Sunday, 25 June 2017

किसानों का कर्ज माफी – एक फैशन?

केंद्रीय शहरी विकास मंत्री वेंकैया नायडू ने मुंबई में बयान दिया है - “किसानों की कर्ज़ माफ़ी फ़ैशन हो गया है”. कहीं इससे प्रभावित होकर उनकी पार्टी के मुख्यमंत्री देवेंद फडणवीस कर्ज़ माफ़ी का अपना फ़ैसला वापस न ले लें. किसानों की कर्ज़ माफ़ी को फैशन कहने से पहले लगता है कि उन्हें यूपी चुनाव का ध्यान नहीं रहा जब ख़ुद प्रधानमंत्री कहा करते थे कि हमारी सरकार बनी तो उसकी कैबिनेट की पहली बैठक में किसानों की कर्ज़माफी होगी और यह बकायदा बीजेपी के घोषणापत्र का हिस्सा था. वेंकैया नायडू को यह सुझाव चुनाव से पहले देना चाहिए था. यूपी और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री को वे अब भी कह सकते हैं कि फैशन बंद कीजिए. महाराष्ट्र इनकार करता रहा लेकिन किसान आंदोलनों ने मुख्यमंत्री फडणवीस को मजबूर कर दिया कि कर्ज़ माफी करें. पंजाब को ऐलान करना पड़ा क्योंकि कांग्रेस ने वहां चुनावों में जनता से वादा किया था. फिर कर्नाटक से ख़बर आई कि वहां भी फ़सली ऋण माफ करने का ऐलान हुआ है. मध्य प्रदेश ने भी कर्ज़ माफी की एक योजना बनाकर 1000 करोड़ का प्रावधान किया है. 9 साल पहले 2008 में यूपीए सरकार ने कर्ज़माफी का ऐलान किया था. 2008 में केंद्र सरकार ने कर्ज़ माफी की थी लेकिन इस बार राज्य सरकारें कर रही हैं. वित्त मंत्री जेटली ने साफ-साफ कहा है कि कर्ज़ माफी नहीं करेंगे. आंकड़ों के अनुसार - उत्तर प्रदेश ने 36,359 करोड़,  महाराष्ट्र ने 30,000 करोड़, कर्नाटक ने 8,165 करोड़,  पंजाब में 21000 करोड़, तेलंगाना ने 17,000 करोड़, आंध्र प्रदेश ने 22000 करोड़, तमिलनाडु सरकार ने 5,780 करोड़ की कर्ज़माफी का ऐलान किया है
सात राज्यों का कुल योग होता है 140,304 करोड़ रुपये.
2008
में यूपीए ने 60,000 करोड़ की कर्ज़माफी का ऐलान किया था. 2016 और 2017 की कर्ज़ माफी का कुल योग है करीब 1 लाख 40 हज़ार करोड़. कहीं भी पूर्ण माफी नहीं हुई है. कहीं ऐलान ही हुआ है, कहीं ऐलान होने के बाद आधा काम हुआ है, कहीं प्रक्रिया चल ही रही है और कहीं प्रक्रिया इतनी जटिल कर दी गई है कि उससे कुछ लाभ भी नहीं. सितंबर 2016 में राज्यसभा में कृषि राज्य मंत्री ने बताया था कि भारत के किसानों पर 30 सितंबर 2016 तक 12 लाख 60 हज़ार करोड़ रुपये का कर्ज़ा है. इनमें से 9 लाख 57 हज़ार करोड़ का कर्ज़ा व्यावसायिक बैंकों ने किसानों को दिया है. 12 लाख 60 हज़ार करोड़ में से 7 लाख 75 हज़ार करोड़ कर्ज़ा फसलों के लिए लिया गया है. तब कृषि मंत्री पुरुषोत्तम रूपाला ने कहा था कि सरकार कर्ज़ा माफ नहीं करेगी. रिज़र्व बैंक ने कहा है कि इससे कर्ज़ वसूली पर नकारात्म असर पड़ेगा. 12 लाख 60,000 करोड़ का कर्ज़ा है और सात राज्यों में माफी का ऐलान हुआ है एक लाख 40 हज़ार करोड़. यह कितना हुआ, मात्र 12 प्रतिशत. क्या 12 प्रतिशत कर्ज़ माफी का ऐलान फैशन है.
वेंकैया नायडू के बयान में चार बिंदु हैं. पहला कि कर्ज़माफी फैशन होता जा रहा है. दूसरा कि कर्ज़ माफी अंतिम समाधान नहीं है, तीसरा बिन्दु यह है कि किसान के हाथ में पैसा कैसे पहुंचे इसके लिए क्या कदम उठाया जाए तो इसकी समीक्षा उन्हें ही करनी चाहिए कि क्योंकि सरकार उनकी है और सरकार ने कदम तो उठाये ही होंगे. चौथा बिन्दु यह है कि कर्ज़ माफी एक्सट्रीम सिचुएशन यानी चरम स्थिति में होनी चाहिए.
ख़बरों के अनुसार सागर के बसारी गांव के किसान गुलई कुरमी पर 8 लाख रुपये का कर्ज़ था. 11 एकड़ ज़मीन के इस किसान के पास कर्ज़ के कारण खुदकुशी करने की कोई वजह नहीं होनी चाहिए थी. लेकिन कर्ज़ चुकाते चुकाते गुलई कुर्मी की 5 एकड़ ज़मीन बिक भी गई. जो 7 एकड़ ज़मीन बची थी उस पर भी महाजन की नज़र पड़ गई थी. गुलई की जेब से एक सुसाइड नोट भी मिला है. उस पत्र को सुनकर आप समझ सकते हैं कि किसानों की जान कौन लोग ले रहे हैं. 3 बच्चों के पिता गुलई लिखते हैं कि शंकर बऊदेनियां महाराज ने धोखाधड़ी से बेनामा करा लियो. हम इनका ब्याज देते रहे, हमेशा देते रहे, इनकी नीयत ख़राब होने लगी. हमको जे धमकी देने लगे. हम ज़मीन पर क़ब्ज़ा कर लेंगे. एक लाख रुपये लिए जिसमें से लिखा पढ़ी के पैसे काटे, एक लाख में से काटे, बाकी 2 लाख 50000 रुपया पहुंचे. इनका हमारा हिसाब हो चुका था फिर भी जे हमसे और पैसा मांग रहे हैं. जान मारने की धमकी देने को तैयार हैं. सूदखोर 20 से 24 प्रतिशत तक का ब्याज़ वसूलते हैं. किसानों को ज़रूरत का सारा पैसा बैंक से नहीं मिलता है. मध्य प्रदेश में 15 दिन में 22 किसानों ने खुदकुशी की है. और यह संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. 13 जून को मध्य प्रदेश के गृहमंत्री ने कहा था कि पिछले एक साल में सिर्फ चार किसानों ने कर्ज़ के कारण आत्महत्या की है. ये वही मंत्री हैं जिन्होंने कहा था कि पुलिस की गोली से किसान नहीं मरे हैं फिर तीन दिन बाद माना कि पुलिस की गोली से मरे हैं. 3 मई को सुप्रीम कोर्ट में सेंटर ने जो हलफनामा दिया है उसमें बताया है कि 2015 में मध्य प्रदेश में 581 किसानों ने आत्महत्या की थी. उसमें कहीं नहीं कहा है कि इन किसानों ने कर्ज के कारण आत्महत्या नहीं की है बल्कि यही कहा है कि खेती में सकंट के कारण तनाव है और सरकार उनकी आमदनी बढ़ाने का प्रयास भी कर रही है. इसकी ठीक से जांच होनी चाहिए कि किसान किन महाजनों से 20 से 24 फीसदी पर ब्याज़ ले रहा है और वो कौन लोग हैं. किसान बैंक से परेशान है या इन महाजनों के चंगुल से. बुदनी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के सिहोर ज़िले की तहसील का नाम है, यहां 22 जून की सुबह 55 साल के शत्रुघ्न मीणा ने सल्फास खाकर आत्महत्या कर ली. परिवार के लोग होशंगाबाद के निजी अस्पताल भी ले गए मगर शत्रुघ्न ने दम तोड़ दिया. परिवारवालों के अनुसार शत्रुघ्न पर दस लाख का कर्ज़ था. अपने खेत में बिजली का स्थाई कनेक्शन लेने के लिए वे 22 जून को तहसील कार्यालय गए. वहां पता चला कि जिस सात एकड़ ज़मीन को वो अपना मान रहे हैं वो उनके नाम नहीं है. बस वहां से लौट कर सल्फास खा ली और आत्महत्या कर ली. बेटे का आरोप है कि बीजेपी के स्थानीय नेता अर्जुन मालवीय ने उनकी ज़मीन हड़प ली है. आरोप की जांच होनी चाहिए.
पंजाब के तरणतारण में भी दो किसानों ने 22 जून को खुदकुशी की है. तरणतारण के कोट सिवया के किसान जोगिन्दर सिंह और खडूर साहिब के पड़ते गांव आलोवाल के किसान दलबीर सिंह ने आत्महत्या कर ली. जोगिन्दर सिंह पर सात लाख का कर्ज़ था. इसमें पांच लाख कर्ज बैंक का था, दो लाख आढ़ती से लिए थे और ढाई एकड़ ज़मीन थी. दलबीर सिंह ने भी रात को सोते वक्त ज़हर पी लिया.  दलबीर सिंह ने 4 लाख आढ़ती से लिये थे. दो लाख जालंधर के दूसरे आढ़तियों से लिये थे. एक लाख बैंक का कर्ज था और चार एकड़ ज़मीन थी. साठ साल की उम्र में कोई किसान आत्महत्या कर रहा है तो इसका मतलब है कि किसान एक्सट्रीम सिचुएशन में है. 22 जून को चार किसानों ने आत्महत्या की है. शिवसेना ने वेंकैया नायडू के बयान की आलोचना की है. ऐसे अनेकों उदाहरण हैं जिनसे यह जाहिर होता है कि कोई भी किसान एक्सट्रीम सिचुएशन में ही आत्महत्या करता है. और आत्म हत्या फैशन कैसे हो सकता है?. तेलंगाना में हर दिन छह किसान आत्महत्या करते हैं. इसी साल 3 मई को केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दिया है कि खेती के सेक्टर में हर साल 12000 किसान आत्महत्या करते हैं. एक साल में 12,000 किसानों का आत्महत्या करना क्या एक्स्ट्रीम सिचुएशन नहीं है ?
अब आते हैं राजस्थान की एक ख़बर पर. ग़रीब के साथ सरकार ही अच्छा मज़ाक करती है.
मैं ग़रीब परिवार से हूं और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम यानी एनएफएसए के तहत राशन लेता हूं. कुछ घरों पर ऐसा लिखा देखेंगे तो क्या आपके मन को ठेस नहीं पहुंचेगी? सरकार अपने रिकॉर्ड में हिसाब रखे, गरीब के घर के बाहर क्यों लिखा गया है कि मैं ग़रीब परिवार से हूं और राशन लेता हूं. दौसा ज़िले में 52,164 परिवार बीपीएल हैं. सरकार ने डेढ़ लाख से अधिक घरों के बाहर की दीवार पर मैं ग़रीब परिवार से हूं, लिखवा दिया है. ग़रीब का भी स्वाभिमान होता है. एक चीज़ समझ लेनी चाहिए कि सब्सिडी ख़ैरात नहीं है, न ही भीख है बल्कि यह अधिकार है जिसे देते समय सरकारें संसद में कानून बनाती है, मंत्रिमंडल में फैसला होता है. राजस्थान में राशन कार्ड धारकों को जब आधार से जोड़ दिया गया है तब दीवार पर लिखने की क्या ज़रूरत थी. मध्यप्रदेश के गोपालगंज के गांवों में परिवार वालों की मंज़ूरी के बिना दीवार पर ग़रीब लिख दिया गया है. यह सब एक्सट्रीम सिचुएशन ही है. यह एक सामाजिक बुराई के रूप में भी उभर कर आता है. बेटे-बेटी की शादी के समय कोई भी व्यक्ति गरीब परिवार से रिश्ता नहीं करना चाहेगा.

अंत में यही कहना चाहूँगा कि जिम्मेदार पद पर बैठे मंत्री और नेताओं को उलटे-सीधे बयान से बचना चाहिए. समस्या है तो समाधान की तरफ कदम बढ़ना चाहिए न कि समस्या को और उलझा दिया जाना चाहिए. किसानों की उसकी उपज कैसे बढ़े, आमदनी कैसे बढ़े और असंतोष कैसे कम हो इसपर ध्यान दिया जाना चाहिए. सबसे बड़ी बात कि किसान हमारी अर्थ ब्यवस्था के मेरुदंड हैं और रोटी, कपड़ा और मकान जैसी प्रमुख आवश्यकताओं को पूरा करने में इनका ही प्रमुख योगदान है. वोट देनेवाले भी ज्यादातर गरीब, मजदूर-किसान ही होते हैं. आप जिनके वोटों से सरकार बनाते हैं उसे अनदेखी कैसे कर सकते हैं? नारों से वोट लिए जा सकते हैं, पर देश तो चलता है धरातल पर हुए काम से. – जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर. 

Sunday, 11 June 2017

और पूरा हुआ मुख्यमंत्री शिवराज का उपवास

किसान आंदोलन के बाद राज्य में शांति बहाली के लिए मध्य प्रदेश के मुख्य मंत्री शिवराज सिंह चौहान अपना उपवास खत्म कर दिया. बीजेपी के वरिष्ठ नेता कैलाश जोशी ने शिवराज सिंह चौहान को नारियल पानी पिलाकर उनका उपवास खत्म करवाया. सी एम शिवराज सिंह चौहान के उपवास का दूसरा दिन था. सी एम शिवराज ने शुक्रवार को एलान किया था कि वो राज्य में शांति बहाली के लिए अनिश्चितकालीन उपवास करेंगे.
जानकारी के मुताबिक मंदसौर में पुलिस की गोली से मारे गए किसानों के परिजनों ने कल सीएम से मुलाकात की थी. मृतक किसानों के परिवार वालों ने सीएम से उपवास खत्म करने की अपील की थी. मीडिया से बात करते हुए सीएम शिवराज सिंह चौहान ने बताया, पीड़ित परिवार के लोग मुझसे इतने दुख के बावजूद भी मिले. उन्होंने मुझसे कहा कि आप अपना उपवास खत्म कर दें. उन्होंने गांव भी बुलाया था.
एक दिन पहले जब शिवराज सिंह ने उपवास शुरू किया था उस दिन भावुक कर देनेवाला जोरदार भाषण दिया था. उन्होंने बताया कि किसानों के हित के लिए बहुत सारे काम किये हैं. आज भी किसानों के लिए वे समर्पित हैं. उनके खिलाफ झूठी अफवाहें फैलाई गयी. पुराना विडियो दिखाकर लोगों को भड़काया गया. पुरानी विडियो में शिवराज सिंह यह कहते हुए दीख रहे हैं कि हड़ताल करनेवालों को एक धेला नहीं देनेवाले. आइये बात करिए. - इसका परिणाम यह हुआ कि किसान और किसानों के नौजवान बच्चे ज्यादा भड़क गए. कांग्रेस ने भी मौके का खूब फायदा उठाया और मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार के गृह मंत्री से लेकर अन्य मंत्रियों ने भी गलत बयानी कर आन्दोलन को भड़काने का ही काम किया. फलस्वरूप ६ मासूमों की जान तो गयी ही, राज्य सरकार की संपत्तियों को भी आग लगाकर काफी नुक्सान पहुँचाया गया. काश कि शिवराज जी समय रहते सम्हल जाते, किसानों की आवाज सुन तो लेते. किसानों की मांग पूरी हुई या नहीं इससे क्या फर्क पड़ता है. मौत का प्रायश्चित तो हो गया. १ करोड़ एक किसान परिवार के लिए कम नहीं होते! शिवराज मामा की जय जयकार फिर हो गयी. देखनेवाले, हवा देने वाले देखते ही रह गए. बल्कि मीडिया के सामने विरोधियों के ऊपर हमला करने का भी खूब मौका मिल गया.  
पर इस देश में जरूरतमंदों को कुछ भी आसानी से कहाँ मिलता है? खूब नाटक किये जाते हैं ताकि उसका राजनीतिक लाभ लिया जा सके. शिवराज सिंह ने भी जो भेल का दशहरा मैदान, उपवास स्थल चुना उसे एक दिन के अन्दर कितन भव्य बनाया गया, यह भी मीडिया के कैमरे बता रहे हैं. इसे ६ किसानों की मौत पर फाइव स्टार उपवास की भी संज्ञा दी गयी. सोसल मीडिया पर भी खूब बवाल कटा. आन्दोलनकारियों को किसान मानने से ही इनकार किया गया. इसके पहले दिल्ली के जंतर-मंतर पर कर रहे तमिलनाडु के किसानों पर भी सवाल उठाये गए. धीरे धीरे किसानों की मांग का समर्थन करते हुए महाराष्ट्र और राजस्थान के किसान भी आन्दोलन करने लगे. यु पी में भी सुगबुगाहट हुई अब इसे राष्ट्रीय स्तर पर भुनाने की कोशिश की जा रहे है. रिपोर्ट के अनुसार ११ जून को देश भर में किसानों का सांकेतिक प्रदर्शन हुआ.

महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश में बड़े पैमाने पर हो रहा किसान आंदोलन अब देश के अन्य राज्यों में पहुंचेगा. देश के अलग-अलग राज्यों में किसान आज से सांकेतिक प्रदर्शन शुरु करेंगे. शनिवार को दिल्ली में 62 किसान संगठनों की बैठक में तय हुआ. राष्ट्रीय किसान महासंघ के संयोजक शिव कुमार शर्मा ने मीडिया को बताया कि ११ जून को  को किसानो का समूह अलग अलग इलाकों में काली पट्टी लगाकर सांकेतिक प्रदर्शन करेगा. किसान संगठनो की तरफ से ये भी कहा गया है कि 16 जून को देशभर के हाईवे दोपहर 12 बजे से 3 बजे तक बंद करेंगे. हालांकि अभी ये देखना बाकी है कि मध्यप्रद्देश और महाराष्ट्र के बाहर इन संगठनो को कितना समर्थन मिलता है. उधर खबर है कि महाराष्ट्र के किसानों के कर्ज की माफी की घोषणा फडणवीस सरकार ने कर दी है. हो सकता है मामला ठंडा पड़ जाय. मॉनसून शुरू होने के बाद किसान भी अपनी खेती में लग जायेंगे तब वे आन्दोलन में कहाँ भाग लेंगे. पहले तो उपज पैदा करनी होती है तभी तो उसके लिए उचित दाम की मांग करना होगा.

शिवराज के खिलाफ कांग्रेस ने सिंधिया को मैदान में उतारा
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के उपवास के जवाब में कांग्रेस सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया अब मैदान में उतरेंगे. ये घोषणा की गयी है की कांग्रेस के युवा चेहरा और सांसद ज्योतिदित्य सिंधिया शिवराज सरकार के खिलाफ प्रदेश में 72 घंटों का सत्याग्रह करेंगे. सिंधिया 14 जून को दोपहर 3 बजे भोपाल शहर के टी. टी. नगर दशहरा मैदान में 72 घंटे के लिए सत्याग्रह पर बैठेंगे. अपना सत्याग्रह शुरू करने के एक दिन पहले सिंधिया 13 जून को मंदसौर जाएंगे और छह जून को किसान आंदोलन के दौरान पुलिस फायरिंग में मंदसौर जिले में मारे गये पांच किसानों के परिजनों से मुलाकात भी करेंगे.
किसान संगठनों का प्रतिनिधि मंडल पहुंचा मंदसौर
मध्यप्रदेश के मंदसौर में किसान आंदोलन के दौरान मरने वाले किसानों के परिवारों के प्रति संवेदना व्यक्त करने पूरे देश से किसानों और किसान संगठनों का एक प्रतिनिधि मंडल ११ जून को सुबह मंदसौर जाने को निकले थे. इस प्रतिनिधिमंडल में मेधा पाटेकर, योगेन्द्र यादव, स्वामी अग्निवेश, वीएम सिंह, डॉ-सुनीलम, अविक साहा, के. बालाकृष्णन और सोमनाथ तिवारी हैं. आदि को जावरा के मानखेड़ा टोल पर ही हिरासत में ले लिया गया.  कोई भी सरकार मामले को टूल देना नहीं चाहेगी या प्रतिद्वंद्वी को अपनी रोटी सेंकने का मौका नहीं देगी. राहुल गाँधी को मंदसौर पहुँचने से रोका गया था. प्रधान मंत्री चुप है यानी चुपचाप निगरानी रखे हुए हैं. उधर अमित शाह महात्मा गाँधी को चतुर बनिया कहकर नई हवा फैला दी.  
सवाल यही है कि किसानों की हक़ की बात हर कोई करता है. वोट लेने के लिए घोषणाएँ कर दी जाती है. पर उसके कार्यान्वयन की जब बात आती है तो विभिन्न प्रकार के पेंच पैदा कर दिए जाते हैं.
सबसे पहले बात करते हैं न्यूनतम समर्थन मूल्य की राजनीति की. 2014 के लोकसभा चुनावों के दौरान बीजेपी ने किसान यानि अन्नदाता की दुर्दशा का जमकर रोना रोया था. उसने अपने घोषणा पत्र में कहा था कि सत्ता में आने पर स्वामीनाथन कमेटी की सिफारिशें लागू कर दी जाएंगी. कमेटी ने किसानों को लागत से उपर पचास फीसद मुनाफा देने की बात कही गयी थी. 2014 के लोकसभा चुनावों के दौरान बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार अपने हर चुनावी भाषण में किसान और जवान की बात करते थे. किसान को एमएसपी पर पचास फीसद का मुनाफा देना था.
चुनावी वायदा पूरा नहीं करने के खिलाफ मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा. मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हल्फनामा दायर कर कहा कि वह न्यूनतम समर्थन मूल्य से पचास फीसद ज्यादा पैसा किसानों को नहीं दे सकती है. इस वादाखिलाफी को लेकर विपक्ष मोदी सरकार की खिंचाई करता रहा है. यह वायदा किसानों को तब याद आता है जब प्याज, आलू, टमाटर के उचित दाम नहीं मिलने पर उसे सड़कों पर फैंकना पड़ता है. जब खेत में खड़ी फसल को किसान खुद ही आग लगाने को मजबूर हो जाते हैं. जब दाल के दाम नहीं मिलने पर किसानों को आत्महत्या के लिए मजबूर होना पड़ता है.
किसानो अन्नदाता की विशेषण से नवाजने और २०२२ तक उनकी आमदनी दुगनी करने के वादे पर कितना काम अभी हुआ है? मध्यम और निचले स्तर के किसानों की क्या स्थिति है? उनके फसलों/उत्पादों के सही दाम मिल रहे हैं? अगर नहीं तो क्यों? वर्तमान केंद्र और राज्य सरकारों को यह जरूर सोचना पड़ेगा कि किसान आंदोलित क्यों है? अगर किसान हड़ताल करेंगे तो पूरी जनता का क्या हस्र होगा. आखिर हम सभी किसानों के उत्पाद ही खाकर जीवित हैं. ये देश के विकास के लिए मेरुदंड हैं. बिना कृषि उत्पाद के कुछ भी बेमानी है. किसानों के उत्पाद को सस्ते दामों पर खरीदकर फ़ूड प्रोसेसिंग करने वाली कंपनियां कई गुना मुनाफा कमा रही है. निश्चित रूप से किसानों के वाजिब मांग पर सहानुभूतिपूर्वक विचार करने की जरूरत है. ताकि खेती को फायदेमंद बनाया जा सके. तभी होगा जय जवान और जय किसान ! आखिर किसानों के बेटे ही ज्यादातर फ़ौज में भर्ती होते हैं.

-    जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.