Sunday, 27 October 2019

धनतेरस, दीपावली और छठ के त्योहार – सावधानी और बचाव


धनतेरस और दीपावली का त्योहार पूरे देश में धूमधाम से मनाया गया. अनेक शहरों में करोड़ों की खरीददारी भी हुई. सोने, चांदी और हीरों के गहनों के अलावा  पीतल, स्टील, अल्युमिनियम आदि धातु के बर्तनों, घर के लिए उपयोगी सामानों के साथ-साथ दो पहिया और चौपहिया वाहनों की भी खूब बिक्री हुई. मंदी को मात देते हुए हर वर्ग के लोगों ने अपने-अपने सामर्थ्य के अनुसार खरीददारी की. अपने घरों को साफ़ सुथरा कर सजाया संवारा. हर घरों में श्री लक्ष्मी-गणेश की पूजा के साथ साथ काली पूजा की भी धूम रही. धनतेरस के एक दिन पहले से ही बाजारों और सडकों पर इतनी भीड़ उमड़ी कि सड़कों और रास्ते पर जाम की स्थिति बन गई. पैदल चलना भी मुश्किल हो गया. लोगों ने जमकर खरीददारी की. दीप जलाया, लड़ियों से अपने घरों को सजाया. श्री लक्ष्मी-गणेश की पूजा की, लावा के साथ मिठाइयाँ खाई और खिलाई. 
गांवों में घर आंगन को सफाई कर मिट्टी और गोबर से लीपा जाता था. मिट्टी के घर भी बनाये जाते थे, जिनपर दिए सजाये जाते थे. आज शहरों में थर्मोकोल और कागज के बने बनाये घर मिल जाते हैं. बिजली के बल्ब टिमटिमाते हैं. पर दीयों की महत्ता आज भी कम नहीं हुई. काफी लोग मिट्टी के दिए खरीदते हैं और अपने घरों में जलाते हैं. अयोध्या में योगी जी ने 6.11 लाख दिए जलाकर विश्व में कीर्तिमान बनाया. पूरी अयोध्या नगरी सज गई जैसे राजा राम के वनवास से लौटने के बाद सजी होगी. वस्तुत: दीपावली तो भगवान राम के वनवास से लौटने के बाद स्वागत में ही मनायी जाती है, ऐसी मान्यता है.
बिहार के मूलवासी जो बाहर रोजगार के लिए गए हुए हैं, संभवत: दीपावली और छठ के अवसर पर अपने घर लौटकर पूरे परिवार के साथ दीवाली और छठ का त्योहार मनाना चाहते हैं, उनके लिए ट्रेनें और बसें कम पड़ रही हैं, फिर भी किसी न किसी तरह ठुंस कर घरों को लौट रहे हैं. त्योहार का आनंद ही कुछ ऐसा होता है कि सारे कष्ट सहकर भी हम त्योहार अवश्य मनाते हैं. त्योहारों का एक उद्देश्य यह भी है शायद कि आपसी भाईचारे में वृद्धि हो, हमारे बीच की दूरियां कम हों.
पिछले कुछ दिनों से मंदी की जो ख़बरें चल रही थी, दीपावली के अवसर पर ऐसा लगता है, मंदी का कोई असर नहीं है. पर यह मध्यम और उच्च वर्गों के लिए है, जो इस मंदी में भी अपना जीवन-यापन ढंग से कर पा रहे हैं. पर वाहन उद्योग की मंदी कम नहीं हुई है. टाटा मोटर्स में ‘ब्लाक क्लोज़र’ जारी है. अन्य सालों की अपेक्षा इस साल ज्यादा ही ब्लॉक क्लोज़र हुए हैं. अबतक 39-40 दिनों का ‘ब्लॉक क्लोज़र’ हो चुका है. परिणामस्वरूप टाटा मोटर्स पर आश्रित लघु उद्योग भी बंद पड़े हैं या सुस्त गति से चल रहे हैं. इसका प्रभाव उनमे काम करनेवाले मजदूरों पर तो पड़ता ही है. कोई उनसे जाकर पूछे कि कैसी दीपावली और धनतेरस बीती तो वे भला क्या जवाब देंगे?
वहीं वृद्धाश्रम में पड़े बुजुर्गों की हालात का जायजा भी कुछ सामाजिक संस्थाओं ने लिया है, उनके दर्द बांटने का प्रयास किया है. कुछ सामाजिक संस्थाओं ने स्लम बस्तियों में जाकर उनके बीच नए कपड़े, मिठाइयाँ और दिए, खिलौने आदि बांटे हैं. पर क्या वे पर्याप्त हैं. कुछ अधिकारी वर्ग और कर्मचारी वर्ग के लोग भी किसी-किसी का सहारा बने हैं जो काबिले-तारीफ हैं. यह बहुत अच्छी बात है कि संवेदनाएं अभी जिन्दा हैं. पर भौतिकता इतनी हावी हो गई है कि हमारे पास समय का अभाव हो गया है. हम ‘फेसबुक’ और ‘व्हाट्सएप्प’ आदि सोशल साईट पर खूब बधाई सन्देश भेजते हैं, पर आपस में मिल नहीं पाते. मिलना भी बहुत जरूरी है.
होना तो यह चाहिए कि हम सभी जो सक्षम हैं, अपनी आय का एक हिस्सा गरीबों और असहायों को मदद करने में लगायें. सरकार को भी एक कोष अवश्य बनाना चाहिए ताकि असहाय गरीब लोगों का कल्याण किया जा सके. सरकार के पास योजनायें भी हैं, क्रियान्वित भी हो रही है, पर वही अफसरशाही और सदियों से व्याप्त भ्रष्टाचार के कारण सरकारी योजनाओं का लाभ हर जरूरतमंद तक नहीं पहुँच पाता, नही तो क्यों भात-भात करते संतोषी मर जाती और अनेक गरीबों को अपने भोजन के लिए किसी अस्पताल में भर्ती होना पड़ता? समाचार पत्रों के अनुसार ही कुछ मरीज जो ठीक हो चुके हैं, पर उने कोई लेने नहीं आता. वे भी वहां पड़े रहते हैं, क्योंकि वहां उन्हें दोनों शाम का खाना तो मिल जाता है. ऐसा नहीं होना चाहिए. दिल्ली की केजरीवाल सरकार एक उदाहरण पेश कर रही है. वहां शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, पानी, सड़क, आदि मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं. प्रदूषण कम करने के लिए पटाखे न जलाने की अपील की जा रही है. लोग समझ भी रहे हैं और अमल भी कर रहे हैं. यही चेतना हर शहरों और गांवों में होने चाहिए. स्वच्छता मोदी जी का मिशन है. दिल्ली सरकार ने कनाट प्लेस में खूबसूरत लेज़र शो का आयोजन किया है. लोग उसे देखने जा रहे हैं. क्या इस तरह का आयोजन अन्य सरकारें नहीं कर सकतीं? कर सकतीं हैं. जब 6.11 लाख दिए जला सकती है तो और अन्य उपाय भी किए जा सकते हैं, जिनसे प्रदूषण कम हो और लोगों को आनंद भी आये. पटाखों से कई बार दुर्घटनाएं भी घट जाती हैं. पूरी सावधानी की जरूरत है. हर एक को सजग रहने की जरूरत है. आप त्यौहार अवश्य मनाएं पर इतना ध्यान अवश्य रक्खें कि अपने साथ-साथ दूसरे का भी अहित न हो. हम सब आपस में बैठकर विचार-विमर्श तो कर ही सकते हैं. विमर्श के बाद अवश्य हल निकलेगा. पटाखों से वायु प्रदूषण के साथ साथ ध्वनि प्रदूषण भी होता है. पटाखों के तेज आवाज से कान के परदे फट सकते हैं और बहरापन भी हो सकता है. इसलिए अपने मन में अवश्य विचारें, पटाखें जलाना कितना युक्तिपरक है. अब तो पटाखें छठ पर्व के अवसर पर भी जलाये जाने लगे हैं जो कही से भी तर्कसंगत नहीं लगता, पर अंधाधुंध नक़ल में हम सभी पीछे नहीं रहनेवाले.
जनता अपना मत देती है. अपना प्रतिनिधि चुनती है. जो प्रतिनिधि चुनकर आते हैं वही सरकार बनाते हैं और जनता के भाग्य-विधाता बनते हैं. हमें स्वच्छ छवि वाले उम्मीदवार का ही चयन करना चाहिए जो जनता के काम ईमानदारी से करें. सभी संविधान की शपथ लेते हैं और उन्हें अपना शपथ याद रखना चाहिए. किसी भी क्षेत्र में कोई भी व्यक्ति हो, अगर वे अपना काम ईमानदारी पूर्वक कर रहे हैं तो वे भी अपने देश की भलाई में योगदान दे रहे हैं. हमें अपना कर्तव्य अवश्य करना चाहिए साथ ही अपने अधिकारों के प्रति भी सजग रहना चाहिए. गलत का विरोध भी होना चाहिए. पर कोई भी काम बिना पूरी तरह समझे नहीं करनी चाहिए. भीड़ के उकसावे या अफवाहों को बिना जांचे-परखे कभी भी उन्माद को बढ़ावा न दें. हमेशा अच्छे लोगों के बीच समय गुजारें और काव्य-शास्त्र आदि की चर्चा करें.
कहा भी गया है - काव्य शास्त्र विनोदेन, कालो गच्छति धीमताम्।
             व्यसनेन च मूर्खाणां, निद्रयाकलहेन वा। ।
बुद्‌धिमान लोग अपना समय काव्य-शास्त्र अर्थात् पठन-पाठन में व्यतीत करते हैं वहीं मूर्ख लोगों का समय व्यसन, निद्रा अथवा कलह में बीतता है।
आप सभी को धनतेरस, दीपावली, भैया दूज, चित्रगुप्त पूजा, और छठ पर्व की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ. जय हिन्द! वन्दे मातरम!
-    जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.