Tuesday, 23 August 2016

कुछ 'मुक्तक' आँखों पर


अँखियों में अँखियाँ डूब गईं,
अँखियों में बातें खूब हुईं.
जो कह न सके थे अब तक वो,
दिल की ही बातें खूब हुईं.
*
हमने न कभी कुछ चाहा था,
दुख हो, कब हमने चाहा था,
सुख में हम रंजिश होते थे,
दुख में तो ज्यादा चाहा था.
*
ऑंखें दर्पण सी होती हैं,
अन्दर बाहर सी होती हैं.
जब आँख मिली है तब से ही,
बातें अमृत सी होती हैं.
*
आँखों में सपने होते हैं,
अपने से सपने होते हैं,
आँखों में डूब जरा देखो,
कितने गम अपने होते हैं?
*
जब रिश्ते रिसते थे हरदम,
आँखों से कटते थे हरदम,
आँखों में कष्ट हुए थे जब,
आँसू बन रिसते थे हरदम.  
*
लीला प्रभु की भी न्यारी है,
आँखों की छवि भी प्यारी है,
बढ़ता जाता है प्रेम तभी,                        
आँखें फेरन  की बारी है.   
- जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर  

No comments:

Post a Comment