कल मैं बाजार गया – कुछ सूखे मेवे (ड्राई फ्रूट्स) खरीदने थे. क्या दाम बढ़ा है, … भाई सूखे मेवे के! काजू – ६५० रुपये किलो! बादाम- ५५० रुपये प्रति किलो. अखरोट १०५० रुपये प्रति किलो.
दाम सुनकर और ज्यादा पूछ कर दिमाग ख़राब करने से क्या फायदा. मैंने कहा- काजू तीन किलो बादाम दो किलो और बाकी सभी एक एक किलो दे दो भाई!…बिल हुआ ५५५० रुपये….. दो प्लास्टिक के थैले में सारे सामान को दोनों तरफ बाइक के हैंडिल में लटकाया और पहले सेल्फ दिया तो स्टार्ट नहीं हुआ. फिर मैंने ‘किक’ लगाना शुरू किया, तब भी स्टार्ट नहीं हुआ…. मैंने सोचा स्पार्क प्लग शोर्ट हो गया होगा, इसलिए टूल बॉक्स से औजार निकाल कर स्पार्क प्लग खोलने की कोशिश की….. काफी दिनों से साफ़ भी नहीं करवाया था….. क्या कहें भाई, प्लग खोलने के चक्कर में कुछ ऐसा जोर लग गया कि स्पार्क प्लग ही टूट गया. प्लग का बिना थ्रेड वाला भाग मेरे हाथ में आ गया और थ्रेडेड पोर्सन अन्दर ही रह गया….. अब तो बड़ी मुश्किल में पड़ गया…… खैर किसी तरह गाडी को ठेल कर एक मेकानिक के पास पहुंचा … रात्रि के सवा आठ बज रहे थे, सो वह मेकानिक भी अत्यधिक ठंढा होने के चलते अपने औजार को समेट रहा था. मैंने कहा कि ठहरो भाई … जरा मेरा स्पार्क प्लग बदली कर दो….. उस मेकानिक ने देखा थोडा प्रयास भी किया ..पर उससे नहीं खुला … मैंने उसे थोडा काजू खिलाया और फिर प्रयास करने को कहा. पर उससे नहीं खुला …उसने सलाह दिया इसे ‘लेथ’ मशीन में चढ़ाकर काटना होगा …और यह काम आज नहीं होगा छोड़ जाइये,…. कल ले जाइएगा. मैंने उसकी बात न मानी और दुसरे मेकानिक के पास चला. यह मेकानिक सरदार जी था. सरदार को भी मैंने कहा- पहले थोडा काजू खा लो, फिर जोर लगाना. सरदार जी ने कहा – वाहे गुरु की कसम मैंने मक्के की रोटी और सरसों की साग खाई है और दो गिलास बीबी के हाथ की लस्सी भी पी है. देखता हूँ कैसे नहीं खुलता है. और उसके जोरदार प्रयास से पुराना प्लग का टूटा हुआ हिस्सा बाहर निकल गया . फिर उसने नए प्लग लगाकर किक मारी तो एक किक में स्टार्ट हो गया … मैंने एक सौ के दो नोट के साथ एक मुट्ठी काजू निकालकर उसके हाथ में पकड़ा दिया और कहा – ये लो तुम्हारा इनाम है. अब मैं खुशी-खुशी बाइक पर सवार हो, जा रहा था, तभी अचानक से ऐसा लगा जैसे पीछे का टायर बैठ गया है. मैंने सोचा – वास्तव में काजू और सूखे मेवे में दम होता है ….इस सूखे मेवे का ही जोर था कि बाइक बार बार अपना हिम्मत हार रहा था.
अब क्या करता बाइक से उतर धीरे धीरे अपने घर की तरफ बढ़ने लगा. ठंढ की रात थी फिर भी मुझे पसीने आने लगे थे. मैंने कुछ गाने भी गुनगुनाने शुरू किये, ताकि सफर आराम से कट जाय. ….”गीत गाता चल ओ साथी गुनगुनाता चल”….. “ओ रे मांझी! ले चल पार,… चल उस पार” … “दुनिया में जो आए हैं तो जीना ही पड़ेगा…”
किसी तरह दस बजे के बाद ही घर तक पहुँच सका. मैंने पत्नी से कहा – लो भाग्यवान! मैंने काजू और सूखे मेवे ला दिए. अब जरा इसे(काजू को) भूनकर लाओ, पहले दो पैग ले लूं, उसके बाद ही खाना खाऊँगा. पत्नी ने प्लास्टिक के सभी थैले निकाले और पूछा – “काजू किधर है?” मैंने कहा – “उन्ही में से किसी एक में होंगे”. मेरी पत्नी ने फटे हुए प्लास्टिक के थैले को दिखाया और कहा- “इसी में थे”??? … मेरा बहुत बुरा हाल था … मैंने इसी में से दो मुट्ठी काजू निकाल कर दोनों मेकानिक को भी दिए थे. लगता है इसी क्रम में या चलते समय प्लास्टिक के थैले फट गए और सारे काजू रास्ते में ही गिर गए!… “चलो कोई बात नहीं कल फिर से ला दूंगा” … आज तो जो बना है वही खिला दो … बहुत जोरों की भूख लगी है.
(यह मेरी अपनी कहानी नहीं है मेरे परम मित्र शर्मा जी, …नहीं… नहीं वर्मा जी की है,…. जिन्होंने मुझसे यह सब कहा. उन्होंने जैसे कहा, मैंने वैसे ही लिख दिया. मैंने उनसे सिर्फ इतना ही कहा- “सचमुच काजू में है दम!”)
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