झारखंड के सिमडेगा से दिल को झकझोर देने वाली एक मामला
सामने आया है जहां कुछ दिनों से भूखी 11 साल की एक बच्ची संतोषी की मौत हो गई. बताया
ये जा रहा है कि स्थानीय राशन डीलर ने महीनों पहले उसके परिवार का राशन कार्ड रद्द
करते हुए अनाज देने से इनकार कर दिया था. राशन डीलर की दलील थी कि राशन कार्ड आधार
नंबर से लिंक नहीं है। इस बीच झारखंड में भूख से हुई संतोषी के मौत के मामले को
केंद्र सरकार ने गंभीरता से लिया है. केंद्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य और
सार्वजनिक वितरण मामलों के मंत्री रामविलास पासवान ने कहा है कि मामले की जांच के
लिए जल्द ही एक केंद्रीय टीम राज्य का दौरा करेगी. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, संतोषी ने चार
दिन से कुछ भी नहीं खाया था। घर में मिट्टी का चूल्हा था और जंगल से चुन कर लाई गई
कुछ लकड़ियां भी। सिर्फ ‘राशन’ नहीं था. अगर होता, तो संतोषी आज
ज़िंदा होती. लेकिन, लगातार भूखे रहने के कारण उनकी मौत हो गई. संतोषी अपने
परिवार के साथ कारीमाटी मे रहती थी. यह सिमडेगा जिले के जलडेगा प्रखंड की पतिअंबा
पंचायत का एक गांव है. करीब 100 घरों वाले इस गांव में इसमें कई जातियों के लोग रहते हैं.
संतोषी पिछड़े समुदाय की थीं. गांव के डीलर ने पिछले आठ महीने से उन्हें राशन देना
बंद कर दिया था. क्योंकि, उनका राशन कार्ड आधार से लिंक्ड नहीं था. संतोषी के पिताजी
बीमार रहते हैं. कोई काम नही करते. ऐसे में घर चलाने की जिम्मेवारी उसकी मां कोयली
देवी और बड़ी बहन पर थी. वे कभी दातून बेचतीं, तो कभी किसी के
घर में काम कर लेतीं. लेकिन, पिछड़े समुदाय से होने के कारण उन्हें आसानी से काम भी नहीं
मिल पाता था. ऐसे में घर के लोगों ने कई रातें भूखे गुजार दीं. कोयली देवी ने
बताया, “28 सितंबर की दोपहर
संतोषी ने पेट दर्द होने की शिकायत की. गांव के वैद्य ने कहा कि इसको भूख लगी है.
खाना खिला दो,
ठीक हो जाएगी.
मेरे घर में चावल का एक दाना नहीं था. इधर संतोषी भी भात-भात कहकर रोने लगी थी.
उसका हाथ-पैर अकड़ने लगा. शाम हुई तो मैंने घर में रखी चायपत्ती और नमक मिलाकर चाय
बनायी. संतोषी को पिलाने की कोशिश की. लेकिन, वह भूख से छटपटा
रही थी. देखते ही देखते उसने दम तोड़ दिया. तब रात के दस बज रहे थे.”
सिमडेगा के उपायुक्त मंजूनाथ भजंत्रि इससे इनकार करते हैं. मीडिया
से बातचीत में उन्होंने दावा किया कि संतोषी की मौत मलेरिया से हुई है. मंजूनाथ का
कहना है कि संतोषी की मौत का भूख से कोई लेना-देना नहीं है. अलबत्ता उसका परिवार
काफी गरीब है. इसलिए हमने उसे अंत्योदय कार्ड जारी कर दिया है. जलडेगा निवासी सोशल
एक्टिविस्ट तारामणि साहू डीसी पर तथ्यों को छिपाने का आरोप लगाती हैं. तारामणि
साहू ने बीबीसी से कहा, “कोयल देवी का राशन कार्ड रद्द होने के बाद मैंने उपायुक्त
के जनता दरबार मे 21 अगस्त को इसकी शिकायत की. 25 सितंबर के जनता
दरबार में मैंने दोबारा यही शिकायत कर राशन कार्ड बहाल करने की मांग की. तब संतोषी
जिंदा थी.”
झारखंड के खाद्य आपूर्ति मंत्री सरयू राय ने हालांकि मीडिया
से बात चीत के दौरान यह स्वीकार किया है कि कोयली देवी के परिवार को आधार कार्ड के
लिंक न होने के कारण कई महीने से राशन नहीं मिल पा रहा था। सरयू राय का बयान सच
समझने के लिए पर्याप्त है।
राज्य के मुख्यमंत्री रघुबर दास ने कहा कि सिमडेगा
जिलाधिकारी 24 घंटे के अंदर
रिपोर्ट सौंपेगी, इस मामले में जो भी दोषी पाए जाएंगे, उनके खिलाफ कड़ी
कार्रवाई की जाएगी।
डिजिटल इंडिया के इस दौर में जब हम वैश्विक स्तर पर पहचान
बनाने की बात कर रहे हैं, ऐसे में 'भोजन के अधिकार' छीनने और भूख के कारण इस तरह की मौतें सरकारी
व्यवस्था पर गंभीर सवाल उठा रही है। अभी हाल ही में भारत वैश्विक भूख सूचकांक में 119 देशों की
सूचकांक में 100वें नंबर पर आया
था, जो कि एशिया के
कई देशों से पीछे है। झारखंड सरकार के खाद्य आपूर्ति मंत्री सरयू राय ने जमशेदपुर
में शनिवार को एक बड़ा फैसला लिया है. मंत्री ने मुख्य सचिव राजबाला वर्मा के आदेश
को निरस्त कर दिया है.
दरअसल, मुख्य सचिव ने फरवरी 2017 को खाद्य
सामग्री उठाने के लिए आधार कार्ड को अनिवार्य कर दिया था. साथ ही कहा था कि जिसके
पास आधार कार्ड नहीं है उसे राशन नहीं मिलेगा. उस आदेश को खाद्य मंत्री सरयू राय
ने शनिवार को निरस्त कर दिया. साथ ही कहा कि भारत सरकार द्वारा अगर 8 तरह के किसी भी
प्रकार के पहचान पत्र दिए जाते हैं, तो उनको राशन दिया जाए. उन्होंने सभी राशन दुकानों में आदेश
जारी कर दिया. इसके अलावा बच्चे की भूख से मौत मामले में मंत्री सरयू राय ने सवाल
खड़ा किया है. हालांकि उन्होंने कहा कि इस घटना से राशन वितरण के मामलों का खुलासा
हो रहा है. बच्चे की मौत की भी जांच होगी. उन्होंने कहा कि कहीं बच्चे के परिवार
के लोगों के पास आधार कार्ड न रहने पर उनका राशन तो कहीं रोक नहीं दिया गया. साथ
मंत्री ने यह भी कहा कि इन सभी मामलों की जांच कर दोषियों पर कड़ी से कड़ी
कार्रवाई की जाएगी.
इसी बीच एक और दिल दहलाने वाली खबर आई है, जिसके लिए जिम्मेदार
इस बार सरकारी अधिकारी नहीं, गांव के लोग हैं. बताया जा रहा है कि जिस महिला की बच्ची की
मौत हुई थी, गांववालों ने उसे
मारपीट कर गांव से बाहर निकाल दिया है. गांववालों का कहना है कि महिला ने अपनी
बच्ची की मौत के बाद मीडिया को बयान देकर गांव की बदनामी करवाई है, इसलिए उसे गांव
में रहने का हक नहीं है. अखबार इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक 20 अक्टूबर की रात
को सिमडेगा के करिमाती गांव में रहने वाली कोयली देवी के घर गांव की कुछ महिलाएं
पहुंची. उन्होंने कोयली देवी के साथ मारपीट की और कहा कि उसने गांव का नाम बदनाम
किया है. 21 अक्टूबर की सुबह
किसी तरह से कोयली देवी अपने पास के गांव में सामाजिक कार्यकर्ता तारामणि साहू के
घर पहुंची. तारामणि ने अखबार को बताया- “कोयली को गांव से बाहर निकालने की कोशिश की गई
और उसका सामान फेंक दिया गया. कोयली मेरे पास आई, जिसके बाद उसकी
सुरक्षा के लिए एसडीएम को सूचना दी गई है.” वहीं सिमडेगा के
डिप्टी एसपी एके सिंह ने अखबार को बताया- “जलडेगा के थाना
इंचार्ज और बीडीओ को करिमाती गांव भेजा गया है. कोयली देवी को तारामणि साहू के घर
से वापस उनके गांव करिमाती लाया गया है.” पुलिस ने दावा किया है- “घर में तोड़फोड़
के निशान नहीं मिले हैं. जांच में पता चला है कि गांव की कुछ महिलाओं से कोयली
देवी की बहस हो गई थी. हालांकि कोयली देवी ने न तो इसकी कोई लिखित शिकायत की है और
न ही किसी महिला की शिनाख्त की है. अगर ऐसा होता है, तो हम केस दर्ज
कर कार्रवाई करेंगे.” यह सब लीपा पोती ही कही जायेगी.
गांववालों, बदनामी इस बात से नहीं हो रही है कि सरकारी तंत्र में उलझकर
एक बच्ची की मौत हो गई, बदनामी तो इस बात से हो रही है कि पूरा गांव मिलकर 11 साल की बच्ची को
इतना भी खाना नहीं दिला सका कि उसकी सांसे चल सकें. इसलिए नाम और बदनामी की बात
छोड़कर उस महिला के दुख में शरीक होने की कोशिश करो, जिसने अपनी बच्ची
को खो दिया है. इस बात की कोशिश करो कि भविष्य में गांव में इस तरह की कोई घटना न
हो, जिससे गांव की
बदनामी हो. खबर यह भी है कि झाड़खंड में लगभग २५ लाख परिवारों को राशन कई महीनों से
इसलिए नहीं मिल रहा है क्योंकि उनका राशन कार्ड आधार से लिंक नहीं हुआ है या आधार
कार्ड नहीं है. अब फैसला सरकार और प्रशासन को करना है कि कैसे वह एक गरीब और लाचार
लोगों तक सरकारी योजनाओं का लाभ पहुंचाते हैं या सिर्फ कागजों और आंकड़ों में ही
गरीबी दूर होती रहेगी? निश्चित ही सरकार और प्रशासन के साथ सामाजिक संस्थाओं को भी
अपना दायित्व पालन करना चाहिए. किसी भूखे को खाना खिलाने से बड़ा कोई धर्म नहीं हो
सकता.
- जवाहर लाल सिंह,
जमशेदपुर