Sunday, 31 May 2015

अरुणा शानबाग का गुनाहगार



42 साल कोमा में रहकर पिछले दिनों दुनिया को अलविदा कह चुकीं अरुणा शानबाग को उस दहलीज तक पहुंचाने वाले शख्स को ढूंढा जा चुका है. माना जा रहा था कि सोहनलाल सिंह सात साल की सजा काटने के बाद मर गया था, लेकिन वह जिंदा है और हापुड़ के परपा गांव में रहता है.
अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस को दिए अपने इंटरव्यू में सोहनलाल ने बताया कि वह 42 सालों से सजा भुगत रहा है. सोहनलाल ने कहा, ‘मैं मांसाहारी था, बीड़ी-शराब पीता था. जेल जाने से पहले मेरी एक बेटी थी, लेकिन जेल में जाने के बाद वह मर गई क्योंकि मैंने गलती की थी. जेल से छूटने के बाद मैंने अपनी बीवी को छुआ तक नहीं. मैंने मांस, मदिरा, बीडी, सिगरेट आदि सब कुछ छोड़ दिया. जेल से छूटने के 14 सालों के बाद मेरा एक बेटा हुआ.’
सोहनलाल अरुणा को दीदी जी कहते हुए उस घटना को हादसा कहता है और बताता है कि उसे बहुत पछतावा है और वह उनसे और अपने भगवान से माफी चाहता है.
सोहनलाल, अरुणा को दीदी संबोधित करते हुए जिसे हादसा कह रहा है, वह घटना 27 नवंबर 1973 को किंग एडवर्ड मेमोरियल हॉस्पिटल में घटी थी, जहां हॉस्पिटल के स्वीपर सोहनलाल ने अरुणा शानबाग को कुत्ते की जंजीर से बांधकर बलात्कार करके मारना चाहा था, लेकिन वह कामयाब नहीं हो सका. इस हमले से अरुणा 42 साल तक कोमा में रहीं और 18 मई को इस दुनिया को अलविदा कह गईं. इस दौरान उनके लिए इच्छामृत्यु तक की मांग की गई लेकिन उनको इस स्थिति तक पहुंचाने वाला सोहन लाल गायब रहा.
सोहनलाल ने 7 साल पुणे की यरवडा जेल में काटे थे और इसके बाद वह गायब हो गया. कभी यह अनुमान लगाया गया कि वह मर गया और कभी यह माना गया कि वह दिल्ली के किसी हॉस्पिटल में काम कर रहा है, लेकिन इस दौरान वह अपने पैतृक घर दादूपुर रहा जहां से वह कुछ दिनों बाद अपने ससुराल पारपा चला गया. अब वह घर से 25 किलोमीटर दूर एक पावर प्लांट में लेबर कॉन्ट्रैक्टर है. सोहनलाल अपनी उम्र 66 बताता है जबकि उसका बेटा 72 बताता है.
सोहनलाल को अरुणा की मौत के बारे में पता नहीं था जब एक अखबार के पत्रकार ने उससे संपर्क बनाया तब उसे पता चला. सोहनलाल कहता है, ‘मैं सुबह 6 बजे काम पर निकल जाता हूं, रात 8 बजे वापस आता हूं. मुझे मजदूरी में रोज 261 रुपये मिलते हैं.’
सोहनलाल अपनी पत्नी, दो लड़कों, एक लड़की और तीन पोते-पोतियों के साथ रहता है. बेटे भी मजदूर हैं. एक लड़की की वह शादी कर चुका है. सोहनलाल ने उस बात का खंडन किया कि उसने जेल से छूटने के बाद अरुणा को मारना चाहा था. सोहनलाल कहता है, ‘उस हादसे के बाद मैं दस साल तक चैन से सो नहीं पाया. मेरे में उन्हें देखने तक की हिम्मत नहीं थी फिर में हॉस्पिटल कैसे जा सकता था. मैंने तभी मुंबई छोड़ दी थी.’
उस रात की घटना के बारे में पूछने पर सोहनलाल कहता है, ‘ जो कुछ उस रात हुआ वो बस गुस्से का नतीजा था. हम दोनों के बीच लड़ाई हुई, वहां काफी अंधेरा था और मैं बेहद गुस्से में था. उन्होंने भी मुझे काफी मारा था. हाथापाई के दौरान उनके गहने इधर-उधर हो गए थे तो पुलिस ने मुझ पर गहने चुराने का आरोप भी लगाया. मुझे यह स्वीकार करने के लिए पीटा गया कि मैंने रेप किया है जबकि मैंने ऐसा कुछ नहीं किया था. अरुणा दीदी मुझ पर कुत्तों का खाना चुराने का इल्जाम लगाती थीं जबकि मैं तो कुत्तों से खुद डरता था. मैंने अपने सीनियर्स से कहा था कि मुझे डॉग वॉर्ड की ड्यूटी से हटा दिया जाए लेकिन एक स्वीपर की कौन सुनता है.’
सोहनलाल ने कहा कि लोग सोचते थे कि मैं मर गया हूं लेकिन वास्तव में मैं मरना चाहता हूं. मैं उन यादों से तंग आ चुका हूं इसलिए अब मैं मरना चाहता हूं.
एक टीवी चैनल ने पारपा गांव जाकर सोहनलाल से मुलाकात की. जब सोहनलाल से उसकी सजा के बारे में पूछा गया तो उसने कहा, “मुझे सजा हुई थी. मैं प्रायश्चित कर रहा हूं लेकिन मुझे उस घटना के बारे में कुछ याद नहीं है. अब सिसक-सिसक कर जिंदगी काट रहा हूं.”
जब सोहनलाल से पूछा गया कि उसकी वजह से किसी ने 42 साल सज़ा काटी है, तो उसने कहा, “हां, साहब बहुत अफसोस है. मैंने अपना गांव छोड़ दिया. रिश्तेदार के यहां रहता हूं. गांव के लोगों से मेलजोल नहीं रखता. काम से काम रखता हूं.”
सोहनलाल ने कहा, “मेरे घर में पत्नी है, बच्चे हैं. पत्नी सब जानती है. वह कहती थी, समझाती थी. बहुओं से नजर मिलाने में शर्म आती है. मैं अब भी सजा ही काट रहा हूं.”
सवाल यही है कि इस तरह के अपराध करने वाले क्या अन्य लोगों को भी अफ़सोस है. निर्भया काण्ड का अपराधी रामसिंह को शायद अपने कृत्य पर अपराधबोध हुआ और उसने जेल में ही आत्म-हत्या कर ली, पर उसी का साथी मुकेश, पवन, विनय, अक्षय आदि को कोई पछतावा नहीं है. छठा नाबालिग होने के कारण सजा से बच गया है और सुधार गृह में मौज कर रहा है, जबकि उसी का अपराध जघन्यतम था…. और भी कई ऐसी अनेक घटनाएँ हुई हैं जिनमे पीड़िता मारी गयी है, फिर भी उसके अपराधी को या तो सजा ही नहीं हुई और उसे अफ़सोस भी नहीं है. क्या इस तरह के अपराधी के लिए कोई ब्यवस्था की जा सकती है ताकि वह दूसरों के लिए उदाहरण बने और इस प्रकार के अपराधों पर रोक लग सके? सामाजिक बहिष्कार का डर इन गरीब लोगों को ही होता है, अमीर लोगों के चाहनेवाले हर हाल में रहते हैं. कुछ नाम यहाँ मैं लेना चाहता हूँ. क्या तलवार दंपत्ति से किसी ने पूछा कि उन्हें अपने कृत्य पर अफ़सोस है या नहीं? सलमान खान जो सजा से बच गये हैं, क्या उन्हें अपने कृत्य पर अफ़सोस है? ऐसे नामचीन चेहरे हैं जिन्हे अपने किये पर कोई पछतावा नहीं. और बहुत सारे उदाहरण हैं. क्या ऐसे समय में यह सोचने और मंथन करने की घड़ी नहीं है कि जघन्य अपराध करनेवालों को ऐसी सजा दी जाय ताकि दूसरे ऐसी गलती करने से पहले सौ बार सोचें.
न्यायालय, संसद, समाज, स्वयं सेवी संस्थाएं एवं बुद्धिजीवी वर्ग को इस पर चिंतन कर राह निकालने की कोशिश करनी ही चाहिए ताकि अपराध कम हो और लोगों में स्वयम शुद्ध और सात्विक चेतना का विकास हो. न कि अपराध बढ़ते रहें और उनपर लीपा पोती होती रहे. हमारी शिक्षा ब्यवस्था, सामाजिक, पारिवारिक रहन-सहन, विचार-व्यवहार ऐसे हो ताकि एक स्वस्थ वातावरण युक्त समाज का निर्माण हो. सभी एक दूसरे के साथ प्रेम से रहें और एक दूसरे के हितचिन्तक हों. हम अपने को विश्वगुरु होने का दावा करते हैं, हमारे धर्म सबसे बेहतर हैं, हमारी संस्कृति और सभ्यता हजारों साल पुरानी है. हमें उसका गर्व भी है, लेकिन जब दुर्दांत घटनाएँ हमरे समाज में घटती है तो शर्म भी तो होनी चाहिए. हमरे बच्चे भावी पीढ़ी आखिर क्या सीखेगी? क्या ये टी वी चैनल, पत्र पत्रिकाएं इस दिशा में सक्रिय हैं या घटना को सिर्फ सनसनीखेज बनाकर प्रस्तुत कर ब्यवसाय बढ़ाना ही एक मात्र इनका उद्देश्य रह गया है! मैं इस घटनाक्रम के माध्यम से सबसे अपील करना चाहता हूँ कि कुछ ऐसा करें ताकि अपराध में कमी हो और हम सभी आपसी भाईचारा और प्रेम से रहें. रिश्तों की मर्यादा कायम रहे. 

- जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर

Monday, 25 May 2015

दिल्ली की जंग केजरी के संग

सबसे पहले मैं यह स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि मुझे कानून और संविधान की ख़ास जानकारी नहीं है, जो भी लिख रहा हूँ मीडिया रिपोर्ट और कुछ विशेषज्ञों की राय को आधार मान कर ही लिख रहा हूँ. जैसा कि पिछले लगभग एक सप्ताह से या कहें १० दिन से दिल्ली के मुख्य मंत्री अरविन्द केजरीवाल और उपराजयपाल (लेफ्टिनेंट गवर्नर) नजीब जंग के बीच अधिकारों को लेकर जंग जारी है और यह ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रही. दिल्ली के उच्च अधिकारियों, मुख्य सचिव आदि की नियुक्ति को लेकर जो काम आपसी सलाह मशविरा करके शांतिपूर्ण ढंग से किया जा सकता था वह दोनों के लिए अहम की लड़ाई बन गयी है. दोनों अपने अपने निर्णय पर अडिग नजर आते हैं. अब आइये इस जंग की समीक्षा करें.
राम जेठमलानी, सुब्रमण्यम स्वामी तो सीधे सीधे भाजपा के ही चेहरे हैं, राजीव धवन, के टी एस तुलसी तटस्थ तो फुल्का भी कभी भाजपा के ही थे. ये सभी आज देश के वरिष्ठ एवं सम्मानित वकील हैं. इन सबकी राय में उपराज्यपाल गलत हैं और दिल्ली सरकार सही है. संविधान तो इतना Vague (अस्पष्ट) है कि सभी अपनी सुविधा के अनुसार इसकी ब्याख्या करने लगते हैं, लेकिन प्रश्न है कि केंद्र सरकार लोकतंत्र की sanctity (शुचिता) खत्म करने पर तुली है.
दिल्ली में चल रही केजरीवाल और नज़ीब के बीच की जंग में केन्द्र सरकार ने उप-राज्यपाल नज़ीब जंग का साथ देते हुए कहा है कि अफसरों के ट्रांसफर और पोस्टिंग का पहला अधिकार राज्यपाल को है. केन्द्र सरकार ने दिल्ली सरकार को नोटिफिकेशन भेजा है, जिसमें साफ तौर पर 239AA का हवाला देते हुए कहा गया है कि उप-राज्यपाल नज़ीब जंग का फैसला बिलकुल सही है. ट्रांसफर और पोस्टिंग उप-राज्यपाल के अधिकार के तहत आता है.
इस फैसले पर दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया ट्वीट कर कहा है कि यह नोटिफिकेशन एक फतवा है, वहीं दूसरी तरफ दिल्ली के सीएम केजरीवाल ने इसे बीजेपी की हार बताया है.
वरिष्ठ वकील केटीएस तुलसी का कहना है कि केंद्र सरकार का दिल्ली के बारे में नया नोटिफिकेशन सिर्फ एक “रद्दी का टुकड़ा” है. जाने माने वरिष्ठ वकील गोपाल सुब्रमण्यम भी इस नोटीफिकेसन को गलत बता रहे हैं. अब केजरीवाल ने इस नोटिफिकेशन पर चर्चा के लिए दिल्ली विधान सभा का विशेष सत्र दो दिनों के लिए २६ और २७ मई को बुलाया है, देखते हैं इस चर्चा के क्या नतीजे निकालकर सामने आते हैं.
भारत की जनता ने पर्दे पर एक दिन के मुख्यमंत्री की ”नायक” वाली भूमिका में ”अनिल” को देखा है. उस ”नल-नील” की ताकत को भी आत्मसात किया है जिसकी ”कारीगरी” से तैरते पत्थरों वाला पुल पार कर के ”राम की सेना” ने ‘लंकापति रावण का मान-मर्दन’ किया था. उसी जनता ने रोमेश भंडारी जैसे ”महामहिम” की महिमा से मंडित ”एक दिन के मुख्यमंत्री” जगदंबिका पाल का ”मान-मर्दन” होते हुए भी देखा है. इसी जनता-जनार्दन ने ”उन्चास दिन वाले नायक” को ‘सड़सठ’ की ताकत देकर नल-नील वाली ‘इंजीनियरिंग’ शक्ति देने की कोशिश की. पर ”समुद्र” इतनी आसानी से रास्ता दे दे, ये संभव नहीं है…. जिसे हम ”समुद्र का अहंकार” समझ रहे हैं वो ”रावण का भय” भी हो सकता है. लोग इंतजार में हैं कि ”राम” कब ये कहने को विवश होते हैं…
”विनय न मानत जलधि जब, गये तीन दिन बीत
बोले राम सकोप तब, भय बिनु होय न प्रीत।।”
मुख्यमंत्री और उप-राज्यपाल के ”दंगल” ने अब अपना अखाड़ा बदल लिया है. अब यह दंगल भाजपा और ‘आप’ के बीच शुरू हो गया है. ‘आप’ के नेताओं का मानना है कि उप-राज्यपाल नजीब जंग केंद्र सरकार के इशारे पर अरविन्द केजरीवाल सरकार को ठप्प करने पर उतारू हैं. वे न तो किसी अफसर की नियुक्ति और न ही तबादला करने दे रहे हैं. सभी महत्वपूर्ण विभागों की फाइलें सीधे अपने पास मंगा रहे हैं. अफसरों को वे ही निर्देश कर रहे हैं. वे दिल्ली की सरकार को उसी तरह चला रहे हैं, जैसे कि वे पिछले साल चला रहे थे, जब वहाँ कोई चुनी हुई सरकार नहीं थी.
अरविन्द केजरीवाल ने मोदी जी को पत्र भी भेजा है. उनके आरोप केंद्र सरकार पर हैं कि सरकार के इशारे पर ही सब कुछ हो रहा है. कुछ हद तक ये सही हो सकता है, क्योंकि किसी भी उप-राज्यपाल की अपनी तो कोई हैसियत नहीं होती. वह जनता के द्वारा चुना नहीं जाता. वह तो केंद्र का नुमाइंदा होता है. राष्ट्रपति का प्रतिनिधि होता है और राष्ट्रपति केद्र सरकार की इच्छा के बिना अपनी उंगली भी नहीं हिला सकते. लेकिन नजीब जंग ने जो भी आदेश जारी किए हैं, उनके पीछे संवैधानिक प्रावधान हैं, ऐसा उनका कहना है.
संविधान वैसा ही होता है, जैसी उसकी व्याख्या की जाए. अलग-अलग संविधान-शास्त्रियों की राय भी दोनों तरफ झुकती दिखाई पड़ती है. ऐसी स्थिति में राष्ट्रपति की राय सर्वोपरि होती है. राष्ट्रपति से नजीब और अरविन्द दोनों मिल चुके हैं लेकिन वो फिलहाल मौन हैं. दिल्ली सरकार का दंगल जारी है.
महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि प्रचंड और अपूर्व बहुमत से चुनी हुई सरकार उप-राज्यपाल की कठपुतली कैसे बनी रह सकती है? लेकिन क्या भारत की केन्द्रीय राजधानी दिल्ली में दो पूरी सरकारें एक साथ चल सकती हैं? इसीलिए दिल्ली को केंद्र-शासित क्षेत्र कहा जाता है. इस दुविधा का समाधान दंगल से नहीं, बातचीत से निकल सकता है. अब सीधी बातचीत मोदी सरकार और केजरीवाल सरकार के बीच होनी चाहिए. यदि यह दंगल इसी तरह चलता रहा तो दोनों सरकारों की छवि खराब होगी और पिसेगी दिल्ली की जनता जिसने वर्तमान दोनों को सरकारों को पदासीन किया है. फिलहाल के सर्वे बतला रहे हैं – दिल्ली में सौ दिन के काम काज से ५९% संतुष्ट हैं जबकि ४१ % असंतुष्ट हैं. अभी अगर चुनाव हुए तो आप को ५३% और भाजपा को ३७% मत मिलेंगे. केजरीवाल अभी भी दिल्ली के लोकप्रिय नेता बने हुए हैं. यंही जनता उनके साथ है फिर संविधान की आड़ में केजरीवाल के ‘पर’ कतरने की कोशिश कहीं से जायज नहीं दीखता. मोदी जी ने भी अपनी पसंद की टीम बनाई है सभी चुनी हुई सरकारें अपने पसंद की ट्रीम बनाती है फिर दिल्ली में राज्यपाल सर्वे सर्वा क्यों ? दिल्ली की जनता को सजा क्यों? यदि उप राज्यपाल ही सर्वेसर्वा है तो चुनाव का नाटक क्यों? 

एक कथा – सन्दर्भ ‘पंच’
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एक बार एक हंस और हंसिनी हरिद्वार के सुरम्य वातावरण से भटकते हुए, उजड़े वीरान और रेगिस्तान के इलाके में आ गये! हंसिनी ने हंस को कहा कि ये किस उजड़े इलाके में आ गये हैं ?? यहाँ न तो जल है, न जंगल और न ही ठंडी हवाएं हैं, यहाँ तो हमारा जीना मुश्किल हो जायेगा.भटकते भटकते शाम हो गयी तो हंस ने हंसिनी से कहा कि किसी तरह आज की रात बीता लो, सुबह हम लोग हरिद्वार लौट चलेंगे .
रात हुई तो जिस पेड़ के नीचे हंस और हंसिनी रुके थे, उस पर एक उल्लू बैठा था.वह जोर से चिल्लाने लगा. हंसिनी ने हंस से कहा- ‘अरे! यहाँ तो रात में सो भी नहीं सकते. ये उल्लू चिल्ला रहा है’ हंस ने फिर हंसिनी को समझाया कि किसी तरह रात काट लो, मुझे अब समझ में आ गया है कि ये इलाका वीरान क्यूँ है ??
ऐसे उल्लू जिस इलाके में रहेंगे वो तो वीरान और उजड़ा रहेगा ही. पेड़ पर बैठा उल्लू दोनों की बातें सुन रहा था.सुबह हुई, उल्लू नीचे आया और उसने कहा कि हंस भाई, मेरी वजह से आपको रात में तकलीफ हुई, मुझे माफ़ कर दो’ हंस ने कहा- कोई बात नही भैया, आपका धन्यवाद! यह कहकर जैसे ही हंस अपनी हंसिनी को लेकर आगे बढ़ा, पीछे से उल्लू चिल्लाया, अरे हंस मेरी पत्नी को लेकर कहाँ जा रहे हो.हंस चौंका- उसने कहा, आपकी पत्नी ?? अरे भाई, यह हंसिनी है, मेरी पत्नी है,मेरे साथ आई थी, मेरे साथ जा रही है. उल्लू ने कहा- खामोश रहो, ये मेरी पत्नी है. दोनों के बीच विवाद बढ़ गया. पूरे इलाके के लोग एकत्र हो गये. कई गावों की जनता बैठी. पंचायत बुलाई गयी. पंचलोग भी आ गये! बोले- भाई किस बात का विवाद है ?? लोगों ने बताया कि उल्लू कह रहा है कि हंसिनी उसकी पत्नी है और हंस कह रहा है कि हंसिनी उसकी पत्नी है. लम्बी बैठक और पंचायत के बाद पंच लोग किनारे हो गये और कहा कि भाई बात तो यह सही है कि हंसिनी हंस की ही पत्नी है, लेकिन ये हंस और हंसिनी तो अभी थोड़ी देर में इस गाँव से चले जायेंगे. हमारे बीच में तो उल्लू को ही रहना है.इसलिए फैसला उल्लू के ही हक़ में ही सुनाना चाहिए! फिर पंचों ने अपना फैसला सुनाया और कहा कि सारे तथ्यों और सबूतों की जांच करने के बाद यह पंचायत इस नतीजे पर पहुंची है कि हंसिनी उल्लू की ही पत्नी है और हंस को तत्काल गाँव छोड़ने का हुक्म दिया जाता है! यह सुनते ही हंस हैरान हो गया और रोने, चीखने और चिल्लाने लगा कि पंचायत ने गलत फैसला सुनाया…उल्लू ने मेरी पत्नी ले ली! रोते- चीखते जब वह आगे बढ़ने लगा तो उल्लू ने आवाज लगाई – ऐ मित्र हंस, रुको! हंस ने रोते हुए कहा कि भैया, अब क्या करोगे ?? पत्नी तो तुमने ले ही ली, अब जान भी लोगे ? उल्लू ने कहा- नहीं मित्र, ये हंसिनी आपकी पत्नी थी, है और रहेगी! लेकिन कल रात जब मैं चिल्ला रहा था तो आपने अपनी पत्नी से कहा था कि यह इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए है क्योंकि यहाँ उल्लू रहता है!
मित्र, ये इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए नहीं है कि यहाँ उल्लू रहता है.यह इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए है क्योंकि यहाँ पर ऐसे पंच रहते हैं जो उल्लुओं के हक़ में फैसला सुनाते हैं! साभार … मार्कण्डेय काटजू साहब की वाल से …
- जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर

Monday, 11 May 2015

9 मई और मोदी जी के विभिन्न कार्यक्रम

दंतेवाड़ा, भारत के छत्तीसगढ़ प्रान्त का एक शहर है जो कि दंतेवाड़ा जिला के अंतर्गत आता है.| यह दंतेवाड़ा जिला का प्रशासनिक कार्यालय भी है.| इस शहर एवं जिले का नाम यहाँ की स्थानीय देवी मां दंतेश्वरी के नाम पर पड़ा. यह क्षेत्र नक्सलियों का गढ़ है विकास से दूर यहाँ के आदिवासी जल, जंगल और जमीन के लिए संघर्षरत हैं. माओवादियों के आतंक के कारण यह इलाका खूबसूरत होते हुए भी उपेक्षित है. अक्सर इस इलाके में नक्सलियों और सुरक्षा बालों के बीच मुठभेड़ होते ही रहते हैं और ज्यादातर हमारे पुलिसकर्मी ही मारे जाते हैं. तीन साल पहले दंतेवाड़ा में हुए नक्सली हमले में 76 जवानों को बेरहमी से मार दिया गया था. नक्सलियों की बर्बरता की यह तस्वीरें दिल दहला देंने वाली थी.
दंतेवाड़ा भारत सरकार द्वारा निर्मित सलवा-जुडूम और माओवादियों के बीच लडाई के चलते पिछले वर्ष ३५०से अधिक लोग मारे गए और लगभग ५०००० लोग शिविरों में स्थानांतरित हो गए. सलवा-जुडूम को, जिसका गठन २००५ में हुआ, राज्य सरकार द्वारा शान्ति मिशन का नाम दिया गया है.| दूसरी ओर माओवादियों का कहना है कि सलवा-जुडूम का निर्माण आदिवासियों से ज़मीन लेकर बड़े गैर-सरकारी निगमों को देने में मदद करने के लिए किया गया है.|
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को नक्सलियों के गढ़ छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा का दौरा किया. दंतेवाड़ा में मोदी ने एक सभा को संबोधित करते हुए नक्सलियों को पांच दिन का एक ‘प्रयोग’ करने की सलाह दी. मोदी ने कहा कि इस प्रयोग से एक ‘बच्चा’ उनके जीवन को बदलकर रख देगा. मोदी ने इस दौरान बस्तर के लिए रेल लाइन समेत 24 हजार करोड़ की योजनाओं की घोषणा की. मोदी ने नक्सलियों से एक प्रयोग करने को कहा. उन्होंने इसके बारे में बताते हुए कहा, ‘दो-पांच दिन के लिए कंधे पर से बंदूक नीचे रख दीजिए. आदिवासियों की तरह सादे कपड़े पहन लीजिए. आपके कारण जिस परिवार ने किसी अपने को खोया है, उस घर के बचे बच्चे के साथ 5 दिन बिताकर आइए. उससे बातें कीजिए. उसे मत बताइए कि आप कौन हैं. मैं विश्वास से कहता हूं वह बच्चा अपने अनुभव से आपको बदल देगा. आप हिल जाएंगे कि आपने कितना पड़ा पाप किया है’. अब देखना है की मोदी जी के इस बात का असर नक्सलियों पर कितना पड़ता है. वैसे मोदी ने इस दौरान बस्तर के लिए 24 हजार करोड़ रुपये की योजनाओं की घोषणा की. मोदी ने कहा कि बस्तर के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि एक साथ 24 हजार करोड़ के पूंजी निवेश के साथ फैसला किया गया है. उन्होंने कहा कि बस्तर जिले में 24 हजार करोड़ रुपये के प्रॉजेक्ट्स की जो शुरुआत हुई है, उससे आने वाले दिनों में बस्तर की जिंदगी में कैसा बदलाव आएगा, इसका उन्हें अनुमान है. उन्होंने कहा कि बस्तर में रावघाट से जगदलपुर तक रेल की पटरी बिछने से यह पूरा इलाका देश की मुख्य धारा से जुड़ेगा.
मूल भूत सुविधाओं के विस्तार से जीवन शैली में सुधार होगा और लोगों को रोजगार भी मिलेगा. पिछड़ा इलाका भी विकास के मार्ग पर चल पड़ेगा. हो सकता है उस इलाके का विकास होने से नक्सलियों के आतंक में भी कमी आएगी. लोग बन्दूक छोड़ काम के औजार पकड़ेंगे, खेती करेंगे या कोई रोजगार शुरू करेंगे. लोगों को रोजगार मिलेगा, तो खुशहाली आएगी यही तो सपना है, हमारे प्रधान मंत्री मोदी जी का. आम जनता भी यही चाहती है, पर जल्द चाहती है. देरी होने से बेसब्री बढ़ जाती है.
उधर नई दुनिया के जगदलपुर संवाददाता के अनुसार प्रधानमंत्री के छत्तीसगढ़ दौरे पर आने से पूर्व अगवा किए एक हजार से ज्यादा ग्रामीणों में से एक की हत्या के बाद शेष को नक्सलियों ने छोड़ दिया। साथ ही, ग्रामीणों को पुलिया निर्माण में सहायता करने से दूर रहने की चेतावनी दी. शनिवार रात प्रधानमंत्री के प्रदेश से जाने के बाद नक्सलियों के चंगुल से छूटे ग्रामीण अपने घरों को वापस आ गए. इनमें महिलाओं, पुरुषों के अलावा बच्चे भी शामिल थे. इससे पहले शुक्रवार रात नक्सलियों ने बस्तर संभाग के सुकमा जिला स्थित तोंगपाल थाना से महज डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर मारेंगा व टाहकवाड़ा पंचायतों के छह गांवों में जमकर आतंक मचाया था.रात करीब 10 बजे 300 से अधिक वर्दीधारी हथियारबंद नक्सली मारेंगा पंचायत के मारेंगा, कानापारा व टीपनपाल गांव जबकि टाहकवाड़ा पंचायत के जूनापानी, कोटवारपारा, पेरमापारा गांव में आ धमके। रात में ही घर-घर दस्तक देकर लोगों को उठाया और साथ चलने को कहा. विरोध करने वालों की पिटाई की और उनके हाथ-पैर बांधकर ले गए. नक्सलियों ने बुजुर्ग महिलाओं को छोड़ सभी को अगवा कर लिया और उनके मोबाइल भी ले लिए. शनिवार रात जनअदालत लगाकर मारेंगा गांव के सदाराम नाग की हत्या कर दी, जबकि अन्य को छोड़ दिया. सदाराम गांव के पास पुलिया निर्माण में मुंशी का काम करता था.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को सामाजिक क्षेत्र की तीन बड़ी योजनाओं की शुरुआत की. इनमें से दो बीमा क्षेत्र से जुड़ी हैं और एक पेंशन स्कीम है. मोदी ने आज कोलकाता में नजरुल मंच से प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना (जीवन बीमा), प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना (दुर्घटना बीमा) और अटल पेंशन योजना की शुरुआत की. राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की मौजूदगी में मोदी ने इस मौके पर कहा कि हम सत्ता में आए और तय किया कि किसी को एक हज़ार रुपये से कम पेंशन नहीं मिलेगा. पश्चिम बंगाल में दो दिनों के दौरे पर आए पीएम ने कोलकाता में कहा कि गरीबों को सहारा नहीं शक्ति की जरूरत है. सामाजिक सुरक्षा से जुड़ी इन योजनाओं को शुरू करते हुए उन्होंने इस ओर ध्यान दिलाया कि देश में 80 से 90 फीसदी लोगों के पास किसी तरह का बीमा या पेंशन स्कीम नहीं है.
मोदी ने बताया कि देश में चार महीने में 15 करोड़ नए खाते खोले गए हैं जिनमें 15,000 करोड़ रुपये जमा किए गए हैं. उन्होंने इस बात को दोहराया कि वे प्रधान सेवक की तरह काम कर रहे हैं. उन्होंने यहां एक कार्यक्रम में कहा, ‘मैंने गरीबों से कहा है, यह देश, यह सरकार और हमारे बैंक आपके लिये है.. गरीब सहारा नहीं चाहते हैं। हम जिस तरीके से सोचते हैं, उसमें बदलाव लाने की जरूरत है. गरीबों को शक्ति चाहिए.’ मोदी ने कहा कि 60 साल पार कर जाने के बाद किसी को सहारे की जरूरत नहीं होगी. साथ ही रसोई गैस सब्सिडी सीधे लाभार्थियों के बैंक खातों में डाले जाने से सब्सिडी का दुरुपयोग रुका है.
प्रधानमंत्री ने जिन सामाजिक सुरक्षा योजनाओं की शुरुआत की उनमें दो लाख रुपये का दुर्घटना बीमा कवर देने वाली प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना भी शामिल है जिसका प्रीमियम मात्र 12 रुपए वार्षिक है. अन्य दो योजनाओं में प्रधान मंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना और अटल पेंशन योजना शामिल है.
प्रधानमंत्री ने कहा कि तीनों योजनाएं एक जून से अमल में आएगी और इस दिशा में आगे बढ़ते हुये पहले सात दिन में बैंकों ने 5.05 करोड़ लोगों का पंजीकरण किया है, इसमें 42 लाख लोग पश्चिम बंगाल के हैं.
इन तीन योजनाओं -प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना, प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना और अटल पेंशन योजना एक साथ देश भर में 115 स्थानों पर शुरू की गयी. प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना (पीएमएसबीवाई) के तहत सभी बचत बैंक खाताधारकों को 12 रुपये सालाना प्रीमियम पर 2 लाख रुपये का दुर्घटना बीमा मिलेगा. इस योजना में दुर्घटना के कारण मौत या स्थायी अपंगता पर 2 लाख रुपये का कवर मिलेगा. यह योजना 18 से 70 साल की आयु समूह के लोगों के लिये है।
प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना (पीएमजेजेबीवाई) के तहत सभी बचत बैंक खाताधारकों को सालाना 330 रुपये के प्रीमियम पर बीमित व्यक्ति की मौत होने की स्थिति में 2 लाख रुपये का जीवन बीमा कवर मिलेगा. यह योजना 18 से 50 साल के आयुवर्ग के लोग ले सकते हैं. अटल पेंशन योजना का जोर असंगठित क्षेत्र पर होगा और अंशधारकों को 1,000, 2,000, 3,000, 4,000 और 5,000 रुपये प्रति महीने पेंशन के रूप में मिलेगा. पेंशन 60 वर्ष की आयु से मिलनी शुरू होगी. इस योजना में दी जाने वाली पेंशन 18 से 40 साल की उम्र के लोगों द्वारा दी जाने वाली योगदान राशि पर निर्भर करेगी.
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि यह गलत धारणा है कि बड़े औद्योगिक घराने ज्यादा रोजगार देते हैं, करीब 5.5 करोड़ लघु एवं मझोले उद्यमी 14 करोड़ से अधिक लोगों को रोजगार उपलब्ध कराते हैं. उन्होंने कहा, ‘हम कुछ भी हासिल कर सकते हैं, लेकिन अगर फल गरीबों तक नहीं पहुंचता है तो हमारी विकास यात्रा अधूरी है … हम दुनिया को ‘मेक इन इडिया’ के लिये बुला रहे हैं और साथ ही हम गरीबों के लिये बैंक खातें खोल रहे हैं।’ प्रधानमंत्री ने लोगों से अपने घरेलू नौकरों, ड्राइवरों और लिफ्टमैन समेत अन्य के लिये इन योजनाओं के लिये प्रीमियम देने का भी अनुरोध किया.
शनिवार को नजरूल मंच पर कार्यक्रम से पहले मोदी और ममता के बीच घंटे की प्राइवेट मीटिंग ने सबको हैरान कर दिया, क्योंकि यह मीटिंग पहले से फिक्स नहीं थी। ममता मीटिंग के बाद मोदी के साथ मंच पर नजर आईं। यह पहला मौका था जब मोदी और ममता सार्वजनिक तौर पर साथ दिखे। बाद में दोनों ने राजभवन में साथ-साथ चाय-नाश्ता भी किया।
नजरूल मंच पर मोदी और ममता के बीच बेधड़क बातचीत हो रही थी। बीच-बीच में दोनों मुस्कुरा भी रहे थे। जब सीएम ममता बनर्जी ने राज्य के कई पंचायतों में बैंक नहीं होने की शिकायत की तो पीएम ने कहा, ‘मैं उनसे (ममता से) सहमत हूं। यह समस्या 60 सालों से बनी है। उन्होंने यह मुद्दा मेरे सामने उठाया क्योंकि वह जानती हैं कि मैं इसका समाधान कर सकता हूं।’
दर्शकों ने भी यह देखा कि पीएम और सीएम के बीच तल्खी खत्म हुई है और सहयोग एवं विकास की बातें हो रही हैं। त्रिपुरा के सीएम माणिक सरकार ने जब पीएम मोदी से मुलाकात की थी तो यही ममता बनर्जी ने माणिक का मजाक उड़ाया था। लेकिन, शनिवार को सुर बदलते हुए ममता ने कहा, ‘राज्य और केंद्र को कंधे से कंधा मिलाकर देश के विकास के लिए काम करना चाहिए।’
मतलब माहौल बदल रहा है. पहले नीतीश कुमार के साथ सम्बन्ध अच्छे बने, फिर ममता दीदी के साथ!… हो रहा भारत निर्माण!
गुरूदेव रबीन्द्रनाथ टैगोर को श्रद्धांजलि देते हुए मोदी ने कहा, ‘इस भूमि (बंगाल) को मां लक्ष्मी और सरस्वती का आशीर्वाद प्राप्त है।’ पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस अवसर पर कहा कि सरकार को निश्चित रूप से हमेशा लोगों के लिये काम करना चाहिए. उन्होंने कहा, ‘केंद्र तथा राज्यों को साथ मिलकर काम करना है तभी देश के लिये अच्छा होता हैं आइये इस कार्यक्रम को देश के लोगों को समर्पित करे.’ मोदी सरकार के एक साल पूरा होने के समय इन्हे महत्वपूर्ण उपलब्धि के तौर पर देखा जाना चाहिए. और यह एक अच्छी शुरुआत है. 

-जवाहर लाल सिंह जमशेदपुर

Friday, 1 May 2015

हे श्रमिक वर्ग तुम हो जहीन!

(मजदूर दिवस १ मई के उपलक्ष्य में श्रमिकों के प्रति उदगार)
यो तो हर ब्यक्ति जो मानसिक या शारीरिक श्रम करता है, एक तरह से श्रमिक ही है. पर श्रमिक या मजदूर कहने से कारखाने के मजदूर या खेतों के मजदूर पर ही ध्यान जाता है. दरअसल ये श्रमिक वर्ग, कुशल या अकुशल सभी मिलकर देश और समाज के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. बिना इनके आज कोई भी सुख-सुविधा की कल्पना भी नहीं कर सकता. पर विडम्बना यही है कि यह वर्ग शुरू से ही शोषित भी रहा है. बड़े कारखानों में जो उसके अपने कर्मचारी होते हैं, उन्हें तो बहुत कुछ सुविधा प्राप्त है,पर वहीं पर ठेका पर काम कर रहे मजदूरों की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है. उनका अपना संगठन भी उतना मजबूत नहीं है. फिर भी उनका और सबका जो योगदान है, उसे किसी भी तरह से कमतर नहीं है. अाइए उनके हितार्थ जो मेरा उद्बोधन है उसे आत्मसात करें.
हे श्रमिक वर्ग तुम हो जहीन, तुम सोचो नित नूतन नवीन
तन मन को गर तुम मिला सको, ला सकते परिवर्तन नवीन
तुम काम नित्य ही करते हो, थोड़ा सोचा भी करते हो
कंपनी तुम्ही से चलती है, क्यों करे कोई तुम्हे तौहीन
गर काम को सुगम बनाओगे, फल उसका तुम ही पाओगे.
ब्यवसाय अगर फले फूले, लाभांश साथ तुम पाओगे.
एक बात गाँठ में बाँध ही लो, सुझाव बताना जान ही लो.
एक सही सुझाव कर सकती है, कंपनी का हित यह मान ही लो.
गुरु लघु का तुम अब भेद न कर, ग्यारह बनते एक एक होकर
ये बड़े कभी छोटे ही थे, माना सबने है एक ही स्वर
संस्था अगर बढ़ जायेगी, सम्मान तुझे दिलवाएगी,
तुम ही हो इसके मेरुदंड, बल तुमसे ही यह पायेगी.
तुम ही हो इसके मेरुदंड, बल तुमसे ही यह पायेगी.

जवाहर लाल सिंह