Sunday, 21 September 2014

एक बार फिर भाई-भाई!

“हिन्दी चीनी भाई-भाई”- यही नारा दिया था उस पंचशील योजना के दौरान, जब पंडित जवाहर लाल नेहरू चीन यात्रा पर गये थे। उसके कुछ समय पश्चात ही चीन ने हम पर हमला कर दिया और 1962 का वो युद्ध हम हार गये। वो बीता हुआ समय है, पर सवाल ये है कि क्या अब बदले हुए वक्त में जब भारत भी सशक्त हो चुका है और विश्व में अपनी पहचान बना चुका है, तब चीन और भारत के पड़ोसी रिश्ते वैसे ही हैं, जैसे 1962 में थे अथवा नहीं? क्या चीन की सोच भारत के लिये बदली है?
बदले हुए माहौल में भारत और चीन के शीर्ष नेतृत्व ने जिस तरह एक-दूसरे के प्रति विश्वास जताया है, वह एशिया ही नहीं पूरे विश्व के लिए महत्वपूर्ण है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की बातचीत में कई जरूरी मुद्दे उठे और आपसी सहयोग पर सहमति बनी। चीन फिलहाल भारत में 20 अरब डॉलर का निवेश करने के लिए तैयार हुआ है। सिविल न्यूक्लियर मामले में सहयोग के लिए दोनों देश बातचीत करने पर सहमत हुए हैं। शिखर वार्ता में दोनों देशों के बीच 12 समझौते हुए, जिनमें पांच साल के आर्थिक प्लान पर हुआ करार बेहद अहम है। कैलाश यात्रा के लिए नए रूट, ऑडियो वीडियो मीडिया, रेलवे के आधुनिकीकरण, अंतरिक्ष, स्वास्थ्य और सांस्कृतिक क्षेत्र में सहयोग को लेकर भी समझौता हुआ। कस्टम को आसान करने का करार हुआ है। मुंबई को शंघाई की तरह विकसित करने में चीन मदद करेगा और गुजरात तथा महाराष्ट्र में दो इंडस्ट्रियल पार्क बनाएगा। जाहिर है, भारत के तेज विकास और आधुनिकीकरण में चीन की भूमिका बढ़ने वाली है। निश्चय ही इसका लाभ चीनी इकॉनमी को भी मिलेगा। कारोबारी गतिविधियां तभी सुचारू रूप से चल पाती हैं जब दो मुल्कों के सियासी और कूटनीतिक रिश्ते बेहतर होते रहें। अभी जो भरोसा राजनयिक स्तर पर कायम हुआ है, वह दोनों देशों की जनता के बीच भी बनना चाहिए, तभी आर्थिक समझौतों का कोई मतलब है। इसके लिए दोतरफा सांस्कृतिक आदान-प्रदान बढ़ाना एक अच्छा रास्ता है। दुर्भाग्य से शी जिनपिंग की यात्रा के दौरान ही जम्मू-कश्मीर के चुमार इलाके में चीनी सेना की घुसपैठ का मामला सामने आ गया। शिखर वार्ता में यह मसला भी उठा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि सीमा पर शांति के लिए वास्तविक नियंत्रण रेखा को लेकर स्थिति स्पष्ट करने की जरूरत है। उन्होंने चीन से अपनी वीजा नीति पर भी स्टैंड साफ करने को कहा। यह मसला अरुणाचल प्रदेश और कश्मीर के लोगों को स्टेपल्ड वीजा दिए जाने को लेकर उठता रहा है। चीनी राष्ट्रपति का मानना है(कूटनीतिक जवाब) कि भारत-चीन की सीमा चिह्नित न होने के कारण वहां कुछ ऐसी गतिविधियां होती हैं, जिससे गलतफहमी फैलती है। शी ने इस मुद्दे को सुलझाने का आश्वासन भी दिया है। दोनों देशों को यह बात समझनी होगी कि सीमा पर स्थायी शांति कायम करके ही आर्थिक रिश्तों को दूर तक ले जाया जा सकेगा। भारत के आम लोगों में जब तक चीन को लेकर पॉजिटिव राय नहीं बनेगी, तब तक उसका निवेश यहां अन्य देशों जितना सुरक्षित नहीं रह सकता। इसलिए आशा की जानी चाहिए कि इस दिशा में अलग से पहल होगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग की वार्ता के कुछ ही घंटे बाद चीन के सैनिकों ने लद्दाख के चुमार में भारतीय इलाके से पीछे हटना शुरू कर दिया। हालांकि, चीनी सेना के वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के पूरी तरह पीछे हो जाने की पुष्टि नहीं हो पाई है। डेमचोक में अभी भी गतिरोध बना हुआ है। घटना के बारे में बताया जाता है कि चीनी एल.ए.सी. के उस पार अपने क्षेत्र में सड़क बना रहे थे, लेकिन रविवार को उसके कामगार भारतीय क्षेत्र में घुस गए। विरोध करने पर करीब सौ भारतीय सैनिकों को 300 चीनी सैनिकों ने घेर लिया था और चार दिनों से अवैध रूप से जमे हुए थे। गुरुवार तक चीनी सैनिकों की संख्या बढ़कर 1000 के करीब हो गई थी। इसके बाद भारत ने भी अपने सैनिकों की संख्या बढ़ा दी। इससे तनाव काफी बढ़ गया। आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक, गुरुवार रात करीब 9:45 बजे चीन के सैनिक लौटने लगे। इसके बाद भारत ने भी अपने सैनिकों की संख्या घटा दी, लेकिन पैनी नजर रखी जा रही है, क्योंकि वास्तविक नियंत्रण रेखा के नजदीक चीन की आर्मी ने कैंप लगा रखे हैं। हालात की समीक्षा की जाएगी। चुमार से करीब आठ किमी दूर डेमचक इलाके में चीनी खानाबदोश जाति ‘रेबोस’ के घुसने और भारतीय क्षेत्र में चल रहे नहर निर्माण कार्य को रुकवाने की कोशिश के कारण बनी तनाव की स्थिति जस की तस है।
मोदी ने द्विपक्षीय बातचीत में चीन के राष्ट्रपति चिनफिंग के सामने सीमा विवाद और चीनी सैनिकों की घुसपैठ का मुद्दा जोरशोर से उठाया था। मोदी ने चीन से कहा कि वह भारत की संवेदनशीलता का सम्मान करे ताकि दोनों देशों के संबंध नई ऊंचाई पर पहुंच सकें। मोदी ने इस बात पर भी ऐतराज जताया कि चीन अरुणाचल प्रदेश के निवासियों को स्टेपल्ड वीजा जारी करता है।
पीएम नरेंद्र मोदी और चीन से राष्ट्रपति शी जिनफिंग के बीच कैलाश मानसरोवर की यात्रा के लिए एक ‘अल्टरनेटिव रूट’ बनाने पर सहमति के बाद इससे जुड़ा एक गंभीर विवाद खड़ा हो गया है। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हरीश रावत ने इस नए रूट का विरोध करते हुए कहा है कि यह शास्त्र सम्मत नहीं है। नए रूट के तहत कैलाश मानसरोवर की इस धार्मिक यात्रा को नाथुला पास के जरिये कराए जाने पर सहमति बनी है। हरीश रावत का कहना है कि यह नया रूट धर्म सम्मत और शास्त्र सम्मत नहीं है। उनका कहना है कि यह लोगों की धार्मिक मान्यताओं के खिलाफ है। – अब रावत साहब की अपनी अलग राय हो सकती है, वैसे भी विपक्ष के नेता कुछ तो कहेंगे ही.
अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि भारतीय मुस्लिमों की देशभक्ति पर सवाल नहीं उठाया जा सकता है। प्रधानमंत्री बनने के बाद दिए गए अपने पहले इंटरनैशनल इंटरव्यू में मोदी ने कहा कि भारतीय मुस्लिम देश के लिए ही जिएंगे और देश के लिए ही मरेंगे। उन्होंने कहा कि अल कायदा को इस बात का भ्रम है कि वे उसके इशारों पर नाचेंगे। सीएनएन से बातचीत में अलकायदा द्वारा हाल में जारी विडियो के बारे में पूछे गए सवाल के जवाब में मोदी ने कहा, ‘मेरा मानना है कि वे हमारे देश के मुसलमानों के साथ अन्याय कर रहे हैं। अगर कोई यह सोचता है कि मुसलमान उनके इशारों पर नाचेंगे तो यह उनका भ्रम है। भारत के मुसलमान जान दे देंगे लेकिन भारत के साथ विश्वासघात नहीं करेंगे। वे भारत के लिए बुरा नहीं सोचेंगे।’ यह इंटरव्यू भारतीय मूल के जाने माने पत्रकार फरीद जकारिया ने लिया है। उन्होंने भारतीय मुसलमानों की देशभक्ति के समर्थन में तर्क देते हुए कहा, ‘भारत के पड़ोस में अफगानिस्तान और पाकिस्तान में अलकायदा का अच्छा प्रभाव है। भारत में करीब 17 करोड़ मुसलमान हैं, लेकिन उनमें से अलकायदा के सदस्य न के बराबर हैं।’ उन्होंने अलकायदा को मानवता के खिलाफ संकट बताते हुए इसके खिलाफ मिलकर लड़ने की बात कही। मोदी ने अमेरिका और भारत के बीच संबंध को और मजबूत बनाने पर जोर दिया। सितंबर के अंतिम सप्ताह में मोदी अमेरिका के दौरे पर जाने वाले हैं।
सवाल फिर वही है कि श्री नरेंद्र मोदी क्या नेहरू के कदमों पर चल पड़े हैं. १९६२ की तरह चीन फिर से धोखा तो नहीं देगा ? वैसे इसकी संभावना कम नजर आती है, क्योंकि तब और अब की स्थितियों में काफी बदलाव आया है. अब कोई भी देश जल्दी युद्ध नहीं चाहता. हाँ एक दूसरे पर दबाव बनाने की जद्दो-जहद कायम रहती है. सबको एक दूसरे की जरूरत भी है. बदले हुए ग्लोबल माहौल में ब्यापार और प्रसार बढ़ाने के लिए यह जरूरी भी है, साथ ही आतंकवाद जैसे हथकंडों से मिलकर मुकाबला करना अत्यंत ही आवश्यक है. कुछ दिन पहले तक भाजपा के कुछ नेता मुस्लिमों पर दनादन जुबानी हमले किये जा रहे थे, पर उपचुनाव में पासा पलट जाने से कदम खींच लेने में ही बुद्धिमानी है, यह मोदी जी अच्छी तरह जानते हैं. साथ ही अमेरिका जाने से पहले अपनी छवि को नया रूप देना ही होगा.
१९६२ के समय में ही भारत के तत्कालीन प्रधान मंत्री पंडित नेहरू और अमरीका के राष्ट्रपति जॉन केनेडी के साथ भी अच्छे ताल्लुकात थे. नेहरू भारतीय उद्योग के जन्मदाता कहे जाते हैं तो मोदी आधुनिक विकास के समर्थक. अब तो चाचा नेहरू की तरह मोदी भी ‘बच्चों के चाचा’ बन ही गए हैं.
चाहे जो हो मोदी जी हर कला में माहिर हैं और लगातार सफलता की सीढ़ी चढ़ते जा रहे हैं. अब तो बिल गेट्स भी आ गए है, बाढ़ पीड़ित कश्मीरियों की मदद के लिये, साथ सात लाख अमरीकी डॉलर लेकर; साथ ही प्रधान मंत्री जन-धन योजना की निगरानी रखने की भी पेशकश कर रहे हैं, जिसके लिए आर बी आई ने पिछले दिनों चिंता व्यक्त की थी. उम्मीद यही की जानी चाहिए कि उनके साथी, सहयोगी भी उनके साथ चलेंगे. वैसे श्री मोदी को विदेश मंत्रालय अपने पास ही रखना चाहिए था. विदेश मंत्री बेचारी सुषमा स्वराज कहीं भी नजर नहीं आतीं. जब विदेशों से बातें चल रही होती हैं, तो वह बिहार के नालंदा में सास्कृतिक धरोहर खोजती नजर आती हैं. वैसे अब खबर है की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज 24 सितंबर से शुरू हो रही 10 दिन की अमेरिका यात्रा में करीब 100 देशों के विदेश मंत्रियों से मुलाकात करेंगी।
योगी आदित्य नाथ अब क्या बोलेंगे वे ही जाने. वैसे उनके बारे में यही कहा जाता है, वे अपनी बात को ही सही मानते हैं.
जय भारत! जय हिन्द!
जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर

Monday, 15 September 2014

कोशी, केदार और कश्मीर का कहर

कोशी नेपाल एवं भारत के बीच बहनेवाली, गंगा की सहायक नदी है, जिसका जलग्रहण क्षेत्र करीब 69300 वर्ग किलोमीटर नेपाल में है। यह कंचनजंगा की पश्चिम की ओर से नेपाल की पहाड़ियों से उतर कर भीमनगर होते हुए बिहार के मैदानी इलाके में प्रवेश करती है। यह एक बारहमासी नदी है प्रत्येक वर्ष कोसी नदी में बह रही गाद के कारण नदी के तट का स्तर बांध के बाहर की जमीन से ऊपर हो गया है।
कोसी बराज से ऊपर 12 किमी दूरी पर 18 अगस्त 2008 को पूर्वी बांध में दरार हुआ। नदी बांध की दरार को और तोड़ती हुई नये मार्ग में बहने लगी। इस नये प्रवाह से करीब 3000 वर्ग कि.मी. क्षेत्र का सर्वनाश हुआ। आवास, विद्यालय, सड़क, चिकित्सालय सभी नदी के प्रवाह से क्षतिग्रस्त हुए। यद्यपि केन्द्र सरकार, निजी क्षेत्र के लोगों एवं गैर-सरकारी संस्थानों द्वारा राज्य सरकार की सहायता के लिए हाथ बढ़ाया गया.
कोसी नदी की बाढ़ से तबाह इलाकों का 14 हजार 808 करोड़ रु. की लागत से पुनर्निर्माण की घोषणा की गयी। उत्तर बिहार में कोसी की बाढ़ से भारी तबाही के बाद राहत व बचाव के पश्चात अब प्रभावित आबादी के दीर्घकालीन पुनर्वास, इलाके के पुनर्निर्माण की आवश्यकता है। क्यों आती है बाढ़?
पर्यावरणविदों का कहना है कि नेपाल स्थित कोसी के ऊपरी जलग्रहण क्षेत्र (हिमालय)में प्राकृतिक और मानवीय कारणों के चलते मृदा अपरदन (जमीन की ऊपरी परत अपनी जगह से हट जाना) और भूस्खलन होने से मैदानी इलाकों को प्रतिवर्ष बाढ़ की समस्या से रुबरु होना पड़ता है। ऊपरी पहाड़ी इलाके से निकलने के कारण वर्षा ऋतु के समय कोसी का बहाव अपने सामान्य बहाव से 18 गुना ज्यादा हो जाता है। ऐसे में कोसी तीव्र बहाव के साथ जमीन की ऊपरी परत को गाद के तौर पर साथ लेती आती है।
कोसी का बहाव मैदानी इलाकों में कम होने पर यह गाद नदी की सतह पर जमा होना शुरु हो जाती है। ऐसे में वर्षा होने पर नदी का जलस्तर बढ़ने लगता है। और नदी अपना प्रवाह क्षेत्र या मार्ग बदलने लगती है। जिसकी वजह से बाढ़ आ जाती है। पिछले 100 सालों में यह नदी अपने मार्ग को 200 किलोमीटर तक बदल चुकी है।
हमेशा की तरह इस साल भी कोसी का कहर बिहार के लिए शोक बनने वाली थी, हजारों लोगों को हटाया गया था, पर इस बार की त्रासदी टल गयी और लोग अपने घरों को पहुँच गए. वैसे हर साल बाढ़ की मार झेलने वाला बिहार में इस साल कम बृष्टि हुई और अधिकांश खेत बंजर ही रह गए.
उत्तराखंड और केदारनाथ
पिछले साल उत्तराखंड में आए जलप्रलय ने केदारनाथ में मौत का ऐसा तांडव मचाया कि देखने सूनने वालों की रूह कांप गई। केदार घाटी पूरी तरह तबाह हो गई। सैंकड़ों गांव लापता हो गए और हजारों लोग मारे गए।
जिस समय यह हादसा हुआ केदारनाथ की 90 होटले ठसाठस भरी हुई थी। इनमें भगवान शिव की आराधना के लिए आए हजारों लोग ठहरे हुए थे।
जल प्रलय से आई तबाही का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि केदारनाथ के नजदीक स्थित सोनबाजार इलाका भूस्खलन के कारण झील में तब्दील हो गया। केदार नाथ का मंदिर किसी तरह बच सका पर मौत का ताण्डव वहां भी खूब हुआ. एक साल बाद वहां स्थिति सामान्य होने को है, पर बीच बीच में अधिक वर्षा के कारण चेतावनी और नुक्सान तो होता ही है.
जम्मू व कश्मीर
बाढ़ से जूझ रहे जम्मू-कश्मीर में राहत और बचाव कार्य में राज्य की उमर अब्दुल्ला सरकार के नाकाम रहने के बाद अब केंद्र सरकार ने पूरी तरह मोर्चा संभाल लिया है। हालात को सामान्य करने के लिए राज्य में केंद्र ने तमाम संसाधन झोंक दिए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्देश पर केंद्रीय गृह सचिव के नेतृत्व में एक स्पेशल टीम बनाई गई है, जो राहत और बचाव कार्य को तेज करने का जिम्मा संभाल रही है।
गृह मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया, ‘उम्मीद है कि केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह घाटी के बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में फंसे लाखों लोगों के लिए चल रहे राहत एवं बचाव कार्य में मार्गदर्शन करेंगे।’ गौरतलब है कि राहत और बचाव कार्य की समीक्षा करने के बुधवार को एक उच्चस्तरीय इमर्जेंसी मीटिंग हुई थी, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हिदायत की थी कि आपदा प्रभावित लोगों की खाना और पानी जैसी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने पर ध्यान दिया जाए।
अभी तक सेना और एनडीआरएफ ने मिलकर करीब दो लाख लोगों को बचाया है, लेकिन अब भी श्रीनगर में पांच लाख से ज्यादा लोग फंसे हुए हैं। प्रधानमंत्री की हिदायत पर केंद्र ने बड़ी मात्रा में पीने का पानी, दूध, रेडी टु ईट मील वगैरह भेजा है। सूत्रों ने बताया कि 5 टन से ज्यादा मिल्क पाउडर दिल्ली से कश्मीर भेजा गया है, जबकि और 5 टन शुक्रवार को भेजा जाएगा। पीएम मोदी ने कहा था कि बाढ़ प्रभावित राज्य में रोजाना 100-150 किलोलीटर दूध की जरूरत है।
पानी घटने के बाद फैलने वाली बीमारियों के खतरे को ध्यान में रखते हुए क्लोरीन की टैबलट्स बी भारी मात्रा में भेजी जा रही हैं। सरकार ने राज्य में 10 और हेल्थ एक्सपर्ट्स को भेजने का फैसला लिया गया है। इसके अलावा रेलवे भी राज्य को 1 लाख लीटर पीने के पानी की खेप भेज रहा है। केंद्र ने राज्य सरकार से कहा है कि केंद्र से आने वाली राहत सामग्री को सुरक्षित रूप से स्टोर किया जाए, ताकि यह खराब न हो और जरूरतमंदों तक पहुंचाया जा सके।
सूत्रों ने बताया कि एयर फोर्स से हेवी लिफ्ट मिग-26 हेलिकॉप्टर तैनात करने के लिए कहा जा सकता है, जो एक बार में 60 लोगों को ले जा सकता है। इससे बचाव कार्य को तेज करने में मदद मिलेगी, क्योंकि दूसरे तरीकों से लोगों को सुरक्षित जगहों तक पहुंचाने में काफी वक्त लग रहा है।
सवाल फिर वही है की हर साल प्राकृतिक आपदाएं आती है. राहत और बचाव कार्य किये जाते हैं. हर साल हजारो लाखों लोग इससे प्रभावित होते हैं. जान-माल का भारी नुक्सान होता है, पर ऐसी ठोस परियोजना बनाई जाती ताकि इस तरह के प्रकृति हादसों से निपटा जाय और कुछ ऐसी ब्यवस्था की जाय ताकि इस तरह की समस्या हो ही ना और अगर हो भी तो तत्काल निपटने के उपाय किये जाएँ.
कश्मीर के अधिकांश शहरों में तो जल निकासी की भी समस्या है, जिससे पानी काफी देर से निकलता है. ये पहाड़ी इलाके हैं जहाँ से पानी जल्द निकल जाना चाहिए पर यहाँ तो मैदानों की तरह पानी डटा रहता है. कहते है इसका आकार कटोरे जैसा है. चारो तरफ ऊंची जमीन है इसलिए भी पानी निकालने में कठिनाई होती है.
ऐसे समय में सेना के जवानों की जितनी भी सराहना की जाय कम है. क्योंकि ये लोग धर्म, जाति, समुदाय, क्षेत्र, पार्टी आदि से ऊपर उठाकर सभी पीड़ितों की हर संभव मदद करते हैं.
नदियों को जोड़ने की योजना का कब क्या होगा पता नहीं, पर प्रकृति का जिस प्रकार दोहन और क्षरण हो रहा है, स्थिति चिंताजनक होती जा रही है. जनसँख्या का दबाव भी एक कारण है. प्रकृति संतुलन बनना जानती है. विकसित देश जापान, चीन और अमेरिका में भी बाढ़, तूफ़ान, भूस्खलन की प्राकृतिक आपदा आती रहती है. क्या यह विनाश की चेतवानी नहीं है? विकास का चरमोत्कर्ष विनाश के रूप में आता है. क्या हम प्रकृति को बचाने और उसके साथ जीने का संकल्प नहीं कर सकते? आपदाग्रस्त होने पर हम विकत परिस्थितियों में भी रहकर कई दिन या कें हफ़्तों, महीने गुजार लेते है. शिविरों में सभी जाति और धर्म के लोग सामंजस्य बैठा लेते हैं. यहाँ हम आपसी दुश्मनी भूल जाते हैं. क्या यह सबक काफी नहीं है? इस विकट परिस्थिति में सभी लोग मुक्त मन से सहायता भी करते हैं. राष्ट्रीय एकता का सूत्र ही नहीं वसुधैव कुटुम्बकम का भी भाव पैदा होता है. आपदाग्रस्त लोगों की मदद के लिए जिस तरह मीडिया और अन्य स्वयम सेवी संस्थाओं ने मदद की है, वे सभी स्तुत्य हैं. हमारी संवेदना उन सब के साथ है. उन सबको विपरीत परिस्थितियों में अपने आपको सम्हालने की शक्ति ऊपरवाला दे.
-जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.

Monday, 8 September 2014

वास्तविक नायक – श्री नरेन्द्र मोदी!

अभी तक के प्रदर्शनों से जो दृष्टिगोचर हो रहा है, प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी वास्तविक जिंदगी के नायक बनकर उभरे हैं. भूटान और नेपाल को वरदहस्त प्रदान करना, ब्रिक्स सम्मेलन में भारत का दबदबा स्थापित करना. कुरता पायजामा पहन कर एयर इण्डिया के विमान में चढ़ना और सूट पहन कर जापान की धरती पर उतरना, जापान में जाकर मछलियों को दाना खिलाना, बौद्ध मंदिरों का दर्शन करना, जापानी स्कूलों के बच्चों से मिलना, उद्योगपतियों को आमंत्रित करने की अनूठी शैली में सम्बोधन करना, बांसुरी और ड्रम बजाना, जापानी प्रधान मंत्री को गीता देते हुए यह कहना कि मेरे पास इससे बड़ा उपहार नहीं है, आपको देने के लिए, फिर वहीं से विरोधी पार्टियों पर तंज कसना कि ‘गीता का उपहार’ शायद हमारे सेक्युलर मित्रों को पसंद न आये. शिक्षक दिवस पर भारत के विभिन्न भागों के स्कूलों के बच्चों से उन्ही की तरह शरारती लहजे में बात करना…इतने सारे गुण तो एक नायक में ही हो सकते हैं.
भारतीयों फिल्मों के नायक चाहे जो भी किरदार में हों उसे गाड़ी चलाना, मारपीट करना, नाचना, गाना और बजाना तो आना ही चाहिए. जैसे को तैसा सलूक ये नायक करते हैं.
स्वानुशाशन का पालन करते हुए पहले खुद को समय का पाबंद बनाना और दूसरों को अनुशाशन का पाठ पढ़ाना ज्यादा अनुकूल होता है. पहले खुद आदर्श प्रस्तुत करें, तभी दूसरे आपका अनुसरण करेंगे. हमारे धर्मशास्त्र, इतिहास के जितने भी नायक हुए हैं, सभी ने पहले खुद को आदर्श पुरुष बनाया, तभी उनका अनुसरण लोग करते हैं. महात्मा गांधी के एक आह्वान पर पूरा देश चल पड़ता था. आज मोदी मन्त्र से सभी सम्मोहित हो जाते हैं. पूरा देश उन्हें आशा भरी नजरों से देख रहा है. सभी राष्ट्रीय मीडिया मोदी जी का लाइव टेलीकास्ट तो कर ही रहे हैं, साथ साथ उनके रिपोर्टर जनता के पास तुरंत प्रतिक्रिया लेने भी पहुँच जाते हैं. ये बात अलग है कि संसाधन युक्त स्कूल के बच्चे ही मोदी से सीधा जुड़ पाये. सुदूर इलाके में रेडिओ के द्वारा उनके भाषण/संवाद सुनाये गए. बहुत सारे स्कूलों में मूलभूत सुविधा का अभाव है. उन्हें सुविधा संपन्न बनाने की सबकी जिम्मेवारी है. सरकारी स्कूलों के स्थिति ज्यादा बदतर है, वहां सभी सरकारों को ज्यादा ध्यान देना होगा, तभी मोदी जी का संपन्न और समृद्ध भारत का सपना पूरा हो पायेगा. उम्मीद है कि आगे निरंतर सुधार देखने को मिलेंगे.
परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में जापान से भले ही सहयोग न मिला हो, उसके अनेकों कारन हो सकते हैं, पर ऑस्ट्रेलिया के प्रधान मंत्री टोनी एबोट ने भारत आकर भारत के साथ ऑस्ट्रेलिया का बिजली उत्पादन के लिए बहुप्रीतीक्षित परमाणु पर हस्ताक्षर किये. यह करार हो जाने से भारत की बिजली की आवश्यकता पूरी करने में काफी हद तक मदद होगी …ऑस्ट्रेलिया भारत को बिजली उत्पादन को यूरेनियम देगा ..ऑस्ट्रेलिया में लगभग २०% यूरेनियम की उपलब्धता है. साथ ही तमिलनाडु से चोरी की गयी अर्धनारीश्वर और नटराज की चोल वंश के समय की मूर्तियां भी ऑस्ट्रेलिया द्वारा इस तरह वापस लौटाना एक चमत्कार से कम नहीं है. ज्ञातव्य है कि (सुभाष कपूर द्वारा चोरी की गयी मूर्तियों) इन मूर्तियों को ऑस्ट्रेलया के आर्ट गैलरी में रखा गया था. इस पर भारत ने बहुत पहले आपत्ति दर्ज करा दी थी, लेकिन इसे लौटना तो मोदी के समक्ष ही था. करोड़ों के मूल्य की ये मूर्तियां हमारे देश की पुरानी संस्कृति की अमूल्य धरोहर भी है. यह काम भी मोदी का करिश्माई व्यक्तित्व ही कर सकता है.
मोदी जी लगातार काम करते हुए थकते नहीं हैं. वे बच्चों से कहते हैं- “अपनापन चिरन्जीवी होता है, जब आप के जैसे बच्चों से बात करता हूँ तो सारी थकान दूर हो जाती है. देश के सवा सौ करोड़ लोग मेरा परिवार है. वे बच्चों को गूगल की जगह पुसतकेँ पढ़ने की सलाह देते हैं. उनके अनुसार गूगल से ज्ञान नहीं प्राप्त होता है, ज्ञान तो पुस्तकों और शिक्षक से ही मिलता है. हमें अच्छे शिक्षक की आवश्यकता है”, क्योंकि शिक्षक कभी रिटायर नहीं होता. खेल कूद नहीं तो जीवन खिलता नहीं है. महापुरुषों का जीवन चरित्र अवश्य पढ़ें. यह भी सन्देश वे बच्चों को देते हैं. स्कूलों में टॉयलेट की ब्यवस्था पर उन्होंने पुन: जोर दिया ..चांदनी रात का दर्शन, सूर्योदय और सूर्यास्त का दर्शन. प्रकृति के दर्शन और संरक्षण. अच्छा बिद्यार्थी, अच्छा नागरिक बनना भी देश सेवा है. बिजली बचाना पर्यवरण की रक्षा भी देश सेवा है. देश की सेवा के लिए सीमा पर जान देना और राजनेता ही बनना जरूरी नहीं है. भारत के भविष्य यही बच्चे है. अगर बच्चे अच्छे होंगे तो देश निश्चित ही अच्छा होगा.
आत्मविश्वास इतना कि २०२४ तक यानी कि आगामी १० सालों तक उन्हें कोई खतरा नहीं है. बच्चों के एक सवाल के जवाब में ही उन्होंने कहा की २०२४ के चुनाव की तैयरी करो तभी प्रधान मंत्री बनने का सपना पूरा हो सकेगा. इसका मतलब यह कि दस साल तक वे अपना लक्ष्य पूरा करने के लिए जी तोड़ कोशिश करेंगे.
अभी हाल ही में प्रधान मंत्री जन-धन योजना की पहले ही दिन मिली अपार सफलता के बाद, उनका दूसरा लक्ष्य सफाई अभियान का भी है. दिक्कत यही है कि २८ और २९ अगस्त को जो रिस्पांस बैंकों का था, बाद में वे अपने पुराने ढर्रे पर आगये और जन-धन के साथ साधारण खाता खोलने वालों को भी टरकाते रहे, क्योंकि अब उनके ऊपर प्रेस का कैमरा नहीं दीख रहा. पता नहीं जिन गरीबों का खाता खुला है, उसे कितना टरकायेंगे. इस सोच को बदलने की आवश्यकता है.


मोदी जी की वक्तृत्व कला अद्भुत है और हाजिर जवाब भी वैसे ही. बच्चों से लगाव इन्होने रक्षा बंधन से लेकर लालकिले के प्रांगण तक में भी दिखलाई थी और शिक्षक दिवस के दिन तो मानो सभी बच्चों को खिलखिलाने पर मजबूर कर दिया. अब चाचा नेहरू के जगह चाचा मोदी को ही बच्चे याद करेंगे. उनका व्यक्तित्व, आंतरिक ऊर्जा ऐसा है की उनके चेहरे पर कभी भी थकन की शिकन तक महसूस नहीं होती. समयानुसार शब्दों का चयन या शब्दों की बाजीगरी उनकी शक्ति है. इन्होने अपना पारिवारिक जीवन त्याग दिया और देश सेवा में खुद को समर्पित कर दिया है. ब्रह्मचर्य में भी एक असीम शक्ति होती है, तभी वे बिना थके लगातार काम करने के आदि हैं.
कूटनीति ऐसी की आतंरिक शत्रु-मित्र सभी किनारे लग गए. पाकिस्तान भारत पर बुरी नजर रखते हुए खुद अपनी कुदृष्टि का शिकार बन गया है और वहां गृहयुद्ध की स्थिति पैदा हो गयी. बेचारे नवाज शरीफ ने मोदी जी को आम का टोकड़ा भेजकर अपनी शरण में लेने का अनुरोध भी जता दिया. जापान से दोस्ती कर चीन को भी समझा दिया और ऑस्ट्रेलया से परमाणु करार कर अमेरिका को भी अचंभित कर दिया. अब तो युद्ध की सामग्री ही अमरीका से लेने हैं पाकिस्तान को धमकाने के लिए और निवेश की राह को और आसान करने के लिए. अमरीका आदि विकसित राष्ट्र भारत में निवेश करने को आतुर हैं निश्चित ही अच्छे दिनों की आहट सुनाई पड़ रही है. थोड़ी कानून ब्यवस्था में सुधार की आवश्यकता है, महिलाओं पर हो रहे अत्याचार पर रोक लगनी चाहिए और रोजगार सृजन की जल्द ब्यवस्था होनी चाहिए, ताकि नौजवान भटके नहीं. चीजें सही मूल्य पर उपलब्ध हों, कालाबाजारी या कृत्रिम अभाव पैदा कर दाम बढ़ाने की कोशिशों को बंद किया जाना चाहिए. मुनाफाखोरों और बिचौलियों पर लगाम लगनी ही चाहिए. यह बात सही है, प्रधान मंत्री हर जगह खड़ा तो नहीं रहेंगे, पर उनके मंत्री और पदाधिकारी भी उतने ही ईमानदार होने चाहिए.
अब उनके मंत्री भी अपने १०० दिन के कार्यक्रम का लेखा-जोखा प्रस्तुत कर रहे हैं. यह प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी की ही ईच्छा का परिचायक है.
उधर भारत के जन्नत(कश्मीर) में जलप्रलय से जो जिल्लत हो रही है, उसका भी समाधान और सामान की देख रेख करने प्रधान मंत्री खुद गए हैं. निश्चित ही वे कश्मीरियों और पर्यटकों की हर सम्भव मदद का प्रयास करेंगे ही.
अपने सम्मुख किसी भी व्यक्ति/जनता/श्रोताओं/दर्शकों को सम्मोहित करने की उनमे अजीब शक्ति है! आगे भी वे अपने प्रयास में सफल रहें यही कामना है.
जय हिन्द! जय भारत!
जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर