतिमान है, थम जायेगी.
अमेरिका पाकिस्तान को जैसे छद्म समर्थन देता है और आतंकवाद के खेल में उसकी शिरकत को अनदेखा करता है, उसके खिलाफ भारत को एक कूटनीतिक रणनीति बनानी होगी. अमेरिका भले ही दुनियाभर में आतंक के खिलाफ जंग की बात करता हो, लेकिन युद्ध के सामान को बेचने का कारोबार उसकी अर्थव्यवस्था के लिए ज़रूरी रहा है. भारत को इस सच को भी समझना है कि लाखों-करोड़ का जंगी साजोसामान उसकी वास्तविक ज़रूरतों से उसे कितना पीछे धकेल रहा है. फ्रांस के साथ राफेल विमान का समझौता अभी अभी ही हुआ है.
सोशल मीडिया में जंगप्रेमी उफान पर सर्फिंग कर रहे देशभक्तों को पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की ही एक कविता की कुछ पंक्तियों का एक बार अवलोकन कर लेना चाहिए ...
भारत-पाकिस्तान पड़ोसी, साथ-साथ ही रहना है,
प्यार करें या वार करें, दोनों को ही सहना है,
तीन बार लड़ चुके लड़ाई, कितना महंगा सौदा है
रूसी बम हो या अमरीकी, ख़ून एक ही बहना है...
यह देश सचमुच लालबहादुर शास्त्री के एक बार कहने पर दिन में एक बार भोजन करने लगा था. इस देश में ऐसा भी होता था कि पूरे शहर को अंधेरे में रखना है, घंटे-आधा घंटे हर घर की बत्ती बुझानी है, इसलिए पूरा का पूरा शहर स्वतः 'ब्लैकआउट' का अभ्यास करता था. इस देश में ऐसा भी होता था, जब लोग घरों से तरह-तरह की चीजें बनाकर विशेष रेलगाड़ियों से आवागमन कर रही सेना की ओर दौड़ पड़ते थे, कोई हलवा बनाकर खिलाता, कोई महिला बिना त्योहार के ही राखी बांधती नजर आती, किसी ने स्वेटर तक बना डाला, इसलिए कि फौजी भाई सीमा पर उनकी रक्षा करने जा रहे हैं. युवाओं की टोली स्कूल-कॉलेज के बाद टीन के डिब्बों में एक-एक दो-दो रुपये जमा करने के लिए निकल पड़ती. किसी सोशल मीडिया के बिना यह सब कुछ बिना अतिरिक्त प्रयास के स्वतः चलता रहता था. आज भी यह संभव है पर, जब अत्यंत जरूरी हो तब!
उरी में जो कुछ भी हुआ, उसके बाद इस तरह के गुस्से से कौन इंकार कर सकता है...? भारत की आवाम अब कोई हल चाहती है, ठोस हल. रोज-रोज की शहादत, रोज-रोज की अशांति को किसी एक निर्णय से निपटा देने का यह बेहतरीन वक्त लगता है, इसलिए भी, क्योंकि यह जो सरकार है, जिसे कई-कई सालों बाद भारतीय जनता ने अपनी पूरे समर्थन से सत्ता पर आसीन कराया है, वह कोई निर्णय ले पाने में समर्थ है. वह हल निकाल सकती है, लेकिन क्यों नहीं निकलता कोई हल. सबसे बड़ा सवाल यह कि क्या युद्ध इसका हल है...?

ध्यान दीजिए, तमाम ख़बरों के बीच अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा का अख़बारों में छपा बयान, जिसमें उन्होंने उरी के हमलों ओर आतंक को प्रश्रय देने की निंदा तो की, लेकिन साथ ही यह भी कहा है कि 'इस वक्त दुनिया का कोई भी बड़ा देश किसी दूसरे देश पर युद्ध नहीं कर सकता है...' इस वक्त इस परिस्थिति में ओबामा के इस वक्तव्य के क्या मायने हैं? इसका छिपा सन्देश क्या है? दुनियाभर में अपनी दादागिरी दिखाने वाला यह देश क्या भारत-पाकिस्तान के इस मसले को यूं ही सुलगाए रखना चाहता है?
पाकिस्तान के पास अपने मूल सवालों, लोगों की बदहाल स्थिति, गरीबी से लड़ने और लोगों को उनके हकों से वंचित रखने के लिए इस कथित राष्ट्रवाद और कश्मीर के मसले को जिन्दा रखने के अलावा कोई हल नहीं है, लेकिन क्या हमारी राजनीति और विमर्श में भी कश्मीर का यह मुद्दा दूसरे अन्य मुद्दों पर पानी डालने का काम नहीं करता है...?
यदि पूरी गंभीरता से विकास के पहिये को और आगे ले जाना है तो निश्चित ही इस मुद्दे का हल निकालना होगा, लेकिन यदि अमेरिकी राष्ट्रपति खुले रूप में किसी भी हमले से इंकार कर रहे हैं, तो क्या हमारी राजनीतिक, कूटनीतिक रणनीति उनके खिलाफ जाकर हमले का साहस कर पाएगी, यदि हां, तो हम इसके लिए कितना तैयार हैं...? लड़ाई होती भी है, तो गौर कीजिए, क्या यह केवल भारत और पाकिस्तान ही की लड़ाई रह जाएगी, क्या दुनिया के दूसरे देश चुप बैठेंगे...? चीन का रवैया क्या होगा...? अमेरिका किसके साथ खड़ा होगा...? रूसी सेना किसके खेमे में जाएगी...? क्या हम यह सोच सकते हैं...! क्या हम कल्पना कर सकते हैं कि भारत-पाकिस्तान का यह युद्ध केवल दो देशों में ही नहीं रह जाएगा...? और यदि फिर भी हमारा निर्णय लड़ाई के पक्ष में है तो क्या हम एक टाइम भोजन करने को तैयार हैं...? क्या देश अब भी वैसा ही है, या कुछ बदल गया है...? हमारे देश की कुल आबादी में से लगभग 70 फीसदी गरीबी रेखा के नीचे रहती है, इस बात का ठीक-ठीक कोई आंकड़ा नहीं है कि हजारों मीट्रिक टन अनाज पैदा होने के बावजूद कितने लोग रातों में भूखे सोते हैं, बीमारियों से हज़ारों लोग कर्जदार होकर कंगाल हो रहे हैं, हमारे देश के आधे बच्चे कुपोषण का शिकार हैं, आधे भारत में बाढ़ के कारण उत्पन्न स्थिति से निपटने के लिए आपदा प्रबंधन की टीम के साथ सेना भी संघर्ष कर रही है. कई राज्य सरकारों के साथ केंद्र भी इन समस्यायों से निपटने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है और हम पाकिस्तान से युद्ध करके उसे रौंदने चल पड़ें? यह सही है कि पाकिस्तान हमें फूटी आंख नहीं भाता, उसके लोग बार-बार हम पर हमला करते हैं, और चुनौती देते हैं, लेकिन यह भी उतना ही सही है कि जैसा युद्धोन्माद का मानस हमारा समाज बनाता है, उससे हासिल क्या होना है? अत: सभी राष्ट्रभक्तों से हमारा विनम्र निवेदन है कि युद्धोन्माद के वातावरण से अपने को दूर रक्खे. केंद्र सरकार और हमारे सशक्त प्रधान मंत्री मंत्रणा कर सही हल निकालने के लिए प्रयासरत हैं. हमें उनके निर्णयों पर भरोसा होना चाहिए. जय हिन्द! जय भारत! जय जवान! जय किसान! जय विज्ञानं!  
- जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर 

Sunday, 18 September 2016

आखिर हम कब कड़े कदम उठाएंगे?

जम्मू कश्मीर के उरी सेक्टर में एलओसी के पास स्थित आर्मी हेडक्वॉर्टर पर रविवार(१८-०९-२०१६) को सुबह साढे 5 बजे हुए आतंकी हमले में 17 जवान शहीद हो गए. ख़बरों के अनुसार १४ जवान तो आग में ही जलकर मर गए. सैन्य बलों ने जवाबी कार्रवाई में सभी चार आतंकियों को मार गिराया. हाल के सालों में यह सबसे बड़ा हमला बताया जा रहा है. गृह मंत्रालय ने सभी एयरपोर्ट्स को सुरक्षा के मद्देनजर अलर्ट जारी कर दिया है.
वहीं, ले. जनरल रणबीर सिंह ने शाम को एक प्रेस कांफ्रेंस करके जम्मू-कश्मीर के उरी सेक्टर के सेना के बटालियन हेडक्वार्टर शिविर पर हुए आतंकी हमले से जुड़ी कई जानकारियां दी. उन्होंने बताया कि आतंकी पूरी तरह प्रशिक्षित थे और आतंकी भारी गोला बारूद के साथ आए थे. सिंह ने कहा कि शुरुआती जांच के मुताबिक सभी आतंकी जैश ए मोहम्मद के हैं. उन्होंने यह भी बताया कि आतंकियों के कब्जे से चार ए के 47 राइफल, चार अंडरबैरल ग्रेनेड लॉन्चर बरामद हुए हैं और आतंकियों से बरामद सामान पर पाक की मुहर लगी है.  
सूत्रों के मुताबिक, आतंकी आग को फैलाने वाला ग्रेनेड लेकर आए जिन्हें हासिल करना आसान नहीं था. उरी कश्मीर के बारामूला जिले में है. इस हमले में 19  जवान घायल हो गए जिन्हें एयरलिफ्ट कर हॉस्पिटल ले जाया गया. गृह मंत्रालय के मुताबिक, पाकिस्तान अपनी तरफ़ से लगातार आतंकवादियों के दस्ते भारत भेज रहा है. आर्मी चीफ जनरल दलबीर सुहाग और रक्षा मंत्री पर्रिकर घाटी के लिए निकल चुके हैं. सैन्य अधिकारी ने बताया कि कुछ और आतंकियों के छुपे होने की आशंका के मद्देनजर इलाके में तलाशी अभियान चल रहा है, हालांकि एनकाउंटर खत्म हो चुका है.
पीएम मोदी ने उरी हमले की निंदा करते हुए ट्वीट किया है और कहा है- मैं राष्ट्र को विश्वास दिलाता हूं कि इस कुत्सित हमले के पीछे जो भी हैं, उन्हें बख्शा नहीं जाएगा. उन्होंने कहा कि उरी में शहीद हुए जवानों को हम नमन करते हैं. राष्ट्र उनकी कुर्बानी सदैव याद रखेगा. मेरी संवेदनाएं शोकसंतप्त परिवारों के साथ हैं.

जिस वक्त यह हमला किया गया है, उस वक्त सुरक्षा का स्तर थोड़ा नीचे होता है, क्योंकि गार्ड बदलने का समय होने वाला होता है. माना जा रहा है कि आतंकवादी तार काट कर हेडक्वॉर्टर में घुसने में कामयाब हुए हैं. सूत्रों ने बताया कि हमले के समय डोगरा रेजीमेंट के जवान एक तंबू में सोए हुए थे जिसमें विस्फोट के चलते आग लग गई. आग पास स्थित बैरकों तक भी फैल गई.

राजनाथ सिंह के घर आपात बैठक...  इधर कश्मीर में बढ़ते फ़िदायीन हमले और घुसपैठ में हुए इज़ाफ़े को लेकर केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने एक उच्च स्तरीय बैठक बुलायी है गृह मंत्री ने अपना रूस का दौरा रद्द कर दिया है. ट्वीट कर उन्होंने बताया कि कश्मीर के हालात के चलते उन्होंने दौरा रद्द किया है. माना ये जा रहा है कि गृह मंत्री अपना अमेरिका का दौरा भी रद्द करेंगे.
जम्मू कश्मीर के उरी सेक्टर में स्थित सैन्य बेस पर हुए आतंकी हमले को पिछले एक दशक में हुआ सबसे भीषण हमला माना जा रहा है. पाकिस्तान से सटी नियंत्रण रेखा के पास हुए इस हमले में शामिल आतंकियों को तो सेना ने मार गिराया, लेकिन इस दौरान हमारे 17 जवान भी शहीद हो गए. सरकार से जुड़े शीर्ष सूत्रों के अनुसार यह 'आतंकी हमला जम्मू कश्मीर में अशांति फैलाने के पाकिस्तान के बड़े गेम प्लान का हिस्सा है'.कश्मीर घाटी में 8 जुलाई को सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में हिज्बुल मुहाहिदीन के आतंकी बुरहान वानी के मारे जाने के बाद से यहां हिंसक विरोध प्रदर्शन जारी है. इन विरोध प्रदर्शनों में अब तक 80 से ज्यादा लोग की जान जा चुकी है, वहीं 10,000 से ज्यादा लोग घायल हुए हैं, जिनमें कई सुरक्षाकर्मी भी शामिल है. सरकार का आरोप है कि पाकिस्तान कश्मीर में हिंसा भड़का रहा है. पाकिस्तान सरकार ने कश्मीर में विरोध प्रदर्शनों का खुला समर्थन करते हुए इसे 'स्वतंत्रता संघर्ष' बताया था.
उरी के सैन्य बेस पर हुए इस आतंकी हमले को दो दशकों का सबसे भीषण हमला माना जा रहा है. इससे पहले इसी साल जनवरी की शुरुआत में पंजाब के पठानकोट एयरफोर्स बेस पर आतंकियों ने हमला कर दिया था. इस हमले में सात सैन्यकर्मी शहीद हो गए थे.
जानकारी यह भी है कि पाकिस्तान अपनी तरफ़ से कोशिश कर रहा है कि कश्मीर का मसला लगातार हेडलाइन में बना रहे. यूनाइटेड नेशन असेम्ब्ली में वह इस मुद्दे को बढ़- चढ़कर उठाना चाहता है. "पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ़ 21 सितम्बर को UN में बोलेंगे, तब तक इसी तरह हमले होते रहेंगे," एक सीनियर अफ़सर के मुताबिक़, पुंछ में हुआ हमला भी उसी का नतीजा था. वैसे उस हमले की जांच में साबित हो गया है कि मारे गए आतंकवादी पाकिस्तान से आए थे. उनके जीपीएस रूट और उनकी पहचान तक मुक़र्रर हो गई है. जांच में सामने आया है कि "पुंछ का  हमला भी लश्कर ने ही किया था."
पठानकोट हमले से हमने कुछ सबक नहीं लिया, उलटे हमने पाकिस्तान को अपने एयरबेस में घुमाने ले आये. हमारे प्रधान मंत्री स्वतंत्रता दिवश के अवसर पर भालूच का मुद्दा उठाते हुए पकिस्तान पर बड़ा जबानी हमाल किया था. उसके बाद भी अनेक मंचों से पकिस्तान को खबरदार करते रहे हैं. अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी भारत को समर्थन प्राप्त है. हमरे देश के सभी राजनीतिक दलों ने इस हमले की कड़ी निंदा की है. सभी नागरिक दुखी हैं और अपने अपने स्तर पर विरोध दर्ज करा रहे हैं. मीडिया भी रक्षा विशेषज्ञों के साथ बहस करा रही है. फिर देर किस बात की. आखिर कब उठाएंगे हम कड़े कदम? हर भारतीय आज उद्वेलित है हमारे प्रधान मंत्री के कदम का इंतज़ार कर रहा है. हम किसी भी रूप से पाकिस्तान से पीछे नहीं हैं. हमारी सैन्य शक्ति, आर्थिक शक्ति, संख्या बल पाकिस्तान से कई गुना ज्यादा है. हमारा समर्थन भी विश्व के सभी शक्तिशाली देश कर रहे हैं, क्योंकि वे लोग भी आतंकवादी हमले से त्रस्त हैं. अब गोली का जवाब गोली से ही देने की बारी है. हम सभी जानते हैं कौरव पांडव के बीच महाभारत होने से पहले युद्ध को टालने के ख्याल से भगवान कृष्ण दुर्योधन को समझाने गए थे. पर दुर्योधन नहीं माना था, तब भगवान कृष्ण ने भीषण हुंकार  किया था. श्री रामधारी सिंह दिनकर के अनुसार    
दो न्याय अगर तो आधा दो, पर, इसमें भी यदि बाधा हो,
तो दे दो केवल पाँच ग्राम, रखो अपनी धरती तमाम।
दुर्योधन वह भी दे ना सका, आशीष समाज की ले न सका,
उलटे हरि को बाँधने चला, जो था असाध्य साधने चला।
“जब नाश मनुज पर छाता है, पहले विवेक मर जाता है।“
हरि ने भीषण हुंकार किया, अपना स्वरूप-विस्तार किया,
डगमग-डगमग दिग्गज डोले, भगवान् कुपित होकर बोले-
जंजीर बढ़ा कर साध मुझे, हाँ, हाँ दुर्योधन! बाँध मुझे।
यह देख, गगन मुझमें लय है, यह देख, पवन मुझमें लय है,
मुझमें विलीन झंकार सकल, मुझमें लय है संसार सकल।
अमरत्व फूलता है मुझमें, संहार झूलता है मुझमें।
हित-वचन नहीं तूने माना, मैत्री का मूल्य न पहचाना,
तो ले, मैं भी अब जाता हूँ, अन्तिम संकल्प सुनाता हूँ।
याचना नहीं, अब रण होगा, जीवन-जय या कि मरण होगा।
मेरा भी या कहें कि अधिकांश भारतीयों का यही विचार होगा कि अब युद्ध अवश्यम्भावी हो गया है. पाकिस्तान को उसको उसी की भाषा में जवाब देना होगा. जयहिंद! जय भारत !

-    जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर