प्रधान मंत्री आज बहुत बेचैन हैं! उनके सामने बीते दिनों की याद चलचित्र की भांति घूम रही है…
महंगाई, भ्रष्टाचार, लूट, खसोट, हंगामा, अन्ना, रामदेव और केजरीवाल का ड्रामा…. पक्ष-विपक्ष एक दूसरे पर आरोप…. संसद ठप्प, भारत बंद, पेट्रोलियम पदार्थों के मूल्यों में बृद्धि, और महंगाई!!! और उसके बाद आई, एफ डी आई… किसानो को ज्यादा फायदा. उपभोक्ता को सस्ते में सामान, और क्या चाहिए आपको श्रीमान!…ओ हो प्रोमोसन में आरक्षण!… वह भी दे देंगे महिला आरक्षण दिया है, तो यह भी दे देंगे!….. पर कुछ लोग हैं कि मानते नहीं, बेवजह मुद्दे को देते हैं हवा…. जैसे सत्ता इन लोगों की है रखैल…. अरे भाई तुम लोग हो आम आदमी….. भूखे रहोगे तभी काम करोगे. अभाव में रहोगे तो और ज्यादा काम करोगे! इसी लिए तो विद्वानों ने कहा है आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है…. आपलोग बेवजह शोर मचाते हैं…… कभी चीनी का दाम बढ़ने पर चिल्लाते हैं और ज्यादा चीनी खाकर मधुमेह को बढ़ावा देते हैं … पेट्रोल का दाम बढ़ने पर भी सडकों पर गाड़ियों का चलना कम नहीं हुआ ..अब तो लोग पान खाने के लिए भी गाड़ियों से निकलते हैं….. पैदल चलने के लिए गाड़ियों से जाते हैं… जिम जाने के लिए भी गाड़ियाँ और वह जाकर चलाएंगे सायकिल, जो कभी आगे नहीं बढ़ती.
बड़ा गड़बड़ है, संसद चले तो हंगामा… जब बंद है तो पब्लिक कहती है- नया कानून बनाओ. छुट्टी का समय है तो कहती हैं- संसद का विशेष सत्र बुलाओ. विशेष सत्र बुलाकर क्या फायदा? वहां भी तो हंगामा ही करेंगे. किसी को बोलने नहीं देंगे…. अध्यक्ष और सभापति की भी बात नहीं मानेंगे. चलो जो होता है, ठीक ही होता है. इसीलिये तो मैंने पूछ लिया था ‘ठीक है’? उस पर भी व्यंग्य! … क्या करें हम….. चलो इसी हंगामे के बीच पेट्रोल, डीजल आदि के दाम बढ़ाने का फैसला ले लेते हैं. जनता का ध्यान बंट जाएगा. अभी सी. एन. जी. का दाम बढ़ाया है, कोई शोर शराबा नहीं हुआ…
पर, उन युवाओं का क्या करें जो जंतर मंतर से हटने का नाम ही नहीं ले रहा .. इतनी ठंढ में भी डंटे हैं …वो तो अच्छा है…. विरोधी पार्टी और और आम पार्टी भी दूर से ही तमाशा देख रहा है. हमने तो कह दिया भाई नया साल नहीं मनाएंगे मुझे देख विपक्षी दलों ने भी घोषणा कर दिया .. नया साल नहीं मनाने का, मायावती, सुषमा जी महिला हैं, इसलिए महिला के दर्द को समझती है, पर मुलायम भाई को हम क्या कहें! ….उनका प्रदेश है उनकी मर्जी! अब ममता के चेलों को क्या हो गया ?…. छोडो वो तो अब मेरे साथ नहीं है.
चिदंबरम जी, वो ‘डायरेक्ट कैश ट्रान्सफर’ वाला स्कीम का क्या हुआ?… घोषणा हो गयी है न?… मोदी को भी समझाना पड़ेगा. बहुत बोलता है. अब न्यायालय की चपत लगी है लोकायुक्त मामले में … बचाले अपने आप को! जयशंकर प्रसाद ने ठीक ही लिखा था “अरुण यह मधुमय देश हमारा, जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा”… मैंने भी तो शरण दिया है- बंगला देशियों को, नेपालियों को तिब्बतियों को,…कुछ आतंकवादियों को भी और अब नक्सली भी आतंकवादियों की तरह तैयार हो गए है, उन्हें आयातित करने की जरूरत नहीं पड़ेगी ..बीच बीच में उनका खर्चा-पानी हथियार आदि मिलते रहना चाहिए! सब ठीक हो जायेगा ..शशि थरूर ने एक काम आसान कर दिया… अब पीडिता के नाम से स्मारक बनवाकर, उसके नाम से कानून बनवाकर, भीड़ को शांत किया जा सकता है… बाद में कुछ पुरस्कार वगैरह भी चालू कर देंगे …बलात्कार पीड़ितों के लिए …
बरसों पहले जब विनोद दुआ ने टी वी पर मुझसे सवाल किया था — “एक अर्थशास्त्री को राजनीति का कितना ज्ञान है?” .. मैंने उससे कहा था – “सीख रहा हूँ …और आज देखो सीख गया हूँ!”….. राजा, कलमाडी और कनिमोझी को तो जेल भिजवाया था. अब वो जमानत पर छूट जाते हैं तो हम क्या करें!…. कानून अपना काम काम करेगा और कर रहा है. इस दुष्कर्म वाले मामले भी कर रहा है …हम क्यों उसमे टांग अड़ाने जाएँ! …पर वो बहादुर नौजवान!… पीड़िता का मित्र! सचमुच बहादुर है! उसे भी सम्मानित करना चाहिए…. इसके लिए मैडम से पूछ ही लेते हैं!
(पूरा आलेख काल्पनिक है और यह लेखक के मनोभाव पर आधारित है.)
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