Friday, 26 February 2016

आरक्षण की आड़ में

कहैं इहै सब सुमृति, इहै सयाने लोग।
तीन दबावत निसक ही, पातक, राजा, रोग।।
अर्थात्
सारे वेद, स्मृतियां और ज्ञानी लोग यही बात बतलाते हैं
कि राजा, रोग, और पाप, ये तीनों दुर्बल को दबाते-सताते हैं.

महिलाएं शरीर और मन से कमजोर हैं इसीलिये इन्हें भी हर जगह हर तरह के जुल्म का शिकार होना पड़ता है. जाट आन्दोलन के दौरान भी यही हुआ. हरियाणा में जाट आरक्षण आंदोलन के दौरान मुरथल ढाबे के पास 10 महिलाओं को गाड़ियों से उतारकर उनसे बदसलूकी और दुष्कर्म किया गया. कई प्रेस फोटोग्राफर बाद में घटना स्थल पहुंचे और वहां महिलाओं के कपड़े और इनर वियर यहाँ-वहां बिखरा देखा. बताया जाता है कि महिलाएं भागकर पास के ढाबे में या खेतों में, तालाबों में छिप गयी और तबतक छुपी रही जबतक उनके घरवाले कपड़े और कम्बल लेकर वहां नहीं पहुँच गए. पुलिस ने भी उन्हें इज्जत का हवाला देकर रिपोर्ट न लिखवाने की सलाह दी. बाद में कई पुलिस अधिकारियों ने इस तरह की घटना से इन्कार किया. चंडीगढ़ हरियाणा के कोर्ट ने खुद संज्ञान लेकर दुष्कर्म की खबरों पर डीजीपी को जमकर फटकार लगाई। कोर्ट ने डीजीपी से मामले की पूरी रिपोर्ट और हरियाणा सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। पीडि़त महिलाओं से बंद लिफाफे में विधि सेवा प्राधिकरण को शिकायत देने को कहा है। हाईकोर्ट ने आश्वस्त किया कि सभी की पहचान गुप्त रखी जाएगी। हाईकोर्ट ने कहा कि मामले में पुलिस का रवैया शर्मनाक रहा है। कोर्ट ने आंदोलन के दौरान आर्थिक क्षति की शिकायतों के लिए हर जिले में हेल्प डेस्क बनाने का भी आदेश दिया। याद रहे कि हाईकोर्ट के जस्टिस एन के सांघी ने बुधवार को इस मामले में स्वत: संज्ञान लिया और इसे कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश को भेज दिया। हाईकोर्ट ने मामले में हरियाणा के महाधिवक्ता को तलब किया। हाईकोर्ट ने फैसला किया कि हर जिले में विधि सहायता प्राधिकरण से आगजनी व बलात्कार जैसी घटनाओं की जांच करवाई जाए। जांच में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट स्तर के अधिकारी हों।
हरियाणा मानवाधिकार आयोग के सदस्य पी पी कपूर और उत्सव बैंस ने हाईकोर्ट में अपना पक्ष रखा। आरोप लगाया कि पुलिस महानिरीक्षक व उपायुक्त गवाहों को धमका रहे हैं। उन्होंने कहा कि मामले की सीबीआई से जांच कराई जानी चाहिए। हरियाणा सरकार ने हिंसा की निरपेक्ष जांच के लिए उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी प्रकाश सिंह और नव नियुक्त एडीजीपी बीके सिन्हा के निर्देशन में कमेटी का गठन किया है। जाट आंदोलन की गाज रोहतक के आईजी श्रीकांत जाधव, डीएसपी अमित दहिया और अमित भाटिया पर गिरी है। सरकार ने तीनों अफसरो को निलंबित कर दिया है। अफसरों पर जाट आरक्षण के दौरान कानून व्यवस्था कायम न रख पाने का आरोप है। सांपला में रैली को लेकर पुलिस व अफसर लापरवाह बने रहे जाधव की जगह पंचकुला के आईजी प्रशासन संजय कुमार को रोहतक का कार्यभार सौंपा गया है।
हरियाणा में जाटों को आरक्षण मिलना लगभग तय है। केंद्र सरकार की ओर इस संबंध में फैसला करने के लिए केंद्रीय मंत्री वेंकैया नायडू के नेतृत्व में कमेटी गठित कर दी गई है, लेकिन क्या इस आरक्षण की आग में आम जनता का जो नुकसान हुआ है, उसकी भरपाई कौन करेगा। सुप्रीम कोर्ट की ओर इस संबंध में बुधवार को आए आदेश के मुताबिक नुकसान की भरपाई आंदोलनकारियों से की जानी चाहिए। इस स्थिति में क्या जाट आंदोलनकारी राज्य के नुकसान की भरपाई करेंगे।
जानकारी के मुताबिक जाट आंदोलन से हरियाणा को करीब ३५,000 करोड़ का नुकसान हुआ है।
अठाइस जिंदगियाँ खाक, 200 से अधिक जख्मी और सदा के लिए जातिगत विद्वेष. यही है हरियाणा में दस दिन चले जाट आरक्षण आंदोलन का लेखा जोखा | आखिर क्यों सुलगा हरियाणा ? क्यों सरकार रही बेखबर ? किसको क्या मिला ? ये वो तमाम प्रश्न हैं, जो हर किसी मन को उद्वेलित करते हैं | इंनका उत्तर जानने के लिए हमे झांकना होगा दो वर्ष पूर्व के घटनाक्रम के भीतर | पिछले 2014 के लोकसभा आम चुनाव से ठीक पहले काँग्रेस ने जाट वोटों को अपने पक्ष में लामबंध करने के लिए मार्च, 2014 में हरियाणा समेत नो राज्यों के जाटों को ओ बी सी श्रेणी में शामिल किया था | हालांकि राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग ने अपनी फरवरी 2014 की रिपोर्ट में जाटों को ओ बी सी श्रेणी में मानने से इंकार कर दिया था, परंतु तत्कालीन यू पी ए सरकार ने चार मार्च, 2014 को जाटों को ओ बी सी श्रेणी में सम्मिलित करने का नोटिफ़िकेशन जारी कर दिया | बाद में सुप्रीम कोर्ट ने मार्च, 2015 में यू पी ए सरकार के इस नोटिफ़िकेशन को निरस्त कर दिया | सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने जाटों के पैरों तले की जमीन खिसका दी | जाटों के जो बच्चे ओ बी सी श्रेणी के तहत 2014 के बाद विभिन्न सरकारी नौकरियों में चयनित हो चुके थे और नौकरी ग्रहण करने का इंतजार कर रहे थे, उनकी आशाओं पर बाढ़ की तरह पानी फिर गया | इस एक झटके ने बेरोजगार जाट युवाओं की नौकरी की आस धूमिल कर दी | इन्दिरा साहनी केस में 1992 में सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला दिया था कि आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवार जो खुली प्रतियोगिता में सामान्य श्रेणी के उम्मीदवारों के साथ मेरिट में बराबरी के रैंक पर रहते हैं, उन्हें आरक्षित पदों की बजाय सामान्य श्रेणी में समायोजित किया जाए और आरक्षित श्रेणी की सीटों को तो उन उम्मीदवारों से भरा जाना चाहिये जो आरक्षित वर्ग में हैं तथा जिनकी मेरिट सामान्य श्रेणी के कट आफ मार्क्स से नीचे प्रारम्भ होती है | सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से आरक्षित श्रेणी के लोगों को डबल बेनीफिट मिलने लगा | उस श्रेणी के होशियार बच्चे तो जनरल श्रेणी में समायोजित होने लगे तथा निम्न मेरिट वाले बच्चे अपनी अपनी आरक्षित श्रेणी एस सी /एसटी /ओ बी सी में स्थान पाने लगे | इसका नुकसान सामान्य श्रेणी को सीधा यह हुआ कि आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवार अपनी आरक्षित सीटों से अधिक सीटों पर चयनित होने लगे और सामान्य श्रेणी के उम्मीदवारों का दायरा सिमट गया | जब जाटों ने देखा कि उनके सम वर्गीय जातियाँ यथा यादव, गुर्जर, सैनी आदि डबल फायदा उठा रहे हैं और सामान्य श्रेणी में अन्य उच्च जातियाँ जो आर्थिक, सामाजिक व शैक्षणिक रूप से जाटों से ऊपर एवं समृद्ध हैं उन्हें मेरिट में नहीं आने दे रही हैं, तो बेरोजगार जाट युवाओं के मन में कुंठा घर कर गई | यही कुंठा ग्रस्त युवा येन-केन प्रकारेण आरक्षण पाने को आतुर हो उठे | उसके आन्दोलन को ज्यादा उग्र और हिंसक बनाने में अवश्य ही किसी राजनीतिक नेता का हाथ रहा होगा.
यह आरक्षण नेताओं की देन है। हमें आरक्षण का लाभ न पहले मिला है और न ही अब चाहिए। हमें केवल हमारा बेटा चाहिए। जिसकी इन दंगों में मौत हो गई। पीजीआई एमएस रोहतक के पोस्टमार्टम रूम के बाहर अपने बेटे मनजीत की लाश का इंतजार कर रहे जयभगवान कहते हैं कि हम दलित समुदाय से संबंधित हैं। बीते शुक्रवार को उग्र भीड़ ने उसके लड़के मनजीत को उस समय मार दिया जब वह फैक्टरी से वापस लौट रहा था। मनजीत अपने पीछे विधवा पत्नी के अलावा एक पांच वर्ष का बेटा और सात वर्ष की बेटी छोड़ गया है। मनजीत की तरह ही इस आंदोलन का शिकार हुए 17 वर्षीय नितिन शर्मा के पिता सुरेंद्र शर्मा (पेशे से टैक्सी चालक) ने बताया कि उन्हें नहीं पता उनके बेटे का क्या कसूर था। आंदोलनकारियों ने किला रोड़ पर उसके बेटे की गोली मारकर हत्या कर दी। रोहतक के बाबरा मोहल्ला निवासी सुरेंद्र के अनुसार वह किला रोड़ पर अपने रिश्तेदार की दुकान में हुई लूटपाट के बाद उनकी मदद के लिए गए थे। इसी दौरान आंदोलकारियों का एक समूह आया और उनकी आंखों के सामने नितिन को मौत के घाट उतार दिया। यह बताते ही सुरेंद्र फूट-फूट कर रोने लगते हैं। नितिन की मां सरोज ने केवल इतना ही कहा कि पचास वर्षों में उन्होंने रोहतक में इतना उपद्रव कभी नहीं देखा।
इस आंदोलन में गैर-जाट ही नहीं बल्कि जाटों ने भी कई अपनों को खोया है। झज्जर में सेना की गोली का शिकार होकर मारे गए अर्जुन सिंह के भाई भगत सिंह ने बताया कि उसका भाई महज 18 वर्ष का था वह सेना और आंदोलनकारियों की गोली का शिकार हो गया। घटना के दौरान अर्जुन अपने दोस्तों के साथ जा रहा था। आंदोलनकारियों को भले ही आरक्षण मिल जाए और सरकार आर्थिक नुकसान की भरपाई भी कर दे लेकिन जिन्होंने अपने पति, बेटे व भाई को खोया है उनकी वापसी कभी नहीं हो सकती।
सवाल यह है कि इतनी बड़ी हिंसा क्या किसी राजनीतिक समर्थन के सम्भव थी. पुलिस यहाँ तक की सेना भी बुलाई गयी पर आंदोलनकारी अपनी मनमानी करते रहे. क्या सचमुच ये लोग इतने कमजोर हैं कि उन्हें आरक्षण चाहिए, मीडिया रिपोर्ट के अनुसार चुन चुन कर पंजाबियों और सैनियों को निशाना बनाया गया, लूटा गया, आग लगा दी गयी, गोलियों से भून दिया गया. जो भी हुआ बहुत ही गलत हुआ. राज्य सरकार आँख मूँद कर सारा तमाशा देखती रही. अब कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया है. राज्य सरकार और प्रशासन को इस समस्या से निपटने के कौशल होने चाहिए थे. सेना कि मदद ली गयी पर वह नाकाफी साबित हुई. हार्दिक पटेल द्वारा आहूत पटेलों के लिए आरक्षण के मांग में भी इतनी हिंशा नहीं हुई थी. हार्दिक आज कई धाराओं के अंतर्गत जेल में है, पर यहाँ जाटों का कोई नेता भी सामने नहीं दीखता, अगर होंगे भी तो परदे के पीछे से उकसानेवाले. राज्य सरकार इतनी बेबश हो सकती है, दंगा से भी क्रूरतम कृत्य यहाँ हुए हैं. एक बार सरकार और जाट समर्थकों के बीच वार्ता होनी चाहिए और इस तरह के हिन्सात्मक आंदोलन को किसी भी सूरत में बढ़ावा नहीं दिया जाना चाहिए. लोकतंत्र का मतलब हिन्सात्मक आंदोलन नहीं हो सकता. फिर आतंकवादियों और नक्सलियों के साथ इनकी तुलना क्यों न की जाय. ऊपर से ऐसा लग रहा है कि जैसे हरियाणा में कुछ हुआ ही नहीं. संसद में पुराने मुद्दे को कुरेदा जा रहा है, पर इस वर्तमान मुद्दे पर सभी प्रमुख नेता खामोश है. प्रधान मंत्री भी मौन हैं. यह ठीक बात नहीं है. पीड़ितों को न्याय मिलना चाहिए जिम्मेदार लोगों पर उचित कार्रवाई. तभी होगा सबका साथ और सबका विकास. जय हिन्द!
- जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.

Monday, 22 February 2016

टाटा कंपनी का मूल्यों पर आधारित विशेष प्रबंधन

टाटा कंपनी का मूल्यों पर आधारित विशेष प्रबंधन
टाटा समूह के क्रिया कलापों पर नजर दौराते हुए कुछ और मूल्यों पर, जिसे टाटा समूह ने हमेशा से प्रमुखता दी है, उसकी भी चर्चा हम यहाँ कर लेते हैं.
झारखंड में विकास की तेज़ रफ़्तार के चलते पर्यावरण संबंधी चिंताएं भी उठने लगी हैं. पत्रकार दिव्या गुप्ता जमशेदपुर की मुख्य नदी के दूषित होने के बारे में कहती हैं, “इसके लिए टाटा को ज़िम्मेदार ठहराना सही नहीं होगा लेकिन जमशेदपुर में उनका ही मुख्य यूनिट है.” टाटा समूह के मुख्य अधिकारी (इथिक्स डिपार्टमेंट) मुकुंद राजन कंपनी का बचाव करते हुए कहते हैं, “आप रसायन या स्टील का उद्योग पर्यावरण को प्रभावित किए बिना नहीं चला सकते. सवाल ये है कि टाटा समूह हो रहे नुकसान से बचाव के लिए क्या कदम उठाता है.” आप देख सकते हैं कि पर्यावरण को बचाने के लिए कंपनी ने हर स्तर पर काम किया है. जल और वायु का प्रदूषण कम से कम हो उसके लिए टाटा समूह द्वारा उठाये गए क़दमों की सराहना की जानी चाहिए. इलेक्ट्रोस्टेटिक प्रेसिपिटेटर के द्वारा धूल के सूक्ष्मतम कणों को खींचकर सही प्रबंधन किया जाता है. पानी को साफकर पुनरुपयोग में लाया जाता है. कचरा प्रबंधन यहाँ का अनुकरणीय है. प्रतिदिन करीब ३५० टन कचड़ा को उठाकर उससे प्लास्टिक छांटकर सडकों के निर्माण में उपयोग को यहाँ बड़े पैमाने पर अपनाया गया है. जैविक कचरा से कम्पोस्ट बनाकर उसका उपयोग बागवानियों में किया जाता है और उसकी बिक्री भी की जाती है. यहाँ के इस कचड़ा प्रबंधन के प्रयोग को अब दूसरे शहरों में भी अपनाने लगे हैं.
दिसंबर, 2012 में रतन टाटा ने कारोबार की बागडोर टाटा परिवार से बाहर के व्यक्ति सायरस मिस्त्री के हाथों में दे दी. टाटा समूह के कारोबार का मुख्य उद्देश्य पारसी उक्ति -हमाता, हुख्ता और हवारष्टा पर आधारित है, जिसका मतलब है- अच्छे विचार, अच्छे बोल और अच्छे काम. लेकिन जब कारोबार बढ़ता चला जाता है, तो ये बेहद मुश्किल होता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 6 जनवरी २०१५ को टाटा समूह के संस्थापक जमशेदजी टाटा के सम्मान में 100 रुपये और 5 रुपये का सिक्का जारी किया। जमशेदजी को आधुनिक भारतीय उद्योग का जनक कहा जाता है और यह सिक्का उनकी 175वीं जयंती पर जारी किया गया है।
मोदी ने जमशेदजी नुसेरवानजी टाटा को श्रद्धांजलि देते हुए कहा, ‘जिन्होंने बिना सत्ता अथवा ताकत के ही इतिहास बनाया वे सचमुच में महान थे।’ मोदी ने जमशेदजी के पर्यावरण अनुकूल ऊर्जा के दृष्टिकोण तथा टाटा समूह से जुड़े लोगों के कल्याण के लिए उनकी पहलों की भी सराहना की। प्रधानमंत्री ने कहा कि उद्योगपतियों द्वारा बड़ी मात्रा में धन कल्याणकारी योजनाओं में लगाने की संस्कृति पश्चिमी दुनिया के लिए नयी है लेकिन जमशेदजी टाटा यह बहुत पहले ही यह कर चुके हैं। जमशेदजी टाटा को आधुनिक भारतीय उद्योग का संस्थापक कहा जाता है और केंद्र से इस तरह का सम्मान पाने वाले वह पहले उद्योगपति हैं। सरकारी अधिकारी ने कहा कि सरकार ने जमशेदजी टाटा को इसलिए चुना है क्योंकि वे विख्यात हस्ती थे और सरकार इस पहल के जरिए भारतीय उद्योग को प्रोत्साहित करना चाहती है। सरकार अब तक कलाकारों, स्वतंत्रता सेनानियों, वैज्ञानिकों, संस्थानों व संगठनों के सम्मान में ही सिक्के जारी करती रही है। जमशेदजी का जन्म तीन मार्च 1839 को गुजरात के एक छोटे से कस्बे नवसेरी में हुआ और उन्होंने टाटा समूह की नींव रखी जो देश का सबसे बड़ा औद्योगिक घराना है। 1880 से 1904 में अपने निधन के बीच की अवधि में उन्होंने टाटा आयरन एण्ड स्टील कंपनी की स्थापना, पनबिजली परियोजनाओं तथा विश्वस्तरीय शिक्षा संस्थानों की स्थापना को अपने जीवन का मुख्य ध्येय बना लिया था।
आज भी जमशेदपुर का शहर टाटा द्वारा ही प्रबंधित और नियंत्रित है. यहाँ २४ घंटे बिजली, पानी, सड़क और सफाई की उत्तम ब्यवस्था है. टाटा स्टील जो की भारतीय इस्पात कम्पनी की पहली समेकित इकाई है आठ बार प्रधान मंत्री ट्रॉफी जीत चुकी है. अपने कर्मचारियों के कल्याण के लिए बहुत सारी योजनाएं और विभाग हैं जो इनके परिवारों की सेवा में लगे रहते हैं. टाटा मुख्य अस्पताल में सभी आधुनिक सुविधाएँ मौजूद हैं जहाँ कर्मचारियों और उनके परिवार का मुफ्त इलाज होता है. कंपनी की तरफ से हाई स्कूल तक की शिक्षा तो मुफ्त है ही १२ के लिए एक इण्टर कॉलेज भी है इसके अलावा, XLRI यहाँ का प्रमुख व्यवसायिक प्रबंधन शिक्षा का विख्यात संस्थान है. यहाँ से सफलता प्राप्त प्रबंधकों को उच्च ब्यापारिक घरानों में अच्छे पॅकेज देकर नियुक्त किया जाता है.
टाटा स्टील के अंदर इसमें काम करने वाले कर्मचारी कैसे सुरक्षित रहें इसके लिए कंपनी हर साल करोड़ों रुपये सुरक्षा के नाम पर ही खर्च करती है. इस कंपनी का आधार ही है सुरक्षा और गुणवत्ता प्रथम और हर हाल में. कंपनी के अंदर विभिन्न प्रकार के सुरक्षा उपकरण लगाये गए हैं जो टाटा की अपने कर्मचारियों के प्रति लगाव को दर्शाता है. यही नहीं जिस कर्मचारी या अधिकारी ने सुरक्षा, गुणवत्ता या उत्पादकता बढ़ाने में विशेष योगदान दिया है उसे कंपनी उपयुक्त फोरम पर सम्मानित भी करती है. अभी अभी १९ जनवरी को लगभग ५०० कर्मचारियों/अधिकारियों और उनके टीमों के सदस्यों को सम्मानित किया. एक भव्य समारोह का आयोजन कीनन स्टेडियम में किया गया था, जहाँ भारत और एसिया के प्रबंध निदेशक के साथ वरिष्ठ अधिकारीगण और यूनियन के प्रतिनिधि उपस्थित थे. वास्तव में यह कंपनी कर्मचारियों के लिए गौरव की बात होती है.
विभिन्न क्षेत्रों में कंपनी को महत्वपूर्ण पुरस्कार तो मिलते ही रहते हैं. समेकित इस्पात उत्पादन करनेवाली कंपनी के रूप में यह अब तक आठ बार प्रधानमंत्री ट्राफी जीत चुकी ही. एथिक्स, मानव प्रबंधन, ज्ञान के प्रसार और प्रचार क्षेत्र में भी कई पुरस्कार यह अपने नाम कर चुकी है. टाटा स्टील, इण्डिया और साउथ एसिया के मैनेजिंग डायरेक्टर श्री टी वी नरेन्द्रन ने अपने संबोधन में कर्मचारियों/अधिकारियों का हौसला बढ़ाते हुए कहा – कठिन परिस्थितियों में भी हम अपनी कंपनी को बचाए रखने की हर चुनौती को स्वीकार करते हैं और इसमें सबका सहयोग रहा है. उन्होंने ‘बचिए और बचाइए’ (Safe and save) का नारा देते हुए मिलजुलकर काम करने की सलाह दी.
इसके अलावा टाटा खेलकूदों को भी बढ़ावा देती है. यहाँ कीनन स्टेडियम तथा टाटा स्पोर्ट्स काम्प्लेक्स है टाटा फूटबाल अकादमी है. तो तीरंदाजी को भी बढ़ावा देती है. रवि शास्त्री, सौरभ गांगुली और धोनी भी यहाँ के अच्छे खिलाड़ी रह चुके हैं. दीपिका कुमारी तीरंदाज जो की टाटा की ब्रांड अम्बेसडर भी है अभी हाल ही में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित हुई है. कम उम्र में यह पुरस्कार प्राप्त करने वालों में शायद यह पहली महिला/ लड़की है.
अनुशासन ही देश को महान बनता है इस वाक्य को भी टाटा ग्रुप अक्षरश: पालन करता है. यहाँ, समय की पाबंदी और अपनी ड्यूटी के प्रति इमानदारी बहुत ही जरूरी है. अगर कहीं चूक होती है तो दंड का भी प्रावधान है. बड़े से बड़े अधिकारी भी इस नियम से बंधे हैं और सभी समय के पाबंद हैं. एथिक्स इसके लिए बहुमूल्य है और इसके लिए भी इसे विश्वस्तर का प्रमाण मिल चुका है.
अभी भी समय समय पर कवि सम्मलेन, मुशायरा, सांस्कृतिक कार्यक्रम, आदिवासियों के साथ संवाद और उसकी संसृति को बढ़ाने वाले कार्यक्रम बीच-बीच में आयोजित किये जाते है. कई साहित्यकार/कलाकार/रंगकर्मी इसके कर्मचारी और अधिकारी भी है. वे अपनी ड्यूटी के अलावा खाली समय में साहित्य और समाज की सेवा करते रहते हैं. हर पर्व त्योहारों में कंपनी द्वारा, निर्बाध विद्युत आपूर्ति के साथ, पानी और सफाई की भी उचित ब्यवस्था की जाती है. कानून ब्यवस्था बनी रहे इसके लिए स्थानीय प्रशासन के साथ ताल मेल बैठाकर चलती है. कर्मचारियों के जीवन स्तर में सुधार हो उसके लिए भी कंपनी दिनरात प्रयास में लगी रहती है. अभी ३ मार्च को श्री जे एन टाटा की जयन्ती मनाई जायेगी. इस अवसर पर कंपनी और शहर को दुल्हन की तरह सजाया जाता है. इसके लिए एक महीना पहले से ही तैयारियां होती रहती है. सभी लोगों के लिए यहाँ लगभग एक सप्ताह तक जश्न का माहौल रहता है.
चुनौतियाँ आती रहती हैं, पर बिना विचलित हुए/अपने मूल्यों से बिना समझौता के यह कंपनी इसी तरह आगे बढ़ती रहे और लोगों को रोजगार के साथ जीवन स्तर भी सुधारती रहे, यह उम्मीद हम करते हैं. यह कंपनी प्रतिभा का सम्मान करती है. धर्म, जाति, भाषा या क्षेत्र वाद से यह अभी तक अछूती रही है और आगे भी रहेगी ऐसी उम्मीद हम करते हैं. यह कंपनी इस्पात तो बनाती ही है प्रतिभा को निखारने में भी सहायक है. आप सभी को पता होगा, झाड़खंड के वर्तमान मुख्य मंत्री रघुवर दास टाटा स्टील के कर्मचारी रह चुके हैं और दिल्ली के मुख्य मंत्री अरविन्द केजरीवाल भी यहाँ अपनी प्रारंभिक सेवा दे चुके हैं.
- जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.

Friday, 19 February 2016

टाटा समूह की कल्याणकारी योजनाएं

भारत के सबसे बड़े कारोबारी समूह में से एक टाटा समूह के कारोबार में टेटली टी और जगुआर लैंड रोवर नामक की प्रसिद्ध ईकाईयां शामिल हैं.
लेकिन इस समूह के कारोबार में 66 फीसदी हिस्से का मालिकाना हक अलग अलग चैरेटी द्वारा संभाला जाता है. यह वो मूल भाव है जिसे टाटा समूह के संस्थापक जमशेद जी टाटा और उनके वारिसों ने कायम रखा है. 19वीं सदी के अंत में भारत के कारोबारी जमशेद जी टाटा, एक बार मुंबई के सबसे महंगे होटल में गए, लेकिन उनके रंग के चलते उन्हें होटल से बाहर जाने को कहा गया. कहा जाता है कि उन्होंने उसी वक्त तय किया कि वे भारतीयों के लिए इससे बेहतर होटल बनाएंगे. और 1903 में मुंबई के समुद्र तट पर ताज महल पैलेस होटल तैयार हो गया. यह मुंबई की पहली ऐसी इमारत थी, जिसमें बिजली थी, अमरीकी पंखे लगाए गए थे, जर्मन लिफ़्ट मौजूद थी और अंग्रेज ख़ानसामा भी थे.
जमशेद जी नुसरवान जी टाटा का जन्म ३ मार्च 1839 में एक पारसी परिवार में हुआ था. उनके पूर्वज पारसी पुजारी थे. लेकिन जमशेद जी ने तो कपड़े, चाय, तांबा, पीतल और यहां तक अफीम के धंधे में भी अपनी किस्मत आज़माई. तब अफीम का धंधा कानूनी तौर पर मान्य था.उन्होंने इस दौरान काफी यात्राएं कीं और नई खोजों के प्रति उनमें एक सहज आकर्षण था. पहली कपड़ा मिल .ब्रिटेन की एक यात्रा के दौरान उन्हें लंकाशायर कॉटन मिल की क्षमता का अंदाजा हुआ. साथ में ये अहसास भी हुआ कि भारत अपने शासक देश को इस मामले में चुनौती दे सकता है और उन्होंने 1877 में भारत की पहली कपड़ा मिल खोल दी. इम्प्रेस मिल्स का उद्घाटन उसी दिन हुआ, जिस दिन क्वीन विक्टोरिया भारत की महारानी बनी. जमशेद जी के पास भारत के लिए स्वदेशी सोच का सपना था. स्वदेशी यानी अपने देश में निर्मित चीजों के प्रति आग्रह भारत के स्वतंत्रता आंदोलन का अहम विचार था.
उन्होंने एक बार कहा था, "कोई देश और समाज, अपने कमजोर और असहाय लोगों की मदद से उतना आगे नहीं बढ़ता जितना वो अपने बेहतरीन और सबसे बड़ी प्रतिभाओं के आगे बढ़ने से बढ़ता है." उनका सबसे बड़ा सपना इस्पात संयंत्र बनाने का था, लेकिन इस उद्देश्य के पूरा होने से पहले उनका निधन हो गया. उनके बेटे दोराब जी टाटा ने इस चुनौती को संभाला और 1907 में टाटा स्टील, जमशेदपुर ने उत्पादन शुरू कर दिया. भारत इस्पात संयंत्र बनाने वाला एशिया का पहला देश बना. जमशेद जी ने एक ओद्यौगिक शहर बनाने के लिए भी निर्देश छोड़ा था. अभी जमशेदपुर में स्थित टाटा स्टील १० मिलियन टन का उत्पादन करती है. इसके अलावा इसके कई प्लांट देश-विदेश के विभिन्न भागों में अवस्थित है. सभी प्लांट्स की कुल उत्पादन क्षमता ५० मिलियन टन से भी ज्यादा की है.
जमशेदपुर शहर का निर्माण उनके निर्देशों के अनुसार ही हुआ. उन्होंने दोराब को लिखे पत्र में कहा था, "सड़कें लंबी होनी चाहिए और उसके दोनों तरफ छाएदार पेड़ लगाए जाए. लॉन और बगीचों के लिए पर्याप्त जगह होनी चाहिए. फुटबॉल, हॉकी मैदान के अलावा पार्क के लिए भी जगह होनी चाहिए. हिंदुओं के लिए मंदिर, मुस्लिमों के लिए मस्जिद और ईसाईयों के लिए गिरिजाघर भी होने चाहिए." उनके इस निर्देश का नतीजा बना जमशेदपुर शहर. जमशेदपुर भारत का पहला शहर बना जो ISO 14000 के पर्यावरण के अनुकूल है. और इसका प्रमाण पत्र भी हासिल है. दुनिया भर के दूसरे देशों में भी जब अपने कर्मचारियों के भले के लिए योजनाएं नहीं के बराबर होती थीं, तब टाटा ने श्रमिकों के लिए कल्याणकारी योजनाएं शुरू की थीं. 1877 में पेंशन की व्यवस्था, 1912 में प्रति दिन आठ घंटे की शिफ्ट और 1921 से मातृत्व सुविधाएं मुहैया करानी शुरू कीं.
जमशेद जी का यकीन ये था कि कारोबार तभी आगे बढ़ेगा जब उसमें समाज के बड़े तबके की हिस्सेदारी होगी.
उन्होंने बैंगलोर में इंडियन इंस्टीच्यूट ऑफ़ साइंस की स्थापना की ताकि देश के विकास में योगदान देने के लिए इंजीनियर और वैज्ञानिक तैयार हो सकें. जमशेद जी और उनके बेटों ने अपने निजी धन को भी चैरिटेबल ट्रस्ट के हाथों में सौंप दिया. जिसकी टाटा होल्डिंग कंपनी टाटा संस में 66 फ़ीसदी की हिस्सेदारी है. परिवार के पास अभी भी मात्र तीन फ़ीसदी शेयर हैं और बाकी अलग अलग कंपनियों और शेयर धारकों के पास मौजूद हैं. मुंबई के कारोबारी विश्लेषक जेरी राव के मुताबिक इससे ट्रस्ट की विश्वसनीयता बढ़ती है. राव कहते हैं, "हर कोई ये जानता है कि कंपनी के ज़्यादातर शेयर ट्रस्ट के पास मौजूद हैं और न कि अपना फ़ायदा चाहने वाले व्यक्तियों के पास. इससे फ़ायदा होता है."
टाटा के कारोबार को संभालने वालों में जेआरडी यानी जहांगीर टाटा का अहम योगदान रहा है. वे 1938 में टाटा समूह के चेयरमैन बने. तब उनकी उम्र महज 34 साल थी और वे आधी शताब्दी तक कंपनी के मुखिया बने रहे. भारत के पहले पायलट जेआरडी उद्योगपति नहीं बनना चाहते थे. उनका सपना पायलट बनने का था. इसके चलते वे लुइस बेलराइट से मिले थे, जिन्होंने 1909 में पहली बार इंग्लिश चैनल पर उड़ान भरने का कारनामा दिखाया था.
जेआरडी, भारत में पायलट बनने वाले पहले शख़्स थे. बांबे फ्लाइंग क्लब से जारी उनका लाइसेंस का नंबर 1 था, जिस पर उन्हें काफी गर्व भी था. 1930 में उन्होंने ब्रिटेन से भारत तक अकेले उड़ान भरने की कोशिश की थी. वे ये रेस जीत भी जाते, अगर उन्होंने विमान से जुड़े कुछ अहम स्पार्क प्लग अपने प्रतिद्वंदी को नहीं दिए होते. इस भलमनसाहत की वजह से जेआरडी कुछ घंटों से ये रेस हार गए थे.
दो साल बाद उन्होंने भारत में पहली एयरमेल सर्विस शुरू की. तब वे उस विमान को ख़ुद ही उड़ाया करते थे. उस दौर में कोई रनवे नहीं था, तब वो कीचड़ की जमीन पर विमान उतारते थे और उड़ाते थे. यही मेल सेवा आगे चलकर भारत की पहली एयरलाइन टाटा एयरलाइंस बनी जो बाद में एयर इंडिया के नाम से काफी मशहूर भी हुई. पहले तो ये टाटा और सरकार का संयुक्त उपक्रम था, लेकिन 1953 में सरकार ने देश की वायुसेवा के राष्ट्रीयकरण का फ़ैसला लिया. एयर इंडिया की कामयाबी. जेआरडी को 1978 तक एयरइंडिया के चेयरमैन बने रहे और वे इस कंपनी के अंतरराष्ट्रीय ऑपरेशन का कामकाज भी देखते रहे.
जब सूचना का युग आया तो जेआरडी ने 1968 में टाटा कंसल्टेंसी सर्विस (टीसीएस) की स्थापना की, ताकि कंपनी का पेपरवर्क कंप्यूटर के माध्यम से हो. आज टीसीएस पूरे टाटा समूह की सबसे मुनाफ़े वाली यूनिट है, जो दुनिया भर में कंप्यूटर सॉफ्टवेयर की आपूर्ति करती है. 1991 में रतन टाटा समूह के मुखिया बने. तब उदारीकरण का दौर शुरू हो रहा था और रतन टाटा ने दुनिया भर में पांव पसारने शुरू किए.
टाटा समूह ने टेटली टी का अधिग्रहण किया. इसके अलावा इंश्योरेंस कंपनी एआईजी के साथ उन्होंने बॉस्टन में एक संयुक्त इंश्योरेंस कंपनी शुरू की. उन्होंने यूरोप के कोरस स्टील और डेवू की हैवी वीकल यूनिट का भी अधिग्रहण किया. नैनो कार यानी लखटकिया कार उनका ही सपना था जिसे आम आदमी भी खरीदकर अपने परिवार के साथ कार में चल सके.
दुनिया भर में फैला कारोबार उन्होंने टाटा के कारोबार को हर जगह फैला दिया, चाय से लेकर सूचना तकनीक तक. टाटा भारत का सबसे बड़ा कारोबारी समूह है लेकिन अपने प्रतिद्वंदियों के मुक़ाबले ये हमेशा लो प्रोफाइल समूह रहा है. जेआरडी कंपनी के मुख्यालय के नज़दीक हमेशा किराए के घर में रहे जबकि रतन टाटा काम पर खुद से ड्राइव करके पहुंचते थे या फिर ड्राइवर के साथ आगे ही बैठते थे. 2009 में रतन टाटा का लंबे समय का सपना तब पूरा हुआ जब कंपनी ने सबसे सस्ती कार- नैनो को बाज़ार में उतारा. कार की कीमत थी एक लाख रुपये. हालांकि ये कार बाज़ार में उतनी चली नहीं.
औसतन, टाटा समहू हर साल सामाजिक कार्यों में करीब 20 करोड़ डॉलर खर्च करता है. टाटा स्टील का चैरिटेबल ट्रस्ट ग्रामीण विकास की योजनाओं को जमशेदपुर से सटे आदिवासी इलाकों में चलाता है. ये ट्रस्ट इलाके की महिलाओं के लिए साक्षरता और माइक्रो फाइनेंस के कार्यक्रम चलाता है. आदिवासी म्यूज़िक को संरक्षित रखने के लिए एक प्रोजेक्ट भी है. इस कंपनी का विज्ञापन, उनकी ख्याति की तरह का है, "हम स्टील भी बनाते हैं."... (क्रमश:...)

-    जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.

Saturday, 6 February 2016

दिल्ली की दयनीयता

दिल्ली सबसे बड़े लोकतान्त्रिक देश भारत की राजधानी, मेट्रो सिटी, कीमती शहर, अब स्मार्ट सिटी बनने की तैयारी में है। स्मार्ट सिटी का मतलब सबकुछ स्वचालित होगा. ट्रैफिक ब्यवस्था से लेकर सभी कुछ माउस क्लिक या स्मार्ट फोन पर उपलब्ध होगा। सीधे-सादे शब्दों में कहें तो स्वर्गिक सुख का अहसास होगा। दिल्ली जो दिलवालों की है वह तो सभी स्मार्ट शहरों में आगे होगी। उसी का ट्रेलर शायद अभी दिखाया जा रहा है। पूरी गंदगी फैलाकर सारी ब्यवस्था को ठप्प करने के बाद ही तो उसे सुधारा जायेगा। तब लगेगा के हमारी दिल्ली सच में सभी शहरों से अलग नूतन, नवयौवना, अल्ल्हड़ की भांति सबको रोमांचित करेगी। तभी लोगों को महसूस भी होगा स्मार्ट सिटी क्या होता है?
दिल्ली में नगर निगम के एक लाख से ज़्यादा कर्मचारियों की हड़ताल के चलते सड़कों से लेकर निगम के स्कूल अस्पतालों में असर दिखने लगा है। अपनी मांगों को लेकर एमसीडी कर्मचारियों ने दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के कैंप ऑफिस के बाहर पटपड़गंज में कूढ़े का ढेर लगाकर प्रदर्शन किया। इस हड़ताल में तीनों निगमों के सफाई कर्मचारी, शिक्षक, डॉक्टर सब शामिल हैं। एमसीडी कर्मचारियों ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के घर के सामने और जंतर मंतर पर प्रदर्शन किया था। दिल्ली के तीनों नगर निगमों के कुल सवा लाख कर्मचारी हैं जिनमें से करीब 60 हज़ार सफ़ाई कर्मचारी हैं। सफाई कर्मचारियों के हड़ताल पर चले जाने से सड़कों, गलियों से भी कूड़ा उठना बंद हो गया है।
दिल्ली के तीनों नगर निगम अपने कर्मचारियों को तीन महीने से पैसा नहीं दे पा रहे। निगम कहता है, दिल्ली सरकार उसका फंड नहीं दे रही। जबकि, दिल्ली सरकार का दावा है कि उसने निगमों को इस साल 2000 करोड़ रुपये दे दिए हैं। निगम का दावा 3000 करोड़ का है। कर्मचारियों की मांग है - महीने की पहली तारीख़ को मिले वेतन, तीनों नगर निगमों को फिर से एक किया जाए, बक़ाया वेतन का भुगतान तुरंत हो। दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) के सफाईकर्मियों, स्वास्थ्य कर्मियों की हड़ताल को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट ने निराशा जताई है। कोर्ट ने कहा कि दिल्ली को साफ रखना एमसीडी कर्मचारियों का दायित्व है। सरकार और एमसीडी की लड़ाई से आम जनता को नुकसान हो रहा है। गौरतलब है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कुछ दिनों पहले बंगलोर में(इलाजरत) प्रेस कॉन्फ्रेंस कर हड़ताल कर रहे कर्मचारियों की मांगों पर अपनी बात रखी थी। केजरीवाल ने दोनों (पूर्वी और उत्तरी) एमसीडी को 693 करोड़ रुपए देने की बात कहते हुए हड़ताल खत्म करने की अपील की थी। इस मांग को एमसीडी कर्मचारियों ने ठुकरा दिया है।
एमसीडी कर्मचारियों के यूनियन ने कहा कि केजरीवाल बेवकूफ बना रहे हैं, सफाईकर्मी हड़ताल वापस नहीं लेंगे। केजरीवाल ने एमसीडी के हड़ताली कर्मचारियों को 31 जनवरी तक की सैलरी देने का ऐलान किया है। उन्होंने कहा कि एमसीडी का दिल्ली सरकार पर एक भी पैसा बकाया नहीं, फिर भी वह पैसों का इंतजाम कर रहे हैं। साथ ही उन्होंने बीजेपी पर राजनीति करने का आरोप लगाया है। उन्होंने आरोप लगाया कि एमसीडी में बड़ा घोटाला हुआ है, इसलिए वो अपने खातों की जांच कराने को तैयार नहीं होते हैं।
दिल्ली के उपराज्यपाल नजीब जंग से भी बैठक बेनतीजा निकली है। इससे पूर्व एमसीडी कर्मचारियों को दिल्ली हाईकोर्ट ने फटकार लगाई। हाईकोर्ट ने कहा कि सरकार और एमसीडी की लड़ाई में आम लोग परेशान हो रहे हैं। इस बीच पूर्वी दिल्ली एमसीडी ने कोर्ट को बताया कि आज की तारीख तक का सारा बकाया पैसा सफाईकर्मियों को दे दिया गया है, अब कोई बकाया नहीं है, कोर्ट ने पूछा कि जब पैसा दे दिया है तो कर्मचारी काम पर क्यों नहीं लौट रहे। एमसीडी कर्मचारी समस्या का स्थायी हल चाहते हैं। हड़ताल में तीनों एमसीडी के सफाईकर्मी, डॉक्टर और शिक्षक शामिल हैं, जिसकी वजह से शहर में कूड़ों के ढेर के अलावा अस्पतालों और स्कूलों में भी व्यवस्था चरमरा गई है।
मुझे नहीं पता कि एम सी डी कर्मचारियों की हड़ताल के शिकार आम जनता, दिल्ली सरकार के कुछ मंत्रीगण ही हैं या राज्यपाल, राष्ट्रपति, प्रधान मंत्री और उनके मंत्री परिषद के सदस्य भी हैं। क्या कोर्ट के आँगन में भी किसी ने कचड़ा फेंका या वहां की नालियां भी जाम हैं? जिस रस्ते से VVIP लोग गुजरते हैं, वह रास्ता भी वैसा ही है, जैसा टी वी पर दिखाया जाता है? दिल्ली के स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारी, क्या गंदे माहौल में रहकर सेवा दे रहे हैं? खैर मनाया जाय कि यह बरसात का समय नहीं हैं, नहीं तो सड़कों पर नाव चल रहे होते। महामारी फ़ैल चुकी होती। जीका वायरस की जरूरत ही नहीं पड़ती।
जमशेदपुर का बड़ा हिस्सा टाटा टाउन विभाग के नियंत्रण में है। यहाँ की सफाई सुथराई, बिजली पानी की ब्यवस्था टाटा की ही अनुषंगी इकाई जुस्को द्वारा की जाती है। यहाँ कभी हड़ताल नहीं होता कभी छुट्टी नहीं होती। जुस्को के कर्मचारी अनवरत सेवा में लगे रहते हैं। उन्हें हड़ताल की इजाजत नहीं है। हड़ताल मतलब स्थाई छुट्टी। इसके अधिकांश कर्मचारी ठेका पर काम करते हैं। अगर एक दिन भी बिना उचित वजह के काम पर नहीं आएं तो दूसरे दिन छुट्टी तय है। इसलिए ये लोग जल्दी नागा नहीं करते। प्राइवेट कंपनियों के कर्मचारी/अधिकारी भी बंधुआ मजदूर की भांति काम करते हैं। पर जहाँ कही भी नगरपालिका  म्युनिस्पलिटी, या नगर निगम है। ब्यवस्था ऐसी ही चरमराती रहती है। टैक्स तो सभी अपना समय पर चुकाते हैं पर सुविधा और सेवा समय पर मिले यह कोई जरूरी नहीं है।
'कुशासन करने वाले शासक को सहयोग देने से इंकार करने का अधिकार प्रत्येक व्यक्ति को है।'- महात्मा गांधी 'यदि सरकार भ्रष्टाचार को रोक पाने में नाकाम रहती है, तो उसे टैक्स देने से इंकार करके असहयोग आंदोलन शुरू कर दें।'- हाईकोर्ट नागपुर बेंच.
इन दोनों कथनों में 96 वर्षों का फर्क है, लेकिन अर्थ की दृष्टि से दोनों में कोई अंतर नहीं है। पहले वाक्य में 'कुशासन करने वाले' से मतलब है- अंग्रेजी शासकों से तो दूसरे कथन में जो 'सरकार' है, वह आजाद हिंदुस्तान की अपनी सरकार है। पहले वाक्य के शब्द उस नोटिस से लिए गये हैं, जो महात्मा गांधी ने 22 जून 1920 को वायसराय को दिया था। इसके बाद ही पूरे देश में अंग्रेजों के खिलाफ असहयोग आंदोलन पूरे देश में फैल गया था।
यह दूसरा कथन महाराष्ट्र हाईकोर्ट की नागपुर बेंच का है, जो उसने महाराष्ट्र सरकार और बैंक ऑफ महाराष्ट्र के एक मामले की सुनवाई करते हुए कहे। जाहिर है कि जनहित याचिकाओं की लगातार बढ़ती जा रही संख्याओं ने कोर्ट के सामने प्रशासन का जो चरित्र और लोगों की जिन परेशानियों को प्रस्तुत किया है, उसने कोर्ट को यह कहने के लिए प्रेरित किया होगा। निःसंदेह रूप से इसमें कहीं न कहीं कुछ विशेष न कर पाने की कोर्ट की बेबसी भी झलक रही है। बेबसी यह कि 'अब जो करना है, लोग खुद करें।' ऊपर से शांत और सहज दिखने वाले इस कथन के गर्भ में आक्रोश का जो लावा उबल रहा है, उसकी अनदेखी किया जाना हितकर नहीं होगा।
यह एक बहुत ही व्यावहारिक सवाल है कि 'मुझसे जिस काम के नाम पर पैसा वसूला जा रहा है, वह काम होना ही चाहिए। यदि काम नहीं, तो दाम भी नहीं।' नगर निगम, नगर पालिकायें सम्पत्ति कर लेती हैं, लेकिन कचरों के ढेरों का साम्राज्य फैला हुआ मिलता है। रोड नहीं है, लेकिन रोड टैक्स है। सच यही है कि ऐसे में लोग टैक्स दें तो क्यों दें। वे किस पर भरोसा करके दें। ब्रिटेन में काउंटियां टैक्स लेती हैं। उस रकम की पाई-पाई का हिसाब जनता के लिए डिस्प्ले किया जाता है। वे जितना देते हैं, उससे अधिक वे पाते है। हम यह तो जानते हैं कि हमसे कौन-कौन से टैक्स किस-किस काम के लिए, लिए जा रहे हैं, लेकिन यह नहीं जानते कि उसका होता क्या है। कोर्ट ने इशारा किया है- भ्रष्टाचार।
अंत में मैं यही कहना चाहूंगा कि स्वच्छ भारत का सपना दिखानेवाले प्रधान मंत्री क्या इन सबसे अनजान हैं या अनजान बने रहना चाहते हैं? प्रधान मंत्री आसाम में जाकर बोलते हैं- एक परिवार उन्हें काम नहीं करने देता। पूर्ण बहुमत से बांये गए प्रधान मंत्री के ऐसे बोल?
प्लीज सर! हस्तक्षेप करिए समाधान निकालिए, वरना आप पर से लोगों का भरोसा उठ जायेगा. ऐसे ही अब डगमगाने लगा है।
- जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर

Thursday, 4 February 2016

फूल खिले हैं गुलशन गुलशन!

फूल खिले हैं गुलशन गुलशन, देख के हर्षित होता है मन
अवसादों को दूर हटाकर, आओ घूमे उपवन उपवन!
ठंढ हवा से ये न डरते, तप्त सूर्य के सम्मुख रहते
आस पास को सुरभित करते, तितली संग भ्रमरों का गुंजन
सडकों पर चलती है गाड़ी, शोर शराबा करे सवारी
कहीं अगर कोई दब जाए, नाही सुनते उनका क्रंदन 
मानव जीवन सबसे सस्ता, क़ानून का अब हाल है खस्ता    
उपवन में सजती है क्यारी, माली देखे हो प्रसन्न मन 
उपवन को घर ले आये हैं, गमलों में पौधे भाये हैं.
गुलदाउदी डहलिया गेंदा, लाल गुलाब सुगन्धित गम-गम, 
फूल संग होते हैं कांटे, जीवन ने सुख दुःख हैं बांटे.
सुख में हम सब इतराते हैं, दुःख में क्यों घबराता है मन.
सुख दुःख दोनों नदी किनारे, इनके बीच जीवन के धारे 
दिवा-रात्रि जैसे होते हैं, सुख दुःख में पलता है जीवन 
दुःख को अंतर बीच छुपाकर, स्वर्ण भाँति तन को चमकाकर. 
परहित चाहे वह है मानव, खुशी बिखेरे वह है जीवन 
फूल खिले हैं गुलशन गुलशन, देख के हर्षित होता है मन
जवाहर लाल सिंह ०५.०२.२०१६