कहैं इहै सब सुमृति, इहै सयाने लोग।
तीन दबावत निसक ही, पातक, राजा, रोग।।
अर्थात्
सारे वेद, स्मृतियां और ज्ञानी लोग यही बात बतलाते हैं
कि राजा, रोग, और पाप, ये तीनों दुर्बल को दबाते-सताते हैं.
महिलाएं शरीर और मन से कमजोर हैं इसीलिये इन्हें भी हर जगह हर तरह के जुल्म का शिकार होना पड़ता है. जाट आन्दोलन के दौरान भी यही हुआ. हरियाणा में जाट आरक्षण आंदोलन के दौरान मुरथल ढाबे के पास 10 महिलाओं को गाड़ियों से उतारकर उनसे बदसलूकी और दुष्कर्म किया गया. कई प्रेस फोटोग्राफर बाद में घटना स्थल पहुंचे और वहां महिलाओं के कपड़े और इनर वियर यहाँ-वहां बिखरा देखा. बताया जाता है कि महिलाएं भागकर पास के ढाबे में या खेतों में, तालाबों में छिप गयी और तबतक छुपी रही जबतक उनके घरवाले कपड़े और कम्बल लेकर वहां नहीं पहुँच गए. पुलिस ने भी उन्हें इज्जत का हवाला देकर रिपोर्ट न लिखवाने की सलाह दी. बाद में कई पुलिस अधिकारियों ने इस तरह की घटना से इन्कार किया. चंडीगढ़ हरियाणा के कोर्ट ने खुद संज्ञान लेकर दुष्कर्म की खबरों पर डीजीपी को जमकर फटकार लगाई। कोर्ट ने डीजीपी से मामले की पूरी रिपोर्ट और हरियाणा सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। पीडि़त महिलाओं से बंद लिफाफे में विधि सेवा प्राधिकरण को शिकायत देने को कहा है। हाईकोर्ट ने आश्वस्त किया कि सभी की पहचान गुप्त रखी जाएगी। हाईकोर्ट ने कहा कि मामले में पुलिस का रवैया शर्मनाक रहा है। कोर्ट ने आंदोलन के दौरान आर्थिक क्षति की शिकायतों के लिए हर जिले में हेल्प डेस्क बनाने का भी आदेश दिया। याद रहे कि हाईकोर्ट के जस्टिस एन के सांघी ने बुधवार को इस मामले में स्वत: संज्ञान लिया और इसे कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश को भेज दिया। हाईकोर्ट ने मामले में हरियाणा के महाधिवक्ता को तलब किया। हाईकोर्ट ने फैसला किया कि हर जिले में विधि सहायता प्राधिकरण से आगजनी व बलात्कार जैसी घटनाओं की जांच करवाई जाए। जांच में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट स्तर के अधिकारी हों।
हरियाणा मानवाधिकार आयोग के सदस्य पी पी कपूर और उत्सव बैंस ने हाईकोर्ट में अपना पक्ष रखा। आरोप लगाया कि पुलिस महानिरीक्षक व उपायुक्त गवाहों को धमका रहे हैं। उन्होंने कहा कि मामले की सीबीआई से जांच कराई जानी चाहिए। हरियाणा सरकार ने हिंसा की निरपेक्ष जांच के लिए उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी प्रकाश सिंह और नव नियुक्त एडीजीपी बीके सिन्हा के निर्देशन में कमेटी का गठन किया है। जाट आंदोलन की गाज रोहतक के आईजी श्रीकांत जाधव, डीएसपी अमित दहिया और अमित भाटिया पर गिरी है। सरकार ने तीनों अफसरो को निलंबित कर दिया है। अफसरों पर जाट आरक्षण के दौरान कानून व्यवस्था कायम न रख पाने का आरोप है। सांपला में रैली को लेकर पुलिस व अफसर लापरवाह बने रहे जाधव की जगह पंचकुला के आईजी प्रशासन संजय कुमार को रोहतक का कार्यभार सौंपा गया है।
हरियाणा में जाटों को आरक्षण मिलना लगभग तय है। केंद्र सरकार की ओर इस संबंध में फैसला करने के लिए केंद्रीय मंत्री वेंकैया नायडू के नेतृत्व में कमेटी गठित कर दी गई है, लेकिन क्या इस आरक्षण की आग में आम जनता का जो नुकसान हुआ है, उसकी भरपाई कौन करेगा। सुप्रीम कोर्ट की ओर इस संबंध में बुधवार को आए आदेश के मुताबिक नुकसान की भरपाई आंदोलनकारियों से की जानी चाहिए। इस स्थिति में क्या जाट आंदोलनकारी राज्य के नुकसान की भरपाई करेंगे।
जानकारी के मुताबिक जाट आंदोलन से हरियाणा को करीब ३५,000 करोड़ का नुकसान हुआ है।
अठाइस जिंदगियाँ खाक, 200 से अधिक जख्मी और सदा के लिए जातिगत विद्वेष. यही है हरियाणा में दस दिन चले जाट आरक्षण आंदोलन का लेखा जोखा | आखिर क्यों सुलगा हरियाणा ? क्यों सरकार रही बेखबर ? किसको क्या मिला ? ये वो तमाम प्रश्न हैं, जो हर किसी मन को उद्वेलित करते हैं | इंनका उत्तर जानने के लिए हमे झांकना होगा दो वर्ष पूर्व के घटनाक्रम के भीतर | पिछले 2014 के लोकसभा आम चुनाव से ठीक पहले काँग्रेस ने जाट वोटों को अपने पक्ष में लामबंध करने के लिए मार्च, 2014 में हरियाणा समेत नो राज्यों के जाटों को ओ बी सी श्रेणी में शामिल किया था | हालांकि राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग ने अपनी फरवरी 2014 की रिपोर्ट में जाटों को ओ बी सी श्रेणी में मानने से इंकार कर दिया था, परंतु तत्कालीन यू पी ए सरकार ने चार मार्च, 2014 को जाटों को ओ बी सी श्रेणी में सम्मिलित करने का नोटिफ़िकेशन जारी कर दिया | बाद में सुप्रीम कोर्ट ने मार्च, 2015 में यू पी ए सरकार के इस नोटिफ़िकेशन को निरस्त कर दिया | सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने जाटों के पैरों तले की जमीन खिसका दी | जाटों के जो बच्चे ओ बी सी श्रेणी के तहत 2014 के बाद विभिन्न सरकारी नौकरियों में चयनित हो चुके थे और नौकरी ग्रहण करने का इंतजार कर रहे थे, उनकी आशाओं पर बाढ़ की तरह पानी फिर गया | इस एक झटके ने बेरोजगार जाट युवाओं की नौकरी की आस धूमिल कर दी | इन्दिरा साहनी केस में 1992 में सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला दिया था कि आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवार जो खुली प्रतियोगिता में सामान्य श्रेणी के उम्मीदवारों के साथ मेरिट में बराबरी के रैंक पर रहते हैं, उन्हें आरक्षित पदों की बजाय सामान्य श्रेणी में समायोजित किया जाए और आरक्षित श्रेणी की सीटों को तो उन उम्मीदवारों से भरा जाना चाहिये जो आरक्षित वर्ग में हैं तथा जिनकी मेरिट सामान्य श्रेणी के कट आफ मार्क्स से नीचे प्रारम्भ होती है | सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से आरक्षित श्रेणी के लोगों को डबल बेनीफिट मिलने लगा | उस श्रेणी के होशियार बच्चे तो जनरल श्रेणी में समायोजित होने लगे तथा निम्न मेरिट वाले बच्चे अपनी अपनी आरक्षित श्रेणी एस सी /एसटी /ओ बी सी में स्थान पाने लगे | इसका नुकसान सामान्य श्रेणी को सीधा यह हुआ कि आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवार अपनी आरक्षित सीटों से अधिक सीटों पर चयनित होने लगे और सामान्य श्रेणी के उम्मीदवारों का दायरा सिमट गया | जब जाटों ने देखा कि उनके सम वर्गीय जातियाँ यथा यादव, गुर्जर, सैनी आदि डबल फायदा उठा रहे हैं और सामान्य श्रेणी में अन्य उच्च जातियाँ जो आर्थिक, सामाजिक व शैक्षणिक रूप से जाटों से ऊपर एवं समृद्ध हैं उन्हें मेरिट में नहीं आने दे रही हैं, तो बेरोजगार जाट युवाओं के मन में कुंठा घर कर गई | यही कुंठा ग्रस्त युवा येन-केन प्रकारेण आरक्षण पाने को आतुर हो उठे | उसके आन्दोलन को ज्यादा उग्र और हिंसक बनाने में अवश्य ही किसी राजनीतिक नेता का हाथ रहा होगा.
यह आरक्षण नेताओं की देन है। हमें आरक्षण का लाभ न पहले मिला है और न ही अब चाहिए। हमें केवल हमारा बेटा चाहिए। जिसकी इन दंगों में मौत हो गई। पीजीआई एमएस रोहतक के पोस्टमार्टम रूम के बाहर अपने बेटे मनजीत की लाश का इंतजार कर रहे जयभगवान कहते हैं कि हम दलित समुदाय से संबंधित हैं। बीते शुक्रवार को उग्र भीड़ ने उसके लड़के मनजीत को उस समय मार दिया जब वह फैक्टरी से वापस लौट रहा था। मनजीत अपने पीछे विधवा पत्नी के अलावा एक पांच वर्ष का बेटा और सात वर्ष की बेटी छोड़ गया है। मनजीत की तरह ही इस आंदोलन का शिकार हुए 17 वर्षीय नितिन शर्मा के पिता सुरेंद्र शर्मा (पेशे से टैक्सी चालक) ने बताया कि उन्हें नहीं पता उनके बेटे का क्या कसूर था। आंदोलनकारियों ने किला रोड़ पर उसके बेटे की गोली मारकर हत्या कर दी। रोहतक के बाबरा मोहल्ला निवासी सुरेंद्र के अनुसार वह किला रोड़ पर अपने रिश्तेदार की दुकान में हुई लूटपाट के बाद उनकी मदद के लिए गए थे। इसी दौरान आंदोलकारियों का एक समूह आया और उनकी आंखों के सामने नितिन को मौत के घाट उतार दिया। यह बताते ही सुरेंद्र फूट-फूट कर रोने लगते हैं। नितिन की मां सरोज ने केवल इतना ही कहा कि पचास वर्षों में उन्होंने रोहतक में इतना उपद्रव कभी नहीं देखा।
इस आंदोलन में गैर-जाट ही नहीं बल्कि जाटों ने भी कई अपनों को खोया है। झज्जर में सेना की गोली का शिकार होकर मारे गए अर्जुन सिंह के भाई भगत सिंह ने बताया कि उसका भाई महज 18 वर्ष का था वह सेना और आंदोलनकारियों की गोली का शिकार हो गया। घटना के दौरान अर्जुन अपने दोस्तों के साथ जा रहा था। आंदोलनकारियों को भले ही आरक्षण मिल जाए और सरकार आर्थिक नुकसान की भरपाई भी कर दे लेकिन जिन्होंने अपने पति, बेटे व भाई को खोया है उनकी वापसी कभी नहीं हो सकती।
सवाल यह है कि इतनी बड़ी हिंसा क्या किसी राजनीतिक समर्थन के सम्भव थी. पुलिस यहाँ तक की सेना भी बुलाई गयी पर आंदोलनकारी अपनी मनमानी करते रहे. क्या सचमुच ये लोग इतने कमजोर हैं कि उन्हें आरक्षण चाहिए, मीडिया रिपोर्ट के अनुसार चुन चुन कर पंजाबियों और सैनियों को निशाना बनाया गया, लूटा गया, आग लगा दी गयी, गोलियों से भून दिया गया. जो भी हुआ बहुत ही गलत हुआ. राज्य सरकार आँख मूँद कर सारा तमाशा देखती रही. अब कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया है. राज्य सरकार और प्रशासन को इस समस्या से निपटने के कौशल होने चाहिए थे. सेना कि मदद ली गयी पर वह नाकाफी साबित हुई. हार्दिक पटेल द्वारा आहूत पटेलों के लिए आरक्षण के मांग में भी इतनी हिंशा नहीं हुई थी. हार्दिक आज कई धाराओं के अंतर्गत जेल में है, पर यहाँ जाटों का कोई नेता भी सामने नहीं दीखता, अगर होंगे भी तो परदे के पीछे से उकसानेवाले. राज्य सरकार इतनी बेबश हो सकती है, दंगा से भी क्रूरतम कृत्य यहाँ हुए हैं. एक बार सरकार और जाट समर्थकों के बीच वार्ता होनी चाहिए और इस तरह के हिन्सात्मक आंदोलन को किसी भी सूरत में बढ़ावा नहीं दिया जाना चाहिए. लोकतंत्र का मतलब हिन्सात्मक आंदोलन नहीं हो सकता. फिर आतंकवादियों और नक्सलियों के साथ इनकी तुलना क्यों न की जाय. ऊपर से ऐसा लग रहा है कि जैसे हरियाणा में कुछ हुआ ही नहीं. संसद में पुराने मुद्दे को कुरेदा जा रहा है, पर इस वर्तमान मुद्दे पर सभी प्रमुख नेता खामोश है. प्रधान मंत्री भी मौन हैं. यह ठीक बात नहीं है. पीड़ितों को न्याय मिलना चाहिए जिम्मेदार लोगों पर उचित कार्रवाई. तभी होगा सबका साथ और सबका विकास. जय हिन्द!
- जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.
तीन दबावत निसक ही, पातक, राजा, रोग।।
अर्थात्
सारे वेद, स्मृतियां और ज्ञानी लोग यही बात बतलाते हैं
कि राजा, रोग, और पाप, ये तीनों दुर्बल को दबाते-सताते हैं.
महिलाएं शरीर और मन से कमजोर हैं इसीलिये इन्हें भी हर जगह हर तरह के जुल्म का शिकार होना पड़ता है. जाट आन्दोलन के दौरान भी यही हुआ. हरियाणा में जाट आरक्षण आंदोलन के दौरान मुरथल ढाबे के पास 10 महिलाओं को गाड़ियों से उतारकर उनसे बदसलूकी और दुष्कर्म किया गया. कई प्रेस फोटोग्राफर बाद में घटना स्थल पहुंचे और वहां महिलाओं के कपड़े और इनर वियर यहाँ-वहां बिखरा देखा. बताया जाता है कि महिलाएं भागकर पास के ढाबे में या खेतों में, तालाबों में छिप गयी और तबतक छुपी रही जबतक उनके घरवाले कपड़े और कम्बल लेकर वहां नहीं पहुँच गए. पुलिस ने भी उन्हें इज्जत का हवाला देकर रिपोर्ट न लिखवाने की सलाह दी. बाद में कई पुलिस अधिकारियों ने इस तरह की घटना से इन्कार किया. चंडीगढ़ हरियाणा के कोर्ट ने खुद संज्ञान लेकर दुष्कर्म की खबरों पर डीजीपी को जमकर फटकार लगाई। कोर्ट ने डीजीपी से मामले की पूरी रिपोर्ट और हरियाणा सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। पीडि़त महिलाओं से बंद लिफाफे में विधि सेवा प्राधिकरण को शिकायत देने को कहा है। हाईकोर्ट ने आश्वस्त किया कि सभी की पहचान गुप्त रखी जाएगी। हाईकोर्ट ने कहा कि मामले में पुलिस का रवैया शर्मनाक रहा है। कोर्ट ने आंदोलन के दौरान आर्थिक क्षति की शिकायतों के लिए हर जिले में हेल्प डेस्क बनाने का भी आदेश दिया। याद रहे कि हाईकोर्ट के जस्टिस एन के सांघी ने बुधवार को इस मामले में स्वत: संज्ञान लिया और इसे कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश को भेज दिया। हाईकोर्ट ने मामले में हरियाणा के महाधिवक्ता को तलब किया। हाईकोर्ट ने फैसला किया कि हर जिले में विधि सहायता प्राधिकरण से आगजनी व बलात्कार जैसी घटनाओं की जांच करवाई जाए। जांच में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट स्तर के अधिकारी हों।
हरियाणा मानवाधिकार आयोग के सदस्य पी पी कपूर और उत्सव बैंस ने हाईकोर्ट में अपना पक्ष रखा। आरोप लगाया कि पुलिस महानिरीक्षक व उपायुक्त गवाहों को धमका रहे हैं। उन्होंने कहा कि मामले की सीबीआई से जांच कराई जानी चाहिए। हरियाणा सरकार ने हिंसा की निरपेक्ष जांच के लिए उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी प्रकाश सिंह और नव नियुक्त एडीजीपी बीके सिन्हा के निर्देशन में कमेटी का गठन किया है। जाट आंदोलन की गाज रोहतक के आईजी श्रीकांत जाधव, डीएसपी अमित दहिया और अमित भाटिया पर गिरी है। सरकार ने तीनों अफसरो को निलंबित कर दिया है। अफसरों पर जाट आरक्षण के दौरान कानून व्यवस्था कायम न रख पाने का आरोप है। सांपला में रैली को लेकर पुलिस व अफसर लापरवाह बने रहे जाधव की जगह पंचकुला के आईजी प्रशासन संजय कुमार को रोहतक का कार्यभार सौंपा गया है।
हरियाणा में जाटों को आरक्षण मिलना लगभग तय है। केंद्र सरकार की ओर इस संबंध में फैसला करने के लिए केंद्रीय मंत्री वेंकैया नायडू के नेतृत्व में कमेटी गठित कर दी गई है, लेकिन क्या इस आरक्षण की आग में आम जनता का जो नुकसान हुआ है, उसकी भरपाई कौन करेगा। सुप्रीम कोर्ट की ओर इस संबंध में बुधवार को आए आदेश के मुताबिक नुकसान की भरपाई आंदोलनकारियों से की जानी चाहिए। इस स्थिति में क्या जाट आंदोलनकारी राज्य के नुकसान की भरपाई करेंगे।
जानकारी के मुताबिक जाट आंदोलन से हरियाणा को करीब ३५,000 करोड़ का नुकसान हुआ है।
अठाइस जिंदगियाँ खाक, 200 से अधिक जख्मी और सदा के लिए जातिगत विद्वेष. यही है हरियाणा में दस दिन चले जाट आरक्षण आंदोलन का लेखा जोखा | आखिर क्यों सुलगा हरियाणा ? क्यों सरकार रही बेखबर ? किसको क्या मिला ? ये वो तमाम प्रश्न हैं, जो हर किसी मन को उद्वेलित करते हैं | इंनका उत्तर जानने के लिए हमे झांकना होगा दो वर्ष पूर्व के घटनाक्रम के भीतर | पिछले 2014 के लोकसभा आम चुनाव से ठीक पहले काँग्रेस ने जाट वोटों को अपने पक्ष में लामबंध करने के लिए मार्च, 2014 में हरियाणा समेत नो राज्यों के जाटों को ओ बी सी श्रेणी में शामिल किया था | हालांकि राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग ने अपनी फरवरी 2014 की रिपोर्ट में जाटों को ओ बी सी श्रेणी में मानने से इंकार कर दिया था, परंतु तत्कालीन यू पी ए सरकार ने चार मार्च, 2014 को जाटों को ओ बी सी श्रेणी में सम्मिलित करने का नोटिफ़िकेशन जारी कर दिया | बाद में सुप्रीम कोर्ट ने मार्च, 2015 में यू पी ए सरकार के इस नोटिफ़िकेशन को निरस्त कर दिया | सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने जाटों के पैरों तले की जमीन खिसका दी | जाटों के जो बच्चे ओ बी सी श्रेणी के तहत 2014 के बाद विभिन्न सरकारी नौकरियों में चयनित हो चुके थे और नौकरी ग्रहण करने का इंतजार कर रहे थे, उनकी आशाओं पर बाढ़ की तरह पानी फिर गया | इस एक झटके ने बेरोजगार जाट युवाओं की नौकरी की आस धूमिल कर दी | इन्दिरा साहनी केस में 1992 में सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला दिया था कि आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवार जो खुली प्रतियोगिता में सामान्य श्रेणी के उम्मीदवारों के साथ मेरिट में बराबरी के रैंक पर रहते हैं, उन्हें आरक्षित पदों की बजाय सामान्य श्रेणी में समायोजित किया जाए और आरक्षित श्रेणी की सीटों को तो उन उम्मीदवारों से भरा जाना चाहिये जो आरक्षित वर्ग में हैं तथा जिनकी मेरिट सामान्य श्रेणी के कट आफ मार्क्स से नीचे प्रारम्भ होती है | सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से आरक्षित श्रेणी के लोगों को डबल बेनीफिट मिलने लगा | उस श्रेणी के होशियार बच्चे तो जनरल श्रेणी में समायोजित होने लगे तथा निम्न मेरिट वाले बच्चे अपनी अपनी आरक्षित श्रेणी एस सी /एसटी /ओ बी सी में स्थान पाने लगे | इसका नुकसान सामान्य श्रेणी को सीधा यह हुआ कि आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवार अपनी आरक्षित सीटों से अधिक सीटों पर चयनित होने लगे और सामान्य श्रेणी के उम्मीदवारों का दायरा सिमट गया | जब जाटों ने देखा कि उनके सम वर्गीय जातियाँ यथा यादव, गुर्जर, सैनी आदि डबल फायदा उठा रहे हैं और सामान्य श्रेणी में अन्य उच्च जातियाँ जो आर्थिक, सामाजिक व शैक्षणिक रूप से जाटों से ऊपर एवं समृद्ध हैं उन्हें मेरिट में नहीं आने दे रही हैं, तो बेरोजगार जाट युवाओं के मन में कुंठा घर कर गई | यही कुंठा ग्रस्त युवा येन-केन प्रकारेण आरक्षण पाने को आतुर हो उठे | उसके आन्दोलन को ज्यादा उग्र और हिंसक बनाने में अवश्य ही किसी राजनीतिक नेता का हाथ रहा होगा.
यह आरक्षण नेताओं की देन है। हमें आरक्षण का लाभ न पहले मिला है और न ही अब चाहिए। हमें केवल हमारा बेटा चाहिए। जिसकी इन दंगों में मौत हो गई। पीजीआई एमएस रोहतक के पोस्टमार्टम रूम के बाहर अपने बेटे मनजीत की लाश का इंतजार कर रहे जयभगवान कहते हैं कि हम दलित समुदाय से संबंधित हैं। बीते शुक्रवार को उग्र भीड़ ने उसके लड़के मनजीत को उस समय मार दिया जब वह फैक्टरी से वापस लौट रहा था। मनजीत अपने पीछे विधवा पत्नी के अलावा एक पांच वर्ष का बेटा और सात वर्ष की बेटी छोड़ गया है। मनजीत की तरह ही इस आंदोलन का शिकार हुए 17 वर्षीय नितिन शर्मा के पिता सुरेंद्र शर्मा (पेशे से टैक्सी चालक) ने बताया कि उन्हें नहीं पता उनके बेटे का क्या कसूर था। आंदोलनकारियों ने किला रोड़ पर उसके बेटे की गोली मारकर हत्या कर दी। रोहतक के बाबरा मोहल्ला निवासी सुरेंद्र के अनुसार वह किला रोड़ पर अपने रिश्तेदार की दुकान में हुई लूटपाट के बाद उनकी मदद के लिए गए थे। इसी दौरान आंदोलकारियों का एक समूह आया और उनकी आंखों के सामने नितिन को मौत के घाट उतार दिया। यह बताते ही सुरेंद्र फूट-फूट कर रोने लगते हैं। नितिन की मां सरोज ने केवल इतना ही कहा कि पचास वर्षों में उन्होंने रोहतक में इतना उपद्रव कभी नहीं देखा।
इस आंदोलन में गैर-जाट ही नहीं बल्कि जाटों ने भी कई अपनों को खोया है। झज्जर में सेना की गोली का शिकार होकर मारे गए अर्जुन सिंह के भाई भगत सिंह ने बताया कि उसका भाई महज 18 वर्ष का था वह सेना और आंदोलनकारियों की गोली का शिकार हो गया। घटना के दौरान अर्जुन अपने दोस्तों के साथ जा रहा था। आंदोलनकारियों को भले ही आरक्षण मिल जाए और सरकार आर्थिक नुकसान की भरपाई भी कर दे लेकिन जिन्होंने अपने पति, बेटे व भाई को खोया है उनकी वापसी कभी नहीं हो सकती।
सवाल यह है कि इतनी बड़ी हिंसा क्या किसी राजनीतिक समर्थन के सम्भव थी. पुलिस यहाँ तक की सेना भी बुलाई गयी पर आंदोलनकारी अपनी मनमानी करते रहे. क्या सचमुच ये लोग इतने कमजोर हैं कि उन्हें आरक्षण चाहिए, मीडिया रिपोर्ट के अनुसार चुन चुन कर पंजाबियों और सैनियों को निशाना बनाया गया, लूटा गया, आग लगा दी गयी, गोलियों से भून दिया गया. जो भी हुआ बहुत ही गलत हुआ. राज्य सरकार आँख मूँद कर सारा तमाशा देखती रही. अब कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया है. राज्य सरकार और प्रशासन को इस समस्या से निपटने के कौशल होने चाहिए थे. सेना कि मदद ली गयी पर वह नाकाफी साबित हुई. हार्दिक पटेल द्वारा आहूत पटेलों के लिए आरक्षण के मांग में भी इतनी हिंशा नहीं हुई थी. हार्दिक आज कई धाराओं के अंतर्गत जेल में है, पर यहाँ जाटों का कोई नेता भी सामने नहीं दीखता, अगर होंगे भी तो परदे के पीछे से उकसानेवाले. राज्य सरकार इतनी बेबश हो सकती है, दंगा से भी क्रूरतम कृत्य यहाँ हुए हैं. एक बार सरकार और जाट समर्थकों के बीच वार्ता होनी चाहिए और इस तरह के हिन्सात्मक आंदोलन को किसी भी सूरत में बढ़ावा नहीं दिया जाना चाहिए. लोकतंत्र का मतलब हिन्सात्मक आंदोलन नहीं हो सकता. फिर आतंकवादियों और नक्सलियों के साथ इनकी तुलना क्यों न की जाय. ऊपर से ऐसा लग रहा है कि जैसे हरियाणा में कुछ हुआ ही नहीं. संसद में पुराने मुद्दे को कुरेदा जा रहा है, पर इस वर्तमान मुद्दे पर सभी प्रमुख नेता खामोश है. प्रधान मंत्री भी मौन हैं. यह ठीक बात नहीं है. पीड़ितों को न्याय मिलना चाहिए जिम्मेदार लोगों पर उचित कार्रवाई. तभी होगा सबका साथ और सबका विकास. जय हिन्द!
- जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.