Sunday, 28 October 2018

आस्था बड़ी या देश बड़ा – संविधान बड़ा या कथित पुराण


भारत एक धर्म निरपेक्ष देश है. यहाँ सभी धर्मों का आदर समान भाव से किया जाता है. सुबह सुबह जहाँ मंदिरों से घंटियों की आवाज सुनाई पड़ती है वहीं मस्जिदों से अजान के स्वर भी सुनाई पड़ते हैं. गुरूद्वारे से शबद यानी गुरुवाणी गूंजती है तो गिरिजाघरों में भी प्राथना सभाएं की जाती है. हमारे देश का तिरंगा झंडा भी इन्ही धर्मों का संयुक्त रूप है. यहाँ की गंगा यमुनी तहजीब विश्व विख्यात है. सभी महापुरुषों ने दूसरे धर्मों का आदर करते हुए अपनी आस्था को मजबूत रखने का सन्देश दिया है. हिन्दू धर्म में कुछ कुरीतियाँ कुछ अन्धविश्वास बीच बीच में घुंसपैठ रहे, तत्पश्चात ही जैन, बुद्ध और दूसरे सम्प्रदाय पैदा हुए जो हिन्दू धर्म के ही परिष्कृत रूप में अपनाये गए और स्वीकार भी किये गए. गुरुनानक ने भी राम को माना है और कबीर ने भी ईश्वर और अल्लाह को एक करने की भरपूर कोशिश की. साईं के अनुसार सबका मालिक एक है. महात्मा गांधी के प्रिय भजन ईश्वर अल्लाह तेरो  नाम सबको सम्मत्ति दे भगवान्... फिर बीच-बीच में विभाजन रेखा खींचने की कोशिश क्यों?
पूर्व प्रधान मंत्री श्री अटल बिहारी बाजपेयी ने कहा था- हमें राम मंदिर बनाना है पर भारत माता के मंदिर को खंडित कर नहीं. अब जब भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी है तब से ही हिन्दू राष्ट्र और हिन्दू राग अलापने की कोशिश की जा रही है. मैं कहता हूँ – आप हिन्दुओं को संगठित करें, तोड़ने या भड़काने की कोशिश न करें... पहले शूद्रों को मंदिर प्रवेश से वर्जित किया जाता रहा और अब महिलाओं के लिए कुछेक मंदिर वर्जित है. कुछ महिला संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट तक लड़ाई लड़ी और समानता के अधिकार पर संविधान के नियमानुसार उन्हें विजय भी मिली शिग्नापुर के शनि मंदिर में प्रवेश का उनका प्रयास सार्थक हुआ. पर अभी सबरीमाला में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद भी अभीतक महिलाओं को प्रवेश नहीं करने दिया गया है.
अब बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के पास अब देश की अदालतों के लिए भी एक सलाह है. वो चाहते हैं कि अदालतें व्यावहारिक हों और वैसे ही फ़ैसले दें, जिन्हें अमल में लाया जा सकता है. यह सलाह सुप्रीम कोर्ट के उस फ़ैसले के संदर्भ में दी गई है, जिसमें स्वामी अयप्पा के सबरीमला मंदिर में 10 से 50 आयु वर्ग की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति दी गई है. अमित शाह ने यह बयान केरल के कन्नूर में ज़िला बीजेपी कार्यालय के उद्घाटन के मौक़े पर आयोजित सार्वजनिक सभा के दौरान दिया. कन्नूर वही इलाक़ा है जहां कई दशकों से आरएसएस-बीजेपी और सीपीएम के कार्यकर्ताओं में झड़प और हत्याएं होती रहती हैं.
अमित शाह ने यह सलाह इस वजह से भी दी है क्योंकि सबरीमला मामले पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद जो हंगामे और विरोध प्रदर्शन हुए हैं उनमें 2500 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया. शाह ने कहा कि सदियों पुरानी धार्मिक मान्यताओं की रक्षा करते हुए सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश का विरोध करने वाले भाजपा, आरएसएस एवं अन्य संगठनों के 2500 लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया है. उन्होंने केरल सरकार पर आरोप लगाया कि वह पुलिस की ताकत से आंदोलनकारियों को दबाने की कोशिश कर रही है. मुख्यमंत्री पिनरई विजयन की राज्य सरकार को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी.
स्वामीय शरणम् अयप्पा के मंत्र से अपने भाषण की शुरुआत करने वाले शाह ने कहा कि मुख्यमंत्री को सुप्रीम कोर्ट के फैसले की आड़ में चल रही क्रूरता को रोकना ही होगा. उन्हें समझना होगा कि राज्य की महिलाएं भी शीर्ष अदालत के इस निर्णय के खिलाफ हैं. भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कहा कि केरल सरकार सबरीमाला मंदिर और हिंदू परंपराओं को नष्ट करने की कोशिश कर रही है, लेकिन भाजपा उन्हें हिंदू भावनाओं के साथ जुआ खेलने की इजाजत नहीं देगी. केरल की कम्युनिस्ट सरकार मंदिरों के खिलाफ साजिश कर रही है. इस सरकार ने राज्य में आपातकाल जैसे हालात पैदा कर दिए हैं. उन्होंने याद दिलाया कि इससे पहले भी केरल सरकार ने कोर्ट के कई आदेशों को लागू नहीं किया है. उन्होंने कहा कि सबरीमाला मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को भक्तों की भावनाओं का सम्मान करते हुए ही अमल में लाया जाना चाहिए. गौरतलब है कि केरल का कन्नूर जिला कम्युनिस्ट और भाजपा कार्यकर्ताओं के बीच खूनी संघर्ष का गवाह रहा है.
हमारे न्यायालय संसद के कानून और संविधान के अनुसार ही कोई भी फैसला देते हैं. वे न्याय का फैसला सुनाते समय धर्म, लिंग, भाषा, क्षेत्र आदि का भेद नहीं करते हैं. ऐसी मान्यता है और अधिकांश मामलों में साक्ष्य एवं कानून के अनुसार ही फैसला सुनाते हैं. हालाँकि कई बार उनके फैसलों पर सवाल उठते रहे हैं और कई फैसले बाद में बदले भी जा चुके हैं. फिर भी गणतंत्र में आखिरी सहारा न्यायालय अर्थात न्यायपालिका ही है.
भाजपा की वर्तमान सरकार या पहले की भी कई सरकारों पर संवैधानिक संस्थाओं के दुरुपयोग पर आवाजें उठती रही हैं. आज भी आवाज उठना लाजिमी है. पहले चुनाव आयोग पर आरोप लगे, EVM प्रणाली पर आरोप लगे, तत्काल में सीबीआई पर आरोप लगे हैं यह मामला अभी विचाराधीन ही चल रहा है. अब सेना प्रमुख और सैन्य सलाहकार पर भी आरोप लग रहे हैं. राफेल का मुद्दा गरम है. इस पर संतोषजनक जवाब सरकार की तरफ से नहीं आया है. मुद्दा गरम है विपक्ष को मौका है तो राजनीति होगी ही. सभी दल अपने अपने हिसाब से मुद्दों को भुना रहे हैं. पर विपक्ष अभी उतना सशक्त नहीं हुआ है न ही उनको एक सूत्र में बाँधनेवाला कोई सर्वमान्य नेता उभरा है. राहुल गांधी अपने आप को पहले से ज्यादा विकसित और आत्मविश्वासी साबित कर रहे हैं. देश के सामने अब तक दो ही विकल्प रहे हैं. कांग्रेस नीत गठबंधन या भाजपा नीत गठबंधन. अभीतक इन्ही विकल्पों पर हम अपना मत देते रहे हैं. पिछले दस साल के कांग्रेस गठबंधन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे तो भाजपा विकल्प बनी और श्री नरेन्द्र मोदी लोकप्रिय नेता के रूप में उभरे. उनकी वक्तृत्व कला और चुनावी भाषण भाजपा के लिए वरदान साबित होती रही है. उनके समकक्ष अभी दूसरा नेता नजर नहीं आता. पर उनसे भी ज्यादा शक्तिशाली व्यक्ति नजर आने लगा है.
राजतन्त्र के ज़माने में चक्रवर्ती राजा हुआ करते थे, जिनके आगे सभी राजा हार मानकर उनकी अधीनता स्वीकार कर लेते थे. प्रजातंत्र में जनता फैसला लेती है, किसे प्रधान या शासक बनाया जाय. भारत की स्वाधीनता के बाद, पंडित जवाहर लाल नेहरू शक्तिशाली बनकर उभरे, फिर इंदिरा गाँधी शक्तिशाली बनी, फिर सोनिया गाँधी को भी शक्तिशाली माना जाने लगा. अभी मोदी से भी ज्यादा शक्ति का प्रदर्शन राजनीति के चाणक्य कहे जानेवाले श्री अमित शाह हैं. वे कहीं से भी किसी को भी निर्देश या कहें आदेश दे सकते हैं. वे अपनी रणनीति में अब तक सबसे ज्यादा कारगर सिद्ध हुए हैं. सरकार में न रहते हुए भी सरकार उनके इशारे पर चलती हैं. प्रमुख संवैधानिक संस्थाएं उनके वश में है. न्यायपालिका को भी लगभग अपने वश में कर चुके हैं पर खुलेआम सुप्रीम कोर्ट को निर्देश देने का उनका सार्वजनिक बयान काफी अहम माना जा रहा है. अब प्रधान मंत्री पद के दूसरे दावेदार श्री आदित्यनाथ योगी भी बयान देने लगे हैं कि अगर सुप्रीम कोर्ट सबरीमाला मामले में निर्णय दे सकती है तो राममंदिर मुद्दे पर क्यों नहीं? यानी यहाँ भी न्यायपालिका पर दबाव बनाया जा रहा है. न्यायपालिका कभी कभी जनभावनाओं को समझती है और वैसे फैसले तुरंत नहीं सुनाती जबतक कि परिस्थिति अनुकूल न हो.    
चुनवा का समय नजदीक है फिलहाल पांच राज्यों में चुनाव है. भाजपा इनपर कब्ज़ा करना चाहेगी और कांग्रेस या विपक्ष भाजपा को हराना चाहते हैं. वैसे में कोई भी रणनीति बनाई जा सकती है जिससे उस दल का फायदा होरणनीतिकार लगे हुए हैं. जनता को रोजी-रोटी मकान  के साथ सुरक्षा और जनसुविधा भी चाहिए जिसके लिए वह सरकार चुनती है और समुचित टैक्स देती है. वर्तमान केंद्र सरकार की कुछ योजनायें जरूर अच्छी है. गरीबों को फायदा पहुंचा रही है पर मध्यम वर्ग महंगाई और बेरोजगारी के मार से मर रहा है. ऊपर से असुरक्षा का वातावरण उसे भयभीत कर रहा है. न्यायपालिका और प्रशासन को जनता की सुरक्षा के मुद्दे पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है. बाकी तो राम भरोसे सब कुछ चल ही रहा है. आगे भी चलता ही रहेगा. इसलिए अंत में जय श्रीराम और जयहिंद!
-       --जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर

Sunday, 21 October 2018

अमृतसर हादसा – दोषी कौन?


विजयादशमी के दिन अमृतसर के जोड़ा फाटक के पास रावण-दहन कार्यक्रम को देखने के लिए हजारों लोगों की भीड़ इकट्ठी हुई थी. मैदान मे पर्याप्त जगह न होने के कारण मैदान के बाहर लोग रेलवे लाइन की पटरियों पर खड़े होकर रावण-दहन का कार्यक्रम देखा रहे थे साथ ही हाथों में मोबाइल लेकर विडियो भी बना रहे थे. तभी वहां से दो ट्रेनें गुजरी. एक ट्रेन हावड़ा एक्सप्रेस जाने के समय लोग पटरियों से हट गए और दूसरी पटरी पर चले गए ट्रेन आराम से निकल गयी थी. तभी दूसरी ट्रेन डी एम यु आ गयी जिसकी टॉप लाइट नहीं जल रही थी. रावण दहन में पटाखों की आवाज में लोगों को ट्रेन के आने की आवाज नहीं सुनाई पड़ी. ट्रेन का ड्राईवर भी पटरी पर खड़े लोगों को देख नहीं सका और भीड़ को रौंदती हुई निकल गयी. आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार ६० से ज्यादा लोगों की जानें गयी और डेढ़ सौ से ज्यादा लोग घायल हुए. पल भर में खुशियाँ मातम में बदल गयी. अब शुरू हो गई चीख पुकार, आरोप प्रत्यारोप और राजनीतिक बयान बाजी.
कुछ लोगों को कहना है कि इस कार्यक्रम के आयोजक सौरभ मदान उर्फ़ मिट्ठू मदान अपनी राजनीति चमकाने के लिए इतनी बड़ी भीड़ इकट्ठी कर मुख्य अतिथि नवजोत सिंह सिद्धू और उनकी पत्नी के सम्मान में कसीदे पढ़ रहा था. हालाँकि वह रेलवे ट्रैक पर खड़े लोगों से यह भी कहा रहा था कि आपलोगों को पता है कि कौन ट्रेन कब आती है, इसलिए अपनी सुरक्षा का ख्याल रक्खें. इतना कहना काफी नहीं था. वहां यह इंतजाम होना चाहिए था कि लोग रेलवे ट्रैक पर न जाएँ या ट्रेन को रोकने की आधिकारिक ब्यवस्था हो. ऐसा कुछ नहीं किया गया केवल कुछ शर्तों के साथ पुलिस से NOC प्राप्त की गयी थी. पुलिस की पर्याप्त ब्यवस्था न थी, जो लोगों को ट्रैक पर जाने से रोक सके, नहीं बैरीकेडिंग की गयी थी. मैदान छोटा और भीड़ ज्यादा ऊपर से राजनीति चमकाने का मौका ... भला कोई भी आयोजक यह मौका अपने हाथ से क्यों जाने देता. भाषणबाजी में रावण दहन का कार्यक्रम भी 6 बजे के बजाय 7 बजे हुआ क्योंकि मुख्य अतिथि मिसेज नवजोत सिंह सिद्धू  देर से आयीं अँधेरा गहराता रहा और अँधेरा भी एक कारण बना इस हादसे का. कुछ लोगों का कहना है कि हादसे के समय मिसेज सिद्धू वहां से भाग गयीं बाद में अस्पताल में लोगों के इलाज करती हुईं मिलीं. मुख्य आयोजक सौरभ मदान फरार हैं और पुलिस की गिरफ्त से बाहर है. डी एम यु के चालक को गिरफ्तार कर लिया गया है .... घायलों का इलाज जारी है कुछ लाशों की पहचान हो गयी है कुछ अभी भी ऐसी हैं जिनकी शिनाख्त नहीं हो पायी है. कुछ लोग अपनों को खोज रहे हैं. हादसा काफी दर्दनाक और भयावह है. यह दुर्भाग्यपूर्ण भी है पर कोई न कोई तो जिम्मेदार है. आयोजक? स्थानीय प्रशासन, रेलवे या भीड़ ???
धार्मिक पर्व त्योहार भारत भूमि की आत्मा में है हर साल कुछ प्रमुख पर्व त्योहार धूम-धाम से मनाये जाते हैं. भीड़ इकट्ठी होती है और कुछ आवंछित दुर्घटनाएं घट जाती है.
०३.१०.२०१४ बिहार की राजधानी पटना में रावण दहन के बाद भगदड़ में मरने वालों की अधिकारिक संख्या 3४ बतायी गयी. पटना के गांधी मैदान में हुई इस घटना पर राज्य के गृह सचिव आमिर सुभानी ने घटना की पुष्टि करते हुए बताया कि 100 से ज्यादा लोग घायल हुए हैं. घटना एक्जीबिशन रोड इलाके में रामगुलाम चौक के पास उस वक्त हुई जब अफवाह की वजह से भगदड़ मच गई. घायलों को पीएमसीएच में भर्ती कराया गया है. मरने वालों में अधिकतर महिलाएं और बच्चे हैं. पुलिस के मुताबिक लोग गांधी मैदान में आयोजित रावण दहन कार्यक्रम से लौट रहे थे. वहीं, मां दुर्गा की मूर्ति विसर्जन के लिए भी इसी रास्ते पर सैंकड़ों की तादाद में लोग मौजूद थे. बताया जा रहा है कि इस दौरान किसी ने बिजली का तार गिरने की अफवाह फैला दी. चश्मदीदों के मुताबिक जिस वक्त भगदड़ मची उस वक्त गांधी मैदान का सिर्फ एक गेट ही खुला था और एक्जीबिशन रोड पर काफी भीड़ थी.
तीन दशक पहले केरल में ऐसा ही हादसा हुआ था. १९८६ में केरल के थलासेरी स्थित श्री जगन्नाथ मंदिर में उत्सव का कार्यक्रम था. मध्य रात्रि में लोग रेलवे ट्रैक पर आतिशबाजी का मजा ले रहे थे तभी एक एक्सप्रेस ट्रेन आई और लोगों को रौंदती हुई निकल गयी. इस हादसे में भी २६ लोगों की जान चली गयी थी.
भारत में बड़े धार्मिक आयोजन के दौरान भगदड़ की घटनाएं अक्सर होती रही हैं.
आइये कुछ आंकडे देखते हैं, जो अंतर्जाल से लिए गए हैं.
1986 - हरिद्वार में एक धार्मिक आयोजन के दौरान भगदड़ में 50 लोगों की मौत हो गई.
१९८८ में जमशेदपुर में भी विजयादशमी के दिन भगदड़ मची थी और कई लोग मारे गए थे. उसके बाद जमशेदपुर में भगदड़ का इतिहास नहीं है. यहाँ के प्रशासन और अनुशासित नागरिकों ने भी सबक ले लिया.
08-11-2011 - हरिद्वार में हुई एक भगदड़ के दौरान कम से कम 16 लोग मारे गए और 40 जख्मी हुए.
14-01-2012 - मध्यप्रदेश के रतलाम में शहीदे कर्बला के 40 वें दिन हुए धार्मिक आयोजन के दौरान अचानक भगदड़ में 12 लोगों की मौत हो गई
20-02-2012 - गुजरात में भगदड़, 6 लोगों की मौत गुजरात के जूनागढ़ में आयोजित शिवरात्रि मेले में रविवार रात हुई भगदड़ में 6 लोगों ...
24-09-2012 ... देवघर में अनुकूल चन्द्र ठाकुर की 125वीं जयंती पर सत्संग आश्रम में आयोजित समारोह में भगदड़ मे कम से कम 9 यात्रियों की मृत्यु और अनेक के घायल होने की घटना
11-02-2013 - बारह वर्षों में होने वाले कुंभ मेले में कल रविवार को मौनी अमावस्याम के दिन इलाहाबाद के रेलवे स्टे़शन पर भगदड़ मच जाने से लगभग 36 लोगों की मौत हो गयी।
26 अगस्त 2014 ... मथुरा के बरसाना और देवघर के श्री ठाकुर आश्रम में मची भगदड़ से लगभग एक दर्जन श्रद्धालु मारे गए थे।
दिक्कत यह है कि ऐसी घटनाएं होने के बाद भी न धार्मिक आयोजनों के आयोजक और न ही स्थानीय प्रशासन सावधान रहता है। स्थानीय प्रशासन इसलिए इन आयोजनों में हस्तक्षेप नहीं करता, क्योंकि इससे धार्मिक भावनाएं भड़कने का खतरा होता है। इनके आयोजकों में भी इसलिए लापरवाही होती है, क्योंकि वे जानते हैं कि धार्मिक आयोजन होने के नाते वे काफी छूट ले सकते हैं। कम ही धार्मिक प्रतिष्ठान हैं, जो आम लोगों की सुविधा और सुरक्षा के नजरिये से योजनाबद्ध तरीके से आयोजन करते हों।
आजकल अन्धानुकरण भी काफी बढ़ गया है, सभी लोग इन धार्मिक आयोजनों में शामिल होकर अपने पाप धो डालना चाहते हैं या पुण्य कमाकर सीधे स्वर्ग जाने की कामना रखते हैं. इसमे किसी को भी जरा सा धैर्य नहीं होता. आखिर हम सब विकसित होकर क्या सीख रहे हैं. आस्था होना अलग बात है और अन्धानुकरण अलग. हमें इनमे फर्क करना सीखना होगा. खासकर इन दुर्घटनाओं में बच्चे और महिलाएं ही ज्यादा हताहत होते हैं कम से कम उन्हें तो इस भीड़-भाड़ से बचाए जाने की कोशिश की जानी चाहिए. जांच होगी राजनीति भी होगी. मुआवजा भी मिलेगा, पर जिन्दगी वापस नहीं मिलेगी. हम सब मृत आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना ही कर सकते हैं.
हम सभी को अन्धानुकरण और भीड़-भाड़ से बचने की हरसंभव कोशिश करनी चाहिए. आजकल सभी कार्यक्रमों की रिकॉर्डिंग बाद में देखने को मिल जाती है फिर भीड़ का हिस्सा बनाने से क्या फायदा?
- जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.

Saturday, 13 October 2018

मुझे तो माँ गंगा ने बुलाया है


न तो मुझे किसी ने यहाँ भेजा है, नहीं मैं खुद चलकर यहाँ आया हूँ, मुझे तो माँ गंगा ने बुलाया है. यह पंक्तियाँ प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने बनारस से सांसद के चुनाव के लिए नामांकन के पहले बड़े ही भावुक अंदाज में कही थी. श्री मोदी ने गंगा सफाई अभियान के लिए कई योजनाओं का प्रारंभ किया. काशी में गंगा-घाट की सफाई के लिए खुद कुदाल भी चलाया. काफी लोगों को गंगा की सफाई से जोड़ा, नमामि गंगे उनकी महत्वाकांक्षी परियोजना है. इसके लिए स्वतंत्र मंत्रालय भी बनाया. पहले यह स्वतंत्र प्रभार उमा भारती के जिम्मे था पर उनकी देख-रेख में शायद ज्यादा प्रगति न होता देखकर ही इस मंत्रालय को गडकरी जी के जिम्मे कर दिया. गडकरी जी अभी हाल ही में बयान दे चुके हैं कि मार्च २०१९ तक गंगा ७०% साफ़ हो जायेगी. देखा जाय वह दिन भी ज्यादा दूर नहीं है. पर गंगा की सफाई, अविरलता, निर्मलता के लिए कितने ही संत महापुरुष हवन करते रहे और कितनों ने स्वयं की आहुति तक दे डाली इससे हम सभी वाकिफ है.
अभी ताजा समाचार 86 वर्षीय प्रो. जी डी अग्रवाल यानी स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद का है जो गंगा की सफाई की मांग को लेकर गत 22 जून से हरिद्वार में गंगा किनारे स्थित मातृ-सदन में अनशन कर रहे थे. उन्होंने अपने निधन से पहले ही वसीयत कर दी थी कि उनका पार्थिव शरीर ऋषिकेश स्थित एम्स के शरीर विज्ञान विभाग को सौंप दिया जाए. गंगा को बचाने के लिए जान देने वाले स्वामी ज्ञानस्वरूप हाल के वर्षों में दूसरे पर्यावरण प्रेमी संन्यासी हैं. इससे पहले 2011 में 13 जून को ११५ दिन तक अनशन करते हुए स्वामी निगमानंद ने भी इसी तरह हरिद्वार में अनशन करते हुए अपनी जान दे दी थी.
प्रो. जीडी अग्रवाल (स्वामी सानंद) अपने जीते जी गंगा को साफ-सुथरा होता देखने की चाह रखने वाले पिछले 111 दिनों से अनशन पर थे. इस दौरान उन्होंने सरकार को कई दफे पत्र लिखा और चाहा की गंगा की सफाई के नाम पर नारेबाजी-भाषणबाजी के अलावा कुछ ठोस हो, लेकिन सरकारों का रवैया जस का तस रहा. वह पूर्ववर्ती सरकारों में भी अनशन पर बैठे थे और तब भी उनकी यही मांग थी और इस बार जब वे अनशन पर बैठे तब केंद्र में 'गाय और गंगा' की बात करने वाली सरकार थी, ऐसे में इस मसले को और संवेदनशीलता से देखने और निपटने की जरूरत थी लेकिन हुआ क्या...! न तो गंगा में गिरने वाली गंदगी पर लगाम लग पाई है और न ही अवैध खनन रुका है.
हम सभी जानते हैं कि केदारनाथ की भयानक आपदा में हज़ारों जानें गई थीं. उसके बाद तमाम वैज्ञानिकों ने इस आपदा का अध्ययन किया और लगभग सभी रिपोर्ट में गंगा का जिक्र था और कहा गया कि गंगा को बचाने के लिए तत्काल ठोस कदम उठाए जाने चाहिए, नहीं तो ऐसी आपदाओं को रोका नहीं जा सकता. 2014 में वन और पर्यावरण मंत्रालय ने खुद सुप्रीम कोर्ट में एक रिपोर्ट सौंपी और स्वीकार किया कि हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट की वजह से केदारनाथ आपदा ने और विकराल रूप धारण किया. सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को गंगा नदी के बेसिन में बन रहे बांधों पर रोक लगाने की जरूरत भी बताई. 2016 में इसी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया और कहा कि बांधों की वजह से गंगा को जो नुकसान हुआ है उसकी भरपाई संभव नहीं है.  जब २०१४ में श्री नरेंद्र मोदी नीत भाजपा की सरकार बनी तो गंगा की सफाई और स्वच्छता को लेकर जोर शोर से बात हुई. दावे तो यहां तक किए गए कि गंगा साफ नहीं हुई तो 'जान दे दूंगी'. लेकिन वास्तव में गंगा कितनी साफ हुई यह प्रोफेसर अग्रवाल से बेहतर कौन बता सकता था !
गंगा से जुड़ी धार्मिकता सिर्फ दूसरों को ललकारने के काम आती है. गंगा के कोई काम नहीं आती है. इसीलिए कहा उन्होंने कहा कि श्रद्धा अपनी जगह मगर वो गंगा के लिए नहीं है. गंगा के नाम पर ख़ुद के लिए है. प्रो. जी डी अग्रवाल के साथी तो उनके जाने के बाद गंगा के लिए लड़ते रहेंगे मगर समाज जो दावा करता है कि वह गंगा से है, उनके बीच जी डी अग्रवाल की मौत एक मामूली ख़बर भी नहीं है. मातृसदन का आरोप है कि प्रो. अग्रवाल की हत्या हुई है. संदिग्ध मौत हुई है. लेकिन प्रो. अग्रवाल के परिजनों ने कहा कि उन्हें इस तरह का शक नहीं है. प्रो. अग्रवाल ने बर्कले के यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया से पीएचडी की थी. आईआईटी कानपुर में पढ़ाया था. 2011 में वे स्वामी सानंद हो गए थे. 22 जून से गंगा के लिए उपवास पर बैठे थे. उनके पत्रों से पता चलता है कि सरकार से उनका संपर्क था और सरकार भी उनके संपर्क में थी, फिर ये स्थिति क्यों आई.
प्रो. अग्रवाल ने प्रधानमंत्री को अंतिम उपवास के दौरान तीन पत्र लिखे थे. वे प्रधानमंत्री से उम्र में बड़े होने के नाते उन्हें ‘तुम’ कह कर संबोधित करते थे. 24 फरवरी और 13 जून को पत्र लिखकर बता दिया था कि गंगा को लेकर उनकी मांगे नहीं मानी गईं तो वे 22 जून से उपवास पर बैठेंगे और प्राण त्याग देंगे. 23 जून को भी एक पत्र लिखा. उसके बाद एक अंतिम पत्र लिखा 6 अगस्त 2018 को. 24 फरवरी को प्रधानमंत्री को जो पत्र लिखा उसमें तो जिस तरह से लिखा है वो प्रो. जी डी अग्रवाल जैसा ही शख्स लिख सकता है. वो लिखते हैं, '2014 के लोक-सभा चुनाव तक तो तुम भी स्वयं मां गंगाजी के समझदार, लाडले और मां के प्रति समर्पित बेटा होने की बात करते थे पर वह चुनाव मां के आशीर्वाद और प्रभु राम की कृपा से जीतकर अब तो तुम मां के ही कुछ लालची, विलासिताप्रिय बेटे-बेटियों के समूह में फंस गए हो और उन नालायकों की विलासिता के साधन जुटाने के लिए जिसे तुम लोग विकास कहते हो, कभी जल मार्ग के नाम से बूढ़ी मां को बोझा ढोने वाला खच्चर बना डालने चाहते हो, कभी ऊर्जा की आवश्यकता पूरी करने किए हल का, गाड़ी का या कोल्हू जैसी मशीनों का बैल.' डॉ. अग्रवाल के अनुसार
3.08.2018 को केंद्रीय मंत्री साध्वी उमा भारती जी उनसे मिलने आई थीं. उन्होंने फोन पर नितिन गडकरी जी से बात कराई. लेकिन प्रतिक्रिया की उम्मीद आपसे है, इसलिए मैंने सुश्री उमा भारती जी को कोई जवाब नहीं दिया. मेरा यह अनुरोध है कि आप निम्नलिखित चार वांछित आवश्यकताओं को स्वीकार करें, दो मेरे 13 जून को आपको लिखे पत्र में सूचीबद्ध हैं. यदि आप असफल रहे तो मैं अनशन जारी रखते हुए अपना जीवन त्याग दूंगा.
मुझे अपनी जान दे देने में कोई चिन्ता नहीं है क्योंकि गंगाजी का काम मेरे लिए सबसे महत्वपूर्ण है. मैं आईआईटी का प्रोफेसर रहा हूं तथा मैं केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड एवं गंगाजी से जुड़ी सरकारी संस्थाओं में रहा हूं. उसी के आधार पर कह सकता हूं कि आपकी सरकार ने इन चार सालों में कोई भी सार्थक प्रयत्न गंगाजी को बचाने की दिशा में नहीं किया है.' वे प्रधानमंत्री को साफ-साफ लिखते रहे कि गंगा को लेकर उनकी तमाम नीतियां कारपोरेट को फायदा पहुंचाने के लिए है. ऐसा नहीं है कि प्रधानमंत्री प्रो. जी डी अग्रवाल को नहीं जानते थे. उन्होंने भी प्रो. जी डी अग्रवाल के निधन पर शोक जताया है. ट्वीट किया है. प्रधानमंत्री ने 2012 में भी एक ट्वीट किया था, तब भी जी डी अग्रवाल अनशन पर थे और केंद्र में मनमोहन सिंह की सरकार थी. १९ मार्च २०१२ के इस ट्विट में प्रधानमंत्री मोदी ने लिखा था, 'स्वामी सानंद के अच्छे स्वास्थ्य की कामना करता हूं, जो अविरल, निर्मल गंगा को लेकर अनशन पर हैं. उम्मीद है केंद्र सरकार गंगा को बचाने के लिए ठोस कदम उठाएगी.' अफसोस कि विपक्ष में रहते हुए जिस स्वामी के स्वास्थ्य की कामना करते थे, जब मोदी सत्ता में आए तो स्वामी सानंद यानी प्रो. जी डी अग्रवाल 111 दिनों के अनशन पर बैठे और उनकी मौत हो गई. लेकिन जिन्हें गंगा की चिन्ता थी वो फिर प्रधानमंत्री से सवाल करने लगे हैं कि गंगा कहां है? आखिर एक पर्यावरणविद को प्रधानमंत्री मोदी से उम्मीद क्यों नहीं होती? मई 2015 में प्रधानमंत्री ने नमामी गंगे प्रोजेक्ट की घोषणा की. गंगा मंत्रालय बनाया. 6 साल के लिए 20,000 करोड़ का बजट बनाया. प्रो. अग्रवाल को प्रधानमंत्री मोदी के बनाए प्रोजेक्ट से आपत्ति थी. उन्हें लगता था कि ये सब कोरपोरेट के लिए है. सीएजी ने दिसंबर 2017 में नमामि गंगे को लेकर एक रिपोर्ट दी थी जिसमें कहा था, 'हमने 87 प्रोजेक्ट के सैंपल की जांच की थी. इनमें से 50, 1 अप्रैल 2014 के बाद लांच हुए थे. इन सभी के लिए 7,992.34 करोड़ रुपये की मंज़ूरी दी गई थी. 2014-15 से 2016-17 के दौरान 2,615 करोड़ फंड का इस्तमाल ही नहीं हुआ. किसी प्रोजेक्ट में 8 प्रतिशत ही फंड इस्तमाल हुआ तो किसी में अधिक से अधिक 63 प्रतिशत.'(आंकड़े अंतर्जाल से साभार)
प्रोफेसर अग्रवाल माँ गंगा की गोद में समा गए. सरकार और सिस्टम की संवेदनहीनता ने एक संस्था और ईमानदार प्रयास को निगल लिया. पर उम्मीद की जानी चाहिए कि उनका यह बलिदान बेकार नहीं जायेगा और ‘गंगापुत्र’ गंगा को साफ़ करने में कोई कसर न छोड़ेंगे ...हम सब को भी यथासंभव गंगा को साफ़ करने और साफ़ रखने में मदद करनी चाहिए. टाटा स्टील द्वारा प्रायोजित श्रीमति बचेंद्री पाल के नेतृत्व में ‘नमामि गंगे’ का एक दल गंगा सफाई अभियान में जुड़ा है. यह टीम ने गंगा की सफाई के अलावा लोगों को प्रेरित करने का भी काम कर रही है.... जय गंगा मैया! 
- जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर