Tuesday, 29 March 2016

बाबा भीमराव आंबेडकर की प्रासंगिकता

पिछले कुछ दिनों या कहें तो गत सालों में बाबा साहब भीम राव अम्बेडकर पर खूब चर्चा हुई। यूं तो भारतीय संविधान के निर्माता और दलितों के मसीहा को १९९० में ही भारतरत्न सम्मान से सम्मानित किया गया था। दलितों के नाम से बनी बहुजन समाजवादी पार्टी के आदर्श पुरुष तो हैं ही और भी दलितों के नाम से राजनीति करने वाली पार्टियाँ उनका नाम बड़े आदर के साथ लेती है। वर्तमान मोदी सरकार ने उनके सम्मान में दिसम्बर माह में १० रुपये और १२५ रुपये के सिक्के जारी किये। नवम्बर में संविधान दिवश के अवसर पर भी बाबा साहब पर जम कर चर्चा हुई और सभी पार्टियों ने उन्हें अपना आदर्श माना।
प्रधानमंत्री मोदी ने २१ फरवरी को भीमराव अंबेडकर नेशनल मेमोरियल का शिलान्यास किया। पीएम मोदी ने कहा, ‘मुझे बाबा साहेब के सपने पूरे करने का अवसर मिला है। वह हमें 1956 में छोड़ गए थे। 60 साल के बाद उनका मैमोरियल बनाया जा रहा है। मुझे पता नहीं हम इसके बारे में क्या कहेंगे, लेकिन 60 साल बीत गए। शायद यह काम मेरे नसीब में था। मैं इस उद्घाटन 14 अप्रैल 2018 में करूंगा।’ उन्हों।ने कहा- ‘मुझे याद है कि जब वाजपेयी जी की सरकार बनी तो चारों तरफ हो-हल्ला मचा कि ये भाजपा वाले आ गए हैं, अब आपका आरक्षण खत्म होगा।’ एमपी, गुजरात में कई सालों से बीजेपी राज कर रही है। महाराष्ट्र, पंजाब, हरियाणा में हैं। हमें दो तिहाई बहुमत से अवसर मिला। लेकिन कभी भी दलित, पीड़ित के आरक्षण को खरोंच नहीं आने दी। फिर भी झूठ बोला जाता है।’ पीएम मोदी ने कहा कि बाबा साहब ने तो राष्ट्र निष्ठा की प्रेरणा दी थी, लेकिन कुछ लोग सिर्फ राजनीति चाहते हैं। उन्हों ने आगे कहा कि बाबा साहेब को दलितों का मसीहा बताकर अन्याय करते हैं। उन्हें सीमित न करें। वे हर वर्ग के शोषित, कुचले, दबे लोगों की आवाज बनते थे। प्रधानमंत्री ने कहा कि बाबा साहेब को सीमाओं में न बांधे। उन्हें विश्व मानवीयता के रूप में देखें। दुनिया मार्टिन लूथर किंग को जिस तरह देखती है, उसी तरह हमारे लिए बाबा साहेब अंबेडकर हैं। पीएम ने कहा- ‘जिसका बचपन अन्याय, उपेक्षा, उत्पीड़न में बीता हो। जिसने अपनी मां को अपमानित होते देखा हो, मुझे बताइए वह मौका मिलते ही क्या करेगा? वह यही कहेगा कि तुम मुझे पानी नहीं भरने देते थे, तुम मुझे मंदिर नहीं जाने देते थे, तुम मेरे बच्चों को स्कूल में एडमिशन नहीं लेने देते थे।’

बसपा प्रमुख सुश्री मायावती के अनुसार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बार-बार सफ़ाई दे रहे है कि आरक्षण को कोई छीन नही सकता है लेकिन इन लोगों पर विश्वास नही किया जा सकता है। वास्तव में यह सब भी उसी प्रकार की जुमलेबाजी लगती है जैसा कि उन्होंने विदेशों से काला धन देश में वापस लाकर हर भारतीय के अकाउंट में 15-15 लाख डालकर उनके ‘अच्छे दिन’ लाने का वादा किया था। अब उसी संकीर्ण मानसिकता वाले लोग आरक्षण की इस व्यवस्था में कमियां निकालकर इसकी समीक्षा की अनुचित जातिवादी बातें कर रहे हैं।सुश्री मायावती ने कहा कि इसमें आरएसएस और भाजपा की कट्टर हिन्दुत्ववादी विचारधारा साफ झलकती है। ऐसी मानसिकता वाले लोगों को दलितों और अन्य पिछडों से माफी मांगनी चाहिये। अपनी सरकार की विफलताओं पर पर्दा डालने के लिये साम, दाम, दण्ड, भेद हथकण्डों को अपनाया जा रहा है। इन हथकण्डों में बाबा साहेब डा. भीमराव अम्बेडकर के नाम पर स्मारक और संग्रहालय आदि की घोषणा करके उन्हें अनेकों प्रकार से बरग़लाने का काम भी शामिल है।
बात यह है कि भाजपा की सहयोगी संगठन आरएसएस की तरफ से बयान आते हैं कि आरक्षण की समीक्षा की जानी चाहिए, तभी प्रधान मंत्री को स्पष्टीकरण देना पड़ता है और दूसरी पार्टियाँ हो-हल्ला करती हैं। जैसे कि हैदराबाद यूनिवर्सिटी में रोहित वेमुला की आत्म हत्या के बाद से जो स्थिति बनी. मानव संशाधन विकास मंत्री को संसद में अपना बचाव करना पड़ा। JNU के कन्हैया कुमार भी रोहित वेमुला और बाबा साहब आंबेडकर को अपना आदर्श बता चुके हैं। प्रधान मंत्री को भी अपने भाषण में रोहित वेमुला का नाम लेते वक्त भावुकता का प्रदर्शन करना पड़ा. केजरीवाल और राहुल गांधी भी हमदर्दी जाता चुके हैं. सवाल यही है कि बाबा साहेब किनके किनके आदर्श पुरुष हैं अगर वे सबके लिए आदर्श हैं तो उनके द्वारा किये गए प्रयासों का प्रतिफल अभी तक क्या है? क्या अभी भी दलित सताए नहीं जा रहे हैं? उनके आरक्षण पर सवाल नहीं उठाये जा रहे हैं? मोहन भागवत ने कहा कि संपन्न लोगों को स्वेक्षा से आरक्षण का लाभ छोड़ देना चाहिये। उनकी इस घोषणा के बाद एक नेता सिर्फ जीतन राम मांझी ने यह घोषणा की कि वे अब आरक्षण का कोई लाभ नही लेंगे। अच्छी बात है, अभी वे और उदित राज जी भाजपा के साथ हैं इसलिए भाजपा की पार्टी लाइन के साथ चल रहे हैं। कब ये अलग हटकर अपनी विचारधारा बदल लेंगे कहना मुश्किल है क्योंकि अभी उन्हें सभी सुविधाएँ प्राप्त है।

डॉ॰ भीमराव रामजी अंबेडकर (१४ अप्रैल १९९१- ६ दिसंबर १९५६) एक विश्व स्तर के विधिवेत्ता थे। वे एक बहुजन राजनीतिक नेता और एक बौद्ध पुनरुत्थानवादी होने के साथ साथ, भारतीय संवोधन के मुख्य शिल्पकार भी थे। वे बाबासाहेब के नाम से लोकप्रिय हैं। इनका जन्म एक गरीब अस्पृश्य परिवार मे हुआ था। एक अस्पृश्य परिवार में जन्म लेने के कारण उन्हें सारा जीवन नारकीय कष्टों में बिताना पड़ा। बाबासाहेब आंबेडकर ने अपना सारा जीवन हिन्दू धर्म की चतुर्वर्ण प्रणाली और भारतीय समाज में सर्वव्यापित जाति व्यवस्था के विरुद्ध संघर्ष में बिता दिया। हिंदू धर्म में मानव समाज को चार वर्णों में वर्गीकृत किया है। जो इस प्रकार है- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र। शूद्रों को उनसे उच्च वर्ग के लोग अत्यधिक कष्ट देते थे। बाबा साहब ने इस व्यवस्था को बदलने के लिए सारा जीवन संघर्ष किया। इस लिए उन्होंने बौद्ध धर्म को ग्रहण करके इसके समतावादी विचारों से समाज में समानता स्थापित कराई। उन्हें बौद्ध आन्दोलन को प्रारंभ करने का श्रेय भी जाता है। चूँकि वे विश्व की एक बहुत बड़ी आबादी के प्रेरणा स्रोत हैं, इस लिए उन्हें विश्व भूषण कहना ही उपयुक्त है।
कई सामाजिक और वित्तीय बाधाएं पार कर, आंबेडकर उन कुछ पहले अछूतों मे से एक बन गये जिन्होने भारत में कॉलेज की शिक्षा प्राप्त की। आंबेडकर ने कानून की उपाधि प्राप्त करने के साथ ही विधि, अर्थशास्त्र वा राजनीति शास्त्र में अपने अध्ययन और अनुसंधान के कारण कोलंबिया विश्वविद्यालय आयर लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स से कई डॉक्टरेट डिग्रियां भी अर्जित कीं। आंबेडकर वापस अपने देश एक प्रसिद्ध विद्वान के रूप में लौट आए और इसके बाद कुछ साल तक उन्होंने वकालत का अभ्यास किया। इसके बाद उन्होंने कुछ पत्रिकाओं का प्रकाशन किया, जिनके द्वारा उन्होंने भारतीय अस्पृश्यों के राजनैतिक अधिकारों और सामाजिक स्वतंत्रता की वकालत की। डॉ॰ आंबेडकर को भारतीय बौद्ध भिक्षुओं ने बोधिसत्व की उपाधि प्रदान की है, हालांकि उन्होने खुद को कभी भी बोधिसत्व नहीं कहा।
अपनी जाति के कारण उन्हें इसके लिये सामाजिक प्रतिरोध का सामना करना पड़ रहा था। स्कूली पढ़ाई में सक्षम होने के बावजूद आंबेडकर और अन्य अस्पृश्य बच्चों को विद्यालय मे अलग बिठाया जाता था और अध्यापकों द्वारा न तो ध्यान ही दिया जाता था, न ही कोई सहायता दी जाती थी। उनको कक्षा के अन्दर बैठने की अनुमति नहीं थी, साथ ही प्यास लगने परद कोई ऊँची जाति का व्यक्ति ऊँचाई से पानी उनके हाथों पर पानी डालता था, क्योंकि उनको न तो पानी, न ही पानी के पात्र को स्पर्श करने की अनुमति थी। लोगों के मुताबिक ऐसा करने से पात्र और पानी दोनों अपवित्र हो जाते थे। आमतौर पर यह काम स्कूल के चपरासी द्वारा किया जाता था जिसकी अनुपस्थिति में बालक आंबेडकर को बिना पानी के ही रहना पड़ता था।
छुआछूत के विरुद्ध संघर्ष – अम्बेडकर ने दलितों और अन्य धार्मिक समुदायों के लिये पृथक निर्वाचन और आरक्षण देने की वकालत की। १९२० में, बंबई में, उन्होंने साप्ताहिक मूकनायक के प्रकाशन की शुरूआत की। यह प्रकाशन जल्द ही पाठकों मे लोकप्रिय हो गया, तब, अम्बेडकर ने इसका इस्तेमाल रूढ़िवादी हिंदू राजनेताओं व जातीय भेदभाव से लड़ने के प्रति भारतीय राजनैतिक समुदाय की अनिच्छा की आलोचना करने के लिये किया। दलित वर्गों में शिक्षा का प्रसार और उनके सामाजिक आर्थिक उत्थान के लिये काम करना था। सन् १९२६ में, वो बंबई विधान परिषद के एक मनोनीत सदस्य बन गये। सन १९२७ में डॉ॰ अम्बेडकर ने छुआछूत के खिलाफ एक व्यापक आंदोलन शुरू करने का फैसला किया। उन्होंने सार्वजनिक आंदोलनों और जुलूसों के द्वारा, पेयजल के सार्वजनिक संसाधन समाज के सभी लोगों के लिये खुलवाने के साथ ही उन्होनें अछूतों को भी हिंदू मंदिरों में प्रवेश करने का अधिकार दिलाने के लिये भी संघर्ष किया। यह संघर्ष आज भी जारी है।
तात्पर्य यही है कि जबतक दबे कुचले, अस्पृश्यों के प्रति सहानुभूतिपूर्वक न्याय नहीं किया जाता, बाबा साहेब की प्रासंगिकता बनी रहेगी। – जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.

भारत माता की जय बोलो

भारत माता की जय बोलो
मन की अपनी गांठे खोलो.भारत माता की जय बोलो

जब जब हमने उसे पुकारा,
माँ के जैसा दिया सहारा
हम सब उसके बालक जैसे
धर्म तराजू में मत तोलो. भारत माता की जय बोलो
हिन्दू मुस्लिम सिक्ख ईसाई
आपस में सब भाई भाई
माता सबको आश्रय देती
खाना देती मुख तो खोलो. भारत माता की जय बोलो

मेरे देश के प्यारों आओ
भारत माता की जय बोलो.
भारत माता ग्राम वासिनी
कवियों ने बतलाया है
सस्य श्यामला पुलकित यामिनी
सबको यह समझाया है
सदियों से यह खिला रही है
घर आँगन के पट तो खोलो, भारत माता की जय बोलो
इसने जन्म दिया, ऋषियों को
वीरों की यह धरती है
चाहे जख्म इसे दो जितना
पेट सभी का भरती है
जर्जर होकर तुझे जगाती
मत सोओ अब ऑंखें खोलो, भारत माता की जय बोलो
सियाचीन की सीमा पर
वीर सिपाही घायल होते
कभी कभी थक सो जाते वे
दुघ्ध धवल माँ आँचल पाते
रहें सुरक्षित हर पल हम सब
अपने ही घर आँगन में
टी वी पर प्रोग्राम देखते
लगते जो मन भावन है
कठिन समय में उठकर देखो
अपने मुख को जोर से खोलो, भारत माता की जय बोलो

कुछ लोगों को दिक्कत होगी
मन में उनको सिद्दत होगी
मांझी नाव चलाता जाता
लहरों में बलखाता जाता
अपनी धरती सबको प्यारी,
फूलों से सजती है क्यारी
रंग बिरंगे फूल खिले हैं
मुक्त हवा में सभी हिले हैं
माँ का आँचल सबको प्यारा
बेटे को दे सदा सहारा
माँ तो बस वो माँ होती है
गीले बिस्तर पर सोती है
उस माँ के भी गले मिलो जी
प्रेम के मीठे बोली बोलो भारत माता की जय बोलो

राम रहीम खुदा के बन्दे
क्यों हो जाते हम सब अंधे
शांति मार्ग ही सभी बताते
वही मार्ग जो जन्नत जाते
बैर भाव न पालो मन में
दया धर्म से सबको तोलो, भारत माता की जय बोलो

अब एक साथ
लेना हो गर बैंक से ऋण तो भारत माता की जय बोलो
नहीं चुकाने हो जब ऋण तो भारत माता की जय बोलो
करना हो नुक्सान किसी का भारत माता की जय बोलो
नारा नूतन देश भक्ति का भारत माता की जय बोलो
अगर पड़ोसी आँख दिखाए भारत माता की जय बोलो
अगर विरोधी मन न भाए भारत माता की जय बोलो
रण में कभी न पीठ दिखाएँ भारत माता की जय बोलो
वादा गर जो निभ न पाये भारत माता की जय बोलो
सपने में भी डर आ जाए भारत माता की जय बोलो
भारत माता की जय बोलो भारत माता की जय बोलो

Saturday, 19 March 2016

भारत माता की जय!

हमारे धर्मशास्त्रों में मातृभूमि के महत्व पर व्यापक रूप से प्रकाश डाला गया है। वेद का कथन है- 'माता भूमि: पुत्रो अहं पृथिव्या:' अर्थात भूमि मेरी माता है और मैं उसका पुत्र हूं। इस आदेश का असंख्य महापुरुष पालन करते हुए मातृभूमि की समृद्धि के लिए, उसकी अखंडता की रक्षा के लिए सदैव सन्नद्ध रहे हैं। मातृभूमि के लिए सर्वस्व समर्पित करने की प्रेरणा पुराणों तथा उपनिषदों में भी दी गई है। परमगति को कौन प्राप्त होते हैं, इसका विश्लेषण करते हुए कहा गया है-
द्वाविमौ पुरुषौ लोके सूर्यमंडलभेदिनौ। परिव्राड् योगयुक्तश्च रणे चाभिमुखो हत:।।
अर्थात् योगयुक्त संन्यासी और रण में जूझते हुए वीरगति को प्राप्त होने वाला वीर- ये दो पुरुष सूर्यमंडल को भेदकर परमगति को प्राप्त होते हैं। धर्मशास्त्रों के वचनों से प्रेरणा लेकर समय-समय पर माता के सपूत मातृभूमि की रक्षा के लिए अनादिकाल से आत्मोत्सर्ग करने, प्राणदान करने, शीशदान तक करने को तत्पर रहते रहे हैं।
चाणक्य के अनुसार राजा की पत्नी, गुरु की पत्नी, मित्र की पत्नी, पत्नी की माँ, और अपनी माँ, माता के समान हैं. मामी, चाची, भाभी, फुआ आदि सभी माता तुल्य ही हैं. आदर्श अवस्था में मातृवत परदारेषु – अर्थात दूसरे की पत्नी माँ के समान होती हैं. हमारे भारत में भूमि के अलावा, नदियाँ, देवियाँ, यहाँ तक कि कन्यायें भी माता के समान हैं.
पंडित जवाहर लाल नेहरु ने भारत एक खोज(डिस्कवरी ऑफ़ इंडिया) में और भी विस्तार से बताया था भारत माता मतलब. यहाँ की जमीन, नदियाँ, पहाड़, झरने, वन संपदा के अलावा यहाँ के आवाम ही भारत माता हैं. हम सब इन्ही की जय चाहते हैं. यानी भारत के आवाम की जीत!
वर्तमान सन्दर्भ में संभवत: आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा – हर भारतीय को भारत माता की जय बोलना चाहिए. उनका बोलना था कि असद्दुदीन ओवैसी ने विरोध कर कह दिया कि हमारी गर्दन पर छुरी रख कर कहोगे कि भारत माता की जय बोलो तब भी नहीं बोलूँगा. शायद ओवैसी ने सोचा था, सारे मुसलमान उसका समर्थन करेंगे. पर अधिकाँश मुसलमानों के अलावा विश्व सूफी सम्मेलन में मौजूद लोगों ने भी प्रधान मंत्री की उपस्थिति में भारत माता की जय के नारे लगाये. जावेद अख्तर और शबाना आजमी ने ओवैसी को खुली चुनौती दे डाली. कभी-कभी वार उल्टा भी पड़ जाता है. वैसे भी ओवैसी के समर्थक भी जय हिन्दुस्तान! जय हिन्द! जय भारत! तो कह ही रह हैं. भारत भूमि को माता कहने में उनका  धर्म आरे आ रहा है. पर अब बहुत से मुसलमान अपनी बौद्धिकता का परिचय दे रहे हैं. वे धर्म से ऊपर देश को मान रहे हैं. मानना भी चाहिए. यह धरती ही तो सब की जन्मदात्री है. यहाँ जन्म लेने के बाद ही लोगों ने अलग-अलग धर्म बनाये और अलग-अलग जातियां, अलग-अलग भाषाए/बोलियाँ. इस भारत भूमि की खासियत है कि यहाँ विविधता में एकता है. इसीलिए हमारे राष्ट्रीय ध्वज में तीन रंगों के अलावा, चौथा रंग नीला है और चक्र यह बतलाता है कि हम गतिमान हैं. यानी समय के अनुसार परिवर्तनशील भी. परिवर्तन ही जीवन है और यह किसी के रोके नहीं रुका है. 
कहते हैं, अबनिंद्रनाथ टगौर की कल्पनाशीलता से बनी हमारी पहली भारत माता। 1905 में स्वदेशी आंदोलन के दौरान अबनिंद्रनाथ टगौर की कूची से जब भारत माता का स्वरूप अवतरित हुआ तो देश की आज़ादी का सपना देख रहे लोगों की कल्पनाओं में मानो आग लग गई। जब यह पहली बार एक पत्रिका में छपी तो शीर्षक था ‘स्पिरिट आफ मंदर इंडिया’। अबनिंद्रनाथ टगौर ने पहले इनका नाम बंग माता रखा था बाद में भारत माता कर दिया। उसी बंगाल में इस तस्वीर से पहले आनंदमठ की रचना हो चुकी थी और वंदे मातरम गाया जाने लगा था। इस भारत माता के चार हाथ हैं। शिक्षा, दीक्षा, अन्न और वस्त्र हैं इनके हाथों में। कोई हथियार नहीं है कोई झंडा नहीं है। ज्ञात तस्वीरों के हिसाब से पहली भारत माता एक सामान्य बंगाली महिला सी नज़र आती हैं।
जल्दी ही देश भर में भारत माता की अनेक तस्वीरें बनने लगीं। क्रांतिकारी संगठनों ने भारत माता की तस्वीरों का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। छापों के दौरान भारत माता की तस्वीर मिलते ही अंग्रेजी हुकूमत चौकन्नी हो जाती थी। अनुशीलन समिति, युगांतर पार्टी भारत माता की तस्वीरों का इस्तेमाल करते हैं तो पंजाब में भारत माता सोसायटी, मद्रास में भारत माता एसोसिएशन का वजूद सामने आता है। सब अपनी-अपनी भारत माता गढ़ने लगते हैं लेकिन धीरे-धीरे तस्वीरों में भारत माता का रूप करीब-करीब स्थाई होने लगता है।
भारत माता के चार हाथ की जगह दो हाथ हो जाते हैं। शुरू में ध्वज दिखता है फिर त्रिशूल और तलवार दिखने लगता है। कई तस्वीरों में तिरंगे का भी आगमन होता है। कुछ तस्वीरों में भारत माता के चरणों में श्रीलंका भी आ जाता है। तो आज अगर आप पुरानी तस्वीरों को देखेंगे तो विभाजन से पहले का पाकिस्तान और अफगानिस्तान भी नज़र आएगा। देखने वालों ने देवी दुर्गा में भारत माता को देखा और भारत माता में मां दुर्गा को। अबनिंद्रनाथ टैगोर की भारत माता बंगाल की होने के कारण न तो शेर के साथ हैं न त्रिशूल के साथ। कई तस्वीरों में शेर के रूप भी अलग-अलग दिखते हैं। कहीं शेर गुर्रा रहा है तो कहीं विजयी भाव से शांत है। देवी होने के कारण कुछ लोगों को लगता है कि भारत माता तो हैं मगर सबकी माता नहीं हैं। दरअसल हमारी आज़ादी की लड़ाई में कई आधुनिक तत्व हैं मगर स्वतंत्रता आंदोलन अतीत के हिन्दुस्तान के साथ चलता है। उसके प्रतीकों से पूरी तरह अलगाव नहीं कर पाता। इस वजह से आपको राष्ट्रवाद के साथ धार्मिक प्रतीक दिखेंगे और धार्मिक व्यक्ति राष्ट्रवादी होने का दावा करते मिलेंगे।
सुमति रामास्वामी ने अपनी किताब में एक तस्वीर पेश की है। 20 अप्रैल 1907 की है। बंगाल में अबनिंद्रनाथ टगौर 1905 में भारत माता की कल्पना करते हैं तो सुदूर दक्षिण में महाकवि सुब्रह्मण्यम भारती अपने अखबार के मुख्य पृष्ठ पर भारत माता की तस्वीर छापते हैं। यह तस्वीर नए साल की देवी के रूप में छपी है लेकिन उनका एक हाथ ग्लोब पर है। हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई दिख रहे हैं, जो नमन कर रहे हैं। तब तो किसी ओवैसी को दिक्कत नहीं हुई कि एक देवी के कैलेंडर में वे क्यों शीश नवा रहे हैं। एक तस्वीर को भारती ने कुछ समय बाद छापा था। भारत माता की इस तस्वीर में वंदे मातरम लिखा है देवनागरी में। भारत माता के चरणों में हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई हैं, नाव पर खड़े हैं। इस तस्वीर में भारत माता के एक हाथ में उर्दू में लिखा हुआ है अल्लाहो अकबर। यह सबकी भारत माता हैं लेकिन क्या आज के जमाने में यह संभव है। अक्सर लोग भारत माता की तस्वीर में माता देखने लग जाते हैं और माता में सिर्फ देवी दुर्गा। भारती ने इस तस्वीर में सिर्फ भारत देखा। इसलिए वहां हिन्दी में वंदेमातरम है और उर्दू में ‘अल्लाहो अकबर’।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अक्सर सुब्रह्मण्यम भारती का जिक्र करते हैं। मार्च 2015 में श्रीलंका की संसद में प्रधानमंत्री मोदी ने भाषण देते हुए भारती कि कविता की कुछ पंक्तियां पढ़ीं थीं और कहा था कि भारती महान राष्ट्रवादी कवि थे। भारती पहले शख्स हैं जिनके बारे में जिक्र मिलता है कि उन्होंने भारत माता की तस्वीर से लेकर मूर्तियां बनाने के प्रयास किए। हमारे बहुत सारे हिंदी कवियों ने भारत माता को ग्रामवासिनी कहा है. महात्मा गाँधी भी कहते थे. भारत की आत्मा गांवों में निवास करती है. आजकल सोसल मीडिया पर भी भारत माता के बहुत सारे चित्र आ रहे हैं. इनमे बहुत लोगों भारत माता को ग्रामीण और विपन्न अवस्था में एक माँ का रूप बनाया है. हमें इसी भारत माँ को संपन्न बनाना है. तभी होगी असली भारत माता की जय! आज पूरा भारत टी 20 विश्व कप में पाकिस्तान पर भारत की जीत से खुशियाँ मना रहा है. भारत माता की खूब जय हो रही है. इसी बीच फिरोज शाह कोटला मैदान में टी 20 महिला विश्व कप में बारिश के चलते डकवर्थ लुईस प्रणाली के अनुसार पाकिस्तान को भारत पर दो रनों से जीत की घोषणा हुई. पर यह खबर पुरुष विश्वकप की जीत में दब गयी. इसे भी महत्व दिया जाना चाहिए तभी तो होगी सही अर्थों में भारत माँ की जीत और महिला सशक्तिकरण भी ! नहीं??? फैसला हम सबको करना है. 

- जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.

Saturday, 12 March 2016

आर्ट ऑफ़ लिविंग

श्री श्री रविशंकर की आर्ट ऑफ़ लिविंग संस्था का ‘वर्ल्ड कल्चरल फेस्टिवल’ नाम से शुरू हुआ दिल्ली के यमुना तीर पर कार्यक्रम जितना विवादों में रहा उतनी ही भव्यता से इसकी  शुरुआत भी हुई. इंद्रदेव की हल्की फुहार ने वातावरण में ठंढक पैदा कर दी और यमुना के तीर पर सुरम्य वातावरण बन गया. अनगिनत वाद्य यंत्रों के साथ लगभग १०५० कलाकारों ने अपनी कला का प्रदर्शन किया. इस आयोजन में दुनिया भर के १५५ देशों के प्रतिनिधि आए हैं. इससे भारत के आध्यात्म और संस्कृति का प्रदर्शन ही हुआ है. विदेशी से मेहमानों के आने से हमारी सरकार को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से आर्थिक मदद भी मिली है. योग के कार्यक्रम से भी यह बड़ा और भव्य कार्यक्रम है, ऐसा परिलक्षित होता है. और श्री श्री का रुतवा दक्षिण के बंगलोर से अब दिल्ली तक दस्तक दे चुका है. बाबा रामदेव हो सकता है इस भव्यता को आश्चर्यजनक आँखों से देख रहे हों. पर उनका अपना अलग साम्राज्य है श्री श्री का अलग. श्री श्री रामदेव पर भारी साबित हुए हैं. प्रधान मंत्री के साथ भाजपा के अधिकांश मंत्री और आडवाणी सहित अनेक नेता इसमें शामिल होकर इसकी गरिमा को और भी ज्यादा बढ़ाया है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को इस पर जोर दिया कि आज की दुनिया में 'सॉफ्ट पॉवर’ महत्वपूर्ण हैं और श्री श्री रविशंकर अपने ऑर्ट ऑफ लिविंग फाउंडेशन के माध्यम से यही संदेश फैला रहे हैं. मोदी तीन दिवसीय विश्व संस्कृति कार्यक्रम में बोल रहे थे. मोदी ने दिल्ली में यमुना के खादर क्षेत्र में आयोजित विश्व संस्कृति कार्यक्रम का उद्घाटन किया और अपने संबोधन में कहा कि जब हम जीवन में समस्याओं से जूझते हैं तो हमें आर्ट ऑफ लिविंग की जरूरत पड़ती है. हम किसी एक मुद्दे को लेकर अपने आप से बाहर निकल कर एकजुट होते हैं तो हमें आर्ट ऑफ लिविंग की जरूरत पड़ती है. भारत के पास वह सांस्‍कृतिक विरासत है जिसकी दुनिया को तलाश है. भारत विविधताओं से भरा हुआ है. भारत के पास विश्‍व को देने के लिए बहुत कुछ है. दुनिया केवल आर्थिक मुद्दों पर नहीं जुड़ सकती. हम दुनिया की उन आवश्‍यकताओं को किसी न किसी रूप में पूरा करते रहेंगे. हमें अपनी संस्‍कृति पर अभिमान होना चाहिए लेकिन अगर हम अपनी ही परंपरा और संस्‍कृति की बुराई करते रहेंगे तो बाकी क्‍या करेंगे. खुद को कोसते रहने का मतलब नहीं है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार(११.०३.१६) को इस पर जोर दिया कि आज की दुनिया को एक करने में सॉफ्ट पॉवर की भूमिका महत्वपूर्ण है लेकिन उन्होंने जोर दिया कि भारत इसमें अपनी भूमिका बेहतर तरीके से तभी निभा सकेगा जब देशवासी अपने ही देश की आलोचना से बचेंगे. उन्होंने अपने संक्षिप्त संबोधन में कहा कि जब कभी सत्ता प्रतिष्ठान वांछित नतीजे नहीं हासिल कर पाते हैं, तब सॉफ्ट पावर की प्रासंगिकता सामने आती है. उन्होंने यह भी कहा कि हमने उपनिषद से लेकर उपग्रह तक की यात्रा की है.
नई दिल्ली, श्री श्री रविशंकर के नेतृत्व वाले ऑर्ट ऑफ लिविंग द्वारा आयोजित तीन दिवसीय विश्व सांस्कृतिक महोत्सव दिल्ली में शुक्रवार शाम को शुरू हो गया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शाम 5.30 बजे आयोजन स्थल पर पहुंचे। कार्यक्रम की शुरुआत से पहले रिमझिम बारिश हुई. 11 मार्च से 13 मार्च तक चलने वाले इस तीन दिवसीय समारोह में 35 लाख लोगों के पहुंचने की उम्मीद की जा रही है.
कार्यक्रम की शुरुआत वैदिक मंत्रोच्चार एवं सांस्कृतिक नृत्य के साथ हुई. यमुना किनारे 1050 विद्वानों ने विश्वशांति एवं पर्यावरण से जुड़े वेद मंत्रों का पाठ किया. समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी शिरकत की. मंच पर विभिन्न देशों से आए अतिथियों का स्वागत किया गया. यमुना खादर इलाके में आयोजित हो रहे इस समारोह में पहले से ही लोग हजारों की संख्या में मौजूद हैं. दुनिया के विभिन्न देशों के लोगों के इस समारोह में शिरकत करने की उम्मीद जताई जा रही है. कार्यक्रम स्‍थल के आस पासके सभी रास्‍ते ब्‍लॉक कर दिए गए. तीन दिवसीय इस भव्य कार्यक्रम में 155 से ज्यादा देशों से लोगों के शिरकत करने की संभावना है.
वर्ल्ड कल्चर फेस्टिवल को संबोधित करते हुए श्री श्री रविशंकर ने कहा कि विविधता इस ग्रह की खासियत है और कला-संस्कृति हमारे जीवन के अंग हैं. आध्यात्मिक गुरु ने कहा कि अच्छा काम शुरू करने से पहले बाधा आती है लेकिन उससे घबड़ाए नहीं. हर मुश्किल का समाधान होता है. श्री श्री ने वर्ल्ड कल्चर फेस्टिवल में शामिल होने आए लोगों का स्वागत किया. उन्होंने कहा कि जो लोग यहां आए हैं, ये उनका आध्यात्मिक घर है. आर्ट ऑफ लिविंग संस्था के 35 साल पूरे होने पर यह कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है. इस दौरान कई तरह के सांस्कृतिक कार्यक्रमों के जरिये भारतीय संस्कृति को वैश्विक पटल पर प्रस्तुत किया जाएगा.
इससे पहले हुए विवाद में श्री श्री की संस्था ने एनजीटी की तरफ से लगाए गए जुर्माने में से 25 लाख रुपए जमा कर दिए हैं। एनजीटी ने आर्ट ऑफ लिविंग (एओएल) पर पांच करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया है. बाकी राशि 4 करोड़ 75 लाख को भरने के लिए चार सप्ताह का समय मिला है. एनजीटी 5 करोड़ का जुर्माना किश्तों में लेने को तैयार है. इससे पूर्व इस संस्था ने जुर्माने को लेकर हाथ खड़े कर दिए और कहा कि इतनी जल्दी एक चैरिटेबल संस्था के लिए पांच करोड़ का धन जुटाना मुश्किल काम है. आर्ट ऑफ लिविंग ने एनजीटी से कहा कि एक चैरिटेबल संस्था इतने कम समय में 5 करोड़ रुपये कहां से ला सकती है. हालांकि आर्ट ऑफ लिविंग की ही संस्था व्यक्ति विकास केन्द्र का खर्च 100 करोड़ है. चाहे जो हो कार्यक्रम की शुरुआत भव्यतापूर्ण तरीके से हो चुकी है. दूसरे दिन भी इंद्रदेव ने अपनी कृपा जारी रक्खी और बाधाओं से लड़ने का जज्बा भी आयोजकों और प्रतिभागियों में बरक़रार रहा. यह आर्ट ऑफ़ लिविंग (Art of Living) यानी जीने की कला.
अब दूसरे तरह की आर्ट ऑफ़ लीविंग ( Art of Leaving) यानी छोड़ने या भागने की कला की भी बात कर लें. श्रीमान विजय माल्या जो, राज्य सभा के सांसद भी हैं और विश्व स्तर के कारोबारी हैं. उनका बिजनेस शराब से लेकर शबाब तक, जमीन से लेकर आसमान तक चलता है. वे कारोबार के लिए ही विभिन्न बैंकों से ९००० करोड़ रुपये ऋण लेकर अब चुकाने की स्थिति में नहीं हैं. बैंक और सीबीआई के नजर में वे डिफाल्टर हैं. उनपर कानूनी कार्रवाई चल रही है, पर वे ऐन मौके पर लन्दन चले जाते हैं और वहां से ट्वीट कर जानकारी देते हैं कि वे भगोड़ा नहीं हैं. बिजनेस के सिलसिले में उनका विदेश आना जाना लगा रहता है. उनके अहसानों के बोझ से बहुत सारे लोग दबे हैं यहाँ तक कि मीडिया के मालिक भी. इसलिए कोई भी उनसे कानून के दायरे में ही बात कर सकता है. आँख दिखाने की कोशिश न करें, नहीं तो वे सबका भेद खोल देंगे. कुछ दिन पहले ललित मोदी का जिक्र चला था. वे भी सबकी भेद खोलने लगे तो सब शांत हो गए. माल्या की अपनी जिन्दगी है. वे कर्ज लेकर घी पीने में बिश्वास रखते हैं. ऐशो आराम की जिन्दगी उन्होंने जिया है. किंगफ़िशर एयर लाइन हो या किंगफ़िशर बियर सब कुछ अतुलनीय है. पॉलिटिशियन, सहारा फोर्स इंडिया, रॉयल चैलेंजर्स, मैक्डोवेल, मोहन बगान, किंगफिशर और ईस्ट बंगाल के मालिक रहे विजय माल्या का जन्म 18 दिसंबर, 1955 को हुआ था. कोलकाता में पैदा हुए माल्या के पिता विठ्ठल माल्या भी देश के जाने-माने कारोबारी थे. माल्या को शराब(सोमरस) का बिजनेस पिता विट्ठल माल्या से विरासत में मिला था. उन्होंने देश के प्रतिष्ठित मैनेजमेंट संस्थानों से लोगों को चुना और इस शराब उद्योग को एक कारपोरेट रूप दिया.
बाकी सब कुछ आईने की तरह साफ़ है. उनका कहना है कि उन्होंने कोई भी ऋण व्यक्तिगत रूप से नहीं लिया. उन्होंने ऋण तो कारोबार के लिए लिया है. उनको ऋण मुहैया करने वाले बैंक, और सरकार दोषी है. वे क्यों डिफाल्टर होने लगे.
तो यही है जीने की कला! आप और हम दिन रात रोटी, कपड़ा और मकान की चिंता में जिन्दगी गुजार देते हैं. जबकि यह सब तो माया है. क्या लेकर आए हो और क्या लेकर जाओगे. जो कुछ तुमने पाया है वह इसी जगत से पाया है और जाते समय इन सबको यहीं छोड़ कर जाना है. इसलिए चिंता मत पालो. मस्त रहो, संगीत सुनो, भजन सुनो और गुनगुनाओ, परमात्मा का ध्यान करो. इस जन्म में न सही अगले जन्म में तुम्हारा कर्मफल अवश्य मिलेगा. पर कर्म ही करना फल की आशा मत करना. यही तो गीता का सार है. गीता जीवन का मूल मन्त्र है यह भगवान के श्रीमुख से निकली हुई वाणी है इसलिए इसमें संदेह के कोई गुंजाईश नहीं हो सकती. जय श्री कृष्ण! जय श्री श्री द्वय!

-    जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर      

Saturday, 5 March 2016

किसने बनाया केजरी और कन्हैया को हीरो

किसने बनाया केजरी और कन्हैया को हीरो
९ फरवरी २०१६ के पहले कन्हैया कुमार को कितने लोग जानते थे ? यह नौजवान जे एन यु छात्र संघ के अध्यक्ष के रूप में वह केवल यूनिवर्सिटी कैम्पस तक ही जाना जाता था. ९ फरवरी को जे एन यु कैम्पस के अन्दर कुछ कार्यक्रम हुए. इसमें कुछ नारे लगाये गए. ये नारे वर्तमान सरकार और देश की अखंडता के खिलाफ थे, ऐसा बताया गया. देश विरोधी नारे लगानेवाले तो परदे के पीछे थे और परदे के पीछे से ही भाग निकले. छात्र संघ का अध्यक्ष होने के नाते कन्हैया कुमार पर आरोप लगा कि उसके रहते देश विरोधी नारे लगे और इसमें उसकी भी भागीदारी थी. १२ फरवरी को उसे देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर १५ फरवरी को पटियाला कोर्ट में पेश किया जाना था. तभी वहां मौजूद तथाकथित कुछ वकीलों ने उस पर अपना हाथ साफ़ किया. पुलिस मूक दर्शक बनी रही. यह विडियो/फोटोसूट भी सुर्खी बनी और कन्हैया पर कैमरा केन्द्रित हो गया. कई दिन सुनवाई के बाद अंत में पटियाला हाई कोर्ट ने उसे कुछ हिदायत देते हुए ६ महीने के लिए अंतरिम जमानत पर २ मार्च को रिहा कर दिया. ३ मार्च को कानूनी खानापूरी के बाद पुलिस के द्वारा ही सुरक्षित और गोपनीय तरीके से उसे जे एन यु कैम्पस में पहुंचा दिया गया.
रिहाई के बाद से ही कन्हैया कुमार अचानक हीरो बन गया और सभी प्रमुख मीडिया अपना अपना कैमरा लेकर पहुँच गए उसका इंटरव्यू लेने. यही नहीं जे एन यु के छात्रों ने उनके स्वागत का भरपूर इंतजाम किया. अपने स्वागत कार्यक्रम में कन्हैया ने लगभग ५० मिनट भाषण दिया, जिसका कई चैनलों ने लाइव प्रसारण भी किया. अपने ५० मिनट के भाषण में कन्हैया ने भारत से नहीं, भारत में आजादी चाहता है. साथ ही उसने मोदी सरकार, आर एस एस, मोदी जी, स्मृति ईरानी को चुन चुन कर निशाना बनाया. कन्हैया के इस भाषण की मोदी विरोधी पार्टियों के नेताओं ने जमकर सराहना की, जिनमे केजरीवाल, नीतीश कुमार, सीताराम येचुरी आदि प्रमुख हैं. अब सवाल यह है कि कन्हैया को हीरो बनाया किसने. जिस लोकप्रियता की ऊँचाई पर पहुँचाने में मोदी जी को १४ साल लगे, केजरीवाल को ३ साल, उसी लोकप्रियता की ऊँचाई पर कन्हैया मात्र २१ दिनों में पहुँच गया.
मशहूर चिंतकों के अनुसार अरविन्द केजरीवाल जो आज दिल्ली के मुख्यमंत्री हैं, उन्हें कांग्रेस ने नायक बनाया तो आज जेएनयू छात्र संघ अध्यक्ष  कन्हैया कुमार बीजेपी की राजनीति ने हीरो बना दिया. दोनों की मुहिम 'आजादी' है और लक्ष्य आम आदमी का विकास. आइए, इन आठ प्वाइंट्स में जाने क्यों एक-दूजे से मिलते-जुलते हैं केजरीवाल और कन्हैया.
1. कांग्रेस और बीजेपी का कनेक्शन- अरविंद केजरीवाल दिल्ली से लेकर देश के हर कोने में चर्चित हुए और एक प्रभावी राजनेता के तौर पर उभरे. केजरीवाल राजनीति में आए उसके लिए कहीं न कहीं कांग्रेस का हाथ है. दिल्ली में कांग्रेस की नीतियों के खिलाफ आवाज उठाने वाले केजरीवाल को देश की जनता ने हाथों-हाथ लिया. कन्हैया कुमार ने जेएनयू के अंदर आरएसएस और बीजेपी के बढ़ते दखल को मुद्दा बनाया. हाल ही में कथित राष्ट्रविरोधी कार्यक्रम में कन्हैया का नाम सामने लाने में बीजेपी और उसके छात्र संगठन एबीवीपी का हाथ है.
2. दोनों आंदोलनों के जरिए हीरो बने- अरविंद केजरीवाल को अन्ना हजारे के जनलोकपाल आंदोलन ने उभारा. तो कन्हैया कुमार को जेएनयू में राष्ट्रवाद और राष्ट्रद्रोह की लड़ाई ने हीरो बनाया.
3. केजरीवाल ने भी यही कहा था- अन्ना आंदोलन के समय केजरीवाल ने लगभग बार राजनीति में आने के सवाल पर यही कहा था कि वह राजनीति करने नहीं आए हैं. वह राजनीति की मुख्यधारा से नहीं जुड़ेंगे. हालांकि बाद में वह अन्ना से अलग हो गए और पार्टी बना ली. कन्हैया कुमार ने भी जेल से रिहा होने के बाद अपने पहले भाषण में ही कहा कि वह नेता नहीं बनना चाहते. वह टीचर बनना चाहते हैं. हालांकि जेएनयू विवाद ने उनकी राजनीतिक राह आसान कर दी है.
4. आजादी की मुहिम से दोनों चर्चा में आए- केजरीवाल ने अन्ना के साथ मिलकर देश से भ्रष्टाचार मिटाने और भ्रष्टाचार से आजादी दिलाने की मुहिम छेड़ी था और दिल्ली की सत्ता संभालने के बाद भी वह लगातार अपनी इस बात को दोहराते रहे हैं.  कन्हैया कुमार ने कहा है कि वह देश से नहीं बल्कि देश में आजादी चाहते हैं. वह देश को गरीबी, भुखमरी, भेदभाव से आजादी दिलाना चाहते हैं.
5. जनता की लड़ाई लेकर आगे बढ़े अरविन्द केजरीवाल ने आम आदमी के हक की लड़ाई का नारा देकर राजनीति में एंट्री ली. कन्हैया कुमार ने कहा कि वह आम छात्रों का लड़ाई लड़ रहे हैं और चाहते हैं कि सभी पढ़ें और उनकी तरह आगे बढ़ें.
6. दोनों तिहाड़ जेल गए अरविंद केजरीवाल को केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी की मानहानि के मामले में पटियाला हाउस कोर्ट ने मई 2014 में न्यायिक हिरासत में तिहाड़ जेल भेजा था.  कन्हैया कुमार को 9 फरवरी को जेएनयू में हुई कथित देश विरोधी घटना में शामिल रहने के आरोप में पटियाला हाउस कोर्ट ने ही न्यायिक हिरासत में तिहाड़ जेल भेजा था. फिलहाल कन्हैया अंतरिम जमानत पर रिहा हुए हैं.
7. सादगी ही पहचान केजरीवाल अपनी सादगी के लिए काफी चर्चा में रहे हैं. केजरीवाल का ड्रेस कोड भी उनकी पहचान बन चुका है.  कन्हैया की सादगी भी लोगों के सामने है. छात्र संघ अध्यक्ष बनने के बाद भी उनमें तमाम छात्र नेताओं जैसा रौब नहीं आया.
8. फिलहाल दोनों बीजेपी के खिलाफ दिल्ली में दोबारा सत्ता पाना हो या फिर 2014 के लोकसभा चुनाव, केजरीवाल की लड़ाई कांग्रेस से हटकर बीजेपी पर आ गई. देश की राजधानी में तमाम प्रशासनिक मुद्दों पर केजरीवाल और बीजेपी की लड़ाई खुलकर सामने भी आ चुकी है. कन्हैया की लड़ाई भी जेएनयू में  कथित राष्ट्रविरोधी गतिविधि मुद्दा बनाने वाली बीजेपी के खिलाफ ही है. जेल से रिहा होने के बाद भी कन्हैया की बातों में आरएसएस और बीजेपी के खिलाफ गुस्सा साफ दिखा है.
अब तो भविष्य ही बताएगा कि कन्हैया कुमार का भविष्य क्या है. अभी अभी पश्चिम बंगाल में चुनाव है, और सीताराम येचुरी उसे चुनाव प्रचार के लिए बंगाल में बुलाना चाहते हैं. भाषण देना तो सीख ही गया है. भावी नेता बनने की योग्यता तो रखता ही है. यह बात अलग है कि उसकी विचारधारा वामपंथी है उससे आज ज्यादा लोग इत्तेफाक नहीं रखते. पर भाजपा के छुटभैये नेता अभी भी कन्हैया की जीभ और जान की कीमत तय करने लगे हैं. यह भाजपा के लिए अगर कहा जाय तो मोदी जी जिन गड्ढों को खोदने और भरने की बात करते हैं कहीं उनके रास्ते के गड्ढों में न परिवर्तित हो जाय. अब दिल्ली पुलिस जिसको वकीलों से पिटती देखती रही अब सुरक्षा देने की बात कर रही है.
मेरा अपना मत है कि मोदी जी को अपने घर को साफ़ सुथरा रखना होगा, अपने नेताओं के बयानों पर लगाम कसनी होगी और जिस विकास के मुद्दे पर चुनकर आये हैं उसे ही भरपूर कोशिश के साथ आगे बढ़ाना होगा. वैसे ही महंगाई पर काबू न रख पाने और इ पी एफ की निकासी पर ब्याज लगाने के बजट प्रस्ताव पर वेतनभोगी वर्ग से नाराजगी झेल रहे हैं. रोजगार पैदा करने और निवेश बढ़ाने पर अभी बहुत काम बाकी है. पांच राज्यों में चुनाव कार्यक्रम की घोषणा हो गई है. इन राज्यों में चुनाव परिणाम बताएगा कि मोदी जी की लोकप्रियता बरक़रार है या उसमे कमी हुई है. वैसे दिल्ली और बिहार में उनकी पराजय आइना दिखलाने के लिए काफी है.      
कुछ चाटुकार हर जगह होते हैं. भक्त भी अपने हित की ही मांग भगवान से करता है. अपनी बड़ाई सबको अच्छी लगती है. बहुत कम लोग होते हैं, जो अपनी सफलता का श्रेय दूसरों को देना चाहते हैं. पर देश और मानव हित सर्वोपरि है, इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती. अज पूरा विश्व एक ‘ग्लोबल विलेज’ के रूप में जाना जाने लगा है. सूचनाएं द्रुत गति से संचारित हो रही हैं. सोच बदलनी होगी. अपनी भी और दूसरों की भी. सलाह–मशविरा वार्तलाप करने में आप माहिर हैं. नौजवान आपको बड़ी उम्मीद भरी नजरों से देख रहा है. उसे निराश या पथभ्रष्ट होने से बचा लीजिये. आपसे एक आम आदमी का निवेदन है, प्रधान मंत्री श्री मोदी जी. जय हिन्द!

-    जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.