15 वीं लोक सभा का आखिरी सत्र
कई मामलों में संसद का यह सत्र यादगार कहा जायेगा. जिस संसद में तेलंगाना जैसे मुद्दे पर काला अध्याय लिखा गया तो कई जरूरी बिल पास भी हुए. अंत में प्रधान मंत्री का भावुक संबोधन! शायद इसलिए भी कि यह उनका प्रधान मंत्री के रूप में अंतिम कार्यकाल हो. जिसमे उनकी धर्म पत्नी भी शामिल हुई और उन्होंने भी वही प्रतिक्रिया दी, जो आम लोगों की प्रतिक्रिया है. ‘व्हीसल ब्लोअर बिल’ आखिरी दिन पास हो गया. सिटीजन चार्टर तथा अन्य कई महत्वपूर्ण बिल लटक गए. संसद के सत्र को बढ़ाने पर सभी दल असहमत दिखे. सभी नेता यही कहते है कि बिल यानी कानून संसद और विधानसभाओं में ही बनाये जाते हैं, पर इन सभाओं का ज्यादातर समय हंगामे की भेंट चढ़ जाता है. आखिर कब सुधरेंगे हमारे नेता संसद और विधान सभा में जो अराजकता देखने को मिलती है, आखिर क्या जवाब है इन नेताओं के पास? संसद की गरिमा शर्मशार हुई, काला अध्याय, काला दिन कह देने से क्या इन नेताओं के कर्तव्यों की इतिश्री हो जाती है.
प्रधान मंत्री ने सभी सदस्यों का धन्यवाद किया – उन्हें भी, जिन्होने इन्हें ‘चोर’ कहा. उन्हें भी, जिन्होंने मिर्च पाउडर स्प्रे किया, उन्हें भी, जिन्होंने संसद में हंगामा किया, जिन्होंने संसद न चलने दी. उन्हें भी, जिन्होने संसद सत्र को आगे नहीं बढ़ाने नहीं दिया …आखिर सबको प्रचार करने का वक्त भी तो चाहिए. ये सारे लंबित बिल पास करके, अकेले कांग्रेस सारा श्रेय कैसे ले सकती है. कुछ आने वाली सरकार के लिए भी तो छोड़ना चाहिए.
सारे काम यह जानेवाली सरकार कर देगी तो आने वाली सरकार क्या करेगी ?
आरोप यह भी लगे हैं कि जो बिल सरकार चाहती है, उसे येन-केन प्रकारेण पास करा ही लेती है, चाहे न्यूक्लीयर डील वाला मामला हो या प्रत्यक्ष विदेशी निवेश हो. लोकपाल बिल हो या तेलंगाना बिल. जिसे वह नहीं चाहती उसमे हंगामा करवा कर संसद को स्थगित करवा देती है. राजनीति तो कोई कांग्रेस से सीखे. ये लोग कांग्रेस से देश को मुक्त करना चाहती है, पर यह तो देश की सबसे पुरानी पार्टी है, जिसके खाते में असफलता या विफलता है तो कुछ उपलब्धियां भी है जैसे संचार ब्यवस्था में क्रांतिकारी कदम, मनरेगा, खाद्य सुरक्षा बिल, BPL कार्ड, शिक्षा का अधिकार, सूचना का अधिकार और अब लोकपाल बिल, सूचना के सिपाहियों/नागरिकों की सुरक्षा बिल (व्हीसल ब्लोवर बिल), ढेर सारे फ्लाई ओवर, ऊंचे ऊचे मकान, जगमगाते शहर, गांव से शहरों को जोड़ना. चौपहिया वाहन और दोपहिया वाहन की भरमार… कि सड़कें कम पड़ने लगी. इतने शिक्षार्थी हो गए… कि नौकरियां कम पड़ने लगी. कितना विकास चाहिए … भ्रष्टाचार के भी अपने फायदे हैं. आपका रुका हुआ काम हो जाता है, आपके बच्चे का नामांकन हो जाता है, आपकी यात्रा की सीट/बर्थ कन्फर्म हो जाती है, आपके फ़्लैट के छोटे मोटे एक्सटेंसन को मान्यता मिल जाती है. आज प्रति व्यक्ति आय (इनकम) में वृद्धि हुई है… तभी तो इस आसमान छूती महंगाई में अधिकांश लोग खुशहाल हैं. जो बदहाल है, उनके लिए अलग से प्रावधान है. आपको सब कुछ एक साथ तो नहीं मिल सकता. आखिर हमें मंगल ग्रह पर भी जाना है …पड़ोसियों पर वर्चस्व भी कायम रखना है. दुनिया को भी दिखाना है.
दरअसल कोई भी राजनीतिक दल इमानदारी से चाहता ही नहीं कि भ्रष्टाचार विरोधी बिल पास हो और उनके अपने गले क फांस बने!
आखिरी दिन देर शाम राज्यसभा से ‘व्हिसिल ब्लोअर विधेयक’ पास हो गया है, लेकिन भ्रष्टाचार को लेकर अन्य पांच विधेयक लंबित रह गए., न्यायिक जवाबदेही विधेयक, भ्रष्टाचार रोकथाम संशोधन विधेयक, सिटिजन चार्टर विधेयक, सेवाओं की समय पर आपूर्ति विधेयक और सार्वजनिक खरीद विधेयक संसद में लंबित हैं.
तो सवाल है कि क्या भ्रष्टाचार को लेकर देर से जागी कांग्रेस?
‘पीएम इन वेटिंग’ ही रह गए बीजेपी के सबसे सीनियर नेता लाल कृष्ण आडवाणी 15वीं लोकसभा के आखिरी दिन भावुक हो गए. आखिरी दिन लोकसभा में कई सीनियर नेताओं ने अपने भाषणों में आडवाणी की जमकर तारीफें की. इनमें आडवाणी के दोस्त और राजनीतिक प्रतिद्वन्द्वी दोनों ही शामिल थे.
15वीं लोकसभा में आडवाणी सबसे सीनियर सदस्य थे। सांसद उनका बेहद सम्मान करते हैं और पक्ष-विपक्ष दोनों तरफ के नेता उनके अनुभवों से लाभ उठाते रहे हैं.
शुक्रवार को सदन में आखिरी दिन के अपने भाषण में मार्क्सवादी कम्यूनिस्ट पार्टी के सांसद बासुदेव आचार्य ने उन्हें प्यार से ‘फादर ऑफ द हाउस’ यानी सदन का पिता बताया. उसके बाद तो जो भी बोला, सभी ने उन्हें फादर ऑफ द हाउस कहकर संबोधित किया.
आडवाणी उस वक्त बेहद भावुक हो गए, जब कांग्रेस के सांसदों और मंत्रियों ने भी उनकी तारीफ की. गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे और समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव ने भी आडवाणी के साथ अपने अनुभवों को सुनाया. लेकिन जब विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने कहा कि आडवाणी के रूप में उन्हें एक संरक्षक मिला और उन्होंने बहुत कुछ सीखा, तो आडवाणी अपने जज्बात को काबू नहीं रख सके और उनकी आंखें छलक आईं. उन्हें अपने आंसू पोंछते देखा गया। बेचारे ‘भाजपा के भीष्म पितामह’ अपनों के ही तीरों के शिकार हुए हैं. रोने का स्पष्टीकरण देने के लिए ही शायद अडवाणी जी ने २२ फरवरी को अपने सम्बोधन में कहा कि ‘भाजपा लोकसभा में सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरेगी. वह अब तक के अपने इतिहास में सर्वाधिक सीटें जीतेगी’
15वीं लोकसभा के अंतिम सत्र का अवसान हो गया, लेकिन जाते-जाते यह लोकसभा कई घाव दे गई है, वहीं कई संदेश भी दे गई है और आने वाली 16वीं लोकसभा के लिए एक चुनौती देश के नौजवानों के सामने छोड गई है. लोकसभा के इस अंतिम सत्र ने लोकतंत्र और देश के संविधान पर कालिख पोता है, सांसदों के मर्यादाहीन आचरण, हाथापाई, मिर्च-स्प्रे और माईक तोडकर उससे मारने को दौडना; यह सब इस लोकसभा के अंतिम सत्र में बखुबी देखा गया और ऐसे सांसदों पर कितनी हल्की कार्यवाही होती है और आम आदमी ऐसा ही गुनाह करे तो उसके खिलाफ क्या हो सकता है, यह हर किसी ने अनुभव किया है. सांसदों के इस प्रकार के मर्यादाहीन आपराधिक आचरण के विरूद्ध भी राजनीतिक कारणों से कोई सख्त कार्यवाही नहीं होती. मतलब यह कि शक्तिशाली आदमी कुछ भी करे उसके सौ खून माफ, चाहे वे सांसद हों, राज ठाकरे हों या संसद में बैठे आपराधिक पृष्ठभूमि व भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे हुए लोग हों. 15वीं लोकसभा इन सब बातों की गवाह बनी है, वहीं कांग्रेस और भाजपा की सांठगांठ क्या गुल खिला सकती है, यह भी खुलेआम इसी सत्र में या दिल्ली विधानसभा की कार्यवाही में ही पहली बार बेपर्दा हुआ है. कई क्षेत्रिय पार्टियां तो हैं ही, किन्तु देश की दोनों सबसे बडी राजनीतिक पार्टियां किस स्तर तक बेशर्म हो सकती हैं, यह नजारा भी इन्हीं दिनों में देखने को मिला है.
कई महत्वपूर्ण विधेयक पास नहीं हो सके, किन्तु जो पास करना ठान लिया, उसे कांग्रेस-भाजपा ने मिलकर पास कर दिया. क्या इसी तरह की पहल कभी महिला आरक्षण बिल के लिए नहीं हो सकती थी? नहीं, क्योंकि महिलाएं ज्यादा आ गईं तो उनके साथ हाथापाई करना इतना आसान नहीं होगा, क्योंकि वैसी सूरत में पूरा देश खडा हो जाएगा तो संसद भवन से बाहर निकलना ही मुश्किल हो जाएगा, क्योंकि इस देश में अब भी नारी सम्मान कुछ अंशों में तो बचा हुआ है. हालांकि इस लोकसभा में भी सांसद दौडे तो लोकसभा अध्यक्ष मीराकुमार की तरफ ही थे, लेकिन गनीमत यह है कि वे उस समय आसन पर पहुंची नहीं थीं.
महिलाएं सशक्त हो जाएंगी तो आदमी क्या करेगा? कुछ पुरुष प्रधान मानसिकता के लोगों के कारण ही महिलाओं के आरक्षण का बिल अटका हुआ है. वहीं भ्रष्टाचार के खिलाफ संदेश देने वाले कांग्रेस के युवा नायक भी मुंह ताकते रह गए और भ्रष्टाचार के खिलाफ लाए जाने वाले तथाकथित सात सख्त विधेयक भी लटक गए. यदि भ्रष्टाचार के खिलाफ भी दृढ इच्छाशक्ति होती तो ये विधेयक भी तेलंगाना विधेयक की तरह पास नहीं हो सकते थे? लेकिन, भ्रष्ट पार्टियां और भ्रष्ट नेता कैसे ऐसे विधेयक पास होने दे सकते थे, उन्हें तो लटकना ही था. इस लोकसभा से तो ऐसे ही संदेश निकलते हैं.
अब देश को और खासकर युवाओं और महिलाओं को सोचना है कि आगामी लोकसभा भी क्या वह ऐसी ही चाहते हैं? यह न केवल एक चिंतन का विषय है, बल्कि एक बडी चुनौती है. अगले दो माह देश के सामने एक कसौटी हैं, क्योंकि इन दो माह का चिंतन ही 16वीं लोकसभा का स्वरूप तय करेगा. दलगत राजनीति के दल-दल से निकलकर, तटस्थ होकर, देश के आम हितों के प्रति पूर्वाग्रह मुक्त होकर पूरी संवेदनशीलता के साथ सोचिए जरा.
वैसे, पंद्रहवीं लोकसभा को इतिहास याद रखेगा. वो भी इसलिए कि इसमें रिकॉर्ड हंगामा हुआ. लेकिन लोकसभा के आखिरी दिन जब विदाई का वक्त आया तो क्या सत्ता पक्ष और क्या विपक्ष, ऐसे मिले और बैठे जैसे कुछ हुआ ही ना हो.
15वीं लोकसभा में बहुत कम काम हुआ: मीरा कुमार
लोकसभा स्पीकर मीरा कुमार के चेहरे की मुस्कान बताती रही 15वीं लोकसभा का आखिरी दिन कितना सुकून भरा रहा. आखिरी दिन हंगामा हुआ तो जरूर लेकिन सदन स्थगित नहीं करना पड़ा. हंगामा करने वाले सांसद चाहे बिहार के रहे हों, तमिलनाडु के या फिर यूपी के. हंगामा तो सबने काटा लेकिन सदन स्थगित कराने की मंशा किसी की नहीं दिखी. वहीं स्पीकर का समापन भाषण पूरा दर्द बयान कर गया. मीरा कुमार ने इस बात पर दुख व्यक्त किया कि विगत लोकसभाओं के मुकाबले 15वीं लोकसभा के दौरान बहुत कम काम हुआ तथा कई अप्रत्याशित और अवांक्षित घटनाओं ने सदन के निर्बाध संचालन और कामकाज को पंगु कर दिया.
देश ले सकता है मुश्किल फैसले: मनमोहन
प्रधानमंत्री भी जानते थे कि विदाई की बेला है, लेकिन वो आपसी राजनीतिक विवाद भुलाकर सदन की पीठ थपथपाने में पीछे नहीं रहे. प्रधानमंत्री ने माना कि मतभेद बहुत रहे लेकिन देश हित में सबने कोशिश की तो रास्ता निकला. मनमोहन सिंह ने कहा कि तेलंगाना विधेयक के पारित होने से संकेत मिलता है कि ये देश ‘मुश्किल’ फैसले ले सकता है. सिंह ने उम्मीद जतायी कि देश को नये रास्तों पर आगे ले जाने के लिए आम सहमति की एक नयी भावना उभरी है. साथ ही कहा कि इस कहासुनी और तनाव वाले माहौल से उम्मीद का एक नया माहौल उभरेगा.
सुषमा ने बांधे सोनिया, मनमोहन और आडवाणी की तारीफों के पुल
बारी विपक्ष के नेता की आई तो उन्होंने खरी-खरी ही सुना डाली. सुषमा स्वराज ने कहा कि ये विसंगतियों से भरी लोकसभा रही जिसमें सबसे ज्यादा काम बाधित हुआ. वहीं सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण विधेयक भी पास हुए. सुषमा ने चुटकी भी ली कि कमलनाथ अपनी शरारतों से कई बार सदन में मामला उलझाते तो शिंदे अपनी शराफत से उसे सुलझाते. इसमें सोनिया की मध्यस्थता और आडवाणी की न्यायप्रियता से सदन सुचारू रूप से चला. नेता विपक्ष ने सरकार को चेताया भी कि हम विरोधी हैं पर शत्रु नहीं.
इसके बाद भी नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज को शायद संतोष न हुआ वे २२ फरवरी को प्रेस कांफ्रेंस कर यह कहती रहीं कि हमने वहीं विरोध किया या ब्यवधान उपस्थित किया जहाँ जरूरी था पर सत्ता पक्ष के नेताओं को यह शोभा नहीं देता.
कौन जनता है कि आनेवाला १६ वीं का स्वरुप कैसा होगा और उसमे आचरण करनेवाले लोग कैसे होंगे, पर उम्मीद की जानी चाहिए कि देश के विकास और जनकल्याण के कार्य हों, साथ ही कोई अप्रिय घटना न घटे.
आखिर में यही कहना चाहूँगा कि पार्टी चाहे जो हो उम्मीदवार की योग्यता अवश्य परखी जानी चाहिए और मतदान करते समय हम सबके मन में यह बात अवश्य होनी चाहिए कि क्या हम सही उम्मीदवार को वोट दे रहे हैं ? सादर !
- जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.
कई मामलों में संसद का यह सत्र यादगार कहा जायेगा. जिस संसद में तेलंगाना जैसे मुद्दे पर काला अध्याय लिखा गया तो कई जरूरी बिल पास भी हुए. अंत में प्रधान मंत्री का भावुक संबोधन! शायद इसलिए भी कि यह उनका प्रधान मंत्री के रूप में अंतिम कार्यकाल हो. जिसमे उनकी धर्म पत्नी भी शामिल हुई और उन्होंने भी वही प्रतिक्रिया दी, जो आम लोगों की प्रतिक्रिया है. ‘व्हीसल ब्लोअर बिल’ आखिरी दिन पास हो गया. सिटीजन चार्टर तथा अन्य कई महत्वपूर्ण बिल लटक गए. संसद के सत्र को बढ़ाने पर सभी दल असहमत दिखे. सभी नेता यही कहते है कि बिल यानी कानून संसद और विधानसभाओं में ही बनाये जाते हैं, पर इन सभाओं का ज्यादातर समय हंगामे की भेंट चढ़ जाता है. आखिर कब सुधरेंगे हमारे नेता संसद और विधान सभा में जो अराजकता देखने को मिलती है, आखिर क्या जवाब है इन नेताओं के पास? संसद की गरिमा शर्मशार हुई, काला अध्याय, काला दिन कह देने से क्या इन नेताओं के कर्तव्यों की इतिश्री हो जाती है.
प्रधान मंत्री ने सभी सदस्यों का धन्यवाद किया – उन्हें भी, जिन्होने इन्हें ‘चोर’ कहा. उन्हें भी, जिन्होंने मिर्च पाउडर स्प्रे किया, उन्हें भी, जिन्होंने संसद में हंगामा किया, जिन्होंने संसद न चलने दी. उन्हें भी, जिन्होने संसद सत्र को आगे नहीं बढ़ाने नहीं दिया …आखिर सबको प्रचार करने का वक्त भी तो चाहिए. ये सारे लंबित बिल पास करके, अकेले कांग्रेस सारा श्रेय कैसे ले सकती है. कुछ आने वाली सरकार के लिए भी तो छोड़ना चाहिए.
सारे काम यह जानेवाली सरकार कर देगी तो आने वाली सरकार क्या करेगी ?
आरोप यह भी लगे हैं कि जो बिल सरकार चाहती है, उसे येन-केन प्रकारेण पास करा ही लेती है, चाहे न्यूक्लीयर डील वाला मामला हो या प्रत्यक्ष विदेशी निवेश हो. लोकपाल बिल हो या तेलंगाना बिल. जिसे वह नहीं चाहती उसमे हंगामा करवा कर संसद को स्थगित करवा देती है. राजनीति तो कोई कांग्रेस से सीखे. ये लोग कांग्रेस से देश को मुक्त करना चाहती है, पर यह तो देश की सबसे पुरानी पार्टी है, जिसके खाते में असफलता या विफलता है तो कुछ उपलब्धियां भी है जैसे संचार ब्यवस्था में क्रांतिकारी कदम, मनरेगा, खाद्य सुरक्षा बिल, BPL कार्ड, शिक्षा का अधिकार, सूचना का अधिकार और अब लोकपाल बिल, सूचना के सिपाहियों/नागरिकों की सुरक्षा बिल (व्हीसल ब्लोवर बिल), ढेर सारे फ्लाई ओवर, ऊंचे ऊचे मकान, जगमगाते शहर, गांव से शहरों को जोड़ना. चौपहिया वाहन और दोपहिया वाहन की भरमार… कि सड़कें कम पड़ने लगी. इतने शिक्षार्थी हो गए… कि नौकरियां कम पड़ने लगी. कितना विकास चाहिए … भ्रष्टाचार के भी अपने फायदे हैं. आपका रुका हुआ काम हो जाता है, आपके बच्चे का नामांकन हो जाता है, आपकी यात्रा की सीट/बर्थ कन्फर्म हो जाती है, आपके फ़्लैट के छोटे मोटे एक्सटेंसन को मान्यता मिल जाती है. आज प्रति व्यक्ति आय (इनकम) में वृद्धि हुई है… तभी तो इस आसमान छूती महंगाई में अधिकांश लोग खुशहाल हैं. जो बदहाल है, उनके लिए अलग से प्रावधान है. आपको सब कुछ एक साथ तो नहीं मिल सकता. आखिर हमें मंगल ग्रह पर भी जाना है …पड़ोसियों पर वर्चस्व भी कायम रखना है. दुनिया को भी दिखाना है.
दरअसल कोई भी राजनीतिक दल इमानदारी से चाहता ही नहीं कि भ्रष्टाचार विरोधी बिल पास हो और उनके अपने गले क फांस बने!
आखिरी दिन देर शाम राज्यसभा से ‘व्हिसिल ब्लोअर विधेयक’ पास हो गया है, लेकिन भ्रष्टाचार को लेकर अन्य पांच विधेयक लंबित रह गए., न्यायिक जवाबदेही विधेयक, भ्रष्टाचार रोकथाम संशोधन विधेयक, सिटिजन चार्टर विधेयक, सेवाओं की समय पर आपूर्ति विधेयक और सार्वजनिक खरीद विधेयक संसद में लंबित हैं.
तो सवाल है कि क्या भ्रष्टाचार को लेकर देर से जागी कांग्रेस?
‘पीएम इन वेटिंग’ ही रह गए बीजेपी के सबसे सीनियर नेता लाल कृष्ण आडवाणी 15वीं लोकसभा के आखिरी दिन भावुक हो गए. आखिरी दिन लोकसभा में कई सीनियर नेताओं ने अपने भाषणों में आडवाणी की जमकर तारीफें की. इनमें आडवाणी के दोस्त और राजनीतिक प्रतिद्वन्द्वी दोनों ही शामिल थे.
15वीं लोकसभा में आडवाणी सबसे सीनियर सदस्य थे। सांसद उनका बेहद सम्मान करते हैं और पक्ष-विपक्ष दोनों तरफ के नेता उनके अनुभवों से लाभ उठाते रहे हैं.
शुक्रवार को सदन में आखिरी दिन के अपने भाषण में मार्क्सवादी कम्यूनिस्ट पार्टी के सांसद बासुदेव आचार्य ने उन्हें प्यार से ‘फादर ऑफ द हाउस’ यानी सदन का पिता बताया. उसके बाद तो जो भी बोला, सभी ने उन्हें फादर ऑफ द हाउस कहकर संबोधित किया.
आडवाणी उस वक्त बेहद भावुक हो गए, जब कांग्रेस के सांसदों और मंत्रियों ने भी उनकी तारीफ की. गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे और समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव ने भी आडवाणी के साथ अपने अनुभवों को सुनाया. लेकिन जब विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने कहा कि आडवाणी के रूप में उन्हें एक संरक्षक मिला और उन्होंने बहुत कुछ सीखा, तो आडवाणी अपने जज्बात को काबू नहीं रख सके और उनकी आंखें छलक आईं. उन्हें अपने आंसू पोंछते देखा गया। बेचारे ‘भाजपा के भीष्म पितामह’ अपनों के ही तीरों के शिकार हुए हैं. रोने का स्पष्टीकरण देने के लिए ही शायद अडवाणी जी ने २२ फरवरी को अपने सम्बोधन में कहा कि ‘भाजपा लोकसभा में सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरेगी. वह अब तक के अपने इतिहास में सर्वाधिक सीटें जीतेगी’
15वीं लोकसभा के अंतिम सत्र का अवसान हो गया, लेकिन जाते-जाते यह लोकसभा कई घाव दे गई है, वहीं कई संदेश भी दे गई है और आने वाली 16वीं लोकसभा के लिए एक चुनौती देश के नौजवानों के सामने छोड गई है. लोकसभा के इस अंतिम सत्र ने लोकतंत्र और देश के संविधान पर कालिख पोता है, सांसदों के मर्यादाहीन आचरण, हाथापाई, मिर्च-स्प्रे और माईक तोडकर उससे मारने को दौडना; यह सब इस लोकसभा के अंतिम सत्र में बखुबी देखा गया और ऐसे सांसदों पर कितनी हल्की कार्यवाही होती है और आम आदमी ऐसा ही गुनाह करे तो उसके खिलाफ क्या हो सकता है, यह हर किसी ने अनुभव किया है. सांसदों के इस प्रकार के मर्यादाहीन आपराधिक आचरण के विरूद्ध भी राजनीतिक कारणों से कोई सख्त कार्यवाही नहीं होती. मतलब यह कि शक्तिशाली आदमी कुछ भी करे उसके सौ खून माफ, चाहे वे सांसद हों, राज ठाकरे हों या संसद में बैठे आपराधिक पृष्ठभूमि व भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे हुए लोग हों. 15वीं लोकसभा इन सब बातों की गवाह बनी है, वहीं कांग्रेस और भाजपा की सांठगांठ क्या गुल खिला सकती है, यह भी खुलेआम इसी सत्र में या दिल्ली विधानसभा की कार्यवाही में ही पहली बार बेपर्दा हुआ है. कई क्षेत्रिय पार्टियां तो हैं ही, किन्तु देश की दोनों सबसे बडी राजनीतिक पार्टियां किस स्तर तक बेशर्म हो सकती हैं, यह नजारा भी इन्हीं दिनों में देखने को मिला है.
कई महत्वपूर्ण विधेयक पास नहीं हो सके, किन्तु जो पास करना ठान लिया, उसे कांग्रेस-भाजपा ने मिलकर पास कर दिया. क्या इसी तरह की पहल कभी महिला आरक्षण बिल के लिए नहीं हो सकती थी? नहीं, क्योंकि महिलाएं ज्यादा आ गईं तो उनके साथ हाथापाई करना इतना आसान नहीं होगा, क्योंकि वैसी सूरत में पूरा देश खडा हो जाएगा तो संसद भवन से बाहर निकलना ही मुश्किल हो जाएगा, क्योंकि इस देश में अब भी नारी सम्मान कुछ अंशों में तो बचा हुआ है. हालांकि इस लोकसभा में भी सांसद दौडे तो लोकसभा अध्यक्ष मीराकुमार की तरफ ही थे, लेकिन गनीमत यह है कि वे उस समय आसन पर पहुंची नहीं थीं.
महिलाएं सशक्त हो जाएंगी तो आदमी क्या करेगा? कुछ पुरुष प्रधान मानसिकता के लोगों के कारण ही महिलाओं के आरक्षण का बिल अटका हुआ है. वहीं भ्रष्टाचार के खिलाफ संदेश देने वाले कांग्रेस के युवा नायक भी मुंह ताकते रह गए और भ्रष्टाचार के खिलाफ लाए जाने वाले तथाकथित सात सख्त विधेयक भी लटक गए. यदि भ्रष्टाचार के खिलाफ भी दृढ इच्छाशक्ति होती तो ये विधेयक भी तेलंगाना विधेयक की तरह पास नहीं हो सकते थे? लेकिन, भ्रष्ट पार्टियां और भ्रष्ट नेता कैसे ऐसे विधेयक पास होने दे सकते थे, उन्हें तो लटकना ही था. इस लोकसभा से तो ऐसे ही संदेश निकलते हैं.
अब देश को और खासकर युवाओं और महिलाओं को सोचना है कि आगामी लोकसभा भी क्या वह ऐसी ही चाहते हैं? यह न केवल एक चिंतन का विषय है, बल्कि एक बडी चुनौती है. अगले दो माह देश के सामने एक कसौटी हैं, क्योंकि इन दो माह का चिंतन ही 16वीं लोकसभा का स्वरूप तय करेगा. दलगत राजनीति के दल-दल से निकलकर, तटस्थ होकर, देश के आम हितों के प्रति पूर्वाग्रह मुक्त होकर पूरी संवेदनशीलता के साथ सोचिए जरा.
वैसे, पंद्रहवीं लोकसभा को इतिहास याद रखेगा. वो भी इसलिए कि इसमें रिकॉर्ड हंगामा हुआ. लेकिन लोकसभा के आखिरी दिन जब विदाई का वक्त आया तो क्या सत्ता पक्ष और क्या विपक्ष, ऐसे मिले और बैठे जैसे कुछ हुआ ही ना हो.
15वीं लोकसभा में बहुत कम काम हुआ: मीरा कुमार
लोकसभा स्पीकर मीरा कुमार के चेहरे की मुस्कान बताती रही 15वीं लोकसभा का आखिरी दिन कितना सुकून भरा रहा. आखिरी दिन हंगामा हुआ तो जरूर लेकिन सदन स्थगित नहीं करना पड़ा. हंगामा करने वाले सांसद चाहे बिहार के रहे हों, तमिलनाडु के या फिर यूपी के. हंगामा तो सबने काटा लेकिन सदन स्थगित कराने की मंशा किसी की नहीं दिखी. वहीं स्पीकर का समापन भाषण पूरा दर्द बयान कर गया. मीरा कुमार ने इस बात पर दुख व्यक्त किया कि विगत लोकसभाओं के मुकाबले 15वीं लोकसभा के दौरान बहुत कम काम हुआ तथा कई अप्रत्याशित और अवांक्षित घटनाओं ने सदन के निर्बाध संचालन और कामकाज को पंगु कर दिया.
देश ले सकता है मुश्किल फैसले: मनमोहन
प्रधानमंत्री भी जानते थे कि विदाई की बेला है, लेकिन वो आपसी राजनीतिक विवाद भुलाकर सदन की पीठ थपथपाने में पीछे नहीं रहे. प्रधानमंत्री ने माना कि मतभेद बहुत रहे लेकिन देश हित में सबने कोशिश की तो रास्ता निकला. मनमोहन सिंह ने कहा कि तेलंगाना विधेयक के पारित होने से संकेत मिलता है कि ये देश ‘मुश्किल’ फैसले ले सकता है. सिंह ने उम्मीद जतायी कि देश को नये रास्तों पर आगे ले जाने के लिए आम सहमति की एक नयी भावना उभरी है. साथ ही कहा कि इस कहासुनी और तनाव वाले माहौल से उम्मीद का एक नया माहौल उभरेगा.
सुषमा ने बांधे सोनिया, मनमोहन और आडवाणी की तारीफों के पुल
बारी विपक्ष के नेता की आई तो उन्होंने खरी-खरी ही सुना डाली. सुषमा स्वराज ने कहा कि ये विसंगतियों से भरी लोकसभा रही जिसमें सबसे ज्यादा काम बाधित हुआ. वहीं सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण विधेयक भी पास हुए. सुषमा ने चुटकी भी ली कि कमलनाथ अपनी शरारतों से कई बार सदन में मामला उलझाते तो शिंदे अपनी शराफत से उसे सुलझाते. इसमें सोनिया की मध्यस्थता और आडवाणी की न्यायप्रियता से सदन सुचारू रूप से चला. नेता विपक्ष ने सरकार को चेताया भी कि हम विरोधी हैं पर शत्रु नहीं.
इसके बाद भी नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज को शायद संतोष न हुआ वे २२ फरवरी को प्रेस कांफ्रेंस कर यह कहती रहीं कि हमने वहीं विरोध किया या ब्यवधान उपस्थित किया जहाँ जरूरी था पर सत्ता पक्ष के नेताओं को यह शोभा नहीं देता.
कौन जनता है कि आनेवाला १६ वीं का स्वरुप कैसा होगा और उसमे आचरण करनेवाले लोग कैसे होंगे, पर उम्मीद की जानी चाहिए कि देश के विकास और जनकल्याण के कार्य हों, साथ ही कोई अप्रिय घटना न घटे.
आखिर में यही कहना चाहूँगा कि पार्टी चाहे जो हो उम्मीदवार की योग्यता अवश्य परखी जानी चाहिए और मतदान करते समय हम सबके मन में यह बात अवश्य होनी चाहिए कि क्या हम सही उम्मीदवार को वोट दे रहे हैं ? सादर !
- जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.