हर साल १५ अगस्त को स्वतंत्रता दिवस और १६ जनवरी को गणतंत्र दिवस आता है. उस दिन हम अपने वतन को याद करते हैं, शहीदों को याद करते हैं, स्वतंत्रता सेनानियों को याद करते हैं, देश में हुई तरक्की के पुल बांधते हैं, या फिर गरीबो की हालत देख कर नेताओं पर जम कर गुब्बार निकालते हैं.मैं बचपन से इन दिनों को रेडियो पर सुनता आ रहा हूँ और आजकल टेलीविजन पर देखता हूँ. १५ अगस्त के दिन प्रधान मंत्री के भाषण में कई नयी घोषणाएं, कुछ चुनौतियाँ और अंत में तीन बार जयहिंद! ….मैं बिना लाग-लपेट के कह सकता हूँ, इंदिरा जी के जयहिंद में जो जोश मुझे रेडियो पर सुनायी पड़ता था, वह मुझे किसी नेता (प्रधान मंत्री) के स्वर में नहीं सुनायी/ दिखाई पड़ता! उस समय हिंदी में आँखों देखा हाल सुनाने वाले श्री जसदेव सिंह जी की आवाज का कोई जवाब नहीं था.
अब आता हूँ गणतंत्र और स्वतंत्रता दिवस पर! स्वतंत्रता दिवस के दिन प्रधान मंत्री के भाषण का अब कोई महत्व नहीं रहा. क्योंकि वे वही बोलते हैं, जो कर नहीं सकते, तो लालकिला से लाल सपने दिखाने का क्या मतलब??? यह भाषण अब ‘उबाऊ’ लगने लगा है!पर २६ जनवरी यानी गणतंत्र दिवस के दिन का आज भी अपना खास महत्व है! गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर वर्तमान राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी का भाषण में देश के युवाओं का आक्रोश, युवती के साथ सामूहिक दुष्कर्म, बेरोजगारी की चिंता और नैतिक मूल्यों की पुनर्स्थापना का सन्देश काबिले तारीफ कहा जायेगा!…उसके बाद शुबह की ठंढ में रायसीना हिल से राजपथ की सरगर्मी और विभिन्न झांकियां!… मन को मोह रहे थे. इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि भूटान नरेश के सपत्नीक उपस्थिति, हमारे सैन्य बल का प्रदर्शन, और देश भर के विभिन्न राज्यों और विभागों की झलकियाँ …. यानी पूरा भारत, एक जगह दिल्ली के राजपथ पर उपश्थित हो गया. विभिन्न सेना दल की टुकड़ी का परेड, हर राज्यों, प्रदेशों की संस्कृति की झलक क्या यह नहीं बतलाते कि भारत में विविधता में भी एकता है, सामंजस्य है…. हम आगे बढ़ रहे हैं, पर अपनी संस्कृति को साथ लेकर! ….अभी सतत प्रयास जारी है, रुकना नहीं है, आगे बढ़ते जाना है. ईमानदारी और कठिन परिश्रम के साथ….
अंत में नितीश कुमार द्वारा बंटती हुई जिलेबी देख कर मेरे मुंह में भी पानी आ गया … काश हम अभी भी बच्चे होते! …अगर हम अभी बच्चे नहीं हैं, तो क्या हुआ? हमारे और हमारे पड़ोसी के तो बच्चे हैं…… बाबु, जरा सुनो तो … जाओ कुछ जिलेबियां और समोसे लेकर आओ! आज गणतंत्र दिवस है!
अब आता हूँ गणतंत्र और स्वतंत्रता दिवस पर! स्वतंत्रता दिवस के दिन प्रधान मंत्री के भाषण का अब कोई महत्व नहीं रहा. क्योंकि वे वही बोलते हैं, जो कर नहीं सकते, तो लालकिला से लाल सपने दिखाने का क्या मतलब??? यह भाषण अब ‘उबाऊ’ लगने लगा है!पर २६ जनवरी यानी गणतंत्र दिवस के दिन का आज भी अपना खास महत्व है! गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर वर्तमान राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी का भाषण में देश के युवाओं का आक्रोश, युवती के साथ सामूहिक दुष्कर्म, बेरोजगारी की चिंता और नैतिक मूल्यों की पुनर्स्थापना का सन्देश काबिले तारीफ कहा जायेगा!…उसके बाद शुबह की ठंढ में रायसीना हिल से राजपथ की सरगर्मी और विभिन्न झांकियां!… मन को मोह रहे थे. इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि भूटान नरेश के सपत्नीक उपस्थिति, हमारे सैन्य बल का प्रदर्शन, और देश भर के विभिन्न राज्यों और विभागों की झलकियाँ …. यानी पूरा भारत, एक जगह दिल्ली के राजपथ पर उपश्थित हो गया. विभिन्न सेना दल की टुकड़ी का परेड, हर राज्यों, प्रदेशों की संस्कृति की झलक क्या यह नहीं बतलाते कि भारत में विविधता में भी एकता है, सामंजस्य है…. हम आगे बढ़ रहे हैं, पर अपनी संस्कृति को साथ लेकर! ….अभी सतत प्रयास जारी है, रुकना नहीं है, आगे बढ़ते जाना है. ईमानदारी और कठिन परिश्रम के साथ….
अंत में नितीश कुमार द्वारा बंटती हुई जिलेबी देख कर मेरे मुंह में भी पानी आ गया … काश हम अभी भी बच्चे होते! …अगर हम अभी बच्चे नहीं हैं, तो क्या हुआ? हमारे और हमारे पड़ोसी के तो बच्चे हैं…… बाबु, जरा सुनो तो … जाओ कुछ जिलेबियां और समोसे लेकर आओ! आज गणतंत्र दिवस है!