Saturday, 24 December 2016

आज भी खरे हैं तालाब - अनुपम मिश्र

रवीश कुमार के शब्दों में – “सोचा नहीं था कि जिनसे ज़िंदगी का रास्ता पूछता था, आज उन्हीं के ज़िंदगी से चले जाने की ख़बर लिखूंगा. सोमवार (१९-१२-२०१६) की सुबह दिल्ली के एम्स अस्पताल में अनुपम मिश्र ने अंतिम सांस ली. अनुपम मिश्र की यह किताब 1993 में छप गई थी लेकिन मेरे हाथ लगी 28 अगस्त, 2007 को. इस किताब के पहले पन्ने पर लेखक का नाम नहीं है. भीतर कहीं बहुत छोटे से प्रिंट में संपादन अनुपम मिश्र लिखा है. ये उनकी फितरत की वजह से हुआ होगा कि कोई इस किताब की बजाए उनकी चर्चा न करने लगे, इसलिए वे बात को आगे रखते थे और अपने नाम को पीछे. दस साल तक भारत के अलग-अलग इलाकों में यात्राएं कर अनुपम मिश्र ने तालाब बनाने की हमारी विशाल परंपरा, उसकी तकनीक और शब्दों को जुटाया था. हिन्दी का ही अनुमानित हिसाब है कि इस किताब की ढाई लाख प्रतियां बिकी हैं. मलयाली, कन्नड़, तेलुगू, तमिल, बांग्ला, गुजराती, पंजाबी, उर्दू के अलावा मंदारिन, अंग्रेज़ी और फ्रेंच में भी इसका अनुवाद है. जिस किसी ने पढ़ा वो तालाब बनाने की भारतीय परंपरा का कायल हो गया. यह सही है कि हमने तमाम तालाब मिटा दिये लेकिन यह भी सही है कि इस किताब को पढ़ने के बाद लोगों ने फिर से कई तालाब बना दिये. अनुपम मिश्र राजस्थान और बुंदेलखंड के गांव-गांव घूमते रहे, लोगों को बताते रहे कि आपकी तकनीक है, आपकी विरासत है, तालाब बनाने में कोई ख़र्चा नहीं आता है, मिलकर बना लो. क्यों हम सब अकाल, सुखाड़ से मर रहे हैं.
सागर, सरोवर, सर चारों तरफ मिलेंगे. सरोवर कहीं सरवर भी है. आकार में बड़े और छोटे तालाबों का नामकरण पुलिंग और स्त्रीलिंग शब्दों की इन जोड़ियों से जोड़ा जाता रहा है. जोहड़-जोहड़ी, बंध-बंधिया, ताल-तलैया, पोखर-पोखरी. डिग्गी हरियाणा और पंजाब में कहा जाता है. कहीं चाल कहीं खाल, कहीं ताल तो कहीं तोली, कहीं चौरा, चौपड़ा, चौधरा, तिघरा, चार घाट तीन घाट, अठघट्टी पोखर. तालाब के अलग-अलग घाट अलग-अलग काम के लिए होते थे. छत्तीसगढ़ में तालाब के डौका घाट पुरुषों के लिए तो डौकी घाट स्त्रियों के लिए. गुहिया पोखर, अमहा ताल, डबरा, बावड़ी, गुचकुलिया, खदुअन. जिस तालाब में मगरमच्छ होते थे उनके नाम होते थे मगरा ताल, नकरा ताल. बिहार में बराती ताल भी होता है. बिहार के लखीसराय में कोई रानी थी जो हर दिन एक तालाब में नहाती थी तो वहां 365 तालाब बन गए. स्वाद के हिसाब से महाराष्ट्र में तालाब का नाम जायकेदार या चवदार ताल पड़ा. ऐरी, चेरी दक्षिण में तालाब को कहा गया. पुड्डुचेरी राज्य के नाम का मतलब ही है नया तालाब.
इसी किताब में रीवा के जोड़ौरी गांव का ज़िक्र है, जहां 2500 की आबादी पर 12 तालाब थे. किताब 1993 की है, तो अब क्या हालत बताना मुश्किल है, फिर भी 150 आबादी पर एक तालाब का औसत. अनुपम जी ने यह सवाल उठाया कि आखिर क्या हुआ कि जो तकनीक और परंपरा कई हज़ार साल तक चली वो बीसवीं सदी के बाद बंद हो गई. लिखते हैं कि कोई सौ बरस पहले मास प्रेसिडेंसी में 53000 तालाब थे और मैसूर में 1980 तक 39000 तालाब. बीसवीं सदी के प्रारंभ तक भारत में 11-12 लाख तालाब थे. अनुपम जी ने लिखा है कि इस नए समाज के मन में इतनी भी उत्सकुता नहीं बची है कि उससे पहले के दौर में इतने सारे तालाब भला कौन बनाता था. गजधर यानी जो नापने के काम आता है. तीन हाथ की लोहे की छड़ लेकर घूमता था. गजधर वास्तुकार थे. गजधर में भी सिद्ध होते थे जो सिर्फ अंदाज़े से बता देते थे कि यहां पानी है.
हम पानी पीते तो हैं, मगर पानी के बारे में कम जानते हैं. धीरे-धीरे कंपनियों के नाम जानेंगे और पानी के बारे में भूल जाएंगे. अनुपम मिश्र की किताब की अंतिम पंक्ति यही है, अच्छे-अच्छे काम करते जाना. गांधी मार्ग पत्रिका की भाषा में उतर कर देखिये आपको चिढ़ हिंसा, कुढ़न, आक्रोश का नामो निशान नहीं मिलेगा. ऐसी भाषा बहुत कम लोग लिख पाते हैं. पूरी तरह से लोकतांत्रिक व्यक्तित्व.
अनुपम मिश्र गए हैं, ये बड़ी बात नहीं है, पानी को जानने वाला समाज चला गया, ये बड़ी बात है. उस समाज का दस्तावेज़ भी तैयार है, फिर भी किसी को फर्क नहीं पड़ता ये बड़ी बात है. आप ये न समझियेगा कि कोई लेखक गया है, आदमी को आदमी बनाने का एक स्कूल बंद हो गया है.”
ऊपर के शब्द रवीश जी के हैं जिन्हें मैंने उनके विचार के साईट से लिया है. उसी के अगले हिस्से में अनुपम जी के संवाद सुनने को मिले, जिसे उन्होंने २०१२ के हमलोग कार्यक्रम में व्यक्त किया था. उन्होंने बताया की जो पानी हम खरीदकर पीते हैं वह बहुत सस्ता है. उसे दूध से भी महंगा होना चाहिए. राजस्थान के लोग जानते हैं पानी का महत्व, पानी संरक्षण का महत्त्व, पानी के तालाब और कुंएं का महत्व. दिल्ली वाले तो पूरी यमुना पी गए. अब गंगा और भागीरथी को पीने में लगे हैं. अब हिमाचल के रेणुका झील से पानी लेने की बात चल रही है. हरियाणा के पानी पर अभी दिल्ली निर्भर कर रही है. बीच-बीच में दोनों सरकारों के बीच बात-चीत और तकरारें भी होती रहती हैं. १०० साल पहले दिल्ली में ८०० तालाब थे, दिल्ली के सभी ८०० तालाब कहाँ गए? तालाबो के ऊपर घर बन गए दुकानें बन गयी, बहुत सारे मॉल भी बन गए. हम तालाब क्यों नहीं बनवाते? मच्छर क्यों अधिक हो गए हैं? तालाब की मछलियां मच्छरों के लार्वा को खा जाती हैं. प्रकृति ने रचना बड़ी सोच समझकर की है. हमने प्रकृति का क्षरण किया है. ८०० साल पहले जैसलमेर का तालाब जन भागीदारी से बना था. उसे बनाए के लिए राजा के साथ पूरी प्रजा ने भी कुदाल चलाये थे.
जमशेदपुर में अभीतक शहर पानी के मामले में रिवर-टू-रिवर सिस्टम पर काम कर रहा था। अब नदी पर निर्भरता को कम किया जाएगा। इस्तेमाल किया हुआ पानी नदी में नहीं बहाया जाएगा, बल्कि उसे सीवरेज प्लांट में साफ करके उसका इस्तेमाल शहर के पार्कों और गार्डेन में सिंचाई में किया जाएगा.
अब टाटा प्रबंधन शहर को साफ और सुंदर बनाए रखने के साथ-साथ जीरो वाटर डिस्चार्ज(या डिस्चार्ज लेस वाटर) की योजना पर काम कर रहा है. जुस्को(टाटा की एक इकाई) शहर की सात लाख की आबादी को जलापूर्ति करती है. शहर की 90 प्रतिशत आबादी सीधे पाइपलाइन से जुड़ी हुई है. लोग नल के पानी का इस्तेमाल करते हैं. शहर में पानी की जरूरत को पूरा करने के लिए 30 एकड़ में फैला डिमना लेक है, जिसकी क्षमता 35000 मिलियन लीटर है. डिमना लेक को जमशेदजी नुसेरवानजी टाटा ने बनवाया था. इसमें पहाड़ों का पानी आकर जमा होता है. इसे साफ़ सुथरा रक्खा जाता है. इतना साफ़ कि बिना फ़िल्टर किये भी इसे पीया जा सकता है. इधर झाड़खंड सरकार ने भी तालाब और डोभा(छोटे) तालाब बनवाने में रूचि दिखलाई है. इससे लोगों को रोजगार के साथ साथ जल की भी आत्म निर्भरता बढ़ी है. हमें प्रयास करने ही होंगे. जल संरक्षण करना ही होगा. भूमि जल का स्तर जिस तरह से नीचे जा रहा है हम अगर कुछ नहीं करेंगे तो एक दिन यह जल दुर्लभ हो जायेगा. तालाब में मछलियां होती हैं, मछलियां बहुत लोगों के लिए स्वादिष्ट और पौस्टिक आहार भी है. इसके अलावा यह जल को साफ रखती हैं. कीड़े मकोड़ों को खा जाती हैं.
वर्षा जल को नहीं सहेजेंगे तो अब शहर डूबने लगेंगे, डूब भी रहे हैं. पानी को जानिए, पहचानिये, कद्र कीजिये, पूजा कीजिये, लोग करते थे, करते हैं. आज छठ पर्व एक उदाहरण है और भी कई पर्व त्यौहार जैसे गंगा स्नान, कुम्भ स्नान, मकर संक्रांति आदि जलाशयों के निकट मनाये जाते हैं. ‘जल ही जीवन है’ के साथ दिवंगत अनुपम मिश्र को मेरी भी भाव-भीनी श्रद्दांजलि!

-    - जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.   

Sunday, 18 December 2016

राजनीतिक दलों को कर-राहत क्यों?

नोटबंदी के बाद राजनीतिक दलों के खातों में चाहे जितनी भी रकम जमा हुई हो, उसकी जांच नहीं की जाएगी. सरकार के इस फैसले पर सवाल उठने लगे हैं. साथ ही मांग उठने लगी है कि इस छूट को वापस लिया जाना चाहिए. पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी का कहना है कि जब सरकार रिक्शेवाले, सब्जीवाले और मजदूर तक से उसकी आय का हिसाब मांग रही है तो राजनीतिक दलों से क्यों नहीं? वहीं पूर्व जस्टिस संतोष हेगड़े का कहना है कि नोटबंदी के बाद तो राजनीतिक दलों को भी पारदर्शिता से काम करना चाहिए और उन्हें टैक्स संबंधी सभी सुविधाएं भी वापस होनी चाहिए. श्री हेगड़े ने कहा कि यह अश्चर्यजनक है कि राजनीतिक दलों को सिर्फ उस लेन-देन का ब्योरा चुनाव आयोग के समक्ष पेश करना होता है, जो 20 हजार या उससे ज्यादा हो. इसी का लाभ उठाकर तमाम राजनीतिक दलों पर कालेधन को सफेद करने और चुनावों में बेहिसाब कालाधन खर्च करने के आरोप लगते रहे हैं.
इसके बाद राजस्व सचिव अढिया का दिया गया जवाब : नोटबंदी के बाद कोई भी पार्टी 500 और 1000 रुपए के पुराने नोटों को चंदे के तौर पर नहीं ले सकती. (पर जांच कौन करेगा? चंदा नोट बंदी के पहले का है या बाद का) राजस्व सचिव हसमुख अढिया ने ट्वीट कर कहा- ‘राजनीतिक दलों को दी जा रही कथित छूट से संबंधित रिपोर्ट्स गलत और भ्रामक हैं.’ राजनीतिक दलों को मिलने वाला चंदा इनकम टैक्स एक्ट, 1961 के सेक्शन 13A के तहत आता है और इसके प्रावधानों में किसी तरह का बदलाव नहीं है.
ब्लैक से व्हाइट मनी का ऐसे चलता है खेल
1. पार्टी बनाकर जनप्रतिनिधित्व कानून 1951 के तहत रजिस्टर्ड कराया जाता है। ऐसी करीब 1000 राजनीतिक पार्टियां रजिस्टर्ड हैं, जिन्होंने 2014 में लोकसभा चुनाव नहीं लड़ा।
2. कालाधन पार्टी को टुकड़ों में दिया जाता है। ज्यादातर चंदा 20 हजार से कम की रकम में होता है।
3. 20 हजार रुपए से कम चंदा दिखाने के लिए कार्यकर्ताओं के नाम का इस्तेमाल होता है।
4. पार्टी के अकाउंट में जमा इस राशि पर टैक्स नहीं लगता है.
“पंजीकरण के बरसों बाद भी चुनाव न लड़ने वाले दलों का मकसद क्या है? जब चुनाव नहीं लड़ना है तो पंजीकरण का क्या मतलब? अंदेशा है कि ये आयकर छूट की आड़ में कालेधन को सफेद बना रहे होंग.” -संतोष हेगड़े, पूर्व न्यायाधीश, सुप्रीम कोर्ट
“पूरे देश को कैशलेस भुगतान की ओर मोड़ा जा रहा है तो पार्टियों के चंदे को भी ऑनलाइन लेने का नियम बनना चाहिए. सरकार को तत्काल छूट समाप्त कर इनके खातों की जांच थर्ड पार्टी से करवानी चाहिए” – एसवाई कुरैशी, पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त
“राजनीतिक दलों से क्यों नहीं पूछा जाता कि उनके पास चंदे की रकम कहां से आई? जब नोटबंदी के बाद केंद्र सरकार ने 51 संशोधन जारी किए हैं तो एक संशोधन पार्टियों को मिलने वाली छूट पर लाना चाहिए.” – योगेंद्र यादव, स्वराज अभियान के अध्यक्ष
उधर वित्त मंत्री अरुण जेटली ने राजनीतिक दलों को कर छूट पर संदेह की स्थिति को दूर करते हुए शनिवार को कहा कि वे 500 एवं 1000 रुपये के पुराने नोटों में चंदा स्वीकार नहीं कर सकते क्योंकि उन्हें पिछले महीने ही अस्वीकार कर दिया गया था. उन्होंने स्पष्ट किया कि कोई भी नई छूट नहीं दी गई है. पंजीकृत राजनीतिक दलों की आय पर ऐतिहासिक रूप से दी जाने वाली सशर्त कर छूट जारी है और आठ नवंबर को नोटबंदी की घोषणा के बाद या पिछले ढाई वर्षों में कोई नई छूट या रियायत नहीं दी गई है. किसी भी अन्य की तरह राजनीतिक दल बैंकों को 30 दिसंबर तक पुराने नोटों में रखी गई नकदी जमा करा सकते है, “बशर्ते वे आय के स्रोत का संतोषजनक उत्तर दें और उनकी खाता पुस्तिका आठ नवंबर से पहले की प्रविष्टियां दर्शाती हो. यदि राजनीतिक दलों की पुस्तिकाओं या रिकॉर्ड में कोई असंगति पाई जाती है तो आयकर अधिकारी अन्य लोगों की तरह उनसे भी पूछताछ कर सकते हैं.”
केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) ने एक बयान में कहा है कि रजिस्टर्ड राजनीतिक दलों को दिए जाने वाले चंदे को कुछ शर्तों के साथ कर छूट है जिसमें खातों की ऑडिट और 20,000 रुपये से अधिक के सभी चंदे कर दायरे में शामिल हैं. हाल ही में कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया था कि बोर्ड को राजनीतिक दलों के आयकर रिटर्न जांचने का अधिकार नहीं है. इस बारे में स्पष्टीकरण जारी करते हुए सीबीडीटी ने कहा, ‘राजनीतिक दलों के खातों की जांच पड़ताल के लिए आयकर कानून में पर्याप्त प्रावधान हैं और ये राजनीतिक दल भी आयकर के अन्य प्रावधानों के दायरे में आते हैं जिनमें रिटर्न फाइल करना शामिल है.’
बयान में कहा गया है कि आयकर में छूट केवल पंजीकृत राजनीतिक दलों को है और इसमें भी कुछ शर्तें हैं जिनका उल्लेख आयकर कानून की धारा 13A में किया गया है. इन शर्तों में खाता बही सहित अन्य दस्तावेज रखना शामिल है. इसमें कहा गया है, ‘20,000 रुपये से अधिक हर तरह के स्वैच्छिक चंदे का राजनीतिक दलों को रिकार्ड रखना होगा जिसमें चंदा देने वाले का नाम व पता रखना भी शामिल है.’ इसके साथ ही हर राजनीतिक दल के खातों का चार्टर्ड एकाउंटेंट से ऑडिट होना चाहिए.
इस आदेश के बाद अभीतक एकमात्र दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने मांग की है कि नोटबंदी के बाद से जितने पैसे राजनीतिक पार्टियों ने जमा कराए हैं उसे सार्वजनिक किया जाए. सरकार के इसी फैसले पर सवाल उठाते हुए केजरीवाल ने कहा है, ‘बीजेपी को किस बात से डर लग रहा है? उनके इनकम टैक्स की जांच क्यों नहीं होनी चाहिए?’ केजरीवाल ने मांग की कि एक स्वतंत्र कमिटी सभी राजनितिक पार्टियों के पैसे की जांच करें. साथ ही केजरीवाल ने ये भी आरोप लगाया है कि पीएम मोदी और राहुल गांधी के बीच में कोई डील हुई है. ‘राहुल गांधी कल प्रधानमंत्री मोदी से मिलने पहुंचे थे, उसी के बाद ये घोषणा हुई है. राहुल ने पहले कहा था कि उनके पास पीएम मोदी के खिलाफ सबूत है. तो क्या इन दोनों ने मिलकर कोई डील की है?’
तात्पर्य यही है कि राजनीतिक पार्टियों को सभी रियायत हासिल है. वे कुछ करें या न करें, उनसे कोई सवाल नहीं पूछ सकता. पूरा सत्र संसद ठप्प करके रक्खेंगे तब भी उनकी कोई जवाबदेही नहीं बनती. चुनावी घोषणा पत्र में जितने भी वादे करें, उन्हें पूरा किया जाय या नहीं कोई सवाल नहीं. रैलियों सभाएं में जितना भी खर्च करें, कोई सवाल नहीं. एक दुसरे पर आरोप प्रत्यारोप भी लगायें पर सत्ता में आने के बाद कुछ सक्रियता नहीं. यानी हमाम में सभी नंगे हैं और एक दुसरे को ढंकने का ही प्रयास करते हैं. जनता हर बार ठगी सी महसूस करती है. लाइन में लगती है, धक्के खाती है, अपना रोजगार गंवाती है, जान भी गंवाती है. अपने ही कमाए पैसे निकालने के लिए जद्दोजहद करनी पड़े और वे सिर्फ बयानबाजी करते रहें. लोग जागरूक हो रहे हैं पर फर्क कुछ नहीं पड़ता. वर्तमान मोदी सरकार से लोगों को बहुत अपेक्षा थी, पर अबतक हासिल क्या हुआ? जितनी भी योजनायें केंद्र सरकार ने अब तक बनाई है, उसका फलाफल क्या है? क्या युवाओं को रोजगार मिल रहे हैं? महंगाई कम हो रही है? अपराध कम हुए हैं? हमारी सीमा पर तैनात सेना के जवान सुरक्षित है? महिलाएं सुरक्षित है? उत्पादन और आपूर्ति में सामंजस्य स्थापित है? जीडीपी ग्रोथ में कमी की संभावना व्यक्त की जा रही है. परिणाम क्या होगा वह भी देखना है. अनगिनत विदेश यात्राओं से हासिल क्या हुआ है? विदेशी निवेश बढ़े है? आदि आदि…. जनता अब तक धैर्य पूर्वक मोदी जी का समर्थन कर रही है. इसका साफ़ मतलब यही है कि अभी भी जनता को भरोसा है कि मोदी जी जनहित, देशहित में काम करेंगे. अगर जनता को लगा कि मोदी जी उनके आशा के अनुरूप कार्य नहीं कर रहे हैं तो यह धैर्य का बांध टूट भी सकता है. उम्मीद है मोदी जी और उनके सलाहकार इस बात को जरूर समझ रहे होंगे. 
- जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर

Saturday, 10 December 2016

संसद में मुझे बोलने नहीं दिया जाता - मोदी

१० दिसंन्बर २०१६ शनिवार को गुजरात के डीसा में एक रैली को संबोधित करने के दौरान प्रधानमंत्री ने लोगों को ये भरोसा दिलाया कि नोटबंदी के बाद जो भी परेशानियां हो रही हैं वो 50 दिन में खत्म हो जाएंगी. उम्मीद तो सब यही कर रहे हैं. अगर सब कुछ ठीक हो जाएगा तो फिर कौन शिकायत करेगा? पर क्या ऐसा असर दीखता है. एक महीने से ज्यादा समय हो गया है और सभी बैंक और एटीएम नगद से खाली हैं, लोग नगदी के लिए परेशान हैं.
नोटबंदी के विरोध में संसद ठप करने को लेकर प्रधानमंत्री मोदी ने विरोधियों को निशाने पर लिया है कहा है कि झूठ नहीं टिकता इसलिए विपक्षी दल संसद नहीं चलने दे रहे. पीएम मोदी ने कहा है कि मुझे लोकसभा में बोलने नहीं दिया जा रहा है.पीएम कहा, ‘सरकार कहती है कि पीएम बोलने के लिए तैयार हैं. लेकिन उनको मालूम है उनका झूठ टिक नहीं पाता है. इसलिए वो चर्चा से भाग जाते हैं. इसलिए उन्होंने लोकसभा में बोलने नहीं दिया गया इसलिए मैंने जनसभा में बोलने का निर्णय लिया.उन्होंने कहा, ‘नोटबंदी के खिलाफ कोई पार्टी नहीं, विरोधी सिर्फ तरीके पर सवाल उठा रहे हैं. राजनीति से ऊपर राष्ट्रनीति होती है, दल से बड़ा देश होता है. सरकार कहती है कि पीएम बोलने के लिए तैयार हैं. लेकिन उनको मालूम है उनका झूठ टिक नहीं पाता है. इसलिए वो चर्चा से भाग जाते हैं. इसलिए उन्होंने लोकसभा में बोलने नहीं दिया गया इसलिए मैंने जनसभा में बोलने का निर्णय लिया. देश में 70 साल तक ईमानदारों को लूटा गया. छोटे नोटों और छोटे लोगों की ताकत बढ़ाने के लिए नोटबंदी का फैसला लिया. आतंकवादियों को ताकत देता है जाली नोट, सीमा पार क्या हो रहा है सब जानते हैं.
सवाल वही है, आदरणीय प्रधान मंत्री श्री मोदी जी, आपके सिवा कौन बोलता है यहाँ! आप सबसे ज्यादा जन सभाएं/ रैलियां करते हैं. विदेश भ्रमण में भी आप वहां के भारतीयों के साथ अपने देश के लोगों को भी संबोधित करना नहीं भूलते. मीडिया आपका हर भाषण का एक एक शब्द बार-बार रिपीट करता है. हर सरकारी विज्ञापन में आप ही बोलते हैं. मन की बात में आप ही बोलते हैं. २०१४ के चुनाव तैयरियों से लेकर अब तक कौन सबसे ज्यादा बोला है? आदरणीय प्रधान मंत्री जी! संसद में आपका पूर्ण बहुमत है. पूर्ण बहुमत की सरकार के आप मुखिया हैं और आप को ही बोलने नहीं दिया जाता इससे बड़ा असत्य क्या हो सकता है? विपक्ष तो पहले दिन से आप से बयान की मांग कर  रहा है और आप हैं कि संसद में बैठना ही नहीं चाहते. विपक्ष की बात सुनना ही नहीं चाहते! नोटबंदी की लाइन में सौ से ज्यादा लोग मर गए आपने एक शब्द उनकी सांत्वना में नहीं कहा. विपक्ष संसद में मांग करता रहा एक बार उन मृत लोगों के प्रति सांत्वना ही व्यक्त कर दी जाय पर यह भी नहीं हुआ. आप 125 करोड़ लोगों के शुभचिंतक/प्रतिनिधि होने का दावा करते हैं. कम से कम उनके दुःख-दर्द को तो समझिये. जनता ने आपको बड़े उत्साह से जनमत दिया था. आप उनका ख्याल तो रखिये. आपसे देश को अभी भी उम्मीदें हैं. कम-से-कम लोगों को भरोसा है – “न खाऊँगा न खाने दूँगा” जैसे वक्तव्य पर. लेकिन आप अपनी सफलता का ढिंढोरा अपने आप पीटे जा रहे हैं. कुछ जनता के लिए भी छोड़िये जो आपका गुणगान खुद करे. किसान अपनी फसल की कीमत नहीं मिलने पर रो रहा है, दिहाड़ी मजदूर काम नहीं मिलने के कारण या कहें की मजदूरी नहीं मिलने के कारण अपने-अपने घर लौट रहा है. छोटे-मोटे कारोबारी अपना बिजनेश ठप्प होने से परेशान हैं. नोटबंदी से महाराष्ट्र के मालेगांव में पॉवरलूम के एक लाख मजदूर बेकार हो गए हैं. लुधियाना के होजियरी कारोबार का लगभग यही हाल है. महानगरों में बिल्डिंग बनाने में लगे मजदूर पलायन कर रहे हैं. ईंटभट्ठे पर काम करने वालों को मजदूरी नहीं मिल रही है. ये सभी नगदी पर ही काम करते हैं. आप नोटबंदी के बाद कैशलेस की बात कर रहे हैं. पहले आधारभूत-संरचना, वह भी फुलप्रूफ सिस्टम तो विकसित करिये फिर अपने आप कैशलेश परिवेश विकसित हो जाएगा. अब आपकी नोटबंदी के चलते नोटों की कमी हो रही है तो कैशलेश की बात कर रहे हैं. उधर अनेकों जगहों से नए नोटों की गड्डियां करोड़ों में बरामद हो रही है. सिस्टम कितना भ्रष्ट हो चुका है वह भी तो देखिये. सरकार के साथ जनता को भी सहयोग करना पड़ेगा तभी भ्रष्टाचार मुक्त भारत बन पायेगा. ऐसा वातावरण बनाइये कि लोग सीख ले, आपके मंत्री, सहयोगी अपने परिजनों की शादी में करोड़ों खर्च कर रहे हैं और आम जनता को सादगी का पाठ पढ़ा रहे हैं. आप तो दिन में दस बार कपडे बदलें और आम आदमी एक सही ढंग का कपडा भी न पहन पाए ऐसा कैसे हो सकता है. आप महात्मा गाँधी का बहुत नाम लेते हैं. उनके जैसा खुद भी बनकर दिखाइए. तभी आप के पीछे जनता होगी सारा देश होगा. विनम्र अनुरोध है आपसे!      
नोटबंदी का एक महीना बीतने के बावजूद अभी भी बैंक और एटीएम में लंबी कतारें हैं. लोग कैश की किल्‍लत से परेशान हैं. वहीं दूसरी तरफ ऐसे भी मामले सामने आ रहे हैं जहां नोटबंदी के बाद कई लोगों के पास करोड़ों की नई नकदी पकड़ी गई है. यह उदाहरण क्या हमरे सिस्टम का दोष नहीं है. यहां ऐसे ही चुनिंदा बड़े मामलों के बारे में चर्चा भर करना चाहूँगा.
चेन्‍नई (10 करोड़) आठ दिसंबर को आयकर विभाग ने छापा मारकर विभिन्‍न स्‍थानों से 106 करोड़ रुपये की नकदी और 127 किलो सोना पकड़ा. इसमें से 10 करोड़ रुपये की नई नकदी शामिल थी. गोवा (1.5 करोड़) उत्‍तरी गोवा में सात दिसंबर को एक स्‍कूटर पर जा रहे दो लोगों को पुलिस ने सूचना मिलने पर पकड़ा. उनके पास से 70 लाख रुपये की नई नकदी मिली और उस दिन इनको मिलाकर गोवा के विभिन्‍न क्षेत्र से कुल 1.5 करोड़ रुपये के नए नोट जब्‍त किए गए. कोयंबटूर (1 करोड़) 29 नवंबर को तमिलनाडु के कोयंबटूर में तीन लोगों को एक कार में एक करोड़ की नई नकदी के साथ पकडा़ गया. ये पुराने नोटों से नए नोटों की बदली के काम में लगे थे. सूरत (76 लाख) नौ दिसंबर को सूरत में होंडा कार के अंदर 76 लाख रुपये के 2,000 के नए नोट मिले. महाराष्‍ट्र से गुजरात पहुंची यह कार नोटों से भरी मिली. सिर्फ कैश नहीं, बल्कि उसमें 2,000 रुपये के नए नोट बरामद हुए. इसके अलावा गुजरात में दो अन्‍य बड़ी घटनाओं में 23 नवंबर को गुजरात सेटेलाइट एरिया में 10.6 लाख के नए नोट और 20 नवंबर को साबरकांठा जिले में आठ लाख की नई नकदी पकड़ी गई. उडुपी (71 लाख) सात दिसंबर को कर्नाटक के उडुपी में एक कार से 71 लाख के नए नोट मिले. अधिकांश नोट 2000 रुपये की नई करेंसी में थे. इस सिलसिले में तीन लोगों को पकड़ा गया. मुंबई (72 लाख) नौ दिसंबर को मुंबई के दादर इलाके में 72 लाख मिले. दरअसल इस केस में सात लोगों को पकड़ा गया जोकि पुराने नोटों को नए से बदलने की कोशिश कर रहे थे. इनके पास 85 लाख रुपये मिले जिसमें से 72 लाख रुपये 2000 के नए नोटों में थे. होशंगाबाद (40 लाख) मध्‍य प्रदेश के होशंगाबाद जिले में एक सफेद इनोवा कार से 40 लाख रुपये के नए नोट एक काले बैग में मिले. कार पर प्रेजीडेंट-एंटी-करप्‍शन सोसायटी का स्‍टीकर लगा था. गुड़गांव (27 लाख) गुड़गांव के इस्‍लामपुरा इलाके में तीन आदमियों से आठ दिसंबर को 2000 और 100 के नोटों में 17 लाख रुपये की नई नकदी पकड़ी गई. उसके 24 घंटे के भीतर ही 10 लाख की नई नकदी समेत दो लोगों को पकड़ा गया. कर्णाटक में 5.70 करोड़ वह भी बाथरूम में छिपाकर रखे गए नए नोटों और ३२ किलो सोने चाँदी कर्नाटक में इनकम टैक्स के छापे में एक हवाला कारोबारी के घर से 5 करोड़ 70 लाख की नई करेंसी मिली है. 90 लाख के पुराने नोट भी जब्त किए गए. 32 किलो सोना-चांदी भी मिला है. कारोबारी ने बाथरुम के चैंबर में ये नकदी छिपाकर रखी थी. बाथरुम की टाइलों के पीछे बनी तिजोरी से सारा कैश मिला. कर्नाटक के हवाला कारोबारी के यहां से करोड़ों की नगदी के अलावा 31 किलो के सोने के गहने भी मिले हैं, गोवा और कर्नाटक की इनकम टैक्स टीम की संयुक्त कार्रवाई अब भी जारी है. दिल्ली में एक वकील के पास से १३.६५ करोड़ की बरामदगी हुई है. यह सब छपे पहले भी मारे जा सकते थे.
खैर जो भी हो अगर बेईमानों, काले धन वालों को सजा मिलती है और सिस्टम सुधरता है तब भी जनता आपको समर्थन देती रहेगी. सिस्टम को सुधारिए, संसद को सुधारिए, लोग अपने आप सुधर जायेंगे. अगर राजनीति साफ-सुथरी हो जायेगी, बड़े-बड़े अफसर संकल्प ले लें, तो सभी भारतीय अपने आप सुधर जायेंगे. गंगा ऊपर से नीचे की तरफ बहती है. यही गंगा आस पास के सभी किनारों को संतुष्ट करती हुई आगे बढ़ती है. आप अगर अपना उदाहरण प्रस्तुत करेंगे तो निश्चित ही पूरा देश बदलेगा. एक टी एन शेषण ने चुनाव सुधार करने का बीड़ा उठाया और आज चुनाव प्रणाली काफी साफ सुथरी हुई है. आप भी ऐसा उदाहरण प्रस्तुत कीजिये. जय हिन्द! जय भारत!

-    जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.