Sunday, 26 July 2015

नीतीश बनाम मोदी (बिहार में चुनावी बिगुल)

२५ जुलाई को तय कार्यक्रम के अनुसार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बिहार दौरे पर आये. पटना से कई योजनाओं का शिलान्यास और उद्घाटन करने के मौके पर सीएम नीतीश कुमार ने पीएम से सात सवाल पूछे। उधर, पीएम मोदी ने नीतीश कुमार की मौजूदगी में उनके सहयोगी और आरजेडी के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव पर निशाना साधा। हालांकि उम्मीद की जा रही थी कि पीएम बिहार के लिए स्पेशल पैकेज देंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। पीएम मोदी ने कहा, 'मुझे याद है कि पिछली रैली में मैंने वादा किया था कि हमारी सरकार बनी तो बिहार को 50 हजार करोड़ रुपए का स्पेशल पैकेज देंगे। मैं मानता हूं कि 50 हजार करोड़ रुपए बिहार के लिए कुछ नहीं हैं, बिहार को ज्यादा की जरूरत है। लेकिन मैं इस पैकेज के लिए उचित समय का इंतजार कर रहा हूं।'
मोदी ने कहा, 'नीतीश जी ने कहा है कि उन्हें मोदी जी पर पूरा भरोसा है। बिहार और पूर्वी भारत का विकास हमारा प्राइम एजेंडा है। इसके लिए कई योजनाए लाने वाले हैं।' उन्होंने कहा कि पहले बिहार को 1.5 लाख करोड़ रुपए मिलते थे, 2015-20 में 3.75 लाख करोड़ रुपए मिलेंगे। उन्होंने कहा कि सरकार ने 5 हजार करोड़ रुपए की लागत के सड़कों का काम मंजूर कर दिया है। मोदी ने लालू प्रसाद यादव पर निशाना साधा, 'अटल जी के समय में जो काम छह महीने में पूरा हो जाता, वह 2015 में भी पूरा नहीं हुआ। मैं नीतीश जी से सहमत हूं कि अटल जी की सरकार को छह महीने और मिल जाते तो रेल लाने का काम तभी पूरा हो जाता, क्योंकि नीतीश जी तब रेल मंत्री थे। फिर तो बिहार से ऐसे रेल मंत्री आए कि विकास ही नहीं हुआ।'
वरिष्ठ पत्रकारों ने इसे नहले पे दहला कहा. साथ ही दोनों को मंजा हुआ राजनीतिज्ञ कहा.
मोदी ने इस मौके पर अपने राज्य गुजरात का भी जिक्र किया और कहा कि गुजरात में लक्ष्मी और बिहार में सरस्वती का वास है। उन्होंने कहा कि केंद्र और राज्य को मिलकर काम करना होगा। देश के विकास के लिए राज्यों का विकास जरूरी है।
मुजफ्फरपुर के चुनावी सभा में नरेन्द्र मोदी ने कहा – ‘एक वक्त था जब नीतीश जी मुझे बिहार आने से रोकते थे। अब देखिए ट्वीट कर स्वागत कर रहे हैं। अपनों(पुराने सहयोगी) का विरह बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है। देखिए किस कदर दुखी हैं। अब मैं आ गया हूं। अब आपको ज्यादा विरह नहीं झेलना पड़ेगा।' – व्यंग्यात्मक तंज का बेहतरीन नमूना.
मोदी ने नीतीश पर हमला करते हुए कहा, 'मैं इतना बुरा था तो एक कमरे में आकर चांटा मार दिए होते। गला घोंट दिया होता। लेकिन आपने तो बिहार के विकास का ही गला घोंट दिया। बिहार चुनाव युवाओं का भविष्य बदलने के लिए है। आपने सबको आजमा लिया है, अब एक बार हमें भी आजमा लीजिए। बिहार को मैं कितनी प्राथमिकता देता हूं इस बात से भी अंदाजा लगा सकते हैं कि बिहारी सांसदों को केंद्र ने अहम जिम्मेदारियां दी हैं। जो यह कहते थे कि हम मोदी को बिहार में नहीं आने देंगे, प्रवेश नहीं करने देंगे यदि उनकी सरकार बनती है तो क्या वे विकास कर पाएंगे? क्या केंद्र से लड़ाई करने वाली सरकार बिहार का विकास कर पाएगी?' ...दिल्ली में इसका परिणाम सब देख ही रहे हैं! एक चेतावनी के रूप में भी इसे देखा जा सकता है? मोदी ने कहा कि बिहार में देश की तकदीर बदलने की ताकत है। उन्होंने कहा कि बिहार में संसाधन की कमी नहीं है। पीएम ने कहा कि बिहार की ये परेशानियां ज्यादा से ज्यादा सौ दिनों की हैं। मोदी ने कहा कि बिहार की जनता अब ज्यादा दिनों तक झेलने वाली नहीं है। ...वैसे देश की जनता तो मोदी जी के प्रयासों का परिणाम देख ही रही है ! इस रैली में मोदी ने आरजेडी का मतलब 'रोजाना जंगल राज का डर' बताया। मोदी ने रैली में आए लोगों से पूछा कि क्या आपको रोजाना जंगल राज का डर चाहिए? ऐसी परिभाषाएं गढ़ने में मोदी जी को महारत हासिल है. समयानुसार हर शब्दों की व्याख्या वे अपने हिशाब से कर लेते हैं.
मोदी ने कहा कि शनिवार को मैंने बिहार में कई योजनाओं का उद्घाटन किया। हजारों-करोड़ों रुपये का पैकेज दिया। 2010 से 15 में पिछली सरकार ने बिहार को डेढ़ लाख करोड़ दिया था। मैंने बिहार को पौने चार लाख करोड़ रुपया देने का फैसला किया है। ...वैसे इस तरह के वादे तो बहुत सारे किये थे, देश के सामने! कितना समय लगेगा उन्हें पूरा करने में यह तो अमित शाह जी बाद में बताएँगे ही!
मुजफ्फरपुर की रैली से पहले श्री मोदी ने श्री कृष्ण मेमोरियल हॉल पटना में विज्ञानिकों से जो बातें की वह मुझे राजनीतिक कम, व्यावहारिक ज्यादा लगी. उन्होंने कहा - भारत के झंडे में चार रंग हैं और हमें चतुरंगी क्रांति की आवश्यकता है. देश को केसरिया यानी ऊर्जा क्रांति, सफेद यानी दुग्ध क्रांति, हरा यानी खेती संबंधी क्रांति और नीला यानी पानी से सम्बंधित मत्स्य उद्योग को बढ़ावा देने की जरूरत है. केंचुआ बन सकता है स्वच्छता अभियान और ऑर्गेनिक खेती का सबसे बेहतरीन संसाधन. ऑर्गेनिक खेती का दुनिया में बड़ा बाजार, मांग ज्यादा है, इसे बढ़ावा दिया जाना चाहिए.शहद उत्पादन में कम खर्च में किसान को मिलता है ज्यादा फायदा साथ ही एक बात उन्होंने बताई कि मधुमक्खियों के डर से हाथी नहीं आते अत: जहाँ हाथी फसलों को बर्बाद कर देते थे उससे भी छुटकारा मिलेगा. हमारे किसानों ने दलहन और तिलहन को रिकॉर्ड उत्पादन किया इससे तत्काल फायदा पूरे देश को होने वाला है. गैस वाले कोल्ड ड्रिंक्स में अगर 1 से 5 फीसदी नैचरल फलों का जूस मिलाया जाए तो फल कभी फेंके नहीं जाएंगे और उसके लाभ भी ज्यादा होंगे.
वैज्ञानिकों की खोज के बिना बड़ी कंपंनियों को अपनी बात मनवाना मुश्किल होता है. उन्होंने वैज्ञानिकों से आग्रह किया कि ऐसी तकनीक विकसित करें कि किसानों के उत्पाद खासकर फल एवं सब्जियों को जल्द ख़राब होने से रोका जा सके. दूसरी हरित क्रांति पर कैसे काम हो, इसके मॉडल पर काम होना चाहिए. महिलाएं अंचार को लंबे समय तक सुरक्षित रखती थीं यानी विज्ञान उनकी पहुंच तक था. साथ ही ग्रामीण भारत में अनाज सुरक्षित रखने के लिए बनाई जानी वाली कोठियों की भी प्रशंशा की. रोड बनाने के लिए खूब रिसर्च होते हैं, कैनाल बनाने के लिए भी रिसर्च किया जाना चाहिए. हर क्षेत्र के वैज्ञानिकों को साथ मिलकर सेकंड ग्रीन रीवैल्यूशन पर वर्कशॉप करनी चाहिए. जब तक वैज्ञानिकों की मेहनत खेत में नहीं दिखती, संतोष नहीं हो सकता हर किसान को वैज्ञानिक बनाना होगा, लैब टू लैंड की कोशिश करेंगे, किसानों को भाषण काम नहीं आता, जब तक वह अपनी आंख से नहीं देखेगा, किसी बात को नहीं मानेगा. वैज्ञानिकों द्वारा लैब में पाई जाने वाली सफलता को किसानों द्वारा धरती पर भी कसना चाहिए वैज्ञानिकों की जिंदगी का महत्वपूर्ण समय लैब में बीत जाता है, वैज्ञानिकों को सम्मान और बल मिलना चाहिए पुसा का जन्म बिहार से हुआ, हमने इसे वापस लाने की कोशिश की, दिल्ली में इसकी जरूरत नहीं.
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हमले पर जमकर पलटवार किया। उन्होंने मोदी के हर एक आरोप का जवाब दिया। जवाब देने के लिए पूरी तैयारी करके आए नीतीश ने अपने पुराने भाषण का विडियो क्लिप भी प्रेस कॉन्फ्रेंस में दिखाया। इससे पहले एनडीए की परिवर्तन रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नीतीश कुमार पर तीखा हमला बोला था। मोदी के दावों को किया खारिज. खैर, यह सब चुनावी दौर में हमले होंगे और आरोप-प्रत्यारोप लगेंगे. जनता को फैसला करना है वो क्या चाहती है? नीतीश का बिहार का विकास मॉडल या मोदी जी के लम्बी चौड़ी घोषणाओं पर फिर से भरोसा करना.

 -जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर 

Monday, 20 July 2015

अंतर्मन में झांकने की जरूरत

एक टी वी चैनेल के बहस में एक भाजपा नेत्री ने कहा – “केजरीवाल को अंतर्मन में झांकने की जरूरत है”. उसी बहस में कांग्रेस के नेता जे. पी. अग्रवाल ने कहा – “अगर केजरीवाल अपनी बात पर टिके नही रहते हैं तो जनता का राजनीतिज्ञों पर से भरोसा उठ जाएगा. मानता हूँ, वे अभी नए हैं, पर वे तो नयी राजनीति का वादा कर के आए हैं. जनता ने उनपर अभूतपूर्व भरोसा किया है. या तो वे जनता से किये गए वादों को पूरा करें या फिर इस तरह के अव्यवहारिक वादा करने से दूसरी राजनीतिक पार्टियाँ भी बचें”.
निश्चित ही सैधांतिक रूप से कही गयी दोनों नेताओं की बातें समीचीन है, पर यह सिर्फ केजरीवाल के लिए नहीं, सबके लिए. केजरीवाल तो नए हैं अभी राजनीति सीख रहे हैं. गलतियों से सीख लेते हैं, माफी भी माँगते हैं, यथोचित सुधार भी करते हैं. अब फिर से प्रशांत भूषण और योगेन्द्र यादव को पार्टी में लौटने की बात कह रहे हैं. शायद उनको अपनी भूल का अहसास हो रहा है. विभिन्न मुकदमों में और सार्वजनिक स्तर पर उनकी बहुत छीछालेदर हो रही है. उनके कई मंत्री और विधायक विवादों में फंसते जा रहे हैं. अंतत: उनकी विश्वसनीयता पर सवाल उठना भी लाजिमी है. फिर अपने द्वारा किये कार्यों का बहुत महंगा और बार-बार प्रचार, मोदी जी को भी परास्त कर दे रहा है. शायद यह उनकी आगे की रणनीति का हिस्सा हो.
पर, मेरा कहना है कि सभी को अपने अंतर्मन में झांकने की जरूरत है, चाहे वो मोदी जी हों, भाजपा के वरिष्ठ और सम्मानित नेता या अन्य पार्टियों के नेता. सभी अतिउत्साह में उल्टा-सीधा बयान दे देते हैं और बाद में उसको सही साबित करने का असफल प्रयास करते हैं या गलत ढंग से पेश किये जाने पर अपना स्पष्टीकरण देते फिरते हैं.
केजरीवाल जब लोगों से चंदा मांगते हैं तो उनको गलत ठहराया जाता है और दूसरी पार्टियाँ जिनमे भाजपा सबसे आगे है, अपने प्रचार प्रसार में जो खर्चे करती है, वो धन बिना चंदे के कहाँ से आता है? वह भी तो बतलाना चाहिए. केजरीवाल का तो सब कुछ सामने उनके साईट पर उपलब्ध भी रहता है. दूसरी पार्टी का लेखा-जोखा कहाँ रहता है? इसकी छान-बीन भी तो होनी चाहिए. मोदी जी का बनारस दौरा तीसरी बार रद्द हुआ. हर बार महंगे पंडाल बनाये गए और इस बार तो एक मजदूर की मौत भी हो गयी. एक बयान भी जारी नहीं किया गया. केजरीवाल की सभा में एक किसान ने आत्महत्या कर ली तो खूब हंगामा हुआ और
केजरीवाल की पार्टी ने उसका मुआवजा भी दिया, माफी भी माँगी पर मोदी जी ?
आज दिल्ली में कानून ब्यवस्था की जो स्थिति है, उसके लिए दिल्ली पुलिस जो केंद्र के अधीन है, क्या कर रही है और उसके लिए केंद्र सरकार कितनी दोषी है इसका भी तो मूल्यांकन होना चाहिए. दिल्ली पुलिस जितनी सक्रियता के साथ आम आदमी पार्टी के सदस्यों, विधायकों पर पैनी नजर रख कार्रवाई करती है, उतनी ही पैनी दृष्टि दूसरी तरफ क्यों नहीं जाती? उप-राज्यपाल और केजरीवाल सरकार के बीच जो जंग लगातार जारी है, उसपर केंद्र सरकार ख़ामोशी क्यों अख्तियार कर लेती है. दिल्ली के मुख्य मंत्री को प्रधान मंत्री से मिलने का समय तक नहीं दिया जाता है, वही पी. एम. किसी से भी रात के दो बजे भी मिलने का वादा करते हैं. दिल्ली की केंद्र सरकार तीसरी बार भूमि अधिग्रहण बिल पर अद्ध्यादेश लाकर फिर उसे ठंढे बसते में डाल देती है. इसे क्या कहा जाय? कानून विशेषज्ञ ही इस पर अपनी राय रख सकते हैं, पर किरकिरी तो मोदी सरकार की हुई है. उसी तरह विदेशों में भले ही भारत का नाम आज आदर के साथ लिया जा रहा है, पर काफी जगहों पर खासकर अमेरिका, चीन और पाकिस्तान में किरकिरी भी हुई है.
वित्त विभाग के आंकड़े बताते हैं कि प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में बृद्धि हुई है. उत्पादन बढ़ा है, पर जबतक उसका लाभ आम जनता तक नहीं पहुंचता, उपलब्द्धि नहीं कही जा सकती. क्या बेरोजगारों को रोजगार देने में यह सरकार कामयाब हुई है. कृषि उत्पाद के बेहतर उत्पादन, उसके रख-रखाव और वितरण में सुधार हुआ है? मोदी जी की यही तो कल्पना थी- “सबका साथ सबका विकास”- हो रहा है क्या? इसक सही उत्तर तो बिहार विधान सभा के चुनाव में ही पता चल सकेगा. बिहार में १५० आधुनिक रथों को हरी झंडी दिखा दी गयी, पर बिहार के लिए ‘विशेष पैकेज’ का क्या हुआ? कुछ निवेश को बढ़ावा दिया गया क्या? शिक्षण संस्थान, आधारभूत संसाधन में बृद्धि हुई क्या? मेरा मानना है कि अगर काम का असर धरातल पर दिखेगा तो प्रचार-प्रसार की बहुत ही कम आवश्यकता होगी. टी. वी. पर खूब विज्ञापन आते हैं गैस सब्सिडी छोड़ने की. लाखों लोगों ने सब्सिडी छोडी भी है, पर उसका लाभ गरीब लोगों तक पहुंचा है क्या? ये आंकड़े भी बताये जाने की आवश्यकता है. प्रधान मंत्री जन-धन योजना, बीमा और पेंशन योजना का धरातल स्तर पर लाभ के आंकड़े को भी दिखाने की जरूरत है. किसानों को ऋण देने में सहूलियत हुई है क्या? जमीन की मिट्टी की जांच कायदे से हो रही है क्या? तदनुसार फसलें लगाई जा रही है क्या? संतुलित उत्पादन और उसका संतुलित वितरण ब्यापक चीज है. जिसका समुचित पालन जरूरी है ताकि किसान आत्महत्या न करे और उन्हें उचित मुआवजा दिया जाय.
‘कोलगेट’ के उद्भेदन से सरकार को फायदा हुआ है, पर बहुत सारी बिजली कंपनियों(जिनमे डी. वी. सी. शामिल है) को कोयले के अभाव में अपने जेनेरेटर बंद करने पड़ रहे हैं. टाटा स्टील जैसी कंपनी को पिछले दिनों लौह अयस्क और कोयले की आपूर्ति में बाधा पहुँची है.यह सब नौकरशाही और सरकारी कामों के समयबद्ध निस्तारण न होने के कारण हुआ है. फिर ‘डिजिटल इण्डिया’ और ‘मिनिमम गवर्नमेंट और मैक्सिमम गवर्नेन्स’ का गाना किस लिए? नौकरशाही के कार्यप्रणाली में बदलाव लाने की जबर्दश्त आवश्यकता है.
स्वच्छ भारत अभियान का परिणाम कितना सामने आया है? क्या सभी शहर और गांव स्वच्छता के प्रति जागरूक हुए हैं? इसका परिणाम तो तभी दिख जाता है, जब थोड़ी सी वर्षा में दिल्ली, मुंबई और चंडीगढ़ शहरों में जल जमाव हो जाता है.जम्मू कश्मीर और केदारनाथ की यात्राओं में लगातार ब्यवधान जारी है.
मैं तो कहूँगा कि हम सबको अपने अन्दर झांकने की जरूरत है …क्या हम अपनी ड्यूटी सही तरीके से कर रहे हैं? क्या हम स्वच्छता को अपना रहे हैं? क्या हम प्राकृतिक संसाधनों का सही इस्तेमाल कर रहे हैं? क्या राष्ट्र भावना हम सब में जाग्रत हुई है? क्या हम अन्याय का विरोध कर पा रह हैं? क्या हम किसी कमजोर की मदद कर रहे हैं?. क्या हम सरकारी हेल्प-लाइन का इस्तेमाल कर रहे हैं? क्या हमारी किसी भी शिकायत का असर हो रहा है? अगर नहीं तो हम सबको अन्दर झांकने की जरूरत है…”पर उपदेश कुशल बहुतेरे” …यह तो हम सभी जानते हैं.
इसके अलावा और बहुत कुछ बातें हैं जो मोदी सरकार को सोचने की जरूरत है- जैसे बुजुर्ग फौजी महीने भर से एक रैंक एक पेंसन के लिए हड़ताल पर है और सांसदों को वेतन भत्ते बढ़ाये जाने की मांग हो रही है. गेस्ट अध्यापकों से वादाखिलाफी करके घर बैठा दिया गया है. हरियाणा के किसानों का 350 करोड़ रूपये का भुगतान रुका हुआ है और वो भी धरने पर है. बेटी बचाओ का नारा देते हुए करनाल में नर्सिंग की छात्राओं पर लाठीचार्ज करवाया गया. बुजुर्गों की पेंशन प्रक्रिया इतनी मुश्किल बना दी गई है कि हर जिले के अखबार पर बैंकों में धक्के खाते बुजुर्गों की तस्वीरें हैं. सरकारी कर्मचारियों से प्राइवेट हस्पतालों में इलाज करवाने की सुविधा छीन ली है… नियम बदलना है तो एम एल ए और मंत्रीयों को भी कहिये कि वो भी अपना इलाज सरकारी हस्पताल में ही कराएं. आमूल-चूल परिवर्तन की शख्त आवश्यकता है. बिना सिस्टम को सुधारे सिर्फ बातों से कुछ नहीं होनेवाला. सकारात्मक कदम की उम्मीद के साथ – जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर

Thursday, 16 July 2015

यह शहर समय से चलता है

मौसम चाहे हो कोई, यह शहर समय से चलता है,
सरकारें चाहे हो जिसकी, सिक्का टाटा का चलता है
शालाएं है श्रमिकों की, स्वच्छ, सुसज्जित लोग यहाँ,
पूस की रात या जेठ दुपहरी, नहीं ठहरते लोग यहाँ
घर आँगन में खुशियां झलके, वेतन जिस दिन मिलता है,
सरकारें चाहे हो जिसकी, सिक्का टाटा का चलता है
पांच बजे पोंगा बज जाता, सपने बुनते लोग जगें,
माताएं, घर की महिलाएं, टिफिन बनाने किचेन भगे.
बालिग जन संग बच्चे भी, होते हैं तैयार समय से,
बस चालक या वैन का चालक, आ जाते है ठीक समय पे
वर्क शॉप का गेट खुलेगा, समय का पहरा वहां लगे,
विद्यालय के गेट पे देखो, चौकी दार भी वहां खड़े.
चाय पान जलपान के ठेले, गेट के सम्मुख लगे खड़े,
समय की चिंता रहती सबको. समय की कीमत दिखता है
सरकारें चाहे हो जिसकी, सिक्का टाटा का चलता है
होली, ईद, दीवाली आती, गुरुपर्व और क्रिसमस भी,
टीसू पर्व भी यहाँ मनाते, छठ में नदियां भी सजतीं
खरकाई मिलती है जाकर सुवर्णरेखा की गोदी में,
दोनों की लहरें जब मिलती बूँदें सजती मोती में
बनी सुनहरी दो मुहानी भीड़ हमेशा वहां लगी,
भवनों से झांकते सभी जन मधुर मनोहर लगता है
सरकारें हो चाहे जिसकी, सिक्का टाटा का चलता है
जुबली या निक्को के पार्क हों, करते हैं सब भ्रमण यहाँ,
लेजर फांउंटेन यहाँ लुभाये, चिड़ियाघर भी सजग यहाँ,
प्रमोद पार्क में पलती प्रकृति, पुष्प कुञ्ज मन भावन हैं,
कचड़ा से कम्पोस्ट बनाते, हँसता हरदम सावन है
बना पहाड़ था अवशेषों का. कहलाता था वह मकदम.
जाकर देखो अभी वहां पर, फूल खिले रहते हरदम.
हुड़को पार्क की शोभा न्यारी, प्रकृति कितनी प्यारी है,
बड़े बड़े हैं पेड़ यहाँ पर, कहीं फूल की क्यारी है
बारिश का पानी न ठहरता, नालों नदियों में टिकता है
सूट बूट में चलो निकल लो, फर्क नहीं कुछ दिखता है
सरकारें चाहे हो जिसकी, सिक्का टाटा का चलता है
जुस्को सेवा देती निशिदिन, बिजली पानी सुलभ यहाँ,
पल भर में ही वे आ जाते, एक फोन जो सुने वहां
चिर गृह भी है सही सुरक्षित, नई इमारत क्या कहने,
बाहर के भी लोग यहाँ पर,रहें सुरक्षित क्या कहने !
अफसर हो या श्रमिक वर्ग हो, मिलनसार सब होते हैं,
दुःख सुख में सब एक साथ हैं, इक दूजे के होते हैं.
वन भोज का कर आयोजन, साथ अगर चाहें जिमना,
थोड़ी देर जाने में लगेगी, चले जाएँ सब संग डिमना
डिमना का भी डैम अजब है, पानी का भडार यहाँ,
मिनरल वाटर जैंसा पाचक, ऊंचे पर जल स्रोत यहाँ
धुंए उगलते कल कारखाने, बाग़ बगीचे सजे हुए ,
धूल-कणों के लिए मशीने, छाजन करती बिना थके
सड़कें सब हैं साफ़ सुरक्षित, सभी यहाँ अनुशासित हैं,
लाल रोशनी पर रुक जाते, हरे रंग पर चालित हैं
टाटा नाम से टाटा नगरी, जमशेद जमशेदपुर है,
तीन मार्च को नमन है उनको, सारे जन ही आतुर हैं
गौरव मुझको उतना ही है, कर्म भूमि यह मेरा है,
मेरे जैंसे अगणित जन हैं, सबका अपना डेरा है
भावों के भूखे हैं हम सब, प्यार में सबकुछ चलता है
सरकारें चाहे हो जिसकी, सिक्का टाटा का चलता है
जन्मोत्सव या शादी का भोज हो, समय बद्ध संचाल यहाँ,
ड्यूटी अपनी सबकी प्यारी, खाकर पहुंचे सभी वहां
एक से बढ़कर एक यहाँ पर, प्रतिभाएं संभ्रांतों में,
आई ए एस, आई पी एस छोड़ो, मुख्यमंत्री दो प्रांतों में .
धोनी का कीड़ा स्थल है, सौरभ जैसे लोग यहाँ
गांगुली हो या हो तिवारी, क्रिकेट खिलाड़ी कई यहाँ,
यहाँ बछेंद्री पाल हैं देखो, प्रेम लता अग्रवाल यहीं,
दीपिका तीर-धनुष के साथ है, साथ सुसज्जित पदक कई
तनुश्री हो या हो प्रियंका, फिल्मों में रंग दिखे हजार,
बच्चन पाठक सलिल सरीखे, जयनंदन से कहानीकार!
दो दो नेहा एक साथ में, बनती है जब आई. ए. एस.,
किशन सरीखे पूत यहाँ के, होते शहीद हैं सीमा पर
माता रोती, बापू रोते, दिल सबका ही दुखता है …
पूरा शहर उमर कर आता आँखों में जल दिखता है
पूरा शहर उमर कर आता आँखों में जल दिखता है
- जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर

Sunday, 12 July 2015

जमशेदपुर की चर्चा

लगभग २० लाख आबादी वाला ६२५ वर्ग किलोमीटर में फैला जमशेदपुर जिसका दूसरा नाम टाटानगर भी है, झाड़खंड राज्य का एक शहर है। यह झारखंड के दक्षिणी हिस्से में स्थित पूर्वी सिंहभूम जिले का हिस्सा है। जमशेदपुर की स्थापना को पारसी व्यवसायी जमशेदजी नौशरवान जी टाटा ने की है १९०७ में (टिस्को) की स्थापना से इस शहर की बुनियाद पड़ी। इससे पहले यह साक्ची नामक एक आदिवासी गाँव हुआ करता था। यहाँ की मिट्टी काली होने के कारण यहाँ का पहला रेलवे स्टेशन कालीमाटी के नाम से बना जिसे बाद में बदलकर टाटानगर कर दिया गया। खनिज पदार्थों की प्रचुर मात्रा में उपलब्धता और खरकाई तथा सुवर्णरेखा नदी के आसानी से उपलब्ध पानी, तथा कोलकाता से नजदीकी के कारण यहाँ आज के आधुनिक शहर का पहला बीज बोया गया।
जमशेदपुर आज भारत के सबसे प्रगतिशील औद्योगिक नगरों में से एक है। टाटा घराने की कई कंपनियों के उत्पादन इकाई जैसे टाटा स्टील, टाटा मोटर्स, टिस्कॉन, टिनप्लेट, टिमकेन, ट्यूब डिवीजन, टी आर एफ, टाटा पॉवर, टी जी एस, उषा एलॉय, लाफार्ज सीमेंट इत्यादि यहाँ कार्यरत है। इसके अलावा हजारों की संख्या में छोटे-छोटे कल कारखाने स्थापित हैं.
जमशेदपुर अभी चर्चा में है इसीलिए मैं कुछ बातें इस आलेख में रखना चाहता हूँ. पहली बात तो यह है कि यह शहर औद्योगिक कारखानों की बहुलता वाला है और यहाँ समय की कीमत है, इसीलिये यहाँ हर काम समयानुसार होता है. अमूमन यहाँ शुबह ५ बजे हो जाती है और लोग बिस्तर से उठ अपनी-अपनी ड्यूटी की तैयारी में लग जाते हैं. शुबह की पाली यहाँ ६ बजे शुरू हो जाती है. किसी भी मौसम में यहाँ कोई बदलाव नहीं होता. गृहणियां उठकर अपने पति एवं बच्चों के लिए टिफिन बनाने में लग जाती हैं. बच्चों का स्कूल भी शुबह सात बजे से आठ बजे के बीच खुल जाता है और वहां भी समय से पहुँचना जरूरी होता है. इन्हीं स्कूलों में पढ़कर बच्चे उच्च शिक्षा में भी अपनी श्रेष्ठता बनाये रखते हैं. डॉक्टर, इंजिनियर का विकल्प तो अधिकांश बच्चे चुनते ही हैं पर अब प्रशासनिक परीक्षाओं में भी यहाँ के बच्चे अव्वल आने लगे हैं. 
हाल ही में UPSC प्रतियोगिता में अपना परचम लहरा चुकी जमशेदपुर की दो और बेटियों की चर्चा करना चाहूँगा उनमे दोनो ‘नेहा’ जमशेदपुर की है. पहली नेहा सिंह जिसने २२ वां रैंक हासिल किया हैं, इनके पिता ग्रामीण कार्य विभाग घाटशिला में सहायक अभियंता है. यह झारखण्ड टॉपर हैं. इन्होने प्लस टू की पढाई २००६ में संत माइकल स्कूल पटना से की हैं, उसके बाद २०११ में बिट्स पिलानी से केमिकल स्ट्रीम में बी टेक किया. यह भी दिल से गरीबों की सेवा करना चाहती हैं.
जमशेदपुर की दूसरी बेटी हैं – नेहा कुमारी, इन्होने २००७ में विद्या भारती चिन्मया स्कूल से प्लस टू किया, और BIT मेसरा, रांची से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में बी. टेक किया और २०१२ में टाटा स्टील के इलेक्ट्रिकल टी एंड डी विभाग में मैनेजर के रूप में योगदान किया. २०१४ में टाटा स्टील की नौकरी छोड़कर IAS की तैयारी में लग गयी और २०१५ में पहली बार में ही २६ वें रैंक पाकर खुश है. इनके पिता सुनील कुमार दुबे साधारण परिवार से आते हैं और टाटा मोटर्स के कर्मचारी हैं. यह टाटा स्टील के सेवा काल को अपने जीवन का अहम पड़ाव मानती हैं. उनकी प्रेरणा स्रोत उनके ही विभाग के सीनियर राजीव रंजन सिंह, IPS हैं, जमशेदपुर की पूर्व आयुक्त निधि खरे, हिमानी पाण्डेय, नितिन मदन कुलकर्णी भी इनके आदर्श हैं. उनको टाटा स्टील का एथिक्स बहुत ही प्रिय है और आगे भी एथिक्स की राह पर चलने की हर सम्भव प्रयास करेंगी. ऐसा उनका मानना है.
गूगल के साइंस फेयर में जमशेदपुर के ही कारमेल जूनियर कॉलेज के ११ वीं के छात्र प्रशांत रंगनाथन का चयन हुआ है. अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की इस प्रतियोगिता में देश विदेश के १२ हजार छात्रों ने अपना प्रोजेक्ट जमा किया था. पूर्वी भारत से एक मात्र चयनित उम्मीदवार प्रशांत है. प्रशांत का प्रोजेक्ट था आयरन ऑक्साइड के सूक्ष्म कण कैसे फसल को बढ़ावा देता है. उसने अपना यह प्रयोग गेहूं और बार्ली के पौधों पर किया है. 
एक दुखद, पर गर्व का विषय है कि किशन कुमार दुबे जो कि पाकिस्तानी सीमा पर BSF के जवान के रूप में तैनात थे ०९ जुलाई को पाकिस्तानी हमलों में शहीद हुए हैं वे जमशेदपुर के ही हैं. शहीद किशन कुमार दुबे के पिता पूजा पाठ कराने का ही काम करते हैं. झाड़खंड के मुख्य मंत्री श्री रघुबर दास ने शहीद के परिजनों के साथ सहानुभूति जताई है. 
साफ़ सुथरे शहरों के सर्वे में जारी आंकड़ों में चंडीगढ़ अगर पहले नम्बर पर है तो जमशेदपुर को भी सातवां नम्बर प्राप्त हुआ है. यह सफाई सुथराई और नागरिक सुविधाओं को मुहैया करने में टाटा की ही अनुषंगी इकाई जुस्को महत्वपूर्ण योगदान है. यह है टाटा की सुविधा एक फोन पर सारी शिकायतें और समयबद्ध उसका निवारण! 
रघुबर दास टाटा स्टील, जमशेदपुर के कर्मचारी थे जो आज झाड़खंड के मुख्य मंत्री हैं. पहले भी वे टाटा नगर की समस्याएं हल करते रहे हैं अब तो पूरा झाड़खंड को ठीक करने में लगे हैं. रघुबर दास का स्थायी आवास टाटा स्टील का क्वार्टर ही है जहाँ वे अक्सर शनिवार और रविवार को लोगों की समस्याएं सुनते हैं. टाटा स्टील के पूर्व अधिकारी अरविन्द केजरीवाल जो आज दिल्ली के मुख्य मंत्री हैं और अपने अलग अंदाज के लिए लोकप्रिय भी हैं.
भारतीय क्रिकेट टीम के निवर्तमान कप्तान धोनी की कर्म भूमि जमशेदपुर रही है. वे यहाँ के कीनन स्टेडियम में क्रिकेट की प्रैक्टिस करते थे. वर्तमान क्रिकेटर सौरभ तिवारी भी जमशेदपुर से ही हैं. उन्हें भी टाटा स्टील ने अपने खेल विभाग में जगह दे दी है. 

विश्व प्रसिद्द महिला तीरंदाज दीपिका कुमारी जो विभिन्न स्पर्धाओं में रजत और स्वर्ण पदक जीतकर झाड़खंड और भारत का नाम रोशन कर चुकी हैं जमशेदपुर से ही हैं. इन्हें भी टाटा स्टील ने खेल विभाग में प्रबंधक के रूप में रक्खा है और हर सुविधा प्रदान करती है.
बछेंद्री पाल जो, माउंट एवेरेस्ट पर भारतीय झंडा लहड़ाने वाली पहली भारतीय महिला हैं, यही टाटा एडवेंचर फाउंडेशन की प्रमुख हैं. उनके नेतृत्व में ही जमशेदपुर निवासी प्रेमलता अग्रवाल, जो कई बच्चों की माँ हैं, ने भी एवेरेस्ट की चढ़ाई की और अन्य महिलाओं के प्रेरणास्रोत बनी हैं. बछेंद्री पाल हर साल एक नई टीम लेकर हिमालय की दूसरी श्रेणियों की चढ़ाई करती हैं. उनके हौसले को भी सलाम करना चाहिए. 

यहाँ की प्रशासनिक पदाधिकारियों में निधि खरे, वंदना दाडेल, हिमानी पाण्डेय, नितिन मदन कुलकर्णी, डॉ. अजय कुमार(पूर्व सांसद और पूर्व आईपीएस), वर्तमान उपायुक्त अमिताभ कौशल आदि का नाम आदर के साथ लिया जाता है. इन लोगों ने जमशेदपुर को बेहतर बनाने में हरसंभव प्रयास किया है.
इसके अलावा प्रियंका चोपड़ा, तनुश्री दत्ता, माधवन आदि जमशेदपुर के कलाकार बॉलीवुड में भी अपना झन्डा गाड़ चुकी हैं. फिल्म निर्माता प्रकाश झा को भी जमशेदपुर से लगाव है.
मॉनसून की धमक यहाँ भी अच्छी होती है, पर पहाड़ी क्षेत्र और जुस्को का बेहतर प्रबंधन के कारण कही जल जमाव की समस्या नहीं होती. यातायात बाधित नहीं होता, जैसा समाचार बड़े शहरों, दिल्ली, मुंबई, चंडीगढ़ में भी टी वी चैनलों के माध्यम से देखने को मिलती है. जब सुवर्णरेखा और खरकाई की नदियों में उफान होता है, निचले इलाके जो नदियों के पाट पर बसे हुए हैं में जल-जमाव होता है पर एक दो दिन में ये जलमुक्त भी हो जाते हैं. ऐसे बेहतर प्रबंध युक्त शहर पहले से ही स्मार्ट सिटी जैसा है. बिजली कट और पानी के सप्लाई बाधित होने की पूर्व सूचना भी जुस्को द्वारा दी जाती है और जल्द से जल्द उन्हें दुरुस्त भी किया जाता है. बस इतना ही, जमशेदपुर के बेहतर प्रबंधन के लिए टाटा समूह को विशेष बधाई! जय टाटा! जय जमशेदपुर!
- जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर

Saturday, 4 July 2015

डिजिटल इण्डिया और काबिल बेटियां

जुलाई महीने का पहला सप्ताह सरकारी योजनाओं के ऐलान के लिहाज से खासा अहम साबित हुआ है। खास कर टेक्नॉलजी के क्षेत्र में हुई घोषणाएं तो ऐसी हैं कि अगर इन्हें ढंग से अमल में लाया गया तो ये हर नागरिक की जिंदगी बदलने का माद्दा रखती हैं। पहली जुलाई यानी बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने डिजिटल इंडिया कार्यक्रम की धूमधाम से शुरुआत की। इसी दिन केंद्रीय मंत्रिमंडल ने किसानों के लिए राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक मंडी बनाए जाने के फैसले पर मुहर लगा दी।
इतना ही नहीं, सरकार ने मॉनसून पर किसानों की निर्भरता को कम करने के मकसद से प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना भी घोषित की जिसका मकसद हर गांव तक सिंचाई की सुविधाएं पहुंचाना है। अगले ही दिन यानी गुरुवार को कैबिनेट ने स्किल डिवेलपमेंट और आन्ट्रप्रनर्शिप पर पहली समेकित राष्ट्रीय नीति 2015 को मंजूरी दे दी। वैसे जोर सबसे ज्यादा डिजिटल इंडिया पर ही रहा। इसकी अहमियत का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि सरकार की इस मुहिम में उद्योग जगत के सभी दिग्गज कंधे से कंधा मिलाए खड़े नजर आए।
इन उद्योगपतियों ने इस कार्यक्रम की महज जुबानी तारीफ नहीं की बल्कि इसमें अपना पैसा डालने का भी संकल्प जताया। करीब 4.5 लाख करोड़ रुपए के निवेश की घोषणा वहीं हो गई। हालांकि असल सवाल निवेश की घोषणा का नहीं बल्कि वास्तविक निवेश का होता है, मगर फिर भी शुरुआती संकेत के रूप में इन घोषणाओं की अहमियत से इनकार नहीं किया जा सकता। दरअसल, डिजिटल इंडिया का यह कार्यक्रम है ही इतना खास कि इसकी अनदेखी कोई नहीं कर सकता। इसका एक मकसद 2020 तक ऐसी स्थिति तैयार करना है कि टेक्नॉलजी और इलेक्ट्रॉनिक्स से जुड़ा आयात बंद हो जाए। इसके अलावा 10 करोड़ नए जॉब्स क्रिएट करना भी इसका एक प्रमुख उद्देश्य बताया गया है।
अगर गवर्नेंस और सर्विसेज की बात करें तब तो इसके नाटकीय फायदे नजर आते हैं। इस कार्यक्रम के जरिए करप्शन में कमी आ सकती है, सर्विस डिलिवरी आसान हो सकती है, ई-कॉमर्स को बढ़ावा दिया जा सकता है, शासन को ज्यादा सहभागितापूर्ण बनाया जा सकता है और भी न जाने क्या-क्या किया जा सकता है। लेकिन सबसे बड़ी बात है इन्हें अमली जामा पहनाने की। और जब बात अमल की आती है तभी हमारी टक्कर इस तथ्य से होती है कि अपना देश आज भी फिक्स्ड लाइन कनेक्टिविटी के मामले में दुनिया में 125 वें नंबर पर और वायरलेस कनेक्टिविटी के मामले में 113 वें नंबर पर है। 2011 में शुरू किया गया नैशनल ऑप्टिक फायबर नेटवर्क बनाने का काम भी मंथर गति से बढ़ते हुए 40 फीसदी तक ही पहुंचा है। लेकिन इस दलील में भी दम है कि अगर अतीत में हमारी चाल सुस्त रही है तो इसका मतलब यह नहीं है कि भविष्य में हम तेज नहीं चल सकते। सो उम्मीद की जानी चाहिए कि नई सरकार अमल के मोर्चे पर भी हालात को बेहतर बनाएगी।
मेरे ख्याल से दूसरी प्रमुख खबर है भारत की काबिल बेटियों की – देश की इस सबसे प्रतिष्ठित परीक्षा संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) की ओर से आयोजित की गई 2014 की सिविल सेवा परीक्षा के अंतिम परिणाम घोषित कर दिए गए हैं, जिसमें इरा सिंघल को शीर्ष स्थान हासिल हुआ है।
दिल्ली की इरा सिंघल ने पहला, केरल की रेणु राज ने दूसरा और दिल्ली की ही निधि गुप्ता ने तीसरा स्थान हासिल किया है। इरा ने बताया कि वह 2010 से ही इस परीक्षा की तैयारी कर रही थीं। इरा के मुताबिक इन नतीजों से लोगों का लड़कियों और हैंडिकैप्ड लोगों के प्रति नजरिया बदलेगा। इरा ने कहा, ‘मैं आईएएस अधिकारी बनना चाहती थी। मैं शारीरिक रूप से निशक्त लोगों के लिए कुछ करना चाहती हूं।’
वहीं परीक्षा में दूसरा स्थान हासिल करने वाली केरल की रहने वाली पेशे से डॉक्टर रेणु राज (27) ने कभी सोचा भी नहीं था कि इतनी बड़ी सफलता उनके कदम चूमेगी। परिणाम घोषित होने के बाद खुशी से फूले न समाते हुए उन्होंने इस प्रतिष्ठित परीक्षा में शामिल होने वाले उम्मीदवारों से कहा कि दृढ़ता सफलता दिलाती है।
कोल्लम के एक ईएसआई अस्पताल में डॉक्टर राज ने कहा, ‘यह मेरा पहला प्रयास था। पिछली रात से ही मैं तनावग्रस्त थी। मैंने अपने माता-पिता को नहीं बताया था कि आज दोपहर मेरा परीक्षा परिणाम आने वाला है।’
उन्होंने कहा, ‘परीक्षा परिणाम जानने के लिए वेबसाइट खोलते समय मेरा तनाव चरम पर था। मैं वेबसाइट पर अपना परिणाम देख पाती इससे पहले ही मेरा फोन घनघनाना शुरू हो गया और मेरे दोस्त और चाहने वालों में मुझे बताया कि मैंने देश भर में दूसरा स्थान प्राप्त किया है।’ राज कोट्टायम जिले के चंगनाचेरी जिले की रहने वाली हैं। पिछले एक साल से वह दिल्ली में कोचिंग ले रही थीं, जिसके कारण वह और उनके माता-पिता दिल्ली में ही रह रहे थे।उन्होंने कहा, ‘मुझे विश्वास नहीं था कि मैं पहले ही प्रयास में सफल हो जाऊंगी। मैं अपनी सफलता का श्रेय अपने प्रियजनों को देती हूं, जिन्होंने हर घड़ी मेरा साथ दिया।’
राज ने कहा, ‘परीक्षा में शामिल होने वाले उम्मीदवारों से मैं कहना चाहती हूं कि दृढ़ता अपने आप में इनाम है।’ गर्व से फूले नहीं समा रहे उनके पिता ने कहा कि राज की सफलता गरीबों तथा दबे-कुचलों को समर्पित है। उन्होंने कहा कि वह इस बात से आश्वस्त हैं कि उनकी बेटी समाज के सबसे कमजोर तबके के लोगों की मदद करेगी। उन्होंने कहा, ‘एक डॉक्टर होने के नाते वह 50 या 100 मरीजों की मदद कर सकती थी, लेकिन एक सिविल सेवा अधिकारी के नाते उसके एक फैसले से हजारों लोगों को लाभ मिलेगा।’ राज के पति भी डॉक्टरी पेशे से ही जुड़े हैं।
वहीं इस परीक्षा में तीसरा स्थान हासिल करने वाली निधि गुप्ता ने कहा कि यह उनके लिए एक गर्व का पल है। वर्तमान में सहायक सीमा शुल्क एवं केंद्रीय आबकारी आयुक्त के तौर पर काम कर रहीं निधि ने कहा, ‘यह सच में एक गर्व का पल है। मैंने कड़ी मेहनत की और आखिरकार उसका फल मिला।’ निधि ने कहा कि टॉप थ्री में आने से वह खुश हैं, लेकिन असली खुशी तब मिलेगी जब मैं फील्ड में उतरूंगी।
चौथा स्थान हासिल करने वाली वंदना राव ने अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) श्रेणी में पहला स्थान हासिल किया। तीसरे प्रयास में सफल रहने वाली वंदना ने कहा, ‘मैंने लोगों को दो-दो बार फोन कर यह देखने के लिए कहा कि मैं परीक्षा में सफल रही या नहीं। यह एक खुशनुमा आश्चर्य है। यह सच में कड़ी मेहनत का नतीजा है।’
इनके अलावा यूपीएससी में पांचवा स्थान पाने वाले सुहर्ष भगत बिहार के रहने वाले हैं और वह भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मुंबई से केमिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर चुके हैं।
बिहार के समस्तीपुर जिले में रहने वाले उनके डॉक्टर पिता फलेंद्र भगत ने कहा, ‘सुहर्ष का 2011 में भारतीय लेखा परीक्षा एवं लेखा सेवा (आईएएएस) में चयन हुआ था। 2012 में उसने दोबारा परीक्षा दी और उसे भारतीय सूचना सेवा में जगह मिली। 2013 में उसे आईआरएस (आयकर) मिला। वह इस समय नागपुर में तैनात है।’
इसके बाद दो और बेटियों की चर्चा करना चाहूँगा उनमे दोनो ‘नेहा’ जमशेदपुर की है. पहली नेहा सिंह जिसने २२ वां रैंक हासिल किया हैं, इनके पिता ग्रामीण कार्य विभाग घाटशिला में सहायक अभियंता है. यह झारखण्ड टॉपर हैं. इन्होने प्लस टू की पढाई २००६ में संत माइकल स्कूल पटना से की हैं, उसके बाद २०११ में बिट्स पिलानी से केमिकल स्ट्रीम में बी टेक किया. यह भी दिल से गरीबों की सेवा करने चाहती हैं.
जमशेदपुर की दूसरी बेटी हैं – नेहा कुमारी, इन्होने २००७ में विद्या भारती चिन्मया स्कूल से प्लस टू किया, और BIT मेसरा, रांची से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में बी. टेक किया और २०१२ टाटा स्टील के इलेक्ट्रिकल टी एंड डी विभाग में मैनेजर के रूप में योगदान किया. २०१४ में टाटा स्टील की नौकरी छोड़कर IAS की तैयारी में लग गयी और २०१५ में पहली बार में ही २६ वें रैंक पाकर खुश है. इनकी उम्र भी है २६ साल है और २६ वां रैंक! क्या संयोग है! इनके पिता सुनील कुमार दुबे साधारण परिवार से आते हैं और टाटा मोटर्स के कर्मचारी हैं. इनका पैतृक गांव पटना का दबेशपुर है. यह मेरे साथ एक ही विभाग में टाटा स्टील में काम कर चुकी हैं, इसलिए भी मुझे विशेष खुशी है जब मैंने उन्हें फोन कर बधाई दी तो काफी खुश लग रही थी और टाटा स्टील के सेवा काल को अपने जीवन का अहम पड़ाव मानती हैं. उनकी प्रेरणा स्रोत उनके ही विभाग के सीनियर राजीव रंजन सिंह, IPS हैं, जमशेदपुर की पूर्व आयुक्त निधि खरे, हिमानी पाण्डेय, नितिन मदन कुलकर्णी भी इनके आदर्श हैं. उनको टाटा स्टील का एथिक्स बहुत ही प्रिय है और आगे भी एथिक्स की राह पर चलने की हर सम्भव प्रयास करेंगी. ऐसा उनका मानना है.

कुल 1236 सफल उम्मीदवारों के नामों की घोषणा की गई है। इनमें से 590 सामान्य श्रेणी, 354 ओबीसी, 194 एससी, 98 एसटी वर्ग के प्रत्याशी हैं। शीर्ष चार स्थानों पर महिलाओं ने बाजी मारी है।
मोदी जी की बेटी बचाओ अभियान को इन बेटियों ने चार चाँद लगा दिए हैं| अब तो लोगों को समझ जाना चाहिए कि हमारी बेटियां कितनी काबिल हैं और इन्हें यथोचित सम्मान दिया ही जाना चाहिए| वैसे पहले से भी हमारी बेटियां हरेक क्षेत्र में अपना नाम रोशन कर रही हैं| इन्हें सैलूट और आगे की सफलता की भरपूर कामना! “ओ री चिरैया, नन्ही सी चिड़िया, अंगना में फिर आजा रे”… एक बार फिर से गाने का मन हो रहा है|
हम आगे बढ़ रहे हैं और आगे बढ़ते जायेंगे| योग के परिणाम आने अभी बाकी हैं ! जय भारत जय हिन्द!

- जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.